मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

सुबह दिन चड़े उसकी आँख खुली , नहा धो कर वो जल्दी से तैयार हुआ | उसने अपने अटेची केस में से बाबा रहमत , ज़ाकिया और उसके बाकी घर वालों के लिए हुए तोहफे निकाले और उसको एक छोटे बैग में डाल कर बाबा रहमत के घर की तरफ चल पड़ा |
इन दो सालों में गाँव में कुछ नहीं बदला था | हर चीज़ वैसे की वैसी ही थी | गाँव के कुत्ते और खोते उसी तरह गलियों में आवारा फिर रहे थे |
बच्चे उसी तरह अध नंगे गाँव के तलाब में भेंसो के साथ नहा रहे थे और कुछ गली में गुली डंडा खेल रहे थे |
रस्ते में गाँव के कुछ लोगो से अकरम की सलाम दुआ हुई | अकरम उनसे मिला और उन्होंने एक दुसरे का हाल चाल पुछा और वो इस तरह लोगों से मिलता मिलाता बाबा रहमत के दरवाजे पर पहुच गया |

अकरम ने दरवाज़े की कुण्डी खटखटाने से पहले सच्चे दिल से दुआ मांगी कि आज उसे ज़ाकिया का दीदार जरुर नसीब हो |
इससे पहले कि अकरम दरवाज़े की कुण्डी को हाथ लगाता | दरवाज़ा एक दम से अचानक खुला | यह सब कुछ एक दम और इतना अचानक हुआ कि अकरम अपनी तबज्जो कायम न रख सका और वो अन्दर की तरफ गिरने लगा |
इससे पहले कि वो अपने आप को संभालता एक लड़की जिसने अन्दर से दरवाज़ा खोला था | वो भी अपनी धुन में सामने से आकर अकरम से टकरा गयी |
लड़की के गाल अकरम के होंठो को छु गए और मम्मे भी सीने से टच कर गए |
अकरम और लड़की दोनों घबराकर एक दुसरे को देखने लगे | वो ज़ाकिया थी जो अब 18 साल की हो चुकी थी |
अकरम ज़ाकिया को देख कर दम बखुद रह गया |
उफफ्फ्फ्फ़ वो पहले से बहुत प्यारी लड़की हो गयी थी | उस का कमसिन कंवारा हुसन पहले से ज्यादा निखर गया था |
उसने पीले रंग के कमीज़ शलवार पहने हुई थी | जिस के निचे उसका काले रंग का ब्रज़िएर दिख रहा था | उसके मुम्मे पहले से थोड़े बड़े हो गए थे | उनका अब साइज़ शायद 34 हो गया था |

ज़ाकिया को देख कर ही अकरम का लोडा टाइट हो गया और वो सोचने लगा कि इसके मम्मे कितने सॉफ्ट होंगे और फुद्दी कितनी टाइट होगी, मज़ा आएगा इसे चोदने का |
ज़ाकिया ने अकरम को इस तरह बेताबी से खुद को घूरते हुए देखा तो वो शर्मा कर अन्दर भाग गयी |




इतने में दरवाज़ा फिर खुला | इस बार वकास था वकास अकरम को साथ लेकर घर के अंदर चला गया | घर के सेहन में तीन चारपाई पड़ी हुई थी | जिनमें से एक पर बाबा रहमत की बेटी रेहाना लेटी हुई थी और ज़ाकिया उसके पास खड़ी थी |

जबकि उसकी बडी बहन मुख़्तार बीबी , अपनी से छोटी बहन अस्मत बीबी की गोद में सर रख कर चारपाई पर लेटी हुई थी |

उन्होंने जब एक गैर मर्द को अपने भाई के साथ घर के अन्दर आते देखा , तो वो परदा करने की खातिर जल्दी से उठ कर एक कमरे में चली गयीं |
बाबा रहमत और उसकी बीवी सेहन में बैठे रात की बची हुई सुखी रोटी और रात का बची हुई बासी सब्जी के साथ सुबह का नास्ता कर रहे थे |
वो दो मियां बीवी अकरम को देखकर बहुत खुश हुए | बाबा रहमत ने फोरन उठ कर चौधरी अकरम को जफी डाली |
अकरम को बाबा रहमत के गंदे मैले कपड़ों से चमड़े के बू तो आई | मगर उसने उस बू को बर्दाश्त कर लिया |
एक दुसरे को मिलने और हाल चाल पूछने के बाद अकरम बाबा रहमत के पास चारपाई पर बैठ गया | अकरम ने घर के दरो दीवार पर निगाह डाली | घर की हर चीज़ की हालत दो साल पहले से बुरी नज़र आ रही थी |

गुरबत की झलक घर और घर वालों की हर चीज़ से टपक रही थी | अकरम घर का जायज़ा लेने में मसरूफ था कि बाबा रहमत की बीवी शरीफा बीबी बोली “ चौधरी तू इतने टाइम बाद हमारे घर आया है | मुझे समझ नहीं आ रही कि तेरी क्या खिदमत करूँ | तू जानता है कि हम गरीब लोग हैं और सिवाय खाली चाय के , तुझे कुछ पेश भी नहीं कर सकते” |
अकरम : “ मौसी आज नाश्ता मैंने आप ही के घर से करना है मगर आप किसी बात कि फिकर ना करें”

यह कहते हुए अकरम ने अपनी जेब से पैसे निकाले और वकास को देते हुए कहा “ जा तू भाग कर दिन्नो की दुकान से कुछ नाश्ते के लिए पकड़ ला“ |
अब्बा अरेहमत और उसकी बीवी अकरम को मन करते रहे मगर अकरम ने वकास को ज़बरदस्ती पैसे डे कर दुकान पर भेज दिया |
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Smoothdad
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by Smoothdad »

superb bro
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Rohit Kapoor
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by Rohit Kapoor »

mitr kahani bahut hi achhi hai bas thoda hindi par dhyaan do
abpunjabi
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Joined: 21 Mar 2017 22:18

Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

Rohit Kapoor wrote:mitr kahani bahut hi achhi hai bas thoda hindi par dhyaan do
bro meri hindi kamjor hai . hindi typing mein speed bhee bahut kam hai . aisa krta hu mein aapko ab tak likhi huyi saari story pm kr deta hu . aap correction krke bhej dena . mein update kr dunga.
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