हवस की प्यासी दो कलियाँ complete

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rajaarkey
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Re: हवस की प्यासी दो कलियाँ

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मैं ललिता के मूह से ये वर्ड्स सुन कर एक दम से हैरान रह गयी….मुझे समझ नही आ रहा था कि, जो लड़की हमेशा शरमाती रहती थी…किसी की तरफ आँख उठा कर भी नही देखती थी….उसे अचानक से क्या हो गया है…

मैं: ठीक है ललिता पर मैं तुम्हे ये सब करने से रोकूंगी….ये तुम्हारी लिए सही नही…कल कैसे तुम छी मुझे तो कहते हुए भी शरम आ रही है…तुम्हे ज़रा भी शरम नही आई अपनी टीचर के सामने ये सब करते हुए….कि तुम्हारी टीचर क्या सोचेंगी……कुछ तो ख़याल किया होता मेरा….

ललिता: जो क्या मेने किया…आपकी झान्टे क्यों सुलग रही है….मैं अच्छे से जानती हूँ. खुद तो आज तक कुछ कर नही पे हो……जाकर जिसे बताना है बता देना…

ये कहते हुए ललिता बस की तरफ चली गयी…जिंदगी मे इतने शॉक मुझे एक साथ कभी नही लगे थे…मेरी टांगे कांप रही थी….किसी तरह चल कर मैं बस तक पहुँची. और बस मे बैठ गयी…ललिता दूसरी बस मे बैठी थी राज के साथ…..मैं जानती थी, कि ललिता मे अभी बच्पना है….और ये सब वो बच्पने मे कर रही है….

पर मैं उसको अपनी जिंदगी बर्बाद करते हुए भी नही देख सकती थी…हम 1 घंटे मे खज़ार पहुँच गये….वहाँ हम सब ने पहले ब्रेकफास्ट किया…और फिर सब खज़ार की वादियों का लुफ्त उठाने लगे….पर मेरा मन बेचैन था…सभी स्टूडेंट्स इधर उधर छोटे-2 ग्रूप बना कर घूम रहे थे…मैं पहले से ही ललिता पर नज़रें जमाए हुए थी….पर ललिता इस बात से अंज़ान थी…

मैं ब्रेकफास्ट करके लड़कियों के बड़े से ग्रूप मे जाकर खड़ी हो गयी…..ललिता अकेली पहाड़ियों के पीछे जा रही थी…वो बार-2 पीछे मूड कर देख रही थी. शायद चेक कर रही थी कि, कोई उसे देख तो नही रहा…मैं ललिता के पीछे जाने लगी. इस तरह से कि वो मुझे अपने पीछे आता हुआ ना देख सके….ललिता काफ़ी देर तक चलती रही…हम भीड़ से काफ़ी आगे आ चुके थे…पर मुझे अब ललिता कही दिखाई नही दे रही थी…

मैं एक दम से परेशान हो गयी….और उस तरफ बढ़ने लगी….जिस तरफ ललिता गयी थी…चारो तरफ एक दम सुनसान था….ना कोई इंसान नज़र आ रहा था….और ना ही कोई घर….करीब 5 मिनिट चलने के बाद….मुझे एक टूटा सा हुआ घर दिखाई दिया. दूर से ही पता चल रहा था…वो घर अब खंडहर बन चुका है…मैं तेज़ी से उस तरफ बढ़ी…जैसे-2 मैं उस घर के करीब पहुँच रही थी….डर के मारे मेरे हाथ पैर काँपने शुरू हो गये थे…..उस घर के बाहर लकड़ी का एक टूटा हुआ डोर था…थोड़ा सा झुक कर उसके अंदर जाया जा सकता था…मेने अंदर झाँकने की कॉसिश की तो अंदर बहुत अंधेरा था…

अब मेरा दिल इतनी जोरो से धड़क रहा था कि, मैं अपने दिल की धड़कने भी सॉफ सुन पा रही थी…मेरा दिल बैठा जा रहा था….पर ऐसा लग रहा था….जैसे अंदर कोई ना हो. पर तभी मुझे अंदर से कुछ आहट सुनाई दी….मुझे लगा कि, आज तो ललिता लौट ही जाएगी. मुझे उसे किसी भी हाल मे ये सब करने से रोकना होगा….वो अभी ना समझ है… बच्ची है….मैं झुक कर उस डोर से अंदर गयी…और फिर मेरे सामने एक और डोर था. जो थोड़ा सा खुला हुआ था…

मैने वो डोर खोला तो सामने एक छोटा सा आँगन था….जिसके ऊपेर छत नही थी. सूरज की रोशनी देख कर मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई…पर आँगन के चारो और कई रूम्स थे…अब ललिता किस रूम मे है…मैं डेड पाँव आगे बढ़ी…तो मुझे फिर से कुछ आहट सुनाई दी….मैं उस तरफ बढ़ी…जिस रूम से आवाज़ आ रही थी…मैने देखा कि उस रूम का डोर भी खुला हुआ था…मैं जैसे ही उस रूम के डोर पर पहुँची. किसी ने मुझे पीछे से धक्का देकर रूम के अंदर गिरा दिया….

रूम के अंदर सुखी घास का ढेर लगा हुआ था…इसलिए गिरने से मुझे चोट नही लगी. वरना जितनी बुरी तरह से मैं गिरी थी…मेरे हाथ पैर ज़रूर टूट जाते….मैं अपने ऊपेर हुए इस हमले से बिकुल अंज़ान थी…इसलिए मैं बहुत डर गयी…तभी बाहर से आती रोशनी के सामने कोई आकर खड़ा हुआ…मैं उसके चेहरे को ठीक से देख नही पा रही थी…”क क कॉन हो तुम…..” मेने अपने आप को उठाने की कॉसिश करते हुए कहा….

“क्यों मॅम मुझे नही पहचाना आप ने…” ये आवाज़ राज की थी….मैं एक दम से घबरा गयी…
.”राज तुम ये क्या बदतमीज़ी है….” मैने अपने कपड़ों पर लगी घास को झाड़ते हुए कहा

…”आज मैं तुम्हे दिखाउन्गा कि बदतमीज़ी क्या होती है..”
मैं जैसे ही खड़ी होने लगी…राज ने आगे बढ़ कर मेरी टाँगो को नीचे से पकड़ कर मुझे ख़ासीट दिया….मैं पीछे की तरफ लूड़क गयी….”आहह राज छोड़ो मुझे क्या कर रहे हो….छोड़ मुझे कुत्ते….”

इससे पहले कि मैं कुछ कर पाती या समझ पाती…राज मेरे ऊपेर सवार हो गया… उसकी कमर से नीचे वाला हिस्सा मेरी टाँगो के बीच मे था…और बाकी का हिस्सा मेरे ऊपेर था…मैं उसके वजन के कारण नीचे दब गयी….भले ही मैं राज से हाइट मे उँची लंबी थी….पर मेरी उसके सामने एक नही चल रही थी…इससे पहले कि मैं अपने आप को संभाल पाती…उसने मुझे अपने नीचे जाकड़ लिया….

मेने दोनो हाथों से उसके चेहरे को नोचना चाहा….पर उसने मेरे हाथों को पकड़ कर नीचे ज़मीन पर सटा दिया…”राज छोड़ो मुझे..क्या कर रहे हो….तुम मेरा रेप करने की कॉसिश कर रहे हो…तुम्हे बहुत महँगा पड़ेगा ये सब…” मेरी बात सुन कर राज हसने लगा…

.”रेप और तुम्हारा….वो भी मैं हाहाहा….शकल देखी है कभी आयने मे….साली तू औरत कम और जल्लाद ज़्यादा लगती है….और मेरे इतने भी बुरे दिन नही आए कि, मुझे रेप करना पड़े…और वो भी तेरे जैसी का….”

मैं: देखो राज हट जाओ….वरना मैं तुम्हारी कंप्लेंट पोलीस मे कर दूँगी…

राज: तुझे जो करना है कर लेना…तू मेरी झान्ट का बाल भी नही उखाड़ सकती..

मैं: अच्छा तो फिर एक बार छोड़ के देख मैं तुम्हारा क्या हशर करती हूँ….

राज: हशर तो मैं वो तुम्हारा करूँगा….कि तुम मरते दम तक मुझे भूल नही पाओगी….सोते जागते हर समय मेरा ये चेहरा तुम्हारे सामने आएगा….

ये कहते हुए, राज ने मेरे हाथो को पकड़ कर मेरे सर के साथ लगा दिया. जिससे कि मैं अपना सर भी ना हिला पाऊ…और फिर मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोला…”आज का दिन तुझे हमेशा याद रहेगा…” और ये कहते हुए, उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो रख दिए…और ज़बरदस्ती मेरे होंटो को सक करने लगा…मैने अपने होंटो को आपस मे ज़ोर से भींच लिया….पर वो जिस तरह से मेरे होंटो को चूस रहा था…

मैं अपने होंटो को ज़्यादा देर तक आपस मे सटा कर नही रख पा रही थी…उसने मेरे होंटो पर अपने होंटो को रगड़ते हुए, मेरे हाथों को एक हाथ से पकड़ा, और अपना एक हाथ नीचे की और लेजाने लगा…..”ये ये तुम क्या कर रहे हो…राज छोड़ो मुझे प्लीज़ छोड़ो मुझे कोई है….” मेने चीखते हुए कहा….पर वहाँ कोन था…जो वहाँ पर आता….तभी मेरे कानो मे जैसे किसी ने बॉम्ब फोड़ दिया हो….
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मुझे राज की पेंट की ज़िप्प खुलने की आवाज़ आई….और अगले ही पल मुझे अपनी टाँगो के बीच अपनी फुद्दि पर कुछ कड़क सा और गरम सा अहसास हुआ…..और अगले ही पल मेरी रूह अंदर तक कांप गयी….राज का बाबूराव मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर धंसा हुआ था….मेरी टाँगे थरथराने लगी….और मुझे चुनमुनियाँ मे कल वाली सरसराहट फिर से महसूस होने लगी….पर इस बार चुनमुनियाँ की कुलबुलाहट बहुत ज़्यादा थी. एक अजीब सी गुदगुदी मुझे अपनी जाँघो के बीच और पेंटी के अंदर छुपी हुई चुनमुनियाँ पर हो रही थी…पर मेरा दिमाग़ मुझे कह रहा था….कि इसके चंगुल से निकल जा डॉली…”

पर जिस तरह से उसने मुझे दबोच रखा था….मैं हिल भी नही पा रही थी…उसने फिर से दोनो हाथों से मेरे हाथों को सर के पास से पकड़ा और मेरे होंटो पर फिर से अपने होंटो को लगा दिया….मेने फिर से अपने होंटो को बंद कर लिया…पर राज जैसे औरत की सभी कमज़ोरियों को जानता था….उसने मेरी सलवार के ऊपेर से अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ के ऊपेर रगड़ना शुरू कर दिया…ना चाहते हुए भी मैं एक दम से सिसक उठी…और मेरे होन्ट एक दूसरे से अलग हो गये….

राज ने लपक कर मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर लिया….और नीचे वाले होंटो को अपने दोनो होंटो मे दबा दबा कर चूसने लगा…ऐसा लग रहा था..जैसे वो मेरे होंटो का सारा खून निचोड़ लेना चाहता हो….नीचे से वो अभी भी लगतार अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ पर ऐसे रगड़ रहा था…जैसे कोई आदमी किसी औरत को चोद रहा हो…ना चाहते हुए भी मेरी आँखे अब धीरे-2 बंद होने लगी थी….चुनमुनियाँ मे तेज सरसराहट होने लगी…मुझे ऐसा लगने लगा था कि, अब मेरे हाथों मे उसका विरोध करने के लिए जान नही बची है….उसका बाबूराव बुरी तरह से मेरी सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ की फांको के बीचो बीच रगड़ खा रहा था…..

27 साल की होने के बावजूद भी मेने अभी तक किसी से सेक्स नही किया था…और ना किसी मर्द ने आज तक मुझे सेक्शुअली छुआ था….पर आज तो सीधा मेरे जनांग पर मुझे मर्द के बदन का वो हिस्सा महसूस हो रहा था….जिसके बारे मे मेने सिर्फ़ सुना ही था…एक अजीब तरह का नशा मेरे दिमाग़ पर छाता जा रहा था…और राज मेरी इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने लगा….वो अब मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर कर बारी-2 चूस रहा था.

मेरी ब्रा की क़ैद मे चुचियों के निपल्स मे मुझे तनाव बनता हुआ सॉफ महसूस हो रहा था….नज़ाने क्यों ना चाहते हुए भी मेरा दिल कर रहा था….कि कोई मेरी चुचियाँ और निपल्स को मसल कर रख दे….मुझे मेरी पेंटी पर गीला पन महसूस होने लगा था…थोड़ी देर मेरे लिप्स को सक करने के बाद राज ने मेरे होंटो से अपने होंटो को अलग किया…और मेरी ओर देखने लगा….मेने अपनी आँखे खोल कर उसकी तरफ देखना चाहा…पर मैं उसकी तरफ नही देख पे, और दूसरी तरफ फेस करके विनती भरी आवाज़ मे बोली….”राज प्लीज़ मुझे छोड़ दो….जाने दो मुझे….सब लोग मुझे ढूँढ रहे होंगे….अगर उन्हे पता चला तो अह्ह्ह्ह” राज ने फिर से नीचे अपने बाबूराव को मेरी चुनमुनियाँ की फांको पर बुरी तरह से रगड़ दिया था….

जिससे मैं अपने आप को सिसकने से नही रोक पे….”राज हट जाओ तुम ये सब ठीक नही कर रहे…” मेरे दिमाग़ मे अजीब-2 तरह के ख़याल आने लगे, कि कही स्कूल वालो को इस बात का पता ना चल जाए कि, मैं और राज वहाँ से गायब है…और मुझ पर कोई किसी तरह का शक करे….”चलो छोड़ देता हूँ…पर एक शर्त पर….”

मैं राज की तरफ हैरत से देख रही थी….मुझे यकीन नही हो रहा था कि, मेरा ही स्टूडेंट मुझसे ऐसे पेश आ रहा है….”बोलो जल्दी बोलो….” मेने अपना पीछा छुड़ाने के लिए बोला…”फिर एक बार मुझे तुम अपनी मरज़ी और प्यार से अपने होंटो को चूसने दो…और अपनी टाँगो को उठा कर मेरी कमर पर रख कर लपेटो….”

मैं: (मैं राज की ये बात सुन कर एक दम से घबरा गयी…) नही राज ये सब मुझसे नही होगा छोड़ दो प्लीज़….वरना ठीक नही होगा….

राज: तो ठीक है फिर सारा दिन ऐसे ही रहो….जिसको पता चलना है चलने दो….

और ये कहते हुए उसने फिर से मेरे होंटो को अपने होंटो मे भर लिया. और मेरे होंटो को चूसने लगा…अब और कोई रास्ता ना देख कर मेने अपने होंटो को खोल लिया…जैसे ही मैने अपने होंटो को खोला….राज एक दम जोश मे आ गया….और अपने होंटो मे दबा -2 कर मेरे होंटो को चूसने लगा…राज ने मेरे हाथो को छोड़ा और अपने होंटो को मेरे होंटो से अलग किया…”अब चलो मेरी पीठ पर अपनी बाहों और टाँगो को उठा कर लपेट लो. सिर्फ़ 2 मिनट सिर्फ़ 2 मिनिट के लिए….”


मेने राज की बात का कोई जवाब नही दिया….और अपना फेस दूसरी तरफ घुमा लिया…राज ने एक हाथ से मेरे फेस को पकड़ कर सीधा किया…और फिर से मेरे होंटो को अपने होंटो मे लेकर चूसने लगा….ना चाहते हुए भी मेने अपनी बाहों को राज की पीठ पर कस लिया…पर मुझे अपनी टाँगे उठाते हुए शरम आ रही थी…मुझे ऐसा लग रहा था कि, जैसे मैं शरम के मारे धरती मे धँस जाउन्गी….राज ने अपने दोनो हाथों को नीचे लेजा कर मेरी टाँगो को घुटनो से पकड़ कर ऊपेर की ओर उठा दिया. और अब मेने खुद ही ना चाहते हुए, अपनी टाँगो को उसकी कमर पर लपेट लिया….

राज: (मेरे होंटो से अपने होंटो को अलग करते हुए) ज़ोर से जकडो मेरी कमर को…

मेने अपनी टाँगो को राज की कमर पर और कस लिया…राज नीचे से लगतार अपनी कमर को हिलाते हुए सलवार और पेंटी के ऊपेर से मेरी चुनमुनियाँ पर अपने बाबूराव को रगड़ रहा था… और कभी वो मेरे नीचे वाले होंटो को अपने होंटो मे भर कर खेंचता और कभी ऊपेर वाले होन्ट को…शरम के मारे मैने अपनी आँखे बंद कर ली थी…फिर उसने अपने तपते हुए होन्ट मेरी नेक पर लगा दिए…और मेरी नेक पर अपने होंटो को रगड़ने लगा….मेने अपने होंटो को दाँतों मे भींच लिया….क्योंकि मैं नही चाहती थी कि, मैं अपने स्टूडेंट के सामने सिसकने लग जाउ….

करीब 2 मिनिट बाद राज मेरे ऊपेर से उठ गया….मैने अपनी आँखे खोल कर राज की तरफ देखा…राज मेरी ओर देखते हुए अपने बाबूराव को हिला रहा था…फिर उसने अपने बाबूराव को पेंट के अंदर किया और ज़िप बंद कर बाहर चला गया…

मैं जैसे ही खड़ी हुई, तो मुझे लगा मैं फिर से गिर जाउन्गी…पर मेने किसी तरह अपने आप को संभाला, और उस रूम से बाहर आई…..जैसे ही बाहर को जाने लगी तो चलते हुए मुझे अपनी चुनमुनियाँ और पेंटी के बीच मे अजीब सा चिपचिपा महसूस होने लगा.. मुझे अपने आप से और राज पर बहुत घिन आ रही थी…मेने चारो तरफ देखा तो अंगान मे कोई नही था….मैं आँगन के एक कोने मे गयी….और अपनी सलवार के नाडे को खोल कर सलवार जाँघो तक नीचे सर्काई, और फिर अपनी पेंटी पर नीचे चुनमुनियाँ के पास हाथ लगा कर देखा तो मैं एक दम से हैरान रह गयी….

मेरी पेंटी नीचे से पूरी भीगी हुई थी….और मेरी उंगलियाँ भी उस पानी से चिपचिपाने लगी थी….मेने अपनी पेंटी को नीचे सरका कर अपने हाथ को अपनी चुनमुनियाँ की फांको पर फेरा तो मेरे हाथों की उंगलियाँ मेरी चुनमुनियाँ से निकले पानी से एक दम सन गयी…मुझे उस चीज़ से बहुत घिन हो रही थी…मेने जल्दी से अपने रुमाल को निकाला और अपनी चुनमुनियाँ और फांको को सॉफ किया….और फिर अपनी पेंटी को भी सॉफ किया जितना हो सकता था…और फिर पेंटी ऊपेर की और सलवार को ऊपेर करके नाडा बाँधा और बाहर आए. और वापिस जाने लगी….

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जैसे ही मैं वहाँ ग्राउंड मे पहुँची तो, कुछ लडकयाँ दौड़ती हुई मेरे पास आई. “मिस कहाँ चली गयी थी आप…पता है हम सब ने हॉर्स राइडिंग की….” मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गयी….और बिना कुछ बोले बाकी के टीचर्स के पास जाकर बैठ गयी…उसके बाद राज मुझे वहाँ दिखाई नही दिया….शाम को 4 बजे हम खज़ार से डल्होजि वापिस आ गये….. डल्होजि का टूर अगले दिन ख़तम हो गया….और हम वहाँ से वापिस आ गये.

उस दिन भी मुझे राज दिखाई नही दिया…पर हां जिस बस मे मैं बैठी थी. ललिता भी उसी बस मे बैठी थी….उसने कई बार मेरी तरफ देखा और फिर अपनी नज़रें फेर ली…हम सुबह 6 बजे ही वहाँ से निकल आए थे…इसलिए दोपहर को 1 बजे हम स्कूल मे पहुँच गये थे…वहाँ से जब मैं वापिस अपने घर पर जाने लगी तो, मेरे पीछे से एक स्कूटर निकाला और कुछ आगे जाकर रुक गया….

जब मेने उस स्कूटर की तरफ देखा तो, उसके पीछे ललिता बैठी हुई थी….ललिता उतर कर मेरे पास आई….और मेरे सामने आकर सर झुका कर खड़ी हो गयी…”हां ललिता बोलो अब क्या कहना है तुम्हे….” मेने उस स्कूटर पर बैठे सख्स की तरफ देखा. शायद वो ललिता के पापा थे….” मॅम ये मेरे पापा है….” तब तक ललिता के पापा स्कूटर से उतर कर हमारे पास आ चुके थे….” नमस्ते मेडम जी…मैं ललिता का पापा उमेश कुमार हूँ…ललिता आपकी बड़ी तारीफ करती है…”

मैं: नमस्ते उमेश जी….आपकी बेटी भी पढ़ने मे बहुत होशयार है….

उमेश: अच्छा बेटा तुम जल्दी से अब अपनी मॅम से जो बात करनी है कर लो…मैं वहाँ स्कूटर के पास जाकर तुम्हारा वेट करता हूँ….

उमेश के जाने के बाद ललिता ने मेरी तरफ देखा और धीरे से सहमी हुई सी बोली. “मॅम आप जानना चाहती थी ना कि, मैं ये सब क्यों कर रही हूँ….” मैने ललिता की तरफ देख और हां मे सर हिलाया…..”मॅम कल आप मुझसे मिलने मेरे घर आ सकती है…मुझे आपकी अड्वाइस की ज़रूरत है…”

मैं: ठीक है कॉसिश करूँगी….

ललिता: प्लीज़ मॅम आप ज़रूर आईएगा….बहुत अर्जेंट बात करनी है आपसे….

मैं: ओके ललिता कल मैं सुबह 11 बजे तुम्हारे घर पर आउन्गी…

उसके बाद ललिता चली गयी….और मैने भी बाहर आकर बस पकड़ी और घर पहुँच गयी….जब मैं घर पहुँची तो देखा कि हमारे घर ढह चुका है…और उस पर मजदूर लोग काम कर रहे थे….नयी दीवारे खड़ी हो चुकी थी….तभी मुझे पीछे से भाभी की आवाज़ सुनाई दी….वो सामने वाले घर के गेट पर खड़ी थी…मैं भाभी की तरफ गयी…तो भाभी ने मेरा बॅग पकड़ते हुए अंदर आने को कहा..

हमारे सामने वाला घर बंद था….शायद भाभी ने उसे किराए पर लिया था…भाभी ने अपना समान अंदर रखा और बोली…”जाओ पहले अपने भैया से मिल लो…कल ही हॉस्पिटल से डिसचार्ज होकर आए है….” मैं भैया के रूम मे गयी, तो भैया मुझे देखते ही रोने लगे…मैं भी अपने आप को रोक नही पे….और भैया के गले लग कर रोने लगी.



भैया: तू क्यों रो रही है बेहन….मुझ जैसे इंसान के लिए अपने आँसू ना बहाओ… मेरे साथ जो हुआ वही होना चाहिए था….मैं हूँ ही इसी लायक…..

मैं: भैया आप ऐसी बात ना करे…नही तो मैं अपने आप को संभाल नही पाउन्गी….

भैया: अच्छा छोड़ ये सब…तू जाकर फ्रेश हो….सफ़र से थक कर आई होगी..रात को बात करेंगे….

मैं वहाँ से उठ कर बाहर आई तो, भाभी मुझे उस रूम मे ले गयी….जहाँ पर उन्होने मेरा समान रखा था…”चल तू आराम कर मैं तुम्हारे लिए कोल्ड्रींक लेकर आती हूँ….” भाभी बाहर गयी और थोड़ी देर बाद कोल्ड्रींक लेकर मेरे पास आई..मैने कोल्ड्रींक पीते हुए भाभी से पूछा….

मैं: भाभी इतनी भी क्या जल्दी थी…आप ने ये सब कैसे मॅनेज किया….भैया और ऊपेर से अपने घर का काम शुरू करवा दिया….

भाभी: नही कोई ख़ास परेशानी नही हुई…अभी भाई यहीं पर है…और वो अभी कन्स्ट्रक्षन का कुछ समान लेने गया हुआ है….जल्द ही घर तैयार हो जाएगा… बाकी ट्यूशन वाले बच्चों ने भी बहुत मदद की घर का समान शिफ्ट करने मे….

खैर उस दिन और खास बात नही हुई, अगले दिन मैं सुबह तैयार होकर ललिता से मिलने के लिए उसके घर पहुँची, तो उसकी मम्मी ने डोर खोला….”नमस्ते आंटी मेरा नाम डॉली है….मैं ललिता के स्कूल मे पढ़ाती हूँ….”

आंटी: नमस्ते आइए ना अंदर आइए….ललिता देखो तुमसे मिलने के लिए तुम्हारी टीचर आई हुई है…

आंटी ने मुझे अंदर लेजा कर सोफे पर बैठाया “आप बैठिए, मैं अभी आती हूँ…” ये कह कर आंटी किचिन मे चली गयी….ललिता नीचे आई और मुझे विश किया और बोली. उसके रूम मे चल कर बात करते है….मैं ललिता के साथ ऊपेर उसके रूम मे आ गयी. उसके रूम दो सिंगल बेड लगे हुए थे….

मैं: ललिता तुम्हारे रूम और कॉन सोता है….

ललिता: जी मेरी बड़ी बेहन रीनू भी इसी रूम मे रहती है…

मैं: और तुम्हारी भाई…..

ललिता: नही मॅम हम दोनो बहनें ही है…..भाई नही है….

मैं; ओह्ह ओके…

इतने मे आंटी चाइ के साथ समोसे लेकर ऊपेर आ गयी…”अर्रे आंटी जी इसकी क्या ज़रूरत थी….” मेने मुस्कुराते हुए कहा…

.”अर्रे आप पहली बार आई है…और ये तो कुछ भी नही है…ललिता ने मुझे अभी थोड़ी देर पहले ही बताया था कि, आप आने वाली है….इसलिए जल्दी जल्दी मे बस इतना ही तैयार कर पाई….”

मैं: इट्स ओके आंटी जी…..


उसके बाद आंटी नीचे चली गयी…ललिता ने रूम के डोर पर जाकर एक बार बाहर नीचे देखा और फिर अंदर आकर मेरे पास बैठ गयी… हमने चाइ पी और सोमोसे खाए….”हां ललिता अब बोलो क्या बात है….”

ललिता: मॅम आप जानना चाहती थी ना….मैं ये सब क्यों कर रही हूँ….

मैं: हां…

ललिता: (थोड़ी देर चुप रहने के बाद) मॅम आप सही थी….आइ थिंक आइ लव हिम…” मैं सच मे उससे प्यार करने लगी हूँ…..

मैं: प्यार तुम लोग वहाँ पर जो कुछ कर रहे थे तुम उसे प्यार कहती हो…

ललिता: मैं जानती हूँ कि, मैने जो किया वो मुझे नही करना चाहिए था…पर मैं क्या करू. मैं उसे चाह कर भी मना नही कर पाई….जिस सख्स की शकल भी मैं देखना नही चाहती थी…अब मैं उसकी किसी भी बात को टाल नही पाती…

मैं: अच्छा ये सब अचानक से कैसे हो गया….क्या है जो तुम उसके कहने पर ये सब कर रही हो…

ललिता: मॅम शुरुआत कहाँ से हुई ये तो आप जानती ही हो….

मैं: हां फिर….

ललिता: मॅम दो महीने पहले मेरे पापा को जॉब से निकाल दिया गया था….

मैं: तो फिर इस बात का तुम्हारे और राज के साथ क्या कनेक्षन है….

ललिता: जॉब से निकाले जाने पर पापा बहुत परेशान रहने लगे थे…एक रात उन्होने ड्रिंक की हुई थी…और घर लौटते हुए उनका आक्सिडेंट हो गया था….

हमें तब पता चला जब उनको सड़क पर से उठा कर लोगो ने हॉस्पिटल मे अड्मिट करवाया. घर के हालात पहले से खराब थे…..जब हम हॉस्पिटल पहुँचे तो, डॉक्टर ने कहा कि पहले 50000 रुपये जमा करवाने होंगे…उसके बाद पापा का ट्रीटमेंट शुरू करेंगे… पर उस वक़्त हमारे पास इतने पैसे नही थे….



उस रात राज भी यहाँ हॉस्पिटल मे आया हुआ था…शायद उसके दोस्त का आक्सिडेंट हुआ था. उससे से मिलने के लिए…जब उसने मुझे हॉस्पिटल मे देखा तो वो हमारे पास आ गया. और मम्मी से पूछने लगा क्योंकि, मैने उसके साथ बात भी नही की थी… मम्मी ने उसे सब बता दिया….फिर पता नही वो कहाँ से 50000 रुपये ले आया और मम्मी को दे दिए….मम्मी ने बहुत मना किया….पर हमारे पास कोई चारा नही था….

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Re: हवस की प्यासी दो कलियाँ

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मेने ये बात स्कूल मे ना तो आपको बताई थी और ना ही और किसी को…पापा का ट्रीटमेंट शुरू हो गया….राज रोज स्कूल के बाद हॉस्पिटल मे आने लगा. और वो वहाँ आकर मम्मी के हेल्प करने लगा….कभी बाहर जाकर मेडिकल स्टोर से मेडिसिन लाकर देना तो कभी बाहर से पापा के लिए जूस और ब्रेड लाकर देता….

जब हम वहाँ पर बैठे हुए होते, और राज कोई काम कर रहा होता तो मम्मी सिर्फ़ एक ही बात कहती…कि काश उनका भी राज जैसा बेटा होता…इस दौरान उसने एक बार भी मुझे आँख उठा कर नही देखा….पापा की वजह से मुझे उससे कई बार बात करनी पड़ती. पर वो मेरी तरफ देखे बिना ही बात करता…और चुप चाप काम कर देता….

मुझे ये सब बर्दाश्त नही हो रहा था…वो डेली आकर मम्मी पापा से हंस-2 कर बात करता, तो कभी रीनू दीदी से बाहर गॅलरी मे बात करने लगता….मुझे जलन से होने लगती…एक दिन शाम की बात है…मम्मी पापा के पास रूम मे थी…और रीनू दीदी बाहर हॉस्पिटल के गॅलरी मे राज के साथ बात कर रही थी…

रेणु दीदी बात कर रही है….हम दोनो से बड़ी है…पर शायद राज की पर्सनालटी और पैसा देख कर रेणु दीदी उस पर लाइन मारने लगी थी….मैं उनके पीछे खड़ी उनके बातें सुन रही थी….उस शाम को रेणु दीदी ने राज को प्रपोज किया…पर राज ने ये कह कर सॉफ मना कर दिया…कि वो सिर्फ़ एक ही लड़की से प्यार करता है…और हमेशा उससे करता रहेगा…

उस समय गॅलरी मे कोई नही था….रेणु दीदी ने राज का हाथ पकड़ अपने बूब्स पर रख दिया और कहने लगी कि, वो उसके बिना नही रह सकती….वो अभी अपना सब कुछ देने के लाए तैयार है…पर राज ने अपना हाथ हटा लिया और ये कह कर चला गया कि, उसकी जिंदगी मे और कोई लड़की नही आ सकती…

फिर उसी दिन राज ने मुझे फिर से प्रपोज किया, और मैं उससे मना नही कर पाई. और फिर जब पापा को हॉस्पिटल से डिसचार्ज किया गया तो, उसके बाद वो हमारे घर उनका पता लेने के लिए आने लगा…मम्मी भी हम पर कोई शक नही करती थी. वो बिना रोक टोक के हमारे रूम मे जाता था….और फिर वही सब करता जो..उस दिन आप ने देखा. जब मेने उसे रोका तो उसने मेरे सामने कसम खाई कि, वो मेरी वर्जिनिटी नही तोड़ेगा. पर रोमॅन्स के लिए मैं उससे मना नही करूँगी….धीरे2- मुझे इन सब की आदत सी पड़ गयी.

ललिता: मॅम यही सच है….वो इतना भी बुरा नही है जितना मैं या आप उसको समझते थे….वो एक अच्छा लड़का है…

मैं: ललिता ठीक है तुम अब बच्ची नही हो….समझदार हो….पढ़ी लिखी हो….और अपना ख़याल रख सकती हो…पर फिर भी मैं तुम्हे यही सलाह दूँगी कि, कोई ऐसा कदम ना उठाना जिसकी वजह से तुम्हे शर्मिंदा होने पड़े….

फिर मेने और ललिता ने इधर उधर की बातें के और फिर मैं दोपहर को घर वापिस आ गयी….उसी शाम को मेरे मोबाइल पर जय सर का फोन आया, मैने कॉल पिक की.

मैं: हेलो सर…हाउ आर यू….

जय सर: मैं ठीक हूँ आप कैसे हो और आपके भाई की तबयत कैसी है अब..

मैं: जी दो दिन पहले घर आए है….और पहले से काफ़ी ठीक है…

जय सर: चलो शुक्र है…अच्छा मुझे तुमसे एक फेवर चाहिए था….

मैं: जी कहिए सर

जय सर: अच्छा डॉली बात ये है कि, मैं चाहता हूँ कि, तुम राज को यहाँ मेरे घर आकर 2 घंटो के लिए पढ़ा दिया करो….(मैं जय सर की बात सुन कर एक दम से परेशान से हो गयी….)

मैं: जी मैं पर आप तो जानते है कि मेरे घर मे इस समय प्राब्लम है…

जय सर: सॉरी वो अचानक से मैं तुम्हे बोल रहा हूँ….डॉली कल वैसे बैठे-2 मैं उसके स्टडी के ऊपेर उससे कुछ सवाल करने लगा तो मैं एक दम से परेशान हो गया. एक दम 0 है पढ़ाई मे…देखो डॉली वो मेरे दोस्त का बेटा है…उसकी ज़िमेदारी मेरे ऊपेर है…और वो मुझसे तो फ्रॅंक है…इसलिए वो मेरे से ठीक तरह नही पढ़ पाएगा…

बहुत सोचने के बाद तुम्हारा नाम दिमाग़ मे आया….इसलिए मैने तुम्हे फोन किया है…प्लीज़ मुझे डिसपोंट मत करना…मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है….और मैं जानता हूँ कि अगर तुम उसे पढ़ाओगी तो जल्द ही उसकी स्टडी मे इंप्रूव्मेंट हो जाएगी…

अब मैं एक दम फँस चुकी थी…जय सर स्कूल के प्रिन्सिपल और मालिक थे. उनको मैं सीधे सीधे ना नही बोल सकती थी…क्योंकि मेरे ना या हां बोलने पर मेरी और भाभी हम दोनो की नौकरी पर ख़तरा हो सकता था….”ठीक है सर…जैसे आप कहे”

जय सर: तो ठीक है कल सुबह 11 बजे से 1 बजे तक तुम यहाँ आकर उससे पढ़ा दिया करना…मैं कल सुबह तुम्हारे घर कार भिजवा दूँगा….और तुम्हे वापिस घर भी ड्रॉप मेरा ड्राइवर ही कर दिया करेगा…

मैं: जी ओके सर….

मैने फोन काटा….और माथे पर हाथ धर कर बैठ गयी…”अब बैठे बैठाए ये क्या मुसबीत गले पड़ गयी….जिस लड़के की शकल तक मैं देखना नही चाहती….अब उसे दो घंटे तक पढ़ाना पड़ेगा वो भी अकेले…

मैं यही सोच सोच कर परेशान हो रही थी….पर मैं जय सर को ना भी नही कर सकती…अगली सुबह मैं तैयार हुई, और 10:30 बजे बाहर जय सर की कार आकर खड़ी हो गयी….मैं कार मे बैठी और ठीक 11 बजे जय सर के घर पहुँच गये…जब मैं जय सर के घर मे दाखिल हुई तो एक बार सोच मे पड़ गयी कि, काश ऐसा ही घर मेरा भी होता….तभी जय सर के आवाज़ सुन कर मैं एक दम से चोंक गयी…

जय सर: अर्रे डॉली खड़ी क्यों हो आओ बैठो…

जय सर ने सोफे पर बैठते हुए कहा…मैं भी जय सर के सामने सोफे पर बैठ गये…थोड़ी देर बाद एक औरत जो कि दिखने मे 30-32 साल की लगती थी. ट्रे मे कोल्ड्रींक लेकर आई, और मुझे देकर वापिस चली गयी…उसने ऑरेंज कलर की साड़ी और ब्लॅक कलर का ब्लाउस पहना हुआ था… “ये दीपा है….पहले ये राज के घर पर ही काम करती थी…पर जब से उसकी दादा दादी का देहांत हुआ है…और जब से राज हमारे पास आया है….ये भी यही आ गयी…मुझे भी नौकरानी की ज़रूरत थी ही…इसलिए इसे रख लिया….”

जब से राज के मम्मी पापा अब्रॉड गये है…यही राज का ख़याल रखते हुए आ रही है. राज के पापा ने यहाँ से थोड़ी दूर एक गाओं मे बहुत ज़मीन खरीद रखी है. इसका पति वही खेती का काम देखता है….” फिर मैने कोल्ड्रींक पी और जय सर ने दीपा को आवाज़ दी…”दीपा इन्हे राज बाबा के रूम मे लेजाओ….ये राज की टीचर है….स्कूल मे राज को पढ़ाती है…और आज से जब तक छुट्टियाँ चल रही है. राज को रोज घर पढ़ाने आएँगी…..

दीपा: जी चलिए….

मैं उठ कर खड़ी हुई, और दीपा के पीछे जाने लगी…”दीपा मैं ज़रा स्कूल जा रहा हूँ…डोर बंद कर लेना….” सर ने बाहर की तरफ जाते हुए कहा…मैं दीपा के पीछे राज के रूम मे आ गयी…राज अपने रूम मे सोफे पर बैठा हुआ टीवी देख रहा था. जैसे ही राज ने मुझे देखा तो उसने टीवी का रिमोट एक साइड मे फेंक दिया…

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Re: हवस की प्यासी दो कलियाँ

Post by rajaarkey »

दीपा वापिस बाहर जाने लगी….”दीपा दो कप कॉफी बेज देना….” राज ने बैठे-2 ऑर्डर दिया

…”नही मैं अभी कोल्ड्रींक पीकर आई हूँ…” मेने राज की तरफ एक बार देखा और फिर अपने चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया…”

दीपा सिर्फ़ एक ही कप भेज दो…” और राज उठ कर खड़ा हुआ बाथरूम मे चला गया…मैं वही सोफे पर बैठ गयी…मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था. एक दम अकेले उसके रूम मे बैठना…थोड़ी देर बाद राज बाथरूम से बाहर आया….”हाँ तुम क्यों आई हो यहाँ पर…मना नही कर सकती थी अंकल को….”

मैं: मुझे कोई शॉंक नही है तुम्हे पढ़ाने का…अगर सर ने ना कहा होता तो मैं तुम्हारी शकल देखने यहाँ नही आती…

राज: अच्छा ठीक है….जाओ नीचे जाकर बैठ कर टाइम पास करो…अंकल तो घर पर है नही…तुम्हे कॉन देखने वाला है कि, तुमने पढ़ाया या नही….बोल तो ऐसे रही हो. जैसे मैं तुमसे पढ़ने के लिए मरा जा रहा हूँ….

मेरा दिल तो कर रहा था कि, मैं अभी उठ कर वापिस चली जाउ….पर सर की वजह से चुप हो गयी…राज उठ कर बाहर चला गया…और मैं वही बैठी रही…मैं पागलो की तरह इधर उधर देख रही थी….करीब 30 मिनिट हो चुके थे….मुझे यहाँ पर आए हुए, ना तो मुझे राज नज़र आ रहा था…और ना ही उसकी कोई आवाज़ सुनाई दे रही थी… मैं उठ कर रूम से बाहर आई और नीचे की तरफ देखने लगी….पर नीचे भी एक दम सन्नाटा पसरा हुआ था….तभी मुझे साथ वाले रूम का डोर खुलने की आवाज़ आई.

जैसे ही मेने उस तरफ देखा तो डोर पर दीपा खड़ी हुई थी….उसके बाल बिखरे हुए थे…होंटो की लिपस्टिक फेली हुई थी….और उसकी साड़ी उलझी हुई थी…ब्लाउस का कपड़ा चुचियों के ऊपेर वाले दो हुक खुले हुए थे…दीपा मुझे अपने सामने देख कर एक दम से घबरा गयी….वो सर को झुकाए हुए मेरी तरफ बढ़ी…”राज कहाँ है…” मेरे इस सवाल से दीपा एक दम से डर गयी….”जी वो वो मुझे पता नही…मैं मैं आपके लिए कॉफी बना कर लाती हूँ….” ये कहते हुए दीपा नीचे चली गयी….थोड़ी देर बाद फिर उस रूम का डोर ओपन हुआ…

तब मेरी हैरत का कोई ठिकाना नही रहा….जब देखा कि, राज भी उसी रूम से निकल कर बाहर आ रहा है…उसने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर नीचे गया और फिर घर से बाहर चला गया…ये देख मेरा सर चकराने लगा कि ये सब क्या हो रहा है…एक ** साल का लड़का अपनी ही नौकरानी के साथ जो उससे दुगनी उम्र की है….मैं नीचे आकर सोफे पर बैठ गयी…थोड़ी देर बाद दीपा कॉफी लेकर पास मे आई और टेबल पर कप रखते हुए बोली….”और कुछ चाहिए मेडम जी….”

मेने दीपा की तरफ देखा तो उसने अब अपना हुलिया कुछ ठीक कर लिया था… “ये सब क्या चल रहा है दीपा…” मेने दीपा के चेहरे की ओर देखते हुए कहा….

दीपा: जी क्या मैं समझी नही मेडम जी….

मैं: देखो दीपा तुम मुझे पागल मत बनाओ…मैने देखा कि राज भी उसी रूम से बाहर आया था….मैं भी औरत हूँ…और तुम्हारी हालत देख कर ही मुझे शक हो गया था…तुमने झूठ क्यों बोला कि राज बाहर है…..

मेरी बात सुन कर दीपा के चेहरे का रंग उड़ गया…और वो मेरे पैर पकड़ कर नीचे बैठ गयी….”मेडम जी प्लीज़ ये सब किसी को नही बताएगा….नही तो मैं कही की नही रहूंगी…”

मैं: पर तुम अपने से आधी उम्र के लड़के के साथ ये सब छी…तुम तो शादी शुदा हो ना…फिर ये सब क्या है…..

दीपा: मेडम जी बहुत लंबी बात है….अभी आपको नही बता सकती…पर प्लीज़ किसी को बताना नही हम बहुत ग़रीब लोग है…हम कही के नही रहेंगे…

मैं: ओह्ह अच्छा अब समझी…तो वो ये सब तुम्हारी ग़रीबी का फ़ायदा उठा कर रहा है..

दीपा: नही नही मेडम जी…राज बाबा की कोई ग़लती नही है….सारा दोष मेरा है…

ये कहते हुए दीपा एक दम से चुप हो गयी…तभी बाहर डोर बेल बजी…”मेडम जी प्लीज़ किसी से कुछ मत कहना मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ….” दीपा ने लगभग रोते हुए कहा…”अच्छा ठीक है जाओ….डोर खोलो बाहर कोई है….” दीपा ने उठ कर डोर खोला. जय सर वापिस आ गये थे….






जय: अर्रे डॉली यहाँ खड़ी हो राज कहाँ है….

मैं: जी अभी बाहर गया है…आज 1 घंटा पढ़ने के बाद ही बोर हो गया….

जय: चलो कोई बात नही धीरे-2 आदि हो जाएगा….

मैं: अच्छा सर अब मैं चलती हूँ…

जय सर: ओके ठीक है……बाहर ड्र खड़ा है….वो तुम्हे घर चोर देगा…अच्छा कल मई आउट ऑफ सिटी जेया रहा हूँ…तुम कल टाइम से आ जाना…मैं ड्राइवर कह दूँगा….

मैं: जी ओके सर,

उसके बाद मैं बाहर आई, फिर सर के ड्राइवर ने मुझे कार से घर पर छोड़ दिया….

ये राज आख़िर चीज़ क्या है….जब से ये मेरी जिंदगी मे आया है…मेरा जीना हराम कर दिया है इसने…पहले ललिता और अब ये दीपा…पता नही कितना नीच और बिगड़ा हुआ लड़का है…यही सब मैं दिन भर सोचती रही…

अगली दिन जब भी सर की कार मुझे लेने के लिए आ गयी…जब मेने मेन डोर की बेल बजाई तो दीपा ने डोर खोला….और मुझे अंदर आने को कहा….मैं अंदर आकर सोफे पर बैठ गये…थोड़ी देर बाद दीपा कोल्ड्रींक लेकर आए..और मुझे देकर वापिस किचिन मे जाकर ट्रे रख कर फिर से मेरे पास आकर खड़ी हो गयी…”क्या हुआ तुम यहा क्यों खड़ी हो..” मेने दीपा की ओर देखते हुए कहा…..

दीपा: मेडम जी आप कल वाली बात किसी से कहेंगी तो नही…

मैं: नही कहूँगी…राज कहाँ है…

दीपा: जी वो तो सर के जाने के थोड़ी देर बाद ही बाहर चले गये….कह कर गये थी कि, शाम को ही वापिस आएँगे…..

ये कह कर दीपा वापिस जाने लगी तो, मेने उससे आवाज़ देकर रोक लिया…दीपा मेरी तरफ मूडी “जी मेडम जी” उसके चेहरे पर अभी भी परेशानी के भाव थे…” ये ग्लास रख कर मेरे पास आओ….मुझे तुम से बहुत ज़रूरी बात करनी है….”

दीपा ग्लास लेकर चली गयी…और फिर थोड़ी देर बाद वापिस आई…”बैठो…” मेने दीपा की ओर देखते हुए कहा….दीपा मेरे पास सोफे पर बैठ गयी…..”जी मेडम जी” दीपा ने अपने हाथों को आपस मे मसलते हुए कहा…..” अब तुम मुझे बताओ कि ये सब कैसे शुरू हुआ….क्या उसने तुम्हे ये सब करने के लिए मजबूर किया था…”

दीपा: नही नही मेडम जी ऐसे कोई बात नही है….

मैं: तो फिर ऐसा क्या हुआ जो तुम ने अपने से आधी उम्र के लड़के के साथ ये सब किया. मुझे पूरी बात बताओ….

दीपा: मेडम जी ये मेरी जिंदगी का वो छुपा हुआ राज़ है….जिसको मेने अभी तक किसी को नही बताया….पर अब आप को तो मेरी सच्चाई पता चल गयी है…इसलिए मैं आपसे कुछ छुपा नही सकती…

मैं: हां दीपा जो कहना है सॉफ-2 बताओ…

दीपा: जी आप तो मुझसे बहुत ज़्यादा समझदार है….आपको तो पता ही होगा कि, आदमी के बिना औरत के जिंदगी अधूरी होती है…और हर औरत को कभी ना कभी अपनी जिस्मानी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मर्द के सहारे के ज़रूरत पड़ती ही है….पर अगर जिससे आपकी शादी हुई हो…वो इंसान ही नकारा हो…बेकार हो तो औरत के कदम ग़लत रास्ते पर भटक ही जाते है….ये आज से 3 साल पहले की बात है….मेरी शादी को 7 साल हो चुके थे…..

तब मेरे पति एक फॅक्टरी मे मज़दूरी करते थे…पर वो वहाँ पर शराब पीकर लोगो से झगड़ा करने लगे…और उन्हे वहाँ से निकाल दिया गया…फिर उन्होने कई जगह काम किया कर पर हर महीने दो महीने मे उनको वहाँ से निकाल देते…तंग आकर मैने घरो मे काम करना शुरू कर दिया…घर तो चलाना ही था…फिर मुझे राज के घर पर काम मिल गया…और राज के पापा ने मेरे पति को अपने खेतो मे रखवाली के लिए रख लिया…मेरा पति जो भी कमाता था…उसकी दारू पी लेता…फिर राज की मम्मी ने मुझे अपने ही घर मे रख लिया….

और तन्खा के साथ-2 मुझे घर मे ही तीन वक़्त की रोटी मिलने लगी…पर ये सब एक औरत के लिए काफ़ी नही होता मेडम जी….मैं जवान हूँ….मैं रातो को दहाकति रहती. दिल करता कि मुझे कोई बाहों मे लेकर मेरा अंग-2 मसल दे….पर मेरे पति को मेरी परवाह ही नही थी…ये उन दिनो की ही बात है….एक दिन मालकिन और मालिक सहर से बाहर गये हुए थी…उन्होने दो दिन बाद वापिस आना था…राज बाबा उस समय अकेले रूम मे नही सोते थे…इस लिए मालकिन ने मुझसे जाते हुए कहा था कि, मैं उनके रूम मे नीचे बिस्तरा बिछा कर सो जाउ…
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