आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ complete
- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
कम्पार्टमेंट के सारे लोग लगभग सो चुके थे और पूरे डब्बे में अँधेरा हो चुका था। मैं मजे से गाने सुनता हुआ खिड़की से आती ठण्ड का मज़ा ले रहा था। तभी मेरे ठीक सामने आकर कोई बैठ गया। मैंने ध्यान से देखा तो पाया कि सिन्हा आंटी अपने बर्थ से उठकर मेरे पास आ गई हैं और खिड़की से बाहर देख रही हैं।
मैंने बैठे हुए ही अपनी टाँगे सामने की तरफ फ़ैला रखी थीं। इस हालत में सिन्हा आंटी भी मेरी ही तरह बैठ गईं और अपने पैरों को मेरी तरफ कर दिया था। बाहर से आती हल्की हल्की रोशनी में हमारी आँखें मिलीं और हम एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दिए।
“मुझे तो ट्रेन में नींद ही नहीं आती… कितनी भी कोशिश कर लूँ पर कोई फायदा नहीं !” आंटी ने धीरे से कहा और फिर बाहर की तरफ देखना शुरू किया।
“कोई बात नहीं आंटी, मुझे भी नींद नहीं आ रही है…इसीलिए गाने सुन रहा हूँ।” मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
आंटी ने अपना कम्बल बर्थ पर ही छोड़ दिया था तो मैंने अपने कम्बल को फैला कर उन्हें अन्दर आने को कहा। आंटी ने कम्बल के अन्दर अपने पैर डाल लिए और अपनी आँखें बंद करके ठंड का मज़ा लेने लगीं। उनके पैर मेरी जांघों तक पहुँच रहे थे और बार बार मेरी जांघों से टकरा रहे थे। ठंड की वजह से उनके पैर बहुत ठन्डे हो चुके थे और मेरी जांघों से टकरा कर सिहरन पैदा कर रहे थे। मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और वापस अपने काम में लग गया। गाने सुनते सुनते काफी देर हो चली थी।
मैंने बाथरूम जाने की सोची और अपने बर्थ से उठा। बाथरूम जाकर मैं वापस अपने सीट पे लौटा तो पाया कि आंटी लम्बी होकर लेट गईं हैं और बिल्कुल सिकुड़ कर कम्बल डाल लिया है मानो मेरे लिए जगह छोड़ रखी हो। उनका सर उलटी ओर था और पैर उस तरफ जिधर मैं बैठा हुआ था। मैं थोड़ी देर उधेड़बुन में रहा और फिर वैसे ही जाकर बैठ गया जैसे पहले बैठा था। आंटी को मेरे आने का एहसास हुआ तो वो उठने लगीं।
“कोई बात नहीं आंटी, आप लेटी रहिये… मैं बैठ जाऊँगा आराम से !” इतना बोलकर मैं उनके पैरों के बगल में बैठ गया और कम्बल से ढक लिया। अब मेरे पैर सीधे होकर आंटी की पीठ से टकरा रहे थे और उनके पैर मेरे कूल्हों से। हम ऐसे ही रहे और सफ़र का मज़ा लेते रहे।
थोड़ी देर के बाद आंटी ने करवट ली और सीधी हो गईं। अब जगह की थोड़ी सी किल्लत हो गई, मैंने एक तरकीब निकाली और अपने पैरों को मोड़कर पालथी मार ली और धीरे से आंटी के पैरों को उठा कर अपनी दोनों जांघों के बीच में रख लिया। यानि अब आंटी का पैर सीधा मेरे लंड के ऊपर था और वो निश्चिन्त होकर सीधी लेटी हुईं थीं। आंटी ने कहा था कि उन्हें ट्रेन में नींद नहीं आती, लेकिन अभी जो मैं देख रहा था वो बिल्कुल अलग था। आंटी नींद में सो रही थीं। शायद थक चुकी थीं इस लिए सो गईं…
ट्रेन के हल्के झटकों की वजह से उनका पैर मेरे लंड को धीरे धीरे सहला रहा था और मैं चोदू इस ख्याल से ही गरम हो गया, मेरे लंड ने सलामी देनी शुरू कर दी। मैं कोशिश कर रहा था कि अपने लंड को काबू में कर सकूँ लेकिन लंड है कि मानता नहीं… नारी का स्पर्श मर्द को नियंत्रणहीन कर ही देता है…
मैं असहज हो गया था, इस बात को सोच कर कि कल ही मैंने उनकी दोनों राजकुमारियों का सील भंग किया था और आज मेरा लंड उनके लिए खड़ा हो गया था। कहीं न कहीं मुझे आत्मग्लानि हो रही थी… लेकिन आप सब समझ सकते हो कि इस स्थिति में कहाँ कुछ समझ आता है। मेरे हाथ सहसा ही आंटी की टांगों पे चले गए और न चाहते हुए भी मैंने उनके पैरों को सहलाना शुरू कर दिया। आंटी कि साड़ी इतना उठ चुकी थीं कि मेरे हाथ उनकी सुडौल पिंडलियों पर घूम रहे थे।
वो नर्म और चिकना एहसास मेरी तृष्णा को और भी भड़का रहा था, मैंने थोड़ा आगे खिसक कर अपने हाथों को आगे बढ़ाया। मैं अपने होश में नहीं रह गया था और बस वासना से वशीभूत होकर उनके घुटनों तक पहुँच गया। घुटनों के थोड़ा ऊपर मेरी उँगलियों ने उनकी जांघों का पहला स्पर्श किया और मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकल पड़ी। आगे खिसकने की वजह से आंटी के पैरों का दबाव मेरे लंड पे कुछ ज्यादा ही हो गया था और मेरे अकड़े हुए लंड ने उनके पैरों से जद्दोजहद शुरू कर दी थी। मन कर रहा था कि अपने हाथ बढ़ा कर उनकी उस जगह को छू लूँ जहाँ से निकली उनकी बेटियों का रसपान किया था मैंने।
मैंने डरते डरते हाथ आगे बढ़ाये… गला सूख रहा था और नज़रें चारों तरफ देख रही थीं कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा…
उँगलियाँ थोड़ा आगे खिसकीं और उनकी जांघों के ऊपरी हिस्से तक पहुँचने ही वाली थीं कि अचानक से ट्रेन रुक गई… कोई स्टेशन आया था शायद.. मैंने झट से अपने हाथ बाहर खींच लिया और सामान्य होकर बैठ गया। आंटी भी हिलने लगीं और उठ कर बैठने लगीं। मैं डरकर सोने का नाटक करने लगा। आंटी ने अपने पैर मेरे जांघों के बीच से निकला और बर्थ से उठ कर बाथरूम की तरफ बढ़ गईं। मैं अब भी वैसे ही बैठा था। मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… मन में सवाल आ रहे थे कि क्या आंटी सब जान रही थीं… क्या वो जानबूझ कर ऐसे पड़ी थीं…??
खैर जो भी हो..ट्रेन चल पड़ी और दो मिनट के बाद आंटी वापस आ गईं। वापस आकर आंटी ने मुझे हिलाया, जगाया, “कितनी देर बैठा रहेगा, थोड़ा सा लेट जा वरना तबियत ख़राब हो जाएगी। चल तू अपना सर मेरी गोद में रख कर लेट जा.. और हाँ अपना ये गानों का डब्बा मुझे दे दे…मैं भी थोड़े गाने सुन लूं !” आंटी ने बड़े ही प्यार से मेरे हाथ पे सर फेरते हुए मुझे सीधा लेटने को कहा और खुद अपने पैरों को मोड़कर पालथी मर ली.
“नहीं आंटी, आप रहने दो मुझे गोद में सर रख कर नींद नहीं आएगी। मैं अपना सर इस तरफ़ कर लेता हूँ, आप बैठ जाओ।” मैंने बहाना बना कर मना कर दिया। हालाँकि मन तो मेरा भी कर रहा था कि मैं उनकी गोद में सर रख कर सो जाऊँ और उनकी चूत पर अपना सर रगड़ दूँ। लेकिन इस बात का भी डर था कि कहीं मेरा उतावलापन सब गड़बड़ न कर दे… अगर आंटी ने कोई बखेरा खड़ा कर दिया तो फिर इज्ज़त तो जाएगी ही साथ ही साथ प्रिया से दूर हो जाऊंगा…
इस ख्याल से मैंने यही उचित समझा कि उन्हें दूसरी तरफ बिठा कर खुद एक तरफ होकर सो जाऊँ। और मैंने ऐसा ही किया, आंटी को बैठने दिया और फिर अपनी टांगों को उनकी तरफ करके लेट गया। आंटी ने पालथी मर रखी थी इसलिए मेरे पैर उनकी जांघों के नीचे दब गए थे। मुझे थोड़ी सी परेशानी होने लगी… अगर मेरे मन में प्रिया का ख्याल न होता तो शायद मैं जानबूझकर अपने पैरों को उनकी जांघों के नीचे दबा देता और उनकी नर्म मुलायम जांघों का मज़ा लेता… लेकिन मैं उस वक़्त हर तरह से खुद को उन भावनाओं से दूर रखने की कोशिश में लगा था।
मैंने अपने पैरों को थोड़ा सा हिलाकर ठीक करने की कोशिश की और इस कोशिश में आंटी को थोड़ा झटका लगा। आंटी ने अपने हाथों में पड़ा आईपॉड नीचे रखा और कम्बल को हटा कर मेरे पैरों को जबरदस्ती अपनी गोद में रख लिया। मैं भी बिना किसी बहस के अपने पैरों को वहीं रखकर लेटा रहा। आंटी ने फिर से कम्बल से खुद को और मेरे पैरों को अच्छे से ढक लिया और वापस से गानों की दुनिया में खो गई…
थोड़ी देर के बाद मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे आंटी अपनी कमर को हिला रही हैं जिससे मेरे पंजे उनके पेड़ू (योनि के ऊपर का हिस्सा) को दबा रहा है। मैं थोड़ी देर रुक कर यह जानने की कोशिश करने लगा कि यह जानबूझ कर किया जा रहा है या ट्रेन के चलने की वजह से ऐसा हो रहा है। मुझे कुछ भी समझ नहीं आया और मैं फिर से अपने आँखें बंद करके लेटा रहा और ट्रेन के हिचकोले खाने लगा।
मेरे पंजे अब भी उस नर्म और गुन्दाज़ जगह का लुत्फ़ उठा रहे थे। लाख कोशिश के बावजूद मैं फिर से गरम होने लगा और मेरे ‘नवाब’ ने अपना सर उठाना शुरू किया। लंड में तनाव आते ही मेरे पंजे अपने आप उस जगह को खोदने से लगे। मुझे एहसास हुआ कि आंटी की साड़ी उस जगह से अलग है जहाँ मेरे पंजे लगे थे और इसी कारण उनके मखमली चमड़े का सीधा सा स्पर्श मैं अपने तलवों पर महसूस कर रहा था।
थोड़ी देर में ऐसा लगा मानो आंटी उठने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन उनकी कोशिश इतनी शांत और स्थिर थी जैसे वो मुझे नींद से जगाना नहीं चाहती हों। उन्हें क्या पता था कि मैं तो जग ही रहा हूँ…
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )
- shubhs
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
Nice
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
jabardast..................
- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
thanks bhai
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- rangila
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Re: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
आंटी पूरी तरह नहीं उठीं, उन्होंने धीरे से मेरे पैरों को उठाकर आहिस्ते से बगल में रख दिया और फिर ऐसा लगा जैसे वो अपने हाथों से अपने पैरों को नीचे से ऊपर की तरफ खुजा रही हों…काफी देर से पैरों को मोड़कर बैठने की वजह से शायद पैरों में झनझनाहट आ गई होगी। मैंने अपना ध्यान हटा लिया और आँखें बंद करके प्रिया की यादों में खो गया। तभी आंटी ने अपने पैर वापस से मोड़ लिए और पहले की तरह मेरे पैरों को उठा कर अपनी गोद में रख लिया।
‘हे प्रभु….; आंटी की गोद में जैसे ही मेरे पैर पहुँचे, मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।
आंटी ने अपनी साड़ी को अपने पैरों से ऊपर कर लिया था और अपनी जांघों को नंगा करके मेरे पंजे वहां रख दिए थे। एक सुखदायी गर्माहट और कोमलता ने मुझे सिहरा दिया और मेरा बदन काँप सा गया… इस कंपकपी में मेरे पैरों की उंगलियाँ हरकत कर गईं और मेरे अंगूठे ने उस स्वर्गद्वार को छू लिया था जिसके बारे में मैं बस सिर्फ कल्पना ही करता था वो भी डरते डरते…
उन्होंने अन्दर कुछ भी नहीं पहना था और उनकी चूत बिल्कुल रोम विहीन थी.. साथ ही साथ मेरे अंगूठे को लसलसेपन और चिकने का एहसास हुआ…
“हम्म्म्म…..!!” यह एक सिसकारी थी जो कि आंटी के मुँह से निकली थी। चलती ट्रेन के शोर में भी मैंने यह कसक भरी आवाज़ सुन ली…
मेरे अंगूठे ने उनके उस हिस्से को छू लिया था जिसके छूने पर बड़े से बड़ी पतिव्रताएं भी अपना संयम खो बैठती हैं और अपनी चूत में लंड डलवा लेती हैं… उनके दाने को मेरे अंगूठे ने रगड़ सा दिया था।
मैं हक्का बक्का बस अगले पल का इंतज़ार कर रहा था… मुझमें इतनी हिम्मत नहीं आ रही थी कि मैं कुछ कर पाता। मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व ने मुझे मूर्तिवत कर दिया था। मैंने सब कुछ भगवन के ऊपर छोड़ दिया और जो भी हो रहा था उसे होने दिया।
थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी थी… पर तभी आंटी का एक पैर उसी अवस्था में खुलने सा लगा और पूरी तरह खुलकर मेरे कूल्हों तक पहुँच गया। अब तक मेरे दोनों पैर उनकी गोद में थे लेकिन आंटी ने अपने एक पैर फ़ैलाने के साथ साथ मेरा भी एक पैर अपनी दोनों जांघों के बीच में कर दिया था और एक पाँव को सीट की ओर रख दिया था। कुल मिलाकर यह स्थिति थी कि आंटी नंगी जांघों के बीच उनकी मखमली चूत पे मेरे दाहिने पैर का पंजा था और आंटी का दाहिना पैर मेरे कूल्हों को छू रहा था। कूल्हों से नीचे मेरे लंड ने उनके घुटनों को अपने होने का एहसास करवाया और आंटी के घुटनों ने भी उन्हें हल्का सा दबाकर उन्हें सलाम किया।
भाई साहब, मैं तो अब प्यास से मारा जा रहा था… मेरे गले का बुरा हाल था सूख कर। अभी कल ही मैंने उनकी दोनों बेटियों को जम कर चोदा था और अपने लंड का गुलाम बनाया था, और आज उनकी माँ अपनी चूत में मेरा लंड लेने के लिए खेल खेल रही थी… एक पल को तो मुझे कुछ शक सा हुआ कि कहीं ये पूरा परिवार ही ऐसे तो नहीं… लेकिन कल ही मैंने रिंकी और प्रिया दोनों की सील तोड़ी थी तो यह तो पक्का था कि ऐसा नहीं हो सकता। सिन्हा आंटी को मैंने हमेशा अकेला ही देखा था। मेरा मतलब है कि सिन्हा अंकल न के बराबर आते थे घर पे। आंटी के साथ तो उन्हें कभी देखा ही नहीं।
शायद आंटी की तड़प की वजह ये दूरियाँ ही थीं… बहरहाल आंटी अपनी कमर को थोड़ा हिला कर मेरे अंगूठे से रगड़ रहीं थीं अपनी चूत को और अपने घुटने से मेरे लंड को दबाये जा रही थीं.. मेरा बुरा हाल था, आंटी के इतना सब करने के बाद भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ करने की। मैं बस उनकी चूत को अपने पैरों से सहला कर और अपने लंड को उनके घुटने पर रगड़ कर मज़े ले रहा था। ट्रेन अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही थी और गाड़ी के हिचकोले हम दोनों को अपने अपने काम में मदद कर रहे थे।
थोड़ी देर में ही मुझे अपने अंगूठे पे ढेर सारा गर्म पानी का एहसास हुआ…
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…
“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…
“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।
एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि आसनसोल स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब डेढ़ बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की बाँहों में था और एक भी आवाज़ नहीं हो रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जो कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैं बाथरूम में घुस कर अपना लोअर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।
ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।
“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…
मैंने झट से अपने लंड को अपने लोअर में डाल लिया और दरवाज़ा खोलने लगा.. सच बताऊँ तो मैं वासना की आग में इतना वशीभूत था कि मेरे दिमाग में सहसा ही यह ख्याल आ गया कि यह आंटी होंगी… और यही सोच कर मैंने दरवाज़ा जल्दी से खोल दिया…
लेकिन दरवाज़े पे जिसे पाया उसे देख कर थोड़ा चौंक गया।
सामने रिंकी खड़ी थी और वो बिना कोई मौका दिए मुझे अन्दर ठेल कर बाथरूम में घुस गई और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद करते ही पलट कर मेरे सीने से लिपट गई।
अचानक से हुए इस हमले से मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और उसे अलग कर दिया…
“तुम कब जागी…और तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ…कोई जग तो नहीं रहा?” एक के साथ एक मैंने कई सवाल पूछ डाले रिंकी से…
“हे भगवन, तुम तो लड़कियों की तरह डर रहे हो और सवाल किये जा रहे हो… ये लाइन्स लड़कियों की हैं..” इतना कहकर वो हंसने लगी।
मुझे सच में एहसास हुआ कि वो सही कह रही है… मैं सच में डरा हुआ था… लेकिन मुझे डर यह था कि सिन्हा आंटी अभी थोड़ी देर पहले तक मेरे साथ जग रही थीं, कहीं वो इधर आ गईं तो सब गड़बड़ हो जाएगी… रिंकी या प्रिया… इन दोनों को चोद कर तो मैंने पहले ही अपने लंड का स्वाद चखा दिया था और उनकी कुंवारी चूतों का रस पी लिया था और उन्हें जब चाहता, तब चोद सकता था… लेकिन अगर आंटी ने हमें देख लिया तो मेरे हाथों से तीन तीन चूत दूर हो जातीं… हाँ दोस्तों, मुझे यकीन हो चला था कि मुझे रिंकी और प्रिया के साथ उनकी माँ की चूत भी मिलने वाली है.. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता था इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं कर रहा था रिंकी की तरफ।
रिंकी एक बार फिर से मुझसे लिपट गई और मेरे खड़े लंड के ऊपर अपनी चूत को दबाने लगी। मैंने भी उसे अपनी ओर खींच कर दबा दिया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरा लंड तो पहले से ही तड़प रहा था किसी चूत के पास जाने के लिए, फिर चाहे वो माँ की हो या फिर बेटी की…
रिंकी ने झट से अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को थाम लिया और उसे मसलने लगी… एक ही चुदाई में बहुत खुल गई थी वो। मैंने भी अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख कर दबाया…
“आह्ह…” उसने भी ठीक वैसी ही आह भरी जैसी मेरी प्रिया रानी ने सुबह भरी थी… यानि कि उसकी चूचियों को भी शायद मैंने ज्यादा ही मसल दिया था और वो अब भी दुःख रही थीं।
क्या करूँ, मैं चूचियों का दीवाना था… था नहीं, आज भी हूँ !!
खैर, अब मेरे दिमाग में सीधा यह सवाल आया कि कहीं प्रिया रानी की तरह रिंकी ने भी अपनी चूत पर हाथ नहीं रखने दिया तो मेरा लंड फिर से प्यासा रह जायेगा। इसी लिए मैंने जांचने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाकर उसकी चूत को उसके स्कर्ट के ऊपर से सहलाया तो उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और रोक दिया… उसने अपनी आँखों में एक अजीब सी विनती भरी नज़र दी जैसे कह रही हो कि तकलीफ है… मैं समझ तो गया था लेकिन फिर भी उसे इशारे से पूछने लगा कि क्या हुआ है..
रिंकी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर अपनी चूत पे रख दिया… यहाँ भी वही बात थी, यानि अन्दर कोई वस्त्र नहीं था, चूत बिल्कुल नंगी थी। लेकिन मेरे हाथों को कुछ और ही महसूस हुआ…मेरी हथेली में उसकी चूत बिल्कुल भर सी गई, मानो फूल कर कुप्पा हो गई हो। चूत उतनी ही ज्यादा गर्म थी…
“देख लो क्या हाल किया है तुमने… बेचारी सूज कर लाल हो गई है और गरम हो गई है… भांप निकल रही है।” रिंकी ने मेरे हाथ को अपनी चूत पे दबाते हुए कहा।
मैं तुरंत ही उसकी बात का जवाब दिए बिना नीचे बैठ गया और उसकी स्कर्ट को सीधा उठा दिया। बाथरूम की दुधिया रोशनी में उसकी सूजी हुई चूत को देखता ही रह गया… सच में उसकी चूत का बुरा हाल था। दोनों होंठ और दाना बिल्कुल लाल हो गया था। एक बार को मुझे भी बुरा लगने लगा.. लेकिन फिर अपने लंड पे नाज़ करते हुए मैं मुस्कुरा पड़ा और आगे बढ़ कर उसकी चूत पे अपने होंठों से एक हल्की सी पप्पी ले ली।
“उह्ह्हह… ऐसे मत करो ना.. मैं मर जाऊँगी… कल तक रुक जाओ, फिर मैं इसे वापस तुम्हारे लायक बना दूंगी… बस आज रुक जाओ !” रिंकी ने मुझसे गुहार लगते हुए कहा।
मैं उसके कहने से पहले ही यह फैसला कर चुका था कि आज इस चूत को परेशान नहीं करूँगा, अब तो ये मेरी ही है और आराम से इसका रस चखूँगा… लेकिन फिर भी मैंने अपने चेहरे पे एक दुखी सा भाव लाते हुए कहा, “उफ्फ्फ..। ये अदा ! जब प्यासा ही रखना था तो समुन्दर के दर्शन क्यूँ करवाए?”
मैंने उसके हाथों से अपने लंड को छुड़ाने का नाटक किया।
“ओहो…मेरे रजा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।” रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।
‘हे प्रभु….; आंटी की गोद में जैसे ही मेरे पैर पहुँचे, मेरे मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।
आंटी ने अपनी साड़ी को अपने पैरों से ऊपर कर लिया था और अपनी जांघों को नंगा करके मेरे पंजे वहां रख दिए थे। एक सुखदायी गर्माहट और कोमलता ने मुझे सिहरा दिया और मेरा बदन काँप सा गया… इस कंपकपी में मेरे पैरों की उंगलियाँ हरकत कर गईं और मेरे अंगूठे ने उस स्वर्गद्वार को छू लिया था जिसके बारे में मैं बस सिर्फ कल्पना ही करता था वो भी डरते डरते…
उन्होंने अन्दर कुछ भी नहीं पहना था और उनकी चूत बिल्कुल रोम विहीन थी.. साथ ही साथ मेरे अंगूठे को लसलसेपन और चिकने का एहसास हुआ…
“हम्म्म्म…..!!” यह एक सिसकारी थी जो कि आंटी के मुँह से निकली थी। चलती ट्रेन के शोर में भी मैंने यह कसक भरी आवाज़ सुन ली…
मेरे अंगूठे ने उनके उस हिस्से को छू लिया था जिसके छूने पर बड़े से बड़ी पतिव्रताएं भी अपना संयम खो बैठती हैं और अपनी चूत में लंड डलवा लेती हैं… उनके दाने को मेरे अंगूठे ने रगड़ सा दिया था।
मैं हक्का बक्का बस अगले पल का इंतज़ार कर रहा था… मुझमें इतनी हिम्मत नहीं आ रही थी कि मैं कुछ कर पाता। मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व ने मुझे मूर्तिवत कर दिया था। मैंने सब कुछ भगवन के ऊपर छोड़ दिया और जो भी हो रहा था उसे होने दिया।
थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी थी… पर तभी आंटी का एक पैर उसी अवस्था में खुलने सा लगा और पूरी तरह खुलकर मेरे कूल्हों तक पहुँच गया। अब तक मेरे दोनों पैर उनकी गोद में थे लेकिन आंटी ने अपने एक पैर फ़ैलाने के साथ साथ मेरा भी एक पैर अपनी दोनों जांघों के बीच में कर दिया था और एक पाँव को सीट की ओर रख दिया था। कुल मिलाकर यह स्थिति थी कि आंटी नंगी जांघों के बीच उनकी मखमली चूत पे मेरे दाहिने पैर का पंजा था और आंटी का दाहिना पैर मेरे कूल्हों को छू रहा था। कूल्हों से नीचे मेरे लंड ने उनके घुटनों को अपने होने का एहसास करवाया और आंटी के घुटनों ने भी उन्हें हल्का सा दबाकर उन्हें सलाम किया।
भाई साहब, मैं तो अब प्यास से मारा जा रहा था… मेरे गले का बुरा हाल था सूख कर। अभी कल ही मैंने उनकी दोनों बेटियों को जम कर चोदा था और अपने लंड का गुलाम बनाया था, और आज उनकी माँ अपनी चूत में मेरा लंड लेने के लिए खेल खेल रही थी… एक पल को तो मुझे कुछ शक सा हुआ कि कहीं ये पूरा परिवार ही ऐसे तो नहीं… लेकिन कल ही मैंने रिंकी और प्रिया दोनों की सील तोड़ी थी तो यह तो पक्का था कि ऐसा नहीं हो सकता। सिन्हा आंटी को मैंने हमेशा अकेला ही देखा था। मेरा मतलब है कि सिन्हा अंकल न के बराबर आते थे घर पे। आंटी के साथ तो उन्हें कभी देखा ही नहीं।
शायद आंटी की तड़प की वजह ये दूरियाँ ही थीं… बहरहाल आंटी अपनी कमर को थोड़ा हिला कर मेरे अंगूठे से रगड़ रहीं थीं अपनी चूत को और अपने घुटने से मेरे लंड को दबाये जा रही थीं.. मेरा बुरा हाल था, आंटी के इतना सब करने के बाद भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ करने की। मैं बस उनकी चूत को अपने पैरों से सहला कर और अपने लंड को उनके घुटने पर रगड़ कर मज़े ले रहा था। ट्रेन अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही थी और गाड़ी के हिचकोले हम दोनों को अपने अपने काम में मदद कर रहे थे।
थोड़ी देर में ही मुझे अपने अंगूठे पे ढेर सारा गर्म पानी का एहसास हुआ…
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…
“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…
“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैंने अपने लंड को यही समझाकर सो गया।
एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि आसनसोल स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब डेढ़ बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की बाँहों में था और एक भी आवाज़ नहीं हो रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जो कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैं बाथरूम में घुस कर अपना लोअर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।
ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।
“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…
मैंने झट से अपने लंड को अपने लोअर में डाल लिया और दरवाज़ा खोलने लगा.. सच बताऊँ तो मैं वासना की आग में इतना वशीभूत था कि मेरे दिमाग में सहसा ही यह ख्याल आ गया कि यह आंटी होंगी… और यही सोच कर मैंने दरवाज़ा जल्दी से खोल दिया…
लेकिन दरवाज़े पे जिसे पाया उसे देख कर थोड़ा चौंक गया।
सामने रिंकी खड़ी थी और वो बिना कोई मौका दिए मुझे अन्दर ठेल कर बाथरूम में घुस गई और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद करते ही पलट कर मेरे सीने से लिपट गई।
अचानक से हुए इस हमले से मैं थोड़ा हड़बड़ा गया और उसे अलग कर दिया…
“तुम कब जागी…और तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहाँ हूँ…कोई जग तो नहीं रहा?” एक के साथ एक मैंने कई सवाल पूछ डाले रिंकी से…
“हे भगवन, तुम तो लड़कियों की तरह डर रहे हो और सवाल किये जा रहे हो… ये लाइन्स लड़कियों की हैं..” इतना कहकर वो हंसने लगी।
मुझे सच में एहसास हुआ कि वो सही कह रही है… मैं सच में डरा हुआ था… लेकिन मुझे डर यह था कि सिन्हा आंटी अभी थोड़ी देर पहले तक मेरे साथ जग रही थीं, कहीं वो इधर आ गईं तो सब गड़बड़ हो जाएगी… रिंकी या प्रिया… इन दोनों को चोद कर तो मैंने पहले ही अपने लंड का स्वाद चखा दिया था और उनकी कुंवारी चूतों का रस पी लिया था और उन्हें जब चाहता, तब चोद सकता था… लेकिन अगर आंटी ने हमें देख लिया तो मेरे हाथों से तीन तीन चूत दूर हो जातीं… हाँ दोस्तों, मुझे यकीन हो चला था कि मुझे रिंकी और प्रिया के साथ उनकी माँ की चूत भी मिलने वाली है.. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता था इसलिए अपनी तरफ से कोई पहल नहीं कर रहा था रिंकी की तरफ।
रिंकी एक बार फिर से मुझसे लिपट गई और मेरे खड़े लंड के ऊपर अपनी चूत को दबाने लगी। मैंने भी उसे अपनी ओर खींच कर दबा दिया और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरा लंड तो पहले से ही तड़प रहा था किसी चूत के पास जाने के लिए, फिर चाहे वो माँ की हो या फिर बेटी की…
रिंकी ने झट से अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे लंड को थाम लिया और उसे मसलने लगी… एक ही चुदाई में बहुत खुल गई थी वो। मैंने भी अपना हाथ उसकी चूचियों पर रख कर दबाया…
“आह्ह…” उसने भी ठीक वैसी ही आह भरी जैसी मेरी प्रिया रानी ने सुबह भरी थी… यानि कि उसकी चूचियों को भी शायद मैंने ज्यादा ही मसल दिया था और वो अब भी दुःख रही थीं।
क्या करूँ, मैं चूचियों का दीवाना था… था नहीं, आज भी हूँ !!
खैर, अब मेरे दिमाग में सीधा यह सवाल आया कि कहीं प्रिया रानी की तरह रिंकी ने भी अपनी चूत पर हाथ नहीं रखने दिया तो मेरा लंड फिर से प्यासा रह जायेगा। इसी लिए मैंने जांचने के लिए अपना एक हाथ बढ़ाकर उसकी चूत को उसके स्कर्ट के ऊपर से सहलाया तो उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और रोक दिया… उसने अपनी आँखों में एक अजीब सी विनती भरी नज़र दी जैसे कह रही हो कि तकलीफ है… मैं समझ तो गया था लेकिन फिर भी उसे इशारे से पूछने लगा कि क्या हुआ है..
रिंकी ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर अपनी चूत पे रख दिया… यहाँ भी वही बात थी, यानि अन्दर कोई वस्त्र नहीं था, चूत बिल्कुल नंगी थी। लेकिन मेरे हाथों को कुछ और ही महसूस हुआ…मेरी हथेली में उसकी चूत बिल्कुल भर सी गई, मानो फूल कर कुप्पा हो गई हो। चूत उतनी ही ज्यादा गर्म थी…
“देख लो क्या हाल किया है तुमने… बेचारी सूज कर लाल हो गई है और गरम हो गई है… भांप निकल रही है।” रिंकी ने मेरे हाथ को अपनी चूत पे दबाते हुए कहा।
मैं तुरंत ही उसकी बात का जवाब दिए बिना नीचे बैठ गया और उसकी स्कर्ट को सीधा उठा दिया। बाथरूम की दुधिया रोशनी में उसकी सूजी हुई चूत को देखता ही रह गया… सच में उसकी चूत का बुरा हाल था। दोनों होंठ और दाना बिल्कुल लाल हो गया था। एक बार को मुझे भी बुरा लगने लगा.. लेकिन फिर अपने लंड पे नाज़ करते हुए मैं मुस्कुरा पड़ा और आगे बढ़ कर उसकी चूत पे अपने होंठों से एक हल्की सी पप्पी ले ली।
“उह्ह्हह… ऐसे मत करो ना.. मैं मर जाऊँगी… कल तक रुक जाओ, फिर मैं इसे वापस तुम्हारे लायक बना दूंगी… बस आज रुक जाओ !” रिंकी ने मुझसे गुहार लगते हुए कहा।
मैं उसके कहने से पहले ही यह फैसला कर चुका था कि आज इस चूत को परेशान नहीं करूँगा, अब तो ये मेरी ही है और आराम से इसका रस चखूँगा… लेकिन फिर भी मैंने अपने चेहरे पे एक दुखी सा भाव लाते हुए कहा, “उफ्फ्फ..। ये अदा ! जब प्यासा ही रखना था तो समुन्दर के दर्शन क्यूँ करवाए?”
मैंने उसके हाथों से अपने लंड को छुड़ाने का नाटक किया।
“ओहो…मेरे रजा जी… मैं तो बस आपके उनसे मिलने आई थी जिन्होंने मुझे जन्नत दिखाई थी।” रिंकी ने इतना कहते हुए मेरे लोअर में हाथ डाल दिया और मेरे लंड को एकदम से बाहर निकाल लिया।
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
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