बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete

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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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उठते ही कामया ने बगल में देखा। कामेश उठ चुका था। शायद बाथरूम में था। वो बिना हीले ही लेटी रही। पर बाथरूम से ना तो कुछ आवाज ही आ रही थी। ना ही पूरे कमरे से। वो झट से उठी और घड़ी की ओर देखा।
बाप रे 8। 30 हो चुके है। कामेश तो शायद नीचे होगा।

जल्दी से कामया बाथरूम में घुस गई और। फ्रेश होकर नीचे। आ गई। पापाजी, मम्मीजी। और कामेश ;आँगन में बैठे थे। चाय बिस्कट रखा था। टेबल पर। कामया की आहट सुनते ही सब पलटे

कामेश- क्या बात है। आज तुम्हारी नींद ही नहीं खुली।

कामया- जी।

मम्मीजी-और क्या। सोया कर बहू। कौन सा तुझे। जल्दी उठकर घर का काम करना है। आराम किया कर और खूब घुमा फिरा कर और। मस्ती में रह।

पापाजी- और क्या। क्या करेगी घर पर यह। बोर भी तो हो जाती होगी। क्यों ना कुछ दिनों के लिए। अपने मम्मी पापा के घर हो आती। बहू।

मम्मीजी- वहां भी क्या और करेगी। दोनों ही तो। नौकरी वाले है। वहां भी घर में बोर होगी।

इतने में कामेश की चाय खतम हो गई और वो उठ गया।
कामेश- चलो। में तो चला तैयार होने। और पापा। आप थोड़ा जल्दी आ जाना।

पापाजी- हाँ… हाँ… आ जाऊँगा।

कामेश के जाने के बाद कामया भी उठकर जल्दी से कामेश के पीछे भागी। यह तो उसका रोज का काम था। जब तक कामेश शोरुम नहीं चला जाता था। उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी। और चले जाने के बाद कुछ नहीं बस इधर-उधर। फालतू।

कामेश अपने कमरे में पहुँचकर नहाने को तैयार था। एक तौलिया पहनकर कमरे में घूम रहा था। जैसे ही कामया कमरे में पहुँची। वो मुश्कुराते हुए। कामया से पूछा।
कामेश- क्यों। अपने पापा मम्मी के घर जाना है क्या। थोड़े दिनों के लिए।

कामया- क्यों। पीछा छुड़ाना चाहते हो।
और अपने बिस्तर के कोने पर बैठ गई।

कामेश- अरे नहीं यार। वो तो बस मैंने ऐसे ही पूछ लिया। पति हूँ ना तुम्हारा। और पापा भी कह रहे थे। इसलिए। नहीं तो। हम कहा जी पाएँगे आपके बिना।
और कहते हुए। वो खूब जोर से खिलखिलाते हुए हँसते हुए बाथरूम की ओर चल दिया।

कामया- थोड़ा रुकिये ना। बाद में नहा लेना।

कामेश- क्यों। कुछ काम है। क्या।

कामया- हाँ… (और एक मादक सी मुश्कुराहट अपने होंठों पर लाते हुए कहा।)

कामेश भी अपनी बीवी की ओर मुड़ा और उसके करीब आ गया। कामया बिस्तर पर अब भी बैठी थी। और कामेश की कमर तक आ रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से कामेश की कमर को जकड़ लिया और अपने गाल को कामेश के पेट पर घिसने लगी। और अपने होंठों से किस भी करने लगी।

कामेश ने अपने दोनों हाथों से कामया का चेहरे को पकड़कर ऊपर की ओर उठाया। और कामया की आखों में देखने लगा। कामया की आखों में सेक्स की भूख उसे साफ दिखाई दे रही थी। लेकिन अभी टाइम नहीं था। वो। अपने शो रूम के लिए लेट नहीं होना चाहता था।

कामेश- रात को। अभी नहीं। तैयार रहना। ठीक है।
और कहते हुए नीचे चुका और। अपने होंठ को कामया के होंठों पर रखकर चूमने लगा। कामया भी कहाँ पीछे हटने वाली थी। बस झट से कामेश को पकड़कर। बिस्तर पर गिरा लिया। और अपनी दोनों जाँघो को कामेश के दोनों ओर से रख लिया। अब कामेश कामया की गिरफ़्त में था। दोनों एक दूसरे में गुत्थम गुत्था कर रहे थे। कामया तो जैसे पागल हो गई थी। उसने कस पर कामेश के होंठों को अपने होंठों से दबा रखा था। और जोर-जोर से चूस रही थी। और अपने हाथों से कामेश के सिर को पकड़कर अपने और अंदर घुसा लेना चाहती थी। कामेश भी आवेश में आने लगा था, । पर दुकान जाने की चिंता उसके दिलोदिमाग़ पर हावी थी थोड़ी सी ताकत लगाकर उसने अपने को कामया के होंठों से अपने को छुड़ाया और झुके हुए ही कामया के कानों में कहा।
कामेश- बाकी रात को।
और हँसते हुए कामया को बिस्तर पर लेटा हुआ छोड़ कर ही उठ गया। उठते हुए उसकी टावल भी। खुल गया था। पर चिंता की कोई बात नहीं। वो तौलिया को अपने हाथों में लिए ही। जल्दी से बाथरूम में घुस गया।

कामया कामेश को बाथरूम में जाते हुए देखती रही। उसकी नजर भी कामेश के लिंग पर गई थी। जो कि सेमी रिजिड पोजीशन में था वो जानती थी कि थोड़ी देर के बाद वो तैयार हो जाता। और कामया की मन की मुराद पूरी हो जाती। पर कामेश के ऊपर तो दुकान का भूत सवार था। वो कुछ भी हो जाए उसमें देरी पसंद नहीं करता था। वो भी चुपचाप उठी और कामेश का इंतेजार करने लगी। कामेश को बहुत टाइम लगता था बाथरूम में। शेव करके। और नहाने में। फिर भी कामया के पास कोई काम तो था नहीं। इसलिए। वो भी उठकर कामेश के ड्रेस निकालने लगी। और बेड में बैठकर इंतजार करने लगी। कामेश के बाहर आते ही वो झट से उसकी ओर मुखातिब हुई। और।
कामया- आज जल्दी आ जाना शो रूम से। (थोड़ा गुस्से में कहा कामया ने।)

कामेश- क्यों। कोई खास्स है क्या। (थोड़ा चुटकी लेते हुए कामेश ने कहा)

कामया- अगर काम ना हो तो क्या शोरुम में ही पड़े रहोगे।

कामेश- हाँ… हाँ… हाँ… अरे बाप रे। क्या हुआ है तुम्हें। कुछ नाराज सी लग रही हो।

कामया- आपको क्या। मेरी नाराजगी से। आपके लिए तो बस अपनी दुकान। मेरे लिए तो टाइम ही नहीं है।


कामेश- अरे नहीं यार। मैं तो तुम्हारा ही हूँ। बोलो क्या करना है।

कामया- जल्दी आना कही घूमने चलेंगे।

कामेश- कहाँ

कामया- अरे कही भी। बस रास्ते रास्ते। में। और फिर बाहर ही डिनर करेंगे।

कामेश- ठीक है। पर जल्दी तो में नहीं आ पाऊँगा। हाँ… घूमने और डिनर की बात पक्की है। उसमें कोई दिक्कत नहीं।

कामया- अरे थोड़ा जल्दी आओगे तो टाइम भी तो ज्यादा मिलेगा।

कामेश- तुम भी। कामया। कौन कहता है। अपने को कि जल्दी आ जाना या फिर देर तक बाहर नहीं रहना। क्या फरक पड़ता है। अपने को। रात भर बाहर भी घूमते रहेंगे तो भी पापा मम्मी कुछ नहीं कहेंगे।

कामया भी। कुछ नहीं कह पाई। बात बिल्कुल सच थी। कामेश के घर से कोई भी बंदिश नहीं थी। कामया और कामेश के ऊपर लेकिन कामया चाहती थी कि कामेश जल्दी आए तो वो उसके साथ कुछ सेक्स का खेल भी खेल लेती और फिर बाहर घूमते फिरते और फिर रात को। तो होना ही था।

कामया भी चुप हो गई। और कामेश को तैयार होने में मदद करने लगी। तभी।

कामेश- अच्छा एक बात बताओ तुम अगर घर में बोर हो जाती हो तो कही घूम फिर क्यों नहीं आती।

कामया- कहाँ जाऊ

कामेश- अरे बाबा। कही भी। कुछ शापिंग कर लो कुछ दोस्तों से मिल-लो। ऐसे ही किसी माल में घूम आओ या फिर। कुछ भी तो कर सकती हो पूरे दिन। कोई भी तो तुम्हें मना नहीं करेगा। हाँ…

कामया- मेरा मन नहीं करता अकेले। और कोई साथ देने वाला नहीं हो तो अकेले क्या अच्छा लगता है।

कामेश- अरे अकेले कहाँ कहो तो। आज से मेरे दुकान जाने के बाद में लक्खा काका को घर भेज दूँगा। वो तुम्हें घुमा फिरा कर वापस घर छोड़ देगा और फिर दुकान चला आएगा। वैसे भी दुकान पर शाम तक दोनों गाड़ी खड़ी ही रहती है।

कमाया- नहीं।

कामेश- अरे एक बार निकलो तो सही। सब अच्छा लगेगा। पापा को छोड़ने के बाद लाखा काका को में भेज दूँगा। ठीक है।

कामया- अरे नहीं। मुझे नहीं जाना। बस। ड्राइवर के साथ अकेले। नहीं। हाँ यह आलग बात थी कि मुझे गाड़ी चलानी आती होती तो में अकेली जा सकती थी। पर ड्राइवर के साथ नहीं। जाऊँगी। बस।

कामेश- अरे वाह तुमने तो। एक नई बात। खोल दी। अरे हाँ…

कामया- क्या।

कामेश- अरे तुम एक काम क्यों नहीं करती। तुम गाड़ी चलाना सीख क्यों नहीं लेती। घर में 3 गाड़ी है। एक तो घर में रखे रखे धूल खा रही है। छोटी भी है। तुम चलाओ ना उसे।

कामेश के घर में 3 गाड़ी थी। दो में तो पापा और वो खुद जाता था शोरुम पर घर में एक मम्मीजी लेने ले जाने के लिए थी। जो कि अब वैसे ही खड़ी थी।

कामया- क्या। यार तुम भी। कौन सिखाएगा मुझे गाड़ी। आपके पास तो टाइम नहीं है।

कामेश- अरे क्यों। लाखा काका है ना। मैं आज ही उन्हें कह देता हूँ। तुम्हें गाड़ी सीखा दे।

और एकदम से खुश होकर कामया ने कामेश के गालों को और फिर होंठों को चूम लिया।
कामेश- और जब तुम गाड़ी चलाना सीख जाओगी। तो मैं पास में बैठा रहूँगा और तुम गाड़ी चलाना

कामया- क्यों।

कामेश- और क्या। फिर हम तुम्हारे इधर-उधर हाथ लगाएँगे। और बहुत कुछ करेंगे। बड़ा मजा आएगा। ही। ही। ही।

कामया- धात। जब गाड़ी चलाउन्गी तब। छेड़छाड़ करेंगे। घर पर क्यों नहीं।

कामेश- अरे तुम्हें पता नहीं। गाड़ी में छेड़ छाड़ में बड़ा मजा आता है। चलो यह बात पक्की रही। कि तुम। अब गाड़ी चलाना सीख लो। जल्दी से।

कामया- नहीं अभी नहीं। मुझे मम्मीजी से पूछना है। इसके बाद। कल बताउन्गी ठीक है। और दोनों। नीचे आ गये डाइनिंग टेबल पर कामेश का नाश्ता तैयार था। भीमा चाचा का। काम बिल्कुल टाइम से बँधा हुआ था। कोई भी देर नहीं होती थी। कामया आते ही कामेश के लिए प्लेट तैयार करने लगी। पापा जी और मम्मीजी पूजा घर में थे। उनको अभी टाइम था।

कामेश ने जल्दी से नाश्ता किया और। पूजा घर के बाहर से ही प्रणाम करके घार के बाहर की चल दिया बाहर लाखा काका दोनों की गाड़ी को सॉफ सूफ करके चमका कर रखते थे। कामेश खुद ड्राइव करता था। पर पापाजी के पास ड्राइवर था। लाखा काका।

कामेश के जाने के बाद कामया भी अपने कमरे में चली आई और कमरे को ठीक ठाक करने लगी। दिमाग में अब भी कामेश की बात घूम रही थी। ड्राइविंग सीखने की। कितना मजा आएगा। अगर उसे ड्राइविंग आ गई तो। कही भी आ जा सकती है। और फिर कामेश से कहकर नई गाड़ी भी खरीद सकती है। वाह मजा आ जाएगा यह बात उसके दिमाग में पहले क्यों नहीं आई। और जल्दी से अपने काम में लग गई। नहा धो कर जल्दी से तैयार होने लगी। वारड्रोब से चूड़ीदार निकाला और पहन लिया वाइट और रेड कॉंबिनेशन था। बिल्कुल टाइट फिटिंग का था। मस्त फिगर दिख रहा था। उसमें उसका।

तैयार होने के बाद जब उसने अपने को मिरर में देखा। गजब की दिख रही थी। होंठों पर एक खूबसूरत सी मुश्कान लिए। उसने अपने ऊपर चुन्नी डाली और। मटकती हुई नीचे जाने लगी। सीढ़ी के ऊपर से डाइनिंग स्पेस का हिस्सा दिख रहा था। वहां भीमा चाचा। टेबल पर खाने का समान सजा रहे थे। उनका ध्यान पूरी तरह से। टेबल की ओर ही था। और कही नहीं। पापाजी और मम्मीजी भी अभी तक टेबल पर नहीं आए थे। कामया थोड़ा सा अपनी जगह पर रुक गई। उसे कल की बात याद आ गई भीमा चाचा की नजर और हाथों का सपर्श उसके जेहन में अचानक ही हलचल मचा दे रहा था। वो जहां थी वही खड़ी रह गई। जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं है। खड़े-खड़े वो नीचे भीमा चाचा को काम करते दिख रही थी। चाचा अपने मन से काम में जल्दी बाजी कर रहे थे। और कभी किचेन में और कभी डाइनिंग रूम में बार-बार आ जा रहे था। वो अब भी वही अपनी पुरानी धोती और एक फाटूआ पहने हुए थे। (फाटूआ एक हाफ बनियान की तरह होता है। जो कि पुराने लोग पहना करते थे)

वो खड़े-खड़े भीमा चाचा के बाजू को ध्यान से देख रही थी। कितने बाल थे। उनके हाथों में। किसी भालू की तरह। और कितने काले भी। भद्दे से दिखते थे। पर खाना बहुत अच्छा बनाते थे। इतने में पापाजी जी के आने की आहट सुनकर भीमा जल्दी से किचेन की ओर भागा और जाते जाते। सीडियो की तरफ भी देखता गया सीढ़ी पर कोने में कामया खड़ी थी। नजर पड़ी और चला गया उसकी नजर में ऐसा लगा कि उसे किसी का इंतजार था। शायद कामया का। कामया। के दिमाग़ में यह बात आते ही वो। सनसना गई। पति की आधी छोड़ी हुई उत्तेजना उसके अंदर फिर से जाग उठी। वो वहीं खड़ी हुई भीमा चाचा को किचेन में जाते हुए। देखती रही। पापाजी के पीछे-पीछे मम्मीजी भी डाइनिंग रूम में आ गई थी।

कामया ने भी अपने को संभाला और। एक लंबी सी सांस छोड़ने के बाद वो भी जल्दी से नीचे की ओर चल पड़ी। पापाजी और मम्मीजी टेबल पर बैठ गये थे। कामया जाकर पापाजी और मम्मीजी को खाना लगाने लगी। और। इधर-उधर की बातें करते हुए पापाजी और मम्मीजी खाना खाने लगे थे। कामया अब भी खड़ी हुई। पापाजी और मम्मीजी के प्लेट का ध्यान रख रही थी। पापाजी और मम्मीजी खाना खाने में मस्त थे। और कामया खिलाने में। खड़े-खड़े मम्मीजी को कुछ देने के लिए। जब उसने थोड़ी सी नजर घुमाई तो उसे। किचेन का दरवाजा हल्के से नजर आया। तो भीमा चाचा के पैरों पर नजर पड़ी। तो इसका मतलब। भीमा चाचा। किचेन से छुप कर कामया को पीछे से देख रहे है।
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Re: बड़े घर की बहू

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कामया अचानक ही सचेत हो गई। खुद तो टेबल पर पापाजी और मम्मीजी को खाना परोस रही थी। पर दिमाग और पूरा शरीर कही और था। उसके शरीर में चीटियाँ सी दौड़ रही थी। पता नहीं क्यों। पूरे शरीर सनसनी सी दौड़ गई थी कामया के। उसके मन में जाने क्यों। एक अजीब सी हलचल सी मच रही थी। टाँगें। अपनी जगह पर नहीं टिक रही थी। ना चाहते हुए भी वो बार-बारइधर-उधर हो रही थी। एक जगह खड़े होना उसके लिए दुश्वार हो गया था। अपनी चुन्नी को ठीक करते समय भी उसका ध्यान इस बात पर था कि चाचा पीछे से उसे देख रहे है। या नहीं। पता नहीं क्यों। उसे इस तरह का। चाचा का छुप कर देखना। अच्छा लग रहा था। उसके मन को पुलकित कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी। लहर दौड़ रही थी।

कामया का ध्यान अब पूरी तरह से। अपने पीछे खड़े चाचा पर था। नजर। सामने पर ध्यान पीछे था। उसने अपनी चुन्नी को पीछे से हटाकर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सामने की ओर हाथों पर लपेट लिया और खड़ी होकर। पापा और मम्मीजी को खाते हुए देखती रही। पीछे से चुन्नी हटने की वजह से। उसकी पीठ और कमर। और नीचे नितंब बिल्कुल साफ-साफ शेप को उभार देते हुए दिख रहे थे। कामया जानती थी कि वो क्या कर रही है। (एक कहावत है। कि औरत को अपनी सुंदरता को दिखाना आता है। कैसे और कहाँ यह उसपर डिपेंड करता है।)। वो जानती थी कि चाचा अब उसके शरीर को पीछे से अच्छे से देख सकते है। वो जान बूझ कर थोड़ा सा झुक कर मम्मीजी और पापाजी को खाने को देती थी। और थोड़ा सा मटकती हुई वापस खड़ी हो जाया करती थी। उसके पैर अब भी एक जगह नहीं टिक रहे थे।

इतने में पापाजी का खाना हो गया तो
पापाजी- अरे बहू। तुम भी खा लो। कब तक खड़ी रहोगी। चलो बैठ जाओ।

कामया- जी। पापाजी। बस मम्मीजी का हो जाए। फिर। खा लूँगी।

मम्मीजी- अरे अकेले। अकेले। खाओगी क्या। चलो। बैठ जाओ। अरे भीमा।

कामया- अरे मम्मीजी आप खा लीजिए। मैं थोड़ी देर से खा लूँगी।

भीमा- जी। माजी।

कामया- अरे कुछ नहीं। जाओ। में बुला लूँगी।

मम्मीजी- अरे अकेली अकेली। क्या।

और बीच में ही बात अधूरी छोड़ कर मम्मीजी भी खाने के टेबल से उठ गई। और थोड़ा सा लंगड़ाती हुई।वाश बेसिन में हाथ दो कर। मूडी। तब तक। पापाजी भी। तैयार होकर। अपने रूम से निकल आए। और बाहर की ओर जाने लगे। मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे। दरवाजे की ओर चल दी। बाहर। पोर्च में लाखा काका। गाड़ी का दरवाजा खोले। सिर नीचे किए। खड़े थे। वही अपनी धोती और एक सफेद कुर्ता। पहने मजबूत कद काठी वाले काका। पापाजी के। बहुत ही बल्कि। पूरी परिवार के बड़े ही विस्वास पात्र नौकर थे। कभी भी उनके मुख से किसी ने ना नहीं सुना था। बहुत काम बोलते थे। और काम ज्यादा करते थे। सभी नौकरो में भीमा चाचा और लाखा काका और कद परिवार में बहुत ज्यादा उँचा था। खेर। पापाजी जी के गाड़ी में बैठने के बाद लाखा भी जल्दी से। दौड़ कर सामने की ओर ड्राइवर सीट पर बैठ गया और गाड़ी। गेट के बाहर की ओर दौड़ गई। मम्मीजी के साथ कामया भी अंदर की ओर पलटी। मम्मीजी तो बस थोड़ी देर आराम करेंगी। और कामया। खाना खाकर। सो जाएगी। रोज का। रूटीन कुछ ऐसा ही था। कामया पापाजी और मम्मीजी के साथ खाना खा लेती थी पर आज उसने जान बूझ कर अपने को रोक लिया था। वो देखना चाहती थी। कि जो वो सोच रही थी। क्या वो वाकई सच है या फिर सिर्फ़ उसकी कल्पना मात्र था। वो अंदर आते ही दौड़ कर अपने कमरे की चली गई। पीछे से मम्मीजी की आवाज आई।

मम्मीजी- अरे बहू खाना तो खा ले।

कामया- जी। मम्मीजी। बस आई।

मम्मीजी- (अपने रूम की ओर जाते समय भीमा को आवाज देती है।)। भीमा। बहू ने खाना नहीं खाया है। थोड़ा ध्यान रखना।

भीमा- जी माँ जी।

भीमा जब तक डाइनिंग रूम में आता तब तक कामया अपने कमरे में जा चुकी थी। भीमा खड़ा-खड़ा सोचने लगा कि क्या बात है आज छोटी बहू ने साहब लोगों के साथ क्यों नहीं खाया। और टेबल से झूठे प्लेट और ग्लास उठाने लगा। पर भीतर जो कुछ चल रहा था। वो सिर्फ़ भीमा ही जानता था। उसकी नजर बार-बार सीढ़ियो की ओर चली जाती थी। कि शायद बहू उतर रही है। पर। जब तक वो रूम में रहा तब तक। बहू। नहीं उतरी

भीमा सोच रहा था कि जल्दी से बहू खाना खा ले। तो वो आगे का काम निबटाए। पर। पता नहीं बहू को क्या हो गया था। लेकिन। वो तो सिर्फ़ एक नौकर था। उसे तो मालिको का ध्यान ही रखना है। चाहे जो भी हो। यह तो उसका काम है। सोचकर। वो प्लेट और ग्लास धोने लगा। भीमा अपने काम में मगन था। कि किचेन में अचानक ही बहुत ही तेज सी खुशबू। फेल गई। थी। उसने पलटकर देखा। बहू खड़ी थी। किचेन के दरवाजे पर।

भीमा बहू को देखता रहा गया। जो चूड़ीदार वो पहेने हुए थी वो चेंज कर आई थी। एक महीन सी। लाइट ईलोव कलर की साड़ी पहने हुए थी और साथ में वैसा ही स्लीव्ले ब्लाउस। एक पतली सी लाइन सी दिख रही थी। साड़ी जिसने उसकी चूचियां के उपर से उसके ब्लाउज को ढाका हुआ था। बाल खुले हुए थे। और होंठों पर गहरे रंग का लिपस्टिक्स था। और आखों में और होंठों में एक मादक मुस्कान लिए। बहू। किचेन के दरवाजे पर। एक रति की तरह खड़ी थी।
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Re: बड़े घर की बहू

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भीमा सबकुछ भूलकर सिर्फ़ कामया के रूप का रसपान कर रहा था उसने आज तक बहू को इतने पास से या फिर इतने गौर से कभी नहीं देखा था किसी अप्सरा जैसा बदन था उसका उतनी ही गोरी और सुडोल क्या फिगर है और कितनी सुंदर जैसे हाथ लगाओ तो काली पड़ जाए वो अपनी सोच में डूबा था कि उसे कामया की खिलखिलाती हुई हँसी सुनाई दी

कामया- अरे भीमा चाचा खाना लगा दो भूख लगी है और नल बंद करो सब पानी बह जाएगा और हँसती हुई पलटकर डाइनिंग रूम की ओर चल दी भीमा कामया को जाते हुए देखता रहा पता नहीं क्यों आज उसके मन में कोई डर नहीं था जो इज़्ज़त वो इस घर के लोगों को देता था वो कहाँ गायब हो गई थी उसके मन से पता नहीं वो कभी भी घर के लोगों की तरफ देखना तो दूर आखें मिलाकर भी बात नहीं करता था पर जाने क्यों वो आज बिंदास कामया को सीधे देख भी रहा था और उसकी मादकता का रसपान भी कर रहा था जाते हुए कामया की पीठ थी भीमा की ओर जो कि लगभग आधे से ज्यादा खुली हुई थी शायद सिर्फ़ ब्रा के लाइन में ही थी या शायद ब्रा ही नहीं पहना होगा पता नहीं लेकिन महीन सी ब्लाउज के अंदर से उसका रंग साफ दिख रहा था गोरा और चमकीला सा और नाजुक और गदराया सा बदन वैसे ही हिलते हुए नितंब जो कि एक दूसरे से रगड़ खा रही थी और साड़ी को अपने साथ ही आगे पीछे की ओर ले जा रही थी

भीमा खड़ा-खड़ा कामया को किचेन के दरवाजे पर से ओझल होते देखता रहा और किसी बुत की तरह खड़ा हुआ प्लेट हाथ में लिए शून्य की ओर देख रहा था तभी उसे कामया की आवाज़ सुनाई दी

कामया- चाचा खाना तो लगा दो

भीमा झट से प्लेट सिंक पर छोड़ नल बंद कर लगभग दौड़ते हुए डाइनिंग रूम में पहुँच गया जैसे कि देर हो गई तो शायद कामया उसके नजर से फिर से दूर ना हो जाए वो कामया को और भी देखना चाहता था मन भरकर उसके नाजुक बदन को उसके खुशबू को वो अपनी सांसों में बसा लेना चाहता था झट से वो डाइनिंग रूम में पहुँच गया

भीमा- जी छोटी बहू अभी देता हूँ

और कहते हुए वो कामया को प्लेट लगाने लगा कामया का पूरा ध्यान टेबल पर था वो भीमा के हाथों की ओर देख रही थी बालों से भरा हुआ मजबूत और कठोर हाथ प्लेट लगाते हुए उसके मांसपेशियों में हल्का सा खिचाव भी हो रहा था उससे उसकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता था कामया के जेहन में कल की बात घूम गई जब भीमा चाचा ने उसके पैरों की मालिश की थी कितने मजबूत और कठोर हाथ थे और भीमा जो कि कामया से थोड़ा सा दूर खड़ा था प्लेट और कटोरी, चम्मच को आगे कर फिर खड़ा हो गया हाथ बाँध कर पर कामया कहाँ मानने वाली थी आज कुछ प्लॅनिंग थी उसके मन में शायद

कामया- अरे चाचा परोश दीजीएना प्लीज और बड़ी इठलाती हुई दोनों हाथों को टेबल पर रखकर बड़ी ही अदा से भीमा की ओर देखा भीमा जो कि बस इंतजार में ही था कि आगे क्या करे तुरंत आर्डर मिलते ही खुश हो गया वो थोड़ा सा आगे बढ़ कर कामया के करीब खड़ा हो गया और सब्जी और फिर पराठा और फिर सलाद और फिर दाल और चपाती पर उसकी आँखे कामया पर थी उसकी बातों पर थी उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू पर थी नजरें ऊपर से उसके उभारों पर थी जो की लगभग आधे बाहर थे ब्लाउज से

सफेद गोल गोल से मखमल जैसे या फिर रूई के गोले से ब्लाउज का कपड़ा भी इतना महीन था कि अंदर से ब्रा की लाइनिंग भी दिख रही थी भीमा अपने में ही खोया कामया के नजदीक खड़ा खड़ा यह सब देख रहा था और कामया बैठी हुई कुछ कहते हुए अपना खाना खा रही थी कामया को भी पता था कि चाचा की नजर कहाँ है पर वो तो चाहती भी यही थी उसके शरीर में उत्तेजना की जो ल़हेर उठ रही थी वो आज तक शादी के बाद कामेश के साथ नहीं उठी थी वो अपने को किसी तरह से रोके हुए बस मजे ले रही थी वो जानती थी कि वो खूबसूरत है पर वो जो सेक्सी दिखती है यह वो साबित करना चाहती थी शायद अपने को ही

पर क्यों क्या मिलेगा उसे यह सब करके पर फिर भी वो अपने को रोक नहीं पाई थी जब से उसे भीमा चाचा की नजर लगी थी वो काम अग्नि में जल उठी थी तभी तो कल रात को कामेश के साथ एक वाइल्ड सेक्स का मजा लिया था पर वो मजा नहीं आया था पर हाँ… कामेश उतेजित तो था रोज से ज्यादा पर उसने कहा नहीं कामया को कि वो सेक्सी थी कामया तो चाहती थी कि कामेश उसे देखकर रह ना पाए और उसे पर टूट पड़े उसे निचोड़ कर रख दे बड़ी ही बेदर्दी से उसे प्यार करे वो तो पूरा साथ देने को तैयार थी पर कामेश ऐसा क्यों नहीं करता वो तो उसकी पत्नी थी वो तो कुछ भी कर सकता है उसके साथ पर क्यों वो हमेशा एग्ज़िक्युटिव स्टाइल में रहता है क्यों नहीं सेक्स के समय भूखा दरिन्दा बन जाता क्यों नहीं है उसमें इतनी समझ उसके देखने का तरीका भी वैसा नहीं है कि वो खुद ही उसके पास भागी चली जाए बस जब देखो तब बस पति ही बने रहते है कभी-कभी प्रेमी और सेक्षमनियाक भी तो बन सकता है वो .

लेकिन भीमा चाचा की नज़रों में उसे वो भूख दिखी जो कि उसे अपने पति में चाहिए थी भीमा चाचा की लालायत नज़रों ने कामया के अंदर एक ऐसी आग भड़का दी थी कि कामया एक शुशील और पढ़ी लिखी बड़े घर की बहू आज डाइनिंग टेबल पर अपने ही नौकर को लुभाने की चाले चल रही थी कामया जानती थी कि भीमा चाचा की नजर कहाँ है और वो आज क्यों इस तरह से खुलकर उसकी ओर देख और बोल पा रहे है वो भीमा चाचा को और भी उकसाने के मूड में थी वो चाहती थी कि चाचा अपना आपा खो दे और उस पर टूट पड़े इसलिए वो हर वो कदम उठा लेना चाहती थी वो

जान बूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू और भी ढीला कर दिया ताकि भीमा को ऊपर से उसकी गोलाइयो का पूरा लुफ्त ले सके और उनके अंदर उठने वाली आग को वो आज भड़काना चाहती थी

कामया के इस तरह से बैठे रहने से, भीमा ना कुछ कह पा रहा था और नहीं कुछ सोच पा रहा था वो तो बस मूक दर्शक बनकर कामया के शरीर को देख रहा था ओर अपने बूढ़े हुए शरीर में उठ रही उत्तेजना के लहर को छुपाने की कोशिश कर रहा था वो चाह कर भी अपनी नजर कामया की चुचियों पर से नहीं हटा पा रहा था और ना ही उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू से दूर जा पा रहा था वो किसी स्टॅच्यू की तरह खड़ा हुआ अपने हाथ टेबल पर रखे हुए थोड़ा सा आगे की ओर झुका हुआ


कामया की ओर एकटक टकटकी लगाए हुए देख रहा था और अपने गले के नीचे थूक को निगलता जा रहा था उसका गला सुख रहा था उसने इस जनम में भी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि उसके कामया जैसी लड़की एक बड़े घर की बहू इस तरह से अपना यौवन देखने की छूट देगी और वो इस तरह से उसके पास खड़ा हुआ इस यौवन का लुफ्त उठा सकता था देखना तो दूर आज तक उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठी थी उसने कभी और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी वो उसके आधे खुले हुए चूचों को मन भर के देख रहा था

भीमा उसकी खुशबू सूंघ सकता था और शायद हाथ भी लगा सकता था पर हिम्मत नहीं हो रही थी तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई

कमाया- अरे चाचा क्या कर रहे हो पड़ान्ठा खतम हो गया

भीमा- जी जी यह

और जब तक वो हाथ बढ़ा कर पड़ान्ठा कामया की प्लेट में रखता तब तक कामया का हाथ भी उसके हाथों से टकराया और कामया उसके हाथों से अपना पड़ान्ठा लेकर खाने लगी उसका पल्लू अब थोड़ा और भी खुल गया था उसके ब्लाउज में छुपे हुए चुचे उसको पूरी तरह से दिख रहे थे नीचे तक उसके पेट और जहां से साड़ी बाँधी थी वहां तक भीमा चाचा की उत्तेजना में यह हालत थी कि अगर घर में माजी नहीं होती तो शायद आज वो कामया का रेप ही कर देता पर नौकर था इसलिए चुपचाप प्रसाद में जो कुछ मिल रहा था उसी में खुश हो रहा था और इसी को जन्नत का मजा मान कर चुपचाप कामया को निहार रहा था कामया कुछ कहती हुई खाना भी खा रही थी पर उसका ध्यान कामया की बातों पर बिल्कुल नहीं था


हाँ ध्यान था तो बस उसके ब्लाउज पर और उसके अंदर से दिख रहे चिकने और गुलाबी रंग के शरीर का वो हिस्सा जहां वो शायद कभी भी ना पहुँच सके वो खड़ा-खड़ा बस सोच ही सकता था और उसे बस वो इस अप्सरा की खुशबू को अपने जेहन में समेट सकता था इसी तरह कब समय खतम हो गया पता भी नहीं चला पता चला तब जब कामया ने उठते हुए कहा
कमाया- बस हो गया चाचा

भीमा- जी जी

और अपनी नजर फिर से नीचे की और झुक कर हाथ बाँधे खड़ा हो गया कामया उठी और वाशबेसिन पर गई और झुक कर हाथ मुँह धोने लगी झुकने से उसके शरीर में बँधी साड़ी उसके नितंबों पर कस गया जिससे कि उसकी नितंबों का शेप और भी सुडोल और उभरा हुआ दिखने लगा भीमा पीछे खड़ा हुआ मंत्र मुग्ध सा कामया को देखता रहा और सिर्फ़ देखता रहा कामया हाथ धो कर पलटी तब भी भीमा वैसे ही खड़ा था उसकी आखें पथरा गई थी मुख सुख गया था और हाथ पाँव जमीन में धस्स गये थे पर सांसें चल रही थी या नहीं पता नहीं पर वो खड़ा था कामया की ओर देखता हुआ कामया जब पलटी तो उसकी साड़ी उसके ब्लाउज के ऊपर नहीं थी कंधे पर शायद पिन के कारण टिकी हुई थी और कमर पर से जहां से मुड़कर कंधे तक आई थी वहाँ पर ठीक ठाक थी पर जहां ढकना था वहां से गायब थी और उसका पूरा यौवन या फिर कहिए चूचियां जो कि किसी पहाड़ के चोटी की तरह सामने की ओर उठे हुए भीमा चाचा की ओर देख रही थी भीमा अपनी नजर को झुका नहीं पाया वो बस खड़ा हुआ कामया की ओर देखता ही रहा और बस देखता ही जा रहा था कामया ने भी भीमा की ओर जरा सा देखा और मुड़कर सीढ़ी की ओर चल दी अपने कमरे की ओर जाने के लिए उसने भी अपनी साड़ी को ठीक नहीं किया था क्यों भीमा सोचने लगा शायद ध्यान नहीं होगा या फिर नींद आ रही होगी या फिर बड़े लोग है सोच भी नहीं सकते कि नौकर लोग की इतनी हिम्मत तो हो ही नहीं सकती या फिर कुछ और आज कामया को हुआ क्या है या फिर मुझे ही कुछ हो गया है


पीछे से कामया का मटकता हुआ शरीर किसी साप की तरह बलखाती हुई चाल की तरह से लग रहा था जैसे-जैसे वो एक-एक कदम आगे की ओर बढ़ाती थी उसका दिल मुँह पर आ जाता वो आज खुलकर कामया के हुश्न का लुफ्त लेरहा था उसको रोकने वाला कोई नहीं था कोई भी नहीं था घर पर माँ जी अपने कमरे में थी और बहू अपने कमरे की ओर जा रही थी और चली गई सब शून्य हो गया खाली हो गया कुछ भी नहीं था सिवाए भीमा के जो कि डाइनिंग टेबल के पास कुछ झुटे प्लेट के पास सीढ़ी की ओर देखता हुआ मंत्र मुग्ध सा खड़ा था सांसें भी चल रही थी कि नहीं पता नहीं भीमा की नजर शून्य से उठकर वापस डाइनिंग टेबल पर आई तो कुछ झुटे प्लेट ग्लास पर आके अटक गई कामया की जगह खाली थी पर उसकी खुशबू अब भी डाइनिंग रूम में फेली हुई थी


पता नहीं या फिर सिर्फ़ भीमा के जेहन में थी भीमा शांत और थका हुआ सा अपने काम में लग गया धीरे-धीरे उसने प्लेट और झुटे बर्तन उठाए और किचेन की ओर मुड़ गया पर अपनी नजर को सीढ़ियो की ओर जाने से नहीं रोक पाया था शायद फिर से कामया दिख जाए पर वहाँ तो बस खाली था कुछ भी नहीं था सिर्फ़ सन्नाटा था मन मारकर भीमा किचेन में चला गया
ओर उधर कामया भी जब अपने कमरे में पहुँची तो पहले अपने आपको उसने मिरर में देखा साड़ी तो क्या बस नाम मात्र की साड़ी पहने थी वो पूरा पल्लू ढीला था और उसकी चुचियों से हटा हुआ था दोनों चूचियां बिल्कुल साफ-साफ ब्लाउज में से दिख रहा था क्लीवेज तो और भी साफ था आधे खुले गले से उसके चूचियां लगभग पूरी ही दिख रही थी वो नहीं जानती थी कि उसके इस तरह से बैठने से भीमा चाचा पर क्या असर हुआ था पर हाँ… कल के बाद से वो बस अंदाज़ा ही लगा सकती थी कि आज चाचा ने उसे जी भरकर देखा होगा वो तो अपनी नजर उठाकर नहीं देख पाई थी पर हाँ… देखा तो होगा और यह सोचते ही कामया एक बार फिर गरम होने लगी थी उसकी जाँघो के बीच में हलचल मच गई थी निपल्स कड़े होने लगे थे वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गई और अपने को किसी तरह से शांत करके बाहर आई

कामया धम्म से बिस्तर पर अपनी साड़ी उतारकर लेट गई सोचते हुए पता नहीं कब वो सो गई शाम को फिर से वही पति का इंतजार या फिर मम्मीजी के आगे पीछे या फिर टीवी या फिर कमरा सबकुछ बोरियत से भरा हुआ जिंदगी था कामया का ना कुछ फन था और ना कुछ ट्विस्ट सोचते हुए कामया अपने कमरे में इधर उधर हो रही थी मम्मीजी शाम होते ही अपने पूजा घर में घुस जाती थी और पापाजी और कामेश के आने से पहले ही निकलती थी और फिर इसके बाद खाना पीना और फिर सोना हाँ यही जिंदगी रह गई थी कामया की


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sexi munda
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Re: बड़े घर की बहू

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रात को 8 30 बजे पापाजी जी आ गये और अपने कमरे में चले गये कामया इंतजार में थी कि कामेश आ जाए तो थोड़ा बहुत बोल सके नहीं तो पूरा दिन तो बस चुपचाप ही रहना पड़ता था मम्मीजी से क्या बात करो वो बस पूजा पाठ और कुछ नहीं बोलो तो बस हाँ या हूँ में ही जबाब देती थी लेकिन कामेश का कही पता नहीं तभी इंटरकम की घंटी बजी मम्मीजी थी
मम्मीजी- अरे कामया आ जा खाना ख़ाले कामेश को लेट होगा आने में

कामया- जी आई

धत्त तेरी की सब मजा ही किरकिरा कर दिया एक तो पूरे दिन इंतजार करो फिर शाम को पता चलता है कि देर से आएँगे कहाँ गये है वो झट से सेल उठाया ओर कामेश को रिंग कर दिया
कामेश- हेलो

कामया- क्या जी लेट आओगे

कामेश- हाँ यार कुछ काम है थोड़ा लेट हो आउन्गा खाना खाकर आउन्गा तुम खा लेना ठीक है

कामया- तुम क्या हो आज ही कहा था कि जल्दी आना कही चलेंगे और आज ही आपको काम निकल आया
कामया का गुस्सा सातवे आसमान में था

कामेश- अरे यार बाहर से कुछ लोग आए है तुम घर में आराम करो में आता हूँ

कामया- और क्या करती हूँ में घर में कुछ काम तो है नहीं पूरा दिन आराम ही तो करती हूँ और आप है कि बस

कामेश- अरे यार माफ कर दो आज के बाद ऐसा नहीं होगा प्लीज यार अगर जरूरी नहीं होता तो क्या तुम जैसी बीवी को छोड़ कर काम में लगा रहता प्लीज यार समझा करो

कामया- ठीक है जो मन में आए करो

और झट से फोन काट दिया और गुस्से में पैर पटकती हुई नीचे डाइनिंग टेबल पर पहुँची मम्मीजी टेबल पर आ गई थी पापाजी का इंतजार हो रहा था टेबल पर खाना ढका हुआ रखा था मम्मीजी जी ने प्लेट सजा दिए थे बस पापाजी आ जाए तो खाना शुरू हो तभी पापाजी भी आ गये और खाना शुरू हो गया

पापा जी और मम्मीजी कुछ बातें कर रहे थे तीर्थ पर जाने की कामया का मन बिल कुल उस बात पर नहीं था शायद मम्मीजी अपने किसी संबंधी या फिर जान पहचान वालों के साथ कोई टूर अरेंज कर रहे थे कुछ दिनों के तीर्थ यात्रा
पर जाने का

तभी पापाजी के मुख से अपना नाम सुनकर कामया थोड़ा सा सचेत हुई
पापा जी- बहू कामेश कह रहा था कि तुम घार पर बहुत बोर हो जाती हो

कामया- नहीं पापाजी ऐसा कुछ नहीं है
बहुत गुस्से में थी कामया पर फिर भी अपने को संतुलित कर कामया ने पापाजी को जबाब दिया

मम्मीजी- अओर क्या दिन भर घर में अकेली पड़ी रहती है कोई भी नहीं है बात चीत करने को या फिर कही घूमने फिरने को कामेश को तो बस काम से फुर्सत मिले तब ना कही ले जाए बिचारी को

कामया- नहीं मम्मीजी ऐसा कुछ नहीं है

पापाजी- सुनो बहू तुम गाड़ी चलाना क्यों नहीं सीख लेती लाखा को कह देते है तुम्हें गाड़ी चलाना सिखा देगा

कामया-, नहीं पापा जी ठीक है ऐसा कुछ भी नहीं जो आप लोग सोच रहे है

पापाजी- अरे इसमें बुराई ही क्या है घर में एक गाड़ी हमेशा ही खड़ी रहती है तुम उसे चलाना जहां मन में आए जाना और कभी-कभी मम्मी को भी घुमा लाना

मम्मीजी- हाँ… हाँ… तुम तो लाखा को बोल दो कल से आ जाए तुम्हें छोड़ने के बाद

पापा जी- अरे दिन में कहाँ चलाएगी वो गाड़ी सुबह को ठीक रहेगा

मम्मीजी- अरे सुबह को इतना काम रहता है और तुम दोनों को भी तो काम पर जाना है कामेश को तो हाथ में उठाकर सब देना पड़ता है नहीं तो वो तो वैसे ही चला जाए दुकान पर

पापा जी- तो ठीक है शाम को चले जाना ग्राउंड पर दिन में और सुबह तो ग्राउंड में बच्चे खेलते है तुम शाम को चले जाना ठीक है

मम्मीजी- हाँ हाँ ठीक है शाम का टाइम ही अच्छा है आराम से सो लेगी और शाम को कुछ काम भी नहीं रहता तुम लोग एक ही गाड़ी में आ जाना

पापाजी - हाँ… हाँ… क्यों नहीं लाखा को में शाम को भेज दूँगा थोड़ा सा अंधेरा हो जाए तब जाना बच्चे भी खाली करदेंगे ग्राउंड ठीक है ना बहू

कामया- जी वैसे कोई ज़रूरत नहीं है पापाजी

मम्मीजी- (बिल्कुल चिढ़ कर बोली) कैसे जरूरत नहीं है मेरे जैसे घर में पड़ी रहोगी क्या तुम जाओ वहले गाड़ी सीखो फिर मुझे भी खूब घुमाना ही ही ही

डाइनिंग रूम में एक खुशी का महाल हो गया था कामया ने भी सोचा ठीक ही तो है घर में पड़ी पड़ी कामेश का इंतजार ही तो करती है शाम को अगर गाड़ी चलाने चली जाएगी तो टाइम भी पास हो जाएगा ओर जब वो लौटेगी तब तक कामेश भी आ जाएगा थोड़ा चेंज भी हो जाएगा और गाड़ी भी चलाना सीख जाएगी

तो फाइनल हो गया कि कल से लाखा काका शाम को आएँगे और कामया गाड़ी चलाने को जाएगी थोड़ी देर में खाना खतम हो गया मम्मी जी ने भीमा को आवाज लगा दी
मम्मीजी- अरे भीमा प्लेट उठा ले हो गया

भीमा- जी माँ जी
और लगभग भागता हुआ सा डाइनिंग रूम में आया और नीचे गर्दन कर चुपचाप झूठे बर्तन उठाने लगा

पापाजी ने हाथ धोया और भीमा को कहा
पापा जी- अरे भीमा आज कल तुम्हारे खाने में कुछ स्वाद कुछ अलग सा था क्या बात है कही और दिमाग लगा है क्या

भीमा- जी साहब नहीं तो कुछ गुस्ताख़ी हुई क्या

पापा जी- अरे नहीं मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया था तुम्हारे हाथों का खाते हुए सालो हो गये पर आज खुच चेंज था शायद मन कही और था

भीमा- जी माफ़ कर दीजिए कल से नहीं होगा

पापा जी- अरे यार तुम तो बस गॉव में सबकुछ ठीक ठाक तो है ना

भीमा- जी साहब सब ठीक है जी

पापाजी- चलो ठीक है कुछ जरूरत हो तो बताना शरमाना नहीं तुम कभी कुछ नहीं माँगते

भीमा- वैसे ही मिल जाता है साहब इतना कुछ तो क्या माँगे माफ़ करना साहब अगर कुछ गलती हो गई हो तो

मम्मीजी- (बीच में ही बोल उठी) अरे आअरए कुछ नहीं भीमा तू तो जा इनकी तो आदत है तू तो जानता है चुटकी लेते रहते है और पापा जी की ओर देखते हुए बोली

मम्मीजी- क्या तुम भी बहू के सामने तो कम से कम ध्यान दिया करो

पापाजी- हाहाहा अरे में तो बस मजाक कर रहा था बहू भी तो हमारे घर की है भीमा को क्या नहीं पता

भीमा- जी
और मुड़कर झूठे प्लेट और बचा हुआ खाना लेके अंदर चला गया जाते हुए चोर नजर से एक बार कामया को जरूर देखा उसने जो कि कामया की नजर पर पड़ गई थोड़ा सा मुश्कुरा कर कामया मम्मीजी के पीछे-पीछे ड्राइंग रूम में आ गई थोड़ी देर सभी ने टीवी देखा और कामेश का इंतजार करते रहे पर कामेश नहीं आया

मम्मीजी- कामेश को क्या देर होगी आने में

पापाजी- हाँ शायद खाना खाके ही आएगा बाहर से कुछ लोग आए है हीरा मार्चंट्स है एक्सपोर्ट का आर्डर है थोड़ा बहुत टाइम लगेगा

कामया चुपचाप दोनों की बातें सुन रही थी उसे एक्सपोर्ट ओरडर हो या इम्पोर्ट आर्डर हो उसे क्या उसका तो बस एक ही इंतजार था कामेश जल्दी आ जाए

पर कहाँ कामेश तो काम खतम किएबगैर कुछ नहीं सोच सकता था रात करीब 10 30 बजे तक सभी ने इंतजार किया और फिर सभी अपने कमरे में चले गये सीढ़िया चढ़ते समय कामया को मम्मीजी की आवाज सुनाई दी

मम्मीजी- भीमा कामेश लेट ही आएगा सोना मत दरवाजा खोल देना ठीक है

भीमा- जी माँ जी आप बेफिकर रहिए

और नीचे बिल्कुल सुनसान होगा

कामया ने भी कमरे में आते ही कपड़े चेंज किए और झट से बिस्तर पर ढेर हो गई गुस्सा तो उसे था ही और चिढ़ के मारे कब सो गई पता नहीं सुबह जब आखें खुली तो कामेश उठ चुका था कामया वैसे ही पड़ी रही बाथरूम से निकलने के बाद कामेश कामया की ओर बढ़ा और कामया को कंधे से हिलाकर
कामेश- मेडम उठिए 8 बज गये है

पर कामया के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई कामेश जानता था कामया अब भी गुस्से में है वो थोड़ा सा झुका और कामया के गालों को किस करते हुए
कामेश- सारी बाबा क्या करता काम था ना

कामया- तो जाइए काम ही कीजिए हम ऐसे ही ठीक है

कामेश- अरे सोचो तो जरा यह आर्डर कितना बड़ा है हमेशा एक्सपोर्ट करते रहो ग्राहकों का झंझट ही नहीं एक बार जम जाए तो बस फिर तो आराम ही आराम फिर तुम मर्सिडेज में घूमना

कामया- हाँ… मेर्सिडेज में वो भी अकेले अकेले है ना तुम तो बस नोट कमाने में रहो

कामेश- अरे यार में भी तो तुम्हारे साथ रहूँगा ना चलो यार अब उठो पापा मम्मी इंतजार करते होंगे जल्दी उठो

और कामया को प्यार से सहलाते हुए उठकर खड़ा हो गया कामया भी मन मारकर उठी और मुँह धोने के बाद नीचे पापाजी और मम्मीजी के पास पहुँच गये दोनों चाय की चुस्की ले रहे थे

पापाजी- क्या हुआ कल

कामेश- हो गया पापा बहुत बड़ा आर्डर है 3 साल का कांट्रॅक्ट है अच्छा हो जाएगा

पापाजी- हूँ देख लेना कुछ पैसे वैसे की जरूरत हो तो बैंक से बात करेंगे

कामेश- अरे अभी नहीं वो बाद में फिल हाल तो ऐसे ही ठीक है

कामया और मम्मीजी बुत बने दोनों की बातें सुन रहे थे कुछ भी पल्ले नहीं पड़ रहा था मम्मीजी भी इधर उधर देखती रही थोड़ा सा गॅप जहां मिला झट बोल पड़ी
मम्मीजी- और सुन कामेश यह रात को बाहर रहना अब बंद कर घर में बहू भी है अब उसका ध्यान रखाकर और कामया की ओर देखकर मुश्कुराई

पापाजी और कामेश इस अचानक हमले को तैयार नहीं थे दोनों की नजर जैसे ही कामया पर गई तो कामया नज़रें झुका कर चाय की चुस्की लेने लगी

पापा जी ---हहा बिल कुल ठीक है तुम ध्यान दिया करो

कामेश- जी

पापाजी-हाँ और आज लाखा आ जाएगा बहू तुम चले जाना ठीक है

कामेश- हो गई बात लाखा काका आज से आएँगे चलो यह ठीक रहा

सभी अब कामया के ड्राइविंग सीखने की और जाने की बात करते रहे और चाय खतम कर सभी अपने कमरे की ओर रवाना हो गये आगे के रुटीन की ओर कमरे में पहुँचते ही कामेश दौड़ कर बाथरूम में घुस गया और कामया कामेश के कपड़े वारड्रोब से निकालने लगी

कपड़े निकालते समय उसे गर्दन में थोड़ी सी पेन हुई पर ठीक हो गया अपना काम करके कामया कामेश का बाथरूम से निकलने का इंतजार करने लगी कामेश हमेशा की तरह वही अपने टाइम से निकला एकदम साहब बनके बाहर आते ही जल्दी से कपड़े पहनने की जल्दी और फिर जूता मोज़ा पहन कर तैयार 10 बजे तक फुल्ली तैयार कामया बिस्तर पर बैठी बैठी कामेश को तैयार होते देखती रही और अपने हाथ से अपनी गर्दन को मसाज भी करती रही

कामेश के तैयार होने के बाद वो नीचे चले गये और कामेश तो बस हबड ताबड़ कर खाया जल्दी से खाना खा के बाहर का रास्ता करीब 10 30 तक कामेश हमेशा ही दुकान की ओर चल देता था पापाजी तो करीब 11 30 तक निकलते थे कामया भी कामेश के चले जाने के बाद अपने कमरे की ओर चल दी टेबल पर भीमा चाचा झूठे प्लेट उठा रहे थे एक नजर उनपर डाली और अपने कमरे की ओर जाते जाते उसे लगा कि भीमा चाचा की नज़रें उसका पीछा कर रही है सीढ़ी के आखिरी मोड़ पर वो पलटी

हाँ चाचा की नज़रें उसपर ही थी पलटते ही चाचा अपने को फिर से काम में लगा लिए और जल्दी से किचेन की ओर मुड़ गये

कामया के शरीर में एक झुरझुरी सी फेल गई और कमरे तक आते आते पता नहीं क्यों वो बहुत ही कामुक हो गई थी एक तो पति है कि काम से फुर्सत नहीं सेक्स तो दूर की बात देखने और सुनने की भी फुर्सत नहीं है आज कल तो कामया कमरे में पहुँचकर बिस्तर पर चित्त लेट गई सीलिंग की ओर देखते हुए पता नहीं क्या सोचने लगी थी पता नहीं पर मरी हुई सी बहुत देर लेटी रही तभी घड़ी ने 11 बजे का बीप किया कामया झट से उठी और बाथरूम की ओर चली बाथरूम में भी कामया बहुत देर तक खड़ी-खड़ी सोचती रही कपड़े उतारते वक़्त उसके कंधे पर फिर से थोड़ी सी अकड़न हुई अपने हाथों से कंधे को सहलाते हुए वो मिरर में देखकर थोड़ा सा मुश्कुराई और फिर ना जाने कहाँ से उसके शरीर में जान आ गई जल्दी-जल्दी फटाफट सारे काम चुटकी में निपटा लिए और पापाजी और मम्मीजी के पास नीचे खाने की टेबल की ओर चल दी पापाजी और मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर आते ही होंगे वो पहले पहुँचना चाहती थी पर मम्मीजी पहले ही वहां थी कामया को देखकर मम्मीजी थोड़ा सा मुश्कुराई और कामया उनके पास कुर्सी पर बैठ गई
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Re: बड़े घर की बहू

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कामया पापाजी और मम्मीजी का प्लेट लगाने लगी और खड़ी-खड़ी पापाजी के आने का इंतजार करने लगी पापाजी के आने बाद खाने पीने का दौर शुरू हो गया और पापाजी और मम्मीजी का बातों का दौर पर कामया का ध्यान उनकी बातों में नहीं था उसके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था पापाजी और मम्मीजी के बातों का हाँ या हूँ में जबाब देती जा रही थी और खाने खतम होने का इंतजार कर रही थी पता नहीं क्यों आज ज्यादा ही टाइम लग रहा था किचेन में भीमा चाचा के काम करने की आवाजें भी आ रही थी पर दिखाई कुछ नहीं दे रहा था कामया का ध्यान उस तरफ ज्यादा था क्या भीमा चाचा उसे देख रहे है या फिर अपने काम में ही लगे हुए है आज उसने इस समय सूट ही पहना था रोज की तरह ही था लेकिन टाइट फिटिंग वाला ही उसका शरीर खिल रहा था उस सूट में वो यह जानती थी तो क्या भीमा चाचा ने उसे देख लिया है या फिर देख रहे है पता नहीं पापाजी और मम्मीजी को खाना खिलाते समय उसके दिमाग में कितनी बातें उठ रही थी हाँ… और ना के बीच में आके खतम हो जाती थी कभी-कभी वो पलटकर या फिर तिरछी नजर से पीछे की और देख भी लेती थी पर भीमा चाचा को वो नहीं देख पाई थी अब तक

इसी तरह पापाजी और मम्मीजी का खाना भी खतम हो गया
मम्मीजी- अरे बहू तू भी खाना खा ले अब

कामया- जी मम्मीजी खा लूँगी

पापाजी- ज्यादा देर मत किया कर नहीं तो गैस हो जाएगा

कामया- जी
और पापाजी और मम्मीजी उठकर हाथ मुख धोने लगे और पापाजी जल्दी-जल्दी अपने कमरे की ओर भागे निकलने का टाइम जो हो गया था मम्मीजी ने भीमा को आवाज देकर प्लेट उठाने को कहा और कामया के साथ ड्राइंग रूम के दरवाजे पर पहुँच गई पीछे भीमा डाइनिंग टेबल से प्लेट उठा रहा था और सामने ड्राइंग रूम के दरवाजे के पास कामया खड़ी थी उसकी ओर पीठ करके वो प्लेट उठाते हुए पीछे से उसे देख रहा था सबकी नजर बचा कर मम्मीजी कुछ कह रही थी कामया से तभी अचानक कामया पलटी और भीमा और कामया की नज़रें एक हुई भीमा सकपका गया और झट से नज़रें नीचे करके जल्दी से झुटे प्लेट लिए किचेन में घुस गया

कामया ने जैसे ही भीमा को अपनी ओर देखते हुए देखा वो भी पलटकर मम्मीजी की ओर ध्यान देने लगी थी और तभी पापाजी भी आ गये थे वो बाहर को चले गये तो मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे बाहर दरवाजे तक आए बाहर गाड़ी के पास लाखा काका अपनी वही पूरी पोशाक में हाजिर थे नीचे गर्दन किए धोती और शर्ट पहने हुए पीछे का गेट खोले खड़े थे पापाजी उसके पास पहुँचकर कहा

पापा जी- आज से तुम्हारे लिए नई ड्यूटी लगा दी है पता है

लाखा- जी शाब

पापाजी- आज से बहू को ड्राइविंग सिखाना है आपको

लाखा- जी शाब

पापाजी- कोई दिक्कत तो नहीं

लाखा- जी नही शाब

पापाजी- कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए ठीक है

लाखा- जी शाब

लाखा का सिर अब भी नहीं उठ था नाही ही उसने कामया की ओर ही देखा था
मम्मीजी- शाम को जल्दी आ जाना ठीक है

लाखा- जी माँ जी

मम्मीजी कितने बजे भेजोगे

पापाजी- हाँ… करीब 6 बजे

मम्मीजी जी ठीक है
और पापाजी जी गाड़ी में बैठ गये और लाखा भी जल्दी से दौड़ कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और गाड़ी गेट के बाहर हो गई मम्मीजी और कामया भी अंदर की ओर पलटे
डाइनिंग टेबल में कुछ ढका हुआ था शायद कामया का खाना था

मम्मीजी जा अब तू खाना ख़ाले मैं तो जाऊ आराम करूँ

कामया- जी
और कामया डाइनिंग रूम में रुक गई और माँ जी अपने रूम की ओर
कामया किचेन की ओर चली और दरवाजे पर रुकी

कामया- चाचा एक मदद चाहिए

भीमा - जी छोटी बहू कहिए आप तो हुकुम कीजिए

और अपनी नजर झुका कर हाथ बाँध कर सामने खड़ा ही गया सामने कामया खड़ी थी पर वो नजर उठाकर नहीं देख पा रहा था उसकी साँसे बहुत तेज चल रही थी सांसो में कामया के सेंट की खुशबू बस रही थी वो मदहोश सा होने लगा था
कामया- वो असल में अआ आप बुरा तो नहीं मानेंगे ना
भीमा का कोई जबाब ना पाकर

कामया- वो असल में कल ना सोने के समय थोड़ा सा गर्दन में मोच आ गई थी में चाहती थी कि अगर आप थोड़ा सा मालिश कर दे
भीमा- ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्जििइईईईई
कामया भी भीमा के जबाब से कुछ सकपकाई पर तीर तो छूट चुका था

कामया- नहीं नहीं, अगर कोई दिक्कत है तो कोई बात नहीं असल में उस दिन जब आपने मेरे पैरों मोच ठीक किया था ना इसलिए मैंने कहा और आज से तो गाड़ी भी चलाने जाना है ना इसलिए सोचा आपको बोलकर देखूँ

भीमा की तो जान ही अटक गई थी गले में मुँह सुख गया था नज़रों के सामने अंधेरा छा गया था उसके गले से कोई भी आवाज नहीं निकली वो वैसे ही खड़ा रहा और कुछ बोल भी नही पाया

कमाया- आप अपना काम खतम कर लीजिए फिर कर देना ठीक है में उसके बाद खाना खा लूँगी
भीमा- ####
कामया- चलिए में आपको बुला लूँगी कितना टाइम लगेगा आपको
भीमा- जी ####
कामया- फ्री होकर रिंग कर देना में रूम में ही हूँ
और कहकर कामया अपने रूम की ओर पलटकर चली गई

भीमा किचेन में ही खड़ा था किसी भूत की तरह सांसें ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे दिमाग सुन्न आखें पथरा गई थी हाथ पाँव में जैसे जान ही ना हो खड़ा-खड़ा कामया को जाते हुए देखता रहा पीछे से उसकी कमर बलखाती हुई और नितंबों के ऊपर से उसकी चुन्नी इधर-उधर हो रही थी

सीढ़ी से चढ़ते हुए उसके शरीर में एक अजीब सी लचक थी फिगर जो कीदिख रहा था कितना कोमल था वो सपने में कामया को जैसे देखता था वो आज उसी तरह बलखाती हुई सीढ़ीओ से चढ़कर अपने रूम की ओर मुड़ गई थी भीमा वैसे ही थोड़ी देर खड़ा रहा सोचता रहा कि आगे वो क्या करे

आज तक कभी भी उसने यह नहीं सोचा था कि वो कभी भी इस घर की बहू को हाथ भी नही लगा सकता था मालिश तो दूर की बात और वो भी कंधे का मतलब वो आज कामया का शरीर को कंधे से छू सकेगा आआअह्ह उसके पूरे शरीर में एक अजीब सी हलचल मच गई थी बूढ़े शरीर में उत्तेजना की लहर फेल गई उसके सोते हुए अंगो में आग सी भर गई कितनी सुंदर है कामया कही कोई गलती हो गई तो

पूरे जीवन काल की बनी बनाई निष्ठा और नमक हलाली धरी रह जाएगी पर मन का क्या करे वो तो चाहता था कि वो कामया के पास जाए भाड़ में जाए सबकुछ वो तो जाएगा वो अपने जीवन में इतनी सुंदर और कोमल लड़की को आज तक हाथ नहीं लगाया था वो तो जाएगा कुछ भी हो जाए वो जल्दी से पलटकर किचेन में खड़ा चारो ओर देख रहा था सिंक पर झूठे प्लेट पड़े थे और किचेन भी अस्त व्यस्त था पर उसकी नजर बार बार बाहर सीढ़ियों पर चली जाती थी

उसका मन कुछ भी करने को नहीं हो रहा था जो कुछ जैसे पड़ा था वो वैसे ही रहने दिया आगे बढ़ने ही हिम्मत या फिर कहिए मन ही नहीं कर रहा था वो तो बस अब कामया के करीब जाना चाहता था वो कुछ भी नहीं सोच पा रहा था उसकी सांसें अब तो रुक रुक कर चल रही थी वो खड़ा-खड़ा बस इंतजार कर रहा था कि क्या करे उसका अंतर मन कह रहा था कि नहीं यह गलत है पर एक तरफ वो कामया के शरीर को छूना चाहता था उसके मन के अंदर में जो उथल पुथल थी वो उसके पार नहीं कर पा रहा था

वो अभी भी खड़ा था और उधर

कमाया अपने कमरे में पहुँचकर जल्दी से बाथरूम में घुसी और अपने को सवारने में लग गई थी वो इतने जल्दी बाजी में लगी थी कि जैसे वो अपने बाय फ्रेंड से मिलने जा रही हो वो जल्दी से बाहर निकली और वार्ड रोब से एक स्लीव लेस ब्लाउस और एक वाइट कलर का पेटीकोट निकाल कर वापस बाथरूम में घुस गई

वो इतनी जल्दी में थी कि कोई भी देखकर कह सकता था कि वो आज कुछ अलग मूड में थी चेहरा खिला हुआ था और एक जहरीली मुश्कान भी थी उसके बाल खुले हुए थे और होंठों पर डार्क कलर की लिपस्टिक थी कमर के बहुत नीचे उसने पेटीकोट पहना था ब्लाउस तो जैसे रखकर सिला गया हो टाइट इतना था कि जैसे हाथ रखते ही फट जाए आधे से ज्यादा चुचे सामने से ब्लाउज के बाहर आ रहे थे पीछे से सिर्फ़ ब्रा के ऊपर तक ही था ब्लाउस कंधे पर बस टिका हुआ था दो बहुत ही पतले लगभग 1्2 सेंटीमीटर की ही होगी पट्टी

बाथरूम से निकलने के बाद कामया अपने को मिरर में देखा तो वो खुद भी देखती रह गई कि लग रही थी सेक्स की गुड़िया कोई भी ऋषि मुनि उसे ना नहीं कर सकता था कामया अपने को देखकर बहुत ही उत्तेजित हो गई थी हाँ उसके शरीर में आग सी भर गई थी वो खड़ी-खड़ी अपने शरीर को अपने ही हाथों से सहला रही थी अपने उभारों को खुद ही सहलाकर अपने को और भी उत्तेजित कर रही थी और अपने शरीर पर भीमा चाचा के हाथों का सपर्श को भी महसूस कर रही थी उसने अपने को मिरर के सामने से हटाया और एक चुन्नी अपने उपर डाल ली और भीमा चाचा का इंतजार करने लगी

पर इंटरकम तो जैसे शांत था वैसे ही शांत पड़ा हुआ था

उधर भीमा भी अपने हाथ को साफ करके किचेन में ही खड़ा था सोच रहा था कि क्या करे फोन करे या नहीं कही किसी को पता चल गया तो लेकिन दिल है कि मानता नहीं वो इंटरकम तक पहुँचा और फिर थम गया अंदर एक डर था मालिक और नौकर का रिश्ता था उसका वो कैसे भूल सकता था पागल शेर की तरह वो किचेन में तो कभी किचेन के बाहर तक आता और फिर अंदर चला जाता इस दौरान वो दो बार बाहर का दरवाजा भी चैक कर आया जो कि ठीक से बंद है कि नहीं पागल सा हो रहा था उसने सोचा कि कर ही देता हूँ फोन
और वो जैसे ही फोन तक पहुँचा फोन अपने आप ही बज उठा
भीमा ने भी झट से उठा लिया
भीमा- ज्ज्जिि (उसकी सांसें फूल रही थी )
उधर से कामया की आवाज थी शायद वो और इंतजार नहीं करना चाहती थी
कामया- क्या हुआ चाचा काम नहीं हुआ आपका

जैसे मिशरी सी घुल गई थी भीमा के कानों में हकलाते हुए भीमा की आवाज निकली
भीमा जी बहू बस

कामया- क्या जी जी मुझे खाना भी तो खाना है आओगे कि

जान बूझ कर कमाया ने अपना सेंटेन्स आधा छोड़ दिया भीमा जल्दी से बोल उठा
भीमा- नही नहीं बहू में तो बस आ ही रहा था आप बस आया
और लगभग दौड़ता हुआ वो एक साथ दो तीन सीडिया चढ़ता हुआ कामया के रूम के सामने था मगर हिम्मत नहीं हो रही थी कि खटखटा सके खड़ा हुआ भीमा क्या करे सोच ही रहा था कि दरवाजा कामया ने खोल दिया जैसे देखना चाहती हो कि कहाँ रहा गया है वो सामने से भी सुंदर बिल कुल किसी अप्सरा की तरह खड़ी थी कामया चुन्नी जो कि उसके ब्लाउज के उपर से ढलक गया था उसके आधे खुले बूब्स जो कि बाहर की ओर थे उसे न्यूता दे रहे थे कि आओ और खेलो हमारे साथ चूसो और दबाओ जो जी में आए करो पर जल्दी करो

भीमा दरवाजे पर खड़ा हुआ कामया के इस रूप को टक टकी बाँधे देख रहा था हलक सुख गया था इस तरह से कामया को देखते हुए कामया की आखों में और होंठों में एक अजीब सी मुश्कुराहट थी वो वैसे ही खड़ी भीमा चाचा को अपने रूप का रस पिला रही थी उसने अपने चुन्नी से अपने को ढकने की कोशिश भी नहीं की बल्कि थोड़ा सा आगे आके भीमा चाचा का हाथ पकड़कर अंदर खींचा

कामया- क्या चाचा जल्दी करो ऐसे ही खड़े रहोगे क्या जल्दी से ठीक कर दो फिर खाना खाना है मुझे
भीमा किसी कठपुतली की तरह एक नरम सी और कोमल सी हाथ के पकड़ के साथ अपने को खींचता हुआ कामया के कमरे में चला आया नहीं तो क्या कामया में दम था कि भीमा जैसे आदमी को खींचकर अंदर ले जा पाती यह तो भीमा ही खिंचा चला गया उस खुशबू की ओर उस मल्लिका की ओर उस अप्सरा की ओर उसके सूखे हुए होंठ और सूखा गला लिए आकड़े हुए पैरों के साथ सिर घूमता हुआ और आखें कामया के शरीर पर जमी हुई

जैसे ही भीमा अंदर आया कामया ने अपने पैरों से ही रूम का दरवाजा बंद कर दिया और साइड में रखी कुर्सी पर बैठ गई जो कि कुछ नीचे की ओर था बेड से थोड़ी दूर भीमा आज पहली बार कामेश भैया के रूम में आया था उनकी शादी के बाद कितना सुंदर सजाकर रखा था बहू ने जितनी सुंदर वो थी उतना ही अपने रूम को सजा रखा था इतने में कामया की आवाज उसके कानों में टकराई
कामया- क्या भीमा चाचा क्या सोच रहे हो
भीमा- #####
वो बुत बना कामया को देख रहा था कामया से नजर मिलते ही वो फिर से जैसे कोमा में चला गया क्या दिख रही थी कामया सफेद कलर की टाइट ब्लाउस और पेटीकोट पहने हुए थी और लाल कलर की चुन्नी तो बस डाल रखी थी क्या वो इस तरह से मालिश कराएगी क्या वो कामया को इस तरह से छू सकेगा उसके कंधों को उसके बालों को या फिर

कामया- क्या चाचा बताइए कहाँ करेंगे यही बैठू

भीमा- जी जी .....और गले से थूक निगलने की कोशिश करने लगा

भीमा कामया की ओर देखता हुआ थोड़ा सा आगे बढ़ा पर फिर ठिठ्क कर रुक गया क्या करे हाथ लगाए #### उूउउफफ्फ़ क्या वो अपने को रोक पाएगा कही कोई गड़बड़ हो गई तो भाड़ में जाए सबकुछ वो अब आगे बढ़ गया था अब पीछे नहीं हटेगा वो धीरे से कामया की ओर बड़ा और सामने खड़ा हो गया देखते हुए कामया को जो कि सिटी के थोड़ा सा नीचे होने से थोड़ा नीचे हो गये थी
कामया- मैं पलट जाऊ कि आप पीछे आएँगे

कामया भीमा चाचा को अपनी ओर आते देखकर पूछा उसकी सांसें भी कुछ तेज चल रही थी ब्लाउज के अंदर से उसकी चूचियां बाहर आने को हो रही थी भीमा की नजर कामया के ब्लाउसपर से नहीं हट रही थी वो घूमते हुए कामया के पीछे की ओर चला गया था उसकी सांसों में एक मादक सी खुशबू बस गई थी जो कि कामया के शरीर से निकल रही थी वो कामया का रूप का रस पीते हुए, उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया उपर से दिखने में कामया का पूरा शरीर किसी मोम की गुड़िया की तरह से दिख रहा था सफेद कपड़ों में कसा हुआ उसका शरीर जो की कपड़ों से बाहर की ओर आने को तैयार था और उसके हाथों के इंतजार में था

कामया अब भी चुपचाप वही बैठी थी और थोड़ा सा पीछे की ओर हो गई थी भीमा खड़ा हुआ, अब भी कामया को ही देख रहा था वो कामया के रूप को निहारने में इतना गुम थाकि वो यह भी ना देख पाया कि कब कामया अपना सिर उकचा करके भीमा की नजर की ओर ही देख रही थी

कामया- क्या चाचा शुरू करो ना प्लेअसस्स्स्स्सीईईईईई

भीमा के हाथ काप गये थे इस तरह की रिक्वेस्ट से कामया अब भी उसे ही देख रही थी उसके इस तरह से देखने से कामया की दोनों चूचियां उसके ब्लाउज के अंदर बहुत अंदर तक दिख रही थी कामया का शरीर किसी रूई के गोले के समान देख रहा था कोमल और नाजुक

भीमा ने कपते हुए हाथ से कामया के कंधे को छुआ एक करेंट सा दौड़ गया भीमा के शरीर में उसके अंदर का सोया हुआ मर्द अचानक जाग गया आज तक भीमा ने इतनी कोमल और नरम चीज को हाथ नहीं लगाया था

एकदम मखमल की तरह कोमल और चिकना था कामया का कंधा उसके हाथ मालिश करना तो जैसे भूल ही गये थे वो तो उस एहसास में ही खो गया था जो कि उसके हाथों को मिल रहा था वो चाह कर भी अपने हाथों को हिला नहीं पा रहा था बस अपनी उंगलियों को उसके कंधे पर हल्के से फेर रहा था और उसका नाज़ुकता का एहसास अपने अंदर भर रहा था वो अपने दूसरे हाथ को भी कामया के कंधे पर ले गया और दोनों हाथों से वो कामया के कंधे को बस छूकर देख रहा था
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