वारदात complete novel

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007
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Re: वारदात

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तांत्रिक के बुलाये ठीक समय पर नकाबपोश ठिकाने पर पहुचा । खोखली चट्टान कै भीतर जाने वाले संकरे रास्ते पर अब पत्थर नहीं था । रास्ता खुला था I नकाबपोश भीतर प्रवेश कर गया । भीतर प्रवेश करतें ही नकाबपोश ठिठक गया । तांत्रिक अपनी चौकी के करीब ही आराम करने की मुद्रा में लेटा हुआ था । नकाबपोश क्रो देखकर उसके चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं आए । गले तक उसने कपडा ओढ रखा था । नकाबपोश ने करीब पहुंचकर दोनों हाथ जोडे ।।


"गुरुदेव, मुझसे कुछ नाराज लग रहे हैं?" नकाबपोश ने आदर भाव से कहा ।

“नादान !” तांत्रिक का स्वर क्षीण था…"तूने मुझे कहीँ का ना छोडा । मैरी जिन्दगी की आधी से ज्यादा तपस्या तेरी जिद की भेंट चढ गई l"




"मैं समझा नहीं गुरुदेव?" . .



“यह देख… ।" तांत्रिक ने अपने शरीर का कपड़ा उतारकर फेंक दिया । नकाबपोश तांत्रिक के शरीर की हालत देखते ही मन ही मन कांप उठा । तांत्रिक के शरीर पर जगह-जगह जख्मों के निशान नज़र आ रहे थे । वास्तव से उसके शरीर की बहुत बुरी हालत थी।


.“यह किसने किया गुरुदेव?" नकाबपोश की आवाज एकाएक सख्त हो गई-"मुझे बताइये गुरुदेव, मैँ उसे जिदा नहीं छोडूंगा जिसने मेरे गुरु की तरफ आंख उठाई… ।"



"वेवकूफ ।” तांत्रिक की आवाज मेँ कमजोरी थी----“आम इन्सान में इतनी हिम्मत कहा' जो मुझे हाथ लगा सके । यह तो भैरोनाथ ने मुझे सजा दी हे !"


“क क्यों गुरुदेव?"



"क्योकि उसकी निगाहों में मेंने गलत काम कर डाला हे ।” तांत्रिक ने भारी स्वर में कहा…"उसकी रुह ने आकर मुझ पर क्रोड़े बरसाये हैं । भैरोनाथ का कहना हे, मरे हुए जिस्म में दोबारा आत्मा का पुन: प्रवेश कराना उचित नहीं और मैंने ऐसा कर डाला हे । इस बार तो उसने कोडे के साथ मेरी आधी शक्ति वापस ले ली है । उसका कहना है कि अगर जिन्दगी में मैंने फिर ऐसा किया तो वह मेरे प्राण निकाल लेगा I"



नकाबपोश कै समूचे जिस्म में प्रसन्नता की लहर दौडती चली गई ।



“मुझें वास्तव में दुख है गुरुदेव कि मेरौं जिद के कारण आपको कष्ट उठाना पड़ा । आपका मतलब है कि राजीव ~ मल्होत्रा के जिस्म में आपने उसकी आत्मा का प्रवेश कर दिया है?”



"हां नादान, सब काम पूरा करा दिया हे हमने ।"


"गुरुदेव ।। राजीव को पहले की जिन्दगी याद है?"

"बेवकूफ ! जब वही शरीर, वहीँ आत्मा हे तो पहले की जिन्दगी याद क्यों नहीं होगी । वह वैसा ही है, जैसा पहले था । कई वार मुझसे लड चुका हे । जिद करता हैं यहां से जाने की । कहीं जाने को वह वहुत बेचैन लग रहा है । लेकिन उसके गिर्द दायरा खींचकर मैंने उसे बांध रखा हे । मेरी इच्छा कै बिरूद्ध वह उस दायरे से बाहर नहीं निकल सकता ।"

"उसके पास चले गुरुदेव?" नकाबपोश का स्वर काप रहा था ।



"हां-हा चल ।" कहने के साथ ही तांत्रिक ने शराब की बोतल खोल ली ।


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फीनिश
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खोखली चट्टान के पीछे वाले कमरे में आठ फीट के गोल दायरे में राजीव मल्होत्रा बेचैनी से घूम रहा था । जब भी वह उस दायरे को पार करने की चेष्टा करता, दायरे की लकीर से भयानक आग भडक उठती , जिसके कांरण मजबूरन उसे पीछे हटता पडता । राजीव बहुत व्याकुल था उसे ऐसा लग रहा था जैसे गहरी नीदे से उठा हो । परन्तु वह जानता था कि दिवाकर ने धूसे मारकर उसकी जान निकाल, दी ।


अंजना कै साथ शादी करने कै सुनहरी सपने को उसके ही दोस्तों ने मिट्टी में मिला दिया था। बेंक डकैती की दौलत अंजना कै पास रख छोडी थी ।



राजीव बेचैन, व्याकुल इसलिए था कि वह अंजना की सलामती और डकैती. के पैसे की सलामती की तसल्ली करना चाहता 'था । उसके बाद वह अपने-हरामी कमीने दोस्तों,क्रो उसकी जान लेने की सजा देना चाहता था । उसके ना पहुचने पर अंजना पर क्या बीती होगी? उसकी मौत के बारे में जानकर अंजना का क्या हाल हुआ होगा?

तभी उसने कदमों की आवाज सुनकर गंर्दन घुमाई, तो तांत्रिक कै साथ एक नकाबपोश को वहां प्रवेश करते देखा ।


“गुरुदेवा यह-तों....यह तो वेसा ही है ।” नकाबपोश के होठों से थरथराता स्वर निकला ।

"नांदान ।" तांत्रिक नकाबपोश को देखकर गुर्राया-फिर बोतल का तगड़ा घूंट भरते हुए कहा-"हमने कब कहा था कि यह वैसा ही नहीं हे 1 मरा हुआ इन्सान जिंदा होकर पहले जैसा ही होता है !*




"तुम्हें अपनी जिन्दगी के बारे में सबकुछ याद है?" नकाबपोश ने राजीव से पूछा ।



नकाबपोश को घूरते हुए राजीव ने सिर हिला दिया ।



“वेरी गुड । तुम्हें फिर से जिन्दा देखकर मुझे लग रहा है, जैसे मैं संसार का सबसे बडा आश्चर्य देख रहा हू।”



राजीव ने गहरी निगाहों से नकाबपोश को देखा ।


"कौन हो तुम?"




"इस बात को छोडी राजीव किं कौन हू में । तुम सिर्फ इतना ध्यान में रखो कि मैंने बहुत ही कठिनाइयों के साथ अपने गुरुदेव को इस बात के लिए तैयार किया कि यह तुममें पुन जान डालें । तुम्हारी आत्मा को वापस तुम्हारे शरीर में प्रवेश करायें । मेरे और मेरे गुरु कै लिए यह बहुत ही खतरे का काम था, परन्तु हमने किंया-इसी कारण तुम्हें पुन जिन्दमी मिली है ।"


राजीव नकाबपोश को घूरता रहा ।


"मैंने जो कुछ भी तुम्हारे लिए किया, उसके लिए तुम्हें मेरा तमाम उम्र एहसानमंद होना चाहिए । सारा जन्म तुम्हें मेरा सेवक बनकर रहना चाहिए ।" नकाबपोश गम्भीर लहजे मेँ कह रहा था-"लेकिन मैं तुमसे ऐसा कुछ नहीं मांगता । तुम आजाद हो, हमेशा के लिए । मुझे तुमसे कुछ नहीँ चाहिए, सिवाय तुम्हारे छ महीनों के । आज से छ: महीने तक तुम मेरा कहना मानोगे । जो मैँ कहूंगा, वहीँ करोगे । यूं समझो कि इन्ही छ: महीनों के दरम्यान मैँने तुमसे जो काम लेना है

सिर्फ उसके लिए ही मैंने तुम्हारे मुर्दा जिस्म में जान डलबाई I" नकाबपोश चन्द पल खामोश रहकर पुन कहने लगा --- "मैं तुम्हें कम शब्दों में सब-कुछ बताता हूं। जब तुमने अपने दोस्तों कै साथ मिलकर बैंक-डकैती डाली उससे दो महीने पहले से ही मै तुम पर निगाह रख रहा था, जव तुम अंजना नाम की लडकी से मिलते थे, उससे शादी करने की सोच रहे थे । और सुबह से शाम तक नौकरी दूंढ़ते रहते थे , मैंने दो महीने बराबर तुम पर नजर रखी, क्योंकि तुम्हारे बारे में मै सब-कुछ जानना चाहता था कि तुम मेरे काम कै आदमी हो या नहीँ । दो महीनों में मुझे तुम पर पूरा विश्वास हो गया फि तुम मेरे काम के आदमी साबित है सकते हो । तब मैं तुमस बात करने ही वाला था कि तभी तुमने अपने दोस्तों कै साथ मिलकर बैंक डकैती कर डाली और डकैती की रात ही मर गए । तब मैंने गुरुदेव से आकर बात की कि तुम्हें फिर से जिन्दा करना वृहुत जरूरी है I किसी तरह मैने गुरुदेव से वायदा ले लिया और तुम्हें शमशान से उठाक्रर यहा ले आया, तब तुम चिता पर जलने के लिए पडे थे । मेने तुम्हारे मुर्दा जिस्म को बीस हजार रुपये में शमशान कँ बूढे से खरीदा था । जरूस्त पड़ने पर में तुम्हारे मुर्दा जिस्म के उसने पांच लाख भी दे सकता था।"



राजीव हैरानी से नकाबपोश को बात सुन रहा था ।।



"लेकिन तुम्हें मुझसे काम क्या है?"



क्षण-भर सोचकंर नकाबपोश पुन: वोला ।।




"बिशालगढ में एक अरबोंपति व्यक्ति है. रंजीत श्रिवास्तव । बिशालगढ़ की सबसे बडी हस्ती हे l तुम उस अरबोपति व्यक्ति के हमशक्ल-हम उम्र हो ।"



" क्या ?" हैरानी से राजीव का मुह खुला का खुला रह गया ।



“ हां , बस यही कारण हैं तुम्हें दोबारा जिन्दा कराने का l" नकाबपोश स्थिर लहजे में कहे जा रहा था-"रंजीत श्रीवास्तव की अरबों की दौलत पर मेरी नजर है l उसकी सारी दौलत हथिया लेना चाहता हूं । -------

अब 9बजे के बाद सिर्फ उसके लिए ही मैंने तुम्हारे मुर्दा जिस्म में जान डलबाई I" नकाबपोश चन्द पल खामोश रहकर पुन कहने लगा --- "मैं तुम्हें कम शब्दों में सब-कुछ बताता हूं। जब तुमने अपने दोस्तों कै साथ मिलकर बैंक-डकैती डाली उससे दो महीने पहले से ही मै तुम पर निगाह रख रहा था, जव तुम अंजना नाम की लडकी से मिलते थे, उससे शादी करने की सोच रहे थे । और सुबह से शाम तक नौकरी दूंढ़ते रहते थे , मैंने दो महीने बराबर तुम पर नजर रखी, क्योंकि तुम्हारे बारे में मै सब-कुछ जानना चाहता था कि तुम मेरे काम कै आदमी हो या नहीँ । दो महीनों में मुझे तुम पर पूरा विश्वास हो गया फि तुम मेरे काम के आदमी साबित है सकते हो । तब मैं तुमस बात करने ही वाला था कि तभी तुमने अपने दोस्तों कै साथ मिलकर बैंक डकैती कर डाली और डकैती की रात ही मर गए । तब मैंने गुरुदेव से आकर बात की कि तुम्हें फिर से जिन्दा करना वृहुत जरूरी है I किसी तरह मैने गुरुदेव से वायदा ले लिया और तुम्हें शमशान से उठाक्रर यहा ले आया, तब तुम चिता पर जलने के लिए पडे थे । मेने तुम्हारे मुर्दा जिस्म को बीस हजार रुपये में शमशान कँ बूढे से खरीदा था । जरूस्त पड़ने पर में तुम्हारे मुर्दा जिस्म के उसने पांच लाख भी दे सकता था।"



राजीव हैरानी से नकाबपोश को बात सुन रहा था ।।



"लेकिन तुम्हें मुझसे काम क्या है?"



क्षण-भर सोचकंर नकाबपोश पुन: वोला ।।




"बिशालगढ में एक अरबोंपति व्यक्ति है. रंजीत श्रिवास्तव । बिशालगढ़ की सबसे बडी हस्ती हे l तुम उस अरबोपति व्यक्ति के हमशक्ल-हम उम्र हो ।"



" क्या ?" हैरानी से राजीव का मुह खुला का खुला रह गया ।



“ हां , बस यही कारण हैं तुम्हें दोबारा जिन्दा कराने का l" नकाबपोश स्थिर लहजे में कहे जा रहा था-"रंजीत श्रीवास्तव की अरबों की दौलत पर मेरी नजर है l उसकी सारी दौलत हथिया लेना चाहता हूं
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Re: वारदात

Post by 007 »

अब उसके हमशक्ल कै रूप मैं तुम मेरे सामने हो तो यह काम कतई नामुमकिन नहीं रहा । बहुत जल्द में तुम्हें रंजीत श्रीवास्तव बनाकर उसकी जगह पर बिठा दूंगा और रफ्तार के साथ तुम उसकी दौलत को मैरे हवाले करना शुरू कर दोगे ।"



"लेकिन..... लेकिन यह तो गलत बात हे I” राजीव कै होठों से निकला । नकाबपोश की आंखों में क्रोध से भरी लहर चमकी ।



"तुम मर चुके थे । मैंने तुम्हारे मुर्दा जिस्म में जान डलवाई। तुम यह कहते अब अच्छे नहीं लगते कि यह गलत बात हे । तुम्हें मेरा एहसान मानना चाहिए कि मैंने तुम्हें नई जिन्दगी दी । अब तुम्हें वहीँ करना चाहिए जो मै पसन्द करू । और फिर तुम खुद बेंक डकैती और तीन हत्याओं के मुजरिम हो l”



“अगर न करू तो?”



"तो मै तुम्हें फिर मुर्दा… ।"



"नहीं I” तांत्रिक शराब का घूंट भरकंर बोला-"अब इसे मैं नहीँ मार सकता। इसे मैंने ही जिन्दगी दी हे, इसलिए इसकी जान नहीँ ले सकता I अगर मैंने ऐसा किया तो भैरोनाथ मुझसे सख्त नाराज हो जाएगा I यह हमारी विद्या के उसूल के खिलाफ हे ।"



नकाबपोश ने विवशताभरी निगाहों से राजीव को देखा ।



. . चंद पदलों की खामोशी के पश्चात्, राजीव गम्भीर स्वर में बोला I I



" मैं एहसान-फरामोश नहीं हू I तुमने मेरे मुर्दा जिस्म में जान डलवाकर मेरे ऊपर वास्तव में बहुत बड़ा एहसान किया हे I इसलिए तुम मुझसे जो भी करवाना चाहते हो, वह अवश्य करूंगा I तुम्हें निराशा नहीं होगीं I”



नकाबपोश की आंखों में खुशी से भरी चमक दौड़ गई I



"लेकिन तुम्हारा काम पैं कुछ समय के बाद करूगां पहले मुझे कमीने दोस्तों से अपनी मौत और...... उनके द्वारा की गई गद्दारी का बदला लेना है । मेरी जान लेकर उन्होंने वहुत ही गलत काम किया था । मैं… ।"




"लेकिन तव तक तो बहुत देर हो जाएगी ।" नकाबपोश उसकी बात काटकर बीच में ही बोल पडा…“बारह दिन बाद ही रंजीत श्रीवास्तव बिजनेस टूर पर बाहर जा रहा हे i वह तीन महीने बाहर रहेगा। मै इतना इन्तजार नहीं कर सकता । और सबसे बडी बात तो यह हैं कि रंजीत श्रीवास्तव बिजनेस टूर पर जाने से पहले अपनी मंगेतर रजनी से शादी कर रहा हे । तब तो बाद में तुम्हें काम करने में और भी परेशानी हो जाएगी । तुम्हें मैं वक्त से पहले ही रंजीत श्रीवास्तव बनाकर वहां पेश कर दूंगा I उसके बाद तुम अपने बाहर के टूर को केंसिल कर सकते हो । या फिर अपने सेक्रंट्री को भेज सकते हो I रजनी शाह के साथ अपनी शादी की तारीख को आगे बढा सकत्ते हो । वह तुम्हें मैं सबकुछ समझा दूंगा । रंजीत श्रीवास्तव के साईन उसकै अन्य सारे काम मैँ तुम्हें समझा दूंगा । हर जरूरी बात बता दूंगा ताकि कहीं भी तुमं धोखा न खा सको । यह काम तुम्हें अभी करना पडेगा राजीव । तुम्हारी तरह मैं भी एहसान फरामोश नहीँ हूं। इस सारे काम के बदले में तुम्हें इतनी मोटी दौलत दूंगा कि तमाम उम्र तुम्हें कुछ भी नहीं करना पड़ेगा । तुम आराम से अंजना के साथ शादी करके शानदार जिन्दगी बिता सकोगे I छोडो अपने दोस्तों को । उन्होंने तुम्हारे साथ जो बुरा किया, मैंने तुम्हें लोटा दिया l उन्होंने तुम्हारी जिन्दगी ली, मैंने तुम्हें पुन: जिन्दगी दिलवा दी गुरुदेव से l दोस्तों ने तुम्हे दौलत से बंचित कर दिया, मैं तुम्हें उस थोड़ी सी दौलत कै मुकाबले, ढेर सारी दौलत दे दूंगा सिर्फ छः महीने की बात हे उसके बाद तुम आजाद पंछी की तरह जीवन व्यतीत का सकते हो । आज से अपने पहले छ: महीने मुझें दे दो । उसके बाद तुम भी खुश और मैं भी खुश ।"



राजीव की यही ठीक लगा कि सब-कुछ छोडकर सबसे पहले उसे नकाबपोश का काम निपटाकर उसे फ्री हो जाना चाहिए, उसके बाद ही उसे अंजना के साथ अपनी नई जिन्दगी
शुरू करनी चाहिए।

चन्द पलों तक सोचने के पश्चात्, राजीव ने सिर हिलाया ।



“ठीक हे I मुझे तुम्हारी बात मंजूर हे I तुम्हारा काम पहले, बाकी काम बाद में !"



"गुड बैरी गुड… I बहुत संमझदार हो ।" नकाबपोश ने प्रसन्नताभरे लहजे में कहा I




. "लेकिन तुम मुझे रंजीत श्रीवास्तव की जगह पर पहुंचाओगे कैसे?" एकाएक राजीव ने कहा-“वह कोई मामूली हस्ती तो है नहीँ-अरबोंपति हस्ती है I उस तक पहुंचना भी हर किसी कॅ लिए सम्भव नहीँ होगा I मैं उसकी जगह कैसे ले सकता हू??”



“उसकी तुम चिन्ता न करो । यह काम मेरा है I” नकाबपाश ने गहरी मुस्कान के साथ कहा-"पहले ही तुम्हें शक्ल से ही नहीं, अक्ल से भी रंजीत श्रीवास्तव बना दूंगा । मैंने सब इन्तजाम कर रखा है, तुम्हें हर बात समझाने का I . उसके बाद तुम्हें पलक झपकते ही रंजीत श्रीवास्तव बनाकर उसकी अरबोंपति वाली कुर्सी पर बिठा दूंगा I”




" तुम तो ऐसे कह रहे हो, जेसे यह काम बड़ा आसान है !"



"मेरे लिए, सिर्फ मेरे लिए ऐसा करना वहुत ही आसान है I"



"तुम्हारे लिए ही क्यों?"

“क्योंकि में रंजीत श्रीवास्तव क्री आस्तीन का सांप हूं। और तुम तो जानते ही हो कि आस्तीन का सांप तो' जो चाहे वही कर सकता हे l" नकाबपोश ठहाका मारकर हंस पड़ा-""ओर तुम् कभी भी मेरे बारे में जानने की चेष्टा मत करना कि मैं कौन हू। इसमें खामखाह तुम्हारा वक्त बरबाद होगा, क्योंकि तुम मुझे कभी भी तलाश नहीं कर सकोगे ।”



" तुम मुझे तो बता दों कि तुम कौन हो?”



"नहीं !! इसकी मैँ जरूरत नही समझता !"



राजीव खामोश हो गया l



फिर उसने कुछ न पूछा इस बारे में ।


नकाबपोश ने तांत्रिक को दैखा ।



“गुरुदेव इसे मुक्त कीजिए, ताकि मैँ अपने साथ ले जा सकू l" तात्रिक ने एक ही सांस में शरार्व की बोतल खाली करके एक तरफ फेंकी और होठों से मन्त्र पढकर राजीव की तरफ हाथ किया तो राजीव के गिर्द फैला बारह फुट का गोल दायरा एकाएक गायब हो गया ।



"जा बच्चा ।" तांत्रिक र्वोला-“अब तू मेरे बंधन से आजाद हे I”


नकाबपोश ने प्रसन्तताभरी निगाहों से राजीव मल्होत्रा को देखते हुए कहा ।



"आइए रंजीत श्रीवास्तव साहब । आपको आपके असली ठिकाने पर ले चलूं।”


राजीव ने सिर हिलाया और नकाबपोश की तरफ बढ गया l

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Re: वारदात

Post by 007 »

बिकास नगर ।। विशालगढ़ का व्यस्ततम इलाका और इसी इलाके के व्यस्तम पुलिस स्टेशन में आज हलचल मची हुई थी । पुलिस स्टेशन का चार्ज सम्भालने आज दिल्ली से नया इन्समेक्टर आ रहा था ।। जिसके बारे में वहां सबको मालूम ही हो चुका था कि वह बहुत ही सख्त मिजाज का इन्सपेक्टर है । इसलिए हर कोई घबराया हुआ-सा उसके स्वागत की तैयारियों में व्यस्त था I



वह और कोई नहीँ इन्सपेक्टर सूरजभान था ।



चन्द्रप्रकाश दिवाकर ने पुलिस कमिश्नर राममूर्ति को कहकर इन्सपेक्टर सूरजभान का ट्रांसफ़र तो करवा दिया था । कहा था सूरजभान की ट्रांसफर दिल्ली से बाहर कहीं भी कर दें, परन्तु वह यह कहना भूल गया था कि पूरे हिन्दुस्तान में विशालगढ़ में न करें, जहां कि उसने अपने फरार बेटे और उसके दोस्तों को छिपा रखा था ।



बहुत ही अजीब और खतरनाक इत्तफाक था कि बिशालगढ़ में बिकास नगर धनाढ्य इलाके कै थाने में थाना इच्चार्ज की जरूरत थी और कमिश्नर राममूर्ति ने इन्सपेक्टर सूरजभान का ट्रांसफर वहीँ कर दिया था ।।



अगर यह बात चन्द्रप्रकाश दिवाकर को मालूम हो जाती कि सूरजभान को विशालगढ़ भेजा जा रहा है तो वह बौखला उठता I हर हाल में उसका ट्रांसफ़र रुकवाकर रहता परन्तु उसे मालूम नहीं हो सका था । बस वह इतना ही जान पाया था कि इन्सपेक्टर सूरजभान क्रो दिल्ली से बाहर ट्रांसफर कर दिया गया ।



इन्सपेक्टर सूरजभान दिवाकर, हेगड़े और खेड़ा को तलाश करना चाहता था । उसे यह ट्रांसफर पसन्द नहीं आया था, परन्तु वह कुछ कर भी नहीं सकता था । आँफिसर का ऑर्डर था और वह भी ऐसे आँफिसर का आँर्डरं जो चन्द्रप्रकाश दिवाकर जेसे खरबोंपति इन्सान के हाथों कठपुतली बना हुआ है । सूरजभान
खामोशी से इस ट्रांसफर क्रो स्वीकार करके विशालगढ़, नए थाने का चार्ज सम्भालने रवाना हो गया था I


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नकाबर्पोश ने टीं०र्वी०-वी०सी०आर बन्द किया और सिगरेट सुलगाकर सामने सोफे पर राजीव को देखा जो कि बन्द हो जाने पर अभी तक टीं०वी० को देखे जा रहा था ।



दोनों विशालगढ़ के खूबसूरत सजे सजाए फ्लैट में पिछले दो दिनों से थे । राजीव अभी तक नकाबपोश के चेहरें की एक झलक भी न देख पाया था ।



दो दिनों से नकाबपोश, राजीव को रंजीत श्रीवास्तव की और उसकी पहचान'वालों की वीडियो फिल्में दिखा रहा था । राजीव रंजीत श्रीवास्तव से सम्बन्धित ही बात को अपने दिमाग में सुरक्षित रखता जा रहा था । उसे यह देखकर तो जहान-भर की हैरानी हुई कि रंजीत श्रीवास्तव हू-ब-हू उसकी ही काॅपी है ।

उनके चेहरों में समानता ही नहीं बल्कि दोनों के चेहरे एकसमान थे । उसे तो यही लगा जैसे टी वी स्कीन पर वह घूम-फिर रहा है ।



नकाबपोश ने धुआं उगला और राजीव पर निगाहें टिकाकर बोला ।



"पिछले दो दिनों से तुमने टी०वी० पर क्या देखा राजीव?" राजीव ने टी०दी० से निगाहें हटाकर नकाबपोश पर टिका दीं ।



उसे खामोश देखकर नकाबपोश ने सिगरेट का एक कश लिया और गम्भीर स्वर में बोला।



"राजीव मल्होत्रा पिछले दो दिनों से तुम वी०सी०आर० पर ~ रंजीत श्रीवास्तव जैसे अरबों खरबो पति व्यक्ति के बारे में जानकारी , प्राप्त कर रहे हो । तुमने रंजीत श्रीवास्तव और उसकी हर पहचान वाले को वी०सी०आर०-टीं०वी० में देखा । नौकर से लेकर उसकी कम्पनियों के व्यक्तियों को देखा ही नहीं, उनके नाम और घर बार कै बारे में भी जाना । रंजीत श्रीवास्तव की मंगेतर रजनी शाह के बारे में उसकी पहचान वालों के बारे में जाना । यानी कि तुम अब हर उस बात के बारे मेँ जान चुके हो जो रंजीत श्रीवास्तव से तालुक रखती हैं ।'"



राजीव ने पहलू बदला । मुंह से फिर भी कुछ नहीं बोला । नकाबपोश ने अपने लबादे से सिगरेट का विदेशी पैकट और लाईटर निकाला । जिन्हें कि राजीव के सामने टेबल पर रखकर बोला----- "रंजीत श्रीवास्तव यह सिगरेट पीता है और यह लाईटर सोने का है । ऐसे उसके पास बीसियों लाईंटर हैं । सिगरेट सुलगाओं ।"



"मैँ सिगरेट नहीँ पीता ।'" राजीव कें हौंठे खुले ।

"सिगरेट नहीं पीते?" नाकाबपोश हंसा---" फिर तो शराब भी नहीं पीते होगे?"


"नहीं I”



" यानीकिं सुफी आदमी हो ।" वह पुनः हँसा ।



"तुम तो इस प्रकार हंस रहे हो, जैसे सूफी होना पाप हैं I" राजीव कड़वे स्वर में कहा ।



"नहीँ! पाप नहीं बल्कि अच्छी आदत है I लेकिन ...... I" नकाबपोश ने उंगलियों में र्फसी सिगरेट का कश लिया…“अब तुम खुद को राजीव समझना छोड दो । तुम रंजीत श्रीवास्तव हो । विशालगढ़ कै अरबोंपति. व्यक्ति I 'बहुत-बडी हस्ती I इसलिए वही करो जो रंजीत श्रीवास्तव करता है । वह सिगरेट पीता हे । शराब पीता है I औरतों को टांगों पर बिठाना और उन्हे उतार देना आम बात है उसके लिए । दुनिया का कोई भी बुरा काम नहीं जो उसने न किया हो । अपनी दौलत का खूब फायदा उठाया हे उसने । तुम्हें भी अब वहीँ करना है जो रंजीत श्रीवास्तव करता है । अब `तुम-तुम नहीं रंजीत श्रीवास्तव हो I”



“परन्तु .....!" राजीव ने व्याकुल स्वर में कहा-"मैं यह सब नहीं ' कर सकता । तमाम जिन्दगी बहुत ही सादे और शरीफाना ढंग से बिताई है । यह बातें करना मेरे लिए कठिन है I”



"छः महीने के लिए । समझें छ: महीने के लिए तुम्हें वह सब करना है जो रंजीत श्रीवास्तव करता है । तुम्हारा मकसद उसकी दौलत को मेरी तरफ सरकाना है, न कि वहां जाकर ऐश करना । यह सब बातें तुम मात्र दिखावे के लिए भी कर सकते हो I या फिर तुम्हारी रजनी शाह से मंगनी हो गई है, इसलिए अब तुम औरतों की संगत से दूर हो जाना चाहते. हो । यानी कि वहां पहुचकर ऐसा कोई भी ड्रामा कर सकते हैं I ।"



राजीव सिर हिलाकर रह गया . . . . . ।।




"एक बात याद रखना I" एकाएक नकावपोश का स्वर . हिंसक हो उठा-"इस काम में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं होनी चाहिए I मैं हर हाल में रंजीत श्रीवास्तव की दौलत हथिया कर अरबपति बनना चाहता हूं। तुम तो अब इस ड्रामे में आए हो ।। मैं कई बरसों से इस काम के लिए मेहनत कर रहा हूं।"


"तुम्हारी बात हर हाल में पूरी हो, इस बात का मेंने ठेका नहीँ लिया l" राजीव कह उठा ।

"क्या मतलब?” नकाबपोश की सुर्खं आंखें सिंकुड़ती चली गई ।



"तुमने मुझे जो काम करने के लिए कहा है, वह मैँ कर रहा हू। काम कब और कितना पूरा होता है । में तुम्हारी आशाओं पर कितना खरा उतरता हू यह बाद की बात है । यह बात अलग है कि मैँ अपनी तरफ से किसी भी तरह की कमी नहीं छोडूंगा ।" राजीव ने उसकी लाल सुर्ख आंखों में झांका ।




"तुम अपनी तरफ़ से किसी भी तरह की कमी नहीं छोड्रोगे ।"


"नहीं छोड़ूंगा I”



“बस फिर चिन्ता की कोई बात नहीं, बाकी सबकुछ ठीक हो जाएगा ।" नकाबपोश ने सिर हिलाया । कश लेकर स्थिर लहजे में राजीव से कहा… “सिगरेट पियो ।" अनमने मन से राजीव ने सिगरेट का नया पैकेट खोला और सिगरेट सुलमाकर उल्टे सीधे ढंग से कश लेने लगा । पहली बार उसने सिगरेट पी थी ।


" सिगरेट इस तरह पीने की आदत डालो कि देखने वाले को लगे जैसे तुम लम्बे समय से यह काम करते आ रहे हो, अनाड्रियों की तरह मत पियो । खुद को सिगरेट कै आदी दिखाने कै लिए ज्यादा से ज्यादां सिगरेट पियो ताकि तुम्हारी मूवमेंट सामान्य लगे । "


कश लेने के पश्चात् राजीव बोला ।


" तुम कुछ मेरी बातों का भी ज़वाब दे दो ।"


" पूछो !"



"तुम मुझे रंजीत श्रीवास्तव बनाने जा रहे हो?” राजीव ने कहा ।



"हा । "


"तो कम से कम यह तो बता दो कि मुझे इस अरबपति व्यक्ति की जगह पर कैसे बिठाओगे? यह काम इतना आसान तो होगा नहीं, राजीव श्रीवास्तव कोई मामूली हस्ती तो हे नहीं I"



"ठीक कहते हो । यह काम आसान नहीं है । बहुत कठिन है । हर किसी के बस का भी नहीं है । शायद कोई भी इस काम को नहीं कर सकता । परन्तु मैं पलक झपकते ही कर सकता हू I”


"वही तो मैं पूछ रहा हूं कैसे?" राजीव ने उसकी नकाब से झांकती आंखों में झांका ।


"इस सारे काम को देवराज चौहान करेगा ।" "देवराज चौहान । कौन देवराज चौहान?" राजीव ने चौक्रक्तरु देखा उसे ।



" तुम नहीँ जानते देवराज चौहान को । बहुत खतरनाक आदमी है वह । जो कर जाये समझो वही कम । वह ऐसा तूफान हे, जिसे कोई रोक नहीं सकता । ऐसा पहाड है जिसे कोई काट नहीं सकता ।"



"मैं अभी भी कुछ नहीँ समझा ।” राजीव कै स्वर में असमंजसता कै भाव थे ।


" तुम कुछ नहीं समझोगे । उस शैतानी शख्यियत को सामने पाकर भी तुम कुछ नहीँ समझ सकते ।” नकाबपोश कश लेते हुए कह उठा---“ उसे समझ पाना बहुत कठिन है । उसे पार करना भी वहुत मुश्किल काम हे । आगे का सारा काम वही करेगा । अबं मैं नहीं तुम्हारे पास देवराज चौहान आएगा । छ: महीनों के लिए वहीँ तुम्हारा मालिक होगा । वह जो कहेगा, वहीँ तुम्हें करना होगा । इस ब्रीच शायद ही मैँ तुमसे मिलूं। एक तरह से तुम यहीं समझकर चलना कि मैं ही देवराज चौहान हूं । यानी कि जो देवराज चौहान कहेगा वह तुम्हें हर हाल में मानना पड़ेगा ।”



राजीव ने अजीब-सी निगाहों से नकाबपोश को देखा ।



"तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे वह देवराज चौहान ना होकर......!"



"मैंने कहा ना, तुम क्या कोई भी उसे जितना समझे । समझो कम समझा । जब उससे मिलोगे तो घीरे-धीरे समझ जाओगे। देवराज चौहान को समझ पाना किसी कै बस का भी नहीं है । वह यारों का यार और दुश्मनों के लिए खूंखार भेडिया हे । शिकारी चीता है । मौत का फ़रमान हे ।" नकाबपोश स्थिर लहजे में कह रहा था ।



"बस-बस, अब वस भी करो ।” राजीव हाथ उठाकर कह उठा-----" मुझे लगता है, तुम जैसे देवराज चौहान के बारे में ही बताते रहोगे मैंने तुम्हें टोका नहीं तो! जितना बता दिया, उतना ही बहुत । बाकी खुद उस से जान लूंगा ।"



नकाब मे छिपे नकाबपोश के होंठ मुस्कराहट कै रूप में फैलते चले गए ।

" देवराज चौहान मुझे रंजीत श्रीबास्तव कैसे बनायेगा? और .......फिर रंजीत श्रीवास्तव का क्या होगा, जब मैँ रंजीत श्रीवास्तव बन जाऊंगा? यह बस बातें मुझे मालूम होनी चाहिए I" राजीव ने अपनी बात को जारी रखा I
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Re: वारदात

Post by 007 »

"अब इस बारे में तुमसे कोई बात नहीँ करूगा l” नकाबपोश ने कहा----“तुमने जो बात करनी हो देवराज चौहान से करना I बस, मेरा काम यहीं तक था । अब इतना बता दो कि तुमने वी०सी० आर०-टी०बी० पर जिन लोगों को देखा जिनके नाम मैंनें तुम्हें बताए वह तुम्हें याद रहेंगे कि नहीं? भूल तो नहीं जाओगे ।”


"'सबकुछ याद रहेगा I”


"जो मैंने बताया हे, उसे याद रखना भी जरूरी है I नहीं तो किसी भी मौके पर गड़बड़ हो सकती है । क्योंकि कभी ऐसा हो सकता है कितु तुम्हारा खास आदमी तुम्हारे सामने आये और -तुम उसे पहचान भी ना सको ।"



राजीव सिर हिलाकर रह गया I



"कुछ और पूछना चाहते हो या फिर में चलू?" नकाबपोश ने कहा I




“एक बात I"



" क्या ?"



“देवराज चौहान का रंजीत श्रीवास्तव से क्या वास्ता है?”



"वास्ता ?" नकाबपोश हंसा-"बहुत्त गहरा वास्ता है I देवराज चौहान ने छ: महीने पहले रंजीत श्रीवास्तव के यहां किसी प्रकार ड्राइवर की नौकरी हासिल की थी I तब नौकरी लगवाने वाले को देवराज चौहान ने पचास हजार रुपया दिया था I तुम इसी से समझ सकते हो कि रंजीत श्रीवास्तव की जगह पर घुस पाना कितना कठिन हे । वहां का हर मुलाजिम बरसों पुराना है I किसी नये मुलाजिम को रखना गंवारा नहीं किया जाता है I"



"तुम देवराज चौहान के बारे में बता रहे थे ।" राजीव ने कहा।



"हां I छः महीने पहले बतौर ड्राइवर वह रंजीत श्रीवास्तव कै नौकरों कै ग्रुप में दाखिल हुआ और आज वह रंजीत श्रीवास्तव की आंख का तारा बना हुआ डै । रंजीत श्रीवास्तव का राइट हेड I वह जहा भी जाता है, देवराज चौहान कै साथ जाता है वह जो भी करता हे देवराज चौहान की जानाकारी में करता है I रंजीत श्रीवास्तव को बेशक ना पता हो कि आने वाले पल में उसने क्या करना है, परन्तु देवराज चौहान क्रो मालूम होता हे कि रंजीत श्रीवास्तव अब वया करेगा I यानी कि देवराज चौहान रंजीत श्रीवास्तव के दिलोदिमाग में पूरी -तरह छाया हुआ है I”



राजीव ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया ।



"ऐसे में..... ।" नकाबपोश पुन: बोला-“अगर देवराज चौहान रजीत श्रीवास्तव को अदला बदली करना चाहे तो बेहद आसानी के साथ कर सकता हे । कहीँ कोई शक हो जाने की भी गुंजाइश -नहीं I"



“ठीक कह रहे हो तुम ।"



नकाबपोश ने अपने कपडों में से एक छोटी सी फाइल निकाली l

"देवराज चौहान जल्दी ही तुम्हारे पास आयेगा । जब तक वह नहीं आता, इस फ्लैट में बन्द रहकर तुम इस फाइल में मोजूद रंजीत श्रीवास्तव कैं हस्ताक्षरों का अभ्यास करो । नकाबपोश ने कहा I



राजीव ने फाइल थामी और बोला ।।




“एक बात और बता दो I”



" वह भी पूछो l”



“तुम देवराज चौहान कै इशारे पर काम कर रहे हो या देवराज चौहान तुम्हारे इशारे पर काम कर रहा है?"



“इस बात का जवाब तुम्हें कभी नहीं मिल सकेगा । खामखाह की बातों की तरफ़ ध्यान मत दो I"



राजीव ने इस बारे में फिर कुछ नहीँ पूछा l



"देवराज चौहान कदम-कदम पर तुम्हारी सहायता करेगा !"



उसकी रंजीत श्रीवास्तव के यहां चलती है । तुम्हें हर हाल में कामयाब होना है । नाकामयाबी तुम्हारे लिए खतरनाक सिद्ध होंगी I”



"धमकी दे रहे हो ।"



"समझा रहा हू।" नकाबपोश की आवाज में सख्ती आ गई-"मैंने तुम पर वहुत मेहनत की हैं । तुम मर चुके थे, मैंने तुम्हें… जिन्दा कराया तो सिर्फ इसलिए कि तुम हमारा यह काम करो I उस तांत्रिक ने तुम्हें किसी भी कीमत पर जिन्दा नहीं करना था I यह तो मैं ही जानता हू कि उसे इस काम कै लिए तैयार करने कै लिए मुझें कितनी मेहनत करनी पडी I इस पर भी अगर तुम हमारा अहसान नहीँ मानते हो तो वहुत दुख की बात होगी !"




"अहसान मानता हूं मैं । तभी तो तुम लोगों का साथ दे रहा हूं । मेरी पूरी कोशिश होगी कि जिस काम में मैँ हाथ डालने जा रहा हूं उसमेँ हर तरह से सफ़लता प्राप्त करके ही रहूं ।" राजीव ने दृढ शब्दों में कहा ।।



"गुड ।" नकाबपोश ने तसल्ली भरे अन्दाज में सिर हिलाया।



"मुझे भी पूरा भरोसा हे कि तुम कामयाब होकर रहोगे, क्योंकि तुमने वापस जाकर अंजना से शादी करनी है। अपने दोस्तों से अपनी मौत का बदला लेना है । बहुत कुछ करना हे तुम्हें अभी । जो रकम तुम देवराज चौहान के हवाले करते रहोगे । जिसके बारे में हम सोच रहे हैं कि एक अरब तक वह रकम पहुच जानी चाहिए, उसमें भी तुम्हारा कुछ ना कुछ हिस्सा होगा । यानी के मोटा हिस्सा और अन्य काम तुम तभी कर सकोगे जब तुम कामयाब रहोगे । मैं जा रहा हूं । तुम रंजीत श्रीवास्तव कै हस्ताक्षरों को हू-ब-हू कागजों पर उतारने का अभ्यास करो यह काम बहुत ज़रूरी हे । खाने-पीने का सामान फ्लैट में भरा पड़ा है l यहां से बाहर जाने की गलती मत कर बैठना । क्योंकि तुम्हारा चेहरा रंजीत श्रीवास्तव से मिलता है और वह इस शहर की सबसे बडी हस्ती हैं । खेल खराब हो सकता हे तुम्हारे बाहर जाने से ।"



राजीव'ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया ।



“ देवराज चौहान बहुत जल्द तुमसे मिलने आयेगा I बाकी बात वही करेगा ।" कहने के साथ ही नकाबपोश बाहर निकल गया । राजीव ने उठकर दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया ।


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फीनिश
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उसके बाल बिखरे हुए थे । शेव के बाल कांटों की तरह बढे हुए थे । बदन पर पड़े कपडे तो जैसे चीथड़े चीथड़े होकर झूल रहे थे । बहुत खस्ता हालत थी उसकी । वह पागल की तरह लग रहा था l कमरे में सिवाय उसके और कुछ भी नहीं था । फर्नीचर तक नहीं था । दस बाई बारह के खाली कमरे-में वह भूखे शेर की भाँति घूमने लगता और जब थक जाता तो दीवार के सहारे बैठकर गहरी गहरी सांस लेने लगता । उसके चेहरे के भाव तो बढी हुई शेव के पीछे छिपे हुए थे अलबत्ता लाल घधकती आंखे स्पष्ट नजर आ रही थीं ।



उसके बाल बिखरे हुए थे । शेव के बाल कांटों की तरह बढे हुए थे । बदन पर पड़े कपडे तो जैसे चीथड़े चीथड़े होकर झूल रहे थे । बहुत खस्ता हालत थी उसकी । वह पागल की तरह लग रहा था l कमरे में सिवाय उसके और कुछ भी नहीं था । फर्नीचर तक नहीं था । दस बाई बारह के खाली कमरे-में वह भूखे शेर की भाँति घूमने लगता और जब थक जाता तो दीवार के सहारे बैठकर गहरी गहरी सांस लेने लगता । उसके चेहरे के भाव तो बढी हुई शेव के पीछे छिपे हुए थे अलबत्ता लाल घधकती आंखे स्पष्ट नजर आ रही थीं ।



तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई । उसकी लाल आंखे वन्द दरवाजे पर जा टिकीं। , ,



दरवाजा खुला । दो दादा टाईप व्यक्तियों ने भीतर प्रवेश किया । उस दाढी वाले कैदी के प्रति वह दोनों बेहद सावधान नजर आ रहे थे ।


उनके पीछे मरियल से नजर जाने वाले व्यक्ति ने भीतर प्रवेश किया जिसने हाथों में खाने की ट्रे थाम रखी थी । आगे बढकर उसने खाने की ट्रे कैदी के सामने रख दी ।


कैदी ने दोनों बदमाशों और खाना लाने वाले पर निगाह मारी उसको सुर्ख निगाहे' खाने की ट्रे पर जा टिकीं । ट्रे को उसने अपने करीब खींचा और खाना खाने में व्यस्त हो गया ।


"तुम जाओ ।" दादा टाईप व्यक्ति ने खाना लाने वाले से कहा----"खाली बर्तन हम ले आयेंगे !"



वह मरियल व्यक्ति बाहर निकल गया !!


खाना खाते-खाते एकाएक कैदी ठिठका और दोनों को देखकर गुर्राया ।


"वह कुत्ता कहां है । कई दिनों से नजर नहीं आया ।"



दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोला ।। जेसे उसका यह कहना साधारण बात हो ।

वह पुन: खाने मे व्यस्त हो गया । तव तंक वहां खामोशी छाई रही जब तक कि खाने की ट्रे में रखा सारा खाना उसने खाकर ट्रे को एक तरफ सरका नहीं दिया । फिर उसने दोनों की
तरफ देखा ।


"कम से कम सिगरेट तो पिला दो ।"



ठीकं उसी… समय दरबाजे से हवा में उडता हुआ विदेशी सिगरेट का पैकेट उसके पास आकर गिरा । साथ में सोने का लांइंटर भी ।



सिगरेट के उस ब्रांड को देखते ही दाढी वाला उछलकर खड़ा हो गया ।


निगाहें दरवाजे की तरफ उठ गई। जहां पर कि रंजीर्त श्रीवास्तव अपने खुबसुरत व्यक्तित्व के साथ खडा था ।।



“तुम ।" दाढी वाले के होठों से निकला । चेहरे पर कठोरता की परत बिछती चली गई थी ।



"हां मैँ ।" रंजीत श्रीवास्तव ने भीतर प्रवेश करते हुए सिर हिलाया-“सोचा मुलाकात कर ही आऊं । -बहुत देर हो गई तुमसे मिले । शायद महीना-भर तो हो ही गया होगा क्यों मैंने गलत तो नही कहा ?"

फिर वह वहां खडे दोनों दादा टाईप व्यक्तियों से बोला-"बाहर जाकर खड़े हो जाओं ।"



उन्होंने खाने की ट्रे उठाई और वाहरं निकल गये।


कैदी ने पैकेट में से सिगरेट सुलगाई और कश लेकर लापरवाही से भरे स्वर में कह उठा ।


"कुछ देर पहले मैँ पूछ ही रहा था कि कुत्ता कहाँ हे । आया नहीं वहुत दिनों से I”
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Re: वारदात

Post by 007 »

रंजीत श्रीवास्तव कै होंठों पर मुस्कान की रेखा उभरी । बोला कुछ मी नहीं ।



"मेरी दी हुई गाली भी तुम्हें फूल की तरह लगती होगी । कैदी ने जहर मरे स्वर में कहा ।

" ठीक कहा तुमने I” रंजीत श्रीवास्तव हंसा-"तुम्हारे मुंह से निकली हर बात मैँ हंसकर सह सकता हूं । क्योकि मेरा सब कुछ तुम्हारा दिया हुआ ही तो है । तुमसे मेरी क्या नाराजगी है । ”



"मानना पडेगा, बहुत वडे कुत्ते हो तुम ।" कैदी ने दांत पीसकर कहा I



"चलो, जो भी कह लो । तुम्हारी खुशी भें ही मेरी खुशी हे ।"



"मेरी खुशी?” कैदी का लहजा खतरनाक हो उठा-“मेरी खुशी तो तुम्हारे शरीर कै टुकडे करने में है I”



"वह कभी भी पूरी नहीं होगी ।"


"शायद हो जाये।"


रंजीत श्रीवास्तव कंघे उचकाकर रह गया ।



"दो साल हो गए मुझे यहां कैद हुए ।” कैदी ने खूंखार लहजे - मे कहा ।



" जव तक तुम जिन्दा रहोगे तब तक कैदी ही रहोगे बेशंक , इस बात को बीस साल ही क्यों ना बीत जायें।" रंजीत श्रीवास्तव ने सामान्य लहजे में 'कहा-“इसलिए साल गिनना छोड दो ।”


"तुम मुझे मार क्यों नहीं देते ?" कैदी कै होठों से गुर्राहट निकली l


“मेरे लिए तुम्हारा जिन्दा रहना जरुरी है l मैं तुम्हें नहीं मार सकता । तुम्हारी जान नहीं ले सकता । अगर तुम मरना ही चाहते हो तो खुद आत्महत्या कर लो । जव तुम्हारे पास कोई नहीं होता तब अपनी जान दे सकते हो । रोकने वाला कोई नहीं होगा I”

रंजीत श्रीवास्तव ने लापरवाही से कहा ।

"मैं कभी भी आत्महत्या नहीं करूंगा ।"


" क्यों? " रंजीत श्रीवास्तव हंसा----“मरने से डर लगता है ना?"



"दो साल मुझे तुम्हारी कैद में हो गए । अब मौत और जिन्दगी एक जैसी ही लगती है l" कैदी ने गुर्राहृट भरे लहजे में कहा-"मर गया तो तुम्हारे सिर से बहुत बडा खतरा टल जायेगा,जिन्दा रहा तो शायद कभी तुझ कुत्ते को किए की सजा देने का मौका मिल जाये मुझे I"



"उम्मीद पर तो दुनिया कायम हे !" रंजीत श्रीवास्तव हंसा---" आखिरकार तुम इसी आशा में ही मरोगे ।”



“आजकल तो ऐश कर रहे होगे । " कैदी ने कड़वे स्वर में कहा ।



"आजकल क्या, मै तो तव से ऐश कर रहा हूं जब से तुम्हें कैद मेँ डाला हे । और मुझें आशा ही नहीं पूरा यकीन है किन्तु जब तक जिन्दा रहूंगा ऐश ही करता रहूगा, तुम्हारी मेहरबानी से ।"



कैदी दांत पीसकर आग सें भरी निगाहों से रंजीत श्री वास्तव को देखता रह गया ।


"वेसे चाहो तो इस नर्क से भरी जिंदगी से छूटकारा पाकर मेरी ही तरह ऐश कर सकते हो ।"


" उसका पता बताकर ?"



"हा । कहा रखा है उसे तुमने? मैँ अपनी राह के कटि को हमेशा-हमेशा कै लिए… I"



" तेरे जैसे कुत्ते का भरोसा करना आत्महत्या करने के बराबर हे । तूने मेरे साथ जो सलूक किया वह सामने ही है। ना तो त्तेरे से छिपा है और ना ही मेरे से । सही बात तो यह हे कि में जिन्दा इसी वजह से हू कि तुझे उसका पता नहीं बता रहा । उसका पता मेरे मुंह से निकलने कीं देर हे कि दूसरे घण्टे शहर के किसी हिस्से मे मेरी लाश पडी होगी । वास्तव में तुझुसे वडा जलील इन्सान मैँने आज तक नहीं देखा ।"



"वहम में पड़ रहे हो । उसका पता बताकर अपना ही भला. करोगे i तुम्हारी सारी तकलीफें मैं दूर कर दूंगा । इस जगह से हटकर किसी इच्छी जगह पर ....!"



"जुबान बन्द ऱख अपनी !" कैदी ने गुर्राकर कहा तो रंजीत श्रीवास्तव कन्धों को झटका देकर रह गया ।


"ठीक हैं, मर्जी तुम्हारी I मैं चलता हूं।” कहने के साथ ही रंजीत श्रीवास्तव पलटा।

तभी कैदी का शरीर उछला और रंजीत श्रीवास्तव से जा टकराया I रंजीत श्रीवास्तव के होंठों से कराह निकली I



वह नीचे जा गिरां और उसकै ऊपर कैदी l पलक झपकते ही दांत किटकिटाकरं कैदी ने रंजीत श्रीवास्तव की पैंट की जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसकी कमर से सटा दी I ”



"अब बोल कुत्ते !" रंजीत श्रीवास्तव हक्का बक्का रह गया I "



यह क्या कर रहा हे तू?" रंजीत श्रीवास्तव कै होंठों से ठगा-सा स्वर निकला I



“तेरी मौत का सामान इकट्ठा कर लिया है मैंने । अब बोल' कितनी गोलियां खायेगा ?”



" बेवकूफी मत कर I पीछे हट जा I रिवॉल्वर मुझे दे दे I"


" दो साल के बाद आज़ पहली बार तो आजादी का मौका मिला है I ” कैदी ने खतरनाक लहजे में कहा-"अब इस मौके को कैसे गंवा सकता हू । पैं चाहूं तो सिर्फ एक गोली तेरी खोपडी में उतारकर तेरा खेल हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दू । लेकिन मैँ ऐसा नहीं करूंगा I इसलिऐ नहीं करूगा कि जेसा खेल तूने खेला' था, कुछ वैसा ही अब में खेलूँगा । अब देखूंगा रंजीत श्रीवास्तव साहब कैसे चैन की नींद सोते हैं । कैसे करोडों अरबों की दौलत के ढेर पर बैठते हैं I"


"तू यहां से जिन्दा बाहर नहीं जा सकता-में… ।”



"बकबक मत कर । शब्दों के जाल में मुझे र्फसाने की चेष्टा बेकार हे । मैं यहां से `सुरक्षित निकल जाऊंगा । 'अब मुझें कोई ताकत नहीँ रोक सकती । खड़ा हो जा I”



रंजीत श्रीवास्तव खड़ा हो गया । कैदी ने रिबॉंल्वर की नाल उसकी कमर से लगा रखी थी I


वह बेहद सावधान था । फरारी का खूबसूरत मौका अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहता था ।



“अब बाहर खड़े अपने-दोनों हरामी कुतों को भीतर बुला I"



रंजीत श्रीवास्तव मजबूर था , रिवॉल्वर के सामने i उसने आवाज देकर बाहर ख़ड़े दोनों ख़तरनाक व्यक्तियों को भीतर बुलाया I



भीत्तर का दृष्य देखते ही वह चौंके I परन्तु कुछ कर नहीं सकते थे I कैदी ने रंजीत श्रीवास्तव को कवर कर रखा था I वह कुछ भी करने की चेष्टा करते तो रंजीत श्रीवास्तव की जान को खतरा पैदा हो सकता था I

"तुम दोनों दीवार के साथ लगकर खड़े हो जाओं । किसी भी तरह की चालाकी करने की चेष्टा मत करना, वरना तुम्हारा मालिक कुत्ते की मौत मरेगा।”


दोनों ने कैदी की बात मानी और शराफत से दीवार के साथ जा खड़े हुए ।



"अभी भी वक्त है रुक जाओ ।" रंजीत श्रीवास्तव का स्वर खोखला था ।


"चुप ।" कैदी दहाड़ उठा।


रंजीत श्रीवास्तव ने दांत भींच लिए ।


कैदी उसे साथ लिए आगे बढा । उन दोनों खतरनाक व्यक्तियों की तरफ से वह सावधान था । रंजीत श्रीवास्तव को साथ लिए वह कमरे से बाहर निकला और अगले ही पल उसने रंजीत श्रीवास्तव को वापस कमरे में धकेल दिया और पलक झपकते ही दरवाजा बन्द कर दिया ।



भीतर से दरवाजा खटख़टाये जाने का तेज स्वर आने लगा



उन आवाजों को सुनकर खाना लाने चाला मरियल-सा व्यक्ति वहा पहुंचा ।


लेकिन कैदी को बाहर और अन्यौ को भीतर पाकर वह ठगा सा खडा रह गया ।



"यहां और कितने लोग हैँ ?" कैदी ने उसकी तरफ रिवॉल्वर तानकर गुरर्टेहट भरे लहजे में पूछा



“क.....कोई नहीं ।" उस व्यक्ति ने घबराहटभरे स्वर मे कहा ।



“मुझे कोई कमीज-पेंट पहनने को दो-ज़ल्दी! फौरन ।।"

.

दो मिनट में ही कैदी कै वदन पर नई कमीज-पैंट थी । रिवॉल्वर की नाल उस मरियथ के सिर पर मारी तो वह बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा । कैदी ने रिवॉत्वऱ जेब में डाली और बाहर आ गया । यह सस्ता घटिया-सा मकान था । गली के मोड पर ही उसे रंजीत श्रीवास्तव की विदेशी चमचमाती कार नजर आई । जिस पर खूबसूरती के साथ श्रीवास्तव लिखा था । कैदी ने कार की बॉडी पर ठोकर मारी और जहरंभरे स्वर मे बुदबुदा उठा ।



"रंजीत श्रीवास्तव r"


इसके साथ ही वह तेजी से आगे बढ गया ।


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फीनिश
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कैदी ने एक घर का वन्द दरवाजा खटखटाया । दो-तीन बार खटखटाने पर दरवाजा खुला I दरवाजा खोलने वाला पच्चीस छब्बीस वर्ष का युवक था I



उसने कैदी क्रो देखा I



"किससे मिलना है आपको?" उसने शालीन स्वर में पूछा ।


कैदी ने उसकै पेट पर हाथ रखकर उसे पीछे किया और भीतर प्रवेश कर गया ।


"यह क्या कर रहे हैं आप? भीतर क्यों आ गए?" युवक सकपकाकर कह उठा ।



"तुमने शायद मुझे पहचाना नहीं I” कैदी की आवाज मे नर्मी और बिश्वास का पुट था ।


"नं......नहीँ पहचाना ।" युवक ने असमंजसता से उसे देखा......"कौन हैँ आप?"



"ध्यान से देखो मुझे! शायद तुम्हें इस प्रश्न की आवश्यकता ही न रहे ।" कैदी मुस्कराया ।



युवक ने पहचानने वाली निगाहों से कैदी को देखा I काफी देर तक देखता ही रहा I फिर उसकी आंखों में अजीब सी चमक भरती चली गई [ होंठों से अजीब-से लहजे में आवाज निकली ।



"ड......डॉक्टर बैनर्जी?"



"हां I” कैदी जोकि डॉक्टर बैनर्जी ही था हंस पड़ा-"सही पहचाना तुमने । मैं बैनर्जी ही हू।" युवक स्तब्ध सा अपलक डॉक्टर बैनर्जी को देखता ही रह गया ।


आंखों में अविश्वास कै गहरे भाव छा गए थे । होंठ हिल रहे थे परन्तु कोई शब्द नहीं निकल रहा था ।



उसे इस तरह खामोश पाकर डॉक्टर बैनर्जी ने मुस्कराकर कहा ।



"अरे भई ! पानी वगैरह पिलाओ । इस तरह क्या देखे जा रहे हो मुझे?”



“य.....यह आपने अपनी क्या हालत बना रखी है? दो सालों से आप कहां थे ?"



"लम्बी कहानी हे । आराम से बैठकर बताऊंगा । पहले चाय…पानी का वन्दोवस्त करो और तव तक मुझे सोच लेने दो I सिगरेट होगी तुम्हारे पास ।।" डॉक्टर बैनर्जी ने युवक क्रो प्रश्नमरी निगाहों से देखा I



"नहीं I मैं तो सिगरेट पीता नहीं I आपको ला देता हूं ।" युवक ने गहरी सांस लेकर कहा और बाहर निकल गया ।

डॉक्टर बैनर्जी ने खुद ही फ्रिज से पानी निकालकर पिया । जल्दी ही युवक सिगरेट ले आया । डॉक्टर बैनर्जी ने सिगरेट सुलगाई और कश लेने लगा । वह किचन में चाय वगेरह तैयार करने लगा I इस बीच उनमें बात नहीं हुई ।
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