सिफली अमल ( काला जादू ) complete

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rajaarkey
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by rajaarkey »

बहुत ही अच्छा अपडेट है दोस्त
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
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jay
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by jay »

superb.....................
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

मैं सॉफ समझ चुका था उन लोगो की बातें "हाहाहा एक पिशचनी के साथ एक गरम गरम ताज़ा खून भी इंसान का मिलेगा वाहह आज तो शिकार में दुगना फायेदा हुआ"........उन लोगो की बातें मेरे ज़हन में ख़ौफ़ पैदा कर रही थी...अबतक मैं चुप था लेकिन मुझे अब मोर्चा संभालना चाहिए था कहीं वो लोग लूसी को मार ना डालें वो एक करके एक पंजे आगे रखते हुए हमारे करीब आने लगे जैसे अब नही तो तब वो हम्पे छलाँग लगा देंगे....लूसी को सबर ना हुआ और वो उनपर उड़ते हुए टूट पड़ी...उन भेड़ियों के झुंड ने उसपे ही सीधे हमला कर दिया वो चिल्लाई कि मैं बताए रास्ते की ओर भागु...पर मैं उसे अकेले मौत के दलदल में छोड़ नही पाया

और तभी एक तेज़वार मुझपे हुआ और मैं कब गश ख़ाके पेड़ से टकराके गिर पड़ा मुझे पता नही......वो भेड़िया मेरे नज़दीक आने लगा...लूसी ने फ़ौरन उसकी गर्दन पे दाँत गढ़ा दिए वो दहाड़ उठा और फिर लूसी ने उसे पूरी ताक़त से दूसरी ओर फैक दिया लेकिन पीछे से दूसरे भेड़िए ने उसपे हमला करके गिरा दिया....अब उन लोगो ने लूसी को घैर लिया और मैं बेबस लाचार उसकी ओर देखने लगा लूसी एकदम ठिठक चुकी थी उसके अकेले के बस का नही था इन ख़ूँख़ार खून के हिंसक जानवरो को मारना...."या अल्लहह मुझे इस बार पूरी ताक़त दे दे ताकि मैं उस मासूम को बचा पाऊ"........मैं खुदा से गुहार लगाने लगा लेकिन रास्ता मेरे सामने था....सूरज अभी निकला नही था....एक ही काम हो सकता था खुद पे दरिंदे को सवार करना..."आआआआआआआआआअहह".........मैं इतनी ज़ोर से गुस्से में ग़र्ज़ा कि उन भेड़ियों की निगाह मेरी ओर होने लगी....धीरे धीरे गुस्सा मुझपे हावी होने लगा और जल्द ही वो गुस्सा मेरे रूप को बदलने लगा

वो भेड़िए मुझे बड़ी गौर से देखने लगे लूसी चुपचाप ख़ौफ़ में सिमटी हुई थी....धीरे धीरे उनके सामने एक इंसान भेड़िए में तब्दील होने लगा....उसकी लंबे नाख़ून बढ़ने लगे उसके पूरे बदन से फाड़ के बाल बढ़ने लगे....एक जानवर में तब्दील होने लगा वो...उसकी आँखे गहरी सुर्ख लाल होने लगी....और उसके दाँत नुकीले होने लगे.....जल्द ही उनके सामने भेड़िया बनके आसिफ़ खड़ा हो चुका था....वो लोग उसे देख कर हक्का बक्का हो गये और उसपे हमला करने के लिए भी तय्यार थे.....भेड़िया उन पाँचो भेड़ियो को घूर्र रहा था...अपने आकार से भी दुगने आकर का भेड़िया उनके सामने खड़ा था....अब बाजी आसिफ़ के हाथो में थी...

उन भेड़ियों की तरफ घुर्राते हुए आसिफ़ ने ललकार दी....उन भेड़ियों को बस मौका चाहिए था और वो उसपे टूट पड़े...लूसी चिल्ला उठी पर उसके हाथ में अब कुछ नही था...आसिफ़ ने पास आ रहे एक भेड़िए की गर्दन को अपने पंजो से दबोच दिया और उसको एक ही झटके में दूसरी ओर हवा में फैक डाला...इस नज़ारे को देख कर चारो भेड़ियों की हड्डिया काँप उठी उन भेड़ियों ने सीधे आसिफ़ को घैरते हुए उसे काट खाना चाहा...एक भेड़िए ने आसिफ़ की टाँग को सख्ती से दाँतों से पकड़ लिया जबकि तीनो उसके बदन के हर अंग को अपने दांतो से पकड़ने की नाकाम कोशिशें कर रहे थे

लेकिन उस भेड़िए के आगे भेड़िए कहाँ टिक पाते?....आसिफ़ ने फ़ौरन अपनी एक लात पीछे के भेड़िए को मारी जो सीधे पेड़ सहित नीचे गिर गया....दोनो भेड़ियों को वो काटने को हुआ और इस भेड़ियों की लड़ाई में काफ़ी खून ख़राबे के बाद...आसिफ़ ने एक भेड़िए को सख्ती से पकड़के उसकी गर्दन को काट डाला..वो रोई आवाज़ में वही गिर पड़ा...दूसरे भेड़िए को गर्दन सहित पकड़के आसिफ़ ने उसे झाड़ियों में फैक डाला वो अभी उठ भी पाता...उसके गले पे आसिफ़ के सख़्त भारी पंजो के पाँव थे अब वो उठने के लायक नही रहा और फिर आसिफ़ ने उस भेड़िए की गर्दन को काट के उसका काम वही तमाम कर दिया...दो भेड़िए अब भी लड़ने को पास आए

पर आसिफ़ ने उन दोनो भेड़ियों को अपनी मज़बूत ताक़त से उछाल उछाल के पछाड़ दिया...दोनो की मिमियती आवाज़ को सुन आसिफ़ बस घुर्राटे हुए दाँत निकाले उन घायल भेड़ियों की तरफ देख रहा था....अचानक पीछे से एक भेड़िए ने हमला करना चाहा...पर उसकी गर्दन आसिफ़ के पंजो में गिरफ़्त हो चुकी थी इससे पहले कि वो उसपे हावी हो पाता...जल्द ही उस भेड़िए ने अपनी आँखे बंद कर ली उसका गला आसिफ़ घोंट चुका था...जब आसिफ़ को लगा कि वो मर चुका है तो उसने उसे फ़ौरन ज़मीन पे फ़ैक् डाला और उन दोनो की ओर देखने लगा

वो दोनो भेड़िए पंजो के बल बैठके आसिफ़ की ओर झुक गये मानो जैसे उन्हें अपनी हार मंज़ूर थी और फिर उन्होने हववव हववव करके रोना शुरू कर दिया.....आसिफ़ बस उन्हें घूर्र रहा था फिर आसिफ़ धीरे धीरे भेड़िए के रूप से बदलते हुए इंसान में तब्दील होने लगा...लूसी पास आ चुकी थी उसे आसिफ़ की ताक़त पे नाज़ हुआ....आसिफ़ उनके मन को पढ़ने लगा उनकी भौंकने की आवाज़ को पहचानते हुए मुस्कुराया

भेड़िए : हमे अपनी हार मंज़ूर है आपके आगे हम झुकते है

आसिफ़ : इस दुनिया में कोई किसी का गुलाम नही हम सब आज़ाद जानवर है जाओ मैने तुम्हारी ज़िंदगियो को रिहा किया

भेड़िए : नही आका हम अपनी ग़लती पे शर्मिंदा है आप हमे जो चाहे सो सज़ा दे सकते है हमारी हार आज पहली बार हमसे भी बड़े भेड़िए से हुई है हम आपको अपना राजा मानते है

आसिफ़ : मुझे कोई राजा नही बनना मैं एक महेज़ शापित इंसान हूँ ठीक है तो तुम लोग मुझे एक वचन दो

भेड़िए : बोलिए आका हम आपके सभी शर्तों के लिए तय्यार है

आसिफ़ : आज के बाद तुम लोग कभी भी मासूम इंसानो का शिकार नही करोगे और ना ही किसी पिसाच को मारोगे बशर्ते अगर वो तुम्हारे दुश्मन ना हो तुम लोग यहाँ से कहीं दूर चले जाओ जहाँ से दोबारा लौटके ना आओ जहाँ इंसान तो क्या किसी और पिसाच की भी परछाई ना पड़े अपनी अलग बस्ती बनाओ

भेड़िए : जी आका हमे मंज़ूर है (उन भेड़ियों ने अपना सर आसिफ़ के आगे झुका लिया.....फिर आसिफ़ ने उन्हें देखते हुए ज़ोर से भेड़िए की आवाज़ निकाली हववववववववव ये जीत की खुशी थी वो भेड़िए भी आसिफ़ की आवाज़ के साथ चिल्ला उठे....जंगल में चारो ओर ये आवाज़ गूँज़ उठी)


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sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )

Post by sexi munda »

फिर वो भेड़िए एक एक करके अलविदा कहके भाग गये...आसिफ़ बस मुस्कुराया "मान गये तुम्हें तुम ऐसे ही मालकिन के भाई नही कहलाए हो....एक सोने का दिल रखने वाला इंसान जो चाहे तो हमारे इन कट्टर दुश्मनो को मार सकता इंसाफ़ करके ऐसा समुझौता कर पाया है"........मैं बस मुस्कुराया और फिर देखा कि धीरे धीरे सूरज उगने लगा है....हम दोनो जल्द ही मेरा बेहोश घोड़ा जो जाग चुका था उसपे सवार होके घाटी की ओर बढ़ने लगे.....कितनी खूबसूरत घाटी थी चारो ओर चिड़ियो की आवाज़ें उफ्फ ऐसी जन्नत और कहाँ?....लूसी मुझे बताने लगी कि उन भेड़िए के संगठन ने नाक में दम कर रखा था उनकी दुश्मनी सालो साल से चली आ रही थी पर आज पहली बार उन्हें किसी ने हरा कर समझौता किया है....अब वो खुश है और यक़ीनन मालकिन शीबा भी फकर करेंगी कि उनका सबसे कट्टर दुश्मन उनके इलाक़े से दूर जा चुके है....मैं बस मुस्कुराया और सूरज की ओर देखने लगा

जल्द ही हम एक पहाड़ के सामने थे एक उँचा पहाड़....सामने नहेर की आवाज़ आ रही थी....पानी बह रहा था उसमें चारो ओर हरा भरा जंगल और खूबसूरत वादियाँ...."उस पहाड़ को पार करते ही हमारा क़िला आ जाएगा चलो चले".........इतना कहके घोड़ा फिर पूरी रफ़्तार से उस ओर बढ़ने लगा....पहाड़ के रस्तो से उबड़ खाबड़ चलते हुए मैं अपनी मंज़िल से महेज़ कुछ ही दूरी पे था.....चार्ल्स की बात दिमाग़ में घूम सी गयी थी "उस पहाड़ को देख रहे हो...उस पहाड़ के बाद मौत शुरू होती है जहा सिर्फ़ मौत बसती है पिसाच जैसे ख़ूँख़ार जानवर सब वही रहते है....और हम इंसान इस छोटी सी बस्ती में हमारे में किसी की भी हिम्मत नही की उस ओर चले जाए सब ख़ौफ़ खाते है ये भूल तुम कभी मत करना".........चार्ल्स की उस बात को सुनके सच में मुझे अज़ीब महसूस हो रहा था....अच्छा हुआ ये सच्चाई कभी नही खुल पाएगी

जल्द ही मेरी सोच तब टूटी...जब लूसी ने मेरे बदन को झिंजोड़ा और सामने उंगली का इशारा किया...सामने पहाड़ जैसे ख़तम हुए उसी रास्ते से काफ़ी दूरी पे एक बड़ा सा क़िला देखने को मिला....मानो कितना पुराना था और कितना खूबसूरत.."यही है मालकिन और हमारा घर".........लूसी ने मुस्कुरा के जवाब दिया...मैं उसके साथ धीरे धीरे रास्ते पे चलता हुआ उस ओर आया घोड़ा पहले तो सहम उठा....पर मैने उसे समझाया कि उसे डरने की ज़रूरत नही उसे कुछ नही होगा...जल्द ही हम क़िले के बेहद करीब थे....ऐसा लग रहा था क़िला करीब 150 साल पुराना तो था ही...क्यूंकी उसकी एक एक ईंट काफ़ी पुरानी और जर्जर हो चुकी थी....कभी ये क़िला वहाँ के राजा स्किवोच का था लेकिन उनकी मृत्यु के बाद इस क़िले को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दिया गया और आज यहाँ सिर्फ़ पिशाचो का वास था मुझे यकीन नही हो रहा था कि मेरी बाजी शीबा इन पिशाचो की रानी बन गयी थी

जल्द ही सामने एक बरा सा द्वार था जो चरर चर्राते हुए खुल गया हम अंदर दाखिल हुए अंदर एक खुला मैदान सा था और चारो ओर के इमारतो से घिरा......वहाँ के एकदम सन्नाटे भरे इलाक़े को देख मुझे हैरानी हुई....मैं और लूसी उतरे लूसी ने जो अपने बदन को कपड़े से ढक रखा था उसे उतार डाला...."आओ मेरे साथ"........मैने घोड़े को अपने साथ ले जाने लगा "इसे यही छोड़ दो ताकि ये खुली वादियो में रहे".......मैने घोड़े को वही बाँध दिया...और लूसी के साथ चलने लगा.....लूसी ने एक मशाल पास रखी उठाई और फिर उसे फुका मशाल अपने आप जल उठी

हम धीरे धीरे सीडियो से उपर चढ़ने लगे और फिर दूसरी ओर काफ़ी गुफा जैसी उची दीवारे और बंद चारो तरफ से थी....जल्द ही हम एक डाइनिंग हॉल जैसी जगह में दाखिल हुए....सामने एक विशाल गद्दी पे बैठी सरताज और वेश भूषा में एक लड़की ने मेरी तरफ आँख घुमाई "लूसी उनके पास जाके सर झुकाके घुटनो के बल बैठके मालकिन हुकम बोल उठी".........जैसे ही मेरी निगाह उस रानी पे पड़ी मेरे चेहरे पे खुशी की ल़हेर दौड़ उठी वो रानी मुस्कुराई एकदम से अपनी गद्दी से उठी और मेरी ओर जैसे दौड़ पड़ी

"ओह्ह्ह आसिफ्फ तुम आख़िर आ ही गये".......शीबा बाजी मेरे गले लग्के मुझे खूब प्यार करने लगी

"हां बाजी मैं आ गया आपके बिना कैसे रह पाता?"........मैं शीबा बाजी के चेहरे को हाथो में भरके उनके गाल और गले को चूमने लगा....लूसी की आँखो में भी खून के आँसू थे....शीबा बाजी ने मेरी खातिर दारी शुरू कर दी....

कुछ देर बाद वहाँ एक और शक्स आया....और उसके पीछे भी बहुत से पिसाच जो मुझे आँखे फाडे देख रहे थे...वो सब मुझसे वाक़िफ़ थे इस बात का मुझे यकीन था....बाजी ने धीरे धीरे उन सबसे मुझे मिलवाया वो सब राज घराने के गुलाम थे....उन सबको मेरी कहानी पता थी..कुछ पिसाच बहुत उम्रदराज थे मानो बेहद पुराने हो कभी इस राजा स्किवोच के मुलाज़िम होया करते थे और आज भी है...उन पिसचो को मेरे गरम खून की गंध मिल ज़रूर रही थी उन्हें पता लग चुका था कि मैं एक शापित भेड़िया हूँ...पर उन्होने मुझे कुछ नही कहा मैं थोड़ा सम्भल ज़रूर गया था उनसे वो लोग मेरे लिए अजनबी थे.....शीबा बाजी ने बताया कि इनमें से कुछ पिसाच उनके ही बनाए हुए है जो कभी इंसान थे उनकी तरह और वो सब जानवरों का शिकार करते है उनका ताज़ा खून पीते है और उनमें से लूसी भी थी शीबा बाजी की सबसे अज़ीज़
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