Adultery * * * * *पाप (30 कहानियां) * * * * *

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rajaarkey
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मैंने बेकरार होकर अपने होंठ आगे किए और उसके होंठों पर रख दिए। उन होंठों की नर्माहट जैसे मेरे होंठों से होती मेरे जिश्म के रोम रोम में उतर गई। हम दोनों दीवाना-सार एक दूसरे को चूम रहे थे। वो कभी मेरे चेहरे को सहलाती तो कभी मेरे बालों में उंगलियां फिराती। कद में मुझसे काफी छोटी होने के कारण उसको शायद मुझे चूमने के लिए अपने पंजों पर उटना पड़ रहा था और मुझको काफी नीचे झुकना पड़ रहा था। अपने हाथों से मैंने उसकी कमर को पकड़ रखा था और उसको ऊपर की तरफ उठा रहा था। और तब मुझे एहसास हुआ की उसको चूमते चूमते अब मैं पूरी तरह सीधा खड़ा था।

उसका चेहरा अब बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने था और उसकी बाहें मेरे गले में थी। मैंने हैरत में एक नजर उसके पैरों की तरफ डाली तो पता चला की मैंने उसको कमर से पकड़कर ऊपर को उठा लिया था और उसके पाँव हवा में झूल रहे थे।

वो किसी फूल की तरह हल्की थी। मुझे एहसास ही नहीं हो रहा था की मैंने एक जवान लड़की को यूँ अपने हाथों के बल हवा में पकड़ रखा है। जरा भी थकान नहीं। अगर वो उस वक्त ना बोलती तो पता नहीं मैं कब तक उसको यूँ ही हवा में उठाए चूमता रहता।

“बिस्तर...” उसने मुझे चूमते चूमते अपने होंठ पल भर के लिए अलग किए और उखड़ती साँसों के बीच बोली।

इशारा समझ कर मैं फौरन उसको यूँ उठाए उठाए रूम के एक वन में बने बेड तक लाया और उसको नीचे लेटाकर खुद उसके ऊपर आ गया।


मैं इससे पहले भी कई बार कई अलग अलग लड़कियों के साथ बिस्तर पर जा चुका था इसलिए अंजान खिलाड़ी तो नहीं था। जानता था की क्या करना है पर उस वक़्त जैसे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था। जितना मजा मुझे उस वक्त उसको चूमने में आ रहा था उतना तो कभी किसी लड़की को चोदकर भी नहीं आया
था।


एक मिनट...” मैं एक पल के लिए अलग होता हुआ बोला- “किस हद तक तुम्हारे लिए ठीक है...”

आखिर वो एक छोटे से गाव की लड़की थी। पहली बार में सब कुछ शायद उसको ठीक ना लगे।

मैं पूरी तरह से आपकी हूँ..” उसने हल्की सी आवाज में कहा और फिर मुझे अपने ऊपर खींच लिया। कमरे में अब पूरी तरह अंधेरा था। बस हम दोनों के चूमने की आवाज, कपड़ों की सरसराहट और भारी साँसों के अलावा और कोई आवाज नहीं थी।

पहाड़ों में शाम ढाल जाने के बाद एक अजीब सा सन्नाटा फैल जाता है। दूर दूर तक सिर्फ हवा और किसी जानवर के चिल्लाने की आवाज को छोड़कर और कुछ सुनाई नहीं पड़ता। कुछ को ये सन्नाटा बड़ा आरामदेह लगता है और कुछ को ये सन्नाटा रुलाने की ताकत भी रखता है। उस वक्त भी यही आलम था। बाहर पूरी तरह अजीब सी खामोशी थी। जैसे पूरी कायनत खामोश खड़ी हम दोनों के मिलन की गवाह बन रही हो। दिल की धड़कन इस तरह तेज हो चली थी की मुझे लग रहा था की कहीं कोई शोर ना सुन ले। मेरा दिमाग कुंद पड़ चुका था।

आगे बढ़ने का ख्याल भी मेरे दिमाग में नहीं आ रहा था। उसपर चढ़ा बस उसको चूमे जा रहा था। तभी उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने गले से हटाते हुए धीरे से नीचे लाई और अपनी एक छाती पर रख दिया। एक बड़ा सा नरम गुदाज अंग मेरी हथेली में आ गया।

इतने बड़े.” ये पहला ख्याल था जो मेरे दिमाग में आया था। उसको पहली बार देखकर ये अंदाजा हो ही नहीं सकता था की उसकी छातियां इतनी बड़ी बड़ी हैं।

बड़ी पसंद है ना आपको..” उसने धीरे से मेरी कान में कहा।

और ये सच भी था। अपनी लाइफ में कई ऐसी लड़कियां जो मुझपर फिदा थी उनको मैंने इसलिए रिजेक्ट किया था क्योंकी उनकी छातियां बड़ी बड़ी नहीं थी। मेरे हिसाब से एक औरत की सबसे पहली पहचान थी उसकी छातियां और अगर वो ही औरत होने की गवाही ना दें तो फिर क्या फायदा?

“हाँ...” मैंने हाँफती हुई आवाज में कहा और अपने हाथ में आए उस बड़े से अंग को धीरे-धीरे दबाने लगा। तब भी मेरे दिमाग में ये नहीं आया की दूसरी छाती भी पकड़ हूँ और वो जैसे मेरा दिमाग पढ़ रही थी। उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ा और अपनी दूसरी छाती पर रख दिया।



“जोर जोर से दबाओ। मसल डालो..."

और मेरे लिए शायद इतना इशारा ही काफी था। मैंने उसकी छातियों को जानवर की तरह मसलना शुरू कर दिया और उसके गले पर बेतहाशा चूमने लगा। कोई और लड़की होती तो शायद इस तरह छाती दबाए जाने पर दर्द से बिलबिला पड़ती पर उसने यूं तक नहीं करी।

जब उसने देखा की मैं बस उसकी गले पर चूम रहा हूँ तो उसने मेरा सर पकड़ा और अपनी छातियों की तरफ धकेला। दबाए जाने के कारण दोनों छातियों का काफी हिस्सा कमीज के ऊपर से बाहर को निकल रहा था और मेरे होंठ सीधा वहीं जाकर रुके। मैंने नीचे से छातियों को ऊपर की ओर दबाया ताकि वो और कमीज के बाहरआएं और उनके ऊपर अपने होंठ और अपनी जीभ फिराने लगा।

उसको इस बात का एहसास हो चुका था की मैं दबा-दबाकर उसकी कमीज के गले से उसकी छातियां जितनी हो सकें बाहर निकालना चाह रहा हूँ।

चाहिए?” उसने पूछा

“हाँ..” मैंने चौंकते हुए कहा।

“ये चाहिए?”

कमरे में पूरा अंधेरा था और मैं उसको बिल्कुल देख नहीं सकता था, बस उसके जिश्म को महसूस कर सकता था। पर फिर भी उसके पूछने के अंदाज से मैं समझ गया की वो अपनी छातियों की बात कर रही थी। इससे पहले की मैं कोई जवाब देता, उसने मुझे पीछे को धकेला और उठकर बैठ गई। उसके जिश्म की सरसराहट से मैं समझ गया था की वो अपनी कमीज उतार रही थी।

जब उसने फिर मेरे हाथ पकड़कर अपनी छातियों पर रखे तो इस बार मेरे हाथ को उसके नंगेपन का एहसास हुआ। उसने अपनी ब्रा भी उतार दी थी।

किस रूप में चाहोगे मुझे?” उसने पूछा।
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Re: * * * * * सफेद लिबास * * * * *

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मुझे सवाल समझ नहीं आया और इस बार भी उसने शायद मेरा दिमाग पढ़ लिया। इससे पहले के मैं उससे मतलब पूछता वो खुद ही बोल पड़ी।
किसे चोदना चाहोगे आज... जो चाहो मैं वही बनने को तैयार हूँ..”

मुझे अब भी समझ नहीं आ रहा था।

कहो तो तुम्हारी पड़ोसन, तुम्हारे दोस्त की बीवी, एक अंजान लड़की..”


मुझे अब उसकी बात समझ आ रही थी। शहर में हम इसे रोल-प्लेयिंग कहते थे।

कहो तो मैं एक रंडी बन जाऊं?” वो बोले जा रही थी।

या कोई गंदी ख्वाहिश है तुम्हारी। अपनी माँ, या बहन, या भाभी को चोदने की ख्वाहिश?”

मैंने फौरन उसकी बात काटी- “मेरी बीवी...” पता नहीं कहा से मेरे दिमाग में ये ख्याल आया और इसके आगे मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी।

मेरे साथ आपकी पहली रात है पतिदेव। आपकी बीवी पूरी तरह आपकी है। जैसे चाहिए मजा लीजिए..” कहते । हुए उसने मेरी कमीज के बटन खोलने शुरू कर दिए। मेरा दिमाग अब भी जैसे काम नहीं कर रहा था। जो कर रही थी, बस वो कर रही थी। लग रहा था जैसे वो मर्द हो और मैं औरत। धीरे-धीरे उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और उस अंधेरे में उसकी बाहों में मैं पूरी तरह से नंगा हो गया।

काफी बड़ा है..” उसके हाथ मेरे लण्ड पर थे। वो उसको सहला रही थी।

इस बार जब उसने मुझे अपने ऊपर खींचा तो मैं सीधा उसकी टाँगों के बीच आया। उसने अब भी सलवार पहन रखी थी पर मेरा पूरी तरह से खड़ा हो चुका लण्ड सलवार के ऊपर से ही जैसे उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था। एक हाथ से वो अब भी कभी मेरे लण्ड को सहलाती, तो कभी मेरे टट्टों को।

ओह...” मेरे लण्ड का दबाव चूत पर पड़ते ही वो कराही- “चाहिए?”

फिर वही सवाल।

“बोलो ना... चाहिए... मुझे तो चाहिए...”

फिर से एक बार वो उठकर बैठी, अंधेरे में फिर कपड़ों के सरसरने की आवाज। मैं ज...नता था की वो सलवार उतार रही है।

आ जाओ... चोदो मुझे...” उस वक़्त उसके मुँह से वो गंदे माने जाने वाले शब्द भी कितने मीठे लग रहे थे।

उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैं फिर उसकी टाँगों के बीच था। मेरे अंदाजा सही निकला था। उसने अपनी सलवार उतार दी थी और अब नीचे से पूरी नंगी थी। मेरा लण्ड सीधा उसकी नंगी, भीगी और तपती हुई चूत पर
आ पड़ा।

मैं ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे ये मेरा पहली बार हो। अपनी कमर हिलाकर मैं उसकी चूत में लण्ड घुसने की कोशिश करने लगा।



“रुको मेरे सरताज...” वो ऐसे बोली जैसे सही में मेरी बीवी हो- “पहले अपनी बीवी को अपने पति का लण्ड चूसने नहीं दोगे...।

किसी बच्चे की तरह मैं उसकी बात मानता हुआ बिस्तर पर सीधा लेट गया। वो घुटनों के बल उठकर बिस्तर पर बैठ गई। अंधेरे में मुझे वो बिल्कुल नजर नहीं आ रही थी। बल्कि नीचे जमीन पर पड़े उसके सफेद कपड़ों के सिवाय कुछ भी नहीं दिख रहा था।

मेरे लण्ड पर मुझे कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ और मैं समझ गया की ये उसकी जीभ थी। वो मेरा लण्ड चाट रही थी। कभी लण्ड पर जीभ फिरती, तो कभी टट्टो पर। उसके एक हाथ ने जड़ से मेरा लण्ड पकड़ रखा था और धीरे-धीरे हिला रही थी। और फिर मुझे वो एहसास हुवा जो कभी किसी लड़की को चोदते हुए नहीं हुआ था। उसने जब मेरा लण्ड अपने मुँह में लिया तो वो मजा दिया जो किसी लड़की की चूत में भी नहीं आया था। बड़ी देर तक वो यूँ ही मेरा लण्ड चूसती रही। कभी चूसती, कभी चाटने लगी तो कभी बस यूँ ही बैठी हुई हाथ से हिलाती।

बस..” मैंने बड़ी मुश्किल से कहा- “मेरा निकल जाएगा...”

वो फौरन समझ गई। अंधेरे में वो हिली, उसका जिम मुझे अपने ऊपर आते हुए महसूस हुआ और मेरा लण्ड एक बेहद गरम, बेहद टाइट और बेहद गीली जगह में समा गया।

चोदो अपनी बीवी को... जैसे चाहो चोदो.. लिटाकर चोदो, झुका कर चोदो, कुतिया बनाकर चोदो...”

वो और भी जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे ऊपर बैठी अपनी गाण्ड हिलाती लण्ड चूत में अंदर बाहर कर रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था की ये कोई सपना है या हकीकत। पर जो कुछ भी था, मेरी जिंदगी का सबसे हसीन पल था।
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वो यूँ ही मेरे ऊपर बैठी हिल रही थी। मेरी आँखें भारी हो चली थी। मैं सोना नहीं चाहता था। मैं तो उसके साथ पूरी रात प्यार करना चाहता था पर अपने आप पर जैसे मेरा काबू नहीं रहा। पलकें ऐसे भारी हो गई थी जैसे मैं कब से सोया नहीं था और आज की रात मुझे अपनी जिंदगी में पहली बार सुकून हासिल हुआ था।

अपनी गाण्ड ऊपर नीचे हिलती वो झुक कर मेरे ऊपर लेट गई। उसकी छातियां मेरे सीने से आकर दब गई। उसके होंठ मेरे कान के पास आए और वो बहुत धीरे से बोली।
फकत एक तेरी याद में सनम, । ना सफर के रहे, ना वतन के रहे, बिखरी लाश के इस कदर टुकड़े हैं, ना कफन के रहे, ना दफन के रहे।


और उसकी आवाज सुनते ही एक अजीब सी ठंडक और बेचैनी जैसे एक साथ मेरे दिल में उतर गई। पता नहीं मैं बेहोश हो गया या नींद के आगोश में चला गया पर उसके बाद कुछ याद नहीं रहा। अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो जा चुकी थी। मैं खामोशी से उठा तो मन अजीब तरह से भारी था।

समझ में नहीं आ रहा था की ये इसलिए था की मैं अपनी बीवी को धोखा देते हुए एक अजनबी लड़की के साथ सोया था जो एक पाप था या इसलिए की वो लड़की अब मेरे साथ नहीं थी और मैं उसको फिर से देखना चाहता था। फिर वही पाप करना चाहता था।

सिर्फ ये एहसास के वो अब मेरे पास नहीं है जैसे मेरी जान निकल रही थी। पहाड़ों में अब भी अजीब सा
सन्नाटा था।

बाहर सूरज अब भी नहीं निकला था। चारों तरफ बदल फैले हुए थे। मैंने उठकर अपने कपड़े पहने और बाहर आकर फिर अंदाजे से उस जगह की तरफ चल दिया जहाँ मैंने उसको पहली बार देखा था। ना कुछ खाया, ना मुँह धोया, बस दीवानों की तरह उठा और उसकी तलाश में चल पड़ा।

वो घर जहाँ की उसने बताया था की वो रहती थी अब भी वहीं था। मेरी जान में जान आई। घर के बाहर पहुँच कर मैंने कुण्डा खटखटाया। एक बुड्ढी औरत ने दरवाजा खोला। हाथ में एक इंडा जिसके सहारे वो झुक कर चल रही थी। दूसरे हाथ में एक माला जिसका वो जाप कर रही थी।

“कहिए?” उसने मुझसे पूछा

मैंने उसको बताया के मैं एक लड़की को ढूँढ़ रहा था। हुलिया बताया और तब मुझे एहसास हुआ की मैंने कल रात उसका नाम तक नहीं पूछा था।

मेरी बेटी आशिया?” बुड्ढी औरत बोली।

मैंने बताया की मैं नाम नहीं जानता पर फिर से लड़की का हुलिया बताया।

हाँ.. मेरी बेटी आशिया। एक साल पहले आते तो शायद मिल लेते...”
-
मैं मतलब नहीं समझा।

उसको मरे तो एक साल हो गया...”

मैं फिर भी मतलब नहीं समझा और हैरानी से उस औरत को देखने लगा। उसने मुझे वहीं एक पेड़ की तरफ इशारा किया और दरवाजा मेरे मुँह पर बंद कर दिया। मैं किसी बेवकूफ की तरफ चलता उस पेड़ तक पहुँचा। पेड़ के नीचे एक कबर बनी हुई थी। एक पत्थर पर हिन्दी और उर्दू में लिखा था- “आशिया...”

और नाम के नीचे लिखी थी वो शायरी जो उसने कल
फकत एक तेरी याद में सनम, ना सफर के रहे, ना वतटन के रहे, बिखरी लाश के इस कदर टुकड़े हैं, ना कफन के रहे, ना दफन के रहे।

मौत की तारीख आज से ठीक एक साल पहले की लिखी हुई थी।

जब मैं वापिस गेस्ट हाउस पहुँचा तो बाहर मुझे केयरटेकर मिला। मैंने उसको उस लड़की के बारे में बताया जो कल मेरे साथ आई थी।

कौन सी लड़की साहब?” वो हैरत से मेरी तरफ देखता बोला- “आप तो अकेले आए थे...”

मैंने उसको बताया की वो लड़की जिससे मैं बात कर रहा था।

मैं तो समझा था की आप वो हनुमान जी से बात कर रहे हैं..." उसने मेरे काटेज के थोड़ा आगे बनी एक हनुमान जी की मूर्ति की तरफ इशारा किया। वो फिर बोला- “आप कल अकेले आए थे साहब...”

हवा में एक अजीब सी खामोशी थी जैसे कहीं कोई मर गया हो और सारे पेड़, सारी वादियां, सारे पहाड़ उसका मातम कर रहे हों। मेरी आँखें भर गई और कलेजा मुँह को आ गया। मैं रोना चाहता था। दहाड़े मार मार कर रोना चाहता था।

मैं उसको हासिल करना चाहता था। फिर उसको प्यार करना चाहता था। मैं उसके साथ होना चाहता था। फिर वही पाप करना चाहता था।

उसको तो मरे एक साल हो गया...” बुढिया की आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी।

आप कल अकेले आए थे साहब..” केयरटेकर की आवाज दिमाग में घंटियां बजा रही थी।

मेरा दिल ऐसे उदास था जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया की छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पड़े, अपने कपड़े फाड़ दें, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं।अपनी जान दे दूं
और मदहोशी के से आलम में मेरे कदम पहाड़ के कोने की तरफ चल पड़े, खाई की तरफ।
***** समाप्त *****

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Re: * * * * * सफेद लिबास * * * * *

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Re: * * * * * सफेद लिबास * * * * *

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(^^^-1$i7) (#%j&((7) (^@@^-1rs7)
excellent update brother keep posting
waiting for the next update 😪
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