नजर का खोट complete

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Kamini
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Re: नजर का खोट

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किसी ने मेरी पीठ पर धौल सी जमाई और मैं आगे को गिर पड़ा पीठ में वैसे ही चोट लगी हुई थी तो गुस्सा सा आ गया कुछ कठोर शब्द बोलते हुए मैंने पीछे देखा और पल में ही मेरा गुस्सा गायब सा हो गया मैंने देखा पीछे पूजा मुस्कुरा रही थी



“तुम यहाँ , यहाँ क्या कर रही वो ”


“ढोर चराने निकली थी तो तुमको देखा तुम् बताओ यहाँ कैसे ”


“कुछ नहीं बस ऐसे ही ”


“ऐसे ही कोई कही नहीं जाता और खास कर इन बियाबान में ”


“अब क्या बताऊ पूजा एक आफत सी मोल ले ली है तो उसी सिलसिले में आना पड़ा ” और फिर मैंने पूजा को पूरी बात बता दी



“इस जमीन पर खेती करना तो बहुत ही मुश्किल है कुंदन इसको समतल करने में ही बहुत समय जायेगा तो फसल कब होगी ”


“अब जो भी हो कोशिश तो करूँगा ही वैसे तू कहा चली गयी थी सुबह ”


“काम करने पड़ते है अब तेरी तरह तो हु नहीं ”


“मेरी तरह से क्या मतलब तेरा ”
“कुछ नहीं ”
“तू सारा दिन ऐसे ही घुमती रहती है वो भी अकेले मेरा मतलब ”


“अब कोई है नहीं तो अकेले ही रहूंगी ना और तेरे मतलब की बात ये है की इस इलाके में सब लोग पह्चानते है तो कोई परेशानी नहीं होती और मैं चोधरियो की बेटी हु इतना सामर्थ्य तो है मुझमे ”


“पूजा, पता नहीं क्यों तेरी बातो से ऐसा लगता है की बरसो की पहचान है तुझसे ”


“ऐसा क्यों कुंदन ”


“पता नहीं पर बस लगता है ”


“चल बाते ना बना ढोर दूर चले गए होंगे मैं चलती हु ”


“रुक मैं भी आता हु वैसे भी मुझे अब घर ही जाना है ”


पूजा से बात करते करते हम वहा से चलते चलते उसके घर की तरफ आ गए उसने अपने जानवरों को बाँधा और फिर मैं उसके साथ उस तरफ आ गया जहा पर एक बहुत बड़ा बड का पेड़ था



“कुंदन, ये पेड़ मेरे दादा का लगाया हुआ है ”


“क्या बात कर रहा रही है ”


“सच में ”


“आजा तुझे चाय पिलाती हु ”
मैं और वो घर में उस तरफ आ गए जहा चूल्हा था उसने आग जलाई मैं पास ही बैठ गया थोड़ी देर में ही उसने चाय बना ली एक गिलास में मुझको दी और एक में खुद डाल ली



मैं – पूजा भूख सी लग आई है तो अगर एक रोटी मिल जाती तो



वो- हा, रुक अभी लाती हु



वो एक छाबड़ी सी ली और उसमे से कपडे में लपेटी हुई रोटिया निकाली और एक रोटी मेरे हाथ में रख दी वो रोटी मेरे घर जैसी घी में चुपड़ी हुई नहीं थी पर उसमे जो महक थी वो अलग थी मैंने बस एक निवाला खाया और मैं जान गया की स्वाद किसे कहते है



चाय की चुस्की लेते हुए मेरे होंठो पर एक मुस्कान सी आ गयी थी थोड़ी और बातो के बाद मैंने पूजा से विदा ली और गाँव की तरफ चल पड़ा पर मेरे कंधे झुके हुए थे राणाजी ने अपने बेटे को हराने की तयारी कर ली थी मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी की मैं कैसे उगा पाउँगा फसल इस जमीन पर सोचते विचारते मैं कब घर आ गया पता नहीं चला



मैं चौबारे में जाकर बिस्तर पर लेट गया सांझ ढलने को ही थी मैं सोच विचार में मगन था की भाभी आ गयी हरी सलवार और सफ़ेद सूट में क्या गजब लग रही थी ऊपर से फिटिंग जोरदार होंठो पर लाल सुर्ख लिपस्टिक मांग में सिंदूर हाथो में कई सारी चुडिया जैसे आसमान से कोई सुन्दरी ही उतर आई हो



“आज तो क्या गजब लग रही हो भाभी इतनी भी बिजलिया ना गिराया करो ”


“अच्छा जी मुझे तो कही नहीं दिख रहे झुलसे हुए पता है मैं कब से राह देख रही हु तुम्हारी ”


मैं- क्यों भाभी



भाभी- अरे आज, वो पीर साहब की मजार पर दिया जलाने चलना है तू भूल गया क्या



मैं-ओह आज जुम्में की शाम है क्या



भाभी- तुझे इतना भी याद नहीं क्या



जुम्मे की शाम तभी मुझे कुछ याद आया उसने कहा था की वो जुम्मे की शाम पीर साहब की मजार पर जाती है तो मैं एक दम से उछल सा पड़ा “भाभी एक मिनट रुको मैं अभी आता हु ”


मैंने जल्दी से अपने नए वाले कपडे पहने और बालो में कंघी मार कर भाभी के सामने तैयार था
भाभी- हम मजार पे ही जा रहे है न सजे तो ऐसे हो की तुम्हारे लिए बिन्द्नी देखने जा रहे है



मैं- क्या भाभी आप भी आओ देर हो रही है



चूँकि भाभी साथ थी तो मैंने जीप स्टार्ट की और फिर चल दिए पीर साहब की तरफ जो की गाँव की बनी में थी हम जल्दी ही वहा पहुच गए भाभी दिया जलाने को अन्दर चली गयी मैं रुक गया दरअसल मेरी आँखे बस तलाशने लगी उसको जिससे मिलने की बहुत आस थी और जो दूर से देखा जो उसे दिल झूम सा गया सफ़ेद सूट सलवार में सर पर हमेशा की तरह ओढा हुआ वो सलीकेदार दुपट्टा



होंठ उसके हलके हलके कांप रहे थे जैसे की खुद से बाते कर रही हो मैंने सर पर कपडा बाँधा और उसकी तरफ चल पड़ा फेरी लगा रही थी वो और जल्दी ही आमना सामना हुआ उस से जिसकी एक झलक के लिए हम कुर्बान तक हो जाने को मंजूर थे नजरो को झुका कर सबसे नजरे बचा कर उसने इस्तकबाल किया हमारा तो हमने भी हलके से मुस्कुरा कर जवाब दिया



सुना तो बहुत था की बातो के लिए जुबान का होना जरुरी नहीं पर समझ आज आया था की क्यों फेरी लगाते हुए बार बार आमने सामने आये हम फिर वो बढ़ गयी धागा बाँधने को तो मैं उसके पास खड़ा हो गया पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई वो बहुत धीमे से बोली “”परिंदों के दाना खाने पे “ और उस तरफबढ़ गयी



मैं दो पल रुका और फिर चला तो देखा की वो अकेली ही थी उस तरफ बिखरे दानो को समेट रही थी तो मैं भी समेटने लगा



वो- आज आये क्यों नहीं



मैं- जी वो कुछ कम हो गया था



वो- हम राह देख रहे थे आपकी



मैं- वो क्यों भला



वो- बस उसी तरह जैसे आप आते जाते हमारे छज्जे को तकते है



मैं- वो तो बस ऐसे ही



वो- तो हम भी बस ऐसे ही



और हम दोनों मुस्कुरा पड़े , कसम से उसको ऐसे हँसते देखा तो ऐसे लगा की जैसे दुनिया कही है तो यही है



वो- आप ऐसे बार बार हमारी कक्षा में चक्कर ना लगाया करे हमारी सहेलिया मजाक उड़ा रही थी



मैं- पता नहीं मेरा मन बार बार क्यों ले जाता है उस और



वो- मन तो बावरा है उसकी ना सुना करे



मैं- तो आप ही बता दे किसकी सुनु



वो मेरे पास आई और बोली- किसी की भी नहीं



मैं- एक बात कहू



वो- हां,



मैं- क्या आपको भी कुछ ऐसा ही महसूस होता है



वो- कैसा जनाब



मैं- जो मुझे महसूस होता है



वो- मैं जैसे जानू, आपको क्या महसूस होता है



मैं- वो मुझे वो मुझे पर . बात अधूरी ही रह गयी



“तो यहाँ हो तुम ....................... ”
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »

लगभग एक ही समय हम दोनों ने उस आवाज की तरफ देखा तो वहा पर एक लड़की थी जो शायद उसे बुला रही थी तो बिना देखे वो उसकी तरफ बढ़ गयी और एक बार फिर स बात शुरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी अपनी किस्मत को जमकर कोसा मैंने पर दिल में कही न कही इतनी तसल्ली भी थी की उसके दिल में भी कुछ तो है तो बात बनेगी जरुर

उसके बाद मैंने भी माथा नवाजा और बाहर आया मौसम बदलने लगा था आसमान में बादल घिरने लगे थे मेरी नजरे बस उसको ही तलाश कर रही थी और वो दिखी भी फेरी वाले से खरीद रही थी कुछ वो पर सिवाय देखने के और क्या कर सकता था मैं इतनी भीड़ में थोड़ी ना कुछ कह सकता था

“तो जनाब यहाँ है मैं अंदर तलाश कर रही थी ” भाभी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

मैं- आ गयी भाभी कुछ लेना है तो ले लो नहीं तो फिर चलते है

भाभी- नहीं कुछ नहीं लेना आओ चलते है

मैंने जीप स्टार्ट की और हम वापिस हुए पर दिल में एक बेचैनी सी थी जिसे भाभी ने भी मह्सुस कर लिया था

भाभी- वैसे कुंदन इतनी शिद्दत से किसको देख रहे थे तुम

मैं – किसी को तो नहीं भाभी

भाभी- भाभी हु तुम्हारे, तुमसे ज्यादा मैं जानती हु तुमको और मैं ही क्या कोई और होता तो वो भी समझ जाता

मैं- क्या समझ जाता भाभी

भाभी- वोही जो तुम मुझसे छुपा रहे हो

मैं- भाभी ऐसा कुछ भी नहीं है

वो- चलो कब तक .. कभी ना कभी तो पता लग ही जाना है वैसे वो जमीन देखने गए थे क्या हुआ उसका

मैंने भाभी को पूरी बात बता दी तो वो गंभीर हो गयी मैंने भाभी के चेहरे पर चिंता देखि पूरी बात सुनने के बाद वो बोली “कुंदन, ठाकुरों का अहंकार उनकी रगों में खून के साथ दौड़ता है राणाजी का मकसद बस अपने उसी अहंकार को जिताना है और मैं भी चाह कर भी तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगी क्योंकि मैं भी इसी घर में रहती हु और तुम्हे तो सब पता ही है ना वैसे मैं चाहती नहीं थी की ये सब हो पर अब जो है वो है ”

मैं- भाभी मैं क्या गलत हु

भाभी- मैंने कहा न, सही गलत की बात ही नहीं है अगर सही गलत की बात होती तो ये होता नहीं तुम्हारा इरादा नेक है पर राह उतनी ही मुश्किल मैं बस इतना चाहती हु की इसकी वजह से बाप-बेटे के रिश्ते में कोई दरार नहीं आये ये घर जैसा है वैसे ही रहे

मैं बस मुस्कुरा दिया भाभी की चिंता सही थी आखिर मेरी रगों में भी राणाजी का खून ही जोर मार रहा था मुझे हर हाल में वहा पर फसल उगा कर दिखानी थी वर्ना क्या बात रहती ये अब मूंछो की लड़ाई हो गयी थी खैर हम घर आये उसके बाद कुछ समय मैंने अपने चौबारे में ही बिताया कुछ देर किताबो पर नजर मारी जरुरी काम निपटाए आसमान मी घटाए छा चुकी थी बारिश पड़ेगी ऐसी पूरी सम्भावना थी रोटी पानी करके मैं चाची के घर गया तो वहा पर ताला लगा था मतलब वो खेत पर निकल गयी थी शायद होने वाली बारिश का अंदेशा करके पर मुझे वो काम आज पूरा करके ही दम लेना था जो बार बार अधुरा रह जाता था मैंने अपनी साइकिल उठाई और पैडल मारते हुए चल दिए कुवे की और

आधे रस्ते में ही टिप टिप शुरू हो गयी तो मैंने रफ़्तार तेज कर दी पर फिर भी पहुचते पहुचते तकरीबन भीग ही गया था मैंने अपनी साइकिल खड़ी की और खुद को पोंछा बिजिली आ रही थी तो राहत की बात थी मैंने किवाड़ खडकाया तो चाची ने अंदर से पूछा कौन है मैंने बताया तो दरवाजा खोला

“तू ”

“मुझे तो आना ही था ”मैंने मुस्कुराते हुए कहा

मैंने दरवाजा बंद किया और अपने गीले कपडे उतार कर तार पर डाल दिए बस एक कच्छे में ही था चाची मेरी तरफ ही देख रही थी

मैं- आज अकेली आ गयी

वो- मैंने सोचा तू नहीं आएगा

मैं- क्यों नहीं आऊंगा

वो- दोपहर को भी भाग गया था

मैं- उसी काम को पूरा करने आया हु और आज पूरा करके ही रहूँगा

चाची- तू रहने दे हर बार ऐसा ही बोलता है और फिर भाग जाता है मुझे परेशां करके

मैं- आज परेशान नहीं करूँगा

मैंने चाची को अपनी बाहों में जकड लिया और चुपचाप अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए सुर्ख लिपस्टिक में रंगे उसके होंठ इतनी चिकने थी की लगा की घी की धेली मेरे मुह में घुल रही हो चाची ने अपनी पकड़ मुझ पर मजबूत सी कर दी और मैं धीरे धीरे उसके होंठो का मीठा सा रस चूसने लगा

मेरे हाथ अपने आप उसकी पीठ को सहलाने लगे थे मैंने बादलो के गरजने की आवाज सुनी जो बता रही थी बाहर बरसात और तेज हो गयी है मैंने चाची को और कस लिया अपनी बाहों में और चूमने लगा उसके होंठो को जो मय के प्याले से कम नहीं थे जबतक सांसे टूटने को ना हो गयी मैं चाची के लबो को पीता रहा फिर हम अलग हुए मैंने चाची की आँखों में एक अलग सी चमक देखि उसकी छातिया मेरे सीने में समा जाने को पूरी तरह से आतुर थी

मैंने उसकी चोली को उतार दिया चाची ने एक पल को भी विरोध नहीं किया बल्कि वो तो खुद ये चाहती थी मैं उसकी चुचियो को दबाने लगा जो पहले ही फुल चुकी थी चाची आहे भरने लगी उसने कच्छे के ऊपर से मेरे लंड को पकड़ लिया

“अन्दर हाथ डाल चाची ” मैं बोला

और चाची ने मेरे कच्छे में अपना हाथ डाल दिया उसके गर्म हाथ को महसूस करते ही मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा जब चाची ने उसे अपनी मुट्ठी में लिया तो मुझे इतना मजा आया की मैं बता नहीं सकता मैंने चाची को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी घाघरी को भी उतार दिया और खुद भी पूरा नंगा हो गया लट्टू की रौशनी में हम दोंनो नंगे थे चाची बेहद ही खुबसुरत थी उसकी मांसल टाँगे थोड़े मोटे से चुतड माध्यम आकर की छातिया और टांगो के बीच हलके बालो में कैद वो चीज़ जिसका हर कोई दीवाना है

मैं उसके पास ही लेट गया और एक बार फिर से उसके होंठ चूसते हुए उसके नितम्बो को सहलाने लगा चाची मेरे लंड को मुठिया ने लगी मेरा रोम रोम मजे में डूबने लगा था और फिर धीरे धीरे मैं चाची के ऊपर लेट गया और चूची को पिने लगा चाची बहुत गरम हो गयी थी और बहुत तेजी से उसका हाथ मेरे लंड पर चल रहा था

“मुझे ऊपर से निचे तक चूम कुंदन aaahhhhh आःह्ह ” चाची सिसकारी लेते हुए बोली

मैं- हां चाची

मैं उत्तेजना से बुरी तरह कांप रहा था

“दोपहर की तरह ही झुक जा चाची ”

मैंने कांपते हुए कहा

तो चाची बिस्तर पर घोड़ी बन गयी और एक बार फिर से उसकी उभरी हुई गांड मेरी आँखों के सामने थी मैंने अपने होंठो पर जीभ फेरी और उसके चूतडो को सहलाया चाची ने आह भरते हुए अपनी गांड को सहलाया रुई से भी ज्यादा कोमल चुतड थे उसके मैं आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेरने लगा चाची ने अपने आगे वाले हिस्से को थोडा सा और निचे झुकाया जिस से चुतड और ऊपर की और उभर गए

मैंने अपने दोनों हाथो को चाची की गांड की दरार पर लगाया और बड़े ही प्यार से उसको फैलाया उफफ्फ्फ्फ़ क्या नजारा था चाची की गांड का वो भूरा सा छेद जो हिलने की वजह से बार बार खुलता और बंद होता नजर आ रहा था और इंच पर निचे ही माध्यम आकार के काले बालो से ढकी हुई चाची की मस्तानी लाल रंग की चूत जो मुझे बस निमंत्रण दे रही थी की आ और समा जा मुझमे

चाची का गदराया हुस्न बहुत ही कमाल का था मैंने अपने होंठ उसके चूतडो पर रख दिए और जैसे किसी फल को काट रहा हु इस प्रकार मैं वहा पर बटके भरने लगा तो चाची जोर जोर से आहे भरने लगी मैं अपनी जीभ से चाची के नरम मांस को चाटने लगा चाची जोर जोर से अपनी गाँनड हिलाने लगी हम दोनों का ही हाल बुरा हो रहा था चाची की गीली होती चूत को महसूस कर रहा था मैं उसमे से एक ऐसी खुशबु आ रही थी की क्या बताऊ बस मेह्सुस ही कर पा रहा था मेरा लंड इतना ऐंठ गया था उत्तेजना से की उसके नसे उभर आई थी मैंने अपनी उंगलियों से चाची की चूत के नरम मांस को छुआ तो वो सिसक पड़ी “आह aaahhhhhhhhhhhh ” वो जगह किसी गर्म भट्टी की तरह ताप रही थी और अचानक से मेरी पूरी ऊँगली चाची की चूत में घुस गयी

“आह आई ”कसमसाते हुए चाची ने पानी दोनों जांघो को कस के भीच लिया और आहे भरने लगी “कुंदन क्या कर रहा है आःह ”

“कुछ भी तो नहीं चाची ” मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया

मैंने अपनी वापिस पीछे ली और फिर से आगे को सरका दी और तभी चाची औंधी हो गयी लेट गयी और मैं भी उसके ऊपर आ गिरा चाची के गरम बदन पर लेट कर उस बरसाती मौसम में बहुत सुकून सा मिला था चाची का बदन झटके पे झटके खा रहा था मैं चाची के सेब से गालो को खाने लगा उसके ऊपर से लेटे लेटे ही गजब का मजा आ रहा था इतना मजा की शब्द कम पड़ जाये अगर लिखा जाये तो मैंने चाची की चूत के रस से लिपटी हुई ऊँगली उसके होंठो पर फेरनी चालू की तो उसने अपना मुह खोल दिया और उस ऊँगली को चूसने लगी उसके लिजलिजी जीभ मेरी ऊँगली पर रेंगने लगी
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Kamini
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Re: नजर का खोट

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मैं अपने हमउम्र दो नोजवानो की माँ के साथ ये खेल खेल रहा था हम दोनों की आंहे पुरे कमरे में गूंज रही थी मैंने अब चाची को पलट दिया और उसकी टांगो के बीच आत हुए लेट गया चाची के रस से भरे होंठ एक बार फिर मेरे होंठो से रगड खाने लगी और तभी चाची अपना हाथ निचे ले लगी और मेरे लंड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी उफ्फ्फ्फ़ उसकी चूत इतनी गरम थी की मुझे लगा मेरे लंड का उपरी हिस्सा जल ही जाएगा चाची ने अपने खुले पैरो को कुछ ऊँचा सा उठा लिया ताकि वो अच्छे से रगड़ाई कर सके



मेरा सुपाडा लगातार चाची के छेद पर रगड खा रहा था मेरे तन-बदन में मस्ती बिजली बन कर दौड़ रही थी खुद पे काबू रखना पल पल भारी होता जा रहा था और काबू रखे भी तो कोई कैसे जब पल पल आप इस सुख को पाने के लिए खींचे जा रहे हो मैंने अंपनी कमर को थोडा सा उचकाया तो मेरा गरम सुपाडा चूत की उन नरम फांको को फैलाते हुए आगे धंसने लगा ऐसे लग रहा था की जैसे सुपाडा किसी गरम भट्टी में जा रहा हो



“आह ” चाची के होंठो से एक मस्ती भरी आह फुट पड़ी और उसके हाथ मेरी पीठ पर रेंगने लगे उसके पैर और ऊपर होने लगे अंग्रेजी के ऍम अक्षर की तरह उसने निचे से अपने चुतड उचकाये और मैं चाची पर झुकता गया मेरा लंड धीरे धीरे उस चिकनी चूत में आगे को सरकने लगा चाची की आहे मुझे पागल करने लगी थी



“पूरा अन्दर डाल ” वो मस्ती में डूबती हुई बोली



लंड अभी आधा ही अन्दर गया था की मैंने उसको वापिस पीछे की और खींचा और इर झटके से पूरा लंड चाची की चूत में सरका दिया चाची आह भरते हुए मुझसे चिपक गयी दो जिस्म एक हो गये थे उसने बुरी तरह मुझसे अपने आप में जकड लिया कुछ देर हम ऐसे ही लेटे रहे फिर वो बोली धीरे धीरे लंड को आगे पीछे कर तो मैं वैसा ही करने लगा और कसम से इतना मजा आ रहा था की क्या बताऊ मेरा लंड चाची की गहरी चूत में बार बार अन्दर बाहर हो रहा था और उस घर्षण से चाची को असीम मजा आ रहा था



“ओह कुंदन बहुत बढ़िया रे आहा बस ऐसे ही aaahhhhh ”


बीच बीच हम एक दुसरे के होंठ पीते मैं उसके सेब से गालो पर चुम्बन अंकित करता जब मैं रुकता तो चाची अपनी कमर उचकती हुए धक्के लगाती कमरे में गर्मी अत्याप्र्त्याषित रूप से बढ़ गयी थी चाची का पूरा चेहरा मेरे थूक से सना हुआ था आह आह की आवाज ही थी जो उस कमरे की ख़ामोशी में गूंज रही थी और तभी चाची ने मुझे अपने ऊपर से हटा दिया



मैंने चाची की तरफ देखा तो वो मुस्कुराते हुए उठी और मुझे लिटा दिया चाची अब मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड को चूत पर घिसने लगी चूत के गाढे रस में सना हुआ मेरा लंड जब चूत की काली फांको से रगड खाते हुए अंदर के लाल हिस्से पर जाता तो बहुत मजा आता धीरे धीरे चाची मेरे लंड पर बैठने लगी और उसके गद्देदार चुतड मेरी गोलियों से आ टकराए पूरा लंड एक बार फिर से चाची की चूत में जा चूका था वो थोड़ी सी आगे को हुई जिसे से उसकी झूलती चुचिया मेरे चेहरे पर आ गयी



चाची ने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर उठाया और फिर से निचे बैठ गयी जैसे मैं धक्के लगा रहा था वैसे ही वो धक्के लगा रही थी मेरे हाथ अपने आप उसके नितम्बो पर आ पहुचे थे जिनको मैं बड़े प्यार से सहला रहा था उफ्फ्फ कितना मजा आ रहा था धीरे धीरे चाची ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी ठप्प थप्प की आवाज आ रही थी उसके चुतड पटकने से तभी चाची ने अपनी चूची को हाथ से पकड़ा और मेरे मुह में दे दिया मैं एक बार फिर से चूची पिने लगा कसम से कितना मजा आ रहा था चाची का बदन अकड़ने लगा था



धीरे धीरे मेरी पकड़ उसके चूतडो पर मजबूत होती जा रही थी और चाची पूरी तरह मुझ पर झुक चुकी थी लंड और चूत के मिलन में ऐसी मस्ती मची थी की बस अब क्या कहे पल पल हम दोनों के बदन में एक तरंग सी दौड़ रही थी बार बार उसका बदन अकड़ रहा था और फिर मुझे ऐसे लगा की जिस्म का सबकुछ जैसे निचुड़ रहा हो मेरे लंड की नसे फूल गयी और उसमे से कुछ निकल कर चूत में गिरने लगा गर्म सा



और मेरी आँखे मस्ती के मारे बंद हो गयी बदन झटके खाने लगा और तभी चाची ने कस लिया मुझे अपनी बाहों में चूत को भींच लिया दोनों टांगो के बीच में जैसे की मेरे लंड को कैद ही करना चाहती हो लम्बी लम्बी साँस लेते हुए वो मेरे ऊपर ही लेट सी गयी हम दोनों की साँस बुरी तरह से उफन आई थी कुछ पल हम दोनों सांसो को सँभालते रहे और फिर वो उठी और पास पड़ी चादर लपेट कर कमरे से बाहर चली गयी मैं उसके पीछे गया तो देखा वो मूत रही थी मुझे भी मुतने की इच्छा हुई



बाहर अभी भी हलकी हलकी बारिश हो रही थी मैं भी वही खड़ा होकर मुतने लगा चाची ने मुतने के बाद अपनी चूत को साफ़ किया और फिर कमरे में आ गयी मैंने भी लंड को पानी से धोया और किवाड़ बंद करके चाची के पास लेट गया कुछ देर हम दोनों में से कुछ नहीं बोला कोई भी फिर मैंने चाची की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी और खीच लिया



चाची ने अपना हाथ मेरे सीने पर रख दिया हम दोनों पता नहीं क्यों आपस में बात नहीं कर रहे थे बस हाथ से एक दुसरे के बदन को सहला रहे थे अभी अभी हुए सम्भोग ने हमारे रिश्ते को एक नया मोड़ जो दे दिया था
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Re: नजर का खोट

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मैं कुछ देर चाची की पीठ को सहलाता रहा फिर मैंने चाची का हाथ अपने लंड पर रख दिया उसने हाथ हटाया नहीं और धीरे धीरे उसे अपनी मुठी में लेके सहलाने लगी उसके छूने से ही मेरा बुरा हाल होने लगा था एक बार फिर मुरझाये लंड में तनाव होने लगा था उसने अब मेरी गोलियों को भी सहलाना शुरू कर दिया था जल्दी ही मेरा लंड पूर्ण रूप से उत्तेजित होकर चाची के हाथ में झूल रहा था



“तू बहुत सुन्दर है चाची” मैं बोला और साथ ही चाची के चूतडो पर हाथ फेरने लगा



“तेरे चुतड बहुत ही शानदार है चाची जी करता है इनको चूमता रहू तेरे बदन की ये महक मुझे पागल कर रही है जी चाहता है की पूरी रात तुझे ऐसे ही प्यार करू ”


चाची कुछ नहीं बोली बस धीरे धीरे मेरे लंड से खेलती रही मुझे गरम करती रही मैं उसके होंठो पर टूट पड़ा और एक बार फिर से चाची की जीभ मेरे मुह में गोल गोल घूम रही थी उत्तेजना फिर से हमे कह रही थी की आओ और एक बार फिर से एक दुसरे में समा जाऊ चाची अब टेढ़ी हो गयी थी हमारे पैर आपस में उलझे थे उसको चुमते चुमते मेरी उंगलिया उसकी गांड की दरार पर रेंगने लगी थी



और तभी मेरी बीच वाली ऊँगली ने उसकी गांड के छेद को छुआ तो चाची के बदन में बिजली दौड़ गयी “क्या कर रहा है चुदाई के बाद वो पहली बार बोली ”


“प्यार कर रहा हु और क्या कर रहा हु ” कहते हुए मैंने गांड के छेद को थोडा सा कुरेदा तो चाची ने मेरे लंड को अपनी मुठी पर भींच लिया और आँखों को बंद कर लिया “पुच पुच ” मैंने उसके गाल को चूमा और उसे अपने ऊपर खीच लिया चाची की गांड के छेद को सहलाते हुए मैंने उसे अपने ऊपर लिटाया हुआ था मेरा लंड एक बार फिर से उसकी चूत में जाने को फनफनाया हुआ था आज जी भर के मैं चाची की चूत मारना चाहता था



“कुंदन एक काम करेगा ”


“दो करूँगा बोलो तो सही ”


“मेरी इसको प्यार कर न ”


“किसको चाची ”


“मेरी छु............ चूत को ” चाची बेहद लरजते हुए बोली



“कर तो रहा हु ”


“ऐसे नहीं ”


“तो कैसे ”


“सबकुछ मुझसे ही कहलवाए गा नालायक ” इस बार वो थोडा तुनकते हुए बोली



“अब बताओगी नहीं तो क्या समझूंगा मैं ”


“मेरी चूत को प्यार कर नालायक जैसे मेरे होंठो को कर रहा है ”चाची थोड़े गुस्से से बोली



ओह! अब समझा चाची चाहती थी मैं उसकी चूत की पप्पी लू मैंने उसे अपने ऊपर से उतारा और पेट के बल लिटा दिया उसकी चिकनी जांघो को फैलाया और मैं खुद बीच में आ गया अपने चहरे को उसकी जांघो के जोड़ में घुसा दिया मेरी नाक उसकी चूत के बिलकुल पास थी चाची की चूत की काली पंखुड़िया बार बार खुल और बंद हो रही थी



जैसे ही मैंने साँस छोड़ी गारम हवा चाची की चूत से जा टकराई तो चाची बस आह भर कर ही रह गयी मैंने अपना मुह थोडा और पास किया उस जन्नत के दरवाजे के जिसके लिए लोग पता नहीं क्या क्या कर जाते है चाची थोड़ी देर पहले ही मूत कर आई थी तो मुझे मूत की लपट आई पर उसमे भी एक नशा था जो मुझे बहुत पागल कर गया



माध्यम आकर के झांटो से भरी चाची की कोमल चूत बहुत ही सुन्दर लग रही थी ऊपर से जब उसकी चूत की वो पंखुड़िया जो बार बार खुल और बंद हो रही थी उत्तेजना के मारे मैंने चाची के पैरो को पूरी तरह से विपरीत दिशाओ में खोल दिया था ताकि अगर मेरे सामने कुछ रहे तो बस उसकी चूत , वो चूत जो लपलपाते हुए मुझे अपनी और बुला रही थी की आओ और समा जाओ मुझमे



अपने होंठो पर जीभ फेर कर मैंने उन्हें गीला किया और अगले पल अपने होंठो को चाची की चूत पर रख दिया आह मेरा निचला होंठ जैसे जल ही गया इतनी गरम चूत थी वो और जैसे ही मैंने अपने होंठो से चूत को छुआ चाची तड़प उठी अचानक से “पुच ” मैंने चूत की एक पुप्पी ली कसम से मजा ही आ गया और अगली ही पल चूत से कुछ खारा सा रिस कर मेरे मुह में आ गया जैसे हल्का सा नमक चख लिया हो



कुछ देर मैं अपने होंठ वहा पर रगड़ता रहा चाची अपने हाथ पैर पटकने लगी थी तो मैं समझ गया की जितना इसकी चूत को ऐसे करूँगा उतना ही चाची को मजा आएगा मैंने अपनी उंगलियों से चूत की फानको को अलग किया और फिर अपने मुह में भर लिया “आह कुंदन मार इया रे आह आः रे जालिम ” चाची ने पुरे कमरे को अपने सर पर उठा लिया उसकी चूत से रिश्ते उस खारे पानी से मेरा चेहरा ठोड़ी की तरफ से पूरा सन गया था पर चाची का क्या हाल था ये आप खुद समझ सकते है



कुछ देर बस मैंने उन फांको को अपने मुह में लिए रखा चाची अपनी कमर को उचकने लगी थी खुद मेरा लंड ऐंठा हुआ था तभी चाची ने मुझे अपने ऊपर इस तरफ से आने को कहा की मेरा मुह उसकी चूत पर और टांगे उसकी मुह की तरफ थी इस तरह से होते ही मैं एक बार फिर से उसकी चूत टूट पड़ा मैं इस कदर उसकी चूत को चूस रहा था की दुनिया का सबसे स्वादिष्ट पदार्थ वो ही


सूप सूप मेरी जीभ चाची की चूत में अन्दर बाहर हो रही थी पर क़यामत जब हो गयी जब मैंने अपने लंड पर कुछ गीला लिज्लिसा सा महसूस किया चाची ने भी मेरे लंड को अपने मुह में भर लिया था उफ्फ्फ्फ़ ये हो क्या रहा था एक पल में ही मैं इस कदर मस्त हो गया की मामला हद से ज्यादा गरम हो गया चाची की गरम जीभ मेरे सुपाडे पर घूम रही थी और उसकी मुट्ठी में मेरी गोलिया कैद थी



काम्ग्नी में जलते हुए हम दोनों एक दुसरे के अंगो को चाट रहे थे चूस रहे थे जब चाची ने तेजी से मेरे लंड पर अपना मुह चलाना चालू किया तो मस्ती में चूर मैंने धीरे से उसकी गांड के छेद को चूम लिया चाची ऊपर से निचे तक कांप गयी जिस अदा से वो मेरे लंड को चूस रही थी मैं तो कायल हो गया था उसका मैंने फिर से उसकी चूत को अपने मुह में भर लिया और उसने मेरे लंड को
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Kamini
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Re: नजर का खोट

Post by Kamini »


हमारी आहे तो कही दब ही गयी थी अगर कुछ था तो बस पुच पुच की अवजे जो हम दोनों के मुह से आ रही थी बहुत देर तक मैं चाची की चूत और गांड दोनों को चाटता रहा फिर मुझे ऐसा लगा की एक बार फिर मेरे लंड में कुछ सुगबुगाहट होने लगी है और एक बार फिर उसमे से कुछ निकल कर चाची के मुह में गिरने लगा और ठीक उसी पल चाची ने अपने चुतड ऊपर उठाये और मेरे मुह में अपना गाढ़ा रस छोड़ते हुए निढाल हो गयी

उस रात उसके बाद कुछ नहीं हुआ थकान में चूर हम दोनों एक दुसरे की बाहों में कब सो गए कुछ खबर ही नहीं थी सुबह मैं जागा तो चाची बाहर ही थी मुझे देख कर वो हंसी तो मैं भी हंस पड़ा पर उस हंसी में जो बात थी वो बस हम दोनों ही समझ पा रहे थे चाची थोड़ी देर में आने वाली थी पर मुझे जल्दी थी मैंने साइकिल उठाई और हो लिया घर की और



एक नजर घडी पर डाली और फिर अपनी वर्दी उठा कर मैं सीधा बाथरूम में गुस गया पर यही पर साली कयामत ही हो गयी जैसे ही मैं बाथरूम में घुसा तो मैंने पाया की वहा पर मैं अकेला नहीं था भाभी पहले से ही वहा पर मोजूद थी सर से लेकर पांव तक पानी की बुँदे टपक रही थी भाभी के बदन से काली कच्छी ही उस समय उसके बदन पर थी ये सब ऐसे अचानक हुआ भाभी भी घबरा गयी उसने पास पड़ा तौलिया उठाया पर उसके पहले ही मैं बाथरूम से बाहर आ गया पर मेरे दिमाग को हिला डाला था इस घटना ने सुबह सुबह



जैसे तैसे आँगन के नलके के निचे नाहा कर मैं तैयार हुआ और जब मैं सीढिया उतरते हुए निचे आ रहा था जाने के लिए तो मेरी नजरे भाभी से मिली पर मैंने सर झुका लिया और बाहर भाग गया कक्षा में ऐसा व्यस्त हुआ की समय कब गुजर गया कुछ पता नहीं चला मास्टर जी से बहाना करके एक बार उसकी कक्षा का चक्कर भी लगा दिया पर वो दिखी नहीं तो हताशा सी हुई पर कुछ चीजों पर अपना बस कहा चलता है



खैर छुट्टी हुई और मैं घर के लिए निकल ही रहा था की उसी कैसेट वाले ने आवाज देकर रोका मुझे



मैं- भाई बाद में मिलता हु थोड़ी जल्दी है



वो- सुन तो सही



मैं- जल्दी बोल



वो- वो गाने भरने को दे गयी है मैंने शाम पांच बजे का टाइम दिया है तू आया रहियो



मैं-पक्का भाई



और मैं घर के लिए बढ़ गया घर आते ही भाभी के दर्शन हुए मुझे तो मैं सर झुका कर ऊपर चला गया तभी उन्होंने पुकारा “कुंदन रसोई में आना जरा ”


मैं गया



भाभी- सुबह नाश्ता किये बिना निकल गए तुम ऐसे बार बार करना ठीक नहीं है



मैं- भाभी जल्दी थी मुझे



वो- कोई बात नहीं, खाना लगाती हु खा लो



भाभी ने खाना लगाया मैं खाने बैठ गया वो भी पास बैठ गयी सुबह जो घटना बाथरूम में हुई थी उसके बाद मुझे अजीब सा लग रहा था मैंने निवाला लिया ही था की खांसी उठ गयी



भाभी- आराम से खाओ कोई जल्दी है क्या



मैं चुपचाप खाने लगा तो भाभी बोली- मेरी गलती थी मुझे कुण्डी लगानी चाहिए थी पर कई बार ऐसा होता है कुंदन तो अपराध बोध इ बाहर आओ कुंदन जल्दी खाना ख़तम करो मुनीम जी आते ही होंगे वो किसी काम से सरहद की तरफ जा रहे है तो राणाजी का हुकुम है की तुम्हे जो भी औजार चाहिए मुनीम जी जीप में वहा छोड़ आयेंगे



मैं- आप बहुत अच्छी है भाभी



भाभी बस मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरा हलके से मैंने खाना ख़तम किया और बहुत से औज़ारो के साथ गाड़ी में बैठ कर जमीन की और चल पड़ा करीब आधे घंटे बाद मैं वहा अकेला था तो ये थी मेरी कर्मभूमि अब जो कुछ करना था यही करना था दोपहर के करीब चार बजे थे आसमान में धुप सी थी पर हवा में ठंडक भी थी रात की बरसात से मिटटी में नमी थी मैंने बस इतना सोचा की पहले अगर यहाँ खेती होती थी तो अब भी होगी



मैंने पथरीली जगह को गैंती से खोद कर जायजा लिया तो करीब आठ इंच के बाद निचे नरम जमीन थी भूद वाले हिस्से को तो मिटटी मिलाकर समतल किया जा सकता था पर इस पथरीली जमीन की परत हटाना टेढ़ी खीर थी पर कोशिश करनी थी अगर टेक्टर होता तो बात बन जाती पर राणाजी की वजह से कोई मदद भी नहीं करता मेरी मुझे आदमियों की जरुरत थी पर फिर भी मैंने खोदना शुरू किया शुरू में तकलीफ हुई पर मेहनत रंग लायी थोड़ी ही सही पर कुछ तो शुरुआत हुई



करीब तीन घंटे मैंने वहा बिताये और इन तीन घंटो ने मेरा दम चूस लिया मैंने खुद को कोसा की साइकिल भी रख लेता तो वापिस जाने में दिक्कत नहीं होती सांझ तो हो ही गयी थी तो मैं टहलते हुए गाँव की और आने लगा रस्ते में पूजा का घर आया तो मेरे कदम अपने आप उस तरफ बढ़ गए घर के बाहर ही वो मुझे मिल गयी



वो- तू यहाँ



मैं- वो जमीन वही से आ रहा हु



वो- तो तूने ठान ही लिया



मैं- क्या कर सकता हु अब



वो- अच्छा है मेहनत करेगा तो मिटटी का मोल जान जायेगा तू



मैं- कैसी है तू



वो- मुझे क्या होगा भली चंगी हु



मैं- थोडा पानी पिलाएगी प्यास लगी है



वो- पानी क्या चाय भी पिला दूंगी तू कह तो सही



मैं- फिर तो मजा आ जायेगा



वो- आजा फिर



मैंने ये बात देखि की पूजा बहुत फुर्ती से काम करती थी बस कुछ ही देर में चाय का कप मेरे हाथ में था और उसकी चाय में भी कुछ बात थी मैं हौले हौले चुस्की ले रहा था



मैं – अब कब जाएगी जादू करने



वो- तुझे क्या है



मैं- बस ऐसे ही पूछा



वो- आएगा साथ मेरे



मैं- ले चलेगी



वो- ऊँगली पकड़ के ले चलूंगी क्या आना है तो आ जाना



मैं- कब जायेगी



वो- परसों



मैं- जादू होगा



वो- होगा तो पता चल ही जायेगा वैसे मजा बहुत आता है



मैं- ठीक है मिलता हु परसों फिर अभी चलता हु देर हो गयी है



वो- आराम से जाना



पता नहीं क्यों बहुत अपनापन सा लगा खैर पूजा के बारे में सोचते सोचते ही मैं घर आया तो देखा की माँ सा कही जा रही है और चाची भी साथ है अब ये कहा चले



मैं- कहा जा रहे है



माँ सा- पड़ोस के गाँव में राणाजी के मित्र की पुत्री का विवाह है तो वही जा रहे है



मैं- मैं भी चलू



माँ सा- घर पे जस्सी अकेली है तो तुम यही रहो हमे आते आते सुबह हो जाएगी



मैंने चाची की तरफ देखा तो वो बस मुस्कुरा दी खैर अब जिसे जाना जाए मैं क्या कर सकता हु मैंने किवाड़ बंद किया और अन्दर आ गया मैंने देखा भाभी रसोई में थी



भाभी- खाना लगा दू



मैं- अभी नहीं भाभी कितना काम करोगे आओ बैठते है बाते करेंगे



वो- क्या बात है आज बड़ी याद आ गयी भाभी की बाते करेंगे



मैं- क्या इतना भी हक़ नहीं भाभी



वो- हक़ तो कही ज्यादा है
भाभी और मैं छत पर आकार बैठ गए



भाभी- कितने दिन हुए तेरे भैया का तार या चिट्ठी कुछ नहीं आया



मैं- आपको याद आती है उनकी



वो- याद तो आएगी ना



मैं- समझता हु पर उनको भी थोडा सोचना चाहिए वैसे बोला तो था पिछली चिट्ठी में की सितम्बर तक आऊंगा



वो- बस बोलते है अपनी मर्ज़ी के मालिक जो ठहरे



मैं- अब मैं क्या कहू भाभी



वो- तू भी अपने भैया जैसा है पहले तो भाभी बिना एक मिनट नहीं रुकता था और आजकल बस अपने आप में खोया हुआ है



मैं – ऐसा कुछ नहीं है भाभी पर अभी बस उलझ गया हु अपने आप में और आपसे क्या छुपा है अभी आप भी ऐसा बोलोगे तो कैसे चलेगा



वो- चल जाने दे क्या हुआ तेरी उस आयत का



मैं- क्या भाभी मेरा उस से क्या लेना



वो- अच्छा जी तो फिर वो कैसेट पर उसका नाम क्यों



मैं- वो तो बस यु ही लिख दिया



वो- यु ही कभी मेरा नाम तो नहीं लिखा तुमने



मैं- भाभी ...



वो हंसने लगी



भाभी- कुंदन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है की तुम मुझसे कही दूर जा रहे हो शायद ये बड़े होने का असर है इस उम्र में इन्सान को अकेलापन चाहिए होता है मैं समझती हु पर जितना मैं जानती हु तुमको अपनी भाभी से बाते नहीं छुपाओगे ना
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