रघुनाथ धे से मुस्करा उठा,,जबकि विजय अपना माथा पकडे----आंखों को बन्द किए बैठा रहा…उसने चेहरे पर ऐसे भाव एकत्रित कर लिए थे, जैसे किसी की मृत्यु पर मातम मना रहा हो-जब विजय ने काफी देर तक भी अंपनी मुद्रा न तोडी तो रघुनाथ कह उठा----------"क्या हुआ विजय---तुमने अपनी ये मातमी सूरत क्यों बना ली ?”
“तुम सूरत को छोडो प्यारे, अपनी राम कहानी सुनाओ ।"
रघुनाथ ने ठंडी सांस ली…उसकै ख्याल से विजय काफी जल्दी लाइन पर आ गया था-वह जानता था कि अगर विजय को पुन: मौका दिया गया तो वह बकवास करने लगेगा ओर उसी बोरियत से बचने के रघुनाथ ने जल्दी से
कहा-"तोताराम अपनी बीबी के साथ डिनर के लिए सम्राट में गया था-वहां उसने बीबी के साथ डांस... ।"
“वह सब कुछ हम अखबार में पढ चुके हैं प्यारे ।" विजय ने टोका------“तुम सिर्फ यह बताओ कि तुम्हारे वहाँ पहुंचने के बाद क्या हुआ------वहां मौजूद लोगों ने किस तरह के जबाब दिए और अब तुम्हें हत्यारे तक पहुंचने में क्या दिक्कते हैं?”
"सम्राट होटल के मेनेजर ने फोन द्वारा कोतवाली में वारदात की सूचना दी थी---उस वक्त मैं भी वहीं था, अत: सूचना मिलते ही मैं खुद भी रवाना हो गया-जब मैं वहां पहुचा तब हॉल का दरवाजा अन्दर से बन्द था…हमारे 'पुलिस' कहने पर अन्दर से दरवाजा मैनेजर ने खोला…पुलिस दल के साथ मैं अन्दर'पहुच गया, वहां गहरा सन्नाटा था…सभी सहमे हुए से चेहंरों पर आतंक लिए जहां के तहां खड़े थे-अमिता की लाश फ्लोर के समीप पडी थी, जबकि तोताराम की लाश उसकी सीट के समीप-------।"
"'जुदाई' कहा थी !"
" हां ---- मै जानता हू कि अखबार वालो ने बाजपेयी की इस किताब के बारे में विशेष रूप मे छापा है-मरने से पहले जब उसने किताब वाला हाथ ऊपर उठाया था----"बारूद नामक अखबार में वह फोटो` भी छपा है ।"
" हमने यह पूछा था प्यारे कि वह किताब कहां थी।"
"लाश के हाथ में !"
"ओह बाजपेयी का बडा तगड़ा पाठक था…मरता हुआ भी ......!"
"नहीं विजय-मेरे ख्याल से तो तोताराम के साथ वह किताब सिर्फ इसलिए नहीँ थी कि तोताराम बाजपेयी का पाठक था-पाठक चाहे जितना जबरदस्त हो, लेकिन जब मौत दो क्रदम दूर खडी हो तो किसी को उपन्यास पढने को इतना महत्व देने और अंतिम समय पर किताब को उठाकर कुछ कहने की कोशिश करने के पीछे ज़रूर कोई रहस्य है?"
"क्या रहस्य है?"
"क--कुछ भी हो सकता है ।" रघुनाथ एकदम गड़बड़ा गया, किन्तु फिर शीघ्र ही स्वयं को सम्भालकर बोला------"शायद तोताराम उस किताब के जरिए कुछ कहना चाहता हो !"
“खैर----वह किताब कहाँ है?”
रघुनाथ ने जेब मे से किताब निकालकर मेज पर डाल दी--विजय, थ्रोड़ा-सा झुककर किताब उठाई---आवरण पृष्ठ दोनों तरफ से बुरी तरह खून में सना हुआ था---भीतरी पृष्ठों के सिरों पर भी खून लगा हुआ था----विजय ने किताब खोली---भीतरी पृष्ठ साफ थे, यानी यदि कोई उपन्यास पढ़ना चाहे तो आराम से पढा जा सकता था----विजय बीच-बीच में से उसके पृष्ठ उलटकर देखने लगा, जबकि रघुनाथ कह रहा था…"मुझे लगता है कि इस किताब के जरिए तोताराम निश्चित रूप से कुछ कहना चाहता था, . इसीलिए मैंने बडी बारीकी से इसका एक-एक पृष्ठ उलटकर देखा, मगर कहीं भी तोताराम ने कुछ नहीं लिखा है, पता नहीं वह इस किताब को इतना महत्व देकर किस रूप में क्या कहना चाहता था...?"
"तुमने किताब पूरी पडी है प्यारे?"
" नही ।"
"मुमकिन है कि पूरी किताब पढ़ने के बाद ही कोई तथ्य निकलता हो ?"
उलझन में फंसे रघुनाथ ने कहा----"कत्ल का उपन्यास के कथानक से भला क्या सम्बन्ध्र हो सकता है?"
"कुछ भी हो सूकता है प्यारे, लेकिन ,फिलहाल तुम इस चक्कर मैं उलझकर अपने दिमाग का फ्लूदा मत निकालो…इसे हम देख लेगे--तुम हमारे सवालों का जवाब दो ।"
" पुछो !"
" हत्याएं किस सिचुएशन में हुई?"
"वह तो तुम अखबार में पढ़ ही चुके होगे ।"
"हम तुम्हारे मुखारविन्द से सुनना चाहते हैं रघु डर्लिग ।"
"हाल मे मौजूद सभी लोगों का एक जैसा बयान था-उनके बयान के मुताबिक तोताराम और अमिता फ्लोर पर डास कर रहे थे---------- विधायक को फ्लोर पर देखकर हाल में मौजूद समी लोग दिलचस्प निगाहो से उसे देख रहे थे-वही 'बारूद' का संवाददाता भी था, जिसने इस दृश्य को अपने अखबार के लिए चटपटा मसाला समझना---उसने तुरन्त अमिता के साथ डांस कर रहे तोताराम का फोटो ले लिया -तोताराम शायद नहीं चाहता था कि उसका ऐसा फोटो किसी अखबार में छपे, अत: अमिता को छोड़कर वह तेजी से 'बारूद' के संवाददाता की तरफ वढा-अभी उसने फ्लोर से नीचे पहला कदम रखा ही था कि सारे हाल में घुप्प अंधेरा छा गया ।"
"लाइट गई थी या किसी ने मेन स्विच आँफ किया था?"
"मेन स्विच! "
“किसने?"
"पता नहीं लग सका…स्विच से फिगर प्रिन्दूस भी लिए गए, किंतु कोई निशान नहीं मिले-लगता है कि ऑफ करने वाले के दस्त्ताने पहन रखे थे ।"
" फिर क्या हुआ"
“अंधेरा होते ही हाल में खलबली-सी मच गई-लोग एक दुसरे को देख भी नहीं सकते थे, इसी तरह एक मिनट गुजर गया, तब अंधेरे मे पहला फायर हुआ ।"
“एक मिनट गुजरने के बाद?"
"हा…।" रघुनाथ ने बताया----'' सबका यही कहना है कि फायर हाॅल मे अंधेरा होने के करीब एक मिनट बाद हुआ…गोली अमिता को लगी ।"
“जबकि अंधेरा इतनां गहरा था कि लोग एक दूसरे को नही देख सकते थे !!"
" हाँ ।"
“मामला यहीं आम वारदातों से हटकर हो जाता है प्यारे ।" विजय ने कहा-----ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर जब गोली से कत्ल होते हैं तो किसी छुपे हुए स्थान से हत्यारा अपने शिकार पर गोली चलाता है, गोली चलाने के बाद ही घटनास्थल पर अंधेरा कर दिया जाता है, यह अंधेरा कत्ल करने के लिए नहीं, वल्कि हत्यारा अपने भाग निकलने के लिए करता हे-ऐसे सार्वजनिक स्थान पर जहाँ हत्यारे के शिकार के अतिरिक्त अन्य बहुत से लोग भी हो ,,, हत्यारा कभी हत्या करने से पूर्व अंधेरा नहीं करेगा, क्योंकि अंधेरे में वह हत्या कर ही नही सकता-------अंधेरा होने के बाद जहां कोई किसी को नहीं देख सकता था-वहां गोली एक मिनट बाद चली है----एक मिनट में अंधेरे के कारण बौखलायां हुआ व्यक्ति कहीं-का-कही पहुच सकता है-तब, सबसे पहले यह सबाल उठता है कि हत्यारे ने अपने शिकार का निशाना कैसे लिया और शिकार भी एक नहीं-----दो थे-अथेरे में ही शिकारों को निशाने पर लेना असम्भव है ।"
"इसी प्वाइंट ने तो मूझे चकराकर रख दिया है।"
"मेन स्विच पर किसी की उंगलियों के निशान नहीं थे?”
"न ।"
"मतलब ये कि ऑफ करने के बाद उसे आँन भी हत्यारे ने ही किया था?"
"मैं समझा नहीं…
"हत्यारे ने जरूर दस्ताने पहन रखे थे, क्योंकि उसकी इनटेंशन ही हत्या की थी, लेकिन कोई साधारण आदमी भला दस्ताने क्यों पहनेगा-स्विच आँफ हुआ----हत्याओं के बाद स्वयं ही आंन भी हो गया------निशान न मिलने का अर्थ हे कि उसे ऑन भी हत्यारे ने किया !"
"इससे क्या नतीजा निकला?"
"हत्यारे को भागने के लिए अंधेरे की ज़रूरत नहीं थी ।"
"फिर उसने अंधेरा क्यों किया?"
"हत्याएं करने के लिए?"
"अमी तो तुम कह रहे थे कि अंधेरे में अपने शिकारों को निशाना बनाना एकदम असम्भव होता है !"
"इस हत्यारे के लिए शायद अंधेरे में ही निशाना लेना ज्यादा आसान था !!!!!!"
“पता नहीं तुम क्या वक रहे हो?"
"बक नहीं रहे प्यारे-यहीं कह रहे हैं, जो वारदात से नजर आता है;-----हत्यारे द्वारा अंधेरा करने और हत्याओं के बाद पुन: मेन स्विच ऑन कर देने से जाहिर है कि हत्यारा जानता था कि प्रकाश के मुकाबले अंधेरे में ज्यादा ठीक निशाना लगा सकता है ।"
"ऐसा भला कैसे'हो सकता है?”
“यही तो पता लगाना है मेरी जान ।" कहने के साथ ही उसने आंखें बन्द कर ली-दोनों पैर सोफों के बीच रखी सेण्टर टेबल पर पसार दिए-----रघुनाथ हक्का-बक्का-सा उसे देख रहा था-होंठों-ही-होंठों में विजय जाने क्या-क्या बुदबुदाने लगा-----अचानक ही वह बुरी तरह उछलकर चीख पड़ा-“वो मारा साले पापड़ बाले को ।”
" क------क्या क्या हुआ"' रघुनाथ चौंका ।
“तोताराम अमिता की लाशे कहां हैं प्यारे?"
“अभी तक पुलिस के चार्ज में हैं।”
"जियो प्यारे-----मुझे उन दोनों के कपड़े चाहिए ?"
" कपड़े? "
"हां---वे कपड़े, जिन्हें पहनकर वे डिनर के लिए सम्राट में गये थे !"
" म----मगर उन'कपडों का तुम क्या करोगे?"
"उन्हे पहनकर नाचूंगा मेरी जान ।" कहने के साथ ही उसने सोफे से सीधी जम्प बाथरूम के दरवाजे पर लगाई, बोला…तुम उनके कपड़े यहाँ मंगाओ-तव तक हम नहा धोकऱ उन्हें पहनने के लिए तैयार होते है !"
हालांकि रघुनाथ समझ न सका था कि विजय ने तोताराम और अमिता के कपडे क्यों मांगे हैं, परन्तु इतना वह जानता था कि हत्या से उन कपडों का निश्चित रूप से कोई सम्बन्थ ज़रूर रहा होगा ; अत: उसने फोन करके एक इंस्पेक्टर के द्वारा वे कपडे मंगा लिए-और-पन्द्रह मिनट बाद ही इंस्पेक्टर कपडे लिए वहां पहुच गया------रघुनाथ ने कपडे मेज पर रखवा लिए और इंस्पेक्टर को विदा कर दिया-----रघुनाथ को विजय के बाथरूम से निकलने की प्रतीक्षा थी विजय बीस मिनट वाद बाहर निकला ।
बाथरूम से वह पूरी तरह तैयार होकर निकला था!
उसके जिस्म पर इस वक्त 'काली' कमीज और वैसी ही वैलब्रॉटम थी…बाल कढ़े हुए थे-बाहर निकलते ही उस ने रघुनाथ को आंख मारी-रघुनाथ ने कहा…“कपडे आ गए है विजय ।
उसकी तरफ़ बढते हुए विजय ने कहा-------------" तुम यहां से फूटो प्यारे ।"
"क-क्या मतलब…?" रघुनाथ उछले पड़ा ।
"फूटने का मतलब है चलते-फिरते नजर आओ!" विजय ने कहा।
"म-'मगर !"
"अगर-मगर कुछ नहीं मेरी जान--नहाने के बाद बडी जोर से भूख लगी है …अच्छे बच्चों की तरह यहां से उठकर नाक की सीध में सीधे घर जाओ----रैना बहन से कहो कि उनका प्यारा भइया आने बला है-----आलू-के फर्स्ट क्लास परांठे और घीए का रायता बनाए ।"
" ल-लेकिन हत्यारा ।"
"हम एक घंटे में वहीं आ रहे हैं-"तुम्हें हत्यारे का नाम भी बताएंगे ।'
“क-क्या मतलब?" रघुनाथ उछल पड़ा-“एक घंटे में हत्यारे का नाम ?"
"तुम फूटो प्यारे, ये कपड़े और 'जुदाई' यही छोड़ जाओ ।"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
यह सुनकर रघुनाथ की आंखें हैरत से फटी-की-फटी रह गई कि एक घण्टे मे विजय हत्यारे का नाम बता देने का दावा कर रहा है----इस वक्त यहां से उठकर जाने की उसकी बिल्कुल इच्छा नहीं थी-----मगर वह जानता था कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो विजय बिदक जाएगा और फिर-उसे लाइन पर लाना लगभग असम्भव हो, जाएगा, अत: वह उठकर चला गया-- जाते-जाते उसने कई बार कहा कि वह पराठों पर उसका इन्तजार करेगा, अत: वह आए जंरूऱ । "
रघुनाथ के जाने के बाद विजय ने अपने नौकर को आवाज दी-“अबे जो पूरे शेर ।"
" स-सरकार ।" कंधे पर अंगोछा डाले पूर्ण सिंह हाजिर हुआ ।
" बाहर वाले बुकस्टाल से प्रेम बाजपेयी का लेटेस्ट उपन्यास ' जुदाई ' खरीद ला !"
रधुनाथ--रेना---विकास और घनुषटंकार ड्राइंग रूम में बैठे विजय की प्रतीक्षा कर रहे हैं--------रघुनाथ ने यहाँ आकर सभी को बता दिया कि विजय आने वाला है-----यह भी कि क्यों?
यह है सुनकर रैना-विकास और घनुषटंकार को आश्चर्य हुआ कि विजय इतनी जल्दी तोताराम और उसकी बीबी के हत्यारे का राज खोलने बाला है-रेना रायता बना चुकी है------ आलू की पिट्ठी और मंडा हुआ आटा किचन में तैयार रखा है ।
इन्तजार है सिर्फ विजय का ।
विकास ने रिस्टवॉच, देखते हुए कहा…"आपने कहा था डैडी अंकल एक घंटे में आ जाएंगे, लेकिन अब डेढ़ धण्ट हो चुका है ।"
“लगता है कि विजय मइया अब नहीं आएंगे !" रैना बोली ।
"क-क्यो नहीं, आएगा ।" रघुनाथ कह उटा-------वह जरूर आएगा ।"
"आपको तो विजय भइया बस यूं ही झांसा दे देते हैं ।"
" नहीं--आज उसने मुझे झांसा नहीं दिया है ।"
चंचल मुस्कराहट के साथ विकास ने पूछा…“यह आप कैसे कह सकते हैं ।"
"म-मुझे यकीन है ।"
सोफे की पुश्त पर बैठे सूटेड-वूटेड 'धनृषटंकार ने अपने छोटे से कोट की जेब से पव्वा निकाला और होंठो से लगा लिया-दो-तीन घूटं हलक से उतारने के बाद उसने पव्वे-का ढक्कन बन्द बडी स्टाइल से जेब में रखा ही था कि लान में एक कार रुक्री ।
"विजय आ गया है ।" कहने के साथ ही हर्षित-सा रघुनाथ उछल कर न सिर्फ खडा हो गया, बल्कि तेजी से कमरे के बाहर की तरफ लपका-----बिकास और रैना भी सोफे से उठ खडे हुए ।।।
घनुषटंकार सिगार सुलगाने में व्यस्त हो गया!!!
फिर----विजय-कमरे मे दाखिल हुआ !
लम्बा लड़का आगे बढ़कर श्रद्धा के साथ उसके चरणों में झुक गया-----बिजय के हाथ में और अमिता के कपड़े तथा 'जुदाई' की दो प्रतियां थी-एक खून से सनी हुई दूसरी साफ़--विकास के बाद धनुषटंकार ने विजय के चरण स्पर्श किए ।
"नमस्ते बहन ।" विजय ने कहा ।
“नमस्ते ,भइया बहुत देर लगा दी-----हम सब कितनी देर से आपका इन्तजार कर रहे हैं।"
.“सुबह-सुबह इस सुपर-इडियट के काम मे… फंस गया था ।"
उत्सुक्तापूर्वक-रधुनाथ ने पुछा-."कुछ पता लगा विजय ।"
"सब कुछ पता लग गया प्यारे ।"
"क-क्या पता लगा है-वह हत्याएं किसने की?"
"आलू के परांठे कहां हैँ?"
"ओह ।" रघुनाथ जल्दी से बोला-"तुम जाओ रैना-जल्दी से परांठे वना लाओ -मैं जानता हूँ कि जब तक इसके सामने परांठे नहीं आएंगे, तब तक यह एक शब्द भी कहीं बकेगा ।"
. मुस्कराती हुई रैना-किचन की तरफ़ चली गई ।
हाथ का सामान सोफा सेट के बीच पडी मेज पर रखता हुआ विजय सोफे में धंस गया-विकास और रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गए--धनुषटंकार पुश्त पर बेठा आराम से सिगार पी रहा था…न सिर्फ रघुनाथ ने बल्कि विकास ने उत्सुकता कारण कई वार कैस से सम्बन्धित वार्ता छेड़ने की कोशिश की लेकिन वह विजय ही क्या जो समय से पहले कुछ बता दे, अत सबसे पहले उसने पेट भर कर परांठे खाए…रघुनाथ, बिकास और मोन्टो ने भी उसका साथ दिया ।
रैना फुर्ती से उन्हें खाना खिलाती रही।
अब रैना भी उऩके बीच आ बैठी थी !!
एक लम्बी डकार के साथ सोफे पर पसरते हुए विजय ने कहा--------"अपने कपडे उतारकर तोताराम के क्रपड़े पहन तो प्यारे ।"
सभी हरुके से चौके, रैना ने कहा…"क्या कह रहे हो भइया…एक मृत आदमी 'के कपडे… ।"
"तुम कब से इन बेकार की बातों मे पड़ने लगीं बहन------" कपड़े पहनो दिलजले ।"
विकास ने कपडे पहन लिए।
तोताराम का पेट बाले स्थान से बुरी-तरह से खून में सना हुआ था----कुर्ते मेँ वहीं एक गोली का निशान भी स्पष्ट नजर आ रहा था-विजय एक झटके के साथ सोफे से उठा और तोताराम के कपडे पहने विकास के नज़दीक पहुंच कर उसके सीने पर उंगली रखकर बोला--" ये क्या है रंघु डार्लिग-----?"
“लिपस्टिक लगे होंठो से यहां किसीने चुम्बन लियाहै ।"
“किसने?"
"अमिता ने ।"
"यह तुम कैसे कह सकते हो कि यह चुम्बन अमिता ने ही लिया था?"
"रघुनाथ ने बताया----"मै इस निशान को पहले ही देख चुका था-----अमिता के होंठो पर लिपस्टिक का भी यहीं कलर है---तोताराम के साथ डास भी कर रही थी-डांस के दौरान उसी, ने यह चुम्बन लिया होगा-पति के सीने पर चुम्बन लेना कोई जुर्म नही है ।"
"मगर ये साधारण चुम्बन नहीं था।"
"क्या मतलब?"
"इस चुम्बन के कारण ही तोताराम का कल्लं हो सका है ।" विकास भी बुरी तरह चौक पडा----" आप कहना क्या चाहते है गुरू?"
“कमरे की सभी खिड़कियां और दरवाजे बन्द कर दो गान्डीव प्यारे-पर्दें भी अच्छी तरह खींच दो-----सूर्य की एक भी प्रकाश किरण कमरे में दाखिल नहीं होनी चाहिए ।"
किसी की समझ में कुछ ऩही आया---------------घुनषटंकार आद्वेश का पालन करने में व्यस्त हो गया था------प्रकाश किरणे कमरे से सरक-सरक कर बाहर निकलने लर्गी-विजय ने कहा-----"अपने स्थान पर खड़े रहना प्यारे दिलजले ओद तुम दिलजले से दूर हट जाओ तुलाराशी ।"
“ये आप क्या कह रहे है भइया ।"
"तुम भी विकास से दूर हट जाओं रैना बहन ।" विजय ने कहा ।
किसी की समझ में नहीं आयाकि विजय आखिर करना क्या चाह रहा है, फिर भी-----------सभी ने चुपचाप उसके आदेशो का पालन किया----कमरे में घोऱ अंधेरा छा गया-घुप्प अंधेरा हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था-उनमें से कोई भी किसी को नहीं देख पा रहा था…उसी अंधेरे में विजय की आवाज गूंजी-“कत्ल होने से पहले सम्राट होटल के हाल में ऐसा ही या इससे भी कहीं ज्यादा गहरा अंधेरा व्याप्त हो गया था--रैना बहन…तुलाराशी और तुम भी ध्यान से देखो गांडीव प्यारे…क्या कमरे के इस अंधेरे में कुछ चमक रहा है?"
"अरे हां-सचमुच ।" रैना की अबाज----हबा मैं तैरते हुए होठो के निशान साफ चमक रहे है भइया--जैसे चमकीले होठों का धब्बा चल-फिर रहा हो ।"
"तुम कमरे में चहल-कदमी कर रहे हो न विकास ।"
"हां गुरु ।"
"क्या समझे रघु डार्लिंग?"
"अन्धेरे में चमकने वाला ये होंठों का वही धब्बा है, जो रोशनी में तोताराम के कुर्ते पर सिर्फ लिपस्टिक के एक धब्बे के रूप में नजर आता है ।"
"यानी अगर तुम चाहो तो अन्धेरे में आसानी से विकास को निशाना बना सकते हो?"
"मैं समझ गया विजय ।"
"म--मगर----?" रैना ने पूछा-“लिपस्टिक का वह दाग इतना चमक क्यों रहा है भइया?"
उसके सवाल का जवाब देने के स्थान पर विजय ने कहा खिड़कियां खोल दो मोन्टो ।"
कमरा पुन: प्रकाश से भरने लगा…किसी शोले की तरह चमकता होठो का धब्बा लुप्त हो गया-अब वे सभी एक…दूसरे को भली प्रकार. देख थे…मोन्टो सोफे की पुश्त पर आ बैठा…रधुनाथ ओंर रैना विजय के सामने वाले सोफे पर और विकस विजय के आदेश पर तोताराम के कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन रहा था, विजय ने कहा…“हमारा ख्याल है प्यारे तुलाराशी कि अब तुम समझ गए होंगे कि गहरे अंधेरे में हत्यारे ने अपने सही लक्ष्य पर गोली कैसे चलाई ?"
" ल-लेकिन---।"
“अमिता के होंठों पर सिर्फ लिपस्टिक ही नहीं लगी थी ,,, बल्कि 'फॉसफोरस‘ भी लगा था या यूं कहना ज्यादा बेहतर होगा कि लिपस्टिक और "फाँसफोरस' कां मिश्रण अमिता के होंठो पर लगा था-"फाॅसफोरस' एक ऐसा रासायर्निंक पदार्थ है, जिसका धब्बा रोशनी में बिल्कुल नजर नहीं आता है, किन्तु , अंधेरे में आग के समान चमकता है-यह चुम्बन अमिता जान-बूझकर तोताराम के कुर्ते पर लगाया था, ताकि हत्यारा आराम से अंधेरे में अपने शिकार को देखकर उसे लक्ष्य कर सके ।"
"य-ये तुम क्या कह रहे हो विजय?" रघुनाथ उछल पड़ा…""क्या तुम्हारे कहने का अर्थ यह नहीं निकलता कि अमिता हत्यारे से मिली हुई थी?"
"बिल्कुल यहीं मतलब निकलता है प्यारे?"
" म-मगर-वह तो खुद हत्यारे की गोली का शिकार हुई ।”
"क्योंकि सिर्फ अमिता ही जानती थी कि हत्यारा कौन है?"
"क्या मतलब?"
"मतलब प्रेम वाजपेयी का यह उपन्यास बताएगा ।" विजय ने मेज से सनी 'जुदाई' उठाकर हाथ में ली और बोला----"जुदाई की थे दूसरी प्रति तुम उठा तो दिलजले ।"
बिकास ऩे जुदाई की प्रति उठा ली ।
"य-ये तुम क्या कह रहे हो विजय?" रघुनाथ उछल पड़ा…""क्या तुम्हारे कहने का अर्थ यह नहीं निकलता कि अमिता हत्यारे से मिली हुई थी?"
"बिल्कुल यहीं मतलब निकलता है प्यारे?"
" म-मगर-वह तो खुद हत्यारे की गोली का शिकार हुई ।”
"क्योंकि सिर्फ अमिता ही जानती थी कि हत्यारा कौन है?"
"क्या मतलब?"
"मतलब प्रेम वाजपेयी का यह उपन्यास बताएगा ।" विजय ने मेज से सनी 'जुदाई' उठाकर हाथ में ली और बोला----"जुदाई की थे दूसरी प्रति तुम उठा तो दिलजले ।"
रघुनाथ के जाने के बाद विजय ने अपने नौकर को आवाज दी-“अबे जो पूरे शेर ।"
" स-सरकार ।" कंधे पर अंगोछा डाले पूर्ण सिंह हाजिर हुआ ।
" बाहर वाले बुकस्टाल से प्रेम बाजपेयी का लेटेस्ट उपन्यास ' जुदाई ' खरीद ला !"
रधुनाथ--रेना---विकास और घनुषटंकार ड्राइंग रूम में बैठे विजय की प्रतीक्षा कर रहे हैं--------रघुनाथ ने यहाँ आकर सभी को बता दिया कि विजय आने वाला है-----यह भी कि क्यों?
यह है सुनकर रैना-विकास और घनुषटंकार को आश्चर्य हुआ कि विजय इतनी जल्दी तोताराम और उसकी बीबी के हत्यारे का राज खोलने बाला है-रेना रायता बना चुकी है------ आलू की पिट्ठी और मंडा हुआ आटा किचन में तैयार रखा है ।
इन्तजार है सिर्फ विजय का ।
विकास ने रिस्टवॉच, देखते हुए कहा…"आपने कहा था डैडी अंकल एक घंटे में आ जाएंगे, लेकिन अब डेढ़ धण्ट हो चुका है ।"
“लगता है कि विजय मइया अब नहीं आएंगे !" रैना बोली ।
"क-क्यो नहीं, आएगा ।" रघुनाथ कह उटा-------वह जरूर आएगा ।"
"आपको तो विजय भइया बस यूं ही झांसा दे देते हैं ।"
" नहीं--आज उसने मुझे झांसा नहीं दिया है ।"
चंचल मुस्कराहट के साथ विकास ने पूछा…“यह आप कैसे कह सकते हैं ।"
"म-मुझे यकीन है ।"
सोफे की पुश्त पर बैठे सूटेड-वूटेड 'धनृषटंकार ने अपने छोटे से कोट की जेब से पव्वा निकाला और होंठो से लगा लिया-दो-तीन घूटं हलक से उतारने के बाद उसने पव्वे-का ढक्कन बन्द बडी स्टाइल से जेब में रखा ही था कि लान में एक कार रुक्री ।
"विजय आ गया है ।" कहने के साथ ही हर्षित-सा रघुनाथ उछल कर न सिर्फ खडा हो गया, बल्कि तेजी से कमरे के बाहर की तरफ लपका-----बिकास और रैना भी सोफे से उठ खडे हुए ।।।
घनुषटंकार सिगार सुलगाने में व्यस्त हो गया!!!
फिर----विजय-कमरे मे दाखिल हुआ !
लम्बा लड़का आगे बढ़कर श्रद्धा के साथ उसके चरणों में झुक गया-----बिजय के हाथ में और अमिता के कपड़े तथा 'जुदाई' की दो प्रतियां थी-एक खून से सनी हुई दूसरी साफ़--विकास के बाद धनुषटंकार ने विजय के चरण स्पर्श किए ।
"नमस्ते बहन ।" विजय ने कहा ।
“नमस्ते ,भइया बहुत देर लगा दी-----हम सब कितनी देर से आपका इन्तजार कर रहे हैं।"
.“सुबह-सुबह इस सुपर-इडियट के काम मे… फंस गया था ।"
उत्सुक्तापूर्वक-रधुनाथ ने पुछा-."कुछ पता लगा विजय ।"
"सब कुछ पता लग गया प्यारे ।"
"क-क्या पता लगा है-वह हत्याएं किसने की?"
"आलू के परांठे कहां हैँ?"
"ओह ।" रघुनाथ जल्दी से बोला-"तुम जाओ रैना-जल्दी से परांठे वना लाओ -मैं जानता हूँ कि जब तक इसके सामने परांठे नहीं आएंगे, तब तक यह एक शब्द भी कहीं बकेगा ।"
. मुस्कराती हुई रैना-किचन की तरफ़ चली गई ।
हाथ का सामान सोफा सेट के बीच पडी मेज पर रखता हुआ विजय सोफे में धंस गया-विकास और रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गए--धनुषटंकार पुश्त पर बेठा आराम से सिगार पी रहा था…न सिर्फ रघुनाथ ने बल्कि विकास ने उत्सुकता कारण कई वार कैस से सम्बन्धित वार्ता छेड़ने की कोशिश की लेकिन वह विजय ही क्या जो समय से पहले कुछ बता दे, अत सबसे पहले उसने पेट भर कर परांठे खाए…रघुनाथ, बिकास और मोन्टो ने भी उसका साथ दिया ।
रैना फुर्ती से उन्हें खाना खिलाती रही।
अब रैना भी उऩके बीच आ बैठी थी !!
एक लम्बी डकार के साथ सोफे पर पसरते हुए विजय ने कहा--------"अपने कपडे उतारकर तोताराम के क्रपड़े पहन तो प्यारे ।"
सभी हरुके से चौके, रैना ने कहा…"क्या कह रहे हो भइया…एक मृत आदमी 'के कपडे… ।"
"तुम कब से इन बेकार की बातों मे पड़ने लगीं बहन------" कपड़े पहनो दिलजले ।"
विकास ने कपडे पहन लिए।
तोताराम का पेट बाले स्थान से बुरी-तरह से खून में सना हुआ था----कुर्ते मेँ वहीं एक गोली का निशान भी स्पष्ट नजर आ रहा था-विजय एक झटके के साथ सोफे से उठा और तोताराम के कपडे पहने विकास के नज़दीक पहुंच कर उसके सीने पर उंगली रखकर बोला--" ये क्या है रंघु डार्लिग-----?"
“लिपस्टिक लगे होंठो से यहां किसीने चुम्बन लियाहै ।"
“किसने?"
"अमिता ने ।"
"यह तुम कैसे कह सकते हो कि यह चुम्बन अमिता ने ही लिया था?"
"रघुनाथ ने बताया----"मै इस निशान को पहले ही देख चुका था-----अमिता के होंठो पर लिपस्टिक का भी यहीं कलर है---तोताराम के साथ डास भी कर रही थी-डांस के दौरान उसी, ने यह चुम्बन लिया होगा-पति के सीने पर चुम्बन लेना कोई जुर्म नही है ।"
"मगर ये साधारण चुम्बन नहीं था।"
"क्या मतलब?"
"इस चुम्बन के कारण ही तोताराम का कल्लं हो सका है ।" विकास भी बुरी तरह चौक पडा----" आप कहना क्या चाहते है गुरू?"
“कमरे की सभी खिड़कियां और दरवाजे बन्द कर दो गान्डीव प्यारे-पर्दें भी अच्छी तरह खींच दो-----सूर्य की एक भी प्रकाश किरण कमरे में दाखिल नहीं होनी चाहिए ।"
किसी की समझ में कुछ ऩही आया---------------घुनषटंकार आद्वेश का पालन करने में व्यस्त हो गया था------प्रकाश किरणे कमरे से सरक-सरक कर बाहर निकलने लर्गी-विजय ने कहा-----"अपने स्थान पर खड़े रहना प्यारे दिलजले ओद तुम दिलजले से दूर हट जाओ तुलाराशी ।"
“ये आप क्या कह रहे है भइया ।"
"तुम भी विकास से दूर हट जाओं रैना बहन ।" विजय ने कहा ।
किसी की समझ में नहीं आयाकि विजय आखिर करना क्या चाह रहा है, फिर भी-----------सभी ने चुपचाप उसके आदेशो का पालन किया----कमरे में घोऱ अंधेरा छा गया-घुप्प अंधेरा हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था-उनमें से कोई भी किसी को नहीं देख पा रहा था…उसी अंधेरे में विजय की आवाज गूंजी-“कत्ल होने से पहले सम्राट होटल के हाल में ऐसा ही या इससे भी कहीं ज्यादा गहरा अंधेरा व्याप्त हो गया था--रैना बहन…तुलाराशी और तुम भी ध्यान से देखो गांडीव प्यारे…क्या कमरे के इस अंधेरे में कुछ चमक रहा है?"
"अरे हां-सचमुच ।" रैना की अबाज----हबा मैं तैरते हुए होठो के निशान साफ चमक रहे है भइया--जैसे चमकीले होठों का धब्बा चल-फिर रहा हो ।"
"तुम कमरे में चहल-कदमी कर रहे हो न विकास ।"
"हां गुरु ।"
"क्या समझे रघु डार्लिंग?"
"अन्धेरे में चमकने वाला ये होंठों का वही धब्बा है, जो रोशनी में तोताराम के कुर्ते पर सिर्फ लिपस्टिक के एक धब्बे के रूप में नजर आता है ।"
"यानी अगर तुम चाहो तो अन्धेरे में आसानी से विकास को निशाना बना सकते हो?"
"मैं समझ गया विजय ।"
"म--मगर----?" रैना ने पूछा-“लिपस्टिक का वह दाग इतना चमक क्यों रहा है भइया?"
उसके सवाल का जवाब देने के स्थान पर विजय ने कहा खिड़कियां खोल दो मोन्टो ।"
कमरा पुन: प्रकाश से भरने लगा…किसी शोले की तरह चमकता होठो का धब्बा लुप्त हो गया-अब वे सभी एक…दूसरे को भली प्रकार. देख थे…मोन्टो सोफे की पुश्त पर आ बैठा…रधुनाथ ओंर रैना विजय के सामने वाले सोफे पर और विकस विजय के आदेश पर तोताराम के कपड़े उतार कर अपने कपड़े पहन रहा था, विजय ने कहा…“हमारा ख्याल है प्यारे तुलाराशी कि अब तुम समझ गए होंगे कि गहरे अंधेरे में हत्यारे ने अपने सही लक्ष्य पर गोली कैसे चलाई ?"
" ल-लेकिन---।"
“अमिता के होंठों पर सिर्फ लिपस्टिक ही नहीं लगी थी ,,, बल्कि 'फॉसफोरस‘ भी लगा था या यूं कहना ज्यादा बेहतर होगा कि लिपस्टिक और "फाँसफोरस' कां मिश्रण अमिता के होंठो पर लगा था-"फाॅसफोरस' एक ऐसा रासायर्निंक पदार्थ है, जिसका धब्बा रोशनी में बिल्कुल नजर नहीं आता है, किन्तु , अंधेरे में आग के समान चमकता है-यह चुम्बन अमिता जान-बूझकर तोताराम के कुर्ते पर लगाया था, ताकि हत्यारा आराम से अंधेरे में अपने शिकार को देखकर उसे लक्ष्य कर सके ।"
"य-ये तुम क्या कह रहे हो विजय?" रघुनाथ उछल पड़ा…""क्या तुम्हारे कहने का अर्थ यह नहीं निकलता कि अमिता हत्यारे से मिली हुई थी?"
"बिल्कुल यहीं मतलब निकलता है प्यारे?"
" म-मगर-वह तो खुद हत्यारे की गोली का शिकार हुई ।”
"क्योंकि सिर्फ अमिता ही जानती थी कि हत्यारा कौन है?"
"क्या मतलब?"
"मतलब प्रेम वाजपेयी का यह उपन्यास बताएगा ।" विजय ने मेज से सनी 'जुदाई' उठाकर हाथ में ली और बोला----"जुदाई की थे दूसरी प्रति तुम उठा तो दिलजले ।"
बिकास ऩे जुदाई की प्रति उठा ली ।
"य-ये तुम क्या कह रहे हो विजय?" रघुनाथ उछल पड़ा…""क्या तुम्हारे कहने का अर्थ यह नहीं निकलता कि अमिता हत्यारे से मिली हुई थी?"
"बिल्कुल यहीं मतलब निकलता है प्यारे?"
" म-मगर-वह तो खुद हत्यारे की गोली का शिकार हुई ।”
"क्योंकि सिर्फ अमिता ही जानती थी कि हत्यारा कौन है?"
"क्या मतलब?"
"मतलब प्रेम वाजपेयी का यह उपन्यास बताएगा ।" विजय ने मेज से सनी 'जुदाई' उठाकर हाथ में ली और बोला----"जुदाई की थे दूसरी प्रति तुम उठा तो दिलजले ।"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
विकास ऩे जुदाई की प्रति उठा ली ।
"सातंवा पृष्ठ खोलो ।"
विकास ने पृष्ठ खोलने के साथ ही कहा-"खोल दिया ।"
"सात नम्बर पृष्ठ की सोलहवीं पंक्ति पर उंगली रखो ।"
पंक्तियां गिनकर उसके आदेश का पालन करने के बाद बोला---"रख ली ।"
"अब गिनकर इस पंक्ति के ग्यारहवें शब्द पर पहुच जाओं ।"
“पहुच गया ।"
"इस शब्द का दूसरा अक्षर क्या है?"
विकास ने देखकर बताया---''दी--।"
" तुम अपनी डायरी में 'दी' लिख तो गान्डीव प्यारे ।" विजय का आदेश होते हो धनुषटंकार ने जेब से डायरी निकाली और पेंसिल से उसपर दी लिखा ।
विजय ने पुन: कहा--" अब जरा आठवां पेज खोलो दिलजले --और फिर तेरहवीं पंक्ति के आठवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो ।"
बिकास ने देखकर आधे मिनट बाद बताया--------"वा…।"
"वा लिखो गान्डीव प्यारे ।" विजय ने कहा…" तुम मुस्तेदी के साथ डायरी में वे अक्षर लिखते रहो जो अपना दिलजला बोलता जाए! "
स्वीकृति में गर्दन हिलाते हुए मोन्टो ने डायरी में लिखे 'दी' के आगे 'वा' लिख लिया ।
"अब जरा नौवे पेज की दूसरी पंक्ति कै नौवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो ।"
विकास ने आधे मिनट बाद कहा---" न! "
“गुड़ !" विजय ने कहा…“अब इन तीन अक्षरों को मिलाकर शब्द बना 'दीवान' ।"
"म--------मगर----" रैना बोली--"आप किसी विशेष पृष्ठ की विशेष पंक्ति के विशेष अक्षर ही क्यों बोल रहे है ?"
“क्योंकि" जुदाई की जो प्रति मेरे हाथ में है, इसमें तोताराम ने इन्ही विशेष अक्षरों को ब्रॉलपैन्' से पूरी तरह मिटा रखा है; यानी इस प्रति में ये अक्षर पढे नहीं जा रहे है ।"
"मैं समझी नहीं भइया ।"
"ये देखो--।" विजय ने दसवां. पृष्ठ खोलकर रैना के सामने रखा, बोला--“क्या इस पृष्ठ मेँ तुम्हें कहीं कोई ऐसा अक्षर नजर आ रहा है, जिसके ऊपर बॉलपैन से इस पर बुरी तरह छोटा-सा धब्बा बनाया गया हो कि अक्षर न चमक रहा हो ?"
"हां ।”
"वह अक्षर कौन-सी पंक्ति के कौन से शब्द का कौंन-सा अक्षर है?”
"रैना ने आधे मिनट बाद बताया… "अठ्ठारहवीं पंक्ति के नौबे शब्द का पहला अक्षर ।"
" गुड----अब जरा उस प्रति में देखकर तुम बताना दिलजले कि दसवे पृष्ठ की अठ्ठारहवीं पंक्ति के नोंवे शब्द का पहला अक्षर क्या है?”
"मे…।" विकास ने बताया।
बिजय ने धनुषटंकार से कहा----"तुम लिख लो गान्डीव प्यारे ।"
धनुषटकार ने गर्दन झुकाकर अक्षर लिख लिया ।
"इस तरह विभिन्न पृष्ठों पर बाॅलपैन से भिन्न अक्षरों को दबाया गया है ।" विजय ने बताया---- "हमारे ख्याल से उन सभी अक्षरों को मिलाने से कुछ ऐसे वाक्य बनेंगे जो शायद तोताराम मर्डर केस को हल करने में सहायक सिद्ध होंगे।”
"ओह !" सभी की आखें चमक उठी।
विजय बोला-"नि सन्देह तोताराम ने अपनी बात कहने का यह बड़ा ही दिलचस्प और अनूठा तंरीका अपनाया है ।
तोताराम के दिमाग की तारीफ करनी होगी--------यूं तो इस उपन्यास के पृष्ठों पर लाखों अक्षर बिखरे पड़े हैं, परन्तु तोताराम का
सन्देश उन चन्द अक्षरों को मिलाने से ही बनेगा, जिन्हें उसने इस प्रति में बॉंलपैन से छुपा रखा है-अब तुम जल्दी-जल्दी इस प्रति के मिटे हुए अक्षरो की पृष्ट संख्या…पंक्ति और शब्द बोलो-----विकास वे शब्द बताता रहेगा और तुम लिखते रहोगे गान्डीव प्यारे----हम सो रहे हैं-----जब तोताराम का संदेश पूरा हो जाए तो हमें जगा लेना ।"
उसने सचमुच आंखें बन्द कर ली ।
रघुनाथ-रैना और विकास एक-दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कराएं-फिर उन्होंने उसके आदेश का पालन करना शुरू कर दिया----रैना जिस क्रम में बोल रही थी, उसे तो नहीं लिखा जा सकता, किन्तु सुविधा के लिए पूर्ण तालिका निम्न प्रकार बनी ।
पेज--पंक्ति--शब्द--अक्षर--निकला--अक्षर
7--16--11--2--दी
8--13--8--2--वा
2 9 9 2 न
उपरोक्त तालिका के अन्तिम कालम में लिखे अक्षरों को मिलाने पर ये इबारत बनती है---------“दीवान मेरा राजनीतिक दुश्मन है…अमिता के उससे नाजायज सम्बन्ध है , मुझे उनसे जान का खतरा है !"
रघुनाथ के मुंह से निकला…“ओह-तो क्या तोताराम की हत्या दीवान ने की है !"
“क्या अब भी तुम्हें किसी तंऱह का सन्देह है प्यारे?" बिजय ने आंखें खोल दीं । "
" म-मगर---दीवान तो उसी राजनेतिक पार्टी से'सम्बन्धित है-जिसका तोताराम था ।"
“यही हत्या को मुख्य कारण है ।"
“मैं समझा नहीं ।"
" जुदाई के उपरोक्त अक्षरों से बनी इबारत से 'जाहिर है रघु डार्लिग कि हमारे देश की राजनीति बहुत ही घटिया…निस्तस्तरीय और गन्दी हो गई हैं…शीशे की तरह साफ़ है कि तोताराम और दीवान राजनैतिक दुश्मन थे…उनकी दुश्मनी का मुख्य कारण दोनो का एक ही क्षेत्र से एक ही पार्टी का नेता था।”
"एक ही पार्टी के दो नेता भला एक…दूसरे के दुश्मन कैसे हो सकते हैं?"
"आज की राजनीति यह कहती है रघु प्यारे कि एक ही क्षेत्र से दो भिन्न पार्टियों के नेताओँ में उतनी दुश्मनी नहीं होती जितनी एक क्षेत्र के एक ही पार्टी के दो नेताओं के बीच होती है------तोताराम और दीवान एक ही पार्टी के एक ही क्षेत्र से दो नेता थे---एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है-----दीवान हर बार यह कोशिश करता था कि कैंट से चुनाव लडने के लिए पार्टी का टिकट उसे मिल जाए, परंतु इस प्रयास में वह कभी कामयाब नहीं हो सका…पार्टी हाईकमान मे तोताराम के सम्बन्ध दीवान से अच्छे थे, इसलिए चुनाव टिकट हमेशा उसे ही मिला-दीवान को जंच गया कि जब तक तोताराम है तव तक कैट से उसे पार्टी टिकट नहीं मिलेगा---उसने अपना रास्ता साफ कर लिया-----तोताराम की मृत्यु ने कैट की सीट रिक्त कर दी है-दीवान की पार्टी मे अब उसके स्तर का कोई भी नेता नहीं है, अत: भविष्य में जब भी इस रिक्त सीट पर चुनाव होगा तो पार्टी टिकट दीवान को मिल जाएगा !"
"उफ्फ----!” रैना कह उठी-"सिर्फ टिकट के लिए--?"
"जिसे तुम 'सिर्फ टिकट' कह रही हो रेना बहन, वह नेताओं के लिए लाटरी का बह टिकट होता है, जो आने वाला है !"
."ल-लेकिन विजय-दीवान ने अमिता को तेयार-कैसे कर लिया?"
"तोताराम तड़क-भडक की जिन्दगी से दूर सादा रहने वाला था, जबकि उसे पत्नी ठीक विपरीत विचारों 'वाली मिल गई-तोताराम अपनी व्यस्त जिदगी में से उसके लिए समय भी कम ही निकाल पाता था…अतः यह बात दीवान ने भांप ली होगी कि अमिता तोतारामं से असन्तुष्ट रहती है,,अत: उसने धात लगाकर फन्दा फेंका होगा----अमिता फंस गई-अमिता को उसने अपने प्रेमजाल में फ्रंसाकर बहका लिया---+-प्रेम का भूत जब सिर पर सवार होता है तो अच्छे-खासे अदमी की बुद्धि को जंग लगा देता है प्यारे-अमिता को अपना ही पति अपने प्रेम के बीच दीवार महसूस होने लगा-----फिर दीवान ने धीरे-धीरे उसे मानसिक रूप से तोताराम को रास्ते से हटाने में मदद करने तक के लिए तैयार कर लिया ।"
"मगर-जुदाई से निकले इस सन्देश से जाहिर होता है कि तोताराम को उनके सम्बन्धों की पूर्ण जानकारी थी-----फिर उसने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया----अपनी बात कहने के लिए उसने भी यह टेढा-मेढा रास्ता क्यों अपनाया-----सन्देश जुदाई में छुपाकर वह अपने साथ लिए फिरता था, उसे उसने पहले ही पुलिस को क्यों नहीं बता दिया--यदि उसने ऐसा किया होता तो शायद उसकी हत्या नहीं होती ।"
"तुम्हारा कहना ठीक है प्यारे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था।"
" क्यों ?"
"यह बात फैलते ही कि उसकी बीबी के दीवान से सम्बन्ध हैं, उसका राजनैतिक कैरियर खत्म'हो जाता----मतदाताओं के दिलों में उसके लिए इज्जत और सम्मान न रहता-------उसे ही बचाने के लिए उसने सवं कुछ छुपाए रखा-----हां, जुदाई मे अपना सन्देश हमेशा साथ लिए वह इसलिए घूमता था कि यदि अमिता और दीवान इतने नीचे गिरे जितने गिर गए तो जुदाई किताब उसकी हत्या का सारा भेद खेल दे ।"
"सातंवा पृष्ठ खोलो ।"
विकास ने पृष्ठ खोलने के साथ ही कहा-"खोल दिया ।"
"सात नम्बर पृष्ठ की सोलहवीं पंक्ति पर उंगली रखो ।"
पंक्तियां गिनकर उसके आदेश का पालन करने के बाद बोला---"रख ली ।"
"अब गिनकर इस पंक्ति के ग्यारहवें शब्द पर पहुच जाओं ।"
“पहुच गया ।"
"इस शब्द का दूसरा अक्षर क्या है?"
विकास ने देखकर बताया---''दी--।"
" तुम अपनी डायरी में 'दी' लिख तो गान्डीव प्यारे ।" विजय का आदेश होते हो धनुषटंकार ने जेब से डायरी निकाली और पेंसिल से उसपर दी लिखा ।
विजय ने पुन: कहा--" अब जरा आठवां पेज खोलो दिलजले --और फिर तेरहवीं पंक्ति के आठवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो ।"
बिकास ने देखकर आधे मिनट बाद बताया--------"वा…।"
"वा लिखो गान्डीव प्यारे ।" विजय ने कहा…" तुम मुस्तेदी के साथ डायरी में वे अक्षर लिखते रहो जो अपना दिलजला बोलता जाए! "
स्वीकृति में गर्दन हिलाते हुए मोन्टो ने डायरी में लिखे 'दी' के आगे 'वा' लिख लिया ।
"अब जरा नौवे पेज की दूसरी पंक्ति कै नौवें शब्द का दूसरा अक्षर बोलो ।"
विकास ने आधे मिनट बाद कहा---" न! "
“गुड़ !" विजय ने कहा…“अब इन तीन अक्षरों को मिलाकर शब्द बना 'दीवान' ।"
"म--------मगर----" रैना बोली--"आप किसी विशेष पृष्ठ की विशेष पंक्ति के विशेष अक्षर ही क्यों बोल रहे है ?"
“क्योंकि" जुदाई की जो प्रति मेरे हाथ में है, इसमें तोताराम ने इन्ही विशेष अक्षरों को ब्रॉलपैन्' से पूरी तरह मिटा रखा है; यानी इस प्रति में ये अक्षर पढे नहीं जा रहे है ।"
"मैं समझी नहीं भइया ।"
"ये देखो--।" विजय ने दसवां. पृष्ठ खोलकर रैना के सामने रखा, बोला--“क्या इस पृष्ठ मेँ तुम्हें कहीं कोई ऐसा अक्षर नजर आ रहा है, जिसके ऊपर बॉलपैन से इस पर बुरी तरह छोटा-सा धब्बा बनाया गया हो कि अक्षर न चमक रहा हो ?"
"हां ।”
"वह अक्षर कौन-सी पंक्ति के कौन से शब्द का कौंन-सा अक्षर है?”
"रैना ने आधे मिनट बाद बताया… "अठ्ठारहवीं पंक्ति के नौबे शब्द का पहला अक्षर ।"
" गुड----अब जरा उस प्रति में देखकर तुम बताना दिलजले कि दसवे पृष्ठ की अठ्ठारहवीं पंक्ति के नोंवे शब्द का पहला अक्षर क्या है?”
"मे…।" विकास ने बताया।
बिजय ने धनुषटंकार से कहा----"तुम लिख लो गान्डीव प्यारे ।"
धनुषटकार ने गर्दन झुकाकर अक्षर लिख लिया ।
"इस तरह विभिन्न पृष्ठों पर बाॅलपैन से भिन्न अक्षरों को दबाया गया है ।" विजय ने बताया---- "हमारे ख्याल से उन सभी अक्षरों को मिलाने से कुछ ऐसे वाक्य बनेंगे जो शायद तोताराम मर्डर केस को हल करने में सहायक सिद्ध होंगे।”
"ओह !" सभी की आखें चमक उठी।
विजय बोला-"नि सन्देह तोताराम ने अपनी बात कहने का यह बड़ा ही दिलचस्प और अनूठा तंरीका अपनाया है ।
तोताराम के दिमाग की तारीफ करनी होगी--------यूं तो इस उपन्यास के पृष्ठों पर लाखों अक्षर बिखरे पड़े हैं, परन्तु तोताराम का
सन्देश उन चन्द अक्षरों को मिलाने से ही बनेगा, जिन्हें उसने इस प्रति में बॉंलपैन से छुपा रखा है-अब तुम जल्दी-जल्दी इस प्रति के मिटे हुए अक्षरो की पृष्ट संख्या…पंक्ति और शब्द बोलो-----विकास वे शब्द बताता रहेगा और तुम लिखते रहोगे गान्डीव प्यारे----हम सो रहे हैं-----जब तोताराम का संदेश पूरा हो जाए तो हमें जगा लेना ।"
उसने सचमुच आंखें बन्द कर ली ।
रघुनाथ-रैना और विकास एक-दूसरे की तरफ़ देखकर मुस्कराएं-फिर उन्होंने उसके आदेश का पालन करना शुरू कर दिया----रैना जिस क्रम में बोल रही थी, उसे तो नहीं लिखा जा सकता, किन्तु सुविधा के लिए पूर्ण तालिका निम्न प्रकार बनी ।
पेज--पंक्ति--शब्द--अक्षर--निकला--अक्षर
7--16--11--2--दी
8--13--8--2--वा
2 9 9 2 न
उपरोक्त तालिका के अन्तिम कालम में लिखे अक्षरों को मिलाने पर ये इबारत बनती है---------“दीवान मेरा राजनीतिक दुश्मन है…अमिता के उससे नाजायज सम्बन्ध है , मुझे उनसे जान का खतरा है !"
रघुनाथ के मुंह से निकला…“ओह-तो क्या तोताराम की हत्या दीवान ने की है !"
“क्या अब भी तुम्हें किसी तंऱह का सन्देह है प्यारे?" बिजय ने आंखें खोल दीं । "
" म-मगर---दीवान तो उसी राजनेतिक पार्टी से'सम्बन्धित है-जिसका तोताराम था ।"
“यही हत्या को मुख्य कारण है ।"
“मैं समझा नहीं ।"
" जुदाई के उपरोक्त अक्षरों से बनी इबारत से 'जाहिर है रघु डार्लिग कि हमारे देश की राजनीति बहुत ही घटिया…निस्तस्तरीय और गन्दी हो गई हैं…शीशे की तरह साफ़ है कि तोताराम और दीवान राजनैतिक दुश्मन थे…उनकी दुश्मनी का मुख्य कारण दोनो का एक ही क्षेत्र से एक ही पार्टी का नेता था।”
"एक ही पार्टी के दो नेता भला एक…दूसरे के दुश्मन कैसे हो सकते हैं?"
"आज की राजनीति यह कहती है रघु प्यारे कि एक ही क्षेत्र से दो भिन्न पार्टियों के नेताओँ में उतनी दुश्मनी नहीं होती जितनी एक क्षेत्र के एक ही पार्टी के दो नेताओं के बीच होती है------तोताराम और दीवान एक ही पार्टी के एक ही क्षेत्र से दो नेता थे---एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है-----दीवान हर बार यह कोशिश करता था कि कैंट से चुनाव लडने के लिए पार्टी का टिकट उसे मिल जाए, परंतु इस प्रयास में वह कभी कामयाब नहीं हो सका…पार्टी हाईकमान मे तोताराम के सम्बन्ध दीवान से अच्छे थे, इसलिए चुनाव टिकट हमेशा उसे ही मिला-दीवान को जंच गया कि जब तक तोताराम है तव तक कैट से उसे पार्टी टिकट नहीं मिलेगा---उसने अपना रास्ता साफ कर लिया-----तोताराम की मृत्यु ने कैट की सीट रिक्त कर दी है-दीवान की पार्टी मे अब उसके स्तर का कोई भी नेता नहीं है, अत: भविष्य में जब भी इस रिक्त सीट पर चुनाव होगा तो पार्टी टिकट दीवान को मिल जाएगा !"
"उफ्फ----!” रैना कह उठी-"सिर्फ टिकट के लिए--?"
"जिसे तुम 'सिर्फ टिकट' कह रही हो रेना बहन, वह नेताओं के लिए लाटरी का बह टिकट होता है, जो आने वाला है !"
."ल-लेकिन विजय-दीवान ने अमिता को तेयार-कैसे कर लिया?"
"तोताराम तड़क-भडक की जिन्दगी से दूर सादा रहने वाला था, जबकि उसे पत्नी ठीक विपरीत विचारों 'वाली मिल गई-तोताराम अपनी व्यस्त जिदगी में से उसके लिए समय भी कम ही निकाल पाता था…अतः यह बात दीवान ने भांप ली होगी कि अमिता तोतारामं से असन्तुष्ट रहती है,,अत: उसने धात लगाकर फन्दा फेंका होगा----अमिता फंस गई-अमिता को उसने अपने प्रेमजाल में फ्रंसाकर बहका लिया---+-प्रेम का भूत जब सिर पर सवार होता है तो अच्छे-खासे अदमी की बुद्धि को जंग लगा देता है प्यारे-अमिता को अपना ही पति अपने प्रेम के बीच दीवार महसूस होने लगा-----फिर दीवान ने धीरे-धीरे उसे मानसिक रूप से तोताराम को रास्ते से हटाने में मदद करने तक के लिए तैयार कर लिया ।"
"मगर-जुदाई से निकले इस सन्देश से जाहिर होता है कि तोताराम को उनके सम्बन्धों की पूर्ण जानकारी थी-----फिर उसने कोई एक्शन क्यों नहीं लिया----अपनी बात कहने के लिए उसने भी यह टेढा-मेढा रास्ता क्यों अपनाया-----सन्देश जुदाई में छुपाकर वह अपने साथ लिए फिरता था, उसे उसने पहले ही पुलिस को क्यों नहीं बता दिया--यदि उसने ऐसा किया होता तो शायद उसकी हत्या नहीं होती ।"
"तुम्हारा कहना ठीक है प्यारे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था।"
" क्यों ?"
"यह बात फैलते ही कि उसकी बीबी के दीवान से सम्बन्ध हैं, उसका राजनैतिक कैरियर खत्म'हो जाता----मतदाताओं के दिलों में उसके लिए इज्जत और सम्मान न रहता-------उसे ही बचाने के लिए उसने सवं कुछ छुपाए रखा-----हां, जुदाई मे अपना सन्देश हमेशा साथ लिए वह इसलिए घूमता था कि यदि अमिता और दीवान इतने नीचे गिरे जितने गिर गए तो जुदाई किताब उसकी हत्या का सारा भेद खेल दे ।"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
"अगर वह पहले बता देता तो उससे सिर्फ उसका राजनेतिक कैरियर ही खराब होता-लेकिन अब तो वह...!"
"यही तो विडम्बना, प्यारे----नेताओं को कैरियर जिन्दगी से प्यारा होता है ।"
"परन्तु भइया… !!” रैना ने पूछा-----"जब अमिता ने दीवान की मदद की थी तो दीवान ने उसी को क्यो और कैसे मार डाला ?"
"दीवान ने अमिता से जो काम ले लिया था, उसके बाद दीवान के लिए अमिता न केवल बिल्कुल बेकार थी, बल्कि खतरनाक भी थी--------खतरनाक इसलिए क्योंकि वह जानती थी कि उसके पति का कल्ल दीवान ने किया था…अत: उसने एकमात्र राजदार को भी वहीं खत्म कर दिया ।"
" ओह! -लेकिन दीवान ने अन्मेरे में अमिता को गोली कैसे मारी?"
विकास ने कहा----"उसकै तो होंठों पर ही फ्रांसफोरस युक्त लिपस्टिक लगी थी ।"
"ओह-!” रैना के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उपरोक्त प्रश्न करके वह स्वयं शर्मिन्दा हो गई हो ।"
कई क्षणों' के लिए उनके बीच खामोशी छा गई, फिर एकाएक रघुनाथ ने पूछा------“तो अब तुम्हारी क्या राय है विजय-----क्या मैं दीवान को गिरफ्तार कर लू ?"
"नहीँ।" विजय चिड़े हुए से अन्दाज बोला------जाकर उसकी आरती उतारो ।"
" म----मेरा मतलब… ।”
"अबे खाक मतलब है तुम्हारा…जाने किस हुडकचुत्लू ने तुम्हें सुपरिटेण्डेण्ट वना दिया-----धेले की अक्ल नहीं हे-----अबे जव सारी रामायण ही खत्म हो गई है तो उसे गिरफ्तार करने के बारे में पूछने का क्या मतलब ?"
गड़बड़ाकर रघुनाथ ने कहा----"मै तो एक राय ले रहा था यार ।"
“तुम हमेशा राय ही लेते रहोगे तुलाराशी या कभी खुद भी कुछ करोगे ?"
"क्या मतलब विजय ?"
" अजी मतलब को मारो गोली---तुम साले नामाकूल गधे…बेवकूफ और मुर्ख हो----आज तक एक भी केस नहीं है, जिसे तुमने खुद हल किया हों…साली कहीं जेब भी कटेगी तो विजय दी ग्रेट के पास दोड़े चले आएंगे ।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो विजय ।"
“अबे अपमान नहीं करूं तो क्या तुम्हें सिर पर बैठाकर भंगड़ा करूं ।।"
उसकी इस बात पर रैना और विकास खिलखिलाकर हंस पड़े--उनके हंसने ने रघुनाथ के तन--बदन में सचमुच आग-लगा दी------------झेंप, झुंझलाहट और क्रोध के कारण उसका चेहरा लाल हो गया-रैना, विकास और धनुषटंकार के सामने उसे सचमुच विजय के शब्द अच्छे नहीं लगे …अजीब-सी उत्तेजना के कारण उसका सारा शरीर कांपने लगा था, जबकि आदत के मुताबिक विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया---"तुम्हें तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए प्यारे तुम्हारे वस का कुछ नहीं हे…वेकार ही चिपके पड़े हो----------किसी काबिल आदमी को आने दो ।"
"विजय ।"
"अमां चीख क्यों रहे हो प्यारे-यदि हम न हों तो तुम एक दिन भी अपने पद पर...।"
रधुनाथ चीख पडा…“तुम चुप होते हो विजय या नहीं?"
"हमारी बिल्ली हमे म्याऊं--ये आंखें किसी और को दिखाना प्यारे-अब सुन लो----आज तक तुम्हारी जो मदद की सो की, लेकिन भविष्य में हैं किसी केस मे तुम्हारी मदद नहीं करूंगा ।”
रघुनाथ ने उसे घूरा…दांत पीसे और फिर तेज केदमों के साथ कमरे से बाहर निकल गंया--------विकास खिलखिलाकर हस पड़ा------
-----जबकि हैना थोडी गंभीर थी-----फिर बोली-----“बे सचमुच नाराज हो जाए है भइया ।"
"अजी नाराज होकर क्या हमे सूली पर चढवाएगा ?"
"फिर भी आपक्रो उन्हें इस तरह नहीं कहना चाहिए ।"
"तुझ बीच में पढ़कर या बोलकर बेकार ही अपना दिमाग खराब कर रही हो रैना बहन----उसकी नस-नस से वाकिफ़ हू…तुम्हारी शादी से बहुत पहले से जानता हू उसे-ऐसी मुद्रा में मैंने उसे पहले भी कई बार देखा है…पहले तो वह दोस्त ही था और तुम भाभी-ये तो बाद में पता लगा कि तुम र्मेरी चचेरी बहन और उस रिश्ते से वह मेरा बहनोई हो गया।”
"फिर भी…षहले मैंने उन्हें कभी आपके मजाक का इतना बुरा मानते नहीं देखा ।"
"अगले दिन---!"
सुबह सात बजे रैना बेड-टी लिए' रघुनाथ के कमरे में प्रविष्ट हुई-उस वक्त रघुनाथ, बैड पर पड़ा ऊंघ रहा था…रैना ने कप-प्लेट बैड की साइड टेबल पर रखे और बोली---"उठिए-सात बज गए हैं----आज क्या सारे दिन सोते रहने का ही विचार हे?”
रघुनाथ ने आंखें खोल दीं…रैना हल्के से मुस्करा उठी ।
“चाय ठंडी हो रही है ।" कहने के साथ ही रैना किचन की तरफ चली गई।
रघुनाथ ने दो तकिए उठा कर पलंग को पुश्त से लगाए उन पर पीठ टिकाकर वह चाय सिप करने लगा---- दो-तीन मिनट वाद ही नौकर उसे अखबार दे गया…चाय सिप करने के साथ ही साथ अखबार भी पढ़ने लगा-उसकी आंखों ने वडी तेजी के साथ मुख्य पृष्ठ पर छपी अपने मतलब की खबर को खोज लिया था------खबर का शीर्षक पढ़ते ही उसका दिल गदगद हो उठा ।
लिखा था-"सुपर रघुनाथ के बुद्वि चातुर्य से तोताराम दम्पति का हत्यारा गिरफ्तार ।"
रघुनाथ उपरोक्त शीर्षक के अन्तर्गत छपी खबर को पड़ता चला गया-संवाददाता ने जहां दीवान को लेकर राजनैतिक सम्बन्धों को नग्न किया था, वहीं खुले दिल से सुपर रघुनाथ की प्रशंसा भी की थी-अपने फोटो को देखेकर तो रघुनाथ चाय पीना ही भूल गया क्योंकि फोटो के नीचे लिखा था------"राजनगर पुलिस के गौरव !"
इस पंक्ति को रघुनाथ बार-वार पढने लगा ।
सीना स्वयं ही फ़ख्र से चौडा हुआ जा रहा था-एकाएक ही उसे विजय का ख्याल आया--अखबार में कहीं भी विजय का नाम नहीं था-रघुनाथ की स्थिति उस मोर जैसी हो गई, जिसकी दृष्टि नाचते-नाचते अचानक अपने पैरों पर पड़ जाती है !!
"रैना-रैना…!" रघुनाथ की यह चीख सुनकर किचन में काम करती रैना चौंक पड़ी…अभी वह ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाई थी कि उसी तरह चीखता हुआ रघुनाथ बदहवास-सी अवस्था में अन्दर दाखिल हुआ…उसके हाथ में इस वक्त अखबार था-अखबार का तीसरा
पृष्ठ खोले हुए था वह--------चेहरे पर भूकम्प के से भाव थे ।
" रैना ने धीमे से चौंककर पूछा…" क्या बात है-आप इस तरह...........!"
“य-ये देखो रैना अखबार में क्या छपा है?"
"जानती हू-----आपने कल दीवान को गिरफ्तार किया था…. वही खबर होगी ।"
" न-नहीं रैना…मैं इस खबर की बात नहीं कर रहा हू।"
"तो फिर?"
"य-ये देखो ।" रघुनाथ ने जल्दी से अखबार उसकी आंखों के सामने फैलाकर कहा------------मै इस फोटो के बारे में बात कर रहा हू----ये फोटो......!"
"ये तो किसी खोए हुए बच्चे का फोटो है---------फोटो के ऊपर ही लिखा है--गुमशुदा की तलाश'----मगर इस फोटो को देखकर आप बदहवास क्यों हो रहे हैं?"
"क्या तुमने इस फोटो को पहचाना नहीं रैना ?"
रैना ने बच्चे के फोटो को ध्यान से देखा, बोली…"नहीँ तो ।"
"य-ये मेरा फोटो है रैना-मेरा फोटो ।"
" अ---आपका-----"रैना के पेरों तले से धरती खिसक गई ।
“हां हां रैना----ये मेरा ही फोटो है----याद नहीं रहा----"मेरा ये फोटों तुमने मेरी एलबम में देखा है…म-मगर इस फोटो के नीचे बड़ा अजीब मैटर लिखा है ।"
"क्या लिखा है?"
"यही तो विडम्बना, प्यारे----नेताओं को कैरियर जिन्दगी से प्यारा होता है ।"
"परन्तु भइया… !!” रैना ने पूछा-----"जब अमिता ने दीवान की मदद की थी तो दीवान ने उसी को क्यो और कैसे मार डाला ?"
"दीवान ने अमिता से जो काम ले लिया था, उसके बाद दीवान के लिए अमिता न केवल बिल्कुल बेकार थी, बल्कि खतरनाक भी थी--------खतरनाक इसलिए क्योंकि वह जानती थी कि उसके पति का कल्ल दीवान ने किया था…अत: उसने एकमात्र राजदार को भी वहीं खत्म कर दिया ।"
" ओह! -लेकिन दीवान ने अन्मेरे में अमिता को गोली कैसे मारी?"
विकास ने कहा----"उसकै तो होंठों पर ही फ्रांसफोरस युक्त लिपस्टिक लगी थी ।"
"ओह-!” रैना के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उपरोक्त प्रश्न करके वह स्वयं शर्मिन्दा हो गई हो ।"
कई क्षणों' के लिए उनके बीच खामोशी छा गई, फिर एकाएक रघुनाथ ने पूछा------“तो अब तुम्हारी क्या राय है विजय-----क्या मैं दीवान को गिरफ्तार कर लू ?"
"नहीँ।" विजय चिड़े हुए से अन्दाज बोला------जाकर उसकी आरती उतारो ।"
" म----मेरा मतलब… ।”
"अबे खाक मतलब है तुम्हारा…जाने किस हुडकचुत्लू ने तुम्हें सुपरिटेण्डेण्ट वना दिया-----धेले की अक्ल नहीं हे-----अबे जव सारी रामायण ही खत्म हो गई है तो उसे गिरफ्तार करने के बारे में पूछने का क्या मतलब ?"
गड़बड़ाकर रघुनाथ ने कहा----"मै तो एक राय ले रहा था यार ।"
“तुम हमेशा राय ही लेते रहोगे तुलाराशी या कभी खुद भी कुछ करोगे ?"
"क्या मतलब विजय ?"
" अजी मतलब को मारो गोली---तुम साले नामाकूल गधे…बेवकूफ और मुर्ख हो----आज तक एक भी केस नहीं है, जिसे तुमने खुद हल किया हों…साली कहीं जेब भी कटेगी तो विजय दी ग्रेट के पास दोड़े चले आएंगे ।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो विजय ।"
“अबे अपमान नहीं करूं तो क्या तुम्हें सिर पर बैठाकर भंगड़ा करूं ।।"
उसकी इस बात पर रैना और विकास खिलखिलाकर हंस पड़े--उनके हंसने ने रघुनाथ के तन--बदन में सचमुच आग-लगा दी------------झेंप, झुंझलाहट और क्रोध के कारण उसका चेहरा लाल हो गया-रैना, विकास और धनुषटंकार के सामने उसे सचमुच विजय के शब्द अच्छे नहीं लगे …अजीब-सी उत्तेजना के कारण उसका सारा शरीर कांपने लगा था, जबकि आदत के मुताबिक विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया---"तुम्हें तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए प्यारे तुम्हारे वस का कुछ नहीं हे…वेकार ही चिपके पड़े हो----------किसी काबिल आदमी को आने दो ।"
"विजय ।"
"अमां चीख क्यों रहे हो प्यारे-यदि हम न हों तो तुम एक दिन भी अपने पद पर...।"
रधुनाथ चीख पडा…“तुम चुप होते हो विजय या नहीं?"
"हमारी बिल्ली हमे म्याऊं--ये आंखें किसी और को दिखाना प्यारे-अब सुन लो----आज तक तुम्हारी जो मदद की सो की, लेकिन भविष्य में हैं किसी केस मे तुम्हारी मदद नहीं करूंगा ।”
रघुनाथ ने उसे घूरा…दांत पीसे और फिर तेज केदमों के साथ कमरे से बाहर निकल गंया--------विकास खिलखिलाकर हस पड़ा------
-----जबकि हैना थोडी गंभीर थी-----फिर बोली-----“बे सचमुच नाराज हो जाए है भइया ।"
"अजी नाराज होकर क्या हमे सूली पर चढवाएगा ?"
"फिर भी आपक्रो उन्हें इस तरह नहीं कहना चाहिए ।"
"तुझ बीच में पढ़कर या बोलकर बेकार ही अपना दिमाग खराब कर रही हो रैना बहन----उसकी नस-नस से वाकिफ़ हू…तुम्हारी शादी से बहुत पहले से जानता हू उसे-ऐसी मुद्रा में मैंने उसे पहले भी कई बार देखा है…पहले तो वह दोस्त ही था और तुम भाभी-ये तो बाद में पता लगा कि तुम र्मेरी चचेरी बहन और उस रिश्ते से वह मेरा बहनोई हो गया।”
"फिर भी…षहले मैंने उन्हें कभी आपके मजाक का इतना बुरा मानते नहीं देखा ।"
"अगले दिन---!"
सुबह सात बजे रैना बेड-टी लिए' रघुनाथ के कमरे में प्रविष्ट हुई-उस वक्त रघुनाथ, बैड पर पड़ा ऊंघ रहा था…रैना ने कप-प्लेट बैड की साइड टेबल पर रखे और बोली---"उठिए-सात बज गए हैं----आज क्या सारे दिन सोते रहने का ही विचार हे?”
रघुनाथ ने आंखें खोल दीं…रैना हल्के से मुस्करा उठी ।
“चाय ठंडी हो रही है ।" कहने के साथ ही रैना किचन की तरफ चली गई।
रघुनाथ ने दो तकिए उठा कर पलंग को पुश्त से लगाए उन पर पीठ टिकाकर वह चाय सिप करने लगा---- दो-तीन मिनट वाद ही नौकर उसे अखबार दे गया…चाय सिप करने के साथ ही साथ अखबार भी पढ़ने लगा-उसकी आंखों ने वडी तेजी के साथ मुख्य पृष्ठ पर छपी अपने मतलब की खबर को खोज लिया था------खबर का शीर्षक पढ़ते ही उसका दिल गदगद हो उठा ।
लिखा था-"सुपर रघुनाथ के बुद्वि चातुर्य से तोताराम दम्पति का हत्यारा गिरफ्तार ।"
रघुनाथ उपरोक्त शीर्षक के अन्तर्गत छपी खबर को पड़ता चला गया-संवाददाता ने जहां दीवान को लेकर राजनैतिक सम्बन्धों को नग्न किया था, वहीं खुले दिल से सुपर रघुनाथ की प्रशंसा भी की थी-अपने फोटो को देखेकर तो रघुनाथ चाय पीना ही भूल गया क्योंकि फोटो के नीचे लिखा था------"राजनगर पुलिस के गौरव !"
इस पंक्ति को रघुनाथ बार-वार पढने लगा ।
सीना स्वयं ही फ़ख्र से चौडा हुआ जा रहा था-एकाएक ही उसे विजय का ख्याल आया--अखबार में कहीं भी विजय का नाम नहीं था-रघुनाथ की स्थिति उस मोर जैसी हो गई, जिसकी दृष्टि नाचते-नाचते अचानक अपने पैरों पर पड़ जाती है !!
"रैना-रैना…!" रघुनाथ की यह चीख सुनकर किचन में काम करती रैना चौंक पड़ी…अभी वह ठीक से कुछ समझ भी नहीं पाई थी कि उसी तरह चीखता हुआ रघुनाथ बदहवास-सी अवस्था में अन्दर दाखिल हुआ…उसके हाथ में इस वक्त अखबार था-अखबार का तीसरा
पृष्ठ खोले हुए था वह--------चेहरे पर भूकम्प के से भाव थे ।
" रैना ने धीमे से चौंककर पूछा…" क्या बात है-आप इस तरह...........!"
“य-ये देखो रैना अखबार में क्या छपा है?"
"जानती हू-----आपने कल दीवान को गिरफ्तार किया था…. वही खबर होगी ।"
" न-नहीं रैना…मैं इस खबर की बात नहीं कर रहा हू।"
"तो फिर?"
"य-ये देखो ।" रघुनाथ ने जल्दी से अखबार उसकी आंखों के सामने फैलाकर कहा------------मै इस फोटो के बारे में बात कर रहा हू----ये फोटो......!"
"ये तो किसी खोए हुए बच्चे का फोटो है---------फोटो के ऊपर ही लिखा है--गुमशुदा की तलाश'----मगर इस फोटो को देखकर आप बदहवास क्यों हो रहे हैं?"
"क्या तुमने इस फोटो को पहचाना नहीं रैना ?"
रैना ने बच्चे के फोटो को ध्यान से देखा, बोली…"नहीँ तो ।"
"य-ये मेरा फोटो है रैना-मेरा फोटो ।"
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"क्या लिखा है?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
रघुनाथ जल्दी-जल्दी उस फोटो के नीचे लिखे मैटर को पढकर सुनाने लगा-उपर जिस बच्चे का फोटो छपा है उसका नाम इकबाल खान है-इकबाल का यह फोटो उस समय का है, 'जबकि वह सिर्फ बारह वर्ष का था-इकबाल को गुम हुए करीब इकतीस साल गुजरने को हैं----यह बच्चा बयालीस साल के लगभग होगा,, अत: इस फोटो को देखकर आज के इकबाल को शायद ही कोई पहचान सके…मगर हम अखबार में यही फोटो देने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि हमारे पास इकबाल का इससे बाद का कोई भी चित्र मौजूद नहीं है…सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो ये है कि बारह वर्ष की आयु में एक घटना का शिकार होने के बाद इकबाल अपनी याददाश्त गवां बैठा था…जब वह गुम हुआ तब यह स्वयं नहीं जानता था कि वह कौन है…उसका नाम क्या है या उसके मां'-बाप कौन हैं-अपने बारे में वह कुछ भी नहीं जानता है-इस फोटो की मदद सै आज के इकबाल को पहचानना भी लगभग नामुमकिन ही है-फिर भी, हम अपने प्यारे इकबाल को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैँ-पहचान के लिए हम इकबाल की चन्द जिस्मानी खासियतें लिख रहे हैं--
इकबाल की दाई बगल में एक बहुत बड़ा काला मस्सा है--बाई जांघ पर बचपन में लगी चोट का एक लम्बा और गहरा निशान है---------------बाएं हाथ की हथेली के ठीक बीच में एक वड़ा काला 'तिल' है-दोनों पैरों की अंगूठे के समीप बाली उंगलियां अंगूठे से बडी हैं----बस हम या कोई भी इन जिस्मानी खासियतों की वजह से ही इकबाल को पहचान सकता है-यदि किसी को उपरोक्त जिस्मानी खासियतों वाले किसी बयालीस वर्षीय व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी हो तो उसकी खबर तुरन्त नीचे लिखे पते पर दे-यदि वह हमारा इकबाल ही हुआ हम उसे लाने वाले को मुंहमांगा इनाम देंगे ।
अहमद खान (इकबाल का पिता)
कमरा नम्बर-----सात सौ बारह
दिलबहार होटल
यह सब सुनने के बाद रैना ज़ड़वत-सी खड़ी रह गई! !!!!!
आंखें हैरत से फट पडी थी…पढ़ने के बाद रघुनाथ ने दृष्टि ऊपर उठाई, बोला-"रैना ।"
“आं ।" रैना चौक पड़ी ।
"तुम क्या सोचने लगी थी ?"
" य-ये सब क्या चक्कर है?"
" ख----खुद मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है रैना-----तुम जानती हो ये सभी जिस्मानी खासियतें मेरे शरीर पर हैं-----मेरी एलबम में अपने माता-पिता के साथ मेरा उस वक्त का फोटो भी है, जब लगभग तेरह साल का था------अखबार में छपा यह फोटो मेरे उस फोटो से बिल्कुल मिलता है।"
"तो क्या आप सचमुच इकबाल-खान हैं?"
“य-ये कैसे हो सकता है--"मै रघुनाथ हू ।"
" म---मगर इसमें तो ये भी लिखा है किं बारह वर्ष की आयु में इकबाल अपनी याददाश्त गवां बैठा था…किस्री दुर्घटना में. . . ।"
"त---तुम कहना क्या चाहती हो?"
"क-कहीं आप सचमुच इकबाल ही तो नहीं हैं?"
"क-कहीं आप सचमुच इकबाल ही तो नहीं हैं?"
"ल-लेकिन---।" रघुनाथ बुरी तरह उलझ गया-----"मेरे जहन मे बचपन की बहुत-सी यादें सुरक्षित हैं-उनमे से एक भी याद ऐसी नहीं है, जब मैंने अपना नाम इकबाल सुना हो-------मेरे पिता का नाम अमीचन्द और मा का सावित्री देवी था------- फिर ये अहमद, खान…ये भला मेरे पिता का नाम कैसे हो सकता है?"
रैना कुछ बोल नहीं सकी--जबकि स्वयं ऱघुनाथ ने ही तेजी से पूछा----"मेरी एलबम कहां है रैना ।"
" सेफ में !"
"जरा जल्दी से वह निकालो ।"
रैना तुरन्त ही तेजी से आदेश का पालन करने के लिए किचन से निकल पडी ।
अऱवबार सम्भाले रघुनाथ भी उसके पीछे लपका-दोनो का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था ।
उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये मामला क्या है-वे कमरे में पहुंचे; रेना ने सेफ खोली…पांच मिनट बाद ही उसके हाथ में एक एलबम थी।।
एलबम को खोलकर वे कमरे में पड़े सोफे पर बैठ गए--दो या तीन पृष्ठों के बाद ही एलबम के एक पृष्ट पर-वह चित्र नजर आया, जिसमें लगभग तेरह वर्षीय रघुनाथ अपने माता…पिता के साथ था ।
उस फोटो को अखवार में छपे फोटो से मिलाते ही रैना और रघुनाथ की आंखें हैरत से फैल गई ।।
कभी वे अखबार मे छपे इकबाल को-देख रहे थे, कभी एलबम में लगे फोटो को ।
जिस वक्त विकास अपने कर्मरे से निकल कर रैना के कमरे की तरफ़ बढ़ा उस वत्त उसके लम्बे---कसरती----आकर्षक और गोरे--चिट्टे जिस्म पर एक चमचमाती हुई सफेद बैल-बाटम और जालीदार हाफ़ बाजू का काला बनियान था।
छोटा-सा नया सूट पहने धनुषटंकार उसके कंघे पर सवार था-घनुषटंकार के पैरों में चमकदार नन्हे बूट और उंगलियों के बीच एक सिगार था !
विकास कमरे के दरवाजे पर ही ठिठक गया ।
एक ही सोफे पर बैठे रैना और रधुनाथ एलबम और अखबार पर झुके हुए थे…एक पल ठिठकने के बाद कमरे में कदम रखते हुए विकास ने कहा----"गुङ मार्निंग मम्मी-डैडी ।
" ग--गुड मर्निंग !" एकंदम दोनों ही उछल पडे ।
उनकी तरफ बढता हुआ विकास बोला-----------"अरे--क्या` हुआ डैडी…आप एकदम इस तरह क्यों उछल पडे, जैसे हमने आपकी कोई बहुत बड्री चोरी करते पकड लिया हो------------अरे,,आपके चेहरे पर ये हवाइयां क्यों उड़ रहीं हैं मम्मी आखिर बात क्या है ?"
वे दोनों ही जड़वत से खड़े रह गए-----मुंह से एक शब्द भी न निकला जबकि समीप पहुचते ही विकास रघुनाथ के'चरर्णो में झुक गया----उससे पहले धनुषटंकार उसके कंधे से सीधा रैना के चरणों में कूदा था ।
प्रति प्रात: उनके चरणस्पर्श करना विकास और मोन्टो का नियम था----वे पूरी श्रद्धां के साथ करते थे…जबं विकास के
रैना के चरणस्पर्श करके सीधा खड़ा होता था तो भरी आंखों से रैना उसे बांहों में भरकर अपनी छाती से लगा लिया करती थी…बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरते वक्त सैकड़ों दुआएं दिया करती थी अपने लालको-----मगर आज-जब ऐसा न हुआ तो …हल्के से चौंककर विकास ने पूछा…"क्या बात है मम्मी ?"
"आं--क--कुछ नहीं है ।" रैना ने घबराकर रघुनाथ की तरफ देखा।
एक क्षण के लिए चुप रहा विकास…इस क्षण में लड़के ने अपनी मम्मी-डैडी के चेहरों का निरीक्षण किया…चेहरों का रंग उड़ा हुआ था-इसी से विकास ने अनुमान लगा लिया कि
सुबह-सुबह कोई ऐसी बात जरुर है, जिसने अचानक ही उन्हें मानसिक रुप से त्रस्त कर दिया है-वह एकदम चीख पढ़ा------क्या हुआ मम्मी---बोलती क्यों नहीं ?"
"व-विकास----आज के अखबार मैं---।"
"हां-हां बोलिए----आज के अखबार में क्या हुआ?"
रघुनाथ ने कहा…"बैठो विकास-हम एक वहुत ही अजीब-म उलझन में फंस गए हैं !"
"कैसी उलझन?"
"हमारी तो कुछ समझ मैं नहीँ आ रहा है-बेठौ-सबकुछ बताते हैं ।"
असमंजस से डूबा विकास सोफे पर बैठ गया----पुश्त पर बैठे मोन्टो ने एक साथ कई तगडे कश लगाए और फिर मुंह को एक दायरे की शक्ल में मोड़कर छल्ले बनाने लगा ।
टेलीफोन की लगातार धनघनाती घण्टी ने विजय की नीद में खलल तो डाला ही, . साथ ही उसे रिसीवर उठाने के लिऐ भी विवश कर दिया-बुरा सा मुंह बनाकर उसने रिसीवर उठाया और बोला-----मेनेजर आँफ़ यतीमखाना हीयर ।"
"मैं विकास बोल रहा गुरु ।"
विजय झल्लाए से अन्दाज में बोला-----" क्यों बोल रहे हो प्यारे?"
"आपकी आवाज बता रही है कि आप अभी-अभी, सोकर उठे ।"
"जासूसी मत झाडो प्यारे-मतलब की बको !"
" आपने अभी आज़ का अखबार तो नहीं पढा होगा?"
"फिर भी अन्दाजा लगा सकता हू कि मुख्य पृष्ठ तुम्हारे बापूजान की तारीफ से भरा पड़ा होगा ।"
"मै उस खबर की बात नही कर रहा हूं गुरु।"
"फिर किस खबर की बात कर रहे प्यारे?"
"'गुमशुदा की तलाश वाले एक विक्षापन की ।"
विजय झुंझला गया----ओफ्फो----तुम कब से गुमशुदाओ की तलाश करने लगे?"
"अखबार में छपा फोटो डैडी का है अंकल ।"
"क्या मतलब?" विजय उछल पडा ।।
इसके बाद-----दुसरी तरफ से विकास ने जो कुछ कहा उसे सुनकर विजय जैसे व्यक्ति की खोपडी भी घूम गई ।
चेहरे पर असीम हैरत के भाव उभर आए--------बोला----" हम आ रहे है प्यारे ।"
फोटो के नीचे मजमून को पढ़ने के बाद विजय ने कहा--"खोपडी साली झन्नाट हुई जा रही हे-अच्छा एक बात बताओ-क्या तुम्हें याद है कि तुम्हारी बाई जांघ पर चोट का लम्बा औऱ गहरा जख्म कब, और कैसे वना था?"
इकबाल की दाई बगल में एक बहुत बड़ा काला मस्सा है--बाई जांघ पर बचपन में लगी चोट का एक लम्बा और गहरा निशान है---------------बाएं हाथ की हथेली के ठीक बीच में एक वड़ा काला 'तिल' है-दोनों पैरों की अंगूठे के समीप बाली उंगलियां अंगूठे से बडी हैं----बस हम या कोई भी इन जिस्मानी खासियतों की वजह से ही इकबाल को पहचान सकता है-यदि किसी को उपरोक्त जिस्मानी खासियतों वाले किसी बयालीस वर्षीय व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी हो तो उसकी खबर तुरन्त नीचे लिखे पते पर दे-यदि वह हमारा इकबाल ही हुआ हम उसे लाने वाले को मुंहमांगा इनाम देंगे ।
अहमद खान (इकबाल का पिता)
कमरा नम्बर-----सात सौ बारह
दिलबहार होटल
यह सब सुनने के बाद रैना ज़ड़वत-सी खड़ी रह गई! !!!!!
आंखें हैरत से फट पडी थी…पढ़ने के बाद रघुनाथ ने दृष्टि ऊपर उठाई, बोला-"रैना ।"
“आं ।" रैना चौक पड़ी ।
"तुम क्या सोचने लगी थी ?"
" य-ये सब क्या चक्कर है?"
" ख----खुद मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है रैना-----तुम जानती हो ये सभी जिस्मानी खासियतें मेरे शरीर पर हैं-----मेरी एलबम में अपने माता-पिता के साथ मेरा उस वक्त का फोटो भी है, जब लगभग तेरह साल का था------अखबार में छपा यह फोटो मेरे उस फोटो से बिल्कुल मिलता है।"
"तो क्या आप सचमुच इकबाल-खान हैं?"
“य-ये कैसे हो सकता है--"मै रघुनाथ हू ।"
" म---मगर इसमें तो ये भी लिखा है किं बारह वर्ष की आयु में इकबाल अपनी याददाश्त गवां बैठा था…किस्री दुर्घटना में. . . ।"
"त---तुम कहना क्या चाहती हो?"
"क-कहीं आप सचमुच इकबाल ही तो नहीं हैं?"
"क-कहीं आप सचमुच इकबाल ही तो नहीं हैं?"
"ल-लेकिन---।" रघुनाथ बुरी तरह उलझ गया-----"मेरे जहन मे बचपन की बहुत-सी यादें सुरक्षित हैं-उनमे से एक भी याद ऐसी नहीं है, जब मैंने अपना नाम इकबाल सुना हो-------मेरे पिता का नाम अमीचन्द और मा का सावित्री देवी था------- फिर ये अहमद, खान…ये भला मेरे पिता का नाम कैसे हो सकता है?"
रैना कुछ बोल नहीं सकी--जबकि स्वयं ऱघुनाथ ने ही तेजी से पूछा----"मेरी एलबम कहां है रैना ।"
" सेफ में !"
"जरा जल्दी से वह निकालो ।"
रैना तुरन्त ही तेजी से आदेश का पालन करने के लिए किचन से निकल पडी ।
अऱवबार सम्भाले रघुनाथ भी उसके पीछे लपका-दोनो का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था ।
उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये मामला क्या है-वे कमरे में पहुंचे; रेना ने सेफ खोली…पांच मिनट बाद ही उसके हाथ में एक एलबम थी।।
एलबम को खोलकर वे कमरे में पड़े सोफे पर बैठ गए--दो या तीन पृष्ठों के बाद ही एलबम के एक पृष्ट पर-वह चित्र नजर आया, जिसमें लगभग तेरह वर्षीय रघुनाथ अपने माता…पिता के साथ था ।
उस फोटो को अखवार में छपे फोटो से मिलाते ही रैना और रघुनाथ की आंखें हैरत से फैल गई ।।
कभी वे अखबार मे छपे इकबाल को-देख रहे थे, कभी एलबम में लगे फोटो को ।
जिस वक्त विकास अपने कर्मरे से निकल कर रैना के कमरे की तरफ़ बढ़ा उस वत्त उसके लम्बे---कसरती----आकर्षक और गोरे--चिट्टे जिस्म पर एक चमचमाती हुई सफेद बैल-बाटम और जालीदार हाफ़ बाजू का काला बनियान था।
छोटा-सा नया सूट पहने धनुषटंकार उसके कंघे पर सवार था-घनुषटंकार के पैरों में चमकदार नन्हे बूट और उंगलियों के बीच एक सिगार था !
विकास कमरे के दरवाजे पर ही ठिठक गया ।
एक ही सोफे पर बैठे रैना और रधुनाथ एलबम और अखबार पर झुके हुए थे…एक पल ठिठकने के बाद कमरे में कदम रखते हुए विकास ने कहा----"गुङ मार्निंग मम्मी-डैडी ।
" ग--गुड मर्निंग !" एकंदम दोनों ही उछल पडे ।
उनकी तरफ बढता हुआ विकास बोला-----------"अरे--क्या` हुआ डैडी…आप एकदम इस तरह क्यों उछल पडे, जैसे हमने आपकी कोई बहुत बड्री चोरी करते पकड लिया हो------------अरे,,आपके चेहरे पर ये हवाइयां क्यों उड़ रहीं हैं मम्मी आखिर बात क्या है ?"
वे दोनों ही जड़वत से खड़े रह गए-----मुंह से एक शब्द भी न निकला जबकि समीप पहुचते ही विकास रघुनाथ के'चरर्णो में झुक गया----उससे पहले धनुषटंकार उसके कंधे से सीधा रैना के चरणों में कूदा था ।
प्रति प्रात: उनके चरणस्पर्श करना विकास और मोन्टो का नियम था----वे पूरी श्रद्धां के साथ करते थे…जबं विकास के
रैना के चरणस्पर्श करके सीधा खड़ा होता था तो भरी आंखों से रैना उसे बांहों में भरकर अपनी छाती से लगा लिया करती थी…बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरते वक्त सैकड़ों दुआएं दिया करती थी अपने लालको-----मगर आज-जब ऐसा न हुआ तो …हल्के से चौंककर विकास ने पूछा…"क्या बात है मम्मी ?"
"आं--क--कुछ नहीं है ।" रैना ने घबराकर रघुनाथ की तरफ देखा।
एक क्षण के लिए चुप रहा विकास…इस क्षण में लड़के ने अपनी मम्मी-डैडी के चेहरों का निरीक्षण किया…चेहरों का रंग उड़ा हुआ था-इसी से विकास ने अनुमान लगा लिया कि
सुबह-सुबह कोई ऐसी बात जरुर है, जिसने अचानक ही उन्हें मानसिक रुप से त्रस्त कर दिया है-वह एकदम चीख पढ़ा------क्या हुआ मम्मी---बोलती क्यों नहीं ?"
"व-विकास----आज के अखबार मैं---।"
"हां-हां बोलिए----आज के अखबार में क्या हुआ?"
रघुनाथ ने कहा…"बैठो विकास-हम एक वहुत ही अजीब-म उलझन में फंस गए हैं !"
"कैसी उलझन?"
"हमारी तो कुछ समझ मैं नहीँ आ रहा है-बेठौ-सबकुछ बताते हैं ।"
असमंजस से डूबा विकास सोफे पर बैठ गया----पुश्त पर बैठे मोन्टो ने एक साथ कई तगडे कश लगाए और फिर मुंह को एक दायरे की शक्ल में मोड़कर छल्ले बनाने लगा ।
टेलीफोन की लगातार धनघनाती घण्टी ने विजय की नीद में खलल तो डाला ही, . साथ ही उसे रिसीवर उठाने के लिऐ भी विवश कर दिया-बुरा सा मुंह बनाकर उसने रिसीवर उठाया और बोला-----मेनेजर आँफ़ यतीमखाना हीयर ।"
"मैं विकास बोल रहा गुरु ।"
विजय झल्लाए से अन्दाज में बोला-----" क्यों बोल रहे हो प्यारे?"
"आपकी आवाज बता रही है कि आप अभी-अभी, सोकर उठे ।"
"जासूसी मत झाडो प्यारे-मतलब की बको !"
" आपने अभी आज़ का अखबार तो नहीं पढा होगा?"
"फिर भी अन्दाजा लगा सकता हू कि मुख्य पृष्ठ तुम्हारे बापूजान की तारीफ से भरा पड़ा होगा ।"
"मै उस खबर की बात नही कर रहा हूं गुरु।"
"फिर किस खबर की बात कर रहे प्यारे?"
"'गुमशुदा की तलाश वाले एक विक्षापन की ।"
विजय झुंझला गया----ओफ्फो----तुम कब से गुमशुदाओ की तलाश करने लगे?"
"अखबार में छपा फोटो डैडी का है अंकल ।"
"क्या मतलब?" विजय उछल पडा ।।
इसके बाद-----दुसरी तरफ से विकास ने जो कुछ कहा उसे सुनकर विजय जैसे व्यक्ति की खोपडी भी घूम गई ।
चेहरे पर असीम हैरत के भाव उभर आए--------बोला----" हम आ रहे है प्यारे ।"
फोटो के नीचे मजमून को पढ़ने के बाद विजय ने कहा--"खोपडी साली झन्नाट हुई जा रही हे-अच्छा एक बात बताओ-क्या तुम्हें याद है कि तुम्हारी बाई जांघ पर चोट का लम्बा औऱ गहरा जख्म कब, और कैसे वना था?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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