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ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete
- jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
एक दिन जब वो अपने बड़े चक (ज़मीन का एक बड़ा भाग) से दूसरी ज़मीन की तरफ जा रहे थे, और प्रेमा काकी अपने खेत घर के दरवाजे पर खड़ी थी, रामचंद काका कहीं खेतों में काम कर रहे थे…
अपने निचले होंठ के किनारे को दाँतों में दवाके बड़े मादक अंदाज में प्रेमा काकी ने रामसिंघ को पुकारा…… लल्ला जी ज़रा सुनो तो…
रामसिंघ ठितके, और उनकी ओर मुड़ते हुए पुछा जी काकी…
थोड़ा बहुत हमारे पास भी बैठ लिया करो… तुम तो हमारी ओर देखते तक नही, ऐसे बुरे लगते हैं तुम्हें…??
अरे नही काकी.. आप तो बहुत अच्छी लगती हो, आपको कॉन बुरा कह सकता है भला… थोड़ा सकुचाते हुए जबाब दिया रामसिंघ ने…
तो फिर हमारे साथ बोलते-बतियाते क्यों नही…?
व..वऊू… थोड़ा काम ज़्यादा रहता है, और वैसे भी आप हमारी चाची लगती हैं, तो आपसे क्या बात करें..? यही बस… और क्या, …थोड़ा असहज होते हुए जबाब दिया उन्होने…
सुना है आप हर किसी की मदद करते है, उनके काम आते हैं, तो हमारे दुख-दर्द की भी खैर खबर कर लिया करो,… थोड़ा मौसी भरे स्वर में बोली प्रेमा…
आपकी क्या परेशानी है बताइए मुझे, बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करने की कोशिश करूँगा….
अब तुम्हें क्या बताएँ लल्लाजी, तुम्हारे काका को तो हमारी कोई फिकर ही नही है, अभी एक साल भी नही हुआ हमें इस घर आए हुए, और वो हमसे अभी से दूर-दूर रहने लगे हैं…, अब नही बनता था तो शादी क्यों की..? बात को लपेटते हुए कहा प्रेमा ने...
अब कुछ-2 रामसिंघ की समझ में आने लगा था कि काकी कहना क्या चाहती है, फिर्भी उन्होने अंजान बनते हुए कहा….
तो काकी अब इसमें में क्या कर सकता हूँ भला…? काका का काम तो काका ही कर सकते हैं ना…
तुम चाहो तो अपने काका से भी अच्छा काम कर सकते हो हमारे लिए…., और ये कहकर प्रेमा रामसिंघ की पीठ से सॅट गयी, और अपनी दोनो लंबी-लंबी बाहें उनके सीने पर लपेट कर अमरबेल की तरह लिपट गयी…
प्रेमा काकी से इस तरह की हरकत की उम्मीद नही थी रामसिंघ को…, उन्होने काकी के हाथ पकड़े और उन्हें अपने से अलग करते हुए कहा…
ये ठीक नही है काकी, और वहाँ से चले गये…..
उसी शाम जब वो गाओं पहुँचे, तो वहाँ चौपाल पर बैठे लोग आपस में बातें कर रहे थे, रामसिंघ भी चर्चा में शामिल हो गये…
जैसे ही उन्हें लोगों के बीच हो रही चर्चा का पता लगा, उनका मुँह खुला का खुला रह गया, और सकते में पड़ गये….
चौपाल की चर्चा का विषय था “रामचंद की प्रेमा भाग गई” जैसे ही ये बात रामसिंघ को पता लगी, फ़ौरन उनके दिमाग़ में सुबह वाली अपनी और प्रेमा काकी की मुलाकात घूम गई, कैसे वो उससे लिपट गयी और क्यों?…फिर भी उन्होने और ज़्यादा जानकारी के लिए वहाँ बैठे लोगों से पुछा…
राम सिंग- आख़िर हुआ क्या था..? असल मे ये नौबत क्यों और कैसे बनी..??
आदमी1- ज़्यादा तो पता नही चला.. लेकिन कुछ तो हुआ है, जो वो रामचंद काका से झगड़ा करके अपने कपड़े-लत्ते समेट कर चली गयी..
आदमी2- और वो काका को धमका भी गयी है, कि अगर तुम या कोई और तुम्हारे घर से मुझे लेने आया और ज़बरदस्ती की, तो में उसका गला काट दूँगी या खुद मर जाउन्गि…
काका और उनके घरवाले डरे हुए हैं… किसी की हिम्मत भी नही हुई उसे रोकने की, और वो अकेली ही चली गयी..
अपने निचले होंठ के किनारे को दाँतों में दवाके बड़े मादक अंदाज में प्रेमा काकी ने रामसिंघ को पुकारा…… लल्ला जी ज़रा सुनो तो…
रामसिंघ ठितके, और उनकी ओर मुड़ते हुए पुछा जी काकी…
थोड़ा बहुत हमारे पास भी बैठ लिया करो… तुम तो हमारी ओर देखते तक नही, ऐसे बुरे लगते हैं तुम्हें…??
अरे नही काकी.. आप तो बहुत अच्छी लगती हो, आपको कॉन बुरा कह सकता है भला… थोड़ा सकुचाते हुए जबाब दिया रामसिंघ ने…
तो फिर हमारे साथ बोलते-बतियाते क्यों नही…?
व..वऊू… थोड़ा काम ज़्यादा रहता है, और वैसे भी आप हमारी चाची लगती हैं, तो आपसे क्या बात करें..? यही बस… और क्या, …थोड़ा असहज होते हुए जबाब दिया उन्होने…
सुना है आप हर किसी की मदद करते है, उनके काम आते हैं, तो हमारे दुख-दर्द की भी खैर खबर कर लिया करो,… थोड़ा मौसी भरे स्वर में बोली प्रेमा…
आपकी क्या परेशानी है बताइए मुझे, बस में हुआ तो ज़रूर पूरी करने की कोशिश करूँगा….
अब तुम्हें क्या बताएँ लल्लाजी, तुम्हारे काका को तो हमारी कोई फिकर ही नही है, अभी एक साल भी नही हुआ हमें इस घर आए हुए, और वो हमसे अभी से दूर-दूर रहने लगे हैं…, अब नही बनता था तो शादी क्यों की..? बात को लपेटते हुए कहा प्रेमा ने...
अब कुछ-2 रामसिंघ की समझ में आने लगा था कि काकी कहना क्या चाहती है, फिर्भी उन्होने अंजान बनते हुए कहा….
तो काकी अब इसमें में क्या कर सकता हूँ भला…? काका का काम तो काका ही कर सकते हैं ना…
तुम चाहो तो अपने काका से भी अच्छा काम कर सकते हो हमारे लिए…., और ये कहकर प्रेमा रामसिंघ की पीठ से सॅट गयी, और अपनी दोनो लंबी-लंबी बाहें उनके सीने पर लपेट कर अमरबेल की तरह लिपट गयी…
प्रेमा काकी से इस तरह की हरकत की उम्मीद नही थी रामसिंघ को…, उन्होने काकी के हाथ पकड़े और उन्हें अपने से अलग करते हुए कहा…
ये ठीक नही है काकी, और वहाँ से चले गये…..
उसी शाम जब वो गाओं पहुँचे, तो वहाँ चौपाल पर बैठे लोग आपस में बातें कर रहे थे, रामसिंघ भी चर्चा में शामिल हो गये…
जैसे ही उन्हें लोगों के बीच हो रही चर्चा का पता लगा, उनका मुँह खुला का खुला रह गया, और सकते में पड़ गये….
चौपाल की चर्चा का विषय था “रामचंद की प्रेमा भाग गई” जैसे ही ये बात रामसिंघ को पता लगी, फ़ौरन उनके दिमाग़ में सुबह वाली अपनी और प्रेमा काकी की मुलाकात घूम गई, कैसे वो उससे लिपट गयी और क्यों?…फिर भी उन्होने और ज़्यादा जानकारी के लिए वहाँ बैठे लोगों से पुछा…
राम सिंग- आख़िर हुआ क्या था..? असल मे ये नौबत क्यों और कैसे बनी..??
आदमी1- ज़्यादा तो पता नही चला.. लेकिन कुछ तो हुआ है, जो वो रामचंद काका से झगड़ा करके अपने कपड़े-लत्ते समेट कर चली गयी..
आदमी2- और वो काका को धमका भी गयी है, कि अगर तुम या कोई और तुम्हारे घर से मुझे लेने आया और ज़बरदस्ती की, तो में उसका गला काट दूँगी या खुद मर जाउन्गि…
काका और उनके घरवाले डरे हुए हैं… किसी की हिम्मत भी नही हुई उसे रोकने की, और वो अकेली ही चली गयी..
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
रामसिंघ को पूरी बात समझ में आ गई कि प्रेमा क्यों घर छोड़ के चली गयी है, फिर वो थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके अपने घर आए और खाना वाना खा पीकर रामचंद काका के पास पहुँचे…
राम राम काका….. राम राम बेटा राम सिंग..., आओ-आओ कैसे हो, और इस वक़्त कैसे आना हुआ… ?
रामसिंघ- क्या काका, हमें आप अपना हितेशी नही समझते क्या..?
काका- क्यों ऐसा क्यों बोल रहे हो …?
रामसिंघ- गाओं में चर्चा है कि, ककीिई…मतलबव....नाराज़ होके…. चली गई हैं अपनी माँ के घर… थोड़ी हिचकिचाते हुए पुछा…
काका – हां यार… पता नही क्या हुआ उसको एक साथ, में खेत में काम कर रहा था, दोपहर में आई मेरे पास और झगड़ा करने लगी, कि तुम्हें सिर्फ़ काम-काम और सिर्फ़ काम ही दिखता है, घर में नई बीबी है उसकी कोई फिकर नही है…
मेने उसे बहुत समझाने की कोशिश कि और पुछा कि बात क्या है, लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और भनभनाते हुए वहाँ से चली आई,
पीछे-2 में भी आया और उसको समझाने लगा, लेकिन वो तो ज़िद पकड़ के बैठ गई कि अब मुझे तुम्हारे साथ नही रहना है, में अपने घर जा रही हूँ.. और खबरदार अगर मुझे लेने आए या किसी और को भेजा तो में या तो उसका कतल् कर दूँगी या खुद मर जाउन्गि.
मेरे तो हाथ-पैर फूल गये और डर के मारे मैं उसे रोकने की कोशिश भी नही कर पाया फिर, …थोड़ा रुक कर हताशा भरी आवाज़ में बोले…
अब क्या होगा बेटा…? हमारी तो कुछ समझ में नही आरहा… छोटे भाई की भी शादी नही हो पा रही, और अगर ये भी नही आई तो हमारा तो वंश ही डूब जाएगा….
रामसिंघ- आप चिंता मत करो काका… में कुछ हल निकालता हूँ…
काका – क्या कर सकोगे अब तुम…? अगर तुम्हारे पास कोई रास्ता है, ऐसा हो गया तो जीवन भर हम तुम्हारे अहसानमंद रहेंगे.. राम सिंग…, लेकिन ये होगा कैसे..?
उसकी आप चिंता मत करो.., जानकी भैया की ससुराल पड़ोस में ही है, और वहाँ के कुछ जाट जिनका आस-पास अच्छा प्रभाव है, वो मुझे जानते हैं, और बहुत मानते भी है, उनकी बात कोई नही टाल सकता…
लेकिन इससे तो बात फैल जाएगी, और हमारी कितनी बदनामी होगी, ये तो सोचो…
अरे काका… उसकी आप चिंता मत करो, में बात को सीधे-2 नही करूँगा, आप बेफिकर रहो और भरोसा रखो… सब ठीक हो जाएगा…
दूसरे दिन सुबह-2 राम सिंग चल दिए काका की ससुराल, और 2-3 घंटे की पैदल यात्रा के बाद करीब 10 बजे वो उनकी ससुराल में थे..
उधर काका की ससुराल में, प्रेमा घर पहुँची, तो उनके माँ-बाप भाई, सोच में पड़ गये, कि ये कैसे अकेली आ गयी वो भी सारे कपड़े-लत्ते समेट कर और सवालों की बौछार कर दी…
बाकी सब को तो उन्होने ज़्यादा कुछ नही बताया, लेकिन अकेले में अपनी माँ को सारी बात बता दी कि वो वहाँ क्यों खुश नही है, और अब वो नही जाएगी वहाँ पर…, और अगर तुम भी नही रखोगे तो में यहाँ से भी कहीं और चली जाउन्गी..,
माँ को लगा, कि अगर ज़्यादा कुछ इसको कहा तो बात और बिगड़ सकती है इसलिए वो चुप हो गयी थी…
राम सिंग जब प्रेमा के घर पहुँचे तो उस समय घर पर उनकी माँ और वोही थी, बाकी लोग खेतों में काम कर रहे थे…,
जैसे ही प्रेमा की नज़र राम सिंग पर पड़ी, मन ही मन वो बहुत खुश हुई, लेकिन प्रकट रूप से वो भड़क कर गुस्सा दिखाते हुए बोली…..,
क्यों आए हो यहाँ? उसी बुड्ढे ने भेजा होगा तुम्हें? है ना? साले की गान्ड में दम नही था तो व्याह क्यों किया? नही जाउन्गी अब वहाँ.
राम सिंग थोड़ा मुस्कराते हुए बोले….,, अरे.. अरे.. काकी थोड़ा साँस तो लेने दो, और घर आए मेहमान को ना चाइ, ना पानी कुछ नही पुछा और चढ़ दौड़ी आप तो मेरे उपर कम-से-कम सुसताने तो दो मुझे…
प्रेमा की माँ… आओ, आओ बेटा बैठो, अरे प्रेमा तेरा गुस्सा उन लोगों से है, कम-से-कम इनकी थोड़ी बहुत आवभगत तो कर, चाइ-पानी पिला…
चाइ पानी ख़तम करने के बाद, प्रेमा अपनी माँ से बोली…., माँ तुम थोड़ा खेतो की तरफ घूम के आओ, मुझे इनसे अकेले में बात करनी है…
माँ जब बाहर चली गयी, तो प्रेमा तुरंत लपक कर राम सिंग के हाथ पकड़ कर बोली… क्यों आए हो अब यहाँ ?
देखो काकी..., आपको ऐसा नही करना चाहिए था, उनकी नही तो कम-से-कम आपने माँ-बाप की मान मर्यादा का तो ख्याल करना चाहिए था ..,
अच्छा !! और में अपनी जवानी जो अभी ठीक से शुरू भी नही हुई है, उसे ऐसे ही बर्बाद कर लूँ..? तुम भी जानते हो वो बुड्ढ़ा मुझे कितने दिन सुख दे पाएगा…? कान खोल कर सुनलो… उसके भरोसे तो में वहाँ नही रह सकती अब…
तो फिर क्या सोचा है आगे का…? मन टटोला राम सिंग ने प्रेमा का..
अभी तो कुछ नही, लेकिन कोई ना कोई तो मिलेगा, जो मेरे लायक हो और खुश रख सके ..
तो और कोई रास्ता नही है, जिससे आप काका के पास वापस लौट सको…., जानते हुए भी पुछा रामसिंघ ने…
प्रेमा भड़क कर…. रास्ता था तो..ओ.. , वो तुमने बंद कर दिया… में तुम्हें शुरू से ही पसंद करती थी, और सोचा था इसी के सहारे पड़ी रहूंगी यहाँ अगर ये अपनाले तो… लेकिन सब की इच्छानुसार सब कुछ तो नही होता है ना, … तो…अब..,
रामसिंघ- मुस्कराते हुए… में ये कहूँ कि वो रास्ता अभी भी खुल सकता है तो…..
सचह…. ! सच कह रहे हो तुम…. ओह्ह्ह… रामू तुम नही जानते, में तुम्हे किस हद तक पसंद करती हूँ… यह कह कर काकी, रामसिंघ के सीने से छिप्कलि की तरह चिपक गयी…
अगर तुम चाहो, तो जीवन भर में उस बुड्ढे के लूंज से खूँटे से बँधी रहूंगी और कोई शिकायत भी नही करूँगी, लेकिन तुम्हें वादा करना होगा, कि तुम मुझे हमेशा खुस रखोगे अपने इस औजार से… ये कह कर उन्होने उनके लंड को धोती के उपर से ही कस के मसल दिया..
वादा तो नही कर सकता काकी…ईई.., आह… ससुउउहह…, हां.. कोशिससश..आ.. करूँगा की आपको ज़्यादा तड़पना ना पड़े कभी, और ये कह कर उन्होने उसके कड़क 32” चुच्छे अपने कठोर और बड़े-बड़े हाथों से कस कर मसल दिए….
आआययईीीई…… रामुऊऊउ, क्या करते हो धीर्रररीए रजाअ…, दर्द होता है… और उचक कर रामसिंघ के होठों पे टूट पड़ी… किसी भूखी शेरनी की तरह….मानो उन्हें वो कच्चा ही चवा जाएगी….
प्रेमा वासना की आग में तड़प रही थी, वो रामसिंघ के होठों को अपने मुँह में भर कर लगभग चवाने सी लगी, उधर रामसिंघ ने भी अपना मुँह खोल दिया और अपनी मोटी लपलपाति जीभ को प्रेमा के मुँह में ठूंस दिया…,
एक दूसरे की जीभ आपस में कुस्ति करने लगी, खड़े-खड़े ही दोनों के शरीर काम वासना के आग से भभकने लगे…
कितनी ही देर वो एक-दूसरे में गूँथे रहे… प्रेमा किस तोड़ते हुए अपनी नशीली आँखें राम सिंग की आँखों में डाल के बोली…..
ऊहह… रामू में बहुत प्यासी हूँ, भगवान के लिए मेरी प्यास बुझा दो ना….
अरे मेरी जान... काकी…. अब देख में तेरी प्यास कैसे बुझाता हूँ… और उसके ब्लाउज को झटके से फाड़ दिया….और उसकी गोल-2 चुचियों जो ठीक रामसिंघ के हाथों के माप की थी हाथों में भर के ज़ोर से मींज दिया..
ऊओह…. ससिईइ… आअहह मेरे राजा, अब तो काकी सिियहह… कहना बंद कर्दे… में तुम्हारी काकी दिखती हूँ.?. और उसने रामू के लंड को धोती से बाहर निकाल लिया…
8”+ लंबा और 3.5” मोटा लंड जब प्रेमा ने हाथ में लपेटा, जो पूरी तरह हाथ में नही आया, एकदम कड़क, बबूल के चिकने और तेल पिलाए हुए डंडे की तरह,
हाई… मेरी रानी, तू तो अब मेरी काकी ही क्या, सब कुछ हो गई….अब ये दरवाज़ा तो बंद कर्दे रानी…. फिर देख तुझे कहाँ-कहाँ की सैर कराता हूँ अपने खुन्टे पे बिठा के….
प्रेमा ने लपक के दरवाजे को अंदर बंद करके कुण्डी लगा दी….
राम राम काका….. राम राम बेटा राम सिंग..., आओ-आओ कैसे हो, और इस वक़्त कैसे आना हुआ… ?
रामसिंघ- क्या काका, हमें आप अपना हितेशी नही समझते क्या..?
काका- क्यों ऐसा क्यों बोल रहे हो …?
रामसिंघ- गाओं में चर्चा है कि, ककीिई…मतलबव....नाराज़ होके…. चली गई हैं अपनी माँ के घर… थोड़ी हिचकिचाते हुए पुछा…
काका – हां यार… पता नही क्या हुआ उसको एक साथ, में खेत में काम कर रहा था, दोपहर में आई मेरे पास और झगड़ा करने लगी, कि तुम्हें सिर्फ़ काम-काम और सिर्फ़ काम ही दिखता है, घर में नई बीबी है उसकी कोई फिकर नही है…
मेने उसे बहुत समझाने की कोशिश कि और पुछा कि बात क्या है, लेकिन उसने मेरी एक ना सुनी और भनभनाते हुए वहाँ से चली आई,
पीछे-2 में भी आया और उसको समझाने लगा, लेकिन वो तो ज़िद पकड़ के बैठ गई कि अब मुझे तुम्हारे साथ नही रहना है, में अपने घर जा रही हूँ.. और खबरदार अगर मुझे लेने आए या किसी और को भेजा तो में या तो उसका कतल् कर दूँगी या खुद मर जाउन्गि.
मेरे तो हाथ-पैर फूल गये और डर के मारे मैं उसे रोकने की कोशिश भी नही कर पाया फिर, …थोड़ा रुक कर हताशा भरी आवाज़ में बोले…
अब क्या होगा बेटा…? हमारी तो कुछ समझ में नही आरहा… छोटे भाई की भी शादी नही हो पा रही, और अगर ये भी नही आई तो हमारा तो वंश ही डूब जाएगा….
रामसिंघ- आप चिंता मत करो काका… में कुछ हल निकालता हूँ…
काका – क्या कर सकोगे अब तुम…? अगर तुम्हारे पास कोई रास्ता है, ऐसा हो गया तो जीवन भर हम तुम्हारे अहसानमंद रहेंगे.. राम सिंग…, लेकिन ये होगा कैसे..?
उसकी आप चिंता मत करो.., जानकी भैया की ससुराल पड़ोस में ही है, और वहाँ के कुछ जाट जिनका आस-पास अच्छा प्रभाव है, वो मुझे जानते हैं, और बहुत मानते भी है, उनकी बात कोई नही टाल सकता…
लेकिन इससे तो बात फैल जाएगी, और हमारी कितनी बदनामी होगी, ये तो सोचो…
अरे काका… उसकी आप चिंता मत करो, में बात को सीधे-2 नही करूँगा, आप बेफिकर रहो और भरोसा रखो… सब ठीक हो जाएगा…
दूसरे दिन सुबह-2 राम सिंग चल दिए काका की ससुराल, और 2-3 घंटे की पैदल यात्रा के बाद करीब 10 बजे वो उनकी ससुराल में थे..
उधर काका की ससुराल में, प्रेमा घर पहुँची, तो उनके माँ-बाप भाई, सोच में पड़ गये, कि ये कैसे अकेली आ गयी वो भी सारे कपड़े-लत्ते समेट कर और सवालों की बौछार कर दी…
बाकी सब को तो उन्होने ज़्यादा कुछ नही बताया, लेकिन अकेले में अपनी माँ को सारी बात बता दी कि वो वहाँ क्यों खुश नही है, और अब वो नही जाएगी वहाँ पर…, और अगर तुम भी नही रखोगे तो में यहाँ से भी कहीं और चली जाउन्गी..,
माँ को लगा, कि अगर ज़्यादा कुछ इसको कहा तो बात और बिगड़ सकती है इसलिए वो चुप हो गयी थी…
राम सिंग जब प्रेमा के घर पहुँचे तो उस समय घर पर उनकी माँ और वोही थी, बाकी लोग खेतों में काम कर रहे थे…,
जैसे ही प्रेमा की नज़र राम सिंग पर पड़ी, मन ही मन वो बहुत खुश हुई, लेकिन प्रकट रूप से वो भड़क कर गुस्सा दिखाते हुए बोली…..,
क्यों आए हो यहाँ? उसी बुड्ढे ने भेजा होगा तुम्हें? है ना? साले की गान्ड में दम नही था तो व्याह क्यों किया? नही जाउन्गी अब वहाँ.
राम सिंग थोड़ा मुस्कराते हुए बोले….,, अरे.. अरे.. काकी थोड़ा साँस तो लेने दो, और घर आए मेहमान को ना चाइ, ना पानी कुछ नही पुछा और चढ़ दौड़ी आप तो मेरे उपर कम-से-कम सुसताने तो दो मुझे…
प्रेमा की माँ… आओ, आओ बेटा बैठो, अरे प्रेमा तेरा गुस्सा उन लोगों से है, कम-से-कम इनकी थोड़ी बहुत आवभगत तो कर, चाइ-पानी पिला…
चाइ पानी ख़तम करने के बाद, प्रेमा अपनी माँ से बोली…., माँ तुम थोड़ा खेतो की तरफ घूम के आओ, मुझे इनसे अकेले में बात करनी है…
माँ जब बाहर चली गयी, तो प्रेमा तुरंत लपक कर राम सिंग के हाथ पकड़ कर बोली… क्यों आए हो अब यहाँ ?
देखो काकी..., आपको ऐसा नही करना चाहिए था, उनकी नही तो कम-से-कम आपने माँ-बाप की मान मर्यादा का तो ख्याल करना चाहिए था ..,
अच्छा !! और में अपनी जवानी जो अभी ठीक से शुरू भी नही हुई है, उसे ऐसे ही बर्बाद कर लूँ..? तुम भी जानते हो वो बुड्ढ़ा मुझे कितने दिन सुख दे पाएगा…? कान खोल कर सुनलो… उसके भरोसे तो में वहाँ नही रह सकती अब…
तो फिर क्या सोचा है आगे का…? मन टटोला राम सिंग ने प्रेमा का..
अभी तो कुछ नही, लेकिन कोई ना कोई तो मिलेगा, जो मेरे लायक हो और खुश रख सके ..
तो और कोई रास्ता नही है, जिससे आप काका के पास वापस लौट सको…., जानते हुए भी पुछा रामसिंघ ने…
प्रेमा भड़क कर…. रास्ता था तो..ओ.. , वो तुमने बंद कर दिया… में तुम्हें शुरू से ही पसंद करती थी, और सोचा था इसी के सहारे पड़ी रहूंगी यहाँ अगर ये अपनाले तो… लेकिन सब की इच्छानुसार सब कुछ तो नही होता है ना, … तो…अब..,
रामसिंघ- मुस्कराते हुए… में ये कहूँ कि वो रास्ता अभी भी खुल सकता है तो…..
सचह…. ! सच कह रहे हो तुम…. ओह्ह्ह… रामू तुम नही जानते, में तुम्हे किस हद तक पसंद करती हूँ… यह कह कर काकी, रामसिंघ के सीने से छिप्कलि की तरह चिपक गयी…
अगर तुम चाहो, तो जीवन भर में उस बुड्ढे के लूंज से खूँटे से बँधी रहूंगी और कोई शिकायत भी नही करूँगी, लेकिन तुम्हें वादा करना होगा, कि तुम मुझे हमेशा खुस रखोगे अपने इस औजार से… ये कह कर उन्होने उनके लंड को धोती के उपर से ही कस के मसल दिया..
वादा तो नही कर सकता काकी…ईई.., आह… ससुउउहह…, हां.. कोशिससश..आ.. करूँगा की आपको ज़्यादा तड़पना ना पड़े कभी, और ये कह कर उन्होने उसके कड़क 32” चुच्छे अपने कठोर और बड़े-बड़े हाथों से कस कर मसल दिए….
आआययईीीई…… रामुऊऊउ, क्या करते हो धीर्रररीए रजाअ…, दर्द होता है… और उचक कर रामसिंघ के होठों पे टूट पड़ी… किसी भूखी शेरनी की तरह….मानो उन्हें वो कच्चा ही चवा जाएगी….
प्रेमा वासना की आग में तड़प रही थी, वो रामसिंघ के होठों को अपने मुँह में भर कर लगभग चवाने सी लगी, उधर रामसिंघ ने भी अपना मुँह खोल दिया और अपनी मोटी लपलपाति जीभ को प्रेमा के मुँह में ठूंस दिया…,
एक दूसरे की जीभ आपस में कुस्ति करने लगी, खड़े-खड़े ही दोनों के शरीर काम वासना के आग से भभकने लगे…
कितनी ही देर वो एक-दूसरे में गूँथे रहे… प्रेमा किस तोड़ते हुए अपनी नशीली आँखें राम सिंग की आँखों में डाल के बोली…..
ऊहह… रामू में बहुत प्यासी हूँ, भगवान के लिए मेरी प्यास बुझा दो ना….
अरे मेरी जान... काकी…. अब देख में तेरी प्यास कैसे बुझाता हूँ… और उसके ब्लाउज को झटके से फाड़ दिया….और उसकी गोल-2 चुचियों जो ठीक रामसिंघ के हाथों के माप की थी हाथों में भर के ज़ोर से मींज दिया..
ऊओह…. ससिईइ… आअहह मेरे राजा, अब तो काकी सिियहह… कहना बंद कर्दे… में तुम्हारी काकी दिखती हूँ.?. और उसने रामू के लंड को धोती से बाहर निकाल लिया…
8”+ लंबा और 3.5” मोटा लंड जब प्रेमा ने हाथ में लपेटा, जो पूरी तरह हाथ में नही आया, एकदम कड़क, बबूल के चिकने और तेल पिलाए हुए डंडे की तरह,
हाई… मेरी रानी, तू तो अब मेरी काकी ही क्या, सब कुछ हो गई….अब ये दरवाज़ा तो बंद कर्दे रानी…. फिर देख तुझे कहाँ-कहाँ की सैर कराता हूँ अपने खुन्टे पे बिठा के….
प्रेमा ने लपक के दरवाजे को अंदर बंद करके कुण्डी लगा दी….
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
दोस्तो – चूँकि ये कहानी पुराने समय की, एक गाँव की कहानी है… सो क्वाइट पासिबल, दट सम वन मे अनेबल टू अंडरस्टॅंड वर्डिंग, प्लीज़ सजेस्ट इफ़ एनिवन फेसिंग दिस.
दोनो ने फटाफट अपने-अपने कपड़े उतार फेंके और मादर जात नंगे हो गये, रामसिंघ प्रेमा के शरीर की बनावट में ही खो गये, वो पहले अपनी नज़रों से उसके शरीर का रस्पान करते रहे, हाथ भी क्यों पीछे रहते, नज़रों के पीछे-2 वो भी दोनो अपना काम बखूबी निभाने लगे..
हिरनी जैसी कॅटिली आँखों में जैसे वो खो से गये, अपने डाए हाथ का अंगूठा उसके होंठो पर रखा और उनको हल्के से मसला, प्रेमा की आँखे बंद हो चुकी थीं, और वो आनेवाले सुखद पलों के इंतजार में खो सी गयी..
उसके गालों पर अपने खुरदुरे हाथ से सहलाते हुए, रामसिंघ के हाथ उसकी सुराहीदार गर्दन से होते हुए उसके वक्षस्थल पर आ जमे, दोनो कबूतरों को दोनो हाथों में भरकर ज़ोर से मसल दिया….
आसस्स्सिईईईईय्ाआहह….. धीरे… हीईीई… जालिमम्म्म, … ऐसे तो ना तडपा…, इन्हें चूस ले रजाआ…. आहह… बहुत परेशान करते हैं मुझी…. सीईईई..आअहह….
रामसिंघ ने अपनी जीभ के अगले सिरे से एक निपल को हल्के से कुरेदा, और दूसरे निपल को उंगली और अंगूठे में पकड़ के मरोड़ दिया…
प्रेमा की तो जैसे जान ही अटक गयी…. आअहह…. ससिईइ… ऊहह…उउंम्म… हाईए… चूसो इन्हें… निकाल दो इनका सारा रस्स्स….ऊहह माआ….हाईए...रामम….ये क्या हो रहा है….मुझे…..
फिर रामसिंघ ने चुचकों की चुसाइ शुरू करदी… दोनो चुचियों को बारी-2 से पूरी की पूरी मुँह भर-भर के जो चुसाइ की, 5 मिनट में प्रेमा की चूत पानी देने लगी… हाए राम…. चुचियों से ही पानी निकलवा दिया, तो जब चुदाई करोगे तब क्या होगा….
देखती जा मेरी रानी… चल आ अब ज़रा अपने प्यारे खिलोने की सेवा तो कर… कहकर अपना सोट जैसा लंड प्रेमा के मुँह में ठूंस दिया, प्रेमा हक्की-बक्की रह गई, उसे पता ही नही था कि लंड मुँह में भी लिया जाता है…??
शुरू में तो प्रेमा ने आनाकानी की लेकिन जैसे ही उसने हाथ से सुपाडे की चमड़ी पीछे की और सुर्ख लाल शिमला के आपल जैसा सुपाड़ा देखा और उसपे एक मोती जैसा दिखाई दिया, उसे चाटने का मन किया, और चाट भी लिया..
उम्म्म… ये तो टेस्टी है, हॅम… गल्प…गल्प उसे चाटने लगी, साथ-साथ हाथों से मसलती भी जारही थी,
रामसिंघ तो जैसे सातवे आसमान पर थे, मज़े में उन्होने सर को दवाके प्रेमा का मुँह अपने हथियार पे दवा दिया… प्रेमा अब मज़े ले-लेकर आधे लंड को मुँह में लेकर चूसे रही थी और आधे को मुट्ठी में दवा कर मुठिया भी रही थी.
कभी-कभी वो उनके नीचे लटके हुए दो आंडो को भी मुँह में भर कर चूसे लेती… जिससे रामसिंघ का मज़ा चौगुना हो गया,
थोड़ी देर में उन्हें लगने लगा कि, ये तो साली चूस के ही निबटा देगी.. उन्होने उसका मुँह अलग किया… और उसे धक्का देकर कमरे में पड़े पलंग के उपर धकेल दिया…
प्रेमा अपनी दोनों पतली एवं सुडोल टाँगे चौड़ी करके लेट गयी, घुटनो के उपर उसकी चिकनी और मुलायम गोल-गोल जंघें मानो, अविकसित केले का तना….
आहह… देखकर रामसिंघ के मुँह में पानी आगया, वो उसकी चिकनी जाँघो को सहलाते हुए अपने हाथो को छोटे-छोटे बालों से युक्त उसकी चूत पर लेगये…
एक के बाद एक दोनो हाथों को उसकी चूत के उपर फेरा…., और फिर नीचे की तरफ से हाथ को उल्टा करके, अपनी उंगिलयों से अंदर की तरफ से सहलाया….
प्रेमा आँखें बंद किए आनेवाले परमानंद की कल्पना में खोई हुई थी..
अपने दोनो हाथों के अंगूठे से उसकी चूत की फांकों को अलग किया…., चूत का अन्द्रुनि गुलाबी रंग का नज़ारा देखकर रामसिंघ की जीभ स्वतः ही उसपे चली गयी…
अपनी जीभ से दो-तीन बार उपर नीचे करके उसे कुरेदा, और फिर झटके से उसके क्लरीटस को उठा दिया…, कौए की चोंच जैसे उसके भागनाशे को मुँह में लेकर चूसने लगे…
प्रेमा आनंद सागर में गोते लगा रही थी, उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फुट रहीं थी,……
ऊओह…… रामुऊऊ…. आअहह… तुम कितने अच्चीए.. हो.. हाअययईए… मेरे राजा… उउउइइ…..म्माआ…..सस्सिईईईईय्ाआहह…
जीभ चूत की उपरी मंज़िल पे काम कर रही थी, इधर बेसमेंट को खाली देख कर, उनकी उंगलिया हरकत में आ गयी, झट से दो उंगलिया खचक से अंदर पेल दी…
उनकी एक उंगली ही एक साधारण लंड के जितनी मोटी थी, यहाँ तो दो-दो उंगलिया वो भी जड़ तक पेल रखी थी… प्रेमा सिसिया कर उठी,
जीभ और उंगलियों की मार, प्रेमा की चूत ज़्यादा देर तक नही झेल पाई और उसकी कमर स्वतः ही धनुष की तरह उपर को उठती चली गयी, और चीख मार कर बुरी तरह से झड़ने लगी…
आजतक, अपने जीवन में पहली बार उसे इस तरह का मज़ा मिला था, वो सोचने लगी, हे राम, बिना लंड के इतना मज़ा आया है, जब इसका लंड मेरी चूत को पेलेगा तब क्या होगा…?
आनेवाले समय में मिलनेवाले मज़े की परिकल्पना से ही वो सिहर उठी..और उसके शरीर में तरंगें सी उठने लगी……
प्रेमा अपने हाल ही में हुए ऑर्गॅनिसम की खुमारी में आँख बंद किए पलंग पे पड़ी थी, लेकिन रामसिंघ का लंड अब एक पल के लिए भी इंतजार करने को राज़ी नही था,
उन्होने अपना हाथ, उसकी चूत पे फिराया जो उसके रस से सराबोर थी, अपने मूसल को हाथ में पकड़ के उसकी चूत के उपर घिसा दो-तीन बार, प्रेमा को लगा जैसे कोई गरम रोड उसकी चूत के उपर रगड़ रहा हो.
चूत की फांकों को दोनो हाथों के अंगूठे से खोल कर अपने सुपाडे को उसके मुंहाने पे रख के हल्का सा धकेला, जिसकी वजह से लंड का सुपाडा चिकनी चूतरस से भीगी चूत में सॅट से फँस गया,
रामसिंघ के लंड का सुपाडा भी कम-से-कम दो-ढाई इंच लंबा और साडे तीन इंच से भी ज़्यादा मोटा था.
जैसे ही लंड का सुपाडा चूत में फिट हुआ, प्रेमा की हल्के दर्द और मज़े की वजह से आहह निकल गयी….
रामसिंघ की तुलना में प्रेमा का शरीर आधे से भी कम था, पतली कमर जो उनके हाथों में अच्छे से पकड़ में आरहि थी,
कमर के दोनो ओर हाथ रखकर उपर की ओर बढ़े और उनकी चुचियों पर पहुँच कर मसल डाला…
धीरे-धीरे लेकिन कड़े हाथों से मींजना शुरू कर दिया, दो-तीन रागडों में ही प्रेमा की चुचियाँ लाल सुर्ख हो गयी, दोनो निपल चोंच सतर करके 1” तक खड़े हो हो गये,
प्रेमा की हालत दर्द और मज़े की वजह से कराब होती जा रही थी, और उसके मुँह से स्वतः ही सिसकियों के साथ-2 अनाप-सनाप निकलने लगा…
दोनो ने फटाफट अपने-अपने कपड़े उतार फेंके और मादर जात नंगे हो गये, रामसिंघ प्रेमा के शरीर की बनावट में ही खो गये, वो पहले अपनी नज़रों से उसके शरीर का रस्पान करते रहे, हाथ भी क्यों पीछे रहते, नज़रों के पीछे-2 वो भी दोनो अपना काम बखूबी निभाने लगे..
हिरनी जैसी कॅटिली आँखों में जैसे वो खो से गये, अपने डाए हाथ का अंगूठा उसके होंठो पर रखा और उनको हल्के से मसला, प्रेमा की आँखे बंद हो चुकी थीं, और वो आनेवाले सुखद पलों के इंतजार में खो सी गयी..
उसके गालों पर अपने खुरदुरे हाथ से सहलाते हुए, रामसिंघ के हाथ उसकी सुराहीदार गर्दन से होते हुए उसके वक्षस्थल पर आ जमे, दोनो कबूतरों को दोनो हाथों में भरकर ज़ोर से मसल दिया….
आसस्स्सिईईईईय्ाआहह….. धीरे… हीईीई… जालिमम्म्म, … ऐसे तो ना तडपा…, इन्हें चूस ले रजाआ…. आहह… बहुत परेशान करते हैं मुझी…. सीईईई..आअहह….
रामसिंघ ने अपनी जीभ के अगले सिरे से एक निपल को हल्के से कुरेदा, और दूसरे निपल को उंगली और अंगूठे में पकड़ के मरोड़ दिया…
प्रेमा की तो जैसे जान ही अटक गयी…. आअहह…. ससिईइ… ऊहह…उउंम्म… हाईए… चूसो इन्हें… निकाल दो इनका सारा रस्स्स….ऊहह माआ….हाईए...रामम….ये क्या हो रहा है….मुझे…..
फिर रामसिंघ ने चुचकों की चुसाइ शुरू करदी… दोनो चुचियों को बारी-2 से पूरी की पूरी मुँह भर-भर के जो चुसाइ की, 5 मिनट में प्रेमा की चूत पानी देने लगी… हाए राम…. चुचियों से ही पानी निकलवा दिया, तो जब चुदाई करोगे तब क्या होगा….
देखती जा मेरी रानी… चल आ अब ज़रा अपने प्यारे खिलोने की सेवा तो कर… कहकर अपना सोट जैसा लंड प्रेमा के मुँह में ठूंस दिया, प्रेमा हक्की-बक्की रह गई, उसे पता ही नही था कि लंड मुँह में भी लिया जाता है…??
शुरू में तो प्रेमा ने आनाकानी की लेकिन जैसे ही उसने हाथ से सुपाडे की चमड़ी पीछे की और सुर्ख लाल शिमला के आपल जैसा सुपाड़ा देखा और उसपे एक मोती जैसा दिखाई दिया, उसे चाटने का मन किया, और चाट भी लिया..
उम्म्म… ये तो टेस्टी है, हॅम… गल्प…गल्प उसे चाटने लगी, साथ-साथ हाथों से मसलती भी जारही थी,
रामसिंघ तो जैसे सातवे आसमान पर थे, मज़े में उन्होने सर को दवाके प्रेमा का मुँह अपने हथियार पे दवा दिया… प्रेमा अब मज़े ले-लेकर आधे लंड को मुँह में लेकर चूसे रही थी और आधे को मुट्ठी में दवा कर मुठिया भी रही थी.
कभी-कभी वो उनके नीचे लटके हुए दो आंडो को भी मुँह में भर कर चूसे लेती… जिससे रामसिंघ का मज़ा चौगुना हो गया,
थोड़ी देर में उन्हें लगने लगा कि, ये तो साली चूस के ही निबटा देगी.. उन्होने उसका मुँह अलग किया… और उसे धक्का देकर कमरे में पड़े पलंग के उपर धकेल दिया…
प्रेमा अपनी दोनों पतली एवं सुडोल टाँगे चौड़ी करके लेट गयी, घुटनो के उपर उसकी चिकनी और मुलायम गोल-गोल जंघें मानो, अविकसित केले का तना….
आहह… देखकर रामसिंघ के मुँह में पानी आगया, वो उसकी चिकनी जाँघो को सहलाते हुए अपने हाथो को छोटे-छोटे बालों से युक्त उसकी चूत पर लेगये…
एक के बाद एक दोनो हाथों को उसकी चूत के उपर फेरा…., और फिर नीचे की तरफ से हाथ को उल्टा करके, अपनी उंगिलयों से अंदर की तरफ से सहलाया….
प्रेमा आँखें बंद किए आनेवाले परमानंद की कल्पना में खोई हुई थी..
अपने दोनो हाथों के अंगूठे से उसकी चूत की फांकों को अलग किया…., चूत का अन्द्रुनि गुलाबी रंग का नज़ारा देखकर रामसिंघ की जीभ स्वतः ही उसपे चली गयी…
अपनी जीभ से दो-तीन बार उपर नीचे करके उसे कुरेदा, और फिर झटके से उसके क्लरीटस को उठा दिया…, कौए की चोंच जैसे उसके भागनाशे को मुँह में लेकर चूसने लगे…
प्रेमा आनंद सागर में गोते लगा रही थी, उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फुट रहीं थी,……
ऊओह…… रामुऊऊ…. आअहह… तुम कितने अच्चीए.. हो.. हाअययईए… मेरे राजा… उउउइइ…..म्माआ…..सस्सिईईईईय्ाआहह…
जीभ चूत की उपरी मंज़िल पे काम कर रही थी, इधर बेसमेंट को खाली देख कर, उनकी उंगलिया हरकत में आ गयी, झट से दो उंगलिया खचक से अंदर पेल दी…
उनकी एक उंगली ही एक साधारण लंड के जितनी मोटी थी, यहाँ तो दो-दो उंगलिया वो भी जड़ तक पेल रखी थी… प्रेमा सिसिया कर उठी,
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
रामसिंघ ने अपने दोनो हाथों को उसके कंधों पे टिका के एक मास्टर स्ट्रोक मारा, नतीजा, मोटा सोटा 3/4 तक चूत में जाके फिट होगया,
झटके की वजह से और लंड की मोटाई के साथ-2 डंडे जैसी कठोरता की वजह से प्रेमा की चूत में दर्द की एक लहर सी उठी, जिस कारण से उसके मुँह से कराह फुट पड़ी….
ओह्ह्ह्ह… रामुऊऊ… मर गाइिईई…. थोड़ा आराम से डालो ना… मेरी जान निकली जा रही है…
क्यों रानी… इतना बड़ा अभी तक नही लिया क्या…??
नही ऐसी बात नही है, लेकिन तुम्हारा सोटा कड़क ज़्यादा है, इसलिए ये खूँटे की तरह छिल सा रहा है…
रामसिंघ ने धीरे-2 उतने ही लंबाई से धक्के मारना शुरू कर दिया… 15-20 धक्कों के बाद ही प्रेमा को मज़ा आना शुरू हो गया और वो भी अपनी कमर उचकाने लगी.
रामसिंघ ने उचित मौका देख कर, एक जोरदार हिट किया, और ये छक्का!!!
लंड पूरा का पूरा चूत में जाके फँस गया, प्रेमा को लगा कि लंड का सुपाडा उसकी बच्चेदानी के अंदर फँस गया है,
उसके गले से गॅन…गॅन, जैसी आवाज़ें निकलने लगी, और चूत बुरी तरह से फैल कर लंड को जगह देने के बाद एकदम सील हो गयी, हवा जाने तक की जगह नही बची थी,
प्रेमा ने जिस तरह की चुदाई की कल्पना की होगी, आज उसे वो मिल रही थी, लेकिन उसके लिए उसे बहुत कुछ सहना पड़ रहा था..
प्रेमा की पतली कमर को अपने मजबूत हाथों के बीच पकड़ कर धक्के मारते हुए बोले…. हाईए.. रानी, वाकई में तेरी चूत बड़ी कसी हुई है,
मेरे लंड को छोड़ने को तैयार ही नही है… एकदम से जकड लिया है साली ने, और लंबे-2 शॉट मारना शुरू कर दिया…
चूँकि वो उसकी कमर जकड़े हुए धक्के लगा रहे थे इस वजह से जब लंड को बाहर खींचते तो हाथो के दबाव से कमर नीचे हो जाती, और जब अंदर डालते तो हाथ उसे कमर पकड़ कर उपर की ओर उठा लेते, नतीजा… लंड धक्के दर धक्के एक नयी खोज करने लगा, और हर बार एक नयी गहराई तक चला जाता.
धक्कों की गति निरंतर बढ़ती ही जा रही थी… थोड़ी ही देर में प्रेमा की चूत में खलबली होने लगी और वो झड़ने लगी…
किंतु चूँकि लंड पूरी तरह से फँसा होने के कारण उसके पानी को बाहर निकलने का रास्ता नही मिल रहा था, जिस कारण से उसकी चूत लंड के लगातार घर्षण के कारण अजीब सी आवाज़ें करने लगी…
फुकच्छ…फुकच.. ठप्प..ठप्प की आवाज़ों से संगीत सा पैदा हो रहा था…
कई देर तक जब रामसिंघ के धक्के निरंतर जारी रहे तो प्रेमा से अब सहन करना मुश्किल हो रह था, चूत रस से फुल थी और अंदर ही अंदर प्रेशर बन रहा था…
लल्ला.. थोड़ा रूको ना प्लस्सस… थोड़ा सांस लेने दो… सुन कर रामसिंघ उसके उपर से उठ खड़े हुए, और प्रेमा को भी नीचे खड़ा कर दिया…
पलंग के नीचे घोड़ी बना के पीछे से लंड पेलते हुए पुछा,,, क्यों मेरी चुदेल काकी, अब तो चलेगी ना काका के पास….
हां मेरे लंड राजा… अब तो में वैसे भी यहाँ नही रह पाउन्गी तुमहरे लंड के बिना… तुम कहोगे तो कुए में भी कूद जाउन्गी…
चोदो… और जोरे से चोदो मेरी चूत के मालिक…. आहह… आजतक कहाँ थे… हाईए… बहुत मज़ा आरहा है, और कस कस कर अपनी गान्ड को उनके मूसल के उपर पटकने लगी..
लगातार धुआधार चुदाई का नतीजा, प्रेमा की चूत फिर से पानी छोड़ने की कगार पे आ गई…
जोरे सीई…. और जोरे से चोदो… हइई… में गैइइ…. ऊओह… म्माऐईयईईई…….आअहह…आयईयीईईई….. और चूत ने पानी छोड़ दिया..
इधर रामसिंघ भी अपनी चरम सीमा पर पहुच चुके थे… उनके धक्कों की रफ़्तार अप्रत्याशित तेज हो गयी… हुन्न…हुन्न. उनके मुँह से ऐसी आवाज़ें निकालने लगे मानो कोई कुल्हाड़ी से किसी पेड़ के तने को काट रहा हो…
झटके से लंड निकाला, प्रेमा को पलटा कर सीधा किया और गोद में उठाकर लंड दुबारा डाल कर चोदने लगे…
प्रेमा ने भी अपनी बाहें उनके गले में डाल दी, और मस्त कमर उच्छल-उच्छल के चुदने लगी.
अंत में रामसिंघ ने प्रेमा को अपने लंड के उपर बुरी तरह कस लिया, और अपने लंड से उसकी चूत में फाइरिंग शुरू कर दी…
वीर्य की तेज धार को अपनी चूत में महसूस करके, एक बार फिर उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया…
जैसे ही उनका वीर्यपात पूरा हुआ, गोद में लिए ही लिए वो पलंग पे पसर गये और प्रेमा को अपने उपर कर के जकड लिया…
कितनी ही देर तक पड़े रहने के बाद जब दोनो की साँसे संयत हुई तब उन्हें होश आया, और एक दूसरे की बगल में एक-दूसरे के उपरे टांगे लपेटे पड़े रहे…
मज़ा आया काकी….
फिर काकी…?? सीने में धौल जमाते हुए…, आज तो मेरी टंकी ही खाली करदी तुम्हारे इस मूसल लंड ने… सच में कमाल की चुदाई करते हो…
तो क्या कहूँ…?? हंसते हुए उसकी गान्ड के छेद को कुरेदते हुए..
कम-से-कम अकेले में तो नाम ले सकते हो, वैसे भी में तुमसे उम्र में तो छोटी ही हूँ 2-4 साल.
ठीक है मेरी जान.. अकेले में प्रेमा रानी कहा करूँगा और सबके सामने काकी.. ठीक है,,
हां ठीक है…
अब क्या सोचा है..?? कब लॉटोगी… घर,
अभी… तुम्हारे साथ,… क्यों अपने साथ नही ले चलोगे…??
ऐसा नही है, बात ये है कि अगर मेरे साथ देख कर दूसरे लोग कुछ उल्टा-सीधा सोचेंगे…, काका के अलावा और किसी को पता नही है, कि में तुम्हें मनाने आया हूँ, समझी…
तो क्या हुआ, मुझे एक-दो दिन कहीं दूसरी जगह छिपा देना, उसके बाद में अकेली घर चली जाउन्गी… पर अब तुमहरे लंड के बिना तो चैन नही पड़ेगा..
कुछ सोच कर, हमारे गन्ने के खेतों में रह लोगि…
हाँ क्यों नही, एक-दो दिन तो कहीं भी रह लूँगी, बस खाने-पीने का जुगाड़ कर देना, और ये लंड डालते रहना…
रामसिंघ हंसते हुए, तो ठीक है, हो जाओ तैयार फिर चलने को…..
झटके की वजह से और लंड की मोटाई के साथ-2 डंडे जैसी कठोरता की वजह से प्रेमा की चूत में दर्द की एक लहर सी उठी, जिस कारण से उसके मुँह से कराह फुट पड़ी….
ओह्ह्ह्ह… रामुऊऊ… मर गाइिईई…. थोड़ा आराम से डालो ना… मेरी जान निकली जा रही है…
क्यों रानी… इतना बड़ा अभी तक नही लिया क्या…??
नही ऐसी बात नही है, लेकिन तुम्हारा सोटा कड़क ज़्यादा है, इसलिए ये खूँटे की तरह छिल सा रहा है…
रामसिंघ ने धीरे-2 उतने ही लंबाई से धक्के मारना शुरू कर दिया… 15-20 धक्कों के बाद ही प्रेमा को मज़ा आना शुरू हो गया और वो भी अपनी कमर उचकाने लगी.
रामसिंघ ने उचित मौका देख कर, एक जोरदार हिट किया, और ये छक्का!!!
लंड पूरा का पूरा चूत में जाके फँस गया, प्रेमा को लगा कि लंड का सुपाडा उसकी बच्चेदानी के अंदर फँस गया है,
उसके गले से गॅन…गॅन, जैसी आवाज़ें निकलने लगी, और चूत बुरी तरह से फैल कर लंड को जगह देने के बाद एकदम सील हो गयी, हवा जाने तक की जगह नही बची थी,
प्रेमा ने जिस तरह की चुदाई की कल्पना की होगी, आज उसे वो मिल रही थी, लेकिन उसके लिए उसे बहुत कुछ सहना पड़ रहा था..
प्रेमा की पतली कमर को अपने मजबूत हाथों के बीच पकड़ कर धक्के मारते हुए बोले…. हाईए.. रानी, वाकई में तेरी चूत बड़ी कसी हुई है,
मेरे लंड को छोड़ने को तैयार ही नही है… एकदम से जकड लिया है साली ने, और लंबे-2 शॉट मारना शुरू कर दिया…
चूँकि वो उसकी कमर जकड़े हुए धक्के लगा रहे थे इस वजह से जब लंड को बाहर खींचते तो हाथो के दबाव से कमर नीचे हो जाती, और जब अंदर डालते तो हाथ उसे कमर पकड़ कर उपर की ओर उठा लेते, नतीजा… लंड धक्के दर धक्के एक नयी खोज करने लगा, और हर बार एक नयी गहराई तक चला जाता.
धक्कों की गति निरंतर बढ़ती ही जा रही थी… थोड़ी ही देर में प्रेमा की चूत में खलबली होने लगी और वो झड़ने लगी…
किंतु चूँकि लंड पूरी तरह से फँसा होने के कारण उसके पानी को बाहर निकलने का रास्ता नही मिल रहा था, जिस कारण से उसकी चूत लंड के लगातार घर्षण के कारण अजीब सी आवाज़ें करने लगी…
फुकच्छ…फुकच.. ठप्प..ठप्प की आवाज़ों से संगीत सा पैदा हो रहा था…
कई देर तक जब रामसिंघ के धक्के निरंतर जारी रहे तो प्रेमा से अब सहन करना मुश्किल हो रह था, चूत रस से फुल थी और अंदर ही अंदर प्रेशर बन रहा था…
लल्ला.. थोड़ा रूको ना प्लस्सस… थोड़ा सांस लेने दो… सुन कर रामसिंघ उसके उपर से उठ खड़े हुए, और प्रेमा को भी नीचे खड़ा कर दिया…
पलंग के नीचे घोड़ी बना के पीछे से लंड पेलते हुए पुछा,,, क्यों मेरी चुदेल काकी, अब तो चलेगी ना काका के पास….
हां मेरे लंड राजा… अब तो में वैसे भी यहाँ नही रह पाउन्गी तुमहरे लंड के बिना… तुम कहोगे तो कुए में भी कूद जाउन्गी…
चोदो… और जोरे से चोदो मेरी चूत के मालिक…. आहह… आजतक कहाँ थे… हाईए… बहुत मज़ा आरहा है, और कस कस कर अपनी गान्ड को उनके मूसल के उपर पटकने लगी..
लगातार धुआधार चुदाई का नतीजा, प्रेमा की चूत फिर से पानी छोड़ने की कगार पे आ गई…
जोरे सीई…. और जोरे से चोदो… हइई… में गैइइ…. ऊओह… म्माऐईयईईई…….आअहह…आयईयीईईई….. और चूत ने पानी छोड़ दिया..
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झटके से लंड निकाला, प्रेमा को पलटा कर सीधा किया और गोद में उठाकर लंड दुबारा डाल कर चोदने लगे…
प्रेमा ने भी अपनी बाहें उनके गले में डाल दी, और मस्त कमर उच्छल-उच्छल के चुदने लगी.
अंत में रामसिंघ ने प्रेमा को अपने लंड के उपर बुरी तरह कस लिया, और अपने लंड से उसकी चूत में फाइरिंग शुरू कर दी…
वीर्य की तेज धार को अपनी चूत में महसूस करके, एक बार फिर उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया…
जैसे ही उनका वीर्यपात पूरा हुआ, गोद में लिए ही लिए वो पलंग पे पसर गये और प्रेमा को अपने उपर कर के जकड लिया…
कितनी ही देर तक पड़े रहने के बाद जब दोनो की साँसे संयत हुई तब उन्हें होश आया, और एक दूसरे की बगल में एक-दूसरे के उपरे टांगे लपेटे पड़े रहे…
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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