Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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rajan
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Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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रीत उल्टी लेट कर लैपटाप पर फेसबुक पर हरी से बातें कर रही थी। और बातों ही बातों में रीत हरी से ठरक से भरी बातें करके मजे ले रही थी। जितनी शरीफ रीत पहले थी, आज से उससे काफी ज्यादा चालू बन चुकी थी। मजे लेते-लेते रीत की चूचियां एकदम टाइट हो गई थी।

इतने में रिंकू ने भी आइडिया लगया की क्यों ना सोनू से छुपकर वो रीत से एक मुलाकात कर ले। क्योंकी उस दिन के बाद रिंकू और रीत की एक बार भी बात नहीं हुई थी। रिंकू सोनू से बोला- “भाई माल आया हुआ है तेरे मतलब का?"

सोनू के मुँह पर एक शरारती मुश्कान आई और वो बोला- “भाई फिर दे ना जल्दी से.."

रिंकू अपनी जेब से स्मैक की एक पुड़िया निकालकर सोनू को देता है। सोनू स्मैक देखकर खुश हो जाता है, और झट से रिंकू के हाथ से छीन लेता है। फिर वो दोनों स्मैक लेते है। पर रिंकू सिर्फ सोनू के आगे स्मैक लेने की आक्टिंग करता है। स्मैक लेते ही सोनू बेड पर ढेर हो जाता है। और अब रिंकू के पास बहुत अच्छा मोका होता है। वो सोनू के रूम में से निकालकर सीधा रीत के रूम में जाता है।

रीत अभी भी वैसे ही उल्टी लेटी हुई अपने दोनों चूतर बाहर निकाले बेड पर लेटी हुई थी। रिंकू जैसे-जैसे रीत के पास जाता है, वैसे-वैसे उसकी आँखों में रीत के चूतर बड़े होने लगते हैं। रिंकू का लण्ड अब उसकी पैंट में पूरा खड़ा हो चुका था। रिंकू बेड पर धीरे से बैठ जाता है। रिंकू के बेड पर बैठने से बेड पर हलचल हो जाती है। और रीत उस हलचल से एकदम डर जाती है।

रीत झट से अपना लैपटाप बंद करके रिंकू को देखती है और बोलती है- “रिंकू तू यहां क्या कर रहा है? जा यहाँ से अभी..."

रिंकू- तू तो बात करती नहीं मेरे साथ, तो मैंने सोचा क्यों ना जाकर खुद ही हालचाल पूछ लूँ मैं।

रीत- तू पागल हो गया है क्या? सोनू आ जाएगा। तू बस जा अभी यहाँ से मुझे कुछ नहीं पता।

रिंकू- सोनू नहीं आता, मैं उसका जुगाड़ करके ही यहाँ आया हूँ। तू उसकी फिकर ना कर।

रीत- कौन सा जुगाड़ कर दिया है तूने सोनू का?

रिंकू- उसको एक पटियाला पेग पिला दिया है, जिससे उसे नींद आ गई है।

रीत ये सुनकर थोड़ी ढीली हो जाती है, और सोचती है- "अपने यार मालिक के लिए तेरे पास सारा दिन टाइम है, हम जैसे गरीबो के लिए नहीं है...”

रीत- हाँ पता है मुझे आया बड़ा गरीब।

रिंकू जब से बेड पर बैठा हुआ था, तब से उसकी नजर रीत के चूतरों पर ही जमी हुई थी। रीत अब अपनी टाँगें थोड़ी खोल लेती है, जिससे उसके चूतर भी खुल चुके थे। अब उसे चूतर अलग-अलग नजर आ रहे थे। ये देखकर रिंकू की पैंट में तंबू बन गया था। जिसको रीत ने अपनी तिरछी नजरों से देख लिया था।

हरी के साथ गरम-गरम बातें करके रीत पहले से ही गरम हो रखी थी, और अब रिंकू के पैंट में बना तंबू देखकर रीत और ज्यादा गरम हो जाती है। फिर रीत रिंकू को पाइंट मारते हुए बोली।
रीत- "रिंकू मैं तेरा सारा गरीबपना देख चुकी हूँ..”

रिंकू मुश्कुरा पड़ा क्योंकी वो रीत की बात का मतलब समझ चुका था, की वो कहाँ इशारा करके बोल रही है। रिंकू अपना लण्ड मसलते हुए बोला- “गरीबपना तूने कभी देखा भी है?"

रीत जब रिंकू को लण्ड मसलते हुए देखती है, तो उसके दिल में हलचल होने लगती है। उसकी चूचियां और ज्यादा खड़ी हो जाती हैं। रीत की नजरें रिंकू के लण्ड को देख रही थीं, और रिंकू की आँखें रीत के चूतरों से हटने का नाम नहीं ले रही थीं। पर रीत को इस सब में बहुत मजा आ रहा था।

रीत अपनी ठरक भूलकर बोली- “अच्छा अगर ऐसी बात है तो आज दिखा मुझे अपना गरीबपना। आज मैं भी देखती हूँ की तेरे जैसे गरीब का गरीबपना कैसा होता है?

रीत के मुँह से ये बात निकलते ही रिंकू का वो सारा सबर तोड़ देती है, और रिंकू झट से रीत के एक चूतर पर हाथ रखकर उसके एक चूतर को अच्छे से मसल देता है। ऐसा होते ही रीत के शरीर में एक करेंट लगता है और वो सिसकारियां भरते हुए बोली- “आहह... ये तू क्या कर रहा है रिंकू?"

रिंकू रीत के चूतरों को अच्छे से मसलता हुआ बोला- “मैं तुझे अपना गरीबपना दिखा रहा हूँ बस...”


रीत- “आह्ह... आहह... मुझे नहीं देखना कुछ, बस तू अपना हाथ हटा जल्दी से..."

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दर्शल रीत को भी बहुत मजा आ रहा था, पर जानबूझ कर शो नहीं कर रही थी। जैसे ही रीत रिंकू का हाथ हटाने के लिए अपना हाथ उसके हाथ पर रखती है। तभी रिंकू उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख लेता है। लण्ड के हाथों में आते ही रीत की बोलती बंद हो जाती है। लण्ड की गरमी से उसकी चूत अपना पानी निकालने लगती है।

रीत को अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। इससे पहले और कुछ होता, तभी सीढ़ियों से किसी के आने की आवाज आई। जिसे सुनते ही रीत एकदम होश में आई, उसने अपना हाथ रिंकू के लण्ड से हटा लिया। और रिंकू भी बेचारा तड़पता हुआ उसके रूम से निकलकर सीधा सोनू के रूम में चला गया।

रिंकू जब घर वापिस गया तो वो रीत को स्माइल करके गया। अब रीत का बुरा हाल हो रहा था। उसने अपना रूम अंदर से बंद किया और पूरी नंगी होकर अपनी चूत में दो उंगलियां डाल ली। फिर रीत रिंकू के लण्ड के बारे में सोचकर उंगलियां अंदर-बाहर करने लगी, और कुछ ही देर ही उसकी चूत ने अपना पानी निकाल दिया।

उसके बाद उन सबने डिनर किया और डिनर के बाद सब सोने के लिए अपने-अपने रूम में चले गये।

सुखजीत अपने पति को साथ लेते हुए, आज उस हादसे के बारे में सोचने लगी। उसे समझ में आ गया था की इस सरकारी काम में किसी बड़े बंदे का जब तक साथ नहीं मिलेगा, तब तक उनकी कोई नहीं सुनेगा। तभी उसे एम.एल.ए. रंधावा की याद आती है। सुखजीत सुबह होते ही उसके पास जाने का प्रोग्राम बनाती है। सुखजीत को पूरा यकीन था, की एम.एल.ए. उसकी हेल्प जरूर करेगा।
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rajan
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Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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कड़ी_64

डेली की तरह रीत मस्त पटोला बनकर स्कूल के लिए निकलती है। डेली की तरह वो ज्योति को लेने उसके घर पर पहुँच जाती है। उधर ज्योति भी तैयार खड़ी होती है। और तो और ऐसे ही वो उसके पीछे बैठकर चल पड़ती है। उधर हरी भी अपनी बुलेट पर पूरा तैयार होकर आ रहा होता है।

हरी जब रीत को देखता है तो बड़ी सी स्माइल पास करता है। उधर रीत भी उसको देखकर एक सेक्सी सी स्माइल देती है। वो हरी को पूरी तरह तड़पाती है, क्योंकी उसको ऐसे करने में बहुत मजा आता है। इससे हरी और चिढ़ जाता है। वो ये सब इसलिए कर रही होती है क्योंकी उसने ज्योति से बदला लेना होता है। रीत हरी को तो अपना मोहरा बना कर चलती है, क्योंकी उसने तो ज्योति से बदला लेना होता है।

अब क्लास में सब बैठे होते हैं, और अकाउंट्स का पीरियड चल रहा होता है। तभी ज्योति बीच में उठकर वाशरूम के लिए जाती है। तभी उसके जाते ही रीत उसके बैग में से उसका फोन निकलती है और फिर उसके और मलिक के मेसेज पढ़ने लगती है।

उसके मेसेज में लिखा होता है की ज्योति कल मलिक से मिलने वाली है और दोनों ने मूवी देखने का प्रोग्राम बनाया है। और वो सुबह वहीं मलिक से मिलेगी जहां पिछली बार नीचे पार्किंग में मिली थी। ये सब पढ़कर उसको बहुत गुस्सा आ रहा होता है। पर वो अपने गुस्से को शांत कर लेती है। और जब ज्योति आने वाली होती है तो उसका फोन वैसे ही उसके बैग में डाल देती है।

अब अकाउंट्स का पीरियड खतम हो जाता है और उधर अब अगला बिजनेस का पीरियड होता है जो की सबसे बोरिंग होता है। इस पीरियड में सभी लेक्चर को बंक करते हैं या तो एक दूसरे के दोस्त साथ उनको छेड़ते हैं।

अब ऐसे ही डेली की तरह हरी ज्योति को छेड़ता है और वैसे ही बैठा होता है। पर आज ज्योति आगे बैठी होती है। क्योंकी उसको टीचर ने आगे बिठाया होता है क्योंकी वो स्टडी में ध्यान नहीं दे रही होती है। तो अब पीछे रीत बैठी होती है और साथ में हरी होता है। फिर रीत हरी को कहती है की मैंने कुछ बात करनी है तो वो कहता है हाँ करो।

हरी- क्या बात है अकेले ही लगी हुई हो?

रीत- अब क्या करें, अकेले ही टाइम स्पेंड करना है।

हरी- अच्छा मेरे होते तू अकेली होगी क्या?

रीत- आप ज्योति को छोड़कर ऐसे किसी के साथ कुछ नहीं कर सकते।

हरी- अगर दूसरी लड़की तेरी जैसी सुंदर हो तो कुछ भी हो सकता है।

रीत ये सब सुनकर खुश हो जाती है और कहती है- “अच्छा जी। ये बात है?"

हरी- “हाँ जी यही बात है...” और फिर रीत के पास आ जाता है, और ऐसे ही वो उसकी चूचियां दबाने लगता है।

तभी बेल बज जाती है और लेक्चर खतम हो जाता है। खतम होते ही आधे से ज्यादा बच्चे बाहर चले जाते हैं
और ज्योति भी उठकर अपने हरी पास आ जाती है क्योंकी उसको भी अपनी चूचियां मसलवानी होती है।

अब ज्योति जैसे ही पास आकर बैठती है, तभी रीत उठ जाती है और हरी को एक कागज देती है जिसे खोलकर हरी पढ़ता है।

रीत- “अगर अपनी माशूका को धोखा देना ही है तो अभी पानी वाली टंकी के पास आकर मिल.."

हरी ये सब पढ़कर खुश ही जाता है और उधर रीत भी शर्माते हुए वहां से चली जाती है। अब हरी उठने लगता है
तब ज्योति बोलती है- “कहां जा रहे हो.."

हरी- “वो यार कँटीन में जा रहा हूँ वहा दोस्तों के बीच लड़ाई हो गई है.”

ज्योति ये सुनकर गुस्सा हो जाती है और कहती है- “फिर मेरा क्या होगा?”

हरी- “तू प्लीज़्ज... आज खुद ही कर ले.."

ज्योति को ये सुनकर और गुस्सा आता है और कहती है- “जा दफा हो जा.."

अब हरी वहां से आ जाता है और फिर भागकर पानी की टंकी के पीछे जाता है। वहां पर कोई भी नहीं आता है। क्योंकी वो काफी दूर थी जगह, और तो और वहां पर कोई टीचर भी नहीं आता था। और ऐसे ही हरी जब वहां पर पहुँचा तो रीत उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हुई थी। अब ऐसे ही हरी उसको पीछे से झप्पी देता है, और फिर उसके बाद जोर से दबा देता है।
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रीत- "आ गया है तू हरी। और इतना टाइट झप्पी क्यों दी है?"

हरी उसको पीछे से दबाता हुआ अपना लण्ड उसकी गाण्ड में दबाकर कहता है- “हाँ, मुझे तो आना ही था..”

रीत भी सब समझ जाती है और अपनी गाण्ड को पीछे का धक्का देते हुए अब मुड़ जाती है और कहती है- “ये सब ज्योति साथ कर, ये सब मेरे साथ नहीं चलेगा.."

हरी- यार तेरे आगे उसकी क्या पर्सनलिटी है?

रीत ये सुनकर और खुश हो जाती है, और फिर ऐसे ही मुश्कुरा देती है। अब हरी उसको जोर से झप्पी देता है और उसके होंठों में अपने होंठ डालकर चूसने लगता है। रीत भी उसका साथ देती है और खुद भी उसके होंठ चूसती है। पर बाद में अलग करती है और कहती है- “तू ने तो ज्योति को बहुत घुमाया है और खूब मजा भी दिलवाया है...”

हरी अब उसकी चूचियों को दबाते हुए कहता है- “तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, तू भी चल लियो.."

रीत- हाँ मैं तो जाना चाहती हूँ।

हरी- अच्छा तो फिर तू कल मुझे सुबह 9:00 बजे पार्किंग लाट में मिल फिर हम चलेंगे।

रीत ये सुनकर खुश हो जाती है और उसे हाँ कर देती है। अब हरी भी उसकी चूचियों को दबा रहा होता है। और वो भी इसके मजे ले रही होती है। अब मजे तो वो ले रही होती है पर उसका मकसद तो कुछ और ही होता है। असल में तो वो ज्योति से बदला लेना चाहती है और हरी तो सिर्फ एक मोहरा होता है जिसे वो इश्तेमाल कर रही होती है। अब ऐसे ही ये सब सोचते हुये स्कूल की बेल बज जाती है तो वो एकदम से हरी से अलग होती है
और अपनी कमीज को सेट कर रही होती है।

फिर रीत वहां से जाने लगती है तो उसको पीछे से हरी पकड़ लेता है। और फिर से एक बार अपने लण्ड को उसकी गाण्ड में फँसा देता है और फिर एक बार चूचियों को मसलता है। फिर वो अब दोनों वहां से निकल लेते है और फिर क्लास में आते हैं।

वहां पर ज्योति बैठी होती है तो उसके सामने हरी और रीत दोनों कुछ भी शो नहीं करते हैं। और बस फिर घर आने का इंतेजार कर रहे होते हैं।

दूसरी तरफ सुखजीत हरपाल के साथ लिए डिसिशन से परेशान होती है। और फिर वो तैयार होकर क्लब के लिए निकल पड़ती है। क्योंकी वो घर पर रहेगी तो और परेशान हो जायगी। अब क्लब में आकर वो एक लेडी से अपनी प्राब्लम शेयर करती है तो वो कहती है की उसके साथ भी कुछ ऐसा हुआ था इसलिये उसने एम.एल.ए. साहब की हेल्प ली थी और तुम्हें भी लेनी चाहिए।

सुखजीत ये सुनकर सोचती है की इसमें एम.एल.ए. जी मदद का सकते हैं, और फिर बैग में से फोन निकालती है और फिर ऐसे ही फोन मिलाती है।

सुखजीत- हेलो रंधावा जी।

रंधावा- हाँ जी कौन?

सुखजीत- इतनी जल्दी भूल गये? उस दिन ही अपने कहा था की कोई हेल्प हुई तो याद करना।

रंधावा- हाँ हाँ पहचान लिया। मैं आया था आपके क्लब की उदघाठन में और सच में काफी मजा आया था।

सुखजीत मन में सोचती है- “हाँ हाँ वो तो आना ही था क्योंकी सारा ध्यान तो मेरी चूचियों पर था.."

सुखजीत बोली- “हाँ जी... वो तो मैंने ये बात करनी थी की कुछ प्राब्लम आ गई है.."

रंधावा- कहां क्लब में?

सुखजीत- “नहीं नहीं अपनी पर्सनल लाइफ में..” और फिर उसे पूरी बात बता देती है।

रंधावा- “हाँ हाँ कोई बात नहीं इस प्राब्लम का हलभी निकल आएगा, तुम टेन्शन मत करो। बस एक बार मिलकर बात बात कर लो..."

त समझ जाती है की रंधावा एक नंबर का ठरकी इंसान है।

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