रिचा की कहानी..............
ये बात तब की है...जब मैं छोटी सी...या यूँ कहूँ कि बड़ी हो रही थी.....
बाकी सबकी तरह मैं भी अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी जिंदगी गुज़ार रही थी....
मेरे पिता एक इज़्ज़तदार टीचर थे...और मेरी माँ एक घरेलू महिला....
फिर हम लोग उस गाओं मे आ कर रहने लगे जिस गाओं ने हमारी जिंदगी को बदल कर रख दिया.....
उस गाओं मे आते ही मेरे परिवार की जान-पहचान तुम्हारे दादाजी (आज़ाद) से हुई.....और फिर मेरी बर्बादी की शुरुआत भी......
मैं इस वक़्त उमर के उस पड़ाव पर थी...जब एक लड़की अपनी जवानी मे पहला कदम रखती है.....
इस उमर मे सभी लड़कियों की तरह मेरे दिल मे भी अरमान थे....मेरे अंदर भी जवानी हिलोरे मारती थी....पर मैं अपनी हद जानती थी...इसलिए कभी भी उस हद को पार करने की कोसिस नही की ..जो हद लड़कियों के लिए इस समाज ने बनाई है....
पर तभी कुछ ऐसा हुआ...जिसने मेरी जिबड़गी मे एक तूफान ला दिया....और वो तूफान लाने वाले 2 लोग थे...एक तो मेरी माँ....और दूसरा तुम्हारा दादा ..
हाँ...यही वो लोग थे...जिनकी वजह से मैं इस घटिया रास्ते पर चल निकली...और आज इस नरक मे जी रही हूँ....
असल मे मेरी माँ को आलीशान जिंदगी जीने का सपना था.....पर मेरे पिता से सदी होने के बाद उनके अरमान दिल मे ही रह गये...क्योकि मेरे पिता एक साधारण से टीचर थे.....
पर तभी मेरी माँ की आज़ाद से पहचान हुई....एक तरफ आज़ाद औरत के जिस्म का सौकीन था तो दूसरी तरफ मेरी माँ...पैसो की चाहत रखने वाली.....
इस तरह उन दोनो को अपना-अपना टारगेट मिल गया.....मेरी माँ को आज़ाद ने पैसे दिए...नौकरी दी ..आलीशान जिंदगी दी...और बदले मे मेरी माँ ने आज़ाद को अपना जिस्म दे दिया....और उसकी प्यास बुझाने लगी....
धीरे-धीरे मेरी माँ को आज़ाद का साथ प्यारा लगने लगा...और फिर तो उन्होने आज़ाद को ही अपना पति मान लिया...या यू कहे तो आज़ाद की रखेल बन गई....
वो दोनो मौका मिलते ही चुदाई के सागर मे गोते मारने लगे...यहाँ तक की उन्हे मेरी या मेरे पिता की भी परवाह नही थी....
कभी-कभी तो मेरे पिता जब घर पर होते...तो मेरी माँ बहाने से पीछे वाले बाथरूम मे जाती और आज़ाद को वहाँ बुला कर दम कर चुदवाती....
उनका ये सिलसिला चलता रहा...पर मुझे कोई फ़र्क नही पड़ा...क्योकि मुझे कुछ पता ही नही था....
पर इसी बीच मेरी मुलाक़ात आकाश से हुई....और उससे मिलने के बाद मैं दिल ही दिल मे उससे प्यार कर बैठी....और वो प्यार धीरे-धीरे मेरा जुनून बन गया.....
पर मैं ये भी जानती थी कि आकाश को पाना आसान नही....इसलिए मैने उस प्यार को दिल के कोने मे छिपा कर रखा......
पर दूसरी तरफ एक तूफान मेरी जिंदगी मे आने का इंतज़ार कर रहा था....और आख़िर कार वो दिन आ ही गया.....
मैं उस दिन स्कूल से जल्दी निकल आई....पर निकलते वक़्त मैने ये नही सोचा था कि आज का दिन मेरा नया जन्म होने वाला था....
उस दिन जब मैं घर पहुँची तो मुझे घर अंदर से लॉक मिला...जो होना नही चाहिए थे...क्योकि उस वक़्त तो माँ-पापा अपने-अपने काम पर होते है.....
मैने सोचा की शायद कोई आ गया होगा....पर तभी मुझे माँ की आवाज़ आई ..जो हँसते हुए बोल रही थी कि अंदर चलो ना.....
मैं ये बात सुन कर चौंकी...पर मैने सोचा कि शायद माँ-पापा साथ होंगे...और हसी-मज़ाक हो रहा है.....
मैं इतनी बड़ी तो थी ही कि उनकी बात का मतलब समझ सकूँ....इसलिए मैं मुस्कुरा दी और नॉक करने के लिए हाथ ही उठाया था कि...अगली आवाज़ आई...जिसे सुन कर मैं सन्न रह गई....वो मेरी माँ की थी....
""नही आज़ाद...आज गान्ड मत मारना...कल इतनी मारी थी कि अभी तक दर्द हो रहा है....""
""अरे मेरी जान....गांद मरवाने मे ही तो मज़ा है.....तू बस मज़ा कर...चल आजा....""
ये दो लाइन्स मेरी माँ और आज़ाद ने कही थी....मैं दोनो की आवाज़ पहचान गई....और बातें सुनते ही मेरा दिल धक कर के रह गया.....और मैं बिना कुछ कहे वही बैठ गई...और मेरी आँखो से आँसू छलक गये......
चूतो का समुंदर
- Ankit
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- Ankit
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Re: चूतो का समुंदर
काफ़ी देर तक मैं आँसू बहाती रही....पर मेरे मन मे कही ना कही वो सब जानने की इक्षा होने लगी थी ...जो अंदर हो रहा था....
मेरे मन मे गुस्सा तो था...पर एक जिग्यासा भी थी....मैं देखना चाहती थी कि आख़िर मेरी माँ ये सब क्या और क्यो कर रही है....
इसीलिए मैने अपने आँसुओ को संभाला और वहाँ से उठ कर घर के पीछे गई ....जहा मेरा रूम था...और मैं जानती थी की उसकी एक खिड़की का लॉक खराब है...इसलिए वो खुली ही रहती है....
मैं उसी खिड़की से घर मे दाखिल हुई और दवे पैर उस रूम तक पहुँच गई...जहा मेरी माँ अपने जिस्म को आज़ाद से कुचलवा रही थी....
जब मेरी नज़र उन पर पड़ी तो उस वक़्त आज़ाद तेज़ी से मेरी माँ की गांद मार रहा था....और मेरी माँ ज़ोर से चीख-चीख कर आज़ाद को तेज़ी से चोदने को बोल रही थी.....
फिर क्या था....मेरे दिल की धड़कन बढ़ने लगी...और मैं अपने आपको संभाल कर उन दोनो की चुदाई देखने लगी....
उस दिन मेरी माँ ने लंड चूसा....चूत चुस्वाई.....बूब्स चुस्वाए.....चूत चुदवाइ...और फिर लंड रस भी पिया.....
मैने एक ही दिन मे चुदाई के काफ़ी पाठ देख लिए थे.....और ये सब देख कर मेरे जिस्म मे सनसनी पैदा होने लगी थी...मेरे बूब्स कड़क हो गये थे...और चूत से कुछ निकलता हुआ महसूस हो रहा था....
पर मैने खुद को संभाला और चुपके से वापिस घर से निकल आई...और थोड़ा घूमने के बाद घर आ गई....
उस दिन के बाद मेरे जिस्म मे अजीब सी हलचल पैदा हो गई थी...और इसी वजह से मैं बार-बार अपनी माँ की चुदाई देखने के लिए स्कूल से निकल आती और चुदाई देख कर मज़ा लेती....
पर कहते है ना कि छुदाई ऐसी चीज़ है जो देखने से ज़्यादा करने मे मज़ा आता है....और इंसान ना चाहते हुए भी इस दलदल मे खिंचा चला जाता है...
वही मेरे साथ हुआ....पर मुस्किल ये थी कि ना तो मेरे कोई बाय्फ्रेंड था...ना मुझे मेरा प्यार आकाश मिला था...तो मैं किसकी बाहों मे जाती....
यही सोचते हुए कई दिन निकल गये....और मैं माँ की चुदाई देखते हुए उंगलियों से चूत को ठंडा करना सीख गई....
पर एक दिन आज़ाद ने चुदाई के दौरान मेरा नाम लिया तो मैं शॉक्ड रह गई....
आज़ाद ने मेरे हुश्न की तारीफ़ की....खास कर मेरी गांद की....और इससे भी ज़्यादा शॉकिंग बात ये थी कि मेरी माँ ने भी हँसते हुए आज़ाद की हाँ से हाँ मिला दी...
फिर आज़ाद ने मुझे चोदने की बात की...जिसे सुनकर मैं सिहर उठी....पर मेरी माँ ने बोला की ""फसा लो और चोद लो...".... तो मेरा माइंड हिल गया....
मैं सोचने लगी कि कैसी माँ है ये...जो बेटी को ही चुदवाने को हाँ बोल गई....
ये बात मेरे मन मे हलचल मचाने लगी....और उसी बीच मैं भी आज़ाद के तगड़े लंड के बारे मे सोचने लगी....
पता नही क्यो....मैं अब चुदने को तैयार हो गई थी...वो भी आज़ाद से...और उसकी वजह थी....उसका तगड़ा लंड और मेरी माँ की सहमति.....
आख़िरकार एक दिन मैने वो किया जो मुझे नही करना चाहिए था....
जब मेरी माँ की चुदाई शुरू हुई तो मैं नंगी हो कर उन दोनो के पास चली गई....
मुझे यू देख कर दोनो शॉक्ड थे...पर आज़ाद की आँखो मे एक चमक भी थी....
मैं समझ गई कि आज तो मुझे लंड का स्वाद मिल ही जायगा....पर मेरे आने से वो दोनो चुपचाप हो गये थे...कोई कुछ बोल ही नही पा रहा था....
मैने सोचा कि अब मुझे ही कुछ करना होगा...और यही सोच कर मैने आज़ाद के पास जा जर उसका खड़ा हुआ लंड हाथ मे ले लिया और झुक कर मुँह मे डाल लिया....
मेरी माँ फटी आँखो से मुझे देख रही थी...पर मैने तो लंड चूसना शुरू कर दिया....और अपनी माँ को देख कर आँख मार दी....
फिर क्या था....माँ जान गई कि मैं इस खेल का मज़ा लेने आई हूँ...उसने आज़ाद को भी सब बता दिया...और आज़ाद को एक कच्ची कली मिल गई....
आज़ाद ने उस दिन मेरी गांद की सील तोड़ी...और दिन भर मेरी गांद मार कर सूजा डाली....
और कुछ दिन बाद मेरी चूत भी खोल दी...और फिर तो चूत और गांद....दोनो का भरपूर मज़ा लिया....
मेरी माँ भी खुस थी...वो भी हमारे साथ ही सेक्स का मज़ा लेती...और हम दोनो माँ-बेटी आज़ाद की रखेल बन गये....
धीरे -धीरे मेरी सेक्स की भूख बढ़ने लगी...और इसे मिटाने के लिए आज़ाद ने मेरे पापा को दूर गाओं मे ट्रास्फेर करवा दिया...
और फिर तो रात-दिन हम माँ-बेटी उसके लंड के मज़े मारने लगे....
मेरे जिस्म की भूख तो मिट रही थी...पर मेरे प्यार की भूख तो आकाश था....जो मुझे अभी मिटानी थी....
इसीलिए मैने एक दिन आज़ाद को अपने प्यार के बारे मे बताया.....
पर जैसा मैने सोचा था...ठीक उसका उल्टा हुआ....
मुझे लगा था कि शायद आज़ाद मेरे प्यार को समझेगा...पर उसने तो मुझे रंडी बोल कर दुतकार दिया....और आकाश के बारे मे ना सोचने की हिदायत दे दी.....
मुझे गुस्सा तो आया...पर मैं गुस्सा दवा गई...क्योकि मैं करती भी क्या...एक तो आज़ाद का रूतवा...और फिर उसके वो दो दोस्त....अली और मदन...जिनके होते हुए कोई आज़ाद का कुछ बिगाड़ भी नही सकता था.....
पर मैने दिल मे सोच लिया कि अब मैं आज़ाद की बेटी को भी अपनी तरह बना दूगी...तभी मेरे दिल को चैन आयगा....
और आज़ाद को बदमान कर के मिटा दूँगी....पर इसके लिए मुझे आज़ाद को उसके दोस्तो से अलग करना ज़रूरी था...जो नामुमकिन था....पर मुझे उम्मीद थी कि कुछ तो मेरे लिए अच्छा होगा...आज नही तो कल....और फिर ऐसा हुआ भी.....
मैने आरती को अपनी सबसे खास सहेली बना लिया था....पर फिर भी उसे सेक्स के लिए राज़ी नही कर पाई....
पर इसी बीच मुझे पता चला कि आमिर(सरफ़राज़ का भाई) आरती से बेहद प्यार करता है...
मैने सोचा कि आमिर की हेल्प से आरती को बदनाम करू...पर आमिर का प्यार सच्चा था....वो आरती से शादी करना चाहता था...ना कि सेक्स....
मेरे मन मे गुस्सा तो था...पर एक जिग्यासा भी थी....मैं देखना चाहती थी कि आख़िर मेरी माँ ये सब क्या और क्यो कर रही है....
इसीलिए मैने अपने आँसुओ को संभाला और वहाँ से उठ कर घर के पीछे गई ....जहा मेरा रूम था...और मैं जानती थी की उसकी एक खिड़की का लॉक खराब है...इसलिए वो खुली ही रहती है....
मैं उसी खिड़की से घर मे दाखिल हुई और दवे पैर उस रूम तक पहुँच गई...जहा मेरी माँ अपने जिस्म को आज़ाद से कुचलवा रही थी....
जब मेरी नज़र उन पर पड़ी तो उस वक़्त आज़ाद तेज़ी से मेरी माँ की गांद मार रहा था....और मेरी माँ ज़ोर से चीख-चीख कर आज़ाद को तेज़ी से चोदने को बोल रही थी.....
फिर क्या था....मेरे दिल की धड़कन बढ़ने लगी...और मैं अपने आपको संभाल कर उन दोनो की चुदाई देखने लगी....
उस दिन मेरी माँ ने लंड चूसा....चूत चुस्वाई.....बूब्स चुस्वाए.....चूत चुदवाइ...और फिर लंड रस भी पिया.....
मैने एक ही दिन मे चुदाई के काफ़ी पाठ देख लिए थे.....और ये सब देख कर मेरे जिस्म मे सनसनी पैदा होने लगी थी...मेरे बूब्स कड़क हो गये थे...और चूत से कुछ निकलता हुआ महसूस हो रहा था....
पर मैने खुद को संभाला और चुपके से वापिस घर से निकल आई...और थोड़ा घूमने के बाद घर आ गई....
उस दिन के बाद मेरे जिस्म मे अजीब सी हलचल पैदा हो गई थी...और इसी वजह से मैं बार-बार अपनी माँ की चुदाई देखने के लिए स्कूल से निकल आती और चुदाई देख कर मज़ा लेती....
पर कहते है ना कि छुदाई ऐसी चीज़ है जो देखने से ज़्यादा करने मे मज़ा आता है....और इंसान ना चाहते हुए भी इस दलदल मे खिंचा चला जाता है...
वही मेरे साथ हुआ....पर मुस्किल ये थी कि ना तो मेरे कोई बाय्फ्रेंड था...ना मुझे मेरा प्यार आकाश मिला था...तो मैं किसकी बाहों मे जाती....
यही सोचते हुए कई दिन निकल गये....और मैं माँ की चुदाई देखते हुए उंगलियों से चूत को ठंडा करना सीख गई....
पर एक दिन आज़ाद ने चुदाई के दौरान मेरा नाम लिया तो मैं शॉक्ड रह गई....
आज़ाद ने मेरे हुश्न की तारीफ़ की....खास कर मेरी गांद की....और इससे भी ज़्यादा शॉकिंग बात ये थी कि मेरी माँ ने भी हँसते हुए आज़ाद की हाँ से हाँ मिला दी...
फिर आज़ाद ने मुझे चोदने की बात की...जिसे सुनकर मैं सिहर उठी....पर मेरी माँ ने बोला की ""फसा लो और चोद लो...".... तो मेरा माइंड हिल गया....
मैं सोचने लगी कि कैसी माँ है ये...जो बेटी को ही चुदवाने को हाँ बोल गई....
ये बात मेरे मन मे हलचल मचाने लगी....और उसी बीच मैं भी आज़ाद के तगड़े लंड के बारे मे सोचने लगी....
पता नही क्यो....मैं अब चुदने को तैयार हो गई थी...वो भी आज़ाद से...और उसकी वजह थी....उसका तगड़ा लंड और मेरी माँ की सहमति.....
आख़िरकार एक दिन मैने वो किया जो मुझे नही करना चाहिए था....
जब मेरी माँ की चुदाई शुरू हुई तो मैं नंगी हो कर उन दोनो के पास चली गई....
मुझे यू देख कर दोनो शॉक्ड थे...पर आज़ाद की आँखो मे एक चमक भी थी....
मैं समझ गई कि आज तो मुझे लंड का स्वाद मिल ही जायगा....पर मेरे आने से वो दोनो चुपचाप हो गये थे...कोई कुछ बोल ही नही पा रहा था....
मैने सोचा कि अब मुझे ही कुछ करना होगा...और यही सोच कर मैने आज़ाद के पास जा जर उसका खड़ा हुआ लंड हाथ मे ले लिया और झुक कर मुँह मे डाल लिया....
मेरी माँ फटी आँखो से मुझे देख रही थी...पर मैने तो लंड चूसना शुरू कर दिया....और अपनी माँ को देख कर आँख मार दी....
फिर क्या था....माँ जान गई कि मैं इस खेल का मज़ा लेने आई हूँ...उसने आज़ाद को भी सब बता दिया...और आज़ाद को एक कच्ची कली मिल गई....
आज़ाद ने उस दिन मेरी गांद की सील तोड़ी...और दिन भर मेरी गांद मार कर सूजा डाली....
और कुछ दिन बाद मेरी चूत भी खोल दी...और फिर तो चूत और गांद....दोनो का भरपूर मज़ा लिया....
मेरी माँ भी खुस थी...वो भी हमारे साथ ही सेक्स का मज़ा लेती...और हम दोनो माँ-बेटी आज़ाद की रखेल बन गये....
धीरे -धीरे मेरी सेक्स की भूख बढ़ने लगी...और इसे मिटाने के लिए आज़ाद ने मेरे पापा को दूर गाओं मे ट्रास्फेर करवा दिया...
और फिर तो रात-दिन हम माँ-बेटी उसके लंड के मज़े मारने लगे....
मेरे जिस्म की भूख तो मिट रही थी...पर मेरे प्यार की भूख तो आकाश था....जो मुझे अभी मिटानी थी....
इसीलिए मैने एक दिन आज़ाद को अपने प्यार के बारे मे बताया.....
पर जैसा मैने सोचा था...ठीक उसका उल्टा हुआ....
मुझे लगा था कि शायद आज़ाद मेरे प्यार को समझेगा...पर उसने तो मुझे रंडी बोल कर दुतकार दिया....और आकाश के बारे मे ना सोचने की हिदायत दे दी.....
मुझे गुस्सा तो आया...पर मैं गुस्सा दवा गई...क्योकि मैं करती भी क्या...एक तो आज़ाद का रूतवा...और फिर उसके वो दो दोस्त....अली और मदन...जिनके होते हुए कोई आज़ाद का कुछ बिगाड़ भी नही सकता था.....
पर मैने दिल मे सोच लिया कि अब मैं आज़ाद की बेटी को भी अपनी तरह बना दूगी...तभी मेरे दिल को चैन आयगा....
और आज़ाद को बदमान कर के मिटा दूँगी....पर इसके लिए मुझे आज़ाद को उसके दोस्तो से अलग करना ज़रूरी था...जो नामुमकिन था....पर मुझे उम्मीद थी कि कुछ तो मेरे लिए अच्छा होगा...आज नही तो कल....और फिर ऐसा हुआ भी.....
मैने आरती को अपनी सबसे खास सहेली बना लिया था....पर फिर भी उसे सेक्स के लिए राज़ी नही कर पाई....
पर इसी बीच मुझे पता चला कि आमिर(सरफ़राज़ का भाई) आरती से बेहद प्यार करता है...
मैने सोचा कि आमिर की हेल्प से आरती को बदनाम करू...पर आमिर का प्यार सच्चा था....वो आरती से शादी करना चाहता था...ना कि सेक्स....
- shubhs
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Re: चूतो का समुंदर
अब आगे
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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- Kamini
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Re: चूतो का समुंदर
स्वतंत्रता दिवस और श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं.....
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Re: चूतो का समुंदर
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