मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete

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Dolly sharma
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मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete

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मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

फ्रेंड्स मुझे एक और अच्छी कहानी मिली है फ्रेंड्स पहले ये कहानी बिक्स ने लिखी थी और अब इस को तृष्णा ने आगे बढ़ाया है तो फ्रेंड्स मैं इस कहानी को आपके लिए इस फोरम पर अपडेट कर रही हूँ इस कहानी का पहला हिस्सा राज शर्मा जी पहले ही इस फोरम पर पोस्ट कर चुके हैं क्योंकि काफ़ी सारे रीडर नये हैं इसलिए मैं सारी कहानी नये सिरे से पोस्ट कर रही हूँ जिससे रीडर्स को आधी कहानी के लिए भटकना नही पड़ेगा .
प्रिय पाठकों, मेरा नाम वीणा है, उम्र 22 साल, फ़िगर 34/27/35, रंग बहुत गोरा. मैं अपना एक नया अनुभव पेश कर रही हूँ जो मेरे साथ तब हुआ जब मैं अपने मामा, मामी और कज़िन भाभी के साथ मेला देखने गई थी.


बात यूँ थी कि हमारे मामा का घर हाज़िपुर ज़िले मे था. ज़िला सोनपुर मे हर साल, माना हुआ मेला लगता है. हर साल की भांती इस साल भी मेला लगने वाला था. मामा का ख़त आया कि दीदी, वीणा बिटिया और नीतु बिटिया को भेज दो. हम लोग मेला देखने जायेंगे. यह लोग भी हमारे साथ मेला देख आयेंगे. पर पापा ने कहा कि तुम्हारी दीदी (यानी कि मेरी मम्मी) का आना तो मुश्किल है और नीतु (यानी कि मेरी छोटी बहन) को तो बहुत बुखार है. पर वीणा को तुम आकर ले जाओ, उसकी मेला घूमने की इच्छा भी है.

तो फिर मामा आये और मुझे अपने साथ ले गये. दो दिन हम मामा के घर रहे और फिर वहाँ से मै यानी कि वीणा, मेरे मामीजी, मामा और भाभी मीना (ममेरे भाई की पत्नी) और नौकर रामु, इत्यादि लोग मेले के लिये चल पड़े.

रविवार को हम सब मेला देखने निकल पड़े. हमारा कार्यक्रम 8 दिनों का था. सोनपुर मेले मे पहुँच कर देखा कि वहाँ रहने की जगह नही मिल रही थी. बहुत अधिक भीड़ थी.

मामा को याद आया कि उनके ही गाँव के रहने वाले एक दोस्त ने यहाँ पर घर बना लिया है. सो सोचा कि चलो उनके यहाँ चल कर देखा जाये. हम मामा के दोस्त यानी कि विश्वनाथजी के यहाँ चले गये. उन्होने तुरन्त हमारे रहने की व्यवस्था अपने घर के उपर के एक कमरे मे कर दी. इस समय विश्वनाथजी के अलावा घर पर कोई नही था. सब लोग गाँव मे अपने घर गये हुए थे. उन्होने अपना किचन भी खोल दिया, जिसमे खाने-पीने के बर्तनों की सुविधा थी.

वहाँ पहुँच कर सब लोगों ने खाना बनाया और विश्वनाथजी को भी बुला कर खिलाया. खाना खाने के बाद हम लोग आराम करने गये.

जब हम सब बैठे बातें कर रहे थे तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की निगाहें बार-बार भाभी पर जा टिकती थी. और जब भी भाभी कि नज़र विश्वनाथजी कि नज़र से टकराती तो भाभी शर्मा जाती थी और अपनी नज़रें नीची कर लेती थी. दोपहर करीब 2 बज़े हम लोग मेला देखने निकले. जब हम लोग मेले मे पहुँचे तो देख कि काफ़ी भीड़ थी और बहुत धक्का-मुक्की हो रही थी.

मामा बोले कि आपस मे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलो वर्ना कोई इधर-उधर हो गया तो बड़ी मुश्किल होगी. मैने भाभी का हाथ पकड़ा, मामा-मामी और रामु साथ थे.

मेला देख रहे थे कि अचानक किसी ने पीछे से गांड मे उंगली कर दी. मैं एकदम बिदक पड़ी, कि उसी वक्त सामने से किसी ने मेरी चूचि दबा दी. कुछ आगे बढ़ने पर कोई मेरी चूत मे उंगली कर निकल भागा.

मेरा बदन सनसना रहा था. तभी कोई मेरी दोनो चूचियां पकड़ कर कान मे फुसफुसाया - "हाय मेरी जान!" कह कर वह आगे बढ़ गया. हम कुछ आगे बढ़े तो वही आदमी फिर आकर मेरी जांघों मे हाथ डाल मेरी चूत को अपने हाथ के पूरे पंजे से दबा कर मसल दिया. मुझे लड़की होने की गुदगुदी का अहसास होने लगा था. भीड़ मे वह मेरे पीछे-पीछे साथ-साथ चल रहा था, और कभी-कभी मेरी गांड मे उंगली घुसाने की कोशिश कर रहा था, और मेरे चूतड़ों को तो उसने जैसे बाप का माल समझ कर दबोच रखा था.

अबकी धक्का-मुक्की मे भाभी का हाथ छूट गया और भाभी आगे और मै पीछे रह गयी. भीड़ काफ़ी थी और मै भाभी की तरफ़ गौर करके देखने लगी. वह पीछे वाला आदमी भाभी की टांगों मे हाथ डाल कर भाभी की चूत सहला रहा था. भाभी मज़े से चूत सहलवाती आगे बढ़ रही थी. भीड़ मे किसे फ़ुर्सत थी कि नीचे देखे कि कौन क्या कर रहा है. मुझे लगा कि भाभी भी मस्ती मे आ रही है. क्योकि वह अपने पीछे वाले आदमी से कुछ भी नही कह रही थी.

जब मै उनके बराबर मे आयी और उनका हाथ पकड़ कर चलने लगी तो उनके मुंह से "हाय!" की सी आवाज़ निकल कर मेरे कानों मे गूंजी. मै कोई बच्ची तो थी नही, सब समझ रही थी. मेरा तन भी छेड़-छाड़ पाने से गुदगुदा रहा था.

तभी किसी ने मेरी गांड मे उंगली कर दी. ज़रा कुछ आगे बढ़े तो मेरी दोनो बगलों मे हाथ डाल कर मेरी चूचियों को कस कर पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया. इस तरह मेरी चूचियों को पकड़ कर खींचा कि देखने वाला समझे कि मुझे भीड़-भाड़ से बचाया है.

शाम का वक्त हो रहा था और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी. इतनी देर मे वह पीछे से एक रेला सा आया जिसमे मामा मामी और रामु पीछे रह गये और हम लोग आगे बढ़ते चले गये. कुछ देर बाद जब पीछे मुड़ कर देखा तो मामा मामी और रामु का कहीं पता ही नही था. अब हम लोग घबरा गये कि मामा मामी कहाँ गये.

हम लोग उन्हे ढूँढ रहे थे कि वह लोग कहाँ रह गये और आपस मे बात कर रहे थे कि तभी दो आदमी जो काफ़ी देर से हमे घूर रहे थे और हमारी बातें सुन रहे थे वह हमारे पास आये और बोले, "तुम दोनो यहाँ खड़ी हो और तुम्हारे सास ससुर तुम्हें वहाँ खोज रहे हैं."

भाभी ने पूछा, "कहाँ है वह?" तो उन्होने कहा कि चलो हमारे साथ हम तुम्हे उनसे मिलवा देते है. (भाभी का थोड़ा घूंघट था. उसी घूंघट के अन्दाज़े पर उन्होने कहा था जो कि सच बैठा.)

हम उन दोनो के आगे चलने लगे. साथ चलते-चलते उन्होने भी हमे छोड़ा नही बल्कि भीड़ होने का फ़ायदा उठा कर कभी कोई मेरी गांड पर हाथ फिरा देता तो कभी दूसरा भाभी की कमर सहलाते हुए हाथ उपर तक ले जाकर उसकी चूचियों को छू लेता था. एक दो बार जब उस दूसरे वाले आदमी ने भाभी कि चूचियों को जोर से भींच दिया तो ना चाहते हुए भी भाभी के मुंह से आह सी निकल गयी और फिर तुरन्त ही सम्भालकर मेरी तरफ़ देखते हुए बोली कि "इस मेले मे तो जान की आफ़त हो गयी है! भीड़ इतनी ज़्यादा हो गयी है कि चलना भी मुश्किल हो गया है."

मुझे सब समझ मे आ रहा था कि साली को मज़ा तो बहुत आ रहा है पर मुझे दिखाने के लिये सती सवित्री बन रही है.

पर अपने को क्या ग़म? मै भी तो मज़े ले ही रही थी और यह बात शायद भाभी ने भी ग़ौर कर ली थी. तभी तो वह ज़रा ज़्यादा बेफ़िकर हो कर मज़े लूट रही थी. वह कहते है ना कि हमाम मे सभी नंगे होते हैं. मैने भी नाटक से एक बड़ी ही बेबसी भरी मुसकान भाभी तरफ़ उछाल दी.

इस तरह हम कब मेला छोड़ कर आगे निकल गये पता ही नही चला.

काफ़ी आगे जाने के बाद भाभी बोली, "वीणा हम कहाँ आ गये? मेला तो काफ़ी पीछे रह गया. यह सुनसान सी जगह आती जा रही है. तुम्हारे मामा मामी कहाँ है?"
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Dolly sharma
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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तभी वह आदमी बोला, "वह लोग हमारे घर है. तुम्हारा नाम वीणा है न, और वह तो तुम्हारे मामा मामी है. वह हमे कह रहे थे कि वीणा और वह कहाँ रह गये. हमने कहा कि तुम लोग घर पर बैठो हम उन्हे ढूँढ कर लाते हैं. तुम हमको नही जानती हो पर हम तुम्हे जानते हैं."

यह बात करते हुए हम लोग और आगे बढ़ गये थे. वहाँ पर एक कार खड़ी थी. वह लोग बोले कि, "चलो इसमे बैठ जाओ, हम तुम्हे तुम्हारे मामा मामी के पास ले चलते हैं."

हमने देखा कि कार मे दो आदमी और भी बैठे हुए थे. (और मुझे बाद मे यह बात याद आयी के वह दोनो आदमी वही थे जो भीड़ मे मेरी और भाभी कि गांड मे उंगली कर रहे थे और हमारी चूचियां दबा रहे थे).

जब हमने जाने से इन्कार किया तो उन्होने कहा कि, "घबराओ नही. देखो हम तुम्हे तुम्हारे मामा-मामी के पास ही ले चल रहे है और देखो उन्होने ने ही हमे सब कुछ बता कर तुम्हारी खबर लेने के लिये हमे भेजा है. अब घबराओ मत और कार मे बैठ जाओ तो जल्दी से तुम्हारे मामा- मामी से तुम्हें मिला दें."

कोई चारा ना देख हम लोग गाड़ी मे बैठ गये. उन लोगों ने गाड़ी मे भाभी को आगे कि सीट पर दो आदमीयों के बीच बैठाया और मुझे भी पीछे कि सीट पर बीच मे बिठा कर वह दोनों मुश्टन्डे मेरी अगल-बगल मे बैठ गये.

कार थोड़ी दूर चली कि उनमे से एक आदमी का हाथ मेरी चूचि को पकड़ कर दबाने लगा, और दूसरा मेरी चूचि को ब्लाऊज़ के उपर से ही चूमने लगा.

मैने उन्हे हटाने की कोशिश करते हुए कहा, "हटो यह क्या बद्तमीज़ी है!" तो एक ने कहा "यह बद्तमीज़ी नही है मेरी जान! तुम्हे तुम्हारे मामा से मिलाने ले जा रहे हैं तो पहले हमारे मामाओं से मिलो फिर अपने मामा से."

जब मैने आगे कि तरफ़ देखा तो पाया कि भाभी की ब्लाऊज़ और ब्रा खुली है और एक आदमी भाभी की दोनो चूचियां पकड़े है और दूसरा भाभी की दोनो टांगें फ़ैला कर साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा कर उनकी चूत मे उंगली डाल कर अन्दर बाहर कर रहा है. भाभी इन दोनो की पकड़ से निकलने की कोशिश कर रही है पर निकल नही पा रही है.

उनके लीडर ने कहा, "देखो मेरी जान, हम तुम्हे चोदने के लिये लाये हैं और चोदे बिना छोड़ंगे नही. तुम दोनो राज़ी-खुशी से चुदाओगी तो तुम्हे भी मज़ा आयेगा और हमे भी. फिर तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. अगर तुम नखरा करोगी तो तुम्हे जबरदस्ती चोदकर जान से मारकर कहीं डाल देंगे."

और मेरी भाभी से कहा कि "तुम तो चुदाई का मज़ा लेती ही रही हो. इतना मज़ा किसी और चीज़ मै नही है. इसलिये चुपचाप खुद भी मज़ा करो और हमे भी करने दो."

इतना सुन कर, और जान के भय से भाभी और मैं दोनो ही शांत पड़ गये. भाभी को शांत होते देख कर वह जो भाभी की टांग पकड़े बैठा था वह भाभी कि चूत चाटने लगा, और दूसरा कस-कस कर भाभी की चूचियां मसल रहा था. भाभी सी-सी करने लगी. भाभी को शांत होते देख मैं भी शांत हो गयी और चुपचाप उन्हे मज़ा देने लग गयी. मेरी भी चूत और चूचि दोनो पर ही एक साथ आक्रमण हो रहा था. मैं भी सिसिया रही थी. तभी मुझे जोरों का दर्द हुआ और मैंने कहा, "हाय यह तुम क्या कर रहे हो?"

"क्यों मज़ा नही आ रहा है क्या मेरी जान?" ऐसा कहते हुए उसने मेरी चूचियों की घुंडी (निप्पल) को छोड़ मेरी पूरी चूचि को भोंपू की तरह दबाने लग गया. मैं एकदम से गनगना कर हाथ पावँ सिकोड़ ली.

दूसरा वाला अब मेरे नितंभो (चूतड़) को सहलाते हुए मेरी गांड की छेद पर उंगली फिरा रहा था.

"चीज़ तो बड़ी उमदा है यार", टांग पकड़ कर मौज करने वाले ने कहा.
"एकदम पूरी देहाती माल है" दूसरे ने कहा

मैं थोड़ा हिली तो दूसरा वाला मेरी चूचियों को कस कर दबाते हुए मेरे मुंह से हाथ हटा कर जबरदस्ती मेरे होठों पर अपने होंठ रख कर जोर से चुम्बन लिया कि मैं कसमसा उठी. फिर मेरे गालों को मुंह मे भर कर इतनी जोर से दांतों से काटा कि मैं बुरी तरह से छटपटा उठी. ऐसा लग रहा थी कि मेरी मस्त जवानी पा कर दोनो बुरी तरह से पगला गये थे. मैं बुरी तरह छटपटा रही थी.

तभी दूसरे वाले ने मेरी चूत मे उंगली करते हुए कहा, "बड़ी ज़ालिम जवानी है. खूब मज़ा आयेगा. कहो मेरी बुलबुल क्या नाम है तुम्हारा?"

तभी दूसरे वाले ने कहा, "अरे बुद्धू, इसका नाम वीणा है."

उन दोनो मे से एक मेरे नितम्भों मे उंगली करते बैठा था, और दूसरा मेरी चूचियों और गालों का सत्यानाश कर रहा था और मैं डरी-सहमी से हिरनी की भांति उन दोनो की हरकतों को सहन कर रही थी.

वैसे झूठ नही बोलुंगी क्योंकि मज़ा तो मुझे भी आ रहा था. पर उस वक्त डर भी ज़्यादा लग रहा था. मैं दोहरे दबाव मे अधमरी थी. एक तरफ़ शरारत की सनसनी और दूसरी तरफ़ इनके चंगुल मे फंसने का भय.

वह मस्त आंखों से मेरे चहरे को निहार रहे थे और एक साथ मेरी दोनो गदराई चूचियों को दबाते कहा, "चुपचाप हम लोगों को मज़ा नही दोगी तो हम तुम दोनो को जान से मार देंगे. तेरी जवानी तो मस्त है. बोल अपनी मर्ज़ी से मज़ा देगी कि नही?"

कुछ भी हो मैं सयानी तो थी ही, उनकी इन रंगीन हर्कतों का असर तो मुझ पर भी हो रहा था.

फिर मैने भाभी कि तरफ़ देखा. आगे वाले दोनो आदमीयों मे से एक मेरी भाभी के गाल पर चमी-बत्के भर रहा था और जो ड्राईवर था वह उनकी चूत मे उंगली कर रहा था. उन दोनो ने मेरी भाभी की एक एक जांघ अपनी जांघ के नीचे दबा रखी थी और साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाया हुआ था. और भाभी दोनो हाथों मे एक-एक लंड पकड़ कर सहला रही थी.

उन दोनो के खड़े मोटे-मोटे लंडो को देख कर मैं डर गयी कि अब क्या होगा.

तभी उनमे से एक ने भाभी से पूछा "कहो रानी मज़ा आ रहा है ना?"

और मैने देखा कि भाभी मज़ा करते हुए नखरे के साथ बोली "ऊंहूं"

तब उसने कहा "पहले तो नखरा कर रही थी, पर अब तो मज़ा आ रहा है ना? जैसा हम कहेंगे वैसा करोगी तो कसम भगवान की पूरा मज़ा लेकर तुम्हे तुम्हारे घर पहुँचा देंगे. तुम्हारे घर किसी को पता भी नही लगेगा कि तुम कहाँ से आ रही हो. और नखरा करोगी तो वक्त भी खराब होगा और तुम्हारी हालत भी और घर भी नही पहूँच पाओगी. जो मज़ा राज़ी-खुशी मे है वह जबरदस्ती मे नही."

भाभी - "ठीक है हमको जल्दी से कर के हमें घर भिजवा दो."

भाभी की ऐसी बात सुन कर मैं भी ढीली पड़ गयी. मैने भी कहा कि हमे जल्दी से करो और छोड़ दो.

इतने मे ही कार एक सुनसान जगह पर पहुँच गयी और उन लोगों ने हमे कार से उतारा और कार से एक बड़ा सा कम्बल निकाल कर थोड़ी समतल सी जगह पर बिछया और मुझे और भाभी को उस पर लिटा दिया.
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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अब एक आदमी मेरे करीब आया और उसने पहले मेरी ब्लाऊज़ और फिर ब्रा और फिर बाकी के सभी कपड़े उतार कर मुझे पूरी तरह से नंगा किया और मेरी चूचियों को दबाने लगा. मैं गनगना गयी क्योंकि जीवन मे पहली बार किसी पुरुष का हाथ मेरी चूचियों पर लगा था. मैं सिसिया रही थी. मेरी चूत मे कीड़े चलने लगे थे.

मेरे साथ वाला आदमी भी जोश मे भर गया था, और पगलों के समान मेरे शरीर को चूम चाट रहा था. मेरी चूत भी मस्ती मे भर रही थी. वह काफ़ी देर तक मेरी चूत को निहार रहा था.

मेरी चूत के उपर भूरी-भूरी झांटें उग आयी थी. उसने मेरी पाव-रोटी जैसी फ़ूली हुई चूत पर हाथ फेरा तो मस्ती मे भर उठा और झूक कर मेरी चूत को चूमने लगा, और चूमते-चूमते मेरी चूत के टीट (clitoris) को चाटने लगा. अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो रहा था और मैं जोर से सित्कार रही थी. मुझे ऐसी मस्ती आ रही थी कि मैं कभी कल्पना भी नही की थी.

वह जितना ही अपनी जीभ मेरी कुंवारी चूत पर चला रहा था उतना ही उसका जोश और मेरा मज़ा बढ़ता जा रहा था. मेरी चूत मे जीभ घुसेड़ कर वह उसे चकरघिन्नी की मानिंद घुमा रहा था, और मैं भी अपने चूतड़ उपर उचकाने लगी थी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. इस आनंद की मैने कभी सपने मैं भी नही कल्पना की थी. एक अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी.

फिर वह कपड़े खोल कर नंगा हो गया. उसका लंड भी खूब लम्बा और मोटा था. लंड एकदम सख्त होकर सांप की भांति फ़ुंफ़्कार रहा था. और मेरी चूत उसका लंड खाने को बेकरार हो उठी.

फिर उसने मेरे चूतड़ों को थोड़ा सा उठा कर अपने लंड को मेरी बिलबिलती चूत मे कुछ इस तरह से चांपा कि मैं तड़प उठी, चीख उठी और चिल्ला उठी, "हाय!! मेरी चूत फटी!! हाय!! मैं मरी!! आह्ह्ह!! हाय बहुत दर्द हो रहा है ज़ालिम!! कुछ तो मेरी चूत का खयाल करो. अरे निकालो अपने इस ज़ालिम लंड को मेरी चूत मे से. हाय!! मै तो मरी आज!!" और मै दर्द के मारे हाथ-पैर पटक रही थी पर उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि मै उसकी पकड़ से छूट न सकि. मेरी कुंवारी चूत को ककड़ी की तरह से चीरता हुआ उसका लंड नश्तर की तरह चुभता गया.

आधे से ज़्यादा लंड मेरी चूत मे घुस गया था. मै पीड़ा से कराह रही थी तभी उसने इतनी जोर से ठाप मारा कि मेरी चूत का दरवाज़ा ध्वस्त होकर गिर गया और उसका पूरा लंड मेरी चूत मे घुस गया. मै दर्द से बिलबिला रही थी और चूत से खून निकल कर बह कर मेरी गांड तक पहुँच गया.

वह मेरे नंगे बदन पर लेट गया और मेरी एक चूचि को मुंह मे लेकर चूसने लगा. मै अपने चूतड़ो को उपर उछालने लगी, तभी वह मेरी चूचियों को छोड़ दोनो हाथ जमीन पर टेक कर लंड को चुत से टोपा तक खींच कर इतनी जोर से ठाप मारा कि पूरा लंड जड़ तक हमारी चूत मे समा गया और मेरा कलेजा थर्थरा उठा. यह क्रिया वह तब तक चलाता रहा जब तक मेरी चूत का स्प्रिंग ढीला नही पड़ गया.

मुझे बाहों मे भर कर वह जोर-जोर से ठाप लगा रहा था. मै दर्द के मारे ओफ़्फ़्फ़ उफ़्फ़्फ़ कर रही थी. कुछ देर बाद मुझे भी जवानी का मज़ा आने लगा और मै भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर गपागप लंड अन्दर करवाने लगी. और कह रही थी, "और जोर से राजा! और जोर से पूरा पेलो! और डालो अपना लंड!"

वह आदमी मेरी चूत पर घमासन धक्के मारे जा रहा था. वह जब उठ कर मेरी चूत से अपना लंड बाहर खींचता था तो मै अपने चूतड़ उचका कर उसके लंड को पूरी तरह से अपनी चूत मे लेने की कोशिश करती. और जब उसका लंड मेरी बच्चेदानी से टकराता तो मुझे लगाता मानो मै स्वर्ग मै उड़ रही हूँ.

अब वह आदमी जमीन से दोनो हाथ उठा कर मेरी दोनो चूचियों को पकड़ कर हमें घपाघप पेल रहा था. यह मेरे बर्दाश्त के बाहर था और मै खुद ही अपना मुंह उठा कर उसके मुंह के करीब किया कि उसने मेरे मुंह से अपना मुंह भिड़ा कर अपनी जीभ मेरे मुंह मे डाल कर अन्दर बाहर करने लगा. इधर जीभ अन्दर बाहर हो रही और नीचे चूत मे लंड अन्दर बाहर हो रहा था. इस दोहरे मज़े के कारण मै तुरन्त ही स्खलित हो गयी और लगभग उसी समय उसके लंड ने इतनी फ़ोर्स से वीर्यपात किया कि मै उसकी छाती से चिपक उठी. उसने भी पुर्ण ताकत के साथ मुझे अपनी छाती से चिपका लिया.

तूफ़ान शांत हो गया. उसने मेरी कमर से हाथ खींच कर बंधन ढीला किया और मुझे कुछ राहत मिली. लेकिन मै मदहोशी मे पड़ी रही.

वह उठ बैठा और अपने साथी के पास गया और बोला, "यार ऐसा गज़ब का माल है प्यारे, मज़ा आ जायेगा. ऐसा माल बड़ी मुश्किल से मिलता है."

मैने मुड़ कर भाभी की तरफ़ देखा. भाभी के उपर भी पहले वाला आदमी चढ़ा हुआ था और उनकी चूत मार रहा था. भाभी भी सी-सी करते हुए बोल रही थी "हाय राजा! ज़रा जोर से चोदो और जोर से हाय!! चूचियां ज़रा कस कर दबाओ ना! हाय मै बस झड़ने वाली हूँ!!" और अपने चूतड़ों को धड़ाधड़ उपर नीचे पटक रही थी.

"हाय मै गयी राजा!" कह कर उन्होने दोनो हाथ फैला दिये.
तभी वह आदमी भी भाभी कि चूचियां पकड़ कर गाल काटते हुए बोला, "मज़ा आ गया मेरी जान!" और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया.

कुछ देर बाद वह भी उठा और अपने कपड़े पहन कर बगल मे हट गया. भाभी उस आदमी के हटने के बाद भी आंखें बंद किये लेटी थी और मैने देखा कि भाभी की चूत से उन दोनो का वीर्य और रज बह कर गांड तक आ पहुँचा था.

अब उनका दूसरा साथी मेरे करीब बैठ कर मेरी चूचियों पर हाथ फिराने लगा और बचा हुआ चौथा आदमी अब मेरी भाभी पर अपना नम्बर लगा कर बैठ गया.

उसके बाद हम भाभी ननद की उन दो आदमीयों ने भी चुदाई की. अबकी बार जो आदमी मेरी भाभी पर चढ़ा था उसका लंड बहुत ही ज़्यादा मोटा और लम्बा, करीब 11" का था. पर मेरी भाभी ने उसका लंड भी खा लिया.

चुदाई का दूसरा दौर पूरा होने पर जब हम उठ कर अपने कपड़े पहनने लगे तो उन्होने कहा कि, "पहले तुम दोनो ननद भाभी अपनी नंगी चूचियों को आपस मे चिपका के दिखाओ."

इस पर जब हम शर्माने लगी तो कहा कि, "जितना शर्माओगी उतनी ही देर होगी तुम लोगों को."

तब मेरी भाभी ने उठ कर मुझे अपनी कोली मै भर और मेरी चूचियों पर अपनी चूचियां रगड़ी और निप्पलों से निप्पल मिला कर उन्हे आपस मे दबाया. वह चारों आदमी इस द्रिश्य को देख कर अपने लंडों पर हाथ फिरा रहे थे. मुझे कुछ अटपटा भी लग रह था और कुछ रोमांच भी हो रहा था.

उसके बाद हमने कपड़े पहने और वह लोग हमे अपनी कार मे वापस मेले के मैदान तक ले आये. उन्होने रास्ते मे फिर से हमे धमकाया कि यदि हमने उनकी इस हरकत के बारे मे किसी से कुछ कहा तो वह लोग हमे जान से मार देंगे. इस पर हमने भी उनसे वादा किया कि हम किसी को कुछ नही बतायेंगे.

जब हम लोग मेले के मैदान पर पहुँचे तो सुना कि वहाँ पर हमारा नाम announce कराया जा रहा था और हमारे मामा-मामी मंडप मे हमारा इंतज़ार कर रहे थे. वह चारों आदमी हमे लेकर मंडप तक पहुँचे. हमारे मामा हमे देख कर बिफ़र पड़े कि, "कहाँ थे तुम लोग अब तक? हम 4 घंटे से तुम्हे खोज़ रहे थे."

इस पर हमारे कुछ बोलने से पहले ही उन चार मे से एक ने कहा, "आप लोग बेकार ही नाराज़ हो रहें हैं. यह दोनो तो आप लोगों को ही खोज रही थी और आपके ना मिलने पर एक जगह बैठी रो रही थी. तभी इन्होने हमे अपना नाम बताया तो मैने इन्हे बताया कि तुम्हारे नाम का announcement हो रहा है और तुम्हारे मामा मामी मंडप मे खड़े है. और इन्हे लेकर यहाँ आया हूँ."

तब हमारे मामा बहुत खुश हुए ऐसे शरीफ़(?) लोगों पर और उन्होने उन अजनबीयों का शुक्रिया अदा किया. इस पर उन चारों ने हमे अपनी गाड़ी पर हमारे घर तक छोड़ने कि पेश्कश कि जो हमारे मामा-मामी ने तुरन्त ही कबूल कर ली.

हम लोग कार मे बैठे और घर को चल दिये.

जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आये हमसे मिलने के लिये.
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संयोग कि बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिये जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही पूछा, "अरे विश्वनाथजी आप यहां? क्या यह आपका परिवार है?"

तो विश्वनाथजी ने कहा, "अरे नही भाई, परिवार तो नही पर हमारे परम मित्र और एक ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह."

फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिये बुलाया और वह सब लोग हमारे साथ ही अन्दर आ गये.

वह चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिये किचन पहुँचे. तभी मेरे मामाजी ने कहा "बहू! ज़रा मेहमानों के लिये चाय बना दे."

और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिये गयी. भाभी ने सबके लिये चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वह उन्हे चाय देने गयी. तब तक मेरे मामा और मामी उपर के कमरे मे चले गये थे और नीचे के उस कमरे मे उस वक्त वह चारों दोस्त और विश्वनाथजी ही थे.

कमरे मे वह पाँचों लोग बात कर रहे थे जिन्हे मै दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बचा कर भाभी की एक चूचि दबा दी. भाभी "सी" कर के रह गयी और खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी.

वह लोग चाय की चुसकी लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.

विश्वनाथजी- "आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं. क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश! तुम्हारे क्या हाल चाल है?"
रमेश- "हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आये. शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आयेंगे तो आपका खर्चा होगा."
विश्वनाथजी- "अरे खर्चे की क्या बात है. अरे यार कोई माल हो तो दिलाओ. खर्चे की परवाह मत करो. वैसे भी फ़ैमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले. अरे सुरेश तुम बोलो ना कब ला रहे कोई नया माल?"
सुरेश- "इस मामले मे तो दिनेश से बात करो. माल तो यही साला रखता है."
दिनेश- "इस समय मेरे पास माल कहाँ? इस वक्त तो महेश के पास माल है."
महेश- "माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें."
विश्वनाथजी- "खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाये, लेकिन अकेले मन नही लग रहा है यार. कुछ जुगाड़ बनवाओ."

मै वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी. तभी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वह भी उन लोगों की बातें सुनने लगी.

सुरेश- "अकेले-अकेले कैसे, तुम्हारे यहां तो सब लोग है."
विश्वनाथजी- "अरे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही हैं. हमारे बच्चे तो गाँव गये है. यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आये है."
महेश- "फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा! अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे."
विश्वनाथजी- "कैसे?"
महेश- "यार यह मत पूछो कि कैसे, बस पहले दावत करो."
विश्वनाथजी- "लेकिन यार कहीं बात उलटी ना पड़ जाये. गाँव का मामला है. बहुत फ़जीता हो जायेगा."
सुरेश- "यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो? सब कुछ हमारे उपर छोड़ दो."
रमेश- "यार एक बात है, बहु की जो सास (मेरी मामी) है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मै तो उसे किसी भी तरह चोदुंगा."
विश्वनाथजी- "अरे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिये बात कर रहे हो?"
महेश- "तुम कल दोपहर को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहु या फिर उसकी ननद."
विश्वनाथजी- "ठीक है फिर तुम चारों कल दोपहर को आ जाना."

मैने सोचा कि अब हमारी खैर नही. पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुजला रही है.

मैने कहा, "क्यों भाभी, चूत चुदवाने को खुजला रही हो?"
भाभी- "हाँ ननद रानी, अब आपसे क्या छुपाना! मेरी चूत बड़ी खुजला रही है. मन कर रहा के कोई मुझे पटक कर चोद दे."
मैने कहा, "पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रुको. तुम्हारी चूत का भोसड़ा बन जायेगा. उन पाँचों के इरादे है हमे चोदने के और वह साला रमेश तो मामीजी को भी चोदना चहता है. अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं यह लोग."

अगली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोये हुये थे. सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लंड जो कि नींद मे भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लंड को ही देख रही थी. उनका लंड धोती के अन्दर तन कर खड़ा था, करीब 10" लम्बा और 3" मोटा, एकदम रौड की तरह.

भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लंड पर से हटा दिया और उनके नंगे लंड को देख कर अपने होठों पर जीभ फिराने लगी. मै भी बेशर्मों की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा, "उई माँ"!"

भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. मै भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा, "देखो कैसे बेहोश सो रहे हैं."
भाभी- "चुप रहो!"
मै- "क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है."
भाभी- "चुप भी रहो ना!"
मै- "इसमे चुप रहने की कौन सी बात है? जाओ और देखो और पकड़ कर मुंह मे भी ले लो उनका खड़ा लंड, बड़ा मज़ा आयेगा."
भाभी- "कुछ तो शर्म करो यूं ही बके जा रही हो."
मे- "तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे उपर से धोती तो तुमने ही हटायी है."
भाभी- "अब चुप भी हो जाओ, कोई सुन लेग तो क्या सोचेगा."

फिर हम लोग रोज़ की तरह काम मे लग गये.

करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आये और हमारे मामा के हाथ मे सामान थमा कर नाश्ते के लिये कहा. और कहा, "आज हमारे चार दोस्त आयेंगे और उनकी दावत करनी है यार. इसलिये यह सामान लाया हुँ भाईया. मुझे तो आता नही है कुछ बनाना. इसलिये तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेग. और हाँ यार तुम पीते तो हो ना?" विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा.

मामा- "नही मै तो नही पीता हूँ यार."
विश्वनाथजी- "अरे यार कभी-कभी तो लेते होगे?"
मामा- "हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही."
विश्वनाथजी- "फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा."
मामा- "ठीक है देखा जायेगा."

हम लोगों ने सामान वगैरह बना कर तैयार कर लिया. 2 बज़े वह लोग आ गये. मै तो उस फिराक मे लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है.

मामा मामी और भाभी उपर के कमरे मे बैठे थे. मै उन चारों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आयी. वह पाँचो लोग बाहर की तरफ़ बने कमरे मे बैठे थे. मै बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.

विश्वनाथजी- "दावत तो तुम लोगों की कर रहा हूँ. अब आगे क्या प्रोग्राम है?"
पहला- "यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीयेगा कि नही?"
विश्वनाथजी- "वह तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिये मना लिया है."
दूसरा- "फिर क्या बात है! समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीयेंगे. फिर उसके गिलास मे कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वह नशे मे आ जायेगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पिला देंगे और फिर नशे मे लाकर उन सालीयों को पटक-पटक कर चोदेंगे."
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Dolly sharma
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Re: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग

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प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे मामा को आवाज़ लगायी.

हमारे मामा नीचे उतर आये और बोले "राम-राम भाईया!"

मामा भी उसी पंचायत मे बैठ गये अब उन लोगों की गपशप होने लगी.
थोड़ी देर बाद आवाज़ आयी कि, "मीना बहू, गिलास और पानी देना!"

जब भाभी पानी और गिलास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा कि विश्वनाथजी की आंखें भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी गिलासों मे दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि मामाजी के गिलास मे पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मंगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा.

जब मै पानी लेने किचन मे गयी तो महेश तुरन्त ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो मम्मों को कस कर दबाते हुए बोल- "इतनी देर मे पानी लायी है, चूतमरानी? ज़रा जल्दी-जल्दी लाओ."

मेरी सिसकारी निकल गयी.

विश्वनाथजी ने मामाजी से पूछा, "वह तुम्हारा नौकर कहाँ गया?"
मामा- "वह नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे. सो उन्ही के साथ गया है. जब तक हम वापस जायेंगे तब तक मे वह आ जायेगा."

फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक मे उन्होने दो बोतल खाली कर दी थी. मैने देखा कि मामा कुछ ज़्यादा नशे मे है. मैं समझ गयी कि उन्होने जान बूझ कर मामा को ज़्यादा शराब पिलायी है.

हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सबज़ी लेकर वहाँ गयी. मै भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देखा कि रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का गिलास पकड़ाना चाहा.

मामीजी ने दारू पीने से मन कर दिया. मै यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश मामाजी से बोला- "अरे यार कहो ना अपनी घरवाली से! वह तो हमारी बेइज़्ज़ती कर रही है."
मामा ने मामी से कहा "राजो, पी लो ना क्यों बेइज़्ज़ती कर रही हो?"
मामीजी- "मै नही पीती."
रमेश- "भईया यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो मै पिला दूं?"
मामा- "अगर नही पी रही है तो साली को पकड़ कर पिला दो!"

मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीजी की बगल मे हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे गिलास को मामीजी के मुंह से लगा दिया और मामीजी को जबरदस्ती दारू पीनी पड़ी.

मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल मे था उसी से वह मामीजी की चूचियां भी दबा रहा था. और जब वह इतनी बेफ़िक्री से मामीजी के बोबे दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें (सिवाय मामाजी के) उसके हाथ से दबते हुए मामीजी के बोबों पर ही थी. यहाँ तक कि उनमे से एक ने तो गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लंड पैंट के उपर से ही मसलना शुरु कर दिया था.

मामीजी के मुंह से गिलास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आयी तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वह मामीजी को पकड़ा दिया.

मामीजी ने वह सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश मामीजी के मना करने पर भी दूसरा गिलास मामीजी को पिला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पिला कर ही माना. और इस बार भी वही कहानी दोहरायी गयी. यानी कि एक हाथ दारू पिला रहा था और दूसरा हाथ मम्मे दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे.

मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वह तो वैसे भी एकदम नशे मे टुन्न हो चुके थे.

अब गिलास रख कर रमेश ने मामीजी के चूतड़ों पर हाथ फिराया और दूसरे हाथ से उनकी चूत को पकड़ कर दबा दिया. मामीजी सिसकी लेकर रह गयी.

मामीजी को सिसकारी लेते देख कर मेरी भी चुत मे सुरसुरी होने लगी.

हम लोग उपर चले गये. फिर नीचे से पानी की आवाज़ आयी. मामीजी पानी लेकर नीचे गयी. तब तक रमेश किचन मे आ पहुँचा था. मामीजी जो पानी देकर लौटी तो रमेश ने मामीजी का हाथ पकड़ कर पास के दूसरे कमरे मे ले जाने लगा.

मामीजी ने कहा, "अरे ये क्या कर रहे हो?" तो वह बोला, "चलो मेरी रानी, उस कमरे चल कर मज़ा उठाते हैं."

मामीजी खुद नशे मे थीं इसलिये कमज़ोर पड़ गयी और ना-ना करती ही रह गयी. पर रमेश उन्हे खींच कर उस कमरे मे ले गया.

मेरी नज़र तो उन दोनो पर ही थी इसलिये जैसे ही वह कमरे मे घुसे मैं तुरन्त दौड़ते हुए उनके पीछे जाकर उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगी कि आगे क्या होता है.

रमेश ने मामीजी को पकड़ कर पलंक पर डाल दिया और उनके पेटीकोट मे हाथ डाल कर उनकी चूत मे उंगली करने लगा.

मामीजी- "हाय, यह क्या कर रहे हो. छोड़ो मुझे नही तो मै चिल्लाऊंगी!"
रमेश- "मेरा क्या जायेगा, चिल्लाओ जोर से! बदनामी तो तुम्हारी ही होगी. नही तो चुपचाप जो मैं करता हूँ वह करवाती रहो!"
मामीजी- "पर तुम करना क्या चाहते हो?"
रमेश- "चुप रहो! तुम्हे क्या मालूम नही है कि मै क्या करने जा रहा हूँ? साली अभी तुझे चोदूंगा. चिल्लायी तो तेरे सभी रिश्तेदार यहाँ आके तुझे नंगी देखेंगे और सोचेंगे कि तू ही हमे यहाँ अपनी चूत मरवाने बुलायी है".

डर के मारे मामीजी चुपचाप पड़ी रहीं और रमेश ने अपने सारे कपड़े उतार कर अपने खड़े लंड का ऐसा जोर का ठाप मारा कि उसका आधा लंड मामीजी की चुत मे घुस गया.

मामीजी- "उइइइ माँ मै मरी!"

मामीजी नशे मे होते हुए भी सिसकीयाँ ले रही थी. तभी रमेश ने दूसरा ठाप भी मारा कि उसका पूरा लंड अन्दर घुस गया.

मामीजी "उईई माँ!! अरे ज़ालिम क्या कर कर रहा है? थोड़ा धीरे से कर" कहती ही रह गयी और वह इंजन के पिस्टन की तरह मामीजी की चूत (जो कि पहले ही भोसड़ा बनी हुई थी) उसके चीथड़े उड़ाने लगा.

इतने मे मैने विश्वनाथजी को उपर की तरफ़ जाते देखा. मै भी उनके पीछे उपर गयी और बाहर से देखा कि भाभी जो कि अपना पेटीकोट उठा कर अपनी चूत मे उंगली कर रही थी, उसका हाथ पकड़ कर विश्वनाथजी ने कहा, "हाय मेरी जान! हम काहे के लिये हैं? क्यों अपनी उंगली से काम चला रही है? क्या हमारे लंड को मौक नही दोगी?"

अपनी चोरी पकड़े जाने पर भाभी की नज़रें झुक गयी थी और वह चुपचाप खड़ी रह गयी.
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