नजर का खोट complete

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jay
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Re: नजर का खोट

Post by jay »

mazedar
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

jay wrote:mazedar

Thank you sooooooooooooo much
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

मैंने ठाकुर की आँखों में गुस्सा देखा शायद उसे मेरी बात चुभ गयी थी



ठाकुर- पर तू भूल गया की बलि या तो जयसिंह गढ़ का कोई चढ़ा सके है या देव गढ़ का और देव गढ़ में कहा शूरवीर जो चुनोती दे सके अब परम्परा थोड़ी ना तोड़ी जा सके है



मैं- चुनोती तो दी गयी और अंगार ने मंजूर की अब ये पीछे हटे तो थू है इसकी मर्दानगी पर और सौगंध है मुझे जहा जहा हाथ लगाने को कहा था इसने उसके वो अंग बदन से अलग कर दूंगा



तभी जोरो से बिजली कडकी मैंने पूजा का हाथ थामा और दुसरे हाथ से साइकिल ली और आगे बढ़ गया किसी ने भी रोकने की कोशिश नहीं की पल पल बरसात बढती जा रही थी और मेरे कलेजे की आग जो धधक रही थी बरसात भी उसे भिगो नहीं सकती थी पुरे रस्ते मैंने और पूजा ने कोई बात नहीं की उसके घर आने के बाद अमिने उसका सामान रखा और वापिस मुड गया तो उसने आवाज लगायी



पूजा- कहा जा रहा कुंदन



मैं- घर



वो- मोसम खराब है अन्दर आजा



मैं- फिर कभी



वो- कुंदन मैंने कहा अन्दर आ जा



मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था मैं कुछ देर खड़ा रहा फिर अन्दर गया पूजा ने मुझे तौलिया दिया और बोली- तुम बहुत भीगे हुए हो पोंछ लो



मैं चुप रहा वो मेरे पास ही बैठ गयी और बोली- मेरी गलती है मुझे तुझे ले जाना ही नहीं चाहिए था
मैं कुछ नहीं बोला



वो- और क्या जरुरत थी इतना हंगामा करने की वो तुझे कुछ बोला था क्या



मैं- पर तुझे तो बोला था न



वो- तो तेरा क्या लेना था मैं चल पड़ी थी न चुप चाप


मैं- पर उठा लेगा क्या



वो- इतना मत सोच कुंदन लडकियों को ये सब तो झलना ही पड़ता है न, और फिर आदत सी हो जाती है



मैं- आदत बदल ले मेरे रहते कोई ऐसा कर जाये कुंदन प थू है फिर तो



वो- तुझे मेरी जिंदगी में आये ही कितने दिन हुए है तेरे बगैर भी तो मैं जीती थी ना अकेले और अकेली लड़की खुली तिजोरी की तरह होती है कुंदन ये डर हमेशा रहेगा पर तुझे पंगा लेने की क्या जरुरत थी आखिर तू मेरा है ही कौन



मैं- कोई ना हु तेरा पर वो उठा लेगा क्या


वो- तुझे कोई फरक नहीं पड़ना चाहिए



मैं- फरक पड़ता है और अनहि पड़ता तो क्यों कसम दी तूने उस वक़्त वर्ना वही उसकी छाती चीर देता
वो- जान बचा रही थी तेरी, मुर्ख, जयसिंह गढ़ से तेरी लाश ही आती फिर



मैं- मर जाने देती ऐसी शर्मिंदी तो ना होती न



वो- तूने क्या सोच कर बलि की चुनोती दी तुझे पता भी है



मैं- पता है और कुंदन का वादा है तुझसे की अंगार के खून से तेरे पैर अगर नहीं धोये ना तो कुंदन तुझे कभी अपनी शकल नहीं दिखायेगा पूजा माना मैं तेरा कोई नहीं लगता पर मेरे सामने कोई तुझे ऐसे बोले पूजा मैं तो मर ही गया मैंने रोते हुए उसके आगे हाथ जोड़ दिए



बाहर बारिश का तेज शोर था पर अन्दर कमरे में ख़ामोशी थी फिर उस ख़ामोशी को तोड़ते हुए वो बोली- कुंदन तुझे चुनोती नहीं देनी चाहिए थी जबकि तुझे पता है एक के मरने पर ही दूसरा बली देगा



मैं- तो मरने दे आखिर मैं हु ही कौन



पूजा ने उसी पल मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे कान में बोली- सबकुछ



उसकी आँखों से गर्म आंसू टपक कर मेरे गालो पर गिरने लगे एक दुसरे की बाहों म बस हम दोनों पता नहीं कितनी देर तक रोते रहे कुछ ख्याल आया तो वो मुझसे अलग हुई उअर बोली- ठाकुर, जगन सिंह मेरे चाचा है कुंदन



मैं- तो फिर तू जब चुप क्यों रही तूने उनको बताया क्यों नहीं की अंगार ने उनकी बेटी के साथ बदतमीजी की



वो- बेटी होती तो यहाँ थोड़ी ना होती मैं



मैं- एक दिन आएगा जब तू उसी हवेली में रहेगी पूजा आज तू बड़ी हसरत से उस हवेली को देख रही थी पर एक दिन आएगा जब वो हवेली पलके बिछाए तेरा इंतजार करेगी



वो- छोड़ इन बातो को बारिश पता नहीं कब रुकेगी मैं खाना बनाती हु बता क्या खायेगा



मैं- जो तेरा दिल करे
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

वो बस मुस्कुरा दी और खाना बनाने लगी मैं उसके पास चूल्हे की दूसरी तरफ बैठ गया



वो- क्या देख रहा है



मैं- तुझे



वो- क्यों



मैं- बस ऐसे ही



वो- ऐसे ही मत देख



मैं- एक बात पुछु



वो- नहीं मैंने पहले ही मना किया था तुझे



मैं- मैं बस इतना पूछना चाहता था की तूने चेहरे पे दुपट्टा क्यों डाला था वहा पे



वो- बस यु ही

मैं- सो जाऊ थोड़ी देर

वो- रोटी खाके सोना

मैं- थोडा थक गया हु पता है मेरे घर में मेरी कोई इज्जत नहीं है बस मेरी भाभी है मुझे समझती है बाकि बस एक नौकर जैसा हु मैं

वो- पर तेरे अपने तेरे पास तो है ना

मैं- काश मैं ऐसा कह सकता

वो- कुंदन जो है ठीक है पर तूने मेरे दिल पर बोझ कर दिया है

मैं-कैसा बोझ

वो- मुझे फिकर हो रही है अगर तुझे कुछ हो गया तो

मैं- हो भी जाये तो क्या हुआ हम कौन से तुम्हारे अपने है राह का पत्थर समझ कर भूल जाना

वो- अब ऐसा मत बोल

मैं- क्या फर्क पड़ता है पूजा छोड़ इन सब बातो को ला रोटी डाल थाली में भूख लगी है जोरो से

वो- हां, बाबा

उसके हाथो में सच जादू सा ही था पूरी पांच रोटिया खा चूका था पर फिर भी मन नहीं भरा था बाहर सावन ने जैसे आज कसम ही खा ली थी की सारा पानी का भंडार आज ही खाली करके मानेगा खाने- पीने के बाद अं बस सो जाना चाहता था पर मेरी मज़बूरी थी की कपडे मेरे गीले थे और उनको पहने पहने मैं सोता कैसे

और कपडे ना उतारता तो तबियत ख़राब होनी थी पक्की तो मैंने सोचा की बरामदे में अलाव जला कर बैठ जाता हु उससे गर्मी भी मिलेगी और पूजा के आगे शर्मिंदा भी नहीं होना पड़ेगा बाकि नींद का क्या तो मैंने आग जला ली और उसके पास बैठ गया थोड़ी देर में वो आई

पूजा- अरे यहाँ अलाव क्यों जलाया सोना नहीं है क्या

मैंने उसी अपनी मज़बूरी बताई

वो- बस इतनी सी बात एक काम कर कपडे उतार के सीधा कम्बल में घुस जा फिर मैं तेरे कपडे सूखने के लिए डाल दूंगी तब तक तू तौलिया से काम चला

मैं- रहने दे

वो- क्या रहने दे वैसे ही भीगा हुआ है और ठण्ड लगी तो बुखार हो जाना है पर पहले ये गरम दूध पी ले

मैंने गिलास अपने हाथ में लिया और बोला- पर पूजा

वो- पर वर कुछ नहीं मैं भी थोडा थक सी गयी हु आज तो बस बिस्तर पकड़ना चाहती हु

तो फिर दूध पीने के बाद मैंने कपडे उसको दिए और तौलिए में ही बिस्तर में घुस गया उसने अपनी चारपाई मेरे पास ही बिछा ली और किवाड़ कर दिया बंद गर्म कम्बल बदन को बहुत सुकून दे रहा था ऊपर से थकन तो पता नहीं कब नींद आ गयी रात को पता नहीं क्या समय हुआ था पेशाब की वजह से मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की पूजा अपनी चारपाई पर नहीं थी

कम्बल लपेटे मैं बाहर आया तो मेह अभी भी बरस रहा था मैंने देखा दूर दूर तक बरसात के शोर के अलावा अगर कुछ था तो बस अँधेरा घना अँधेरा मैं मूत कर आया तो देखा वो बिस्तर पर थी मैं सोचा पानी- पेशाब गयी होगी तो मैं भी फिर सो गया सुबह उठने में थोड़ी दे सी हो गयी थी तो देखा की दूसरी चारपाई पर मेरे कपडे रखे थे एकदम सूखे मैं पहन कर बाहर आया

बरसात थम गयी थी पर हर जगह कीच हो रखा था मैंने पूजा को देखा पर वो थी नहीं और ना उसके पशु तो मैंने सोचा की वो चराने या उनको पानी पिलाने गयी होगी मैं क नजर घडी पर डाली 9 से ऊपर हो रहे थे कुछ देर उसका इंतजार किया और जब वो नहीं आई तो मैं अपनी साइकिल लेके गाँव की तरफ हो लिया आधे घंटे बाद मैं अपने कमरे में जा रहा था की मैंने माँ सा और भाभी की बाते सुनी

माँ- जस्सी, चार साल हो गए तेरे ब्याह को पर अभी तक पोते का मुह नहीं देख पाई हु मैं माना की तेरा पति फौजी है पर फौजियों के भी औलादे तो होती हैं ना

भाभी- माँ, जब भी वो आते है हम कोशिश करते है

माँ- तो फिर होता क्यों नहीं देख मेरी बात सुन ले कान खोल कर तू भी और आने दे इन्दर को मैं उसको भी समझती हु मुझे जल्दी से जल्दी खुशखबरी चाहिए

भाभी- जी माँ

तभी माँ की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने ताना मारा- आ गए लाटसाहब अगर आवारगी से फुर्सत मिल गयी हो तो जरा भैंसों के लिए खल की बोरिया ले आना याद से और कुछ घर के काम है वो भी आज के आज ही निपटा देना

मैं- जी माँ सा

मैं- भाभी भूख लगी है मेरा खाना चौबारे में ही ले आओ ना

माँ- काम कुछ होता नहीं भूख दिन में चार टाइम लगती है साहब को अरे हमारी नहीं तो खाने की ही इज्जत करो जितना खाते हो उतना काम तो किया करो

माँ की बाते सुनके मन खट्टा हो गया

मैं- भाभी रहने दो पेट भर गया मैं काम निपटा के आता हु

माँ- नखरे देखो तो सही दो बात नहीं सुनेंगे अरे इतना ही नखरा है तो दो पैसे कमा के दिखा पहले पेट भर गया

मैंने अपना माथा पीट लिया यार जब घर वाले ऐसे है तो दुश्मन बाहर ढूंढने की क्या जरुरत है सोचते सोचते मैं घर से बाहर निकल गया तो चंदा चाची घर के बाहर ही थी

मैं- क्या बात है चाची दुरी सी बना ली

वो- कहा रे, तू ही रमता जोगी बना फिर रहा है कल रात कहा था

मैं- रात की जाने दो कहो तो वो काम दिन में कर दू

चाची – चुप बदमाश

मैं- ठीक है रात को मिलते है फिर

वो- आज मैं कुवे पर ना जाउंगी

मैं- कोई बात न मैं छत से आ जाऊंगा पर अभी भी हो सकता है आप कहो तो

वो- नहीं तेरी माँ आने वाली है अभी लाल मिर्चे पीसनी है आज

मैं- रात को तैयार रहना

ये कहकर मैंने चाची को आँख मारी और फिर आगे बढ़ गया करीब दो घंटे बाद मैं सारे काम जो की गैर जरुरी थे वो निपटा कर आया तो माँ सा घर पर नहीं थी भाभी मेरे कमरे में ही थी गाने सुन रही थी
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Re: नजर का खोट

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भाभी- आ गये मैं खाना लाती हु

मैं- रहने दो भाभी अड्डे पे चाय समोसा खाकर आया हु

वो- ये बढ़िया है खैर

मैं- वो सब जाने दो पर य बताओ माँ क्या बोल रही थी आपको

और भाभी के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी

भाभी- की बाते हो रही थी बस ऐसे ही रोजमर्रा की



मैं- मैंने सब सुन लिया था भाभी वैसे तो ये आपका निजी मामला है पर मुझे माँ की बातो का बुरा लगा



वो- मुझे कुछ काम याद आ गया मैं बाद में मिलती हु



भाभी बाहर चली गयी पता नहीं क्यों मैंने उनको रोका नहीं तो बस गाने सुनते सुनते कब आँख लग गयी पता नहीं चला फिर मैं जब उठा तो बाहर हल्का हल्का अँधेरा हो रहा था मैंने हाथ मुह धोया और निचे गया तो बैठक में गाँव के कुछ लोग और बैठे थे माहौल कुछ गंभीर सा था मैंने सबको रामरमी की और वापिस अन्दर आ गया मैंने भाभी से पूछा तो पता चला की जयसिंह गढ़ से कारिन्दा संदेसा दे गया था की लाल मंदिर पर अगली अमावस को चुनोती स्वीकार हुई है



चूँकि ये चुनौती बस इन दोनों गाँवो के लोग ही दे सकते थे और देव गढ़ की और से कौन चुनोती दे आया वो भी बिना राणाजी को बताये ये चर्चा जरुर हुई होगी मैं सोच रहा था की राणाजी को बता दू या नहीं वैसे देखा जाए तो बताना बहुत जरुरी था क्योंकि जल्दी ही उनको पता चल ही जाना था मुझे डर भी था की पता नहीं वो क्या करेंगे जब उनको पता चलेगा की उनके अपने बेटे ने ये काम किया है



काफी सोच कर मैंने निर्णय लिया की सुबह होते ही मैं उन्हें अवश्य बता दूंगा वैसे भी अब चुनोती से पीछे कदम तो नहीं उठा सकता मैं , अपने पलंग पर बैठे मैं बस लाल मंदिर की चुनोती के उन किस्सों के बारे में सोचने लगा जो गाँव में मैंने बड़े बुजुर्गो से सुने थे की कैसे कैसे लोग थे वो जिन्होंने ये बीड़ा उठाया था और अगली अमावस को मैं भी उन लोगो में शामिल हो जाने वाला था अगर जीता तो



लोगो की नजर में यहाँ दांव पर जीवन लगता था परन्तु मैंने यहाँ पर कोई दांव नहीं लगाया था सच तो ये था की मुझ फ़क़ीर के पास था ही क्या जो मैं दांव पे लगाता मेरे लिए ये चुनोती थी सम्मान की पूजा के सम्मान की मना कोई लाख दबंग हो पर मजलूमों का भी सम्मान होता है हर इन्सान को इस खुली हवा में साँस लेने की आजादी हो चाहे वो जुम्मन हो या पूजा सब अपने ही तो है फिर किस पर ये दबंगई और किस पर ये जोर



और जोर भी कैसा अपने अहंकार का , खैर बड़ी ख़ामोशी से मैंने अपना खाना खाया भाभी से बात करना चाहता था पर वो व्यस्त थी तो हमने भी बस चादर ओढली ख़ामोशी की और कर दिया खुद को हवाले अपनी अधूरी हसरतो के , वो हसरते जो असल में क्या थी मैं नहीं जानता था जैसे एक अधूरापन सा ,दिल में अचानक से उठ गयी एक टीस जैसे की इस पूरी दुनिया से बगावत कर जाऊ कभी कभी तो लगता था की बस सर ही फोड़ लू पत्थरों से आखिर ये कैसा सूनापन था मुझमे जो मुझे तमाम लोगो से अलग कर देता था



पता नहीं कब घर की चहल पहल ख़ामोशी में तब्दील हो गयी सब लोग सो चुके थे मैंने अपने कमरे की बत्ती बुझाई और एक बार जायजा लिया उसके बाद मैं छत की दूसरी तरफ गया और दिवार चढ़ क चाची की छत पर चढ़ गया वहा से लटक के जैसे तैसे उतरा और फिर निचे चला गया पुरे घर में अँधेरा था बस एक ही कमरे में बत्ती जल रही थी तो मैं उधर ही गया और जाके देखा तो बस
देखता ही रह गया चाची क्या लग रही थी जी किया की अभी अपने आगोश में भर लू पर उसने मुझे बैठने का इशारा किया और बोली- कुंदन तूने एक बात सुनी



मैं- क्या चाची



वो- लाल मंदिर की चुनोती स्वीकार हुई है अब बरसो बाद पता नहीं माता के मन में क्या आई अब न जाने किसकी बलि लेगी मैंने सुना अपने गाँव का कोई गया था चुनोती देने पता नहीं कौन है वो बदनसीब जिसने मौत को गले लगाने की सोची क्योंकि हार-जीत तो एक की मौत के बाद ही होगी मैं तो दुआ कर रही हु की राणाजी इस प्रथा को ही बंद कर दे



मैं- मैं चाची अब चुनौती दी है तो अब तो संग्राम होकर ही रहेगा



वो- तुझे नहीं पता कुंदन तूने कभी देखि नहीं पर मैंने देखा है वो विध्वंस पल पल दिल घबराता है कलेजे का साथ छोड़ देती है धड़कने लोग चीखते है चिल्लाते है कुछ बेहोश हो जाते है दो लोग गिरते है उठते है खून बरसता है और किसी एक को प्राण त्यागने पड़ते है



मैं- मैंने सुना बारह साल से किसी ने लाल मंदिर की चुनोती ना दी अगर दी तो सामने वाले ने स्वीकार ना की



चाची- हा सही सुना तूने मेरे तो हाथ पैर ही ठन्डे हो गए ये खबर सुनकर पता नहीं उस बदनसीब के घर वालो पर क्या बीतेगी जब ये बिजली उन पर टूटेगी



मैं- चाची एक बात कहू



वो- हां



मैं- चाची मैंने दी है ये चुनौती



................................................................................... चाची का मुह खुला का खुला रह गया और कमरे में कुछ पलो के लिए गहरा सन्नाटा छा गया



और फिर “तड़क तड़क ” चाची के दो चार तमाचे खीच कर मेरे चेहरे के भूगोल पर पड़े
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