चूतो का समुंदर
- shubhs
- Novice User
- Posts: 1541
- Joined: 19 Feb 2016 06:23
Re: चूतो का समुंदर
अच्छा अपडेट
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
- Ankit
- Expert Member
- Posts: 3339
- Joined: 06 Apr 2016 09:59
Re: चूतो का समुंदर
thanks bhaiyo
- Ankit
- Expert Member
- Posts: 3339
- Joined: 06 Apr 2016 09:59
Re: चूतो का समुंदर
यहाँ रूम मे गोली की आवाज़ सुन कर सुभाष बाहर की तरफ भागा...पर सरिता ने साइलेनसर वाली पिस्टल से उसे मार गिराया और फिर सरफ़राज़ से भागने को बोला.....
यहा समर ने मुझे भी भागने का बोला....
वहाँ सरफ़राज़ गया और सरिता ने उस बच्ची को नीचे ही रखा था कि एक गोली चली और सरिता भी मार कर गिर गई....और ये मैने भागते हुए देखा था....बस...इसके बाद क्या हुआ...मुझे नही पता.....
रिचा की बात ख़त्म हुई...और साथ मे मेरे दिल मे पड़ी गाँठ भी खुल गई....
आज जा कर पता चला कि उस रूम मे उस दिन असल मे हुआ क्या था....
मुझे भरोशा तो पहले ही से था कि मेरे डॅड किसी को मार नही सकते...और आज ये बात कन्फर्म भी हो गई...सच मे...मेरे दिल को एक सुकून मिल गया...पर साथ मे मेरी आँखे गुस्से से लाल हो गई.....
रिचा(मुझे देख कर)- एमेम..मैने कुछ नही किया था...कसम से...मैं तो बस सब देख कर भाग गई थी...सच मे....
मैं(गुस्से से)- आज तक मेरे डॅड इन सब इल्ज़ामो का भोझ ले कर जी रहे है....अब मैं किसी को नही छोड़ूँगा...किसी को भी नही....
उन लोगो की वजह से मेरे डॅड ने सब कुछ खो दिया....अपना परिवार...जान से प्यारी बेहन...अपना दोस्त...और अपनी माँ भी....जिनकी मौत का बोझ भी उनही के सिर पर चड़ा....जबकि उनकी कोई ग़लती नही थी....कोई नही....
रिचा(सहमे हुए)- सही कह रहे हो...तुम्हारी दादी की मौत तुम्हारे डॅड की वजह से नही हुई थी...बल्कि...
इतना बोल कर रिचा चुप हो गई...जिससे मेरे माथे पर शिकन आ गई....
मैं- बल्कि...बल्कि क्या....कहना क्या चाहती है तू...मेरी दादी की मौत...कैसे मरी मेरी दादी....उसी वीडियो को देख कर ना...जो सरिता ने बनाया था...मेरे डॅड के साथ...हाँ...
रिचा- हाँ...वो एक वजह थी...पर उस वजह से वो सिर्फ़ टूट गई थी...मरी नही थी....
मैं(गुस्से से)- तो...तो फिर कैसे मरी थी वो....क्या और कुछ भी हुआ था वहाँ....
रिचा(डरते हुए)- आ..असल मिस्टर उनकी मौत खुद्खुसि नही थी....वो...वो एक हत्या थी....
मैं(गुस्से से खड़ा हो गया)- क्या...उनकी हत्या हुई थी...कौन...कौन था वो....मैने पूछा कौन था वो....बता...
मारे गुस्से के मेरा सरीर काँप सा रहा था...और मेरी हालत देख कर दर के मारे रिचा के चहरे का रंग उड़ गया था....
मैं- बोल ना साली...कौन था वो कमीना .....बोल...
और तभी डोरबेल बज उठी और हम सब चौंक कर गेट की तरफ देखने लगे........
मैं(गुस्से से)- अब कौन मरा साला.....????????????
गेट पर हुई दस्तक से हम सभी चौंक गये और सबके चेहरों के रंग बदल गये.....
रिचा(सहम कर)- कौन आया....
मैं(धीरे से, गुस्से मे)- मुझे क्या पता साली...मेरी आँखे गेट के आर-पार नही देखती...समझी...
रिचा(धीरे से)- तो अब...देखो ना ...
मैं(रफ़्तार को देख कर)- देख तो कौन है....कोई पंगे वाला हो तो दबोच लेना...
रफ़्तार(आगे बढ़ते हुए)- तुम इसे शांत रखो....मैं संभाल लुगा....
इतना बोल कर रफ़्तार ने गेट को थोड़ा खोला और फिर किसी को शांत रहने का इशारा किया....
मैं(आँखो से)- कौन ...
रफ़्तार(पलट कर)- कोई प्राब्लम नही....मैं बाहर जाता हूँ....यू कॅरी ऑन...
और रफ़्तार बाहर निकल गया और एक बार फिर मैने पूरा फोकस रिचा पर किया.....
मैं(पिस्टल दिखा कर)- अब मुझे जवाब चाहिए बस...और मैं दुबारा नही पूछुगा ....याद रखना....ओके...तो....मेरी दादी के साथ क्या हुआ था.....
रिचा- बताती हूँ....बताती हूँ....
और फिर से रिचा मुझे अतीत मे ले गई....उस वक़्त...जब मेरी बड़ी बुआ की शादी हो रही थी......
उस दिन आज़ाद के पावर मे खुशिया ही खुशिया थी....
आकृति की शादी बड़े धूम-धाम से पूरी हो रही थी....पर उसी बीच सरिता अपने टाइटानी दिमाग़ से आज़ाद को बर्बाद करने के मंसूबे बना रही थी.....
मुझे पहले ये पता भी था कि सरिता का प्लान क्या है....ये तो मुझे अचानक से पता चला.....
जब मैने सरिता को किसी से फ़ोन पर बात करते सुना....कि कैसे उसने आकाश को पटा कर एक रेप की तरह चुदाई करवाई...और उसका वीडियो बना लिया.....और अब वो उसी वीडियो की मदद से आज़ाद की इज़्ज़त सरे आम उछालने वाली है.....
जब मैने ये सुना तो मैं शॉक्ड हो गई...पर अंदर ही अंदर खुश भी हुई...कि चलो...आज़ाद का कुछ तो बुरा हो रहा है....
पर जब सरिता ने सबके सामने उस वीडियो को दिखाया....तो वहाँ पर मौजूद हर सख्स चौंक गया...पर कोई भी आज़ाद के खिलाफ नही बोला.....हाँ...आज़ाद का सिर ज़रूर शर्म से झुक गया और उसका झुका हुआ सिर देख कर मुझ जैसे उसके बाकी के दुश्मनो के चेहरे खिल उठे....
पर इन सब के बीच एक चेहरा ऐसा भी था....जिसके चेहरे पर मैं कभी शर्मिंदगी और दुख देख नही सकती थी...वो थी आज़ाद की पत्नी...रुक्मणी....
भले ही आज़ाद ने मेरे साथ कुछ भी किया हो...पर रुक्मणी ने मुझे हमेशा प्यार दिया था....एक माँ की तरह मुझे खाना खिलाया...मेरी हर तरह से मदद की...क्योकि मैं आरती की सहेली थी...और उसी वजह से वो मुझे आरती की ही तरह प्यार करती थी....
यहा समर ने मुझे भी भागने का बोला....
वहाँ सरफ़राज़ गया और सरिता ने उस बच्ची को नीचे ही रखा था कि एक गोली चली और सरिता भी मार कर गिर गई....और ये मैने भागते हुए देखा था....बस...इसके बाद क्या हुआ...मुझे नही पता.....
रिचा की बात ख़त्म हुई...और साथ मे मेरे दिल मे पड़ी गाँठ भी खुल गई....
आज जा कर पता चला कि उस रूम मे उस दिन असल मे हुआ क्या था....
मुझे भरोशा तो पहले ही से था कि मेरे डॅड किसी को मार नही सकते...और आज ये बात कन्फर्म भी हो गई...सच मे...मेरे दिल को एक सुकून मिल गया...पर साथ मे मेरी आँखे गुस्से से लाल हो गई.....
रिचा(मुझे देख कर)- एमेम..मैने कुछ नही किया था...कसम से...मैं तो बस सब देख कर भाग गई थी...सच मे....
मैं(गुस्से से)- आज तक मेरे डॅड इन सब इल्ज़ामो का भोझ ले कर जी रहे है....अब मैं किसी को नही छोड़ूँगा...किसी को भी नही....
उन लोगो की वजह से मेरे डॅड ने सब कुछ खो दिया....अपना परिवार...जान से प्यारी बेहन...अपना दोस्त...और अपनी माँ भी....जिनकी मौत का बोझ भी उनही के सिर पर चड़ा....जबकि उनकी कोई ग़लती नही थी....कोई नही....
रिचा(सहमे हुए)- सही कह रहे हो...तुम्हारी दादी की मौत तुम्हारे डॅड की वजह से नही हुई थी...बल्कि...
इतना बोल कर रिचा चुप हो गई...जिससे मेरे माथे पर शिकन आ गई....
मैं- बल्कि...बल्कि क्या....कहना क्या चाहती है तू...मेरी दादी की मौत...कैसे मरी मेरी दादी....उसी वीडियो को देख कर ना...जो सरिता ने बनाया था...मेरे डॅड के साथ...हाँ...
रिचा- हाँ...वो एक वजह थी...पर उस वजह से वो सिर्फ़ टूट गई थी...मरी नही थी....
मैं(गुस्से से)- तो...तो फिर कैसे मरी थी वो....क्या और कुछ भी हुआ था वहाँ....
रिचा(डरते हुए)- आ..असल मिस्टर उनकी मौत खुद्खुसि नही थी....वो...वो एक हत्या थी....
मैं(गुस्से से खड़ा हो गया)- क्या...उनकी हत्या हुई थी...कौन...कौन था वो....मैने पूछा कौन था वो....बता...
मारे गुस्से के मेरा सरीर काँप सा रहा था...और मेरी हालत देख कर दर के मारे रिचा के चहरे का रंग उड़ गया था....
मैं- बोल ना साली...कौन था वो कमीना .....बोल...
और तभी डोरबेल बज उठी और हम सब चौंक कर गेट की तरफ देखने लगे........
मैं(गुस्से से)- अब कौन मरा साला.....????????????
गेट पर हुई दस्तक से हम सभी चौंक गये और सबके चेहरों के रंग बदल गये.....
रिचा(सहम कर)- कौन आया....
मैं(धीरे से, गुस्से मे)- मुझे क्या पता साली...मेरी आँखे गेट के आर-पार नही देखती...समझी...
रिचा(धीरे से)- तो अब...देखो ना ...
मैं(रफ़्तार को देख कर)- देख तो कौन है....कोई पंगे वाला हो तो दबोच लेना...
रफ़्तार(आगे बढ़ते हुए)- तुम इसे शांत रखो....मैं संभाल लुगा....
इतना बोल कर रफ़्तार ने गेट को थोड़ा खोला और फिर किसी को शांत रहने का इशारा किया....
मैं(आँखो से)- कौन ...
रफ़्तार(पलट कर)- कोई प्राब्लम नही....मैं बाहर जाता हूँ....यू कॅरी ऑन...
और रफ़्तार बाहर निकल गया और एक बार फिर मैने पूरा फोकस रिचा पर किया.....
मैं(पिस्टल दिखा कर)- अब मुझे जवाब चाहिए बस...और मैं दुबारा नही पूछुगा ....याद रखना....ओके...तो....मेरी दादी के साथ क्या हुआ था.....
रिचा- बताती हूँ....बताती हूँ....
और फिर से रिचा मुझे अतीत मे ले गई....उस वक़्त...जब मेरी बड़ी बुआ की शादी हो रही थी......
उस दिन आज़ाद के पावर मे खुशिया ही खुशिया थी....
आकृति की शादी बड़े धूम-धाम से पूरी हो रही थी....पर उसी बीच सरिता अपने टाइटानी दिमाग़ से आज़ाद को बर्बाद करने के मंसूबे बना रही थी.....
मुझे पहले ये पता भी था कि सरिता का प्लान क्या है....ये तो मुझे अचानक से पता चला.....
जब मैने सरिता को किसी से फ़ोन पर बात करते सुना....कि कैसे उसने आकाश को पटा कर एक रेप की तरह चुदाई करवाई...और उसका वीडियो बना लिया.....और अब वो उसी वीडियो की मदद से आज़ाद की इज़्ज़त सरे आम उछालने वाली है.....
जब मैने ये सुना तो मैं शॉक्ड हो गई...पर अंदर ही अंदर खुश भी हुई...कि चलो...आज़ाद का कुछ तो बुरा हो रहा है....
पर जब सरिता ने सबके सामने उस वीडियो को दिखाया....तो वहाँ पर मौजूद हर सख्स चौंक गया...पर कोई भी आज़ाद के खिलाफ नही बोला.....हाँ...आज़ाद का सिर ज़रूर शर्म से झुक गया और उसका झुका हुआ सिर देख कर मुझ जैसे उसके बाकी के दुश्मनो के चेहरे खिल उठे....
पर इन सब के बीच एक चेहरा ऐसा भी था....जिसके चेहरे पर मैं कभी शर्मिंदगी और दुख देख नही सकती थी...वो थी आज़ाद की पत्नी...रुक्मणी....
भले ही आज़ाद ने मेरे साथ कुछ भी किया हो...पर रुक्मणी ने मुझे हमेशा प्यार दिया था....एक माँ की तरह मुझे खाना खिलाया...मेरी हर तरह से मदद की...क्योकि मैं आरती की सहेली थी...और उसी वजह से वो मुझे आरती की ही तरह प्यार करती थी....
- Ankit
- Expert Member
- Posts: 3339
- Joined: 06 Apr 2016 09:59
Re: चूतो का समुंदर
जब मैं रुक्मणी के चेहरे पर अपार दुख के बादल देखे तो मैं टूटने लगी. ...और जैसे ही रुक्मणी ने अपने आप को कमरे मे क़ैद किया तो मैं घबरा गई....और मैने उन्हे सच बताने का फ़ैसला किया...क्योकि मैं उन्हे तकलीफ़ पहुँचाना बिल्कुल नही चाहती थी....
इसीलिए मैं दौड़ कर उस रूम तक पहुँची...और रूम के पीछे तरफ बने आले (गाओं के घरो मे एक छोटा सा हवादान) से अंदर झाकने लगी....
मैं देखना चाहती थी कि रुक्मणी कितनी तकलीफ़ मे है....पर अंदर का सीन देख कर तो मेरे होश उड़ गये...
रुक्मणी ने एक स्टूल को बेड पर रखा और पंखे से रस्सी का फँदा लटका दिया....
मैं समझ गई कि वो मरने जा रही है....और मैं उन्हे बचाने के लिए सोचने लगी....
कि तभी सरिता का कॉल आ गया...जो मुझसे रुक्मणी के बारे मे पूछ रही थी....
मैने उसे सब बता दिया और बोल भी दिया कि मैं रुक्मणी को मरने नही दूगी...भले ही मुझे सब सच बोलना पड़े....
इस पर सरिता भड़क गई...पर गुस्सा होने की जगह उसने बड़े प्यार से मुझे मेरी बाते याद दिलाई...कि कैसे आज़ाद ने मेरा सब कुछ लूट लिया....आकाश को भी और बाकी सारे सपनो को भी....कैसे उसने मुझे रंडी का दर्जा दे दिया...एट्सेटरा...और सरिता ने ही मुझे समझाया कि अगर रुक्मणी मारती है तो इससे हमे कितना फ़ायदा होगा.....
ये सब सुन कर मेरा खोया हुआ गुस्सा वापिस आ गया और मैने अपने मक़सद के लिए रुक्मणी को मरता हुआ देखने का फ़ैसला कर लिया....
इसी बीच रूमानी स्टूल पर चढ़ कर अपने गले मे फंदा कस चुकी थी....पर अचानक से वो खुद से बातें करने लगी ....
रुक्मणी- ये..ये मैं क्या कर रही हूँ...बस चार लोगो की बातें सुन कर अपने बेटे को गुनहगार मान रही हूँ....नही...मैं अपने बेटे को जानती हूँ...वो किसी के साथ रेप जैसी गंदी हरक़त कभी नही कर सकता....ह्म...मुझे उससे बात करनी होगी...इससे पहले की कुछ अनर्थ हो जाए....
ये सब सुन कर मुझे हमारा प्लान चौपट होते दिखा....पर मैं हार नही मानने वाली थी...इसलिए मैने एक लंबा डंडा ढूँढा और आले मे से ही डंडा डाल कर उस स्टूल को गिरा दिया .....जिस पर रुक्मणी खड़ी थी...
बेचारी रुक्मणी....अपने आप से बात करने मे इतनी खो गई थी कि उसे याद ही नही रहा कि फंडा उसके गले को कसे हुए है....इसलिए स्टूल हट ते ही उसकी गर्दन टूट गई और वो उपर पहुँच गई....
और फिर मैं उस डंडे को बाहर फेक कर बाकी सबके साथ शामिल हो ली....
इस तरह मेरे हाथो एक बेगुनाह की मौत हुई....जिसका पछतावा मुझे आज तक है.....
मैं(नम आँखो से)- तो तूने.....पर क्यो....तेरा क्या बिगाड़ा था उन्होने...हाँ....
रिचा(डरते हुए)- मुझसे ग़लती हो गई.....पर मैं...मैं मजबूर थी....
मैं(बीच मे)- चुप कर साली....हर बार मजबूर थी...मजबूर थी....मजबूर थी.....हाँ....साला मजबूरी मे लोगो की जान लेते जाओ...ऐसा क्या...हाँ....
रिचा(कड़क आवाज़ मे)- मैं सिर्फ़ अपना बदला चाहती थी बस....और उसके सामने मुझे कुछ नही दिखा...कुछ भी नही....जो भी मेरे रास्ते मे आया...मैने उसी को उड़ा दिया....समझे....
मैं(रिचा को एक थप्पड़ मार कर)- साली रंडी....अकड़ तो ऐसे दिखा रही है जैसे कोई महान काम किया....बदला चाहिए था तुझे...बदला....हाँ...पर एक बार खुद से सोच...बदला किस बात का था....ग़लती किसकी थी ...तेरी या उन सब की...जो तेरी वजह से मारे गये....हाँ...
रिचा(घूर कर)- ताली एक हाथ से नही बजती अंकित....अगर मैं ग़लत हूँ तो बाकी सब भी है....चलो माना कि मैं सबसे ज़्यादा ग़लत हूँ...पर वो लोग भी दूध के धुले नही थे....
मैं(गुस्से से)- पर उनका क्या जो बेकसूर थे...जिन्होने कोई ग़लती भी नही की थी....जिन्हे तो ये तक नही पता था कि उनकी जान किस लिए गई....उनका क्या...हाँ...
रिचा- हुह...गेहू का साथ थोड़ा घुन तो पिसता ही है ना....
मैं(एक और थप्पड़ खीच कर)- तू सच मे जिंदा रहने लायक नही...बिल्कुल नही....
और इतना सुनते ही रिचा मुस्कुरा उठी....तो मुझे और ज़्यादा गुस्सा आया और मैने उसे एक जोरदार लात मारी....जिससे रिचा फर्श पर कराहती हुई उल्टी जा गिरी....
रिचा- आआहह.....
मैं- अब मर साली.....
मैं गुस्से मे अपना हाथ अपने सिर पर घूमाते हुए अकरम की तरफ मुड़ा...तो अकरम ने मुझे शांत रहने का इशारा कर दिया....
मैं(अकरम से )- घंटा शांत हो जाो...तूने..तूने सुना ना...क्या-क्या गुल खिलाए इस रंडी ने...हाँ...
अकरम- हाँ...बट तू शांत रह....और आराम से बात कर...शायद ये और कुछ भी जानती हो...ह्म्म..
मैं- जानती तो ये सब कुछ है....वसीम, सम्राट, रेणु, समर....इसने सबको अपने हिसाब से नचाया.....किसी को नही छोड़ा साली ने.....और...अरे हाँ...ये समर के बारे मे तो पूछा ही नही....ये समर भी ज़रूर इसी सहर मे होगा....
अकरम- ह्म्म...तो पूछ इससे...एक बार ये सब उगल दे...फिर साली को ख़त्म कर देगे.....अब ये किसी का बुरा नही कर पायगी....
मैं- सही कहा....(पलट कर)- ये रंडी ...उठ...इतने मे नही मरेगी तू...अभी तो तुझे काफ़ी दर्द सहना है....
रिचा आह भरती हुई पड़ी रही पर पलटी नही....
मैं- अब उठ रही है या तेरी गांद मार लूँ....वैसे भी तूने तो गांद को खुद ही सामने कर दिया..हाँ...
अकरम- ह्म्म...ये गांद मरवा कर ही उठेगी....साली को लंड जी एनर्जी चाहिए होगी....दे दे....
मैं- एनर्जी तो बाद मे दूगा....पहले इसे...हेययययी....ये क्या....
तभी अचानक रूम मे कुछ पत्थर जैसा आया और मेरे पैरों के पास गिरा.....इससे पहले की मैं कुछ साझ पाता....रूम मे एक धमाका हुआ और उससे बचने के लिए मैने एक तरफ जंप मार दी...
इससे पहले कि मैं संभाल पाता...पूरे रूम मे धुआँ छा गया...और नान्न् आँखो से कुछ भी नही दिखाई दे रहा था....
मैं और अकरम एक दूसरे को आवाज़ दे रहे थे...और साथ मे मैने रिचा को भी आवाज़ लगाई...पर उसका कोई रेस्पॉन्स नही मिला....
करीब 3-4 मिनट बाद धुआँ छँटने लगा और धीरे-धीरे हमे सब कुछ दिखाई देना शुरू हो गया....
धुआँ हटने पर रूम मे सिर्फ़ मैं और अकरम ही बचे थे....रिचा गायब थी....
मैं(ज़ोर से)- ये कहाँ मर गई...साली....
और हम दोनो ने दौड़ कर सारे रूम चेक कर लिए...पर रिचा को कोई पता नही चला...हाँ पीछे साइड की खिड़की ज़रूर खुली हुई थी....जहाँ से रिचा भाग सकती थी....
अकरम(खिड़की देख कर)- लगता है यहाँ से भाग गई...
मैं- हो सकता है...पर सवाल ये है कि वो भागी कैसे...उस धुए मे जब हमे कुछ नही दिखा तो वो यहाँ तक कैसे आ गई...और ये सब किया किसने...
अकरम- ये करने वाला हमारा दोस्त तो हो नही सकता...ज़रूर कोई दुश्मन होगा....
मैं- हो सकता है...पर कौन...और उसे कैसे पता कि रिचा के घर इस वक़्त हम लोग भी है...हाँ...
अकरम- शायद रिचा ने बताया हो...
मैं- नही...वो तो हमारे सामने ही थी....यहाँ बात कुछ और है...
अकरम- शायद उसके साथी आस-पास हो...
मैं(सिर पकड़ कर)- हो सकता है...कुछ भी हो सकता है....पर मेरे आदमी इस घर के चारो तरफ फैले है...कोई तो देखता उन्हे....
अकरम- तो अब...
मैं- आ...अब...अब रिचा को ढूँढना होगा....
इसीलिए मैं दौड़ कर उस रूम तक पहुँची...और रूम के पीछे तरफ बने आले (गाओं के घरो मे एक छोटा सा हवादान) से अंदर झाकने लगी....
मैं देखना चाहती थी कि रुक्मणी कितनी तकलीफ़ मे है....पर अंदर का सीन देख कर तो मेरे होश उड़ गये...
रुक्मणी ने एक स्टूल को बेड पर रखा और पंखे से रस्सी का फँदा लटका दिया....
मैं समझ गई कि वो मरने जा रही है....और मैं उन्हे बचाने के लिए सोचने लगी....
कि तभी सरिता का कॉल आ गया...जो मुझसे रुक्मणी के बारे मे पूछ रही थी....
मैने उसे सब बता दिया और बोल भी दिया कि मैं रुक्मणी को मरने नही दूगी...भले ही मुझे सब सच बोलना पड़े....
इस पर सरिता भड़क गई...पर गुस्सा होने की जगह उसने बड़े प्यार से मुझे मेरी बाते याद दिलाई...कि कैसे आज़ाद ने मेरा सब कुछ लूट लिया....आकाश को भी और बाकी सारे सपनो को भी....कैसे उसने मुझे रंडी का दर्जा दे दिया...एट्सेटरा...और सरिता ने ही मुझे समझाया कि अगर रुक्मणी मारती है तो इससे हमे कितना फ़ायदा होगा.....
ये सब सुन कर मेरा खोया हुआ गुस्सा वापिस आ गया और मैने अपने मक़सद के लिए रुक्मणी को मरता हुआ देखने का फ़ैसला कर लिया....
इसी बीच रूमानी स्टूल पर चढ़ कर अपने गले मे फंदा कस चुकी थी....पर अचानक से वो खुद से बातें करने लगी ....
रुक्मणी- ये..ये मैं क्या कर रही हूँ...बस चार लोगो की बातें सुन कर अपने बेटे को गुनहगार मान रही हूँ....नही...मैं अपने बेटे को जानती हूँ...वो किसी के साथ रेप जैसी गंदी हरक़त कभी नही कर सकता....ह्म...मुझे उससे बात करनी होगी...इससे पहले की कुछ अनर्थ हो जाए....
ये सब सुन कर मुझे हमारा प्लान चौपट होते दिखा....पर मैं हार नही मानने वाली थी...इसलिए मैने एक लंबा डंडा ढूँढा और आले मे से ही डंडा डाल कर उस स्टूल को गिरा दिया .....जिस पर रुक्मणी खड़ी थी...
बेचारी रुक्मणी....अपने आप से बात करने मे इतनी खो गई थी कि उसे याद ही नही रहा कि फंडा उसके गले को कसे हुए है....इसलिए स्टूल हट ते ही उसकी गर्दन टूट गई और वो उपर पहुँच गई....
और फिर मैं उस डंडे को बाहर फेक कर बाकी सबके साथ शामिल हो ली....
इस तरह मेरे हाथो एक बेगुनाह की मौत हुई....जिसका पछतावा मुझे आज तक है.....
मैं(नम आँखो से)- तो तूने.....पर क्यो....तेरा क्या बिगाड़ा था उन्होने...हाँ....
रिचा(डरते हुए)- मुझसे ग़लती हो गई.....पर मैं...मैं मजबूर थी....
मैं(बीच मे)- चुप कर साली....हर बार मजबूर थी...मजबूर थी....मजबूर थी.....हाँ....साला मजबूरी मे लोगो की जान लेते जाओ...ऐसा क्या...हाँ....
रिचा(कड़क आवाज़ मे)- मैं सिर्फ़ अपना बदला चाहती थी बस....और उसके सामने मुझे कुछ नही दिखा...कुछ भी नही....जो भी मेरे रास्ते मे आया...मैने उसी को उड़ा दिया....समझे....
मैं(रिचा को एक थप्पड़ मार कर)- साली रंडी....अकड़ तो ऐसे दिखा रही है जैसे कोई महान काम किया....बदला चाहिए था तुझे...बदला....हाँ...पर एक बार खुद से सोच...बदला किस बात का था....ग़लती किसकी थी ...तेरी या उन सब की...जो तेरी वजह से मारे गये....हाँ...
रिचा(घूर कर)- ताली एक हाथ से नही बजती अंकित....अगर मैं ग़लत हूँ तो बाकी सब भी है....चलो माना कि मैं सबसे ज़्यादा ग़लत हूँ...पर वो लोग भी दूध के धुले नही थे....
मैं(गुस्से से)- पर उनका क्या जो बेकसूर थे...जिन्होने कोई ग़लती भी नही की थी....जिन्हे तो ये तक नही पता था कि उनकी जान किस लिए गई....उनका क्या...हाँ...
रिचा- हुह...गेहू का साथ थोड़ा घुन तो पिसता ही है ना....
मैं(एक और थप्पड़ खीच कर)- तू सच मे जिंदा रहने लायक नही...बिल्कुल नही....
और इतना सुनते ही रिचा मुस्कुरा उठी....तो मुझे और ज़्यादा गुस्सा आया और मैने उसे एक जोरदार लात मारी....जिससे रिचा फर्श पर कराहती हुई उल्टी जा गिरी....
रिचा- आआहह.....
मैं- अब मर साली.....
मैं गुस्से मे अपना हाथ अपने सिर पर घूमाते हुए अकरम की तरफ मुड़ा...तो अकरम ने मुझे शांत रहने का इशारा कर दिया....
मैं(अकरम से )- घंटा शांत हो जाो...तूने..तूने सुना ना...क्या-क्या गुल खिलाए इस रंडी ने...हाँ...
अकरम- हाँ...बट तू शांत रह....और आराम से बात कर...शायद ये और कुछ भी जानती हो...ह्म्म..
मैं- जानती तो ये सब कुछ है....वसीम, सम्राट, रेणु, समर....इसने सबको अपने हिसाब से नचाया.....किसी को नही छोड़ा साली ने.....और...अरे हाँ...ये समर के बारे मे तो पूछा ही नही....ये समर भी ज़रूर इसी सहर मे होगा....
अकरम- ह्म्म...तो पूछ इससे...एक बार ये सब उगल दे...फिर साली को ख़त्म कर देगे.....अब ये किसी का बुरा नही कर पायगी....
मैं- सही कहा....(पलट कर)- ये रंडी ...उठ...इतने मे नही मरेगी तू...अभी तो तुझे काफ़ी दर्द सहना है....
रिचा आह भरती हुई पड़ी रही पर पलटी नही....
मैं- अब उठ रही है या तेरी गांद मार लूँ....वैसे भी तूने तो गांद को खुद ही सामने कर दिया..हाँ...
अकरम- ह्म्म...ये गांद मरवा कर ही उठेगी....साली को लंड जी एनर्जी चाहिए होगी....दे दे....
मैं- एनर्जी तो बाद मे दूगा....पहले इसे...हेययययी....ये क्या....
तभी अचानक रूम मे कुछ पत्थर जैसा आया और मेरे पैरों के पास गिरा.....इससे पहले की मैं कुछ साझ पाता....रूम मे एक धमाका हुआ और उससे बचने के लिए मैने एक तरफ जंप मार दी...
इससे पहले कि मैं संभाल पाता...पूरे रूम मे धुआँ छा गया...और नान्न् आँखो से कुछ भी नही दिखाई दे रहा था....
मैं और अकरम एक दूसरे को आवाज़ दे रहे थे...और साथ मे मैने रिचा को भी आवाज़ लगाई...पर उसका कोई रेस्पॉन्स नही मिला....
करीब 3-4 मिनट बाद धुआँ छँटने लगा और धीरे-धीरे हमे सब कुछ दिखाई देना शुरू हो गया....
धुआँ हटने पर रूम मे सिर्फ़ मैं और अकरम ही बचे थे....रिचा गायब थी....
मैं(ज़ोर से)- ये कहाँ मर गई...साली....
और हम दोनो ने दौड़ कर सारे रूम चेक कर लिए...पर रिचा को कोई पता नही चला...हाँ पीछे साइड की खिड़की ज़रूर खुली हुई थी....जहाँ से रिचा भाग सकती थी....
अकरम(खिड़की देख कर)- लगता है यहाँ से भाग गई...
मैं- हो सकता है...पर सवाल ये है कि वो भागी कैसे...उस धुए मे जब हमे कुछ नही दिखा तो वो यहाँ तक कैसे आ गई...और ये सब किया किसने...
अकरम- ये करने वाला हमारा दोस्त तो हो नही सकता...ज़रूर कोई दुश्मन होगा....
मैं- हो सकता है...पर कौन...और उसे कैसे पता कि रिचा के घर इस वक़्त हम लोग भी है...हाँ...
अकरम- शायद रिचा ने बताया हो...
मैं- नही...वो तो हमारे सामने ही थी....यहाँ बात कुछ और है...
अकरम- शायद उसके साथी आस-पास हो...
मैं(सिर पकड़ कर)- हो सकता है...कुछ भी हो सकता है....पर मेरे आदमी इस घर के चारो तरफ फैले है...कोई तो देखता उन्हे....
अकरम- तो अब...
मैं- आ...अब...अब रिचा को ढूँढना होगा....
- shubhs
- Novice User
- Posts: 1541
- Joined: 19 Feb 2016 06:23
Re: चूतो का समुंदर
रफ्तार का हाथ होगा
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।