एक नया संसार

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josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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"न नहीं अंकल नहीं।" विराज तुरंत ही जगदीश की बात काटते हुए बोल पड़ा__"आपको कुछ नहीं होगा। ईश्वर करे आपको मेरी उमर लग जाए। आप हमेशा मेरे सामने रहें और मेरा मार्गदर्शन करते रहें।"
"हा हा हा बेटे तुम्हारी इन बातों ने हमें ये बता दिया है कि तुम्हारे दिल में हमारे लिए क्या है?" जगदीश के चेहरे पर खुशी के भाव थे__"तुम हमें यकीनन अब अपना मानने लगे हो और हमें ये जान कर बेहद खुशी भी हुई है। एक मुद्दत हो गई थी अपने किसी अज़ीज़ के ऐसे अपनेपन का एहसास किये हुए। तुम मिल गए तो अब ऐसा लगने लगा है कि हम अब अकेले नहीं हैं वर्ना इतने बड़े बॅगले में तन्हाईयों के सिवा कुछ न था। सारी दुनिया धन दौलत के पीछे रात दिन भागती है बेटे वो भूल जाती है कि इंसान की सबसे बड़ी दौलत तो उसके अपने होते हैं।"

"ये बातें कोई नहीं समझता अंकल।" विराज ने कहा__"समझ तथा एहसास तब होता है जब हमें किसी चीज़ की कमी का पता चलता है। जिनके पास अपने होते हैं उन्हें अपनों की अहमियत का एहसास नहीं होता और जिनके पास अपने नहीं होते उन्हें संसार की सारी दौलत महज बेमतलब लगती है, वो चाहते हैं कि इस दौलत के बदले काश कोई अपना मिल जाए।"

"संसार में हमारे पास किसी चीज़ का जब अभाव होता है तभी हमें उसकी अहमियत का एहसास होता है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हलाॅकि दुनियाॅ में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास सब कुछ होता है मगर वो सबसे ज्यादा अपनों को अहमियत देते हैं, धन दौलत तो महज हमारी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का जरिया मात्र होती है।"

विराज कुछ न बोला ये अलग बात है कि उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते और लुप्त होते नज़र आ रहे थे।

"हम चाहते हैं कि।" जबकि जगदीश कह रहा था__"तुम अपनी माॅ और बहन के साथ अब हमारे साथ इसी घर में रहो बेटे। कम से कम हमें भी ये एहसास होता रहेगा कि हमारा भी अब एक भरा पूरा परिवार है।"

"मैं इसके लिए माॅ से बात करूॅगा अंकल।" विराज ने कहा।
"हम खुद चल कर तुम्हारी माॅ से बात करेंगे बेटे।" जगदीश ने गंभीरता से कहा__"हम उससे कहेंगे कि वो हमें अपना बड़ा भाई समझ कर हमारे साथ ही रहे।"

"आप फिक्र न करें अंकल।" विराज ने कहा__"मैं माॅ से बात कर लूॅगा। वो इसके लिए इंकार नहीं करेंगी।
"ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"हम तुम सबके यहाॅ आने का इंतज़ार करेंगे।"

कुछ देर और ऐसी ही कुछ बातें हुईं फिर विराज वहाॅ से अपने फ्लैट के लिए निकल गया। विराज ने अपनी माॅ गौरी से जगदीश से संबंधित सारी बातें बताई, जिसे सुन कर गौरी के दिलो दिमाग में एक सुकून सा हुआ।

"आज के समय में इतना कुछ कौन करता है बेटा?" गौरी ने गंभीरता से कहा__"मगर हमारे साथ हमारे अपनों ने इतना कुछ किया है जिससे अब आलम ये है कि किसी पर भरोसा नहीं होता।"

"जगदीश ओबराय बहुत अच्छे इंसान हैं माॅ।" विराज ने कहा__"इस संसार में उनका अपना कोई नहीं है, वो मुझे अपने बेटे जैसा मानते हैं। अपनी सारी दौलत तथा सारा कारोबार वो मेरे नाम कर चुके हैं, अगर उनके मन में कोई खोट होता तो वो ऐसा क्यों करते भला?"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" गौरी बुरी तरह चौंकी__"उसने अपना सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया?"
"हाॅ माॅ।" विराज ने कहा__"यही सच है और इस वक्त वो सारे कागजात मेरे पास हैं जिनसे ये साबित होता है कि अब से मैं ही उनके सारे कारोबार तथा सारी दौलत का मालिक हूॅ। अब आप ही बताइए माॅ...क्या अब भी उनके बारे में आपके मन में कोई शंका है?"

"यकीन नहीं होता बेटे।" गौरी के जेहन में झनाके से हो रहे थे, अविश्वास भरे लहजे में कहा उसने__"एक ऐसा आदमी अपनी सारी दौलत व कारोबार तुम्हारे नाम कर दिया जिसके बारे में न हमें कुछ पता है और न ही हमारे बारे में उसे।"

"सब ऊपर वाले की माया है माॅ।" विराज ने कहा__"ऊपर वाले ने कुछ सोच कर ही ये अविश्वसनीय तथा असंभव सा कारनामा किया है। जगदीश अंकल इसके लिए मुझे बहुत पहले से मना रहे थे किन्तु मैं ही इंकार करता रहा था। फिर उन्होंने मुझे समझाया कि बिना मजबूत आधार के हम कोई लड़ाई नहीं लड़ सकते। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सारी दौलत उनके बाद किसी ट्रस्ट या सरकार के हाॅथ चली जाती। इससे अच्छा तो यही है कि वो ये सब किसी ऐसे इंसान को दे दें जिसे वो अपना समझते भी हों और जिसे इसकी शख्त जरूरत भी हो। मैं उनकी कंपनी में ऐज अ मैनेजर काम करता था, वो मुझसे तथा मेरे काम से खुश थे। उनके दिल में मेरे लिए अपनेपन का भाव जागा। उन्होंने मेरे बारे में सब कुछ पता किया और जब उन्हें मेरी सच्चाई व मेरे साथ मेरे अपनों के किये गए अन्याय का पता चला तो एक दिन उन्होंने मुझे अपने बॅगले में बुला कर मुझसे बात की।"

"तुमने ये सब मुझे पहले कभी बताया क्यों नहीं बेटा?" गौरी ने विराज के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा__"इतना कुछ हो गया और तमने मुझसे छिपा कर रखा। क्या ये अच्छी बात है?"

"आपने भी तो मुझसे वो सब कुछ छुपाया माॅ।" विराज ने सहसा गमगीन भाव से कहा__"जो बड़े पापा और छोटे चाचा लोगों ने आपके और मेरी बहन के साथ किया। मेरे पिता जी की मौत कैसे हुई ये छुपाया गया मुझसे। मगर मैं सब जानता हूॅ माॅ, आपने भले ही मुझसे छुपाया मगर मैं सब जानता हूॅ।"

"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी हड़बड़ा गई।
"जाने दीजिये माॅ।" विराज ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"अब इन सब बातों का समय नहीं है, अब समय है उन लोगों से बदला लेने का।"

"जाने कैसे दूॅ बेटा?" गौरी ने अजीब भाव से कहा__"मुझे जानना है कि तुम्हें ये सब कैसे पता चला?"
josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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"इतना कुछ हो गया।" विराज कह रहा था__"एक हॅसता खेलता संसार कैसे इस तरह तिनका तिनका हो कर बिखर गया? मैं कोई बच्चा नहीं था माॅ जिसे इन सब बातों का एहसास नहीं था बल्कि सब समझता था मैं।"

"हमारे भाग्य में यही सब कुछ लिखा था बेटे।" गौरी की आॅखें छलक पड़ी__"शायद ऊपरवाला हमसे ख़फा हो गया था।"
"कोई बात नहीं माॅ।" विराज ने कहा__"अब उन लोगों का भाग्य मैं लिखूॅगा। साॅपों से खेलने का बहुत शौक है न तो मैं उन्हें बताऊगा कि साॅप को जो दूध पिलाते हैं एक दिन वही साॅप उन्हें भी डस कर मौत दे देता है।"

"क्या कहना चाहते हो तुम?" गौरी मुह और आखें फाड़े देखने लगी थी विराज को।
"हाॅ माॅ।" विराज कह रहा था__"मुझे सब पता है। मेरे पिता जी की मौत सर्प के काटने से हुई थी लेकिन वो स्वाभिक रूप से नहीं हुआ था बल्कि सब कुछ पहले से सोचा समझा गया एक प्लान था। एक साजिश थी माॅ, मेरे पिता जी को अपने रास्ते से हमेशा के लिए हटा देने की।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?" गौरी उछल पड़ी, आखों से झर झर आॅसू बहने लगे उसके__"ये सब उन लोगों की साजिश थी?"
"हाॅ यही सच है माॅ।" विराज ने कहा__"आपको इस बात का पता नहीं है लेकिन मुझे है। मैं तो ये भी जानता हूॅ माॅ कि ये सब क्यों हुआ?"

"क् क् क्या जानते हो तुम?" गौरी के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे।
"वही जो आप भी जानती हैं।" विराज ने अपनी माॅ गौरी की आखों मे झाॅकते हुए कहा__"कहिये तो बता भी दूॅ आपको।"

"न नहीं नहीं" गौरी के चेहरे पर घबराहट के साथ साथ लाज और शर्म की लाली छाती चली गई। उसका सिर नीचे की तरफ झुक गया।
"आपको नजरें चुराने की कोई जरूरत नहीं है माॅ।" विराज ने अपने दोनों हाथों से माॅ गौरी का शर्म से लाल किन्तु खूबसूरत सा बेदाग़ चेहरा थामते हुए कहा__"आपने ऐसा कोई काम नहीं है जिससे आपको मुझसे ही नहीं बल्कि किसी से भी नज़रें चुराना पड़े। आप तो गंगा की तरह पवित्र हैं माॅ, जिसकी सिर्फ पूजा की जा सकती है।"

"ब बेटे।" गौरी बुरी तरह रोते हुए अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। उसने कस कर विराज को जकड़ा हुआ था। विराज ने भी माॅ को छुपका लिया फिर बोला__"नहीं माॅ, अब आप रोएंगी नहीं। रोने धोने वाला वक्त गुज़र गया। अब तो रुलाने वाला वक्त शुरू होगा।"

"कितनी नासमझ थी मैं।" गौरी ने विराज के सीने से लगे हुए ही गंभीरता से कहा__"मैं जिस बेटे को छोटा और अबोध समझ रही थी तथा ये भी कि वो बहुत मासूम है नासमझ है अभी वो तो अपनी छोटी सी ऊम्र में भी कहीं ज्यादा समझदार और जिम्मेदार हो गया है। मैंने सब कुछ अपने बेटे से छुपाया, सिर्फ इस लिए कि मैं अपने बेटे को खो देने से डरती थी।"

"आप एक माॅ हैं माॅ।" विराज ने कहा__"और आपने जो कुछ भी किया अपनी ममता से मजबूर हो कर किया। इस लिए इसके लिए मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन हाॅ एक शिकायत जरूर है।"
"अच्छा।" गौरी ने विराज के सीने से अपना सिर अलग किया तथा ऊपर बेटे के की आखों मे प्यार से देखते हुए कहा__"ऐसी क्या शिकायत है मेरे बेटे को मुझसे, जरा मुझे भी तो पता चले।"

"शिकायत यही है कि।" विराज ने कहा__"आप हर पल खुद को दुखी रखती हैं और अपनी आॅखों पर तरस खाने की बजाय उन्हें रुलाती रहती हैं। ये हर्गिज़ भी अच्छी बात नहीं है।"

"अब से ऐसा नहीं होगा।" गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब मैं न तो खुद को दुखी रखूॅगी और न ही अपनी आखों को रुलाऊॅगी। अब ठीक है न?"
"यही बात आप मेरी कसम खा कर कहिए।" विराज ने कहने के साथ ही माॅ गौरी का दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा।

"न नहीं नहीं।" गौरी ने विराज के सिर से तुरंत ही अपना हाॅथ खींच लिया__"मैं इसके लिए तुम्हारी कसम नहीं खा सकती मेरे लाल। तुम तो जानते हो एक माॅ अपने बच्चों के लिए कितना संवेदनशील होती है। उसका ममता से भरा हुआ ह्रदय इतना कोमल और कमजोर होता है कि अपने बच्चों के लिए एक पल में पिघल जाता है। सीने में पल भर में भावना का ऐसा तूफान उठ पड़ता है कि उसे रोंकना मुश्किल हो जाता है, और आंखें तो जैसे इस इंतजार में ही रहती हैं कि कब वो छलक पड़ें।"
josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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विराज माॅ की बात सुन कर मुस्करा उठा। माॅ के सुंदर चहरे और नील सी झीली आखों में खुद के लिए बेशुमार स्नेह व प्यार देखता रहा और हौले से झुक कर पहले उन आखों को फिर माॅ के माॅथे को प्यार से चूॅम लिया।

"क्या बात है?" गौरी विराज के इस कार्य पर मुस्कुराई तथा अपनी आखों की दोनो भौहों को ऊपर नीचे करके कहा__"आज अपनी इस बूढ़ी माॅ पर बड़ा प्यार आ रहा है मेरे बेटे को।"
"प्यार तो हमेशा से था माॅ।" विराज ने कहा__"और हमेशा रहेगा भी। मगर आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा?"

"अरे पगले! अब मैं बूढ़ी हूॅ तो बूढ़ी ही कहूॅगी न खुद को।" गौरी ने हॅस कर कहा।
"नहीं माॅ।" विराह कह उठा__"आप बूढ़ी बिलकुल भी नहीं हैं। आप तो गुड़िया की बड़ी बहन लगती हैं। आप खुद देख लीजिए।" कहने के साथ ही विराज ने माॅ गौरी को कमरे में एक तरफ दीवार से सटे एक बड़े से आदम कद आईने के सामने ला कर खड़ा कर दिया।

"ये ये सब क्या कर रहा है बेटा?" गौरी हॅसते हुए बोली, उसने सामने लगे आईने में खुद को देखा। उसके पीछे ही विराज उसे उसके दोनो कंधों से पकड़े हुए खड़ा था।

"अब गौर से देखिए माॅ।" विराज ने आईने में अपनी माॅ को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा__"देखिए अपने आपको। आप अब भी मेरी माॅ नहीं बल्कि मेरी बड़ी बहन लगती हैं न?"
"हे भगवान!" गौरी ने हॅसते हुए कहा__"तुम्हें मैं तुम्हारी बड़ी बहन लगती हूॅ? कोई और सुने तो क्या कहे?"

"मुझे किसी से क्या मतलब?" विराज ने कहा__"जो सच है वो बोल रहा हूॅ। गुड़िया आपकी ही फोटो काॅपी है माॅ। मतलब आप जब गुड़िया की उमर में रहीं होंगी तब आप बिलकुल गुड़िया जैसी ही दिखती रही होंगी।"

"हाॅ तुम्हारी ये बात तो सच है बेटे कि गुड़िया मुझ पर ही गई है।" गौरी ने कहा__"सब कोई यही कहता था कि गुड़िया की शक्लो सूरत मुझसे मिलती जुलती है। लेकिन मैं उसके जैसी अल्हड़ और मुहफट नहीं थी।"

"वो अभी बच्ची हैं माॅ।"विराज ने कहा__"उसमें अभी बहुत बचपना है। उसे यूॅ ही हॅसने खेलने दीजिए, वो ऐसे ही अच्छी लगती हैं।"
"उसकी उमर में मैंने जिम्मेदारी और समझदारी से रहना सीख लिया था बेटा।" गौरी ने सहसा गंभीर होकर कहा__"अब वो बच्ची नहीं रही, भले ही दिल और दिमाग से वह बच्ची बनी रहे। मगर,,,,,"

"वैसे दिख नहीं रही वो।" विराज ने चहा__"कहाॅ है वह?"
"ऊपर छत पर गई थी कपड़े डालने।" गौरी ने कहा।
"कोई हमें याद करे और हम तुरंत उसके सामने न आएं ऐसा कभी हो सकता है क्या?" सहसा कमरे के दरवाजे से अंदर आते हुए निधि ने कहा__"वैसे किस लिए याद किया गया है हमें? जल्दी बताया जाए क्योंकि हम बहुत बिजी हैं, हमें अभी कपड़े डालने जाना है ऊपर छत पर।"

"इस लड़की का क्या करूॅ मैं?" गौरी ने अपना माथा पीट लिया।
"बस प्यार कीजिए माॅ प्यार।" निधि ने अपने दोनो हाॅथों को इधर उधर घुमाते हुए कहा__"हम आपके बच्चे हैं, हमें बस प्यार कीजिए।"

"तू रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।" गौरी उसे मारने के लिए निधि की तरफ लपकी, जबकि निधि जिसे पहले ही पता था कि क्या होगा इस लिए वह तुरंत ही विराज के पीछे जा छुपी और बोली__"भईया बचाइए मुझे नहीं तो माॅ मारेंगी मुझे। मैं आपकी जान हूॅ न? अब बचाइये अपनी जान को, हाॅ नहीं तो।"

"रुक जाइए माॅ।" विराज ने माॅ को रोंक लिया__"मत मारिए इसे। आपने देखा न इसके आते ही वातावरण कितना खुशनुमा हो जाता है।"
"हाॅ माॅ।" निधि तुरंत बोल पडी__"मेरी बात ही अलग है। आप समझती नहीं हैं जबकि भइया मुझे अच्छे समझते हैं, हाॅ नहीं तो।"

"तेरे भइया ने ही तुझे बिगाड़ रखा है।" गौरी ने कहा__"अब जा कपड़े डाल कर आ जल्दी।"
"आपकी जान का इतना बड़ा अपमान।" निधि ने पीछे से विराज की तरफ अपना सिर करते हुए कहा__"बड़े दुख की बात है कि आप कुछ नहीं कर सकते मगर, हम चुप नहीं रहेंगे एक दिन इस बात का बदला जरूर लेंगे, देख लीजियेगा, हाॅ नहीं तो।"

"क्या बड़बड़ा रही है तू?" गौरी ने आखें दिखाते हुए कहा।
"कुछ नही माॅ।" निधि ने जल्दी से कहा__"वो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ करने को कह रही थी।"

"वो क्यों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पड़ता चला गया। जबकि निधि की इस बात से विराज की हॅसी छूट गई। वो ठहाके लगा कर जोर जोर से हॅसे जा रहा था। निधि अपनी हॅसी को बड़ी मुश्किल से रोंके इस तरह मुह बनाए खड़ी थी जैसे वो महामूर्ख हो। इधर विराज के इस प्रकार हॅसने से गौरी को कुछ समझ न आया कि उसका बेटा किस बात इतना हॅसे जा रहा है?
josef
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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इसी तरह एक हप्ता गुज़र गया। इस बीच विराज अपनी माॅ और बहन को लेकर जगदीश ओबराय के बॅगले में आकर रहने लगा था। जगदीश ओबराय इन लोगों के आने बहुत खुश हुआ था। गौरी को अपनी छोटी बहन के रूप में पाकर उसे बेहद खुशी हुई, गौरी भी उसे अपने बड़े भाई के रूप में पाकर खुश हो गई थी। निधि तो सबकी लाडली थी ही, अब जगदीश के लिए भी वह एक गुड़िया ही थी।

निधि का स्वभाव चंचल था। उसमे बचपना था तथा वह शरारती भी बहुत थी किन्तु पढ़ाई लिखाई में उसका दिमाग बहुत तेज़ था। उसने दसवी क्लास 90% मार्क्स के साथ पास किया था। इसके आगे वह पढ़ न सकी क्योकि तब तक हालात बहुत खराब हो चुके थे। गाॅव में दसवीं तक ही स्कूल था। आगे पढ़ने के लिए उसे पास के शहर जाना पड़ता, हलाॅकि शहर जाने में उसको कोई समस्या नहीं थी किन्तु हालात ऐसे थे कि उन माॅ बेटी का घर से निकलना मुश्किल हो गया था। आए दिन अजय सिंह का बेटा शिवा गलत इरादों से उसे छेंड़ता था। ये दोनो बाप बेटे एक ही थाली में खाने वाले थे। अजय सिंह की नीयत गौरी पर खराब थी। जबकि गौरी उसके मझले स्वर्गीय भाई विजय सिंह की बेवा थी तथा निधि उसकी बेटी समान थी। ये दोनो बाप बेटे अपने ही घर की इज्जत से खेलना चाहते थे। पैसे और ताकत के घमंड में दोनो बाप बेटे रिश्तों की मान मर्यादा भूल चुके थे।

जगदीश ओबराय ने निधि की पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए उसका एडमीशन सबसे अच्छे स्कूल में करवा दिया था। अभी वक्त था इस लिए स्कूल में दाखिला बड़ी आसानी से हो गया था। अब निधि रोजाना स्कूल जाती थी। अपनी पढ़ाई के पुनः प्रारम्भ हो जाने से निधि बहुत खुश थी।

विराज अब चूॅकि खुद ही जगदीश ओबराय की सारी सम्पत्ति का इकलौता मालिक था इस लिए अब वह कंपनी में मैनेजर के रूप में नहीं बल्कि कंपनी के एम डी के रूप में जाता था। कंपनी में काम करने वाला हर ब्यक्ति ये जान कर आश्चर्य चकित था कि कंपनी में काम करने वाला एक मैनेजर आज इस कंपनी का मालिक है, यानी उन सबका मालिक। किसी को ये बात हजम ही नही हो रही थी। हर ब्यक्ति विराज और विराज की किस्मत से रक़्श कर रहा था। विराज के उच्च अधिकारी जो पहले विराज को हुक्म देते थे तथा उसे तुच्छ समझते थे वो अब विराज के सामने उसके महज एक इशारे से किसी गुलाम की तरह सर झुकाए खड़े हो जाते थे। कोई भी उच्च अधिकारी विराज के सामने किसी गुलाम की तरह झुकना नही चाहता था और न ही उसको अपना बाॅस मानना चाहता था किन्तु अब ये संभव नही था। सच्चाई सबके सामने थी और उस सच्चाई को स्वीकार करके उसको अपनाना सभी के लिए अब अनिवार्य था। विराज ये सब बातें अच्छी तरह जानता था। इस लिए उसने सबसे पहले एक मीटिंग रखी जिसमें कंपनी के सभी उच्च अधिकारी शामिल थे। मीटिंग में विराज ने बड़ी शालीनता से सबके सामने ये बात रखी कि अगर किसी के दिलो दिमाग में कोई बात है तो वो खुल कर जाहिर करे। वो अब ओबराय कंपनीज का मालिक है इससे अगर किसी को कोई तकलीफ हो तो वो बता दे अन्यथा बाद में किसी का भी गलत ब्यौहार या किसी भी तरह की गलत बात का पता चलते ही उसे कंपनी से आउट कर दिया जाएगा।

विराज ने ये भी कहा कि आज वह भले ही ओबराय कंपनीज़ का मालिक बन गया है लेकिन वह कंपनी में काम करने वाले सभी कर्मचारियों को हमेशा अपना दोस्त या भाई ही समझेगा।

विराज की इन बातों से मीटिंग रूम में बैठे काफी उच्च अधिकारी प्रभावित हुए और कुछों के चेहरे पर अब भी अजीब से भाव थे। सबके चेहरों के भावों को बारीकी से जाॅचने के बाद विराज ने अंत मे ये भी कहा कि अगर किसी के दिलो दिमाग में ऐसी बात है कि वो इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो वो शौक से अपना अपना स्तीफा देकर जा सकते हैं।

कुछ लोग हालातों से बड़ा जल्दी समझौता करके आगे बढ़ जाते हैं किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो बिना मतलब का खोखला सम्मान और गुरूर लेकर खाली हाॅथ बैठे रह जाते हैं। कहने का मतलब ये कि मीटिंग के बाद एक हप्ते के अंदर अंदर कंपनी के काफी उच्च अधिकारियों ने स्तीफा दे दिया। विराज जैसे जानता था कि यही होगा। इस लिए उसने पहले से ही ऐसे लोगों को उनकी जगह फिट किया जो उसकी नज़र में इमानदार व वफादार होने के साथ साथ उसके अपने मित्र भी थे।
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Re: एक नई रंगीन दुनियाँ

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😘 (^^^-1$i7) 😓लाजवाब कहानी आपने शुरू की है जोसेफ भाई बहुत मस्त नई कहानी के लिए आपका अभिनंदन आपकी हर कहानी मस्त होती है यह भी वैसी ही है अगले अपडेट का इंतजार है
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