वारदात complete novel

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Re: वारदात

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उसके बाद दो दिन तक इन्सपेक्टर सूरजभान उन तीनों कै पास नहीं गया । नशों की थैलियाँ उनके सामने पडी रहीँ, परन्तु वह नशा कर सकने की स्थिति में नहीं थे । लगातार पांच दिन होगए थे उन्हें कुर्सियों पर बंघे बंधे । शरीर… पीठ…बदन टांगें सबकुछ टूट-फूट सा रहा था । ऊपर से नशे का न मिलना । जैसे पागल हो गए थे वह । जरूरत पड़ने पर उन्हें पानी दे दिया जाता। खाने के समय दो पुलिस वाले आते और अपने हाथों से उन्हें खाना खिलाकर चले जाते । अगर तीनों में से कोई आनाकानी करता तो उसे खाना नहीं खिलाया जाता । अगली दफा वह खामोशी से खाना खा लेता था । पेशाब उनकी कुर्सी से वंधे बंघे ही करना पढ़ता था । दिन में एक बार शौच कें लिए उन्हें खोला जाता, और इस बात का खास ध्यान रखा जाता कि वह लोग नीचे पड़े नशों का इस्तेमाल न कर सकें। एक वार दिवाकर बंधनों कै खुलते ही नशों पर झपटा । तो पुलिस वालों ने उसे मार-मारकर अधमरा कर दिया था । दिवाकर की हालत देखने के पश्चात् अब चाहते हुए भी वह तीनों नशों पर नहीं झपटते थे I परन्तु हकीकत्तन् नशे कै बिना वह पागल से हो रहे थे । सारा दिन कुर्सियों पर बंधे सूरजभान को गालियां निकालते रहते थे ।



बिना वजह चीखते चिल्लाते । सिरों पर जलते बल्ब एक बार भी बंदं न हुए थे । उस बन्द कमरे में गर्मी की वजह के कारण उनके पसीने से बदबू उठनी आरम्भ हो गयी थी, जो कि उनके लिए बडी ही असहनीय हो रही थी।




सिर इस प्रकार अब दर्द से बराबर फटता रहता था जैसे वहां पहाड आ पड़ा हो । तीनों की आंखें नींद न लेने और नशा न करने के कारण लाल सुर्ख हो गई थी....जो कि पूरी तरह खुल भी नहीं रहीँ थी वह चिल्ला चिल्लाकर इन्सपेक्टर सूरजभान को बुलाते, परन्तु उनकी आवाज की कोई प्रतिक्रिया ना होती थी ।



और फिर दो दिन के बाद सूरजभान ने वहां प्रवेश किया ।



तब तक वह तीनों बुरी तरह टूट चुके थे । थक चुके थे । उन्हें हर सजा मंजूर थी, परन्तु इन्सपेक्टर सूरजभान द्वारा दी जा रही सजा मंजूर नहीं थी। सूरजभान पर निगाह पडते ही उनके चेहरों पर बुझी बुझी-सी रौनक आ गई ।


उन तीनों को देखते हुए सूरजभान कै होठों पर व्यंग्यात्मक मुस्कान नाच रही थी ।



"कैसे हाल हैं तुम लोगों के?" सूरजभान ने कुर्सी पर बैठते हुए जहर भरे स्वर में कहा-"अभी भी हिम्मत बची हे या अक्ल ठिकाने पर आ गई हे?"



“कमीने.....कुते....!" दिवाकर दहाड़ उठा…"तू कहां था दो दिन से? तू तो हमें परसों नशा दे रहा था करने के लिए । फिर तू एकाएक कहां मर गया? तुझे मालूम नहीं था कि हमें नशा चाहिए। हम नशे कै बिना नहीं रह सकते । धोखेबाजी करता है हमसे I"



सूरजभान मुस्कराया । कटुता से भरी गहरी मुस्कान ।



"तुम्हें नशा चाहिए?" सूरजभान हौले तें हसा I

"हां-हाँ । कितनी बार कहू तुम्हें?"



सूरजभान ने सूरज हेगडे और अरुण खेड़ा को देखा ।



एकाएक हेगड़े की आंखों से आंसू बह निकले ।


“इन्सपेक्टर भगवान के लिए, प्लीज़ हमें नशा दे दो नहीँ तो हम मर जायेँगे।"




सूरजभान ने हंसकर खेडा की आंखों मेँ झांका ।



"तुम्हें नहीँ चाहिए?"



"चाहिए क्यों नहीं ।" अरुण खैड़ा इतनी जोर से गला फाड़कर चीखा कि उसे काफी तेज खांसी उठ गई । खांसी थमने पर गहरी-गहरी सांसे लेता हुआ बोला-'"तुम हमें क्यों तरसा रहे हो । जब सामने नशा पड़ा है तो, थोड़ा-सा हमें दे क्यों नहीँ देते?"



सूरजभान ने मुस्कराते हुए तीनों को बारी…बारी देखा ।।


"डकैती कैसे की थी तुम लोगों ने?" सूरजभान कै इस प्रश्न पर तीनों क्षण भर के लिए अचकचा उठे ।।




"तो तुम इस कीमत पर-हमें नशा करने दोगे कि ......!"



"जो अपराध तुम लोगों ने किया हे, वह तुम लोगों को स्वीकारना होगा !" सूरजभान ने एक-एक. शब्द चबाकर र्कहा-“कई लोगों के सामने लिखित तोर पर मानंना होगा । राजीव मल्होत्रा की हत्या -तुम लोगों ने कैसे ओंर क्यों की? सब कुछ सच सच अपने मुंह से बताना होगा । उसके बाद ही तुम लोगों को नशा मिल सकेगा । उसके बाद तुम लोगों क्रो किसी भी चीज की कमी नहीं होगी ।"




"क्यों नहीं… ?" अरुण खेडा दांत किंटकिटा उठा-“हम अपना मुह खोलें और तुम हमेँ नशा करने दोगे । भरपूर खाना दोगो । किसी चीज की कमी नही होने दोगे ।उसके बाद हमारे द्वारा कबूल किए अपराधों कै दम पर तुम फांसी के फंदे पर लटका दोगे । ऐसा ही करोगे ना तुम? चुटकी-भर नशे का लालच देकर तुम हमेँ मौत के मुह में धकेलना चाहतें हो ।"



सूरजभान हंसा । हसकर उसने सिगरेट का कश लिया ।।

"अगर तुम लोगों को नशे कीं जरूरत हे तो मेरी बात माननी ही पड़ेगो । रही बात फांसी कै फ़दे-क्री तो, मैँ पूरी कोशिश करूंगा कि तुम लोगों को फांसी ना हो ।तुम लोगों ने जुर्म किया हे कम से कम उसकी सजा उम्र कैद तो है ही !”


“उम्र कैद?” हेगड़े के होठों से हक्का-बक्का स्वर निकला ।।




"सौं इससे कम तुम लोगों को सजा नहीं मिल सकेगी ।"



सूरजभान ने गम्भीर स्वर में कहा-" तुम लोगों ने बहुत ही ख़तरनाक अपराध किया है । डकैती कै साथ अगर हत्या न करते तो.......!"




“इन्सपेक्टर.......!" दिवाकर दहाड़ा--" बैंक डकैती की है हमने । हाँ की है । राजीव मल्होत्रा भी हमांरे कारण मरा है । मैंने उसके पेट में घूंसे मारकर मारा हे उसे । साला हमसे हेराफेरी कर रहा था । डकैती का सारा माल हड़प लेना चाहता था…हरामी । वेसे मैँ उंसे मारना नहीँ चाहता था, लेकिन मर गया वह । नशे में था ।उस वक्त मैं ! बहुत जोरदार घूंसे मार डाले थे मैंने ।”



सूरजभान की आंखों मेँ हिंसक चमक विद्यमान हो गई ।



"वैंक-डकैती ओर राजीव की हत्या का सारा ब्योरा तुम लोगों को सिलसिलेवार, कई लोगों के सामने बताना होगा । सबके सामने बयान देना होगा, ताकि अदालत में अपने बयान से पीछे न हट सको I बोलो मंजूर है?" सूरजभान ने दिवाकर की आंखों में झांका ।



" हां मंजूर है I" दिवाकर नशा ना मिलने कै कारण पागल सा हो रहा था ।



"एक बात का ध्यान रखना कि अगर तुम यह सोच रहे हो कि अदालत में जाकर अपने दिए बयान से पीछे हट जाओगे, यह बाते तुम लोगों कै लिए भविष्य में बहुत ही ज्यादा नुकसानदेह साबित होगी । में दोबारा रिमाण्ड ले लूंगा । तब सोचो, तुम लोगों का क्या हाल करूंगा। इस बार तो मैँने एक सप्ताह कै लिए ही रिमाण्ड लिया है, अगली बार दस दिन या दो सप्ताह का लूंगा ।”

"इन्सपेक्टर !" दिवाकर उसकी बात काटकर तडप उठा---- "हम अदालत में भी अपनी बात र्कहने से सच कहने से पीछे नहीं हटेंगे। तुम हमारी बात का विश्वास करो सच पूछो तो तुम हमारे अपराधों को स्वीकार करवाकर भी हमारा कुछ न बिगाड सकोगे l तुम मेरे पिता को नहीं जानते ।वह मुझे कुछ नहीं होने देंगे । मक्खन में से बाल की तरह निकाल ले जायेंगे । मैं सबके सामने अपना जुर्म स्वीकार करूंगा और तुम देखनां, कानून मेरा कुछ न बिगाड सकेगा l"




सूरजभान मुस्कराया, अजीब-सी मीठी मुस्कान ।।




"तो फिर मैं लोगों को इकट्ठा करूं ! सबके सामने सच कहने की तैयार हो?”



"बिल्कुल । ले आओ, जिसे भी लाना है ।" दिवाका गुर्राया-“मेँ नहीं डरता कानून से । अब तो हमें नशा दे दो करने के लिए । अब तो हम तुम्हारी हर वात मार्न रहे हैं I"



"अभी नहीं, पहले जुर्म का इकबाल होगा । उसके बाद तुम लोगों की हर बात मानी जायेगी ।"


"दिवाकर ।” हेगड़े ने एकाएक भयभीत स्वर में कह-----" जुर्म स्वीकार करने का मतलब जानते हो ?”



"कुछ मतलब नहीँ हे । तुम..... ।"



"हमें फांसी हो जायेगी ।" अरुण खेड़ा लगभग चीख ही पडा ।



"नहीं होगीं । मेरा बाप मुझे बचा लेगा । वह बड़ा करामाती आदमी हे ।"



"तुम बच जाओगे। लेकिन हमेँ कौन बचायेगा?" हेगडे तढ़पकर कह उठा ।
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Re: वारदात

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"उल्लू कै पट्ठे, में बचूंगा तो क्या तुम नहीं बचोगे । जुर्म हम लोगो ने साथ किए हें । डकैती हम लोगों ने मिलकर की हे । राजीव मल्होत्रा बंद कमरे में हम तीनों कै होते हुए मरा । जब सबकुछ हमने मिलकर किया है तो फिर इकट्ठे क्यों नहीँ बचेगे ! सब बचेंगे !! हम पहले की तरह ऐश करेंगे !"



सूरजभान होठों पर मंद मंद मुस्कान लिए तीनों क्रो देखें जा रहा था I


"अगर तुम्हारा बाप न बचा सका तो?"

"पागल मत वनो I हम लोगों का खानदान शाही खानदान है । प्रधानमंत्री तक मेरे बाप की पहुच हे I वह अगर करने पर आ गया तो सबकुछ कर देगा ।" दिवाकर ने दांत किटक्रिटाकर कहा-"दिवाकर तुम लोगों सै वायदा करता है कि तुम लोगों को एक दिन की भी सजा नहीं होगी ।"




“अगर हो गई तो… ?” खेडा भयभीत स्वर में कह उठा ।




"नहीं होगी ।" दिवाकर ने गला फाड़ा-"मेरा कहा तूने सुना नहीं क्या? यह इन्सपेक्टर हवा में ही हाथ-पांव चला रहा हे । बाद में इसके हाथ कुछ भी नंहीँ लगने चाला ।"



सूरजभान के होठों पर छाईं मुस्कान और भी गहरी हो गई।



"देखना..... I" खेड़ा ने शब्दों को चबाकर कहा-"अगर , तुम्हारा बाप कुछ ना कर सका तो फांसी का फदा ही हमारे गले में पड़ेगा । फिर ऊपर जाकर ही हमें होश आयेगा कि नशे की खातिर हमने गले में फांसी का फंदा डलबाया । कितनी शर्म की बात हे कि.........!"




दिवाकर के होठों से गुर्राहट निकली I


उसने गर्दन घूमाकर इन्सपेक्टर सूरजभान क्रो देखा I



"इन्सपेक्टर ! तुम मेरा बयान लेने का इन्तजाम करो । मैंने अपना अपराध कबूल कर लिया तो समझो इनका खुद-व-खुद ही हो जाएगा I मुझे नशा देना-बहुत ज्यादा नशा कि मुझे किसी भी बात का होश ना रहे । नशे कै बिना में पागल होता जा रहा हूं।”



सूरजभान मुस्कराकर कुर्सी से उठ खडा हुआ I



" अरूण....!" हेगड़े क्रोध से चिल्लाया-"दिवाकर I हमें धोखा दे रहा है I यह सरकारी गवाह बनने जा रहा है I यह बच जायगा I बहुत कम सजा होगी इसे और हमेँ ज्यादा I शायद फांसी का फंदा.. I"



दिवाकर ने दांत किटकिटाकर हैंगड़े को देखा । बोला कुछ नही----।।



"शाही खानदान की औलाद.....धोखेबाज....I" खेड़ा चिल्ला पड़ा ।

तभी सूरजभान ने बाहर खड़े पुलिस वाले को आवाज दी ! अगले ही पल वह पुलिस वाला भीतर था । सूरज़भगृन ने दिवाकर की तरफ इशारा करते हुए कहा…

"इसे खोलो ।"



पुलिस वाले ने दिवाकर के हाथ पांव खोल दिए। वह बंधनों से आजाद हो गया ।



"इन्सपेक्टर । मै.....मै थोड़ा-सो नशा क… कर लु। फिर… ।”



"नहीं ।" सूरजभान की आवाज में कठोरता थी-----"पहले . तेरे बयान होंगे । उसके वाद नशा ।"



"प्लीज इन्सपेक्टर....थोडा-सा । बिल्कुल थोड़ा-सा, ब… वाकी बाद में… ।" दिवाकर गिडगिडाने वाले अन्दाज में कह उठा। उसकी आंखों में नमी आगई थी ।



सूरजभान के होठों पर जहरीली मुस्कान रेंगती चली गई ।



"थोडा-सा करना… ।”

“ह....हां ।” दिवाकर का स्वर लड़खड़ा उठा था----" थोड़ा-सा ।" कहने के साथ ही वह नशों पर झपट पड़ा ! उसके हाथ-पांवों में स्पष्ट कम्पन होता नजर आ रहा था ।



कुर्सियों पर बंधे हेगडे और खेडा आंखें फाडे दिवाकर और नशों को देखै जा रहे थे ।


"हेगडे ।" खेडा चीखा----"जुर्म का इकबाल यह करे या हभ बात तो एक हीँ है।"



" हां ।"



"हम भी करेगे ।” खेड़ा दात भीचकर वल्ह उठा… “दिवाकर कै मुंह खोलते ही हमने भी फस जाना हे । फिर क्यों ना, हम खुद ही इस मामले में आगे काम बढाये ।"



"क्या मतलब ? " खेडा ने तड़पकर इन्सपेक्टर तूरजभान को देखा जो पहले ही मुस्कराता हुआ उन दोनों को देखै जा रहा था । सूरजभान की आंखों मे चमक उभर चुक्री थी ।

" इंस्पेक्टर !" खेडा तडपा ----" तुम हमें भी खोल दो हमे भी नशा दो।। दिवाकर से पहले हम अपना जुर्म इकबाल करेंगे । साला नशों की खातिर हमसे धोखेबाजी करता है !"



"सोच लो ।" सूरजभान ने उसकी आंखों में झांककर-कहा--"तुम लोगों का जुर्म इकबाल करना, तुम लोगों को फांसी के फंदे पर ले जा सकता हे । बैंक डकैती और चार हत्याओं कै मुजरिम हो तुम लोग । खून मेँ रंगे हाथ हैं तुम तीनों के । तुम लोगों के जुर्म की जंजीर बहुत लम्बी हे ।”



" इन्सपेक्टर !" सूरज हेगडे गला फाड़कर चिल्ला पडा-----"परवाह नहीँ l अगर हमारे हाथ खून से रंगे हैं तो इन हाथों को हमने धोना भी हे l जो होगा, हम देख लेंगे, हम… !"



तभी दिवाकर हंसा, तीखी ओर व्यंग्यात्मक हंसी ।



"मेंने तो पहले ही कहा था कि इन पुलिस वालों की परवाह मत करो और जुर्म इकबाल कर लो । पें शाही खानदान .से सम्बन्ध. रखता हू ,मेरे बाप की…पहुंच बहुत ऊपर तक है । वह हमें हर हाल में बचा लेगा । कानून को तो वह हमेशा अपने पांवों कै नीचे रखता हे l" , .



"लेकिन इस बात की क्या गारण्टी हे कि नशा करने कै बाद तुम लोग अपनी बात से पीछे नहीं हटोगे? क्या मालूम तुम लोगं…!"



"इन्सपेक्टर हम लोग अपने कहे से पीछे नहीं हटेंगे ।" खेड़ा ने शब्दों को चबाकर कहा !



सूरजभान बिचारपूर्ण निगाहों से कई पल उन लोगों को देखता रहा ।



"ठीक हे ।" सूरजभान ने होले से गर्दन हिलाकर कहा----"तुम लोगों को इस समय बहुत ही कम नशा मिलेगा । जुर्म इकबाल के बाद, चाहे जितना भी करना l”



"मंजूर हैं हमें तुम्हारी बात' I"


सूरजभान ने पुलिस वाले को इशारा किया l

उसने खेडा और हेगडे के बंधनों को खोल डाला I वह दोनों खुशी से झूम उठे । उनकें शरीर की हालत क्या थी, यह तो वह ही जानते थे । परन्तु सबकुछ भूलकर वह नीचे पडे नशों पर टूट पडे थे I

सूरजभान इस बात का खास ध्यान रख रहा था कि वह तीनों ज्यादा नशा न कर ले । थोड़ा-थोड़ा नशा उन तीनों को देकर उसने बाकी नशे का सामान अपनी जेब में रखा और पुलिस वाले से बोला---. "इन तीनों को नहला धूलाकर एकदम तैयार कर दो । और जहां भी यह टेढे हौं, इतनी धुनाई करना कि उसके बाद उल्टी हरकत करने की सोच भी ना सकें ।" सूरजभान दांत भींचकर कह उठा ।


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Re: वारदात

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नहाने-धोने कै बाद तीनों अब इंसानों जैसे लग रहे थे । लेकिन उनके जिस्म पर मौजूद कपड़े मैले ही थे I नशा कर लेने कै पश्चात् अब उनका दिमाग सैन्टर मे लग रहा था ।



इन्सपेक्टर सूरजभान ने पुलिस के तीन ओहदेदार, जिनमें पुलिस कमिश्नर राममूर्ति भी था, उन्हें बुलाया । सूरज हेगडे के पिता जज कृष्णलाल हेगडे ओर अरुण खेडा के पिता सोहन लाल खेडा को बुलाया । इन लोगों कै सामने दिवाकर, हेगडे और खैड़ा के बयान लिए गए I



सूरजभान ने वहां डाक्टर को बुलाया और तीनों का चेकअप कराया I डाँक्टर ने वहा सबके सामने चैकअप करने कै बाद लिखित रुप मे कहा किं इन तीनों के साथ जरा सी भी मार-पीट नहीं को गई । टार्चर नहीं किया गया I l



सारा काम ठीक-ठाक निपट गया बुलाए गए लोग चले गए थे। इन्सपेक्टर सूरज़भान और सव…इंस्पेक्टर कोहली उन तीनों को लिए बापस टार्चर-रुम में पहुंचे।



अब तो हमने सब-कुछ साफ-साफ बता डाला जैसा तुम चाहत थे हमने वेसा हीँ किया है। खेडा व्याकुल स्वर में बोला-"अब तो हमें नशा दै दो। सिर जोरों से फट रहा हे।"

"कानूनी तोर पर मैं तुम लोगोः को नशा नहीं दे सकता ।"

सूरजभान ने गम्भीर स्वर में कहा… "परन्तु मेंने तुम लोगों से वायदा किया हे…इसलिए तुम लोगों को नशा मिलेगा । लेकिन डकैती की दौलत के प्रति मेरी संन्तुष्टि नहीं हुई । तुम लोग कहते हो कि पैसा राजीव मल्होत्रा ने कहीँ रखा था I”



"हां । हमने…सच कहा है ।" दिवाकर ने अपने शब्दों उर जोर देकर दृढ़ताभरे लहजे में कहा-"बेंक-डकैती की दौलत राजीव ही कहीँ रख आया था I काश हमें मालूम होता कि वह पेसा कहां है ।"



"मेरा ख्याल हे कि तुम लोगों को मालूम है कि बैंक-डकैती ¸ की दौलत कहां हे I” सूरजभान ने दिवाकर की आंखों में आंकते हुए सख्त स्वर में कहा I




"यह वहम है तुम्हारा इंस्पेक्टर ।" हेगडे उखडे और क्रोध भरे स्वर में बोला-"वैक-डकैती की दौलत ना तो हमारे पास है और ना ही हमें पता है कि कहां पर हैI जब हमने सबकुछ कबूल कर लिया है तो हम यह बात भी कबूल कर सकते थे I"

“ तुम खुद ही सोचो I" खेड़ा बोला---" राजीव को मारने की भला तुक क्या थी? वह हमारा खास दोस्त था । वह दौलत के झगडे को लेकर मरा था I दौलत को वहीँ कहीं रखकर आया था I"



तभी सब इन्सपेक्टर कोहली ने सूरजभान से कहा----"सर! मुझे तो यह सरासर झूठ बोलते लग रहे है ।"



“मुझे भी ऐसा ही लगता है !” सूरजभान उन तीनों को घूरत्ता हुआ कह उठा---"लेकिन मै इन्हें छोड़ूगा नहीँ I दोलत इनसे वसूल करके ही रहूंगा ।"



"कर लेना।" _दिवाकर कढ़वे स्वर में बोला-"लेकिन हमारे कबूल करने से पहले राजीव की आत्मा से पूछ लेना कि वह माल कहां रख आया था ।"



सूरजभान ने कठोर आबाज में कोहली से कहा---"इन्हें थोड़ा-थोड़ा नशा दे दो I”


"थोडा नहीं ज्यादा I” दिवाकर तेज स्वर मेँ बोला ! ।

“खामोश रहो I" सूरजभान गुर्राया -"यहां तुम लोगों को थीड़ा थोड़ा ही नशा मिलेगा, दिन में दो बार । तुम लोगों क्रो शुक्र मनाना चाहिए कि में नशा दे रहा हू।”



सब-इन्सपेक्टर कोहली ने तीनों को थोड़ा थोड़ा नशा दिया I वह तीनों सबकुछ भूलकर भूखे कुत्तों की तरह नशा करने मेँ व्यस्त हो गए।


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अजय आज ही अपनी माँ की क्रिया करके हटा ही था । आस पडोस वाले ओर रिश्तेदार जा चूकै थे । रात हो रही थी । वह अपने घर-मेँ अकेला ही बैठा था । मां कं सिवाय इस दुनिया में उसका था ही कोन ।


तभी खुले दरवाजे से जिन्दल ओर अशोक ने भीतर प्रवेश किया ।


अजय ने उन्हें देखा I


सोचा, अफसोस करने आये होंगे I



जिन्दल ओर अशोक आने बढकर उसके करीब में जा बेठे ।



"तुम्हारी मां कॅ बारे में हमें बहुत अफसोस हुआ I" जिन्दल ने अफसोस जाहिर करने वाले लहजे मेँ कहा ।


अजय सिर हिलाकर रह गया I


"आप लोगों को मैंने पहचाना नहीं ।” अजय ने धीमे स्वर में कहा ।



"हम पहले कभी नहीँ मिले, इसलिए पहचानने का सवाल ही पदा नहीँ होता ।” जिन्दल ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया----"दरअसल मैँ अंजना का भाई हूं।"



"अजना ..... कौंनं अंजना… ?' अजय के होठों से निकला ।



"वहीँ जिसका हेंडबेग आपके पास हे I"



"ओह'" I" अजय ने समझने वाले भाव में सिर हिलाया ।


“अंजना ने ही हमें हैंडबैग लेने भेजा था उस दिन । जब हम यहां पहुचे तो आपकी माताजी स्वर्गवासी हो चुकी थीं । इसलिए हमने हैंडबैग का जिक्र करना ठीक नहीँ समझा और आपके दुख मेँ शामिल होने के लिए हर रोज आते रहे । आज आपको फुर्सत में देखा तो सही बात बता दी I"


अजय कुछ ना बोला ।


“अगर कोई दिक्कत ना हो तो आप हैंडबैग हमेँ दे दीजिए । मेरी बहन को उसकी जरूरत है ।”


"हां-हां क्यों नहीं ।अभी लीजिए I" अजय ने सिर हिलाकर शांत लहजे में कहा और उठ खड़ा हुआ ।




अजय उस कमरे से निकलकर दूसरे कमरे में पहुंचा । पिताजी की दीवार पर लटकी तस्वीर कै करीब जाकर एकाएक ठिठक गया । दिमाग को झटका लगा । अंजना का भाई हैडबेग लेने आया हे । हो सकता हे, कोई बडी बात नहीं । परन्तु उसके भाई को उसका पत्ता कैसे मिला! उसने तो अंजना को अपने घर का पता बताया ही नहीँ था!


अजय के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा । बैग में ज्यादा पैसे थे । वह यूं ही बैग किसी के हवाले नहीं कर सकता था ।


अजय बापस कमरे में जिन्दल और अशोक के पास पहुचा । उसे खाली हाथ देखकर जिन्दल के चेहरे पर मायूसी के भाव आ गए ।



"आप बुरा मत मानिएगा, मैं बेग अंजना क्रो ही वापस दूंगा l"



"क्यों?” जिन्दल के होठों से निकला ।



"दरअसल बेग मेँ रुपये भी मौजूद थे । मां कै अन्तिम संस्कार में जरूरत पडी तों कुछ'पेसे उसमेँ से निकाल लिए । इस कारण मैं अंजना से माफी मांगकर उम्हें बैग लौटाना चाहता हूं।"


"कोई बात नहीं , मैं उसे सबकुछ बताकर आपकी तरफ से माफी मांग लूंगा I"


"आप निश्चिन्त रहिए । मैं दोपहर तक बेग अंजना कै पास पहुंचा दूंगा ।"



“तो आप बैग हमें नहीं देंगे?“
"आप वेग में से पैसे निकाल लीजिए । जब अंजना मिले, उसे पैसों का हिसाब दे दीजिएगा । बैग हमें दे दीजिए l" जिन्दल ने मन ही मन अपना क्रोध दबाकर कहा ।



. " मै आपको बैग नहीं दे सकता l" अजय ने स्पष्ट लहजे में कहा l



जिन्दल का चेहरा सख्त हो उठा । पलक झपकते ही उसने रिबॉंल्बर निकालकर हाथ में ले ली । रिवॉल्वर अपनी तरफ तनी पाकर अजय ठगा-सा रह गया I



“अब क्या इरादा हे?" जिन्दल गुर्राया-“बैग देते हो कि नहीं?”


"वेग... बेग में है क्या?" अजय सूखे होठों पर जीभ फेरकर कह उठा ।



"जो भी हे, उसमें तुम्हरि मतलब की चीज नहीं है। चुपचाप वेग मेरे हवाले करो ।" जिन्दल एकएक शब्द चबाकर कह उठा था-“इस रिवॉल्वर को सिर्फ धमकी मत समझना। मेँ इसकी सारी की सारी गोलियां तुम्हारे सीने में उतार सकता हूँ।"





"बेग मुझे ढूंढना पड़ेगा ।“ अजय ने सूखे होठों पर जीभ फेरकर कहा । वह किसी भी कीमत पर बैग उसके हवाले नहीँ करना चाहता था-"मां ने रखा था कहीँ । अब मां तो है नहीं कि उससे पूछ सकूं।"



"जहा भी हे ढूंढ लो । बिना बैग लिए हम जाने वाले नहीं ।" जिन्दल गुर्राया । अजय मोके की तलाश मेँ घर में इधर-उधर सामान पलटता हुआ समय बिताने लगा । वह कोई मुनासिब मौका चाहता था कि जिन्दलं के हाथों से रिवॉल्बर झटक सकै।


उसके मन मेँ उत्सुकता भर आई कि वह देखे, खाली बैग में क्या मोजूद हे । क्यों वह खाली बैग चाहता है?


बेग की त्तलाशी का बहाना करते करते अजय के हाथ लोहे का छोटा-सा दो फीट लम्बा सरिया लग गया l

जिंदल ठीक उसके पीछे रिवॉल्वर लिए मौजूद था । अशोक यूं ही कमरे में टहलता हुआ इधर उधर निगाहें घुमा रहा था ।


सरिया लेकर अजय वेग से घूमा और पीछे खड़े हुए जिन्दल की कलाई पर तगड़ा बार किया । रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई ।



. जिन्दल के होठों से कराह निकली । सरिया कलाई की हड्डी पर लगा था । हडूडी टूटने की आवाज उसे स्पष्ट सुनाईं दी ।


यह सब देखकर अशोक चौंका । इससे पहले क्रि वह सम्भल पाता सरिये का तेज वार उसके कंघे पर पड़ा ।



पीडा से अशोक चीख उठा और कंधा पकढ़करं नीचे बैठता चला गया । उधर जिन्दल की कलाई की हड्डी टूटने कै कारण वह नकारा हो गया था ।

इसकै बाद अजय वहाँ नहीं रुका । फौरन अपने कमरे मे पहुचकर दीवार पर लटकी पिता की तस्वीर के पीछे से पर्स निकाला और घर से बाहर भागता चला गया ।

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Re: वारदात

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बैंक-डकैती और हत्याओं का केस अदालत में चलने लगा । दिवाकर, हेगडे और खेड़ा अपने बयान से पीछे नहीं हटे ।



उनके दिए गए बयान कें कारण ही बचाव-पक्ष कै वकील किशोरी लाल गुप्ता को उन लोगों को बचाना कठिन नजर आने लगा । सरकारी वकील बनवारी लाल चूंकि चन्द्रप्रक्राश'दिवाकर से नोटों की गड्डियों कै रुप में नजराना ले चुका था । इसलिए ढीले डाले ढंग से ही वह कोर्ट में बोलता रहा.. खास बहस वह नहीं करता था ।



इन्सपेक्टर सूरजभान वायदे कै‘मुताबिकं चुपचाप रोज उन तीनों को नशा दे दिया करता था ।


बनवारी लाल केस लडने में ढीला पड़ चुका था । अगर वह तीनो अपना अपराध कबूल न करते तो बहुत ही कम सजा उन्हें होनी थ्री ।

उधर हर पेशी में कृष्णलाल हेगड्रै और सोहन लाल खेड़ा ज़रूर आते थे ।


चन्द्रप्रकाश दिवाकर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था कि उसके बेटे को कुछ ना हो । तो इन्सपेक्टर सूरजभान भी पूरी कोशिश कर रहा था कि अपराधी किसी भी कीमत पर बचने ना पायें ।



, . कैस की दो-तीन पेशियाँ हो चुकी थीं । अपराध वह कबूल कर चूकै थे । गवाह और सबूत अदालत कं पास मोजूद थे । कैस में कुछ खास नहीं बचा था । अगली एक-दो पेशियों मेँ केस का फैसला जज भानूप्रतापसिंह ने सुना ही देना था ।

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फिनिश
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" तुम......!" दरवाजा खोलते ही अंजना का दिल धडक उठा ! घड़कन तीव्र हो गई-सामने अजय खड़ा था !



जबकि वह तो अजय के आने की आशा ही छोड़ चुकी थी । कई पलों तक तो अजना के होठों से कोई शब्द ही ना निकला।



आखिरकार अजय ने ही कहा… "माफ़ कीजिएगा अंजना जी! मैं आ नहीं सका था।
मेरी मां का स्वर्गवास हो गया था ।"


अजय के शब्दों से, अंजना को पुन: झटका लगा l


"आप नहीं आए थे?"


"नहीं ।"


अंजना कै होठों से गहरी सांस निकल गई। मन को असीम शांति पहुंची ।


"आइये भीतर आइये ना… !"


अजय भीतर प्रवेश कर गया l अंजना ने दरवाजा बंद किया ।


"आप मेरा हैंडबैग नहीं लाये?"


अजय ने अपने कपडों में छिपा रखा हैंडबैग निकालकर अंजना कै सामने कर दिया ।


बैग की देखते ही अंजना खुशी कै भारे सिर से पांव'तक कांप उठी थी । बाज की तरह झपट्टा मारकर उसने बैग क्रो थामा और हाथ की कांपती ऊंगलियों से से उसे खोलकर बेग को टटोलने लगी , नोटों की गड्डियां, उसका सारा सामान बेग मेँ मोजूद था परन्तु उसकी उंगलियां हैंडबैग की चोर जेब के आसपास थिरक रही थीं, जिसमेँ क्लाकरूम की रसीद मोजूद थी ।



“आपके बेग में मोजूद तीस हजार रुपयों में से कुछ रूपए मैंने इस्तेमाल किए हैं । मां की अन्तिम क्रिया मे मुझें जरूरत पड़ गई थी ।" अजय ने धीमे स्वर में कहा !!



अंजना को अजय की बात सुनने की फुर्सत ही कहां थी । उसकी कांपती उंगलियां तो चोर पॉकेट में घूम रही थी, जहां से क्लाॅकरूम क्री रसीद गायब थी ।



अंजना ने अचक्रचाकर अजय को देखा I



"इस.... इसमें एक एक छोटीसी रसीद थी !" अंजना के होठों से कांपता स्वर निकला ।



अजय ने गम्भीर निगाहों से अंजना की आंखों में झांका ।


“ थी .....!"



" व.....वह कहां हे?” अंजना क्रो, अपनी सांस रुकती -सी महसूस होने लगी I



"मरे पास है ।" अजय ने स्थिर लहजे में कहा |

“ वह मुझे दे दीजिए । उसी की तो मुझे ज़रूरत हे l" अंजना की सांस वापस लौटी ।



"उसकी जरुरेत सिर्फ आपको ही नहीँ । कई और लोगों' को भी है ।" अजय ने सख्त स्वर में कहा-"जब बदमाशों से , मैंने बेग छीना था , वह कह रहे थे, बैग में मोजूद सारा पेसा ले लो, लेकिन खाली बैग हमें दे दो ! ओर अभी कुछ देर पहले मेरे धर कोई तुम्हारा भाई बनकर आ गया था बैग लेने । हैंडबैग लेने के लिए उतने मुझ पर रिवॉल्वर तान .दी थी I यानी कि उस खाली हैंडबैग में सिर्फ स्टेशन के क्लाकरूम की रसीद ही थी । और यह कोई आम रसीद नहीं हो सकती । स्टेशन में इस रसीद की एवज में कोई खास कीमती सामान ही मोजूद हे । जाहिर है वह नाजायज चीज ही होगी जिसके पीछे कई लोग पड़े हुए हैं I”

अंजना सूखे होठों पर जीभ फैरकर कुछ कहना चाहा, परन्तु कह ना सकी ।


"स्टेशन कै सामान-घर में क्या सामान-क्या चीज जमा कर रखी हे तुमने ।"



“ मुझे डर हे कि सहीँ बात सुनने के बाद आप मुझे रसीद नहीँ देंगे ।”



"हो सकता -हैं आप सही कह रही हों…परन्तु मैँ पूरी बात जानना चाहूंगा I"



"क्लाॅकरूम में बेंक-डकैती का लाखों रुपया मौजूद हे ।" अंजना ने गहरी सांस लेकर कहा ।



"बेंक-डकैती का पेसा?"


" हां !"



"तुमने की हे डकैती?"


"नहीं । किंन्ही ओर लोगों ने । इत्तफाक से पैसा मेरे पास आ गया l"



" मुझे पूरी बात बताओ I"



ना चाहते हुए भी अजना ने अजय को सारी बात सच सच बता दी । सुनकर अजय कै चेहरे पर गम्भीरता फैलती चली गई… ।



"कितना पैसा हे बेंक-डकैती का?"



"कह नहीँ सकती । सुना हे तीस ताख है ।”


"यह पैसा ना तो आपका हे और ना ही मेरा । किस्मत से यह पैसा हम दोनों कै पास आ गया है । मेँ चाहू तो पूरी दौलत पर अपना कब्जा जमा सकता हूं लेकिन किसी का हक मारना मैं ठीक नहीं समझता। जिस तरह से मैं सोच रहा हू उसी तरह से तुम्हें सोचना चाहिए । पराया माल हे । इसलिए शराफत के साथ हमें बांट लेना चाहिए । जितना भी पैसा होगा, हम आघा आधा कर लेंगे l"



अंजना को भला इसमें क्या एतराज हो सकता था । जो दौलत पूरी तरह से उसके हांथ से निकल गई थी, वह कंगाल हुई बैठी थी, अब अगर डकैती की आधी दौलत भी उसके हाथ आ जाती है तो क्या बुरा था ।

उसके लिए तो आधी दौलत ही बहुत थी !!


" मुझे कोई एतराज नहीं ।" अंजना बोली…"उस पैसे को हम आधा-आधा बांट लेते हैं ।”



"गुड ।" अजय मुस्कराया-"दरअसल मैं अपनी जिन्दगी में पैसे -पैसे का मोहताज रहा हूं , इसलिए मुझे ऐसा करना … पढ़ रहा हे । आज की तारीख में दौलत ही भगवान है I"


उसकी बात पर ध्यान ना देकर अंजना बोली…"इस रसीद का पाने के लिए कई लोग मेरे पीछे लगे हैँ ।। अच्छा यही होगा कि सबसे पहले हम यह जगह छोड़ र्दे I"


अजय ने सहमति में सिर हिला दिया ।


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फीनिश
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अजय ओर अंजना ने मध्यमवर्गीय होटल में कमरा किराए पर ले लिया । दोनों ने एक साथ दोपहर का खाना खाया और कॉफी पीते हुए अजना ही बोली… ।



"आपकी मां के बारे में सुनकर बहुत दुख हुआ ।"



अजय जबाव मेँ कहता तो क्या !


"अब आप जिन्दगी कैसे बिताएंगे?"


"सोचा नहीं… I" अजय ने अंजना कै चेहरे पर निगाह मारी ।



“दरअसल मुझें किसी सहारे की ज़रूरत थी ।" अजना ने स्पष्ट स्वर में कंहा-"एक तो मैं अकेंली हू। दूसरे मेरे पास डकैती की लाखों की दौलत हे । ऐसे में मेरा जीना कठिन हो जायेगा । राजीव की तरह आप भी मुझे र्शरीफ इन्सान लगे हैं l”



अजय ने वेहदं ध्यान है अंजना का चेहरा देखा । अंजना खूबसूरत थी l समझदार थी ।।


दोनों अच्छी जिन्दगीं बिता सकते थे ।


"तुम सहारे के तौर पर मुझसे शादी करना चाहती हो?" अजय बोला ।

"अगर आपको एतराज ना हो तो ।" अंजना ने सिर झुकाए ही कहा ।



"ठीक है I हम शादी करेंगे I" अजय ने सिर हिलाकर दृढता-भरे शब्दों मे कहा-“लेकिन मेरी शर्त यह है कि हम अभी मन्दिर में जाकर शादी करेंगे और रात होने से पहले ही स्टेशन के क्लाकरूम में पडी सारी दौलत लेकर, इस शहर को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ देंगे I"



"इतनी जल्दी क्यों?” अंजना के होठों से निकला ।



"इस पेसे के पीछे लोग पडे है । सब ख़तरनाक बदमाश हैं । रिवॉल्वर तक रखते हैँ । हम शरीफ लोग हैँ । अगर उन्होंने हमें घेर लिया तो वह सब-कुछ हमसे छीन लेंगे । हम उनका मुकाबला नहीं कर सकेंगे । और में हाथ आई दौलत को छोडना नहीँ चाहता। "



"मुझे कोई एतराज नहीं I"



अजय और अंजना ने मन्दिर मे शादी की । बैग के पैसों से अंजना ने सुहाग का लाल सुर्ख जोड़ा खरीदकर पहन लिया था । अजय कै जिस्म पर भी सिल्क कै नए चमकते कपड़े मोजूद थे। 'दोनों जब शादी से फारिग होकर स्टेशन पहुंचे तो शाम के छ: बज रहे थे । रसीद देकर उन्होंने स्टेशन के क्लाकरूम से चारों वड़े सूटकेस निकाले और ......
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: वारदात

Post by 007 »

बिशालगढ़
जाने बाली तैयार खडी ट्रैन में सवार हो गए । कुछ ही देर में ट्रैन चल पडी ।


दोनों वहुत खुश थे । नई-नई शादी और लाखों की दौलत,उनके बराबर दिल धड़काए दे रही थी ।


आने वाले खतरों से बेखबर, काश उन्हें मालूम होता कि बिशालगढ़ में खेली जाने वाली खून की होली बेसब्री से उनका इन्तजार कर रही हे जो उनके सारे सपनों को बिखेर कर रख देगी । बिशालगढ़ में होने वाले कई भयानक हादसे. उनका इन्तजार कर रहे थे ।



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अगले दिन खचाखच भरी अदालत में जज भानुप्रताप सिह ने केस का फैसला सुनाते हुए सुरेश दिवाकर, सूरज हेगड़े और अरुण खेड़ा को कठोर आजीवन कारावास की सजा दे दी ।

सरकारी वकील बनवारी लाल का ढीले ढंग से बहस करने के कारण हीँ~उन्हें उम्र कैद की सजा हुई थी । अगर वह अपने सही ढंग से बहस करता तो तीनों की फांसी लगने से कोई नहीं रोक सकता था ।


कृष्णलाल हेगडे को भानुप्रताप का फैसला पसन्द आया था l



सोहन लाल खेडा सिर्फ गहरी सांस ही लेकर रह गया था । वह कर भी क्या सकता था ।



जबकि एक कौने में खडे चन्द्रप्रकाश दिवाकर के होठों पर जहरीली मुस्कान रेंग रही थी ।


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जेल के कैदियों को अदालत में जाने-वापस लाने का काम करने वाली छोटी सी लारी अदालत से जेल की तरफ जा रही थी । दोपहर के दो बज रहे थे । सूर्य सिर पर चढा चमक रहा था। हबा बिल्कुल ना होने के कारण वदन में आये पसीने से बदबू उठती-सी महसूस हो रही थी ।



ऐसे मौसम में लारी के भीतर का हाल तो और भी बुरा था ।



हेगडे ने सिर उठाकर, खा जाने वाली निगाहों से दिवाकर को देखा ।




"अब बोल, बचा लिया हमें तेरे बाप ने… ।" हेगड़े गुर्राया-“साला बहुत बनता था । अपने शाही खानदान के गुण गाता था कि मेरे बापं की पहुंच प्रधानमन्त्री तक हे । नहीं बचा सका ना तेरा बाप हमको । मर गए ना हम और यह सब तेरे कारण हुआ हे । तेरे को नशे की ज्यादा ज़रूरत पड गई थी । रिमाण्ड कै दोरान तेरे की कहते रहे इन्सपेक्टर की चाल में मत आ । नशा मत कर । अपराध कबूल न कर बयान नहीं देना हे, हमें कुछ नहीं होगा l तेरा बाप हमें बचा लेगा l अब बता, कहां हे तेरा शाही बाप?"



दिवाकर दांत पीसकर रह गया ।



"वह तेरा शाही बाप कहा हे, मुझे तो कोर्ट में भी नजर नहीं आया, जिसकी पहुच तू कह रहा था प्रधानमन्त्री तक है I" खैड़ा पुन: खतरनाक लहजे में बोला-"जिस पर तुझे अपने से भी ज्यादा भरोसा है । इतना कि तूने अपना जुर्म कबूल करके, अपने साथ-साथ हमारी गर्दन भी कानून के हाथ में दे दी । अब कहां से करेगा नशे? कौन देगा जेल में नशा हमांरे को? वह इन्सपेक्टर सूरजभान? भूल जा उसे । उसका काम हमेँ सजा दिलवाना ही था । नशे के लालच में हम उसके पास फंसे रहे । हमें सजा हुई और वह गायब । किस्सा ही खत्म नशों का । अब कह अपने शाही बाप को कि हमें जेल में नशे पहुंचा जाया करे I साले ने अपने साथ साथ हमें भी फंसवा दिया I"



"बकवास मत कर कुत्ते l" दिवाकर शेर की मानिन्द गुर्रा उठा I



"हरामजादे उल्लू के पट्ठे ! खबरदार जो हमारे सामने आवाज ऊचा की तो ......!" हेगड़े दरिन्दगी भरे स्वर मेँ कह उठा-"अबकी बार हमारे सामने आवाज ऊंची की तो, कम से कम जेल में पहुचते ही सबसे पहले तेरा खून करने का काम करूंगा l”


"तू तू मारेगा मुझे?" दिवाकर ने हिकारत भरे अन्दाज में हैंगड़े को देखा l



"यह नहीँ हम दोनों मिलकर मारेंगे तुझे कूते की औलाद ।" खैड़ा गला फाढ़कर दहाड़ उठा----" दिल तो करता हे तेरे टुकडे-टुकडे कर दूं।"



---- तभी वातावरण में फायर की तेज आवाज गूंज उठी । लारी लड़खड़ाती हुई एक तरफ झुकती हुई सडक के किनारे रूकती चली गई ।

तीनों चीकै उनकें साथ पुलिस बालों ने भी जाली से बाहर झांका ।।

"यह क्या?" दिवाकर के होठों से निकला ।



"मुझे तो भाँरी गढ़बड़ लग रही हे l" सूरज हेगड़े सतर्क स्वर में कह उठा-"लारी के टायर पर फायर करके उसे रोका गया है, वह भी सुनसान जंगह पर । मामला अपने मतलब का हो सकता है ।”



"क्या मतलब?" खेडा के होठों से असमझता से भरा स्वर निकला ।



"देखता रह, मतलब अभी समझ मे आ जायेगा !" हेगडे ने पैने स्वर में कहा !!



"यह क्या बहुत-से चेहरा ढांपे लोग लारी को घेर रहे हैं !" दिवाकर के होठों से निकला ।




कुछ पल उन्हें बाहर होने वाली गुड़मुड़ आवाजें सुनाई देती रहीँ । फिर लारी र्के पिछले दरवाजे पर लगा ताला खुलने की आवाज आई l फिर पिछला दरवाजा खुला ।




दरवाजा खोलने वाला सब-इन्सपेक्टर था, जिसका चेहरा पिला पड़ा हुआ था l दो रिवॉल्वर उसके जिस्म के साथ सटे हुए थे । ताला खोलने कै पश्चात् सब-इन्सपेक्टर लारी के भीतर आया ।




“कोई हरकत मत कर बैठना I" सब-इन्सपेक्टर लारी के भीतर बैठे पुलिस वालों से बोला… "हमें कम से कम बीस बदमाशों ने घेर रखा हे और सब-के-सब खतरनाक और हथियारो से लेस हैँ l” कहने कै साथ ही सब-इन्सपेक्टर ने जेब से चाबी निकाली और दिवाकर, हेगड़े और खेडा की कलाइयों पर बंधी हथकडियां खोलने लगा ।



तीनों के चेहरे पर जीवन की आशा से भरी चमक उभर आई । परन्तु वह उलझन में थे कि यह सब क्यो और किसके इशारे पर हो रहा हे? जो लोग उन्हें छुडाने आये हैं वह कौन हैं? भीतरी मामला क्या है?




हथकडियां खुलते ही तीनों उछलकर लारी से बाहर आ गये । बाहर खड़े बदमाशों ने लारी का दरवाजा बाहर से बन्द'कर दिया ।।


सब-इम्सपेक्टर भीतर ही बन्द होकर रह गया था ।।

लारी को बदमाशों ने बुरी तरह घेर रखा था। वह करीब बीस थे । हर किसी कै हाथ में रिवॉल्वर और चेहरे पर कपडा लिपटा हुआ था । उनकी आंखों मेँ छाये खतरनाक भाव बता रहे थे कि वह हर खतरे से गुजरने के लिए तेयार हैं ।



दिवाकर, खेडा और हेगड़े के बाहर आते ही स्वस्थ जिस्म का व्यक्ति उनके पास आया । काले कपडे से उसने चेहरा और सिर भी ढांप रखा था , रिवॉल्वर वाला उसका हाथ नीचे लटक रहा था । वह तीनों को एक तरफ ले गया ।



“तुममें से दिवाकर कौन है, सुरेश दिवाकर बदमाशों का नेता बोला ।



"मैं हू।" दिवाकर ने फौरन आगे आकर कहा ।



नेता ने एक निगाह अपने बिखरे आदमियों पर डाली फिर बोला ।



“मुझे तुम्हारे बाप ने पुलिस की केद से आजाद कराने के लिए भेजा हे । मेरा नाम तारासिह है l”



तीनों के चेहरे एकाएक प्रसन्नता से भर उठे ।




"य....य...यह सब मेरे पिता ने किया है?” दिवाकर की आवाज कांप उठी ।



."'हां ।” कहने कै साथ ही तारासिंह ने जेब से तह किया कागज निकालकर दिवाकर को थमा दिया-" इस कागज पर

बिशालगढ

के बंगले का पता लिखा है ।"

दिवाकर ने वह कागज फौरन जेब मेँ डाल लिया ।



"जाओ जल्दी से जल्दी इस शहर से निकल जाओ l घंटा-भर में इन पुलिस वालों की लारी सहित जंगल में ले जाकर रोके रहूगा ताकि तुम लोग बिना किसी रुकावट के शहर से निकल जाओ l"


कुछ ही पलों में वह तीनों मोड़ पर थे। मोड मुड़ते ही नई मारुति कार खडी थी । तीनों कार के समीप पहुंचे और फिर धडाधड दरवाजे खोलकर भीतर जा बेठे ।

ड्राइविंग सीट पर खेडा आ जमा था l उसने कार स्टार्ट की और गोली की रफ्तार से आगे चढा दी ।



“यार ।" दिवाकर बोला-"इस समय राजीव याद आ रहा हे। अगर वह साथ में होता तो कार क्रो हवा से उड़ाकर पन्द्रह मिनट में ही हमें शहर से बाहर निकाल देता ।"



“भूल जा उसे l” अरुण खेडा दांत भौंचकर कह उठा-"राजीव मर चुका हे । हम लोगों की मोजूदगी में ही वह तेरे घूंसों से मरा हे और हमें मिली उग्र कैद की सजा में उसकी हत्या का जुर्म भी शामिल था । तू मेरी ड्राइविंग देखता रह I"



ओर अरुण खेडा तूफानी रफ्तार कै साथ कार उडाता रहा ।



पीछे बेठे सुरेश दिवाकर और सूरज हेगडे के चेहरों पर राहत के भाव थे l अब उन्हें कानून और सजा का खौफ नहीं था ।


कुछ ही देर में उन्हें इस शहर से बाहर ओर चंद ही घंटों में विशालगढ़ होना था । हर तरह के खतरों से दूर ।


परन्तु वह क्या जानते थे कि विशालगढ़ उनके लिए मुसीबतों का गढ. बनने जा रहा था । जानलेवा खतरों का समुन्द्र बनने जा रहा था, जहां मोत उनके लिए बाहों को -फैलाए खडी थी l

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