Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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rajan
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Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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कड़ी_57

दूसरी तरफ घर पर सुखजीत को जगरूप का फोन आ जाता है। और जगरूप सुखजीत को बताती है की आज उसने क्लब के लिए मीटिंग रखी है।

सुखजीत नहा धोकर तैयार हो जाती है। एकदम कमाल की खूबसूरत औरत अपने कमाल के हश्न को टाइट सूट में फँसाकर, अपनी चूचियों को खड़ी कर लेती है। टाइट कमीज का पल्ला भी उसके चूतरों से उठ रहा होता है। साइड में से उसके मोटे-मोटे चूतड़ पटियाला शाही सलवार में आग लगा रहे होते हैं। जो भी उसे देखता है, वो उसका दीवाना बन जाता है। सुखजीत एकदम कमाल का पटोला बनकर जगरूप की तरफ अपनी कार में बैठकर निकल जाती है।

उधर बाकी सारी औरतें पहले से बैठी होती हैं, जो क्लब की मेंबर होती हैं। सुखजीत बारी-बारी से सबको मिलती है, और वो बताती है की बैंक का लगभग हो ही गया है। ये सुनकर सब औरतें खुश हो जाती हैं। कालोनी में अब होने वाले फंक्सन की तैयारियां शुरू होती हैं, क्योंकी फंक्सन में एम.एल.ए. रंधावा साहब को आना था।

रंधावा साहब जगरूप के मोहल्ले के लीडर होते हैं। जगरूप का पति रंधावा को काफी अच्छे से जानता था। इसलिए वो फंक्सन में चीफ गेस्ट की तरह आने वाले थे, और उनकी तरफ से सुखजीत के क्लब को थोड़ी डोनेशन भी मिलने वाली थी।

सुखजीत सब के साथ चेयर पर बैठी होती है और बैठे-बैठे सबसे बोलती है- "देखो नागरिको बहनजी, रंधावा साहब से डोनेशन भी आनी चाहिए, वर्ना इस फंक्सन का कोई फायदा नहीं होने वाला.."

जगरूप- "आप फिकर ना करो बहनजी मैं अपने पति से बात कर लूँगी, वो आगे इस बारे में खुद उनसे बात कर लेंगे। पर जो हम बैंक से लोन ले रहे हैं, वो हमें उससे ज्यादा लेना पड़ेगा, कम से कम 5 लाख रूपए ऊपर.."

सुखजीत- बहनजी 5 लाख की कौन सी बात है।

जगरूप- "देखो बहनजी, हमने सिर्फ फंक्सन ही नहीं उसके साथ-साथ आए हुए लोगों के चाय नाश्ते का भी इंतेजाम करना है। और उसके साथ गरीब लोगों के लिए लँगर भी लगाना है। आप तो ये सब आराम से कर सकती हो। क्योंकी बहनजी आपकी बहुत जान पहचान है."
rajan
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Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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सुखजीत जगरूप की बात सुनकर थोड़ी देर सोचकर बोलती है- “ठीक है बहनजी, मैं कोशिश करूँगी."

फिर सुखजीत बाकी औरतों को कहती है- “सब औरतें अपने-अपने लिंक की हिसाब से ज्यादा से ज्यादा बंदे फंक्सन में लाएं। ताकी हमारे पास ज्यादा से ज्यादा डोनेशन मिल सके..."

इतने में मीटिंग खतम हो जाती है, और सब औरतें अपने-अपने घर चली जाती हैं। सुखजीत के ऊपर अब बैंक का और लोन चुकाने की जानकारी बढ़ गई थी। पर बैंक मैनेजर सुखजीत का आशिक था, और सुखजीत को काफी अच्छे से पता था की गगन को उसने कैसे काबू करना था। सुखजीत अब जगरूप के घर से निकल जाती है, और अपनी कार में बैठकर गगन को फोन करती है।

गगन अपने फोन पर सुखजीत जैसी सेक्सी औरत का नंबर देखकर खुश हो जाता है। वो फोन उठते ही बोल “हाए ओये आज तो इस गबरू की लाटरी लगी है। जो इतनी शोणी कमाल के पटोले ने इस जाट को खुद फोन कर लिया है..."

गगन की बातें तो पहले से ही सुखजीत के सीधे दिल पर जाकर लगती थी। आज भी उसके मुँह से ये बात सुनकर खुश हो जाती है, और हँसते हए बोली- “लाटरी तो आपकी उस दिन लग गई थी, जिस दिन मैं आपके कार के बोनट पर मैं आपके नीचे लेट गई थी...”

सुखजीत की ये बात सुनकर गगन का लण्ड खड़ा हो गया, और वो अपना लण्ड मसलने लगा और फिर वो बोला- "आए हाए अगर ऐसी लाटरी मेरी रोज लगे, तो मजा ही आ जाएगा..."

सुखजीत हँसते हुए बोली- “हाए आए आप बस मेरा एक छोटा सा काम कर दो, इस लाटरी की टिकेट भी मैं ही दूँगी..”

गगन- आए हाए बोलो मेरे हुजूर क्या काम है?

सुखजीत- जो अभी हम बैंक से लोन लेने वाले हैं, उस रकम के इलावा 5 लाख का एक और लोन मुझे चाहिए..."

गगन- ये कैसे हो सकता है भला? कोई सेक्योरिटी है?

सुखजीत- मेरी जान को रख लो सेक्योरिटी आप।

गगन- “हाए तू तो मेरी जान है मेरी जान। तेरा काम हो जाएगा, मैं एक और लोन पास कर दूंगा। बस तू मुझे ये बता तू.."

सुखजीत- मेरा काम कल आपने कर तो लिया था पार्किंग में।

गगन- ले वो भी कोई काम था, सब कुछ ऊपर-ऊपर से ही किया था उस दिन तो।

सुखजीत- अच्छा फिर तुझे और क्या चाहिए?

गगन- मैं वो ही चाहता हूँ, जो तू अपने मोटे-मोटे चूतरों के बीच में लेकर घूमती फिरती है।

गगन के मुँह से ये सुनकर सुखजीत गरम हो जाती है। क्योंकी गगन सुखजीत की चूत के बारे में बात कर रहा था। जिसे सुनते ही उसकी चूत में आग सी लगाने लगती है।

सुखजीत- तू पहले मेरा काम कर, फिर हम दूसरे काम के बारे में सोचते हैं समझा।

गगन- तेरा पहला काम तो एक मिनट में हो जाएगा। बस तू अब दूसरे काम के लिए तैयार रह समझी।

सुखजीत- ठीक है अब मैं फोन रखती हूँ।
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गगन का लण्ड पूरा खड़ा हो चुका था। गगन अब किसी भी कीमत पर सुखजीत की जवानी को जमकर खाने के लिए पागल हो चुका था। हालत ही ऐसी थी, की गगन सुखजीत को चोदने के लिए अब कुछ भी बिना सोचे समझे करने को तैयार था। ये बात सुखजीत को पहली मीटिंग में ही पता चल गई थी। इसलिए अब वो गगन का जमकर पूरा फायदा उठाना चाहती थी। क्योंकी अब उसको गैर मर्दो से चुदने का शौक तो लग ही गया था। इसलिए अब गगन से चुदने में उसे कोई दिक्कत नहीं थी।

दूसरी तरफ रीत स्कूल में बैठी ये सोच रही थी, की ये उसके साथ क्या हो गया है? एक तरफ तो वो मलिक को अपनी जान से ज्यादा सच्चा प्यार करती है। पर दूसरी तरफ आज उसने रिंकू के साथ डेट पर जाने के लिए हाँ कर दी थी। पर ये सब वो मजबूरी में कर रही थी। क्योंकी उसके पास अब कोई और रास्ता ही नहीं था। इसलिए वो चुपचाप उसके साथ जाने को तैयार हो गई थी। अब उसने ये सोचा की अब वो रिंकू के साथ डेट पर तो जाएगी ही, पर इस बात का किसी को पता नहीं लगने देगी।

इतने में स्कूल की बेल बज जाती है, और रीत अपनी अक्टिवा उठाकर सीधा घर की ओर निकल जाती है।
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rajan
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Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

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कड़ी_58
घर पर जाकर रीत वही सब सोच रही होती है जिसकी वजह से वो परेशान हो रही होती है। बैठी सोच रही होती है की अब उसके साथ ये क्या हो रहा है। तभी रिंकू का फोन आ जाता है और उसे ना चाहते हुए भी मजबूरी में फोन उठाना पड़ता है और वो फोन उठा लेती है।

रीत- हेलो।

रिंकू- हाँ जी क्या हाल है मेरी मेडम के?

रीत- ठीक हूँ। पर तू मेरे पीछे क्यों पड़ा हुआ है?

रिंकू- बस क्या कहूँ।

रीत- देख रिंकू मैं तेरे साथ डेट पर नहीं जाना चाहती हूँ पर तू किसी को सब ना बता दे इसलिये जा रही हूँ।

रिंकू- तू कल बस मिल ले। चल ले मेरे साथ।

रीत- हाँ ठीक है। मैं कल मिल लूँगी, पर तू ये बात हमेशा के लिए याद रख ले की मेरा पहला और आखिरी प्यार मलिक है। और मेरी एक शर्त भी है।

रिंकू- क्या शर्त है?

रीत- मैं बस तेरे से कल पहली और आखिरी बार मिलूंगी और उसके बाद कभी नहीं मिलूंगी क्योंकी मैं तुझसे मजबूरी में मिल रही हूँ और मैं बस यही चाहती हूँ की तू बस भैया को कुछ ना बता दे।

रिंकू- ठीक है। पर तू मिल तो सही और रही बात तुझे डेट पर ले जाने की तो उसके लिए ही मैंने तेरे भाई के साथ दोस्ती करी थी ताकी तुझे देख पाऊँ। और अगर तू ना मिली तो मैं सब कुछ सोनू को बताऊँगा।

रीत- चल ठीक है। कल मिलूंगी पर मेरी शर्त भी याद रख।

रिंकू- “हाँ हाँ याद है...” और फिर वो फोन कट कर देता है। और बाद वो मूछों को ताव देते हुए कहता है- “ऐसे कैसे आखिरी बार होगा, अभी तो शुरुवात हुई है."

दूसरी तरफ सुखजीत गगन साथ बहुत सी सेक्सी बातें करती है जिससे की उसका निपल खड़ा हो जाता है। और फिर ऐसे ही उसकी चूत भी सलवार में से गीली हो जाती है और उसे लण्ड की तड़प होने लगती है। तभी शाम का मौसम और टाइम देखकर उसको ख्याल आता है की वो पार्क में चली जाए और फिर वो पार्क के लिए घर से निकलती है और उधर शीला को भी कह देती है।

अब जैसे ही वो बाहर आती है तो सामने प्यारेलाल अपने घर के बाहर खड़ी कार में से निकल रहा होता है और सुखजीत को देखकर बहुत ही अच्छी वाली स्माइल पास करता है।

प्यारेलाल- कहां चले हो?

सुखजीत भी उसको सेक्सी स्माइल देते हुए कहती है- “बस पार्क में जा रहे हैं, बहुत टाइम हो गया कसरत किये को तो सोचा जाकर कर ही लूं..”

प्यारेलाल- “हाँ हाँ सही है...” प्यारेलाल भी ये मोका ऐसे कैसे गवांने देता तो बोल दिया- “तुम चलो मैं भी आ रहा

सुखजीत- “हाँ हाँ आ जाओ। मैं तो कब से तैयार खड़ी हूँ। ढीले तो आप पड़ते हो..” और अपनी गाण्ड को मटकाती हई पार्क की ओर चल पड़ती है।

प्यारेलाल उसकी हिलती मस्त गाण्ड को देखकर पागल हो जाता है और फिर अपने लण्ड को हाथ में लेकर मसलने लगता है, और खुद से ही कहता है- “आज तो कसरत करनी ही पड़ेगी."

अब सुखजीत पार्क पहुँच जाती है और वहां पर वो ट्रैक पर आकर अपनी वाक कर रही होती है। उसने अब तक एक चक्कर लगा लिया होता है की तभी उसे प्यारेलाल आता हुआ दिखाई देता है। सुखजीत उसकी आँखों को देखकर खुश हो जाती है। क्योंकी उसकी आँखों में भी सुखजीत की तलाश होती है।

प्यारेलाल उसको देखता है और वो दिख ही जाती है, और फिर उस तक पहुँचने के लिए तेज-तेज चलता है और उस तक पहुँच ही जाता है। सर्दिया आने की वजह से अब अंधेरा भी जल्दी पड़ जाता है और अब दोनों वाक कर रहे होते हैं। सुखजीत तेज-तेज चल रही होती है, जिससे की उसकी गाण्ड बहुत ही ज्यादा हिल रही होती है, और ये देखकर प्यारेलाल का मूड खराब हो रहा हो जाता है।
rajan
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प्यारेलाल- “भाभी आप जरा प्यार से चला करो..."

सुखजीत- क्यों, आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

प्यारेलाल- भाभी आप अपनी गाण्ड को इतनी तेज मटका-मटकाकर चलती हो की पीछे अगर लड़के देखें तो उनका दिमाग खराब हो जाए।

सुखजीत प्यारेलाल की बात सुनकर कहती है- "इसी की वजह से तो वाक करने आती हूँ ताकी ये कम हो जाए..."

प्यारेलाल- इसका ये इलाज नहीं है।

सुखजीत- तो क्या इलाज है?

प्यारेलाल अब उसकी सलवार पर हाथ रखते हुए उसकी सलवार में से ही उंगली अंदर को डाल देता है। उसके ऐसे करने से वो पागल हो जाती है। और उसके मुँह से आह्ह... निकल जाती है।

अब प्यारेलाल उससे कहता है- “ये तो कसरत करने से होगा..."

सुखजीत- अच्छा तो वो कसरत कर लो। पर वहीं जहां पहले की थी।

सुखजीत और प्यारेलाल वहीं पीछे की ओर चले जाते हैं। वहां पर हर जगह खेत ही खेत होते हैं, और बड़े-बड़े पेड़ होते हैं। प्यारेलाल सुखजीत को पेड़ पर सटाकर उसके होंठों में अपने होंठ डाल देता है। उधर दूसरी तरफ अपना एक हाथ लाकर उसकी चूचियों पर रखकर उसकी चूचियों को दबाना शुरू कर देता है।

उधर सुखजीत भी पेड़ से चिपकी हुई उसकी चूचियों के दबाने का मजा लेती है और उसके साथ होंठों को चुसवाती है। होंठों को चूसते हुए साथ में प्यारेलाल उसकी सलवार का नाड़ा खोल देता है जिससे की वो अब पागल हो जाती है और तभी होंठों को निकालते हुए कहती है।

सुखजीत- “प्यारेलाल, मुझे यहां डर सा लग रहा है...” दो दिन की प्यासी सुखजीत भी लण्ड लेने को बेताब थी और वो पेड़ से चिपकी हुई थी।

तभी प्यारेलाल कहता है- “भाभी तू यहां डर मत, क्योंकी यहां कोई नहीं आता है..."

इतने में अब सलवार का नाड़ा ढीला हो जाता है और फिर सलवार नीचे को गिर जाती है। प्यारेलाल उसके होंठों को चूसता रहता है और ऐसे ही फिर बाद में वो सुखजीत की पैंटी में हाथ दे देता है और उसकी चूत में उंगली डाल देता है। सुखजीत उसके ऐसे करने पर पागल हो जाती है और पागलों की तरह चुदवाने लगती है।

प्यारेलाल उसकी चूत में उंगली पेककर जोर-जोर से ऊपर नीचे करता है और थोड़ी देर करने के बाद अब उंगली को निकाल देता है। अब वो लण्ड को बाहर निकालता है और त के हाथों में देकर कहता है- “ले भाभी इसे चूस..."
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