मजबूरी का फैसला complete

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abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

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उस दिन के बाद चौधरी अकरम बहाने से बाबा रहमत मोची के घर जाने लगा |
लेकिन उसको ज़ाकिया का दीदार फिर नसीब ना हुआ | क्योंकि जब भी वो ज़ाकिया के घर जाता, ज़ाकिया या तो घर ना होती या फिर उसके सामने ना आती |
अकरम को ज़ाकिया का दीदार ना पाकर सख्त बेचैनी महसूस होने लगी |
तो वो अक्सर आधी रात को अपने दिल और लंड के हाथो मजबूर हो कर ज़ाकिया के घर की दीवार के पास आ कर ज़ाकिया के घर में झाँकने लगता |

रातें अँधेरी भी बहुत थी और सख्त सर्दी भी थी , लेकिन फिर भी अकरम को ज़ाकिया के घर में झांकते हुए ठन्डे पसीने आ जाते थे |
ज़ाकिया का घर अंधेरे में डूबा हुआ होता था | अकरम का दिल चाहता कि अभी दीवार फलांग कर ज़ाकिया के घर चला जाए और उस लड़की को चोद कर रख दे, मगर उसमें ऐसा करने की कभी हिम्नत ना पड़ी |
अकरम अपने जुआ खेलने की आदत की वजह से अपने जायेदाद ज़मीन बेच कर खा चूका था | उस के पास अब सिर्फ डेरे वाली ज़मीन और गाँव में एक मकान रह गया था |
चौधरी अकरम के कुछ दोस्त अमेरिका में रहते थे |
अकरम ने उनसे अमेरिका के बारे में काफी कुछ सुन रखा था कि इधर लोग थोड़ी सी मेहनत कर के काफी पैसा कमाते हैं |
ज़ाकिया ने पता नहीं अकरम के दिल ओ दिमाग पर किया जादू सा कर दिया कि उसने जुआ खेलने और रंडी औरतों को चोदना बंद कर दिया |
वैसे भी अकरम के पास अपने बाप दादा की दी हुयी दौलत ख़त्म होने लगी थी तो उस ने अमेरिका चले जाने का इरादा कर लिया |
उसने एक दफा अमेरिका का वीसा हासिल करने की कोशिश की मगर उस का वीसा रिजेक्ट हो गया |
उस के बाद अकरम ने चौधरी ज़फर नाम के एक आदमी से बात की | चौधरी ज़फर फैसल्बाद का रहने वाला था |
चौधरी ज़फर एक इंसानी स्मगलर था और जाली पासपोर्ट पर बन्दे बाहर के मुल्कों में भेजता था | अकरम ने चौधरी ज़फर को अमेरिका जाने के लिए पैसे दिए |
ताकि वो गलत तरीके से अमेरिका जा सके |
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

एक दिन अकरम को चौधरी ज़फर के आदमी का फ़ोन आया वो फ़ौरन कराची पहुंचे | क्योंकि उस का अमेरिका जाने के लिए पासपोर्ट और टिकेट तैयार है |
अकरम ने जल्दी से वकास को बुलाया और डेरे की चाबियाँ उसके हवाले की और उसको जरूरी हिदायतें देकर खुद पहले कराची और फिर उधर से न्यू यॉर्क रवाना हो गया |
न्यू यॉर्क में कुछ अरसा फारिग रहने के बाद अकरम को एक गैस स्टेशन पर गाड़ियों में गैस डालने की नौकरी मिल गयी |
यूँ अपने गाँव का एक “चौधरी” परदेस में आ कर एक मामूली सी नौकरी पर लग गया |
उस वक़्त अमेरिका में President Reagon की हकुमत थी और Reagon ने गैरकानूनी इमिग्रेंट्स के लिए 1986 में एक लॉ पास किया था |
जिसके मुताबिक कोई भी आदमी जो 1982 से पहले अमेरिका में रह रहा था | अमेरिकन वर्क परमिट अप्लाई कर सकता था |
अकरम ने जैसे यह खबर सुनी तो उसने अपने एक दोस्त से राबता किया जोकि अमेंरिका की वेस्ट कोस्ट के एक एग्रीकल्चर सिटी बेकर्सफ़ील्ड में रहता था |
उस दोस्त ने एक घोड़े को $500.00 डॉलर में बेचकर अकरम के लिए कुछ पेपर्स खरीदे और इस तरह अकरम का अमेरिका का वर्क परमिट बन गया |
abpunjabi
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Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

साल 1987

अमेरिका में रहते हुए अकरम का वकास से ख़त के ज़रिये राबता कायम रहा और अकरम को गाँव और थोडा बहुत वकास के घर वालों की खबर मिलती रही |
अमेरिका में जुआ , शराब और शबाब की फर्वानी होने के बावजूद अकरम ने इस तरह के किसी काम में दिलचस्पी नहीं ली |
बल्कि उसने इन दो सालों में गैस स्टेशन पर 16 से 18 घंटे रोजाना काम करके काफी डॉलर जमा कर लिए थे |
जब अकरम को वर्क परमिट मिल गया तो उसने दो महीने के लिए पाकिस्तान जाने का प्रोग्राम बनाया | अकरम को अभी US immigration से कंडीशनल वर्क परमिट मिला था और उसको अमेरिका से बाहर सफ़र करने के लिए इमीग्रेशन से इजाज़त लेनी होती थी |
अकरम ने इजाज़त के लिए अप्लाई किया तो उसको दो महीने में वापिस US एंटर होने की इजाज़त मिल गयी |
अकरम के माँ बाप तो काफी अरसा हुआ मर चुके थी | उस का कोई बहन भाई भी नहीं था और अकरम की अपने दुसरे रिश्तेदारों से वैसे भी खानदानी दुश्मनी थी | इसलिए उसके पकिस्तान वापिस आने की ना तो किसी को खबर थी और ना किसी को परवाह |
अकरम ने इस्लामाबाद एअरपोर्ट से टैक्सी रेंट की और अपने गाँव की तरफ चल पड़ा | रास्ते में रोड पर एक होटल से अकरम और टैक्सी ड्राईवर ने खाना खाया |
जब वो गाँव के बाहर बने अपने डेरे पंहुचा तो उस वक़्त तक रात काफी हो चुकी थी | रास्ता ना होने की वजह से टैक्सी डेरे पर नहीं जा सकती थी | इसलिए अकरम डेरे से कुछ फासले पर ही टैक्सी से उतरा | उस ने टैक्सी में से अपना समान निकाल कर टैक्सी वाले को किराया दे कर उस को फारिग कर दिया और खुद डेरे की तरफ पैदल चल पड़ा |
डेरे पर उस वक़्त कोई नहीं था और डेरे पर बने हुए कमरों को ताला लगा हुआ था | उन दो कमरों में से एक की चाभी अकरम के पास उसके सामान में थी | अकरम ने बैग ज़मीन पर रख कर उसमें से अपनी चाभी तलाश करने लगा |
कमरों के साथ ही जानवर बंधने वाला कमरा बना हुआ था | अकरम को उस जानवर बांधने वाले कमरे में से कुछ आवाजें आयीं |
अकरम आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ उस कमरे की तरफ बढ़ा | उस कमरे का दरवाज़ा थोडा टुटा हुआ था और कमरे में बल्ब की लाइट की वजह से कमरे के अन्दर का मंज़र बाहर से साफ नज़र आ रहा था | कमरे का अन्दर का मंज़र देख कर अकरम हैरान रह गया |
अन्दर वकास जो अब 21 साल का जवान हो गया था | उस का कद्द भी बहुत अच्छा निकल आया था वो एक गधी के पीछे अध नंगा खड़ा था |
उसने कमीज़ तो पहनी हुयी थी, मगर उसने अपनी कमीज़ का अगला हिस्सा उठाकर अपने दांतों में पकड़ा हुआ था और उसकी शलवार उसके क़दमों में गिरी पड़ी थी |

वकास ने एक हाथ से गधी की दुमं को एक साइड पर किया हुआ था और उस का पूरा लंड गधी की गांड में घुसा हुआ था |
वकास गधी को अपनी पूरी ताक़त से घस्से मार मार कर चोद रहा था |
अकरम ने वकास को इस हालत में देखा तो उस के मुंह पर मुस्कराहट दोड़ गयी | उसको अपनी जवानी का वो वक़त याद आ गया जब उसने भी अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर अपनी गधी को चोदा था |
इतनी देर में कमरे के अन्दर वकास गधी को चोदता चोदता फारिग हो गया |

वकास ने गधी की गांड में से अपना लंड निकाला | अकरम की नज़र जब वकास के लोडे पर पड़ी तो हैरान रह गया |
वकास का अपना लंड भी किसी गधे के लंड की तरह काफी मोटा , ताज़ा और लम्बा था | वकास ने ज़मीन से अपनी शलवार उठाई और उससे ही अपने लंड को साफ किया और अपनी शलवार का नाडा बांध लिया |
यूँ ही वकास हांपता हुआ बाहर निकला | उसकी नज़र चौधरी अकरम पर पड़ी जो उसकी शलवार में अभी तक खड़े हुए लंड को देख कर हंस रहा था |
“च च च्च्च्च अकरम आप कब आए ” वकास ने हकलाते हुए कहा | उस की जुबान उस का साथ नहीं दे रही थी |
“उसी वक़्त जब तू “खोती”(Donkey) के साथ मोजें कर रहा था” अकरम ने जोर से हँसते हुए कहा और वकास ने शर्मिंदा से हो कर अपनी नज़रें झुका लीं |
अकरम ने वकास को ज्यादा शर्मिंदा करना मुनासिब ना समझा और उसको गले लगाते हुए कहा |
“कोई बात नहीं जवाना , गाँव में यह काम सब करते हैं और मैं भी अपनी जवानी में यह काम कर चूका हूँ” यह बात सुनकर वकास भी अकरम के साथ हंस पड़ा |

उसके बाद वकास ने अकरम के लिए कमरे का दरवाज़ा खोला और उसका सामान अन्दर रख दिया | थोड़ी देर बाद बैठ कर बातें करने के बाद अकरम ने वकास को अपने घर चले जाने को कहा और ताकीद की कि वो अपने घर में किसी को अकरम के आने का ना बताये |
अकरम बाबा रहमत और उसकी बाकी फॅमिली को सरप्राइज देना चाहता था |
वकास के जाने के बाद अकरम ने चारपाई सीधी की और लेट गया |
उसे आज दो साल बाद अपने गाँव में अपनी चारपाई पर लेट कर बहुत ख़ुशी और सकून हासिल हुआ और वो जल्द ही नींद की वादी में पहुँच गया |
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