मजबूरी का फैसला complete

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Smoothdad
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Joined: 14 Mar 2016 08:45

Re: मजबूरी का फैसला

Post by Smoothdad »

waiting Punjabi ji
dhamakedar update ka intjaar hai.
abpunjabi
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Posts: 206
Joined: 21 Mar 2017 22:18

Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

ज़ाकिया सेहन के एक कोने में बने एक छोटे से लकड़ियों वाले चूल्हे के पास बैठी थी | वो हमेशा की तरह आज भी अपने घर के काम, काज में मसरूफ थी |

वो चाय दो प्यालों में डाल कर आहिस्ता आहिस्ता चलती हुई अपने बाप और चौधरी अकरम की तरफ आई | इतने में हवा थोड़ी तेज़ी से उडी |
चाय के प्याले दोनों हाथों में होने की वजह से ज़ाकिया अपने दुप्पटे को संभाल ना सकी और वो उसके सर से उड़ कर ज़मीन पर जा गिरा |
ज़ाकिया उस वक़्त कयामत ढा रही थी | दोप्पटे के बगैर उसके नर्म नर्म मखन जैसे 32 साइज़ के छोटे छोटे मम्मे उभरे हुए थे और उस का जोबन दिख रहा था |

ज़ाकिया की शलवार पुरानी और बार बार धोने की वजह से सुकर कर काफी छोटी हो चुकी थी और निचे से उसकी मस्त गोरी टांगों का नजारा भी साफ नज़र आ रहा था |
चौधरी अकरम , ज़ाकिया जैसी एक मासूम लड़की को जो वक़्त से पहले ही जवानी की देहलीज़ में कदम रख चुकी थी , बस देखता ही रह गया |
ज़ाकिया में कुछ ऐसी बात थी जो चौधरी अकरम गुज्जर जैसे 42 साल के आदमी को भी मदहोश कर गयी |
ज़ाकिया ने चाय का एक प्याला अपने बाप को दिया और दूसरा कांपते हाथों से चौधरी अकरम की तरफ बढ़ाया |
चौधरी अकरम ने महसूस किया कि इस कमसिन जवानी के हाथ उसे चाय पकडाते हुए काँप रहे हैं |
चौधरी अकरम का वास्ता हमेशा पकी उम्र की रंडी औरतों से पड़ा था जिन में जिझक और शर्म नाम की कोई चीज़ नहीं होती है |
abpunjabi
Novice User
Posts: 206
Joined: 21 Mar 2017 22:18

Re: मजबूरी का फैसला

Post by abpunjabi »

इसलिए चौधरी अकरम को ज़िन्दगी में पहली बार एक लड़की का इस तरह शर्माना और जिझकना बहुत अच्छा लगा |
चौधरी अकरम , ज़ाकिया को बड़ी गहरी नज़रों से देख रहा था | अकरम का यूँ देखना , ज़ाकिया को बड़ा ही नागवार गुज़रा |
वो उस को चाय का प्याला पकड़ा कर फोरन अपने ज़मीं पर गिरे हुआ दुपट्टे कि तरफ बड़ी | ज़ाकिया ने अपना दुपट्टा उठाया और तेज़ तेज़ कदमो से चलती घर के एक कमरे में चली गयी |

ज़ाकिया, चौधरी अकरम के दिल को पागल कर गयी थी उस का कमसिन मासूम हुसन चौधरी को बहुत भा गया था |
अकरम ,ज़ाकिया के दुबारा दीदार के लिए थोड़ी देर बैठ कर बाबा रेह्मत से इधर उधर की बातें करता रहा | मगर ज़ाकिया फिर बाहर नहीं आई |
अकरम ने मायूस हो कर बाबा रहमत से इजाज़त ली और अपने डेरे पर आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया | शाम का अँधेरा गहरा हो गया था |
चौधरी अकरम अपनी चारपाई पर पड़ा कुछ सोच रहा था | अकरम की ज़िन्दगी में ऐसा मामला पहली बार पेश आया था |
वो सारा टाइम ज़ाकिया के बारे में सोचता रहा | ज़ाकिया का नर्म और नाज़ुक बदन उसके होश ओ हवास पर छाए हुए था |
उसे बार बार रह रह कर उस मोहनी सी गोरी गोरी गुडिया की याद आ रही थी और यही सोचते हुए वो भी इख्तिआर अपने लंड को खुजाने लगा |
इस बात के बावजूद कि उसकी और ज़ाकिया की उम्र में बहुत फरक था | मगर फिर भी ज़ाकिया को देखते ही अकरम ने जैसे अपने दिल में फैसला कर लिया था कि वो उसको किसी तरह हासिल करके रहेगा |
वो यह काम किस तरह और कैसे करे , उस बारे में सोचते सोचते गहरी नींद में चला गया |
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