Adultery मस्तराम की कहानियाँ

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mastram
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भर डाल अपनी माँ की चूत

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भर डाल अपनी माँ की चूत



मेरा नाम रणजीत है। मैं कॉलेज में अन्तिम वर्ष में पढ़ता हूँ। मेरी उम्र २४ है। मैं बीच की छुट्टियों में मेरे गाँव गया। गाँव में हमारा बड़ा घर है। वहाँ मेरी माँ और पापा रहते हैं। मेरे पापा एक बिल्डर हैं, और माँ एक गृहिणी। हम बहुत अमीर घराने से हैं। हमारे घर में नौकर-चाकर बहुत हैं।
मैं मेरे गाँव गया। दोपहर में मेरे घर पहुँचा। खाना हुआ और थोड़ी देर सोया। शाम को माँ के साथ थोड़ी बातें कीं और गाँव घूमने चला गया। रात क़रीब मैं ८ बजे घर आया। माँ का मूड ठीक नहीं था। मैंने माँ को पूछा,”माँ, पापा कहाँ हैं?”

माँ ने कुछ जवाब नहीं दिया। मेरी माँ बहुत गुस्सेवाली है। वह जब गुस्से में होती है तब वह गन्दी गालियाँ भी देती है। लेकिन वह नौकरों के साथ ऐसा नहीं करती, गालियाँ नहीं देती। माँ ने कहा,”चल, तू खाना खा ले… आज अपना बेटा आया, फिर भी यह घर नहीं आए… तू खा… हम बाद में फार्म-हाउस पर जाएँगे… वहाँ पर तेरे पापा का काम चल रहा है…”

मैंने खाना खाया और हम निकले। पापा ने मेरी माँ को स्कूटर दी थी। हमारा फार्म-हाउस हमारे घर से एक घन्टे पर ही था। माँ ने स्कूटर निकाली, मैं माँ के पीछे बैठ गया। हाँ मेरे माँ का नाम रीमा है, उसकी उम्र ४५ है लेकिन वो सुन्दर है, वो एक सामान्य गृहिणी है… सेहत से तन्दुरुस्त… थोड़ी मोटी सी।

“चलो चलें…” – माँ ने पंजाबी पोशाक पहनी थी… मैं माँ के पीछे था… हम चल दिए… मैंने मेरे हाथ से स्कूटर के पीछे टायर को पकड़ रखा था। माँ बीच-बीच में कुछ कह रही थी लेकिन कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। शायद बहुत ही गुस्से में थी… एक घन्टे में हम फार्म-हाउस पर पहुँच गए। फार्म-हाउस के दरवाज़े पर चौकीदार था। उसने माँ को टोका… और कहा,”साहब यहाँ नहीं हैं… वो शहर गए हैं।” वह हमें दरवाज़े के अन्दर जाने से रोक रहा था।

माँ ने कहा,”ठीक है।” और स्कूटर चालू की… हम थोड़ी ही आगे गए और माँ ने स्कूटर रोक दी। उसे कुछ शक हुआ…
उसने मुझसे कहा,”तू यहीं रुक, मैं आती हूँ।”

माँ बंगले की तरफ चली गई। और चौकीदार का ध्यान बचाकर अन्दर चली गई। बंगले में जाकर खिड़कियों में ताक-झाँक करने लगी। मैंने देखा कि माँ क्यों नहीं आ रही है, और मैं भी वहाँ चला गया। मैंने देखा – माँ बहुत देर तक वहाँ खड़ी थी और खिड़की से अन्दर देख रही थी। वह क़रीब १०-१५ मिनट वहीं खड़ी थी। मैं थोड़ा आगे गया। माँ ने मुझे देखकर कहा,”साले तुझे वहीं रुकने को कहा था तो तू यहाँ क्यों आया? चल वापिस चल, हमें घर जाना है।” माँ को इतने गुस्से में मैंने कभी नहीं देखा था।

मैं फिर से स्कूटर पर बैठ गया। रास्ते में बारिश चालू हुई। मेरे हाथ पीछे टायर पर थे। गाँव में रास्ते में लाईट नहीं थी। तभी माँ की गाँड मेरे लण्ड को लगने लगी। मैं थोड़ा पीछे आया। लेकिन माँ भी थोड़ा पीछे आई और कहा,”ऐसे क्यों बैठा है, ठीक से मुझे पकड़ कर बैठ।”
मैंने मेरे दोनों हाथ माँ के कन्धों पर रखे, लेकिन ख़राब रास्ते के कारण हाथ छूट रहे थे।

माँ ने कहा,”अरे, पकड़, मेरी कमर को, और आराम से बैठ।” मैंने माँ के कमर पर पकड़ा, लेकिन धीरे-धीरे मेरा हाथ उसकी चूचियोँ पर लगने लगे। वाह! उसकी चूचियाँ… क्या नरम-नरम मुलायम मखमल की तरह लग रहे थे। और मेरा लण्ड भी ९० डिग्री तक गया। वो मेरी माँ की गाँड से चिपकने लगा। माँ भी थोड़ी पीछे आई। ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड माँ की गाँड में घुस रहा है।

हमारा घर नज़दीक आया। हम उतर गए। क़रीब रात ११:४५ को हम घर आए। माँ ने कहा,”तू ऊपर जा… मैं आती हूँ।”
माँ ऊपर आई… वो अभी भी गुस्से में लग रही थी। मालूम नहीं, वो क्यों बीच-बीच में कुछ गालियाँ भी दे रही थी। लेकिन वो सुनाई नहीं दे रहा था।

माँ ने कहा,”आ, मैं तुझे बिस्तर लगा दूँ।” उसने उसकी चुन्नी निकाली और वह मेरे लिए बिस्तर लगाने लगी। मैं सामने खड़ा था। वह मेरे सामने झुकी और मैं वहीं ढेर हो गया। उसकी चूचियाँ इतनी दिख रहीं थीं कि मेरी आँखें बाहर आने लगीं। उसकी वो चूचियाँ देखकर मैं पागल हो उठा। उसने काली ब्रा पहन रखी थी। उसकी निप्पल भी आसानी से दिख रही थी।

तभी माँ ने अचानक देखा और कहा,”तू यहाँ सो जा।”
लेकिन मेरा ध्यान नहीं था। वो सामने झुकी… और मेरा ध्यान उसकी चूचियों पर था। वो यह बात समझ गई और ज़ोर से चिल्लाई,”रणजीत, मैंने क्या कहा ! सुनाई नहीं देता क्या? तेरा ध्यान किधर है? साले मेरी चूचियाँ देख रहा है?”

यह सुनकर मैं डर गया लेकिन मैं समझ गया कि माँ को लड़कों की भाषा मालूम है।
उसने बिस्तर लगाया और कहा… “मैं आती हूँ अभी।”
वह नीचे गई। मैंने देखा उसने हमारे बंगले के चौकीदार को कुछ कहा और ऊपर मेरे कमरे में आ गई। हम दोनों अभी बारिश की वज़ह से गीले थे। माँ मेरे कमरे में आई, दरवाज़े की कड़ी लगाई और उसने अपनी पंजाबी पोशाक की सलवार निकाल कर बिस्तर पर रख दी, मैं मेरी कमीज़ निकाल ही रहा था, इतने में माँ मेरे सामने खड़ी हो गई।

माँ ने मेरी शर्ट की कॉलर पकड़ी और मुझे घसीट कर मेरे बाथरूम में ले गई। मेरे कमरे में ही एक बाथरूम था। माँ फिर बाहर गई और मेरे कमरे की बत्ती बन्द करके मेरे सामने आ के खड़ी हो गई। उसने मेरी तरफ देखा, एक कपड़ा लिया और मेरे बाथरूम की खिड़की के शीशे पर लगा दिया। इसके पीछ वज़ह होगी कि बाथरूम में रोशनी थी और खिड़की से कोई अन्दर ना झाँक सके। फिर से उसने मेरी ओर देखा… वो अभी भी गुस्से में लग रही थी। तुरन्त ही उसने मेरे गालों पर एक ज़ोर का तमाचा मारा…. मैं माँ की तरफ ही गाल पर हाथ रख कर देख रहा था। लेकिन तुरन्त ही उसने मेरे गालों को चूमा और अचानक उसने उसके होंठ मेरे होंठों पर लगा कर मुझे चूमना चालू कर दिया… मैं थोड़ा हैरान था लेकिन मैंने भी माँ की वो बड़ी-बड़ी चूचियाँ देखीं थीं और माँ के साथ मेरे विचार गन्दे हो चुके थे। चूमते-चूमते उसने फिर से मेरी ओर देखा, वो रुक गई… फिर अपनी पूरी ताकत लगा कर उसने अपनी ही ड्रेस फाड़ डाली। फिर तुरन्त उसने मेरी कमीज़ भी खोल दी।

जब उसने अपनी ड्रेस फाड़ी… ओओओहहहहहह…. मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि माँ की चूचियाँ इतनी बड़ी होंगीं। वो तो उसकी ब्रा से बाहर आने के लिए आतुर दिख रहीं थीं। फिर वो मुझे चूमने-चाटने लगी..

उसने मुझे चड्डी उतारने को कहा… “साले, अपनी चड्डी तो उतार !”
मैंने अपनी चड्डी उतार दी, और मैं अपनी माँ पर चढ़ गया… मैं भी उसकी चूचियों को चाटने लगा-चूमने लगा और ज़ोरों से दबाने लगा… मैंने भी माँ की ब्रा फाड़ डाली। मैं भी एकदम पागलों की तरह माँ की चूचियाँ दबाने लगा… और माँ के मुँह से आहें निकलने लगीं… “आआआआआ ओओओओओओ ईईईमममम ओओओओओ…. साआआआलेएएएए आआआआआ… ओओओओईईईईएएए”। इतने में उसने मुझे धक्का दिया और एक कोने में छोटी बोतल पड़ी थी उसमें उसने साबुन का पानी बनाया और शावर चालू किया और कहा… “मैं जैसा बोलती हूँ… वैसा ही कर।” वह पूरी तरह से ज़मीन पर झुकी और दोनों हाथों से अपनी गाँड को फैलाया और कहा… “वो पानी मेरी गाँड में डाल।”

मैंने वैसा ही किया। साबुन का पानी माँ की गाँड में डाला। माँ उठी और मेरे लंड को पकड़ा और साबुन लगाया। दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हुई और कहा,”साले, भँड़वे, चल तेरा लंड अब मेरी गाँड में घुसा।” जैसा आप पहले पढ़ चुके हैं कि मेरी माँ कभी-कभी गालियाँ बहुत देती है। मैंने मेरा लंड माँ की गाँड पर रखा और ड़ोर का झटका मार दिया।

माँ चिल्लाई,”आआआआ म्म्म्मममममउउऊऊऊऊऊऊ… आआआआ, साले भँड़वे बता तो सही तू डाल रहा है”

साबुन की वज़ह से मेरा लंड पहले ही आधे से अधिक घुस गया, और मैं भी माँ को ज़ोरों के झटके देने लगा। माँ चिल्लाई… “साले, भँड़वे… आआआ… उउउऊऊऊऊ… उईईईईई….. आआआआ”

मैं भी थोड़ा रुक गया।

माँ बोली,”दर्द होता है, इसका मतलब यह नहीं कि मज़ा नहीं आताआआआआआ… मार और ज़ोर से मार… बहुत मज़ा आता है… भँड़वे बहुत सालों के बाद मैं आज चुदाई के मज़े ले रही हूँ…. आआआआईईईई आआईईईईईई… आआउउऊऊऊऊऊ…. मार… मार…. मार… आआआआ”
वो भी ज़ोरों से कमर हिला कर मुझे साथ दे रही थी और मेरे झटके एकदम तूफ़ानी हो रहे थे। मेरा क़द ५.५ और माँ का ५… हम खड़े-खड़े ही चोद रहे थे… उसकी गाँड मेरी तरफ, मैं उसकी गाँड मार रहा था… उसका मुँह उस तरफ और हाथ दीवार पर थे… मैं एक हाथ की ऊँगली उसकी चूत में डाल रहा था.. और दूसरी ओर दूसरे हाथ से उसकी चूचियाँ दबा रहा था।

तभी उसने मेरी तरफ मुँह किया और एक हाथ से मेरे गाल पकड़े और मेरे होंठों पर उसके होंठ लगाए। हम कामसूत्र के एक आसन में खड़े थे। वह भी मेरे होंठों को चूम कर बोली… “तू… थोड़ी देर पहले मेरी चूचियाँ देख रहा था ना… मादरचोओओओओओदददद… हाय रे तू… मैं अभी तुझे पूरा मादरचोद बनाऊँगीईईई… .आआआ…”

तभी मैं माँ को बोला… “आज इतने गुस्से में क्यों हो?”

माँ बोली… “साले… सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। आआईईई उउओओओओउउऊऊऊ… जानता है… जब हम फार्म-हाऊस पर गए… ओओईईईई…. मैंने क्या देखा… खिड़कीईईईई…ईईई सेएएए…”

मैं एक तरफ झटके दे रहा था इसलिए माँ बीच-बीच में ऐसी आवाज़ें निकालती हुई बात कर रही थी।
मैंने पूछा “क्या देखा तूने?”

माँ ने कहा,”तेरा बाप किसी और औरत को चोद रहा था। ईईई ओओओओओ…. आआआआ… मैं हमेशा इन्तज़ार करती थी… अब मुझे समझ आया … वो बाहर चोद लेता है… आआआ… ईईईई…. ओओओओओओ”

मैं रुक गया। वह बोली “तू रुक मत… चोद मुझे भँड़वे… अपनी माँ को चोद। आज से तेरी माँ… हमेशा के लिए तेरी हो गई है। आज़…”
मैंने चोदना चालू कर दिया, माँ कहती रही – “ओओओआआआआईईईम्म्म तू ही मेरा सामान है…. आआओओओओईईईम्म्म्मममम… अच्छा लग रहा है।”

तभी मैंने माँ की गाँड में ओर ज़ोर का झटका मारा… वो भी उसकी गाँड ज़ोरों से आगे-पीछे हिला रही थी… आख़िर में मैंने ज़ोर का झटका दिया और मेरे लंड का पानी माँ की गाँड में डाल दिया… माँ चिल्लाई… “आआआओओओओओम्म्म्म्ममम ईईईईईई… कितना पानी है तेरे में…. खत्म ही नहीं हो रहा है। आआउउऊऊऊ… क्या मस्त लग रहा है… साआआआला मादरचोद… सही चोदा तूने मुझे।”

थोड़ी देर हम एक-दूसरे से ऐसे ही चिपके रहे और फिर पलंग पर चले गए और सो गए।
थोड़ी देर के बाद मेरी नींद खुली… माँ मेरे पास ही सोई थी। हम दोनों अभी भी नंगे ही थे। मैं माँ की चूत में ऊँगली देने लगा। तभी माँ की नींद खुली और वो बोली,”क्या फिर से चोदेगा?”

मैंने कहा,”मुझे तेरी चूत चाहिए, तेरी गाँड तो मिल गई, लेकिन तेरी चूत चाहिए…”
और फिर से उसकी चूत में ऊँगली डालने लगा, उसे सहलाने लगा। मुझसे नियंत्रण नहीं हुआ। मैंने माँ के दोनों पाँव ऊपर किए और मेरा लंड माँ की चूत पर रखा और ज़ोर से धक्का मारने लगा। मैंने झटके देना चालू किया। तभी माँ भी कमर हिला कर मुझे साथ देने लगी। मेरे झटके बढ़ने लगे… माँ चिल्लाने लगी… “आआआहहहह चोददद.. और चोद.. फाड़ डाल मेरी चूत… तेरे बाप ने तो कभी चोदा नहीं… लेकिन तू चोद… और चोद… मज़े ले मेरीईईईई चूत के… आआआओओओओउउऊऊऊ… ईईईई… और तेज़…., और तेज…, आआआआआआईईईमईईईईईओओआआआ… आआआआआ… ओओओओओ….”

माँ भी ज़ोरों से कमर हिलाने लगी और मैं माँ की चूचियों और ज़ोरों से दबा रहा था। माँ बोली “चोद रे… मादरचोद, और चोद… दबा मेरी चूचियाँ… और दबा… और चाट और काट मेरी चूचियों को… और उन्हें बड़े कर दे, ताकि वे मेरी ब्लाऊज़ से बाहर आ जाएँ। दबा और दबा… चल डाल पानी अब… भर डाल अपनी माँ की चूत… पानी से… आआओओओओ… तेरे गरम पानी से…. आआआओओओ…”

तभी मैंने ज़ोर का झटका दिया और मेरे लंड का पानी माँ की चूत में डाल दिया। माँ चिल्लाई… “आआआ… ईईई…. क्याआआआ गरम पानी है…. जैसे असली जवानी… आज से तू मेरा बेटा नहीं… मेरा ठोकया है…. आज से तू मुझे ठोकेगा… आआआओओओईईईई… क्या पानी है… सालों बाद मिलाआआआआ…. आज के बाद अच्छी हो गई… तेरे पाप उस रण्डी के साथ गए… लेकिन उनकी ही वज़ह से मुझे मेरा ठोकया मिल गया…” आज से तू ही मुझे ठोकेगा…”

थोड़े दिनों के बाद मैं शहर चला गया और मेरे कॉलेज में रम गया। माँ और मैं छुट्टियों की प्रतीक्षा करते, और मौक़ा मिलते ही हम एक-दूसरे की चुदाई करते।
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mastram
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पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो-1

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पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो


मैं बिहार के एक गाँव का हूँ।
पुणे में, इंजिनियरिंग कर रहा हूँ।
उम्र 22 साल, रंग गोरा और मजबूत कद काठी।
सेक्स के बारे में, उस समय मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानता था।
बस कभी कभार पेड़ पर, झाड़ियों में छुप कर गाँव की लड़कियों और औरतों को नहाते और उनको अपनी छातियों को मलते देखा है।
मेरी गाँव में, काफ़ी लंबी चौड़ी जमींदारी है।
बड़ी सी हवेली है। नौकर चाकर।
घर में, वैसे तो कई लोग हैं। पर, मुख्य हैं – मेरे पापा, माँ, चाचा और चाची।
राघव, हमारी हवेली का मुख्य नौकर है और उसकी पत्नी, जमुना मुख्य नौकरानी।
मेरे पापा, करीब 52 के होंगे और माँ करीब 48 की।
मेरा जन्म, इस हवेली में हुआ है और यहीं पर मैंने अपना पूरा बचपन और जवानी के कुछ साल बिताए हैं।
राघव की उम्र, तकरीबन 42 की होगी और जमुना की करीब 36–37 की।
उनकी बेटी श्रुति की उम्र, तकरीबन 17-18 की होगी। जो की, मेरे से करीब 5 साल छोटी थी।
बचपन में, श्रुति मेरे साथ ही ज़्यादातर रहती थी।
मैं उसे पढ़ाता था और हम साथ में खेला भी करते थे।
हमारा पूरा परिवार, राघव और जमुना को बहुत मानता था।
मैं तांगे पर बैठा था और तांगा, अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था।
मेरे गाँव का इलाक़ा, अभी भी काफ़ी पिछड़ा हुआ है और रास्ते की हालत तो बहुत ही खराब थी।
जैसे तैसे, मैं अपने गाँव के करीब पहुँचा।
यहाँ से मुझे, करीब पाँच किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी थी।
शाम हो आई थी।
मैंने जल्दी जल्दी, चलना शुरू कर दिया।
गाँव पहुँचते पहुँचते, रात हो गई थी।

मेरे घर का दरवाजा, खुला हुआ था।
मुझे ताजूब नहीं हुआ क्योंकि मेरे परिवार का यहाँ काफ़ी दबदबा है।
मैं अंदर घुसा और सोच रहा थे की सब कहाँ गये और तभी मुझे, श्रुति दिखाई पड़ी।
मैंने उसको आवाज़ लगाई।
वो तो एकदम से हड़बड़ा गई और खुशी से दौड़ कर, मेरे सीने से आ लगी।
उसने मुझे, अपने बाहों में भर लिया।
मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर कर, ऊपर उठा लिया और उसे घुमाने लगा।
वो डर गई और नीचे उतारने की ज़िद करने लगी।
मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घूमता ही रहा।
तभी एकदम अचानक से, मुझे उसकी “जवानी” का एहसास हुआ।
एकदम से गदराई हुई छाती, मेरे सीने से दबी हुई थी।
एक करेंट सा लगा, मुझे।
रोशनी हल्की थी, इसलिए मैं चाह कर भी उसकी चूचियाँ नहीं देख पाया पर देखने की क्या ज़रूरत थी।
मैं उसके बूब्स का दबाव, भली भाँति समझ रहा था।
मैंने धीरे से, श्रुति को उतार दिया।
श्रुति खड़ी होकर, अपनी उखड़ी हुई साँस को व्यवस्थित करने लगी।
मैं उस साधारण रोशनी में भी, उसके सीने के उतार चढ़ाव को देख रहा था।
एक मिनट बाद, वो मेरी तरफ झपटी और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।
मैं हंसता हुआ, उसकी तरफ लपका तो वो भागने लगी।
मैंने पीछे से, उसको दबोच लिया।
वो, हंस रही थी।
मुझे उसकी निश्चल हँसी, बहुत ही प्यारी लगी लेकिन मेरे मन में “शैतान” जागने लगा था।
जब मैंने उसको दबोचा तो जान बुझ कर, मैं उसके पीछे हो गया और पीछे से ही उसको अपने बाहों के घेरे में ले लिया।
बचपन के साथी थे, हम इसलिए उसको कोई एतराज नहीं था।
ऐसा, मैं सोच रहा था।
मैंने धीरे से, अपना उल्टा हाथ उसके सीधे मम्मे पर रख दिया और बहुत ही हल्के से दबा भी दिया।
हे भगवान!! मैंने कभी भी सोचा ना था की लौंडिया की चूची दबाने में, इतना मज़ा आता है।
मेरे मुँह से एक सिसकारी, निकलते निकलते रह गई।
मैंने उसे यूँ ही दबाए हुए पूछा – घर के सब लोग, कहाँ गये हैं.. !!
उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया की सब लोग पास के गाँव में शादी में गये हैं और घर पर उसके माँ और पिताजी के अलावा और कोई नहीं है.. !!
बात करते हुए, मैं उसकी चूची को सहला रहा था।
वो घाघरा चोली में थी और उसने कोई ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं बता नहीं सकता, साहब की मैं कौन से आसमान पर उड़ रहा था।

उसकी मस्त चूची का ये एहसास ही, मुझे पागल किए दे रही थी।

पर मैं हैरान था की उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं हो रही है।
हम आँगन में खड़े थे और मैं बहुत हल्के हल्के, उसकी चूचियों को सहला रहा था और वो हंस हंस के मुझसे बात किए जा रही थी।
उसने खुद को मुझसे छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
मुझे एक झटका सा लगा।
क्या श्रुति एकदम इनोसेंट (मासूम) है और उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे मन ने मुझे धिक्कारा और मैं एक दम से, जैसे होश में आया और श्रुति को छोड़ दिया।
फिर उसने मेरा सूटकेस उठाया और हम दोनों, मेरे कमरे की तरफ चल पड़े।
नहा धो कर, मैंने शॉर्ट और बनियान पहन लिया और अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा हो गया।
हमारे गाँव में लाइट कम ही आती है, इसलिए लालटेन से ही ज़्यादातर काम होता है।
बरामदे की लालटेन की रोशनी आँगन में पड़ रही थी और चाँद की रोशनी भी।
तभी मैंने जमुना को, आँगन में आते हुए देखा।
उसके हाथ में, कुछ सामान था।
वो सामान को एक तरफ रख कर खड़ी हुई थी की आँगन में, मेरे चाचा ने प्रवेश किया।
चाचा – क्या रे, जमुना.. !! भैया भाभी, सब आए की नहीं.. !!
जमुना – कहाँ मालिक, अभी कहाँ.. !! उनको तो लौटने में, काफ़ी देर हो जाएगी.. !!
चाचा – और राघव.. !!
जमुना – वो तो शहर गये हैं.. !! कुछ कोर्ट का काम था.. !! बड़े मालिक ने भेजा है.. !! शायद, आज ना आ पाए.. !!
चाचा – हूँ.. !! तो फिर आज पूरे घर में कोई नहीं है.. !!
जमुना – जी मालिक.. !!
चाचा – अच्छा, ज़रा पानी पिला दे.. !!
मैं अपनी खिड़की पर ही खड़ा था, जो की दूसरी मंज़िल पर है।
उन दोनों को ही, मेरे आगमन का पता नहीं था।
चाचा खटिया पर बैठ कर, अपने मूँछो पर ताव दे रहे थे।
अचानक, वो उठे और उन्होंने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।
उनकी ये हरकत, मुझे बड़ी अजीब लगी।
दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत थी।
मेरा माथा ठनका।
मैं कुछ सोच पता इसके पहले ही, जमुना एक प्लेट में गुड और जग में पानी ले कर आई।
चाचा ने पानी पिया और उठ खड़े हुए।
जमुना जैसे ही जग लेकर घूमी, चाचा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
कहानी को बीच में रोकते हुए, मैं जमुना के बारे मैं कुछ बता दूँ।

एकदम, “मस्त माल” है।
5 फीट 4 इंच की लंबाई, मेहनत कश शरीर, पतली कमर, भरा पूरा सीना – 36 साइज़। एकदम से उठाव लिया हुआ, मानो उसके स्तन आपको चुनौती दे रहे हो की आओ और ध्वंस कर दो, इन गगनचुंबी पर्वत की चोटियों को।
भारी भारी गाण्ड, मानो दो बड़े बड़े खरबूजे।
जब चलती है तो गाँव वालों में, हलचल मच जाती है।
सारे गाँव वाले राघव से जलते थे की साले ने क्या तक़दीर पाई है।
मस्त चोदता होगा, यह जमुना को और जमुना भी इसे निहाल कर देती होगी।
मैंने खुद कई बार लोगों को उसकी छातियों की तरफ या फिर, उसके गाण्ड की तरफ ललचाई नज़रों से घूरते हुए देखा है।
मैं तब, इसका मतलब नहीं जानता था।
खैर, चाचा के इस बर्ताव से जमुना हड़बड़ा गई।
चाचा ने उसे अपनी तरफ खींचा तो वो जैसे होश में आए।
जमुना – मालिक, ये आप क्या कर रही हैं.. !!
चाचा – क्यों क्या हुआ.. !! तू मेरी नौकरानी है.. !! तुझे मुझे हर तरह से, खुश रखना चाहिए.. !!
जमुना – नहीं मालिक.. !! मैं और किसी की बीवी हूँ.. !!
चाचा – साली, रांड़.. !! नखरे मारती है.. !! सालों से, कम से कम 100 बार तुझे चोद चुका हूँ.. !! कौन जाने, श्रुति मेरी बेटी है या राघव की.. !!
जमुना ने ठहाका लगाया और बोली – अरे मालिक, आपको तो गुस्सा आ गया.. !! आओ, मेरे मालिक मेरा दूध पिलो और अपना दिमाग़ ठंडा करो.. !! असल में, मैं तो खुद कब से इस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी की किसी दिन यह घर खाली मिले और श्रुति के बापू भी घर में ना रहें.. !! उस दिन आप के साथ, “पलंग कबड्डी” खेला जाए.. !! पर मालिक, मैं औरत हूँ.. !! थोड़ा नखरा दिखना तो बनता है.. !! आपने तो मुझे रांड़ बना दिया.. !! वैसे, सच में मालिक आप बड़ा मस्त चोदते हैं.. !! मैं तो आपके चोदने के बाद, 2–3 दिन श्रुति के बापू को छूने भी नहीं देती.. !! इतना “नशा” रहता है, आपसे चुद कर.. !!
इतना कहते कहते, जमुना ने चाचा की धोती में हाथ डाल दिया।
चाचा भी उसकी दोनों मस्त चूचियों पर पिल पड़े और ज़ोर ज़ोर से, उसे दबाने और मसलने लगे।
जमुना ने चाचा का हथोड़ा बाहर निकाला और उसे ज़ोर से चूमने लगी।
मैं खिड़की पर खड़ा सब देख रहा था और मन ही मन, सोच रहा था की कैसे इस जमुना को चोदा जाए।




अगर मौका मिले तो उसको “ब्लैक मेल” किया जा सकता है।
घर पर शायद संभव ना हो सके पर बहाने से, उसे खेत में ले जाकर तो चोद ही सकते हैं।
अभी भी साली, क्या मस्त माल लगती है।
मेरे मुँह में, जैसे पानी आ गया।
मेरा लण्ड, हरकत करने लगा था।
तभी जमुना ने, चाचा से कहा – मालिक, आज तो घर में कोई नहीं है.. !! क्यों ना आज, कमरे में आराम से “चुदाई चुदाई” खेले.. !! हर बार, आप मुझे खेत में ही चोदे हैं.. !! वो भी हड़बड़ी में.. !! आज मैं, आपको पूरा सुख देना चाहती हूँ और पूरा सुख लेना भी चाहती हूँ.. !!
चाचा भी फ़ौरन तैयार हो गये और जमुना को गोद में उठा कर, अपने कमरे की तरफ चल दिए।
मैं थोड़ा दुखी हो गया क्यों की अब ये चुदाई देखने को नहीं मिलेगी।
चाचा का कमरा, आँगन के पास निचली मंज़िल में था।
मेरे कमरे के बाहर, छत के दूसरे कोने में दो कमरे और एक बाथरूम बना हुआ था।
राघव का परिवार, उसी में रहता था।
मैंने श्रुति को अपने कमरे की तरफ, आते हुए सुना।
मैंने झट से अपना लण्ड शॉर्ट के अंदर किया और बाहर की तरफ आया।
श्रुति सामने से, आ रही थी।
मैं तुरंत दरवाजे के पीछे छुप गया और जैसे ही, श्रुति मेरे कमरे के सामने से निकली मैंने पीछे से उसको दबोच लिया।
मैं सावधान था इसलिए मेरा एक हाथ, उसके मुँह पर और एक हाथ उसके सीने पर रखा और ज़ोर से उसकी लेफ्ट चूची को दबा दिया।
श्रुति के मुँह से एक घुट घुटि चीख निकल गई पर मुँह पे हाथ होने की वजह से, चीख बाहर नहीं निकली।
जब उसने मुझे देखा तो राहत की साँस लेते हुए, बोली – छोटे मालिक.. !! अपने तो मुझे डरा ही दिया था.. !!
मैने उसके मुँह से अपना हाथ हटाया और फिर पीछे से दोनों हाथ, उसकी दो चूचियों पर रखा और ज़ोर से दबा दिया।
वो हड़बड़ा गई और बोली – क्या करते हो.. !! दर्द होता है.. !!

मैंने फिर से, उसकी दोनों चूचियों को ज़ोर से दबाया।
उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा और कहा – आज, आपको हुआ क्या है.. !! ऐसे भी कोई दबाता है क्या.. !! मुझे लगता नहीं क्या.. !! और झट से, मेरे से दूर चली गई।
मेरे मुँह में, पानी भरा हुआ था।
क्या मस्त चुचे थे, यार।
एकदम.. !! एकदम.. !! अब क्या बोलूं। आप समझ जाइए।
मेरा मन तो उसका दूध पीने का कर रहा था।
लेकिन, उसकी बातों ने ये सिद्ध कर दिया था की वो एकदम भोली है और सेक्स के बारे में कुछ नहीं जानती।
मुझे लगा की मेरी किस्मत खुलने वाली है।
आज तो मैं इसको, चोद कर ही रहूँगा।
ज़्यादा से ज़्यादा, ये अपनी माँ से शिकायत करेगी और मेरे पास जमुना को काबू में रखने का “तुरुप का इक्का” तो था ही।
साली, नीचे कमरे में चाचा से चुदवाने की तैयारी कर रही थी।
मैंने श्रुति से पूछा – तुझे दुख रहा है.. !!
श्रुति – हाँ.. !!
मैं – ला, अच्छे से दबा दूँ.. !! नहीं तो हमेशा, ऐसा ही दुखेगा.. !!
श्रुति झट से, मेरे पास आ गई।
मैंने उसकी छातियों को, हौले हौले दबाया।
वो कुछ ना बोली, बस ऐसे ही खड़ी रही।
कोई “एक्सप्रेशन” भी नहीं था, चेहरे पर।
मुझे पूरा विश्वास हो गया की सचमुच, उसे कुछ पता नहीं है।
मैंने एक प्लान बनाया और उससे बोला – एक मिनट, मेरे कमरे में बैठ और मैं अभी आता हूँ.. !!
मैं नीचे उतरा।
मुझे पता ही था की चाचा और जमुनिया के अलावा, घर मैं सिर्फ़ मैं और श्रुति ही थे।
चाचा और जमुनिया की लापरवाही की मुझे पूरी आशा थी इसलिए मैंने बगल के कमरे में जा कर, दरवाजे के की होल से अंदर झाँका।
सिर्फ़ चाचा ही दिख रही थे और वो हाथ में ग्लास ले कर, पलंग पर बैठे थे।
जमुनिया, शायद नहाने गई थी।
मैं घूम कर बाथरूम के पीछे गया और खिड़की के साइड से झाँक कर देखा तो मेरा अंदाज़ा सही निकला।
जमुनिया, पूरी नंगी हो कर नहा रही थी।
बाथरूम में, कमरे की रोशनी आ रही थी।
वो पर्याप्त तो नहीं थी पर फिर भी मैं जमुनिया को उस रूप मैं देख कर पगला गया।
हाय!! क्या मस्त लग रही थी।
पानी उसके जिस्म पर गिर रहा था और पूरा बदन एकदम “मलाई मक्खन” की तरह दिख रहा था।
वो बड़ी बड़ी चूचियाँ, जो आज तक सबके लिए सपना थीं, मेरे आँखों के सामने “नंगी” थीं।

बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने आप को संभाला और और आगे बढ़ कर पीछे के स्टोर रूम में चला गया।
खोजते खोजते, मुझे दरवाजे में एक बड़ा छेद दिखाई दिया।
आँखें गड़ाई तो अंदर चाचा के कमरे का पूरा सीन दिखाई पड़ रहा था।
मेरी इच्छा तो वही रुक कर, चाचा से जमुनिया की चुदाई की पूरी फिल्म देखने का था पर ऊपर श्रुति बैठी थी।
उसको चोदने की इच्छा, इस फिल्म से ज़्यादा मायने रखती थी।
मैं ये सोच रहा था की श्रुति को कैसे पटाया जाए।
वो तो सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं जानती थी।
जब ऊपर पहुँचा तो देखा, वो मेरे कमरे पर कुर्सी पर बैठी है।
मैंने उससे, बात चीत शुरू की।
मैं – श्रुति और सुना.. !! आज कल, क्या हो रहा है.. !!
श्रुति – कुछ नहीं.. !! बस, ऐसे ही.. !!
मैं – तो सारा दिन बस मटरगस्ति हो रही है.. !! पढ़ाई लिखाई का क्या हुआ.. !!
श्रुति – नहीं.. !! अब, मैं स्कूल नहीं जाती.. !! घर पर ही रहती हूँ.. !!
मैं धीरे से उसके पीछे खड़ा हो गया और उसके कंधों पर हाथ रख कर बोला – और सेक्स.. !! कभी सेक्स किया है.. !!
श्रुति – क्या बोले.. !! मैं कुछ समझी नहीं.. !!
मैं – तुझे सेक्स के बारे में, कुछ नहीं पता.. !!
श्रुति – नहीं.. !! ई क्या होता है.. !!
मैं – वो जिंदगी का सबसे बड़ा आनंद होता है.. !! अच्छा, एक बात बता.. !! तेरे माँ बापू, तेरी शादी की बात नहीं करते.. !!
श्रुति (शरमाते हुए) – हाँ करते हैं ना.. !! जब तब, मुझे टोकते रहते हैं.. !! ये मत करो, वो मत करो.. !! अब तेरी शादी होने वाली है.. !! वहाँ ससुराल में, यही सब करेगी क्या.. !! ऐसे.. !! मेरे को तो, उसकी कोई बात ही समझ में नहीं आती है.. !!
मैंने उसे धीरे से अपनी ओर खींचा और उसे अपने बाहों में भर कर बोला – तू तो बहुत भोली है.. !!
इतनी बड़ी हो गई पर है बिल्कुल बच्ची ही.. !!
वो मेरे से चिटक गई और गुस्से से बोली – मैं बच्ची नहीं हूँ.. !!
मैंने कहा – अच्छा.. !! और हँसने लगा।
तो उसने तुरंत साँस भर कर अपना सीना फूला लिया और बोली – देखो.. !! क्या मैं बच्ची लगती हूँ.. !! नहीं ना.. !! मैं अब बड़ी हो गई हूँ.. !!
मैंने हंसते हंसते, उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसका सिर चूम लिया।
मैंने फिर धीरे धीरे उसके होठों पर एक छोटा सा किस किया तो वो बोली – छोड़िए ना.. !! क्या करते हो.. !!
मैंने उससे कहा – तुम बड़ी तो हो गई हो.. !! पर, अब तुम्हें बड़े वाले काम भी करने होंगे.. !! वो मेरी तरफ देखने लगी.. !!
मैंने पूछा – सच बता, कभी क्या तूने अपने माँ पापा को “पलंग पोलो” खेलते देखा है.. !!
श्रुति – क्या.. !! मैं समझी नहीं.. !!
मैं – तेरे माँ पापा, रात को साथ सोते हैं.. !!
श्रुति – हाँ.. !!
मैं – तो फिर, तू कहाँ सोती है.. !!
श्रुति – बगल वाले, कमरे में.. !!
मैं – तूने कभी रात को माँ पापा के कमरे में उनको बिना बताए, झाँक कर देखा है.. !!
श्रुति – नहीं.. !! मैं जब रात को सोती हूँ तो फिर सुबह ही मेरी नींद खुलती है, वो भी माँ के जगाने पर.. !! बहुत चिल्लाती है, वो.. !! कहती है की मैं एकदम बेहोश सोती हूँ.. !! रात को कोई अगर, मेरा गला भी काट जाएगा तो मुझे पता भी नहीं चलेगा.. !! और वो हंसने लगी।
मैंने अपना जाल फेंका – तू जानना चाहेगी की रात को तेरे सोने के बाद, तेरे माँ पापा कैसे “पलंग पोलो” खेलते हैं.. !!
श्रुति – सच में, आप मुझे दिखाएँगें.. !!
मैं – हाँ!! पर एक शर्त है की तू एकदम मुँह पे ताला लगा कर रहेगी.. !! चाहे कुछ भी हो जाए, एक आवाज़ नहीं निकलेगी.. !!
श्रुति – ठीक है.. !!
मैं – खा, मेरी कसम.. !!
श्रुति (झिझकते हुए) – आपकी कसम.. !!
मैं श्रुति को लेकर, नीचे उतरा।
मैंने इशारा कर दिया था की कोई आवाज़ ना हो।
मैं श्रुति को, उसकी “माँ की चुदाई” दिखाने ले जा रहा था।
उसके बाद, मैं उसको आज की रात ही भरपूर चोद कर युवती से औरत बनाने वाला था।
दबे पाँव, हम स्टोर रूम में आ गये।
मैंने छेद में आँख लगाई तो देखा, जमुनिया एकदम नंगी हो कर चाचा के लिए जाम बना रही थी और चाचा बिस्तर पर बैठ कर, अपने हथियार में धार दे रहे थे।
जमुनिया के हाथ से ग्लास लेकर, चाचा ने साइड टेबल पर रखा और जमुनिया को अपनी तरफ खींच लिया।
जमुनिया मुस्कुराते हुए, उनके पास आ गई।
चाचा ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों “अमृत कलश” को थाम लिया और उसे सहलाते हुआ बोले – आज तो बहुत मज़ा आएगा.. !! लगता है, आज तेरी जवानी फिर से वापस आ गई है, जमुना.. !! मां कसम, बड़ा मज़ा आ रहा है.. !!
फिर दोनों, एक दूसरे के लिप्स चूसने लगे।
मैं धीरे से हटा और श्रुति को भीतर देखने का इशारा किया।
श्रुति ने छेद में आँख डाल कर, देखना शुरू किया।
मैं तैयार था।
जैसे ही, श्रुति ने भीतर देखा उसकी तो जैसे साँस ही रुक गई।
वो झटके से ऊपर उठी तो मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और स्टोर रूम से बाहर ले आया।
श्रुति के पैरों मैं जैसे जान ही नहीं रह गई थी।
मैं उसे खींचता हुआ, थोड़ी दूर पर ले गया।
फिर, मैंने उसके मुँह से हाथ हटाया।

उसने बड़ी अजीब सी नज़रों से मुझे देखा और कहा – ये क्या हो रहा था, भीतर.. !! माँ, कैसे मालिक के सामने ऐसे खड़ी थी और मालिक ये क्या कर रहे थे.. !!
अब मैं, वाकई दंग रह गया।
एक जवान गाँव की 16-17 साल की लड़की और उसे सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं पता।
सच में.. !! ???
मैंने श्रुति के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर कर उसके हाथ पर एक चुंबन लगा दिया और बोला – इसे ही “पलंग पोलो” कहते हैं.. !!
वो दोनों “जवानी का खेल” खेल रहे हैं। जो की हर मर्द एक औरत के साथ खेलता है।
तुम भी खेलोगी, एक दिन और तुम्हें बहुत ही मज़ा आएगा।
ये इंसान की जिंदगी का, सबसे बड़ा आनंद होता है।
और देखना चाहोगी.. !! – मैंने पूछा।
वैसे तुम्हें बता दूँ अभी तो ये बस शुरुआत ही है.. !! इस खेल में, अभी दोनों खिलाड़ी बड़े बड़े पैंतरे दिखाएँगें.. !!
श्रुति के चेहरे पर, अजीब सा “भाव” था।
वो आगे बढ़ी और फिर से, छेद में आँख गड़ा कर देखने लगी।
चाचा पलंग पर पैर फैला कर बैठे थे और जमुनिया का स्तन चूस रहे थे।
एक हाथ में, एक स्तन दबोचे हुए थे और दूसरे हाथ से, उसकी गाण्ड सहला रहे थे।
उनका मुँह, दूध पीने में व्यस्त था।
जमुनिया, अपने दोनों हाथों से चाचा का लण्ड सहला रही थी।
फिर उसने अपने आप को छुड़ाया और चाचा के लौड़े पर टूट पड़ी।
उसने पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और “चुसूक चुसूक” चूसने लगी, जैसे जिंदगी में पहली बार, लोलीपोप चूस रही हो।
चाचा की आँखें आनंद से बंद हुई जा रही थीं और उनके मुँह से आनंद की सीत्कार निकल रही थी – आह ओफफ्फ़.. !! और ज़ोर से, मेरी रानी.. !! और ज़ोर से.. !! कितना मज़ा आ रहा है.. !!
करीब पाँच मिनट तक, ये चलता रहा।
फिर मैंने श्रुति को हटाया और खुद आँख लगा के देखने लगा।

चाचा अब जमुनिया को पलंग पर लिटा कर, उसकी चूत चूस रहे थे।
तभी श्रुति ने मुझे हटाया और खुद, फिर से देखने लगी।
उसका चेहरा तमतमा रहा था और उसकी साँसें तेज हो रही थीं।
मैं उसके सीने के उतार चढ़ाव को बखूबी महसूस कर रहा था।
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mastram
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पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो-2

Post by mastram »

जमुनिया भी आनंद में सरोवार थी और हल्के हल्के सिसकारियाँ ले रही थी – मालिक क क क, बहुत मज़ा जा आ रहा है.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! आआ ज़ोर से चूसो ना.. !! ये मादार चोद, राघव तो कभी भी मेरी चूत नहीं चाटता है.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! आप ना मिले होते तो, मैं इस आनंद से वंचित ही रह जाती.. !! ओ मेरी माँ मज़ा गया, मेरे मालिक.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !! आप मुझे, अपने पास ही रख लीजिए.. !! मैं आपकी दासी बन के रहूंगी, मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! हाँ.. !! और ज़ोर से.. !! और फिर, वो चाचा के मुँह मे ही झड़ गई।
झर झर, जैसे झरना बहता है उसका रस वैसे ही फुट पड़ा और चाचा ने एक बूँद भी बाहर जाने नहीं दी।
सब का सब ही, चाट गये।
मैं इस बीच मौका देख कर, श्रुति के पीछे से चिपक कर खड़ा हो गया था।
श्रुति थोड़ा हिली, पर मैं पीछे से ना हटा।
श्रुति ने फिर से, अपनी आँख छेद में लगा दी।
मैंने धीरे धीरे, उसकी पीठ सहलाना शुरू किया।
फिर आगे बढ़ते हुए, उसकी गर्दन भी सहलाने लगा।
मैं समझ रहा था की श्रुति की साँसे और तेज हो रही थीं।
मैंने धीरे से उसका लहंगा उठा कर, उसकी कमर तक चढ़ा दिया और उसकी गाण्ड पर हाथ फेरने लगा।
श्रुति, चिहुंक उठी और उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपना लहंगा नीचे कर लिया।
मैं भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए, 2 मिनट के लिए चुप चाप खड़ा हो गया और श्रुति को भीतर का मज़ा लेने दिया।
अंदर चाचा और जमुना, पलंग पर पड़े हाँफ रहे थे।
फिर चाचा उठे और जमुना से चिपक गये और फिर से, उसका दूध पीने लगे।
थोड़ी देर बड़ा, उन्होंने अपना लण्ड जमुना के मुँह में पेल दिया और जमुना उसे मज़े लेकर चूसने लगी।
चाचा का हथियार तो पहले से ही तैयार था।
चाचा ने जमुना को उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और खुद भी, जमुना के ऊपर चढ़ गये।
चाचा ने अपना हथियार सेट किया और एक झटके में उसे, जमुना की चूत में पेल दिया।
जमुना, गरगरा उठी।
ओह!! मेरे मालिक.. !! अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !! आहा आहा अया।
चाचा ने उसके दूध को बेदर्दी से निचोड़ते हुए, धक्का लगाना शुरू कर दिया।
जमुना, सिसकारियाँ ले रही थी।

उसकी चूत तो वैसे भी गरम ही थी और ऊपर से चाचा का लण्ड, जबरदस्त धौंक रहा था।
कमरे में फूच फूच की आवाज़ गूँज रही थी।
जमुनिया अब “जल बिन मछली” की तरह, तड़प रही थी।
मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! फाड़ दो, इसको आज.. !! चोद दो, सारी ताक़त लगा के.. !! ज़ोर लगा के, मेरी जान.. !! ज़ोर से, ज़ोर से.. !! मार डाल, मुझे.. !! छोड़ना मत और चोदो.. !! और ज़ोर से, दम लगा के.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !!
वो बकती जा रही थी और चाचा, पेलते जा रहे थे।
चूत और लण्ड के बीच “घमासान युद्ध” हो रहा था और हम दोनों, मूक दर्शेक बन कर इस युद्ध का मज़ा ले रहे थे।
मैं अपनी मंज़िल की तरफ, धीरे धीरे बढ़ रहा था।
मैंने फिर से, श्रुति का लहंगा ऊपर उठना शुरू किया।
श्रुति की साँस धौकनी की तरह चल रही थी। लेकिन, उसने छेद से आँख नहीं हटाई।
मैंने धीरे से, उसकी गाण्ड पर हाथ रखा।
उसने, कोई पैंटी नहीं पहनी थी।
नंगी गाण्ड को छूने से, मुझे जैसे एक ज़ोर का झटका लगा।
पहली बार, किसी की गाण्ड पर हाथ रखा था।
उफ!! कितनी नरम थी, गाण्ड।
धीरे धीरे, मैंने उसको सहलाना शुरू कर दिया।
श्रुति ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वो अंदर की तरफ ही देखती रही।
मैं थोड़ी देर तक, गाण्ड सहलाने के बाद उसके पैरों के बीच में अपना हाथ ले गया।
एकदम से मुझे हाथ हटाना पड़ा क्योंकि वो जगह तो भट्टी की तरह दहक रही थी।
श्रुति भी थोड़ा सा मचली, पर फिर से स्थिर हो गई।
मैं धीरे धीरे, उसकी चोली की गाँठ ढीली करने लगा।
अब मेरा हाथ आराम से, उसकी चोली के भीतर जा सकता था।
मैंने एक लंबी साँस भरी और अपना हाथ धीरे धीरे, उसकी चूची की तरफ बड़ाने लगा।
मेरा लण्ड एक दम तन गया था और शॉर्ट में एक टेंट बन रहा था।
जब मेरी उंगली ने उसकी निप्पल को छुआ तो श्रुति के मुँह से, सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने फ़ौरन उसका मुँह अपने हाथ से दबा दिया और उसके कान में फुसफुसाया – कोई आवाज़ नहीं, वरना मारे जाएँगे.. !!
अंदर चाचा ने, अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी।
जमुना अपने दोनों पैरो को फैला कर लेटी थी और चाचा उस पर चढ़े हुए थे।
घच घच.. !! पच पच.. !! फॅक फूच.. !! आवाज़ हो रही थी।
चाचा दे दाना दान, दे दाना दान चोद रहे थे और जमुना चीख रही थी।
वो आनंद के सागर में, पूरी तरह डूबी हुई थी।
बहुत मज़ा आ रहा है, मालिक.. !! और ज़ोर से, करो ना.. !! और फिर जमुना का जिस्म अकडने लगी वो चिल्लाई – अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !!
चाचा, अब पूरी रफ़्तार से जमुना की चूत को रौंदने लगे।
फिर, एक साथ दोनों की साँस रुक गई और चिल्लाते हुए दोनों झड़ गये।
चाचा जमुना के ऊपर ही, निढाल हो कर गिर पड़े।
जमुना ने अपने पैरों को चाचा की कमर से लपेट लिया आर चाचा को अपनी बाहों में भर लिया और लेटे लेटे हाँफने लगे।
जमुना ने उनको एक प्यारा सा चुंबन दिया और पस्त हो कर, लेट गई।
ये सब देख कर, श्रुति की हालत खराब हो रही थी।
उसको लग रहा था की उसकी चूत में जैसे, “आग” लगी हो।
मेरा सहलाना उसको, अच्छा लग रहा था।
मैंने जब उसकी एक चूची को दबोचा तो वो तिलमिला गई और फिर जब मैंने उसके निप्पल को टच किया तो वो थरथरा गई और उठ कर खड़ी हो गई।
मेरा हाथ उसकी चूची पर ही था, मैंने हौले से उसको फिर से दबाया तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और वहाँ से निकल गई।
वो ठीक से, चल नहीं पा रही थी।
शायद इतना सब कुछ देख कर, खुद को संभाल पाना उसके लिए संभव ना था।
मैं भी उसके पीछे पीछे, वहाँ से निकल आया।
वो सीढ़ियों पर सहारा ले कर, चढ़ रही थी।
मैं भी उसके पीछे पीछे, ऊपर चढ़ा।
वो मेरे कमरे के सामने थोड़ा रुकी और आगे बढ़ गई।
मैने सोचा – आज नहीं तो फिर कभी नहीं.. !!
उसने अभी अभी, अपनी “माँ” को चुदते देखा है।
इंसान ही तो है।
ज़रूर “गरम” हो गई होगी।
इससे अच्छा मौका, मुझे मिलने वाला नहीं था।

मैंने उसका हाथ पकड़ कर, अपनी तरफ खींचा और बिना विरोध के वो मेरी बाहों में आ गई।
मैंने उसे धकेलते हुए, अपने कमरे में ले आया और अपने बेड की तरफ धकेला।
वो मेरे बिस्तर पर, भड़भाड़ा कर गिर पड़ी।
जैसे उसमें, कोई जान ही नहीं बची हो।
मैंने उसे पानी पिलाया और उसकी तरफ देखने लगा।
वो मारे शरम के, आँखें बंद कर के लेटी हुई थी।
मैंने हिम्मत की और आगे बढ़ा।
मैंने उसकी चुचियों को उसकी चोली के ऊपर से ही सहलाने लगा।
उसने एक बार आँख खोल कर, मेरी तरफ देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।
मेरा हौसला अब बढ़ गया।
मैंने उसे एक साइड मैं धकेला और फिर उसकी चोली की सारी डोरी खोल दी।
उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसी तरह उसने अपने हाथों को आगे सीने पर बाँध लिया।
मैंने उसकी बाहों को सहलाते हुए, उसके हाथों को हाटने की कोशिश की पर उसने नहीं हटाए।
मैं मुस्काराया।
वो शर्मा रही थी।
मैंने झुक कर, उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूसने लगा।
श्रुति ने, कोई प्रतिक्रिया नहीं की।
मैंने फिर और ज़ोर से, उसके होठों को अपने होठों में दबाते हुए एक लंबा सा किस किया।
मैं उसके होंठ, ज़ोर ज़ोर से चूस रहा था।
फिर मैंने अपनी जीभ उसके होठों को ज़ोर दे कर खोलते हुए, उसके मुँह में डाल दी।
मुझे भी उसकी जीभ की हरकत महसूस हुई और फिर तो जैसे, हम एक दूसरे के होठों से ही पीने की कोशिश कर रहे थे।
मैं उसकी जीभ चूस रहा था तो कभी, वो मेरी जीभ चूस रही थी।
मैं धीरे से उसकी बगल में लेट गया और मेरे हाथ, उसके जिस्म पर चारों तरफ फेरने लगा।
मेरी साँसें गरम हो रही थी।
मैं बिल्कुल पगला गया था और श्रुति की साँस भड़क रही थी।
उसकी पहली सिसकारी सुनाई दी, मुझे – उन्म:
मैं और जोश में आ गया और ज़ोर लगा कर, उसका हाथ उसके सीने से हटा दिया और पीछे हाथ डाल कर, उसकी चोली निकाल फेंकी।
उसने झट से, अपने हाथों से अपना सीना ढँक लिया।
मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर, उसका हाथ वहाँ से हटा दिया।
जैसे, एक “बिजली” सी चमकी।
उसके दोनों “अमृत कलश” मेरे सामने थे। पूरे नंगे।
मैंने उसकी आँखों में झाँका और अपने होंठ उसके गोल, गोरे, बेहद मुलायम स्तन पर गड़ा दिए।
उसकी अन्ह: निकल गई और वो – इस्स स स स स स.. !! सिसकारियाँ लेने लगी।
मेरे दोनों हाथ, उसके नग्न उरेज को मसल रहे थे।
साहब, कितना मज़ा आ रहा था की मैं बयान नहीं कर सकता।
मैं पहले तो धीरे से और फिर पागलों की तरह उसके चुचक चूसने और मसलने लगा।
श्रुति, हाँफती हुई बोली – धीरे.. !! धीरे.. !! बहुत दर्द होता है.. !!
लेकिन, मुझे होश कहाँ था।
मन कर रहा था की उसकी पूरी चूची को ही, अपने मुँह में घुसा लूँ।
उसके निप्पल, एकदम सख़्त हो गये थे।
एक “किशमिश के दाने” के बराबर पर उसे चूसने और काटने में बड़ा ही आनंद आ रहा था।
श्रुति के मुँह से लगातार सिसकारियाँ फुट रही थीं – नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !!
उसके हाथ, मेरे बालों में घूम रहे थे और वो अपने हाथों से मेरा सिर अपने छाती में दबा रही थी।
अचानक, श्रुति ने अपने दोनों पैर ऊपर उठाए और मेरी कमर पे लपेट दिए।
उसकी साँस, धौकनी की तरह चल रही थी।
हम दोनों ही, पसीने में नहा चुके थे।
मैं धीरे धीरे, नीचे की तरफ बढ़ रहा था।
मेरे हाथ, उसके जिस्म को चूमते ही जा रहे थे।
मैं नाभि पर आ कर रुक गया।
एक छोटा सा छेद था।
नाभि का छेद, बहुत ही संवेदनशील होता है।
मैंने अपनी जीभ उस छेद में घुमाई तो श्रुति कराह उठी – उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !!
मैं धीरे धीरे से उसकी नाभि को काट रहा था और चूस रहा था।
हम दोनों काफ़ी गरम हो चुके थे और हमारे मुँह पूरे लाल हो गये थे।
मैं फिर ऊपर आ गया और कभी उसके होठों को तो कभी उसके दूध को चूस रहा था।
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mastram
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पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो-3

Post by mastram »

श्रुति की कराह भी बढ़ती जा रही थी।
लेकिन वो, गाँव की “शरीफ” लड़की थी।
उसकी आँखें, अभी भी बंद थीं।
मैं उसके ऊपर से उठ पड़ा और बगल में बैठ कर चाँद की रौशनी में उसका चेहरा निहार रहा था।
वो आनंद में डूबी हुई, अपने हाथ खुद ही चबा रही थी।
मैंने धीरे से पुकारा – श्रुति.. !!
उसने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखा।
मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और बोला – आई लव यू.. !!
वो बोली – क्या.. !! ??
मैंने कहा – मैं तुमसे प्यार करता हूँ, श्रुति.. !!
वो एक टक मुझे ताकती रही और फिर एक झटके में उठ कर, मेरे से लिपट गई।
मैंने अपने होंठ उसकी तरफ बढ़ाए और उसने भी वही किया।
हम फिर से एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे।
मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली तो फ़ौरन उसने उसे अपने दांतो से दबा लिया और हल्के हल्के काटने लगी और चूसने लगी।
मैंने उसे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया।
अपना हाथ मैंने, उसके घाघरे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रख दिया।
वो जैसे, बिल्कुल तिलमिला गई।
मैंने महसूस किया की वो नीचे पूरी गीली हो गई है।
मैंने उसके घाघरे का नाडा खींचा तो उसने एक हल्का सा विरोध किया और अपने घाघरे को पकड़ कर लेटी रही।
मैंने फिर से कोशिश की तो वो सिर हिला कर “ना ना” करने लगी।
मैं हंस पड़ा और ज़बरदस्ती उसकी डोरी खींच दी और घाघरे को नीचे सरका दिया।
मेरे सामने “जन्न्त की गुफा का दरवाजा” दिखाई पड़ रहा था।
गुफा के बाहर हल्की हल्की झाड़ियाँ उगी हुई थीं, जो की मुलायम रेशमी बालों की थीं।
उफ्फ!!
नंगी चूत.. !!
मैंने अपना हाथ उसकी नंगी चूत पर रख दिया और धीरे धीरे रगड़ने लगा।
एक बार मैंने सोचा की अपना लण्ड उसके मुँह में दूँ पर फिर मैंने फ़ैसला किया की पहली बार है, पहले चोद ही लेता हूँ।
“चूसना चूसाना” अगली बार, कर लेंगे।
मैंने उसकी टाँगों को खोल दिया और अपनी एक उंगली, उसकी चूत में डाल दी।
नहीं गई, जनाब।
बड़ा ही तंग रास्ता था, उस जन्नत की गुफा का।
मैं उठा और तेल की शीशी ले कर, फिर से पलंग पर आ गया।
मैंने अपने लण्ड पर बढ़िया से तेल लगाया और फिर श्रुति की चूत में भी तेल लगाने लगा।
श्रुति, कसमसा रही थी।
मैंने निशाना लगाया और धीरे से, अपने लण्ड को उसकी चूत पर रख कर सहलाने लगा।
श्रुति, अब घबराने लगी थी।
मैंने धीरे से पुश किया।
मैं जानता था की इसकी चूत बहुत ही ज़्यादा टाइट होगी और अगर, मैंने ज़ोर ज़बरदस्ती की तो ये चिल्लाने लगेगी, दर्द के मारे।
फिर तो, बवाल होने की पूरी संभावना थी।
नीचे चाचा और जमुना चोदा चादी करने के बाद, एक ही बिस्तर में एक दूसरे से गुथम गुत्था सो रहे थे।
अगर, वो उठ जाते तो मेरी तो खैर नहीं थी।
इसलिए, मैंने श्रुति से कहा – श्रुति, अब मैं तुझे चोदने जा रहा हूँ.. !! मेरी बात ध्यान से सुनो.. !! जब मैं अपना लण्ड तुम्हारी चूत में डालूँगा तो तुम्हें थोड़ा दर्द होगा.. !! क्योंकि ये तुम्हारा पहली बार हैं.. !! इसलिए.. !! लेकिन, कुछ देर बाद ये दर्द चला जाएगा और तुम्हें मैं भरपूर मज़ा और आनंद दूँगा.. !! तो प्लीज़, एकदम आवाज़ नहीं करना.. !! ठीक है.. !! क्यूंकी अगर किसी ने सुन लिया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.. !!
श्रुति ने कोई जवाब नहीं दिया। बस “हाँ” में सिर हिला दिया।
मैंने फिर कहा – श्रुति, ये मेरा वादा है मैं तुम्हें भरपूर सुख दूँगा.. !! इतना मज़ा तुम्हें पहले कभी नहीं आया होगा.. !! तुमने तो खुद जमुना को आनंद में चीखते हुए, सुना ही है.. !!
श्रुति ने फिर सिर हिलाया।
मैं अब तैयार था।
मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत पर रखा और रगड़ने लगा।
श्रुति, सनसना रही थी।
उसका शरीर मारे उत्तेजना के काँप रहा था।
मैंने फिर शुभारंभ किया।

टोपी को घुसने में ही, मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी।
ना जाने, आगे क्या होने वाला था।
मैंने अपने तेल लगे हुए लण्ड को, छेद पर रखा और एक ज़ोर का झटका लगाया।
साथ ही, मैंने श्रुति के मुँह पर अपना हाथ ढक्कन की तरह चिपका दिया।
श्रुति के मुँह से, घुट घुटि चीख निकल गई।
उसको लगा जैसे, किसी ने उसकी चूत में एक “दो धारी तलवार” डाल दी है।
उसकी आँखों से, आँसू छलक आए।
मैंने अपना हाथ नहीं हटाया और एक और झटका लगाया।
अभी तक सिर्फ़ सुपाड़ा ही अंदर गया था।
मुझे खुद, काफ़ी जलन हो रही थी।
श्रुति मेरे नीचे से निकलने के लिए तड़प रही थी और पूरे ज़ोर से, मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी।
मैं जानता था की अगर, आज मैं हार गया तो ये चिड़िया कभी मेरे फंदे में नहीं आईगी।
उसकी चूत भी, बहुत ज़्यादा टाइट थी।
मैंने अपने दाँतों को दबाते हुए, एक और धक्का मारा।
करीब 80% तक, मेरा लण्ड उसकी चूत में धँस गया था।
मैंने अपना हाथ नहीं हटाया था।
श्रुति जैसे, रहम की भीख माँग रही थी।
मैंने उसको फुसफुसा के बोला – एकदम शांत पड़ी रहो, वरना और दर्द होगा.. !! अभी 2-3 मिनट में, सब ठीक हो जाएगा.. !!
मैं उसके ऊपर लेट गया और उसके दूध को चूसने लगा और उसके निप्पल को अपने दाँतों से सहलाने लगा।
थोड़ी देर बाद, श्रुति का जिस्म थोड़ा ढीला पड़ा और वो थोड़ा शांत हुई तो मैंने फाइनल धक्का मारा।
मेरा लण्ड पूरी तरह, श्रुति की चूत की गिरफत में था।
मैं फिर शांत पड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद, मैंने अंदर बाहर करना शुरू किया।
बहुत धीरे धीरे।
श्रुति के जिस्म में भी, हरकत होने लगी थी।
उसने अपनी बाहों का हार, मेरी गर्देन के चारों तरफ डाल दिया था और अपनी कमर भी थोड़ा थोड़ा उठाने लगी थी।
मैं समझ गया की शिकार अब चुदवाने के लिए, तैयार है।
मैंने दूसरा गियर डाला और स्पीड थोड़ी और बढ़ा दी।

कसम लण्ड के बाल की!! इतना मज़ा मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था।
मैं नहीं जानता था की लौंडिया को चोदने में इतना मज़ा आता है।
हम “मिशनरी पोज़िशन” में चुदाई कर रहे थे।
श्रुति भी हाँफ रही थी और सिसकारी भर रही थी।
उसका दर्द अब ख़त्म हो गया था और वो अपनी जवानी लूटा कर, जवानी के मज़े लूट रही थी।
उसके हाथ मेरी पीठ पर काफ़ी तेज़ी से घूम रहे थे और मैं “जबरदस्त चुदाई” कर रहा था।
मेरी रफ़्तार टॉप गियर पर थी और हम दोनों के मुँह से, आहें निकल रही थीं।
मैं बीच बीच में झुक कर, उसकी चूचियों को अपने मुँह में दबोच लेता था और ज़ोर ज़ोर से चूसते हुए उसको चोद रहा था।
श्रुति की सिसकारियाँ, अब चीख में बदल रही थीं पर वो मेरे कहे मुताबिक, सावधान थी और हल्के हल्के ही चीख रही थी।
आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !! उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !! आह आह अहह.. !! नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आहम्म उईईए सस्स्शह.. !! अहहआहम्म.. !! मर र र र र र गई ई ई ई ई ई.. !! या या आह आ आ आ ह ह ह ह ह.. !!
अचानक श्रुति का शरीर अकड़ने लगा और वो ज़ोर से मचलने लगी।
उसकी बाहों का दायरा कसने लगा और वो ज़ोर से मेरी छाती में चिपक कर, झड़ गई।
मैंने अपने लण्ड पर उस के उबाल की गरमी को महसूस किया।
श्रुति अब, निढाल पड़ी थी ।
मैंने और रफ़्तार बड़ाई और उसको दबा दबा के चोदने लगा।
उसका “कामरस” उसकी चूत में मेरे लण्ड के घर्षण से फूच फूच की आवाज़ पैदा कर रहा था।
मैं तो सातवें आसमान की सैर कर रहा था और धक्के लगाए जा रहा था।
1-2 मिनट के बाद, मेरी साँस भी रुकने लगी।
मेरी गोलियों में तनाव पैदा होने लगा और मैं भी गया।
मैंने दना दना कई फव्वारे खोल दिए, श्रुति की चूत में और गले सा अजीब सी आवाज़ निकालते हुए, श्रुति के ऊपर ही गिर पड़ा।
मैं आनंद के सागर में हिलोरे ले रहा था और मुझे पता था की श्रुति भी हिलोरे ले रही होगी।
थोड़ी देर बाद, श्रुति कसमासने लगी और मुझे धकेलने लगी।
मैं उठा और पलट कर वहीं सो गया।
सुबह भोर में जब मेरी आँखें खुली तो सुबह हो गये थी और पेट में चूहे दौड़ रहे थे।
भूख के मारे, बुरा हाल था।
अचानक, मुझे होश आया की श्रुति बिल्कुल “नंगी” मेरे पास ही सो रही थी।
उसकी नंगी काया को देखते ही, मेरा लण्ड फिर से जोश में आने लगा।
उसके होठों पर, एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी।
उसके दूध, खुली रौशनी में बहुत ही प्यारे लग रहे थे।
मैं अपने को रोक ना पाया और उसकी एक निप्पल को चूसने लगा और दूसरी छाती को, अपने हाथों से मसलने लगा।
श्रुति की आँख खुल गई।
उसने भी तुरंत प्यार से मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और फिर, हम एक दूसरे के होठों का रस पीने लगे।
अचानक, मुझे झटका लगा और मैं हड़बड़ा के उठ गया।
श्रुति से बोला – जल्दी कपड़े पहनो और निकलो.. !!
किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा।
वो भी हड़बड़ा के उठी और अपनी चोली और लहंगा पहन कर, धीरे से वहाँ से निकल गई।
शुक्र था की अभी घर के लोग सो कर नहीं उठे थे क्योंकि सब रात को शादी से, बहुत देर से आए थे।
समाप्त.. .. .. ..
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