Incest -प्रीत का रंग गुलाबी complete

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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चकोर ने अपनी गांड को भाई के लंड पर रगड़ना शुरू किया उसे बहुत अच्छा लग रहा था जबकि मोहन भी उत्तेजना से कांपने लगा था बहन के बदन की खुशबु से दो पल के लिए चकोर अपने दर्द को भूल गयी थी पर जैसे ही दर्द की लहर बदन में दौड़ी वो कराही और आगे को हो गयी मोहन ने बहन की कमर को थाम लिया उसने धीरे धीरे चुतड का अवलोकन किया और जल्दी ही दर्द को पकड़ लिया चोट गहरी नहीं थी थोड़ी देर में ही ठीक हो जानी थी

मोहन ने एक बूटी चूतडो पर लगाई और फिर चकोर को कपडे पहनने को कहा वो चकोर के कपडे लाया और फिर खुद अपने कपडे भी पहन लिये चकोर का जी चाह रहा था की अभी मोहन से लिपट जाऊ कुछ ऐसा ही हाल मोहन का भी था पर दोनों अपने रिश्ते की गरिमा की वजह से अब नजरे चुरा रहे थे थोड़ी देर में चकोर का दर्द कम हुआ तो वो जड़ी बूटिया ढूँढने लगी और लगभग अँधेरे में ही घर आये पर दोनों के मन में एक तूफ़ान चल रहा था जो आने वाले समय में कुछ गुल खिलाने वाला था

“रानी आप तैयार नहीं हुए हमे वापिस महल लौटना है ”

“हमारा मन नहीं है अभी लौटने का हम कुछ दिन और आखेट करेंगे ”

“मन तो हमारा भी नहीं है पर मंत्री जी का संदेसा आया है तो जाना होगा आपकी सुरक्षा के लिए एक टुकड़ी सैनिको की छोड़ जाते है ”

“उसकी आवश्यकता नहीं महाराज बस कुछ सेविकाए ही बहुत रहेंगी हम कुछ पल अकेले रहना चाहते है ”

“परन्तु महारानी आपकी सुरक्षा ”

“अपने राज्य में हमे किसका डर महाराज और ये मत भूलिए की हमारी रगों में भी रणबांकुरो का लहू दौड़ रहा है ”

“ठीक है आपकी जैसी इच्छा पर ज्यादा दिन ना लगिएगा आपके बिना हमारा मन महल में नहीं लगेगा ”

“आपकी सेवा के लिए दो रनिया और भी है महाराज ”

“पर आपकी बात निराली है खैर, हमे देर हो रही है चलते है ”

महराज के काफिला चल पड़ा महल की और संयुक्ता वही रह गयी अपनी कुछ विस्वस्पात्र बांदियो के साथ महारानी संयुक्ता राजा की सबसे बड़ी रानी थी उम्र करीब 37-38 बेहद ही रूपवान 38 की छातिया 28 कमर और 42 की गांड रूप ऐसा की सोना भी इर्ष्या करे

एक बेहतरीन माँ और कर्मठ रानी पर बस एक ही कमी थी वो हद से ज्यादा कामुक थी कई बार वो अपनी यौन इच्छाओ पर काबू नहीं कर पाती थी ऐसा नहीं तह की महाराज चंद्रभान में कोई कमी थी वो पूर्ण पुरुष थे पर वो भी संयुक्ता के आगे हार मान लेते थे

आज चौथा दिन था महारानी ने मोहन को मिलने को कहा था बापू था नहीं डेरे में माँ से झूठ बोल कर की वो जड़ी बूटिया लाने जा रहा है वो चल पड़ा रस्ते में वही कीकर का पेड़ आया तो उसे मोहिनी का ख्याल आया उसने एक दो आवाजे भी लगायी पर मोहिनी हो तो आये कुछ देर इंतजार के बाद वो आगे हुआ
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे ख्याल आया उस पानी की धौरे का वो गया अब वो हुआ हैरान धौरा पूरी तरह से सूखा हुआ था मोहन को विश्वास ना हुआ

“मोहिनी ने तो कहा था की यहाँ हमेशा मीठा पानी रहेगा मैं जब जी चाहू पि लू पर यहाँ तो पानी है ही नहीं शायद मोहिनी ने ऐसे ही कह दिया होगा , पर उस दिन तो पानी था ’

अपने आप से बडबडाता मोहन आगे को बढ़ा और तभी उसे अपने कानो में पानी की आवाज सुनाई दी वो झट से घुमा और क्या देखा धौरा लबालब भरा था पानी से मोहन ने छिक के पानी पिया उसने फिर से मोहिनी को आवाज दी पर वो थी ही नहीं तो कैसे जवाब देती तो वो अपने मंजिल की और बढ़ गया

अब किसकी मजाल थी की महारानी के हुक्म को ना माने पर मोहन अपनी कला की प्रशंशा पाना चाहता था इसी आस में वो आखिर महारानी के शिविर तक जैसे उन्होंने बताया था वो पहुच गया
तभी उस पर महिला सैनिको की नजर पड़ी वो चीलाई- ओये लड़क
के वही ठहर तेरी क्या हिम्मत जो तू महारानी के शिविर के स्थान पर आया

मोहन- मुझे खुद महारानी ने बुलाया है

उनमे से एक हस्ते हुए बोली- तुझे बुलाया है महारानी ने ज्यादा झूठ मत बोल और भाग जा यहाँ से वर्ना सर धड से अलग होते हुए देर न लगेगी

अब मोहन उन्हें समझाए पर वो उसकी एक न सुने आखिर में उन्होंने मोहन को लताड़ कर भगा दिया मोहन की आस टूटी अब क्या करे वो सांझ ढल गयी पर उसने भी ठान लिया की वो महारानी से मिल के ही जायेगा थोडा अँधेरा हुआ भूख भी लगी पर आस थी हताश होकर उसने अपनी बंसी निकाली और छेड़ दी एक दर्द भरी तान मोहन की हताशा दर्द बन कर वातारण में विचरण करने लगी रानी उस समय नहा रही थी सरोवर में जैसे ही उसके कानो में वो आवाज पड़ी रानी बहने लगी उस आवाज में

बुलाया बंदी को और पुछा- ये कौन बंसी बजा रहा है जान तो वो गयी थी की वो ही चरवाहा होगा

बंदी आई- हुजुर, एक लड़का है सुबह से आया है कहता है की आपने बुलाया है पर वो ठीक नहीं लगा तो हमने उसे भगा दिया था पर वो ही थोड़ी दूर बंसी बजा रहा है आपकी शान में गुस्ताखी हुई हम अभी उसे कैद में लेते है

संयुक्ता- गुस्ताख, तुम हमारे मेहमान को कैद में लोगी इस से पहले की हमारे क्रोध की जावला में तुम जल जाओ उस चरवाहे को बा अदब हमारे पास लाया जाये और साथ ही उसके भोजन की शाही व्यवस्था की जाए उसे इज्जत केसाथ लाओ अभी रानी दहाड़ी

जैसे ही मोहन को पता चला की रानी ने उसको बुलाया वो खुश होगा राजी राजी आया उसी तालाब के पास जिसमे रानी अठखेलिया कर रही थी मोहन को देख कर रानी मुस्कुराई और बोली- सबको आदेश है की जब तक हम किसी को ना बुलाये कोई नहीं आये यहाँ पर सबसे पहले इसके लिए कुछ खाने का प्रबंध करो

कुछ ही देर में मोहन के लिए तरह तरह के पकवान आ गए जिनका ना नाम सुना उसने ना कभी खाया संयुक्ता ने उसको इशारा किया मोहन ने खाना शुरू किया जल्दी ही उसका पेट भर गया रानी ने पुछा कुछ और उसने मना किया वो मुस्कुराई
संयुक्ता अभी भी पानी में ही थी गर्दन तक पानी में डूबी बोली- क्या नाम है तुम्हारा

मोहन-जी मोहन

“तो मोहन सुनाओ कोई तान जिस से मैं बहक जाऊ मेरे मन को कुछ देर के लिए ही सही एक सुकून सा मिले उस दिन जो तुम बजा रहे थे वो ही बजाओ ऐसे लगता है की जैसे तुम्हारी तान सीधे मेरे दिल में उतरती है ”

मोहन वही तालाब किनारे बैठ गया और उसने छेड़ दी ऐसी मधुर तान की जैसे कान्हा जी के बाद अगर कोई बंसी बजता था तो बस मोहन और कोई नहीं इधर जैसे जैसे मोहन का संगीत अपने श्रेष्ठ की और जा रहा था संयुक्ता की प्यास जागने लगी थी पानी की शीतलता में भी उसका बदन किसी बुखार के रोगी की तरह तपने लगा था जिस्म की प्यास फिर से उसके बदन को झुलसाने लगी थी ऐसा नहीं था की वो कोई चरित्रहीन औरत थी

पर जब से उसने मोहन को देखा था वो अपने आप में नहीं थी
पता नहीं मोहन म ऐसी कौन सी कशिश थी जिसने महारानी संयुक्ता को आकर्षित कर लिया था , रानी को भी अपनी चूत की प्यास में कई दिनों से तड़प रही थी उसने धीरे से अपने निचले होंठ को दांत से काटा और मोहन को आवाज लगाई

“पानी में आ जाओ ”

“जी मैं ” वो थोडा सा सकुचाया

“सुना नहीं हमने क्या कहा ”

अब किसकी मजाल जो राज्य की महारानी को ना करे मोहन ने अपने कपडे उतारे और पानी में आने लगा और जैसे ही संयुक्ता की नजर मोहन के लंड पर पड़ी उसकी आँखों में एक चमक आ गयी

पानी के अन्दर ही रानी ने अपने चोची को भीचा और एक आह भरी अँधेरा होने लगा था ये कैसी कसक थी कैसी प्यास थी तो रानी ने इस काम के लिए मोहन को यहाँ बुलाया था ये जिस्म की प्यास एक महारानी का दिल एक बंजारे पर आ गया था वैसे तो रानी- महारानियो के इस पारकर के शौक होते थे पर क्या एक रानी इस स्तर पर आ गयी थी की उसने एक बंजारे को चुना था चलता हुआ मोहन रानी के बिलकुल सामने ही खडा था इस समय संयुक्ता मोहन की आँखों में देखते हुए मुस्कुराई


और अगले ही पल उसने मोहन के लंड को पानी में पकड लिया मोहन थोडा सा घबराया पर रानी ने उसको आँखे दिखाई अब रानी का क्या पता कब नाराज हो जाये सर धड से अलग करवा दे मोहन चुप हो गया पानी में भी संयुक्ता ने लंड की गर्माहट को मेह्सूस कर लिया था वो बोली- कभी किसी औरत के करीब गए हो कभी किया है



मोहन- नहीं मालकिन



रानी- तो कोरे हो चलो आज तुम्हे स्वर्ग की सैर का अनुभव करवा ही देती हु देखो मोहन मैं जैसा करती हु करने देना वर्ना तुम जानते हो



मोहन से हाँ में सर हिलाया , संयुक्ता ने धीरे धीरे उसके लंड को सहलाना शुरू किया मोहन के लंड को पहली बार किसी औरत ने हाथ लगाया था तो जल्दी ही वो उत्त्जेजित होने लगा जैसे जैसे उसके लंड में तनाव आ रहा था रानी के होंठो पर कुतिली मुस्कान आ रही थी वो जन गयी थी की लंड में बहुत दम है आज वो जी भर के तरपत होंगी मोहन के लंड की मोटाई उसकी कलाई के करीब ही थी रानी अब तेज तेज हाथ चलाने लगी थी उसके लंड पर



“मोहन हमारी छातियो को चुसो ”

वो दोनों अब थोडा सा बाहर को आये पानी अब उसकी कमर था मोहन ने जैसे ही अपने हाथ रानी की चूचियो पर रखे वो तड़प गयी



“आह,थोडा सा जोर से दबाओ ”
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहन ने थोडा सा जोर से दबाया तो रानी को हल्का सा दर्द हुआ पर इस दर्द का भी एक अपना मजा था एक मिठास थी मोहन को भी उत्तेजना चढ़ रही थी वो थोडा जोश में आके रानी के बोबो से खेलने लगा और फिर संयुक्ता के दोनों चूचियो को बारी बारी से चूस रहा था गोरी छातिया लाल सुर्ख होने लगी थी उनके निप्पलस करीब इंच भर बाहर आ गए थे रानी की चूत से रिसकर कामरस तालाब के पानी में मिल रहा था करीब पंद्रह मिनट तक रानी ने उस से अपने बोबे चुस्वाये



अब उसने लंड को आजाद किया और मोहन की करीब आई इतनी करीब की उसकी छातिया मोहन के सीने से दबने लगी मोहन का लंड उसकी चूत पर रगड खाने लगा दोनों की आँखे मिली और संयुक्ता ने अपने सुर्ख गुलाबी होंठो को मोहन के होंठो से लगा लिया और चूमने लगी मोहन को ऐसे लगा की जैसे किसने ने गुलाब की पंखुडियो को सहद में मिला कर उसके मुह में डाल दिया संयुक्ता मोहन के होंठो को तब तक चुस्ती रहीजब तक मोहन के निचले होंठ से खून ना निकल आया उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ रही थी रानी का यौवन आज खिल रहा था उस रात की तरह




चुम्बन के टूटते ही उसने मोहन को शिविर में चलने को कहा दोनों नंगे ही वहा आये रानी के क़यामत हुस्न को देख कर मोहन का लंड ऐंठने लगा जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा ही उतर आई हो धरती पर गोरा बदन भरी छातिया मांस से भरी चिकनी जांघे और बेहद उन्नत गांड उसकी जैसे ही मोहन शिविर में आय उसे अलग की वो गलती से किसी महल में ही आ गया है आलीशान पलंग शानदार बिस्तर संयुक्ता ने मोहन को पलंग पर लिटाया और फिर खुद भी चढ़ गयी



मोहन का काला लंड आसमान की और मुह किये तने था रानी ने उसको अपनी मुट्ठी में लिया और सुपाडे की खाल को निचे किया गुलाबी सुपाडा जो की किसी छोटे आलू की तरह फूला हुआ था बड़ा सुंदर लग रहा था संयुक्ता ने अपने होंठो पर जीभ फेरी और फिर खुद को मोहन के लंड पर झुका लिया जैसे ही लिजलिजी जीभ ने मोहन के सुपाडे को छुआ मोहन की आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी रानी ने एक नजर मोहन पर डाली और फिर मोहन के लंड को चूसने लगी



रानी को पूरा मुह फाड़ना पड़ा तब वो उस सुपाडे को चूस पायी अपने मुह में ले पायी साथ ही वो मोहन के टट्टे भी सहला रही थी मोहन मस्ती के मारे जल्दी ही अपनी टाँगे पटकने लगा मोहन का आधे से ज्यादा लंड जैसे तैसे करने उसने अपने मुह में उतार दिया था बाकि को वो हाथ से सहलाती रही उसकी छातिया मोहन की टांगो पर रगड खा रही थी संयुक्ता पूरी तरह से मोहन के लंड पर टूट पड़ी थी कभी सुपाडे को चुस्ती तो कभी वो उसके टट्टे



साथ ही उसे हैरानी भी हो रही थी की इतनी देर से ये झडा नहीं है रानी की चूत हद से ज्यादा गीली हो गयी थी आज से पहले इतना पानी उसने कभी नहीं छोड़ा था थोड़ी देर और बीती और फिर मोहन का लंड ऐंठने लगा उसकी नसे फूलने लगी रानी समझ गयी थी की ये झड़ने वाला है उसने फिर से सुपाडे को अपने मुह में भर लिया और मोहन के लंड से गाढ़ा सफ़ेद रस रानी के मुह में गिरने लगा एक के बाद क पिचकारिया रानी के गले से होते हुए उसके पेट में जाने लगी



जब उसने वीर्य की छोटी से छोटी बूँद भी गटक ली तब लंड को बाहर निकाला पर उसकी आँखे चमक गयी जब उसें देखा लंड अभी की किसी लकड़ी के डंडे की तरह खड़ा है उसकी चूत तो वैसे ही गीली हो रही थी अपने होंठो पर लगे वीर्य को साफ किया संयुक्ता ने और फिर अपनी टाँगे फैला आकर अपनी चूत मोहन को दिखाई बिना बालो की थोड़ी फूली हुई सी चूत जो एक दम गुलाबी थी बिलकुल किसी ताजा गुलाब की तरह अब कौन कह दे की इस औरत के दो बच्चे है



“मोहन प्यार करो इसे जैसे मैंने तुम्हारे अंग को चूसा है चाटा है ऐसे ही तुम इसे प्यार करो”


मोहन ने अपना सर उसकी टांगो के बीच घुसा दिया उत्त्जेना वश चूत के दोनों होठ फद्फदाये एक नमकीन सी महक मोहन की सांसो में घुलने लगी उसने जैसे ही अपनी जीभ से रानी की चूत को टच किया नमक सा लगा उसको और संयुक्ता के बदन में ऐंठन हुई वो मचली उसने अपनी गांड थोड़ी सी ऊपर उठा दी मोहन की जीभ उसकी चूत पर चलने लगी संयुक्ता की सांसे उफनने लगी

मोहन ने बिलकुल निचे से ऊपर तक जीभ का ससडका मारा तो रानी एक दम से चिल्ला उठी थी उसकी चूत इतना मजा दे रही थी की वो अब क्या कहे उसके चुतड अपने आप थिरकने लगे थे उसके पैर अपने आप फैलते जा रहे थे रानी पूरी तरह से आज उत्तेजित होकर अपनी चूत चत्वा रही थी मोहन गतागत चूत से टपकते पानी को पि रहा था उसे भी अब उसका स्वाद अच्छा लग रहा था साथ ही ये डर भी था की रानी कब नाराज हो जाये क्या पता रानी उसके सर को सहलाए कभी अपने उभारो से खेले उत्त्जेना में उसने अपने बाल खोल दिए थे उसकी साँसे तेज तेज चल रही थी और



तभी रानी का खुद से नियंत्रण समाप्त हो गया उसका बदन झटकने लगा और वो झड़ने लगी अपनी उम्र से आधे लड़के ने संयुक्ता को झाड दिया था वो भी बस पांच मिनट में वो खुद हैरान थी की ऐसा कैसे हो गया कहा गयी उसकी वो काम पिपासा अपनी साँसों को नियंत्रित किया और फिर मोहन के होंठ चूम लिए

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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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अब बस उसे कुछ चाहिए था तो मोहन का लंड उसकी चूत में रानी ने मोहन को बताया की कैसे क्या करना है और अपनी टांगो को फैला लिया मोहन ने अपनी टांगो को रानी की टांगो पर चढ़ाया और अपने लंड को रानी की चूत पर सटा दिया और जैसे ही उसने धक्का मारा वो थोडा जो से मार दिया संयुक्ता को दर्द का अहसास हुआ और अगले ही पल उसकी चूत की पंखुड़िया विपरीत दिशाओ में फैलने लगी उसको दर्द में देख कर मोहन थोडा घबराय और वापिस होने लगा तो रानी ने उसे रोका



“मोहन, होने दो चाहे कितना दर्द पर तुम मत रुकना मैं कितना भी चीखू चिल्लाऊ मुझ पर कोई रहम मत करना बस अपने लंड को जद तक हमारी चूत में पेल दो ”


अब रानी का हुकम सर आँखों पर मोहन ने एक धक्का और लगाया और आधा लंड उसकी चूत में था संयुक्ता ने आज से पहले ऐसा लं कभी नहीं लिया था वो दर्द से दोहरी होने लगी एक महिला अपने से आधे लड़के से चुद रही थी अपने दर्द को दांतों तले दबाये वो ऐसा महसोस कर रही थी जैसे की आज फिर से वो अपने कुंवारे पण को खो रही थी आँखों से आंसू निकल पड़े थे और फिर जैसे ही मोहन ने अगला धक्का लगाया उसका लंड संयुक्ता की बच्चेदानी से जा टकराया पूरा लंड रानी की चूत में जा चूका था



आज पहली बार किसी के लंड ने इतना अन्दर तक टच किया था संयुक्त को मस्ती में बहने लगी वो उसने मोहन के होंठो को अपने होंठो में दबा लिया और चूसने लगी कुछ देर मोहन ऐसे ही रहा और फिर रानी ने उसको धक्के लगाने को कहा हर धक्के के साथ रानी की छातिया बुरी तरह से हिल रही थी



“ओह मोहन रुकना नहीं रुकना नहीं बस यही तो चाहिये था मुझे इसके लिए तो कब से तदप रही हु मैं मोहन आज अपनी बाजुओ में रौंद दे मुझे तोड़ डाल मुझे मसल दे मुझे किसी फूल की तरह आज मेरी सारी आग बुझा दे ओह मोहन आह्ह्ह्ह अआः ”


मोहन जवान पट्ठा आज पहली बार चूत मार रहा था तो वो भी जोश में था दनादन संयुक्ता की चूत की चुदाई शुरू हो गयी रानी हुई बावली जल्दी ही चूत ने लंड को संभाल लिया था तभी मोहन ने खुद रानी की चूची को मोह में भर लिया और उसके निपल को दांतों से काटने लगा मोहन की इस हरकत ने संयुक्ता के बदन में जैसे बिज्ली सी भर दी और वो भी निचे से धक्के लगाने लगी हर एक परहार उसकी बच्चेदानी को छु रहा था आज तक यहाँ कभी राजा साहब भी नहीं पहुच पाए थे



हर धक्के से साथ रानी की चूत में खलबली मच रही थी उसकी उत्त्जेजना उसका मजा बन रही थी और मोहन अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए लंड को अंदर बहार कर रहा था रानी तो जैसे उसकी दीवानी हो गयी थी उसने अपनी बाहों में भर लिया मोहन को दोनों के होठ थूक से सने हुए थे बदन पसीना पसीना हुआ पड़ा था पर दोनों ही चुदाई का भर पुर आनंद ले रहे थे रानी ने अपने पैरो को बेडियो की तरह मोहन की कमर पे लपेट दिया था और चुदने का मजा लूट रही थी



पल पल गुजर रहा था और साथ ही रानी को लगने लगा था की वो बस मंजिल के करीब ही है करीब ही है कुछ देर और बीती रानी अपनी मस्ती के रथ पर सवार थी और ऐसे ही एक झटके के साथ वो जोर से चीलाई और उसकी उत्तेजना ने उसका साथ छोड़ दिया रानी किसी बंदरिया की तरह मोहन से चिपकी पड़ी थी और मोहन उसके गालो को चुमते हुए उसको चोद रहा था रानी आधी बेहोशी में थी आँखे बन पर मोहन नहीं रुक रहा था धक्के पे धक्के दोनों पसीने से तर मोहन ने तबियत से उसको दस पंद्रह मिनट और बजाय और फिर उसकी चूत को अपने रस से भर दिया



दोनों शांत हो गए थे मोहन ने उठाना चाह पर रानी ने उसे ऐसे ही लेटने को कहा करीब आधे घंटे तक वो ऐसे ही एक दुसरे में समाये लेटे रहे फिर मोहन उठा और बाहर मूतने चला गया आज उसने राज्य की महारानी को चोदा था तो सीना थोड़े गर्व से फूल गया था कुछ देर बार रानी भी बाहर आ गयी उसने भी पेशाब किया फिर पानी से खुद को अच्छे से साफ किया और वापिस शिविर में आगये जल्दी ही रानी मोहन की गोदी में बैठी अपनी चूचिया दबवा रही थी मोहन का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था वो धीरे धीरे ऊपर निचे होते हुए चुदाई का खेल खेल रही थी मोहन की भी ये पहली रत थी तो वो तो गरम था ही




संयुक्यता तो जैसे मूर्ति थी हवस की वो कहा पीछे रहेने वाली थी वो भी जब उसे ऐसा मस्त लंड मिला हो आज की रत वो मोहन को हद से क्यादा भोगना चाहती थी और हुआ भी ऐसा ही कभी लंड पे बैठ कर कभी मोहन ने के निचे तो कभी घोड़ी बनके पूरी रात उसने अपनी चूत खूब बजवाई वो जब शांत हुई जब सूरज की किरणों ने दस्तक दे दी थी धरती पर
दोनों जने बुरी तरह से थके हुए एक दुसरे की बगल में पड़े थे संयुक्ता को बुरी तरह निचोड़ दिया था मोहन ने उसकी चूत सूज गयी थी चूचियो पर मोहन के दांतों के निशान थे पर उसके चेहरे पर ज़माने भर का सुकून था जब कुछ शांति हुई तो मोहन ने अपने कपडे पहने और बैठ गया संयुक्ता ने अपनी आँखे खोली



“”तुमने हमे बहुत बड़ा सुख प्रदान किया है मोहन मांगो क्या मांगते हो हम बहुत खुश है ”


“घनो आभार! रानी साहिबा थारी दया सु सब चोखो है मेरी कोई आस ना ”


“कुछ तो तुम्हारे मन में होगा , सोना चांदी जवाहरात, जमीन-जायदाद जो तुम मांगो बस कहने की देर है एक पल में सब तुम्हारा हो जायेगा ”


“बस थारी कृपा रहे इतनी सी आस ”


“ठीक है मोहन पर हम तुम्हे वचन देते है की तुम्हारी एक चाह हम हमेशा पूरी करेंगे जब भी तुम कहोंगे हमारे दरवाजे हमेशा तुम्हारे लिए खुले रहेंगे ”


“”आभार, रानी सा “


तीन दिन तक संयुक्ता ने खूब खेला मोहन के साथ अपने जिस्म की आग को खूब शांत किया पर ये आग जितना इसको बुझाओ उतना भड़के ऊपर से उसके हाथ मोहन जैसा नोजवान लग गया था संयुक्ता तो जैसे मोहन की जवानी का कतरा कतरा ही पी जाना चाहती थी पर जल्दी ही महाराज का संदेसा आ गया तो उसकी मज़बूरी हो गयी वहा से जाने की पर उसने मोहन से वादा किया की वो आती रहा करेगी उसकी बंसी सुनने के लिए
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Re: Incest -प्रीत का रंग गुलाबी

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मोहन ने भी अपने डेरे की राह पकड़ी राह में वो उसी कीकर के पेड़ के निचे रुका तो उसे मोहिनी की याद आई उसने आवाज लगाई “मोहिनी ”


पर कुछ नहीं एक पल के बाद आवाज खामोश हो गयी उसने फिर आवाज लगाई पर फिर से वो बस चलने को ही था की जैसे उसे किसी ने पुकारा “मोहन ”


उसने पलट के देखा तो मोहिनी उसकी तरफ आ रही थी चलते हुए“ मोहन को जैसे करार सा आ गया ”


“मोहिनी ”


”मोहन ”

“पुरे तीन दिन हुए तुम आये क्यों नहीं ”

“वो मैं थोडा व्यस्त था ”

“कोई बात नहीं , प्यास लगी है ”


“लगी तो है पर आज मैं तुम्हारे हाथो से पानी पियूँगा ” बोला मोहन



मोहिनी मुस्कुराई, उसकी मुस्कान सीधे मोहन के दिल में उतर गयी वो घुटनों के बल बैठा मोहिनी ने मश्क खोली और उसको पानी मिलाना शुरू किया एक बार फिर से वो ही जाना पहचाना मीठा स्वाद उसके गले उतरने लगा उसने फिर सर हिलाके बताया की बस हो गया दोनों उसी कीकर के पेड़ के निचे बैठ गए



“तुम रोज आती हो ”


“हां “


” क्या मैं तुमसे मिलने आ जाया करू ”


“मोहन, ये भी कोई कहने की बात है तुम जब चाहो मुझे मिलने आस सकते हो तुम तीन बार मुझे आवाज लगाना बस तीन बार मैं आ जाउंगी और यदि तीन बार आवाज के पश्चात् मैं ना आई तो समझ लेना उस दिन मैं इधर नहीं आई ”


“आभार ”


मोहिनी मुस्कुराई मोहन की सादगी पर ये कैसी कशिश थी जो वो खिची चली आती थी मोहन की तरफ उसकी बंसी की तान पर जैसे थिरक उठने को जी करता था



“मोहन तुम्हारे लिए कुछ लायी हु ” उसने अपने झोले से कुछ निकाला और मोहन की तरफ किया कोई मिठाई सी थी
मोहन ने जैसे ही चखा , ऐसा स्वाद तो उसने पहले कभी नहीं चखा था रानी ने उसके लिए हजारो पकवान बनाये थे पर ऐसा स्वाद तो वहा भी नहीं था पेटभर गया उसका मोहिनी के चेहरे पर सुकून था



“तुम्हारे घर में कौन कौन है मोहिनी ”


“माँ, बाबा और मैं ”


फिर मोहान ने उसे अपनेबारे में बताया और अपने डेरे के बारे में मोहिनी एकटक उसकी हर बात सुनती रही
“तो तुम बीन क्यों नहीं बजाते मोहन घरवालो की बात तो माननी चाहिए ना ”


“मेरा जी नहीं करता , मुझे तो बस अपनी इस बंसी से ही लगाव है कभी कभी खुद को बहुत अकेला महसूस करता हु तो ये ही मेरा सहारा होती है यही मेरी दोस्त है ”


मोहिनी मुस्कुराई फिर बोली- मोहन मेरे जाने का समय है गया है मैं जल्दी ही फिर मिलूंगी



मोहन ने हां कहा और उसे जाते हुए देखता रहा और फिर अपने डेरे में चला गया



“भाई , कहा गायब थे तुम हम सबको चिंता हो रही थी ”


“बताया ना की कुछ जड़ी लेने गया था ”


“पर आये तो खाली हाथ हो ”


“मिली नहीं ”

इधर संयुक्ता महल तो आ गयी थी पर उसका जी लग नहीं रहा था हर पल पल प्ल उसको बस मोहन ही दिखे मोहन का खयाल आते ही उसकी चूत में खुजली मचनी शुरू हो जाती थी महाराज नियमित रूप से उसको चोदते थे पर अब उसे बस एक ऊब होती थी उसे तो बस कुछ भी करके मोहन का लंड चाहिए था पर वो करे तो क्या करे कैसे मिले मोहन से हालाँकि उसके एक इशारे पर मोहन उसके सामने होता पर वो एक औरत होने के साथ साथ एक महारानी भी थी तो हर तरह से उसको सोचना था




ऊपर से उसके जिस्म की आग जो हर समय सुलगी रहती थी जिसे महाराज का लंड बुझा नहीं पाता था उसने महराज से बेफवाई कर ली थी अपने आस पास के हर मर्द में उसे बस मोहन ही दीखता काम पिपासी रानी संयुक्ता अगन में जलने लगी थी पल पल इधर हफ्तेभर से ऊपर हो गया था मोहिनी आई नहीं थी मोहन की बेचैनी बढ़ी हर पल उसकी आँखे बस मोहिनी को ही ढूंढें पर वो नाजाने कहा थी हार कर वापिस वो अपने डेरे में आ जाता था



इधर चकोर के बदन की गर्मी भी बढ़ने लगी थी पर वो सीधा सीधा मोहन को तो बोल नहीं सकती थी की मेरी प्यास बुझा दे हालाँकि वो अपने लटके झटके दिखा कर उसे आभास पूरा करवा रही थी सबकी अपनी अपनी प्रीत थी सबकी अपनी अपनी हवस थी आसमान में तारे खिले हुए थे पर उसकी आखो से नींद कोसो दूर थी बस मोहिनी ही उसके विचारो में थी



थोड़ी प्यास सी लग आई थी उसे वो पानी पीकर आया ही था की उसे लगा की झोपडी के पीछे कोई है वो दबे पाँव गया तो देखा की चकोर खड़ी है और खिड़की से अंदर झांक रही है वो उसके पास गया पर चकोर को कोई फर्क नहीं पड़ा उसने देखा की अंदर उसके माँ-बाप लालटेन की हलकी सी रौशनी में चुदाई कर रहे है मोहन का लंड झट से खड़ा हो गया जो सीधा चकोर के चूतडो पर जा टकराया चकोर ने अपनी गांड को थोड़ी सी पीछे किया
मोहन का शैतानी लंड चकोर की गांड पर दस्तक दे रहा था चकोर की गर्दन के पिछले हिस्से से पसीना बह चला वो अहिस्ता से अपनी गांड को मोहन के लंड पर रगड़ने लगी अन्दर का नजारा देख कर दोनों भाई बहन गरम होने लगे थे मोहन ने जीजी की कमर को थाम लिया उसके हाथ कुरते के अन्दर से होकर उसके नाजुक नर्म हलके से फुले हुए पेट को सहलाने लगे थे



चकोर मोहन की बाहों में पिघलने लगी थी मोहन की प्यास तो संयुक्ता ने भड़का दी थी वो खुद चूत के लिए तड़प रहा था दोनों की आँखे बस अपने माँ-बाप पे ही लगी थी चकोर को पता ही नहीं चला की कब मोहन उसकी छातियो को सहलाने लगा था उसके चुचक कड़े होने लगे थे होंठो से हलकी हलकी आवाज निकल रही थी



और तभी वो पलती और अपने सुर्ख होंठो को मोहन के होंठो से जोड़ दिए दोनों एक दुसरे का रस पान करने लगे चकोर किसी बेल की तरह मोहन से लिपट गयी थी चकोर ने उसे कुछ कहा और फिर दोनों चकोर की झोपडी में आ गए अन्दर आते ही मोहन ने अपनी बहन को बाँहों में भर लिया उसके बदन से खेलने लगा



उसने चकोर के होंठो को खूब चूमा फिर उसने चकोर की कुर्ती को उतार फेंका अपनी बहन की चूचियो पर टूट पड़ा वो आखिर संयुक्ता ने जो उसे ये सब सिखाया था जैसे ही अपने भाई के होंठो को चूची पर पाया चकोर किसी सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी उसकी चूत गीली बहुत गीली होने लगी


कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
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