असली या नकली
- shubhs
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Re: असली या नकली
बिंदास
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
- Kamini
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Re: असली या नकली
इधर आनंद इंटरव्यू के लिए आए हुए बाकी लोगों के साथ जाकर बैठ गया, आनंद यहां पर आ तो गया पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,
“अब मैं क्या करूं, दादाजी तो यहां पर है नहीं, तो क्या वापस घर पर चला जाऊं, पर अगर दादा जी अभी तक दिल्ली के लिए रवाना नहीं हुए होंगे तो, कहीं ऐसा ना हो कि वो मुझे रोजाना ऑफिस आने के लिए बोल दे, तो फिर मैं करुं क्या” आनंद काफी देर इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था, उसे पता ही नहीं चला कि कब उसके आस-पास के सभी लोग इंटरव्यू दे कर जा चुके थे, अब सिर्फ वही बचा था
तभी एक बंदे ने आकर उसे कहा “जाओ, साहब तुम्हे इंटरव्यू के लिए अंदर बुला रहे हैं”
आनंद ने भी आखिर सोचा कि “क्यों ना एक बार ट्राई करके देखते हैं, वैसे भी मुझे कौन सी यहां पर नौकरी करनी है” यह सोचता हुआ आनंद सीधा केबिन के अंदर चला गया
अंदर जाकर उसने देखा कि एक 60 साल का बुड्ढा सा आदमी इंटरव्यू ले रहा था
शर्मा जी – “खड़े क्यों अब तक, यहां पर आकर बैठो” शर्मा जी ने गुस्से से कहा
आनंद –“जी...... जी” कहता हुआ आनंद कुर्सी पर बैठ गया
शर्मा जी - क्या नाम है तुम्हारा
आनंद - जी मेरा नाम आनंद कुमार है
शर्मा जी - कहां तक पढ़े हो
आनंद - जी पांचवी कक्षा पांच तक पढ़ा हूं
शर्मा जी - अंग्रेजी पढ़ना भी आता है
आनंद - जी नहीं अंग्रेजी तो नहीं बस हिंदी अच्छे से पढ़ लेता हूं
शर्मा जी - इससे पहले कहां नौकरी करते थे
आनंद - जी कहीं नहीं, यह मेरा पहली बार होगा
शर्मा जी - देखो तुम दिखने में अच्छे खानदान से लग रहे हो, इसलिए मैं तुम्हें नौकरी तो दे दूंगा पर क्योंकि यह तुम्हारा पहली बार है इसलिए तनख्वाह कम ही मिलेगी
आनंद - जी बिलकुल चलेगा मुझे
शर्मा जी - ठीक है तो फिर कल से सुबह 7:00 बजे से शाम को 5:00 बजे तक तुम्हारी नौकरी रहेगी, तुम्हें क्या करना है यह सब काउंटर पर जो लडकी बैठी है उससे पता चल जाएगा, वैसे तुम चाहो तो आज से ही नौकरी शुरू कर सकते हो
आनंद - जी जैसा आप कहें, वैसे मुझे तनख्वाह कितनी मिलेगी
शर्मा जी - 40 रुपए महीना
आनंद - जी बस 40 रुपए महीना
शर्मा जी - देखो अगर तुम्हें नौकरी नहीं चाहिए तो मना कर दो, मैं किसी और को रख लूंगा, वैसे भी तुम्हारे पास काम करने का कोई एक्सपीरियंस नहीं है
आनंद - जी ठीक है मुझे मंजूर है
शर्मा जी - तो फिर जाओ और जाकर उस लडकी से मिलो, वो तुम्हे तुम्हारा सारा काम समझा देगी
आनंद को बड़ी हैरानी हो रही थी कि कोई सिर्फ 40 रूपये के लिए एक महीने तक कैसे काम कर सकता था जबकि वह तो महीने के 25 से 30 हजार यूं ही उड़ा देता था,
***********************************************
आनंद बाहर आया और सीधा काउंटर की तरफ बढने लगा, काउंटर पर अब सिर्फ मीना ही खड़ी थी
मीना – अरे आनंद, तो फिर कैसा रहा तुम्हारा इंटरव्यू, नोकरी मिली की नही
आनंद – जी इंटरव्यू बहुत अच्छा रहा और मुझे यहाँ नोकरी भी मिल गयी है
मीना - अरे वाह ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है, वैसे पगार क्या रखी है तुम्हारी
आनंद – जी पगार बहुत कम है, सिर्फ 40 रूपये माहवार
मीना – देखो यहाँ पर तो यहीं तनख्वाह मिलेगी, मालिक किसी को एक पैसा भी ज्यादा नही देते, बड़े ही कंजूस किस्म के आदमी है, वैसे तुम्हे देखकर लगता भी नही कि तुम कोई चपरासी हो, शायद तुम पहली बार कोई नोकरी कर रहे हो, इसलिए मेरी मानो जो तनख्वाह मिल रही है रख लो, वैसे मैं जानती हूँ कि एक एक्सपीरियंसड चपरासी की तनख्वाह कम से कम 60 रूपये माहवार तो होनी ही चाहिए
आनंद मीना की बात सुनकर और भी ज्यादा हैरान हुआ, क्यूंकि उसने तो सोचा था की कम से कम 100 – 150 रूपये तो मिलते ही होंगे एक चपरासी को, पर यहाँ तो साला 60 रूपये भी उसको मिलते जो पहले कम कर चूका हो, आनंद को इस बात का गुस्सा भी था कि उसके दादाजी गरीबो को कम पैसा देते है, पर वो कर भी क्या सकता था
आनंद – जी हाँ, नोकरी तो मैं पहली बार ही कर रहा हूँ, वैसे आपकी और चांदनी जी की तनख्वाह क्या है
मीना – अब क्या बताऊ तुम्हे, हम दोनों की तनख्वाह ही 150 रूपये माहवार है, मालिक से कई बार अर्जी की कि तनख्वाह थोड़ी बढ़ा दे पर यहाँ तो कोई नही सुनता,
आनंद - पर आप दोनों तो काफी पढ़ी हुई लगती है, फिर भी 150 रूपये माहवार
मीना – हाँ आनंद, हम दोनों ने ही BA तक की पढाई की है, और BA तक की पढाई करने वालो को कम से कम 200 रूपये माहवार तो मिलना ही चाहिए, पर क्या करे हमारी भी मजबूरी है क्यूंकि अगर ये नोकरी छोड़ी तो क्या पता दूसरी जगह काम मिले न मिले, आजकल के जमाने में नोकरी मिलना बहुत मुश्किल काम होता है आनंद,
आनंद - जी ठीक है, वैसे वो शर्मा जी ने मुझे यहाँ इसलिए भेजा था ताकि आप मुझे मेरा काम समझा सके,
मीना – हाँ वो तो मैं तुम्हे बता दूंगी, पर कुछ काम तुम्हे मोहन ( ये वही मोहन है बस्ती वाला जिसका ज़िक्र मैंने Introduction part 1 में किया था ) बता देगा, आज उसका लास्ट दिन है यहाँ, वो हमारा पुराना चपरासी है, पर उसे साहब ने निकाल दिया क्यूंकि वो पढना लिखना नही जानता था, पता है वो 5 सालो से यहाँ काम कर रहा था और कभी कोई शिकायत का मौका नही दिया उसने पर बेचारे को अनपढ़ होने की कीमत चुकानी पड़ गयी
आनंद – क्या, ये क्या बात हुई, अनपढ़ तो वो हमेशा से ही था, तो 5 साल तक यहाँ नोकरी कैसे कर ली?
मीना – वो ....वो....तुम सही बोल रहे हो, दरअसल अनपढ़ होना तो एक बहाना था मोहन को यहाँ से निकालने के लिए, हकीक़त तो कुछ और ही है
आनंद – क्या हकीक़त है?
मीना – वैसे शर्मा जी ने ये बात किसी को भी बताने से मना किया है पर तुम तो अब यही काम करने वाले हो, तो तुमसे क्या छिपाना, असल में वो मोहन पिछले हफ्ते जेल में बंद था 2 दिन के लिए,
आनंद – जेल में, पर क्यों?
मीना- दरअसल पुलिस ने उसे कुछ आदमियों के साथ मारपीट करने के इलज़ाम में बंद कर दिया था, वैसे ये तो हमें नही पता कि उसने ऐसा क्यूँ किया, पर ये जरुर पता है कि असल में तो उन लोगो ने ही उसे पीटा था, पर उन्होंने पुलिस को थोड़े पैसे देकर मोहन पर इलज़ाम लगा दिया कि उसने ही मारपीट शुरू की है, पर जहाँ तक हम लोग जानते है, मोहन तो एसा कर ही नही सकता, वो तो बेचारा बहुत ही सीधा किस्म का इंसान है, आज तक उसने किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नही की,
आनंद - ह्म्म्मम्म, पर अगर तुम लोगो को पता था तो फिर उसे ऑफिस से क्यों निकाला जा रहा है
मीना – दरअसल शर्मा जी नही चाहते कि ये बात बड़े साहब(बद्री प्रसाद) को पता चले, क्यूंकि एक जेल याफ्ता इंसान को नोकरी देना ऑफिस की इज्ज़त के लिए खतरा हो सकता था, और अगर बड़े साहब को ये बात पता चलती तो वो शर्मा जी पर ही गुस्सा निकालते, इसीलिए शर्मा जी ने पहले ही मोहन को नोकरी से निकलने का फैसला कर लिया
आनंद – पर ये तो गलत है ना, जो इंसान 5 सालो से इस ऑफिस की सेवा करता आ रहा है, उसे इतनी छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा?
मीना – तुम्हारी बात सही है आनंद पर तुम बड़े साहब को नही जानते, वो बहुत ही सख्त आदमी है, अगर उन तक बात पहुंचती तो हमारी सबकी नोकरी भी खतरे में पड़ सकती थी
आनंद को अपने दादाजी पर बहुत गुस्सा आ रहा था, पर वो कुछ कर भी तो नही सकता था
मीना – अच्छा अब तुम उस मोहन से मिल लो, वो तुम्हे सारा काम समझा देगा
आनंद – ठीक है
ये कहकर आनंद मोहन से मिलने के लिए चल पड़ा
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“अब मैं क्या करूं, दादाजी तो यहां पर है नहीं, तो क्या वापस घर पर चला जाऊं, पर अगर दादा जी अभी तक दिल्ली के लिए रवाना नहीं हुए होंगे तो, कहीं ऐसा ना हो कि वो मुझे रोजाना ऑफिस आने के लिए बोल दे, तो फिर मैं करुं क्या” आनंद काफी देर इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था, उसे पता ही नहीं चला कि कब उसके आस-पास के सभी लोग इंटरव्यू दे कर जा चुके थे, अब सिर्फ वही बचा था
तभी एक बंदे ने आकर उसे कहा “जाओ, साहब तुम्हे इंटरव्यू के लिए अंदर बुला रहे हैं”
आनंद ने भी आखिर सोचा कि “क्यों ना एक बार ट्राई करके देखते हैं, वैसे भी मुझे कौन सी यहां पर नौकरी करनी है” यह सोचता हुआ आनंद सीधा केबिन के अंदर चला गया
अंदर जाकर उसने देखा कि एक 60 साल का बुड्ढा सा आदमी इंटरव्यू ले रहा था
शर्मा जी – “खड़े क्यों अब तक, यहां पर आकर बैठो” शर्मा जी ने गुस्से से कहा
आनंद –“जी...... जी” कहता हुआ आनंद कुर्सी पर बैठ गया
शर्मा जी - क्या नाम है तुम्हारा
आनंद - जी मेरा नाम आनंद कुमार है
शर्मा जी - कहां तक पढ़े हो
आनंद - जी पांचवी कक्षा पांच तक पढ़ा हूं
शर्मा जी - अंग्रेजी पढ़ना भी आता है
आनंद - जी नहीं अंग्रेजी तो नहीं बस हिंदी अच्छे से पढ़ लेता हूं
शर्मा जी - इससे पहले कहां नौकरी करते थे
आनंद - जी कहीं नहीं, यह मेरा पहली बार होगा
शर्मा जी - देखो तुम दिखने में अच्छे खानदान से लग रहे हो, इसलिए मैं तुम्हें नौकरी तो दे दूंगा पर क्योंकि यह तुम्हारा पहली बार है इसलिए तनख्वाह कम ही मिलेगी
आनंद - जी बिलकुल चलेगा मुझे
शर्मा जी - ठीक है तो फिर कल से सुबह 7:00 बजे से शाम को 5:00 बजे तक तुम्हारी नौकरी रहेगी, तुम्हें क्या करना है यह सब काउंटर पर जो लडकी बैठी है उससे पता चल जाएगा, वैसे तुम चाहो तो आज से ही नौकरी शुरू कर सकते हो
आनंद - जी जैसा आप कहें, वैसे मुझे तनख्वाह कितनी मिलेगी
शर्मा जी - 40 रुपए महीना
आनंद - जी बस 40 रुपए महीना
शर्मा जी - देखो अगर तुम्हें नौकरी नहीं चाहिए तो मना कर दो, मैं किसी और को रख लूंगा, वैसे भी तुम्हारे पास काम करने का कोई एक्सपीरियंस नहीं है
आनंद - जी ठीक है मुझे मंजूर है
शर्मा जी - तो फिर जाओ और जाकर उस लडकी से मिलो, वो तुम्हे तुम्हारा सारा काम समझा देगी
आनंद को बड़ी हैरानी हो रही थी कि कोई सिर्फ 40 रूपये के लिए एक महीने तक कैसे काम कर सकता था जबकि वह तो महीने के 25 से 30 हजार यूं ही उड़ा देता था,
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आनंद बाहर आया और सीधा काउंटर की तरफ बढने लगा, काउंटर पर अब सिर्फ मीना ही खड़ी थी
मीना – अरे आनंद, तो फिर कैसा रहा तुम्हारा इंटरव्यू, नोकरी मिली की नही
आनंद – जी इंटरव्यू बहुत अच्छा रहा और मुझे यहाँ नोकरी भी मिल गयी है
मीना - अरे वाह ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है, वैसे पगार क्या रखी है तुम्हारी
आनंद – जी पगार बहुत कम है, सिर्फ 40 रूपये माहवार
मीना – देखो यहाँ पर तो यहीं तनख्वाह मिलेगी, मालिक किसी को एक पैसा भी ज्यादा नही देते, बड़े ही कंजूस किस्म के आदमी है, वैसे तुम्हे देखकर लगता भी नही कि तुम कोई चपरासी हो, शायद तुम पहली बार कोई नोकरी कर रहे हो, इसलिए मेरी मानो जो तनख्वाह मिल रही है रख लो, वैसे मैं जानती हूँ कि एक एक्सपीरियंसड चपरासी की तनख्वाह कम से कम 60 रूपये माहवार तो होनी ही चाहिए
आनंद मीना की बात सुनकर और भी ज्यादा हैरान हुआ, क्यूंकि उसने तो सोचा था की कम से कम 100 – 150 रूपये तो मिलते ही होंगे एक चपरासी को, पर यहाँ तो साला 60 रूपये भी उसको मिलते जो पहले कम कर चूका हो, आनंद को इस बात का गुस्सा भी था कि उसके दादाजी गरीबो को कम पैसा देते है, पर वो कर भी क्या सकता था
आनंद – जी हाँ, नोकरी तो मैं पहली बार ही कर रहा हूँ, वैसे आपकी और चांदनी जी की तनख्वाह क्या है
मीना – अब क्या बताऊ तुम्हे, हम दोनों की तनख्वाह ही 150 रूपये माहवार है, मालिक से कई बार अर्जी की कि तनख्वाह थोड़ी बढ़ा दे पर यहाँ तो कोई नही सुनता,
आनंद - पर आप दोनों तो काफी पढ़ी हुई लगती है, फिर भी 150 रूपये माहवार
मीना – हाँ आनंद, हम दोनों ने ही BA तक की पढाई की है, और BA तक की पढाई करने वालो को कम से कम 200 रूपये माहवार तो मिलना ही चाहिए, पर क्या करे हमारी भी मजबूरी है क्यूंकि अगर ये नोकरी छोड़ी तो क्या पता दूसरी जगह काम मिले न मिले, आजकल के जमाने में नोकरी मिलना बहुत मुश्किल काम होता है आनंद,
आनंद - जी ठीक है, वैसे वो शर्मा जी ने मुझे यहाँ इसलिए भेजा था ताकि आप मुझे मेरा काम समझा सके,
मीना – हाँ वो तो मैं तुम्हे बता दूंगी, पर कुछ काम तुम्हे मोहन ( ये वही मोहन है बस्ती वाला जिसका ज़िक्र मैंने Introduction part 1 में किया था ) बता देगा, आज उसका लास्ट दिन है यहाँ, वो हमारा पुराना चपरासी है, पर उसे साहब ने निकाल दिया क्यूंकि वो पढना लिखना नही जानता था, पता है वो 5 सालो से यहाँ काम कर रहा था और कभी कोई शिकायत का मौका नही दिया उसने पर बेचारे को अनपढ़ होने की कीमत चुकानी पड़ गयी
आनंद – क्या, ये क्या बात हुई, अनपढ़ तो वो हमेशा से ही था, तो 5 साल तक यहाँ नोकरी कैसे कर ली?
मीना – वो ....वो....तुम सही बोल रहे हो, दरअसल अनपढ़ होना तो एक बहाना था मोहन को यहाँ से निकालने के लिए, हकीक़त तो कुछ और ही है
आनंद – क्या हकीक़त है?
मीना – वैसे शर्मा जी ने ये बात किसी को भी बताने से मना किया है पर तुम तो अब यही काम करने वाले हो, तो तुमसे क्या छिपाना, असल में वो मोहन पिछले हफ्ते जेल में बंद था 2 दिन के लिए,
आनंद – जेल में, पर क्यों?
मीना- दरअसल पुलिस ने उसे कुछ आदमियों के साथ मारपीट करने के इलज़ाम में बंद कर दिया था, वैसे ये तो हमें नही पता कि उसने ऐसा क्यूँ किया, पर ये जरुर पता है कि असल में तो उन लोगो ने ही उसे पीटा था, पर उन्होंने पुलिस को थोड़े पैसे देकर मोहन पर इलज़ाम लगा दिया कि उसने ही मारपीट शुरू की है, पर जहाँ तक हम लोग जानते है, मोहन तो एसा कर ही नही सकता, वो तो बेचारा बहुत ही सीधा किस्म का इंसान है, आज तक उसने किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नही की,
आनंद - ह्म्म्मम्म, पर अगर तुम लोगो को पता था तो फिर उसे ऑफिस से क्यों निकाला जा रहा है
मीना – दरअसल शर्मा जी नही चाहते कि ये बात बड़े साहब(बद्री प्रसाद) को पता चले, क्यूंकि एक जेल याफ्ता इंसान को नोकरी देना ऑफिस की इज्ज़त के लिए खतरा हो सकता था, और अगर बड़े साहब को ये बात पता चलती तो वो शर्मा जी पर ही गुस्सा निकालते, इसीलिए शर्मा जी ने पहले ही मोहन को नोकरी से निकलने का फैसला कर लिया
आनंद – पर ये तो गलत है ना, जो इंसान 5 सालो से इस ऑफिस की सेवा करता आ रहा है, उसे इतनी छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा?
मीना – तुम्हारी बात सही है आनंद पर तुम बड़े साहब को नही जानते, वो बहुत ही सख्त आदमी है, अगर उन तक बात पहुंचती तो हमारी सबकी नोकरी भी खतरे में पड़ सकती थी
आनंद को अपने दादाजी पर बहुत गुस्सा आ रहा था, पर वो कुछ कर भी तो नही सकता था
मीना – अच्छा अब तुम उस मोहन से मिल लो, वो तुम्हे सारा काम समझा देगा
आनंद – ठीक है
ये कहकर आनंद मोहन से मिलने के लिए चल पड़ा
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शैतान से समझौता viewtopic.php?t=11462
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- Kamini
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Re: असली या नकली
अब कहानी को कुछ दिन पहले बस्ती की और लेकर चलते है,
बस्ती के बाकि परिवारों की तरह मोहन का परिवार भी बिलकुल गरीब था, वो और उसकी बहन माला एक टूटे फूटे से घर में बड़ी मुश्किलों की जिंदगी गुज़र रहे थे,
कच्ची ईंटो से बना हुआ एक छोटा सा घर जिसमे नाम मात्र का सिर्फ एक कमरा था, जिसकी छत भी लोहे की जर्जर हो चुकी टीन की बनी हुई थी ,कमरे के सामने एक छोटा सा आँगन और कच्ची पक्की चार दिबारे खड़ी थी,लकड़ी का जर्जर दरबाजा, घर में घुसते ही बाये तरफ एक छोटी सी रसोई जिसकी कोई चारदीवारी भी न थी, लगता था कि बस थोडा था सामान ज़मीन पर रखकर रसोई का रूप दे दिया गया हो
घर के पीछे की तरफ एक ईंटो से घिरा हुआ छोटा सा बाथरूम स्नान के लिए बना था,जिसमे छत भी नहीं थी, बाथरूम में एक नल लगा हुआ था, पर पानी शाम को आता था वो भी बस 15 मिनट के लिए ,लेट्रीन के लिए उस समय पटरियों का इस्तेमाल ही सबसे मशहूर तरीका था,
पर इन लोगो के लिए ये घर भी एक महल की तरह था क्यूंकि ये उनका अपना था, पर सिर्फ कहने को, क्यूंकि उस बस्ती के ज्यादातर घर लाला दीनदयाल के पास गिरवी थे, जो उन गरीबो के खून पसीने की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उनसे ब्याज के रूप में वसूल कर लेता था, उन गरीबो के लिए तो ये गरीबी में आटा गिला होने के बराबर था, एक तो मुश्किल से बेचारे दो वक्त की रोटी का इन्तेजाम कर पाते, उसमे से भी एक वक्त की रोटी जितना हिस्सा लालाजी को ब्याज के रूप में चुकाना उनकी मजबूरी थी, पर बेचारे करते भी तो क्या, एक आदमी ने लाला की खिलाफत करने की कोशिश की थी तो लाला ने उसे धक्के मारकर उसी के घर से निकलवा दिया था,
लाला के पास किराये के गुंडे भी थे, और साथ ही पुलिस को रिश्वत देने के लिए दोलत भी, वो अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल कर रातो रातो उन लोगो को उन्ही के घर से बेधख्ल कर सकता था जो उसके खिलाफ जाने की हिम्मत करते,
इन सब के उपर लाला की हरामी नियत भी अक्सर बस्ती की लडकियों पर चली जाती, उसकी गन्दी नजरे हमेशा बस्ती की जवान होती लडकियों पर रहती, सभी बस्ती वाले भी इस बात से परिचित थे पर बेचारे चाहकर भी कुछ नही कर पाते, इसलिए जब भी लाला महीने के अंत में अपना ब्याज वसूलने अपने पालतू गुंडों के साथ आता, बस्ती के लोग अपनी बहन बेटियों को घर के अंदर ही रखते ताकि लाला की हवसी नजरो से बच सके
बस्ती के लोग बस इस आशा में जी रहे थे कि कभी तो भगवान किसी फ़रिश्ते को यहाँ भेजेगा जो उनका हर दुःख हर दर्द दूर करके उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ देगा, कभी तो कोई आएगा जो उन्हें इस गरीबी के दलदल से बाहर निकालेगा , कभी तो कोई आएगा जो उन्हें लाला के आतंक से मुक्ति दिलाएगा, बस्ती के हर इन्सान में ये उम्मीद रहती, उनकी आँखों में ये आशा रहती कि शायद भगवान किसी दिन उनकी सुन ले
पर अभी तक तो उन लोगो को सिवाय दर्द, गरीबी, ज़िल्लत, और लाला के डर में ही अपनी ज़िन्दगी बसर करनी पड़ रही थी, फिर भी उनकी आशा का बांध टुटा न था, गरीबी के साथ सब्र और भलाई का गुण कूट कूट कर भरा था भगवान ने इन लोगो में, गरीबी में जीकर भी वो लोग एक दुसरे के सुख दुःख में भागीदार बनते, हमेशा खुश रहने का दिखावा करते पर मन में हमेशा गरीबी, भुखमरी और लाला के डर का तंज़ डसता रहता,
मोहन और उसकी बहन माला भी बस्ती के बाकि लोगो की तरह ही इसी तरह की ग़ुरबत की ज़िन्दगी ज़ीने को मजबूर थे,
माला 19 बरस की एक मासूम सी दिखने वाली लड़की, उसकी काली झील जैसी आंखे , तीखे नैन नक्श, पतले गुलाबी होंठ दिखने में मानो अजंता की कोई मूरत, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा , छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे, हर वो चीज़ भगवान ने उसके बदन को बख्शी थी जो कामदेव को भी एक बार विचलित कर दे, पर शायद गरीबी की मार ने उसे कभी इस और देखने का मोका ही नही दिया था
माला 19 वर्ष की हो चुकी थी लेकिन उसके घर की माली हालात इतने खराब थे कि शादी के बारे में सोचना भी उसके लिए पापा था, माला भी अपने घर के हालात को अच्छी तरह समझती थी इसलिए शायद उसने भी बिना शादी के जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी, पर मोहन चाहता था कि वो अपनी बहन की शादी बड़ी धूमधाम से करे पर पैसो की किल्लत ने उसके हाथ बांध रखे थे
माला इतनी खुबसुरत थी और उसका जिस्म ऐसा था की अच्छी अच्छी बड़े घर की शहरी लडकियों को भी मात दे दे, पर उसका यही हुस्न उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था, क्यूंकि लाला की गन्दी नजर उसके जवान जिस्म पर पड़ गयी थी, और लाला बस इसी ताक में रहता कि किसी तरह इस फूल के रस को चूस ले, लाला उसकी गरीबी का फायदा उठाने के षड्यंत्र भी रचता था, और इसीलिए
लाला ने मोहन को बताया कि उसने अपने घर को गिरवी रखकर जो कर्जा उससे लिया वो इतने सालो के बाद भी अभी सिर्फ एक चोथाई ही उतरा है, जबकि असलियत में मोहन ने तीन चोथाई कर्जा उतार दिया था, लाला हर हथकंडे अपनाता जिससे वो माला के योवन का रस चख सके, पर उसे डर था कि अगर उसने जबरदस्ती की तो कहीं मामला बहुत बढ़ न जाये, इसीलिए लाला उनकी गरीबी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था
इधर माला भी बड़ी समझदार थी, वो लाला के इरादों से पूरी तरह वाकिफ थी, पर उसने अपने आपको किसी तरह बचाया हुआ था,
बाकि लडकियों की तरह माला की भी इच्छा थी कि उसकी भी शादी हो, बच्चे हों,पारवारिक जीवन का आनंद उठाए, पर गरीबी से मजबूर होकर उसने अपनी सभी इच्छाओ को अपने वश में कर लिया था
माला जब छोटी थी,तब उसकी भी इच्छा थी कि उसका पति अच्छा हो, पैसे वाला हो, कार बंगला हो,वो जीवन को खुल कर जिए, लेकिन उसकी सभी इच्छाएं गरीबी की भेंट चढ़ गई,अब तो उसने अपने मन को उसी प्रकार ढाल लिया था, अपनी असल जिंदगी की वास्तविकता को स्वीकार कर चुकी थी, अपने सारे सपनो को आजीवन तलाक दे चुकी थी
गरीबी इस प्रकार छाई थी की उसके पास मात्र दो जोड़ी ही सलवार सूट थे, वो भी कई जगह से फटे हुए थे जिन्हें सुई से टांका मार कर उन्ही को पहना करती थी, पहनने के लिए उसके पास मात्र एक ही पेंटी बची थी और उसका इस्तेमाल भी वो सिर्फ माहवारी के दिनों में करती थी ताकि उसके कपडे ख़राब न हो, महीने के बाकि दिनों में तो वो कभी कभार ही पेंटी पहनती थी ,बस बिना पेंटी के ही सलवार पहन कर घर में रहती थी ।
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मोहन और माला किसी तरह गरीबी में अपनी गुज़र बसर कर रहे थे, मोहन अपनी थोड़ी सी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा लाला के पास जमा कराता, और ऐसा करते हुए उसे लगभग 5 साल होने को आ गये थे, पर उनका कर्ज था कि उतरने का नाम ही नही लेता था, और उतरे भी कैसे? लाला ने बस्ती वालो के अनपढ़ होने का फायदा उठाकर उनके हिसाब में गडबडी की थी, और मोहन के कर्ज का तो तीन चोथाई हिस्सा बाकि दिखा रखा था, क्यूंकि वो हरामी लाला उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था
बस्ती मे रात होने को आई थी, सिर्फ एक स्ट्रीट लाइट की रौशनी ही है जो इस बस्ती को रात के अँधेरे में गुम होने से बचाती थी, बाकि सभी घरो में मोमबतीयाँ ही उनकी रौशनी का जरिया था, बस्ती के बीचो बिच एक नीम के पेड़ बना था,जिसके चारो और बैठने के लिए एक ऊँचा चबूतरा बनाया हुआ था, बस्ती के लोग अक्सर काम से आने के बाद रात को थोड़ी देर वहाँ बैठते और हल्के फुल्के मजाक और कहानियों को दोर चलता जो उन गरीबो के दिलो के गम को थोड़ी देर के लिए ही सही पर कम जरुर कर देता
मोहन और माला अपने घर में बैठे बात कर रहे थे
माला – भैया, लाला का कर्जा कितना पूरा हुआ? हम कितने सालो से कर्जा दिए जा रहे है,
मोहन – हाँ, माला लगभग 5 साल होने को आये, पर लाला का कर्जा है कि उतरने का नाम ही नही ले रहा
माला – भैया, आप एक बार उनसे पूछ कर तो देखो कि कितना कर्जा बाकि है?
मोहन – तू ठीक कहती है छोटी, मैं कल ही लाला से मिलकर उससे हिसाब मांगता हूँ, अगर हम ऐसे ही उसे पैसे देते रहे तो तेरी शादी कैसे कर पाउँगा
माला (शर्माते हुए) – क्या भैया, मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो हमेशा अपने भैया के पास ही रहूंगी
मोहन – अरे पगली, कभी न कभी तो तुझे जाना ही होगा, अपनी छोटी की शादी मैं बड़ी धूम धाम से करूंगा देखना
माला – हटो भैया, मुझे आपसे बात नही करनी
और इतना कहकर माला शर्माती हुई वहां से उठ गयी, मोहन भी बहार आकर बस्ती के बाकि लोगो के साथ बैठ गया और गप्पे हांकने लगा
बंशी (मोहन का दोस्त ) – अरे आ मोहन आ, आज तो बड़ी देर लगा दी आवन में, घर में का कर रहे थे,
मोहन – अरे कुछ नही बंशी बस थोडा थक गया था सो लेटकर थोड़े पैर सीधे कर रहा था
बंशी – भाई तू तो पैर ही सीधा करता रह जायेगा, मैं तो कुछ और ही सीधा करके आ रहा हूँ,,,हा हा हा हा..........
सभी लोग बंशी की बात सुनकर हंसने लगे, कुछ देर ऐसे ही बातो को डोर चलता रहा, पर जैसे जैसे अँधेरा बढ़ता गया लोग धीरे धीरे अपने घरो की तरफ जाने लगे, अब बस वहां बंशी, मोहन और राजू ही बचे थे
राजू – का बात है बंशी बाबु, आज बड़े मूड में लग रहे हो, लगता है भाभी की खैर नाही आज ...हा हा हा......
बंशी – अरे का बताऊ राजू भाई आज गेराज में एक जबरदस्त लोंडिया आई थी गाड़ी सुधरवाने, हाय मैं तो देखकर ही पगला गया, का गोरा गदराया बदन था, एकदम मलाई के माफिक,
मोहन – अरे क्या बंशी तू भी, तू वहां काम करने जाता है कि लोंडिया टापने, हरामी कहीं का, हाहाहाहा .........
बंशी – अरे मोहन बाबु, अभी कितना भी हंस लो, पर अगर एक नज़र तुम उसको देख लिए होते ना, तो तुम्हारा तो वहीं खड़े खड़े पानी निकल जाता , का मस्त बदन था साली का, मन करता था वहीं पकड़ के पेल दे साली को, हाय इन गोरी लडकियों की चूत भी कितनी गोरी होती होगी, और एक हमार वाली है, साली की चूत अँधेरे में कोयला जान पडती है,हा हा हा,,,,,,,,,
राजू – अरे उसी चूत से दो दो बच्चे निकाल दिए रहे तुम, तब कोयला ना दिखी तुझे वो चूत ,ह्म्म्म....हाहाहा....
बंशी – का बात है रे राजू, हमार बीवी की चुत में बड़ी दिलचस्पी दिखा रहे हो हरामी, साले कहीं नजर तो नही गडा रखी हो हमार बीवी पर,
राजू – अरे हमार किस्मत में चूत कहाँ बंशी बाबु, हम तो साला अपना हाथ जगन्नाथ करके ही कम चलावत है, तुहार पास कम से कम कोनो चुत तो है, हमार किस्मत में तो हाथ का ही सुख लिखा है
मोहन – का बात है राजू, आज चुत मारने का बड़ी इच्छा हो रही है का तोहार
राजू – अरे मोहन भाई, ई इच्छा तो साला 24 घंटे रहती है पर करे भी तो का करे, मन मसोस कर और लंड मरोड़ कर ही काम चला लेते है
मोहन – अबे चिंता मत कर, कभी न कभी तेरे लिए भी कोई चुत का इंतज़ाम हो ही जायेगा
बंशी – अरे इसकी छोड़ो मोहन, ई तो ससुरा चोबीस घंटे चुत के सपने देखत है, तुम बताओ , तुम तो ऑफिस वोफ्फिस में काम करत हो, वहाँ तो काफी लोंडिया आती है हम सुने
मोहन – अरे हम तो रोज़ ही एक से एक जबरदस्त लोंडिया देखते है हमरे ऑफिस में, और मालूम है कुछ तो बिलकुल छोटे छोटे घुटनों तक के कपड़े पहन कर आती है, साला सुबह सुबह ही हमार लंड भी बिलकुल अकड जाता है, फिर गुसलखाने (टॉयलेट) में जाकर मुठ मारते है तब कहीं जाकर लंड को थोडा सुकून मिलता है
बंशी – तोहर किस्मत बड़ी अच्छी है मोहन बाबु, कम से कम रोज़ लोंडिया के दर्शन तो हो जाते है, और एक हमार किस्मत, रोजाना साला काले पीले लोगो के चेहरों के सिवा कुछु दीखता ही नही है
राजू - अरे तोहर कैसी किस्मत ख़राब, तू तो शाम को आकर कम से कम चुत तो मार लेता है, हमे देख, किस्मत तो हमारी खराब है, जो साला 23-24 की उम्र में भी लंड हिलाना पड रहा है
राजू की बात सुनकर तीनो हंसने लगते है, उनकी बातो का दौर और लम्बा चलता है और फिर वो लोग जाकर घर में सो जाते है
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बस्ती के बाकि परिवारों की तरह मोहन का परिवार भी बिलकुल गरीब था, वो और उसकी बहन माला एक टूटे फूटे से घर में बड़ी मुश्किलों की जिंदगी गुज़र रहे थे,
कच्ची ईंटो से बना हुआ एक छोटा सा घर जिसमे नाम मात्र का सिर्फ एक कमरा था, जिसकी छत भी लोहे की जर्जर हो चुकी टीन की बनी हुई थी ,कमरे के सामने एक छोटा सा आँगन और कच्ची पक्की चार दिबारे खड़ी थी,लकड़ी का जर्जर दरबाजा, घर में घुसते ही बाये तरफ एक छोटी सी रसोई जिसकी कोई चारदीवारी भी न थी, लगता था कि बस थोडा था सामान ज़मीन पर रखकर रसोई का रूप दे दिया गया हो
घर के पीछे की तरफ एक ईंटो से घिरा हुआ छोटा सा बाथरूम स्नान के लिए बना था,जिसमे छत भी नहीं थी, बाथरूम में एक नल लगा हुआ था, पर पानी शाम को आता था वो भी बस 15 मिनट के लिए ,लेट्रीन के लिए उस समय पटरियों का इस्तेमाल ही सबसे मशहूर तरीका था,
पर इन लोगो के लिए ये घर भी एक महल की तरह था क्यूंकि ये उनका अपना था, पर सिर्फ कहने को, क्यूंकि उस बस्ती के ज्यादातर घर लाला दीनदयाल के पास गिरवी थे, जो उन गरीबो के खून पसीने की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उनसे ब्याज के रूप में वसूल कर लेता था, उन गरीबो के लिए तो ये गरीबी में आटा गिला होने के बराबर था, एक तो मुश्किल से बेचारे दो वक्त की रोटी का इन्तेजाम कर पाते, उसमे से भी एक वक्त की रोटी जितना हिस्सा लालाजी को ब्याज के रूप में चुकाना उनकी मजबूरी थी, पर बेचारे करते भी तो क्या, एक आदमी ने लाला की खिलाफत करने की कोशिश की थी तो लाला ने उसे धक्के मारकर उसी के घर से निकलवा दिया था,
लाला के पास किराये के गुंडे भी थे, और साथ ही पुलिस को रिश्वत देने के लिए दोलत भी, वो अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल कर रातो रातो उन लोगो को उन्ही के घर से बेधख्ल कर सकता था जो उसके खिलाफ जाने की हिम्मत करते,
इन सब के उपर लाला की हरामी नियत भी अक्सर बस्ती की लडकियों पर चली जाती, उसकी गन्दी नजरे हमेशा बस्ती की जवान होती लडकियों पर रहती, सभी बस्ती वाले भी इस बात से परिचित थे पर बेचारे चाहकर भी कुछ नही कर पाते, इसलिए जब भी लाला महीने के अंत में अपना ब्याज वसूलने अपने पालतू गुंडों के साथ आता, बस्ती के लोग अपनी बहन बेटियों को घर के अंदर ही रखते ताकि लाला की हवसी नजरो से बच सके
बस्ती के लोग बस इस आशा में जी रहे थे कि कभी तो भगवान किसी फ़रिश्ते को यहाँ भेजेगा जो उनका हर दुःख हर दर्द दूर करके उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ देगा, कभी तो कोई आएगा जो उन्हें इस गरीबी के दलदल से बाहर निकालेगा , कभी तो कोई आएगा जो उन्हें लाला के आतंक से मुक्ति दिलाएगा, बस्ती के हर इन्सान में ये उम्मीद रहती, उनकी आँखों में ये आशा रहती कि शायद भगवान किसी दिन उनकी सुन ले
पर अभी तक तो उन लोगो को सिवाय दर्द, गरीबी, ज़िल्लत, और लाला के डर में ही अपनी ज़िन्दगी बसर करनी पड़ रही थी, फिर भी उनकी आशा का बांध टुटा न था, गरीबी के साथ सब्र और भलाई का गुण कूट कूट कर भरा था भगवान ने इन लोगो में, गरीबी में जीकर भी वो लोग एक दुसरे के सुख दुःख में भागीदार बनते, हमेशा खुश रहने का दिखावा करते पर मन में हमेशा गरीबी, भुखमरी और लाला के डर का तंज़ डसता रहता,
मोहन और उसकी बहन माला भी बस्ती के बाकि लोगो की तरह ही इसी तरह की ग़ुरबत की ज़िन्दगी ज़ीने को मजबूर थे,
माला 19 बरस की एक मासूम सी दिखने वाली लड़की, उसकी काली झील जैसी आंखे , तीखे नैन नक्श, पतले गुलाबी होंठ दिखने में मानो अजंता की कोई मूरत, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा , छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे, हर वो चीज़ भगवान ने उसके बदन को बख्शी थी जो कामदेव को भी एक बार विचलित कर दे, पर शायद गरीबी की मार ने उसे कभी इस और देखने का मोका ही नही दिया था
माला 19 वर्ष की हो चुकी थी लेकिन उसके घर की माली हालात इतने खराब थे कि शादी के बारे में सोचना भी उसके लिए पापा था, माला भी अपने घर के हालात को अच्छी तरह समझती थी इसलिए शायद उसने भी बिना शादी के जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी, पर मोहन चाहता था कि वो अपनी बहन की शादी बड़ी धूमधाम से करे पर पैसो की किल्लत ने उसके हाथ बांध रखे थे
माला इतनी खुबसुरत थी और उसका जिस्म ऐसा था की अच्छी अच्छी बड़े घर की शहरी लडकियों को भी मात दे दे, पर उसका यही हुस्न उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया था, क्यूंकि लाला की गन्दी नजर उसके जवान जिस्म पर पड़ गयी थी, और लाला बस इसी ताक में रहता कि किसी तरह इस फूल के रस को चूस ले, लाला उसकी गरीबी का फायदा उठाने के षड्यंत्र भी रचता था, और इसीलिए
लाला ने मोहन को बताया कि उसने अपने घर को गिरवी रखकर जो कर्जा उससे लिया वो इतने सालो के बाद भी अभी सिर्फ एक चोथाई ही उतरा है, जबकि असलियत में मोहन ने तीन चोथाई कर्जा उतार दिया था, लाला हर हथकंडे अपनाता जिससे वो माला के योवन का रस चख सके, पर उसे डर था कि अगर उसने जबरदस्ती की तो कहीं मामला बहुत बढ़ न जाये, इसीलिए लाला उनकी गरीबी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था
इधर माला भी बड़ी समझदार थी, वो लाला के इरादों से पूरी तरह वाकिफ थी, पर उसने अपने आपको किसी तरह बचाया हुआ था,
बाकि लडकियों की तरह माला की भी इच्छा थी कि उसकी भी शादी हो, बच्चे हों,पारवारिक जीवन का आनंद उठाए, पर गरीबी से मजबूर होकर उसने अपनी सभी इच्छाओ को अपने वश में कर लिया था
माला जब छोटी थी,तब उसकी भी इच्छा थी कि उसका पति अच्छा हो, पैसे वाला हो, कार बंगला हो,वो जीवन को खुल कर जिए, लेकिन उसकी सभी इच्छाएं गरीबी की भेंट चढ़ गई,अब तो उसने अपने मन को उसी प्रकार ढाल लिया था, अपनी असल जिंदगी की वास्तविकता को स्वीकार कर चुकी थी, अपने सारे सपनो को आजीवन तलाक दे चुकी थी
गरीबी इस प्रकार छाई थी की उसके पास मात्र दो जोड़ी ही सलवार सूट थे, वो भी कई जगह से फटे हुए थे जिन्हें सुई से टांका मार कर उन्ही को पहना करती थी, पहनने के लिए उसके पास मात्र एक ही पेंटी बची थी और उसका इस्तेमाल भी वो सिर्फ माहवारी के दिनों में करती थी ताकि उसके कपडे ख़राब न हो, महीने के बाकि दिनों में तो वो कभी कभार ही पेंटी पहनती थी ,बस बिना पेंटी के ही सलवार पहन कर घर में रहती थी ।
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मोहन और माला किसी तरह गरीबी में अपनी गुज़र बसर कर रहे थे, मोहन अपनी थोड़ी सी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा लाला के पास जमा कराता, और ऐसा करते हुए उसे लगभग 5 साल होने को आ गये थे, पर उनका कर्ज था कि उतरने का नाम ही नही लेता था, और उतरे भी कैसे? लाला ने बस्ती वालो के अनपढ़ होने का फायदा उठाकर उनके हिसाब में गडबडी की थी, और मोहन के कर्ज का तो तीन चोथाई हिस्सा बाकि दिखा रखा था, क्यूंकि वो हरामी लाला उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर माला को भोगना चाहता था
बस्ती मे रात होने को आई थी, सिर्फ एक स्ट्रीट लाइट की रौशनी ही है जो इस बस्ती को रात के अँधेरे में गुम होने से बचाती थी, बाकि सभी घरो में मोमबतीयाँ ही उनकी रौशनी का जरिया था, बस्ती के बीचो बिच एक नीम के पेड़ बना था,जिसके चारो और बैठने के लिए एक ऊँचा चबूतरा बनाया हुआ था, बस्ती के लोग अक्सर काम से आने के बाद रात को थोड़ी देर वहाँ बैठते और हल्के फुल्के मजाक और कहानियों को दोर चलता जो उन गरीबो के दिलो के गम को थोड़ी देर के लिए ही सही पर कम जरुर कर देता
मोहन और माला अपने घर में बैठे बात कर रहे थे
माला – भैया, लाला का कर्जा कितना पूरा हुआ? हम कितने सालो से कर्जा दिए जा रहे है,
मोहन – हाँ, माला लगभग 5 साल होने को आये, पर लाला का कर्जा है कि उतरने का नाम ही नही ले रहा
माला – भैया, आप एक बार उनसे पूछ कर तो देखो कि कितना कर्जा बाकि है?
मोहन – तू ठीक कहती है छोटी, मैं कल ही लाला से मिलकर उससे हिसाब मांगता हूँ, अगर हम ऐसे ही उसे पैसे देते रहे तो तेरी शादी कैसे कर पाउँगा
माला (शर्माते हुए) – क्या भैया, मुझे नही करनी शादी वादी, मैं तो हमेशा अपने भैया के पास ही रहूंगी
मोहन – अरे पगली, कभी न कभी तो तुझे जाना ही होगा, अपनी छोटी की शादी मैं बड़ी धूम धाम से करूंगा देखना
माला – हटो भैया, मुझे आपसे बात नही करनी
और इतना कहकर माला शर्माती हुई वहां से उठ गयी, मोहन भी बहार आकर बस्ती के बाकि लोगो के साथ बैठ गया और गप्पे हांकने लगा
बंशी (मोहन का दोस्त ) – अरे आ मोहन आ, आज तो बड़ी देर लगा दी आवन में, घर में का कर रहे थे,
मोहन – अरे कुछ नही बंशी बस थोडा थक गया था सो लेटकर थोड़े पैर सीधे कर रहा था
बंशी – भाई तू तो पैर ही सीधा करता रह जायेगा, मैं तो कुछ और ही सीधा करके आ रहा हूँ,,,हा हा हा हा..........
सभी लोग बंशी की बात सुनकर हंसने लगे, कुछ देर ऐसे ही बातो को डोर चलता रहा, पर जैसे जैसे अँधेरा बढ़ता गया लोग धीरे धीरे अपने घरो की तरफ जाने लगे, अब बस वहां बंशी, मोहन और राजू ही बचे थे
राजू – का बात है बंशी बाबु, आज बड़े मूड में लग रहे हो, लगता है भाभी की खैर नाही आज ...हा हा हा......
बंशी – अरे का बताऊ राजू भाई आज गेराज में एक जबरदस्त लोंडिया आई थी गाड़ी सुधरवाने, हाय मैं तो देखकर ही पगला गया, का गोरा गदराया बदन था, एकदम मलाई के माफिक,
मोहन – अरे क्या बंशी तू भी, तू वहां काम करने जाता है कि लोंडिया टापने, हरामी कहीं का, हाहाहाहा .........
बंशी – अरे मोहन बाबु, अभी कितना भी हंस लो, पर अगर एक नज़र तुम उसको देख लिए होते ना, तो तुम्हारा तो वहीं खड़े खड़े पानी निकल जाता , का मस्त बदन था साली का, मन करता था वहीं पकड़ के पेल दे साली को, हाय इन गोरी लडकियों की चूत भी कितनी गोरी होती होगी, और एक हमार वाली है, साली की चूत अँधेरे में कोयला जान पडती है,हा हा हा,,,,,,,,,
राजू – अरे उसी चूत से दो दो बच्चे निकाल दिए रहे तुम, तब कोयला ना दिखी तुझे वो चूत ,ह्म्म्म....हाहाहा....
बंशी – का बात है रे राजू, हमार बीवी की चुत में बड़ी दिलचस्पी दिखा रहे हो हरामी, साले कहीं नजर तो नही गडा रखी हो हमार बीवी पर,
राजू – अरे हमार किस्मत में चूत कहाँ बंशी बाबु, हम तो साला अपना हाथ जगन्नाथ करके ही कम चलावत है, तुहार पास कम से कम कोनो चुत तो है, हमार किस्मत में तो हाथ का ही सुख लिखा है
मोहन – का बात है राजू, आज चुत मारने का बड़ी इच्छा हो रही है का तोहार
राजू – अरे मोहन भाई, ई इच्छा तो साला 24 घंटे रहती है पर करे भी तो का करे, मन मसोस कर और लंड मरोड़ कर ही काम चला लेते है
मोहन – अबे चिंता मत कर, कभी न कभी तेरे लिए भी कोई चुत का इंतज़ाम हो ही जायेगा
बंशी – अरे इसकी छोड़ो मोहन, ई तो ससुरा चोबीस घंटे चुत के सपने देखत है, तुम बताओ , तुम तो ऑफिस वोफ्फिस में काम करत हो, वहाँ तो काफी लोंडिया आती है हम सुने
मोहन – अरे हम तो रोज़ ही एक से एक जबरदस्त लोंडिया देखते है हमरे ऑफिस में, और मालूम है कुछ तो बिलकुल छोटे छोटे घुटनों तक के कपड़े पहन कर आती है, साला सुबह सुबह ही हमार लंड भी बिलकुल अकड जाता है, फिर गुसलखाने (टॉयलेट) में जाकर मुठ मारते है तब कहीं जाकर लंड को थोडा सुकून मिलता है
बंशी – तोहर किस्मत बड़ी अच्छी है मोहन बाबु, कम से कम रोज़ लोंडिया के दर्शन तो हो जाते है, और एक हमार किस्मत, रोजाना साला काले पीले लोगो के चेहरों के सिवा कुछु दीखता ही नही है
राजू - अरे तोहर कैसी किस्मत ख़राब, तू तो शाम को आकर कम से कम चुत तो मार लेता है, हमे देख, किस्मत तो हमारी खराब है, जो साला 23-24 की उम्र में भी लंड हिलाना पड रहा है
राजू की बात सुनकर तीनो हंसने लगते है, उनकी बातो का दौर और लम्बा चलता है और फिर वो लोग जाकर घर में सो जाते है
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शादी का मन्त्र viewtopic.php?t=11467
हादसा viewtopic.php?p=164372#p164372
शैतान से समझौता viewtopic.php?t=11462
शापित राजकुमारी viewtopic.php?t=11461
संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा viewtopic.php?t=11464&start=10
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- pongapandit
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Re: असली या नकली
bechara Raju...........................ha ha ha
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Re: असली या नकली
nice update
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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