Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

कड़ी_65

अगली सुबह हो जाती है, रीत आज बहुत खुश होती है। क्योंकी अब वो ज्योति से अपना इंतेकाम लेने के लिए तैयार खड़ी थी। उसने ऐसा जाल बनाया होता है, की जिसमें ज्योति रीत की पक्की सहेली भी बनी रहेगी और वो उससे बदला भी ले लेगी।

खुशी-खुशी रीत स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाती है। रोज की तरह स्कूल की कसी हुई ड्रेस सलवार कमीज में अपनी चूचियां खड़ी करके, और पीछे से अपनी बड़ी-बड़ी गोल-गोल गाण्ड बाहर निकालकर तैयार हो जाती है।

इतने में रीत के पास ज्योति का फोन आ जाता है, की आज वो स्कूल में नहीं आ रही है। ज्योति के फोन से अब रीत को यकीन हो जाता है, की आज वो पक्का मलिक के साथ स्कूल बंक करने जा रही है। रीत ज्योति का फोन कट करने के बाद सीधा हरी को फोन करती है।

रीत- हेलो।

हरी- कैसी है मेरी पटोला, और फिर तैयारी है आज की?

रीत खुश होती हुई बोली- “हाँ जी तैयारी ही तैयारी है, बस एक बार मिलो तो सही..."

हरी- हाँ जी आज तो कसकर मिलता हूँ तुझे मैं।

रीत- जितना मर्जी कस लेना, पर पहले 9:30 बजे मिलो माल की पार्किंग में, मैं वहीं पर इंतेजार करूँगी।

हरी- हाए मुझे लगता है, की आज तो तू असली नजारा देने वाली है।

रीत- “तू एक बार आ तो सही, फिर नजारे ही नजारे हैं...” कहकर वो फोन कट कर देती है।

पर रीत को ही ये पता था, की आज वो हरी को कौन से नजारे देने वाली है। रीत नाश्ता करके अपनी अक्टिवा निकाल लेती है। रीत 8:00 बजे घर से निकल जाती है, पर रास्ते में ट्रैफिक होने की वजह से उसे एक घंटा माल तक पहुँचने में लगता है।

रीत पूरे 9:00 बजे माल में आ जाती है। फिर वो माल की पार्किंग में अपनी अक्टिवा एक साइड में लगाकर एक कार के पीछे खड़ी हो जाती है। पार्किंग बेसमेंट में होने के कारण वहां अंधेरा होता है, और वहां कोई होता भी नहीं है। 15 मिनट बाद मलिक अपनी कार लेकर वहां आता है। मलिक कार से बाहर निकालकर अपनी कार के बोनट पर बैठकर ज्योति का इंतेजार करने लगता है।

कुछ ही देर में ज्योति स्कूल आई, ड्रेस और मिनी स्कर्ट और टाइट शर्ट डालकर आ जाती है। रीत कार के पीछे छुपकर सब कुछ देख रही होती है। ज्योति आते ही मलिक को कसकर अपनी बाहों में भर लेती है। मलिक उसके होंठों को होंठों डालकर उसे कार के बोनट पर बिठा देता है। फिर वो अपना एक हाथ उसकी स्कर्ट में डालकर उसके चूतरों को मसलता हुआ उसके होंठों को चूसने लगता है।

रीत को ये देखकर बहुत गुस्सा आ रहा था, और वो हरी को मेसेज करती है की वो कहाँ रह गया है?

हरी का रिप्लाइ आता है- “जी बस एक मिनट में पहुँच गया...”

इतने में मलिक ज्योति की शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल देता है, और एक हाथ शर्ट में डालकर ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को मसलता है। इतने में ज्योति मलिक के होंठों में से अपने होंठ निकालकर बोली।

ज्योति- “जान, कार के अंदर कर ले ये सब, बाहर किसी ने देख लिया तो?"

रीत ये सुनकर अपने मन में बोली- "तुझे तो अब तारे दिखेंगे बहन की लौड़ी, साली कुत्ती यारमारी करती है। वो भी रीत के साथ। अब देख रीत तेरा क्या हश्र करती है?"

मलिक ज्योति की बात मान लेता है और दोनों कार में चले जाते हैं। कार में जाने के कारण अब रीत को वो दोनों नजर आने बंद हो जाते हैं। इतने में हरी आ जाता है बलेट पर। वो अपना बलेट साइड में लगाकर आगे आता है। तभी उसकी नजर कार पर पड़ती है। पर उसको ये पता नहीं होता की कार में ज्योति होती है। हरी को समझ में आ जाता है, की सुबह-सुबह कार में ठुकाई चल रही है।

ज्योति जैसे ही मलिक का लण्ड अपनी चूत में लेने के लिये ऊपर होती है, तभी उसकी शकल हरी को दिख जाती है, और ये देखते ही हरी का पारा एकदम ऊपर चढ़ जाता है। उसके सिर पर खून सवार हो जाता है। हरी बहुत ही गुस्से वाला लड़का होता है। स्कूल में उसकी लड़ाइयों के बड़े-बड़े कारनामे उसके नाम है। हरी गुस्से में आगे जाता है, और वो कार का दरवाजा खोलकर मलिक के लण्ड पर बैठी ज्योति की बाजू पकड़कर उसे बाहर खींच लेता है। ज्योति उस टाइम सिर्फ ब्रा और स्कर्ट में होती है, उसने नीचे पैंटी भी नहीं डाली हुई थी।

ज्योति हरी को अपनी आँखों के सामने देखकर हक्की-बक्की रह जाती है और वो काँपती हुई आवाज में बोली।

ज्योति- हाँ हाँ... हरी तू यहां क्या कर रहा है?

हरी एक जोरदार थप्पड़ ज्योति के मुँह पर रखता है, और ज्योति सीधी कार के शीशे पर जाकर गिरती है। हरी
का इतना गुस्सा देखकर मलिक की गाण्ड फट जाती है। और वो डरपोको की तरह कार में बैठा रहता है। रीत ये सब अपने चेहरे पर मुश्कान लाकर देख रही होती है।

ज्योति थोड़ा होश में आकर रोते हुए हरी से बोली- “हरी मुझे माफ कर दे, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है..."

हरी गुस्से में लाल हो गया था और वो बोला- “साली गश्ती दूर हो जा मेरी नजरों से, वर्ना तुझे आज मैं जान से मार दूंगा...”

हरी मलिक की तरफ देखता है और बोला- “ओई माँ के लौड़े, ले जा यहाँ से अपनी इस गश्ती को, वर्ना यहीं पर तुझे इसके साथ जिंदा गाड़ दूंगा मैं..."

ज्योति झट से समझ जाती है, की अब उसके लिए यहाँ से निकलना ही ठीक रहेगा। वो मलिक की कार में बैठकर अपने कपड़े डालकर वहां से निकल जाती है।

इतने में रीत मोका देखकर पार्किंग वाले गेट की तरफ से अंदर आती है। जिससे ऐसा लगे की वो बाहर से अभी
अभी आई है, और उसने कुछ नहीं देखा। रीत आकर अंजान बनते हुए बोली- “लो जी मैं आ गई अब.."

हरी गुस्से में कुछ भी नहीं बोलता।

रीत- क्या हुआ हरी तू इतने गुस्से में क्यों है?

हरी रीत को सारी बात बता देता है, जो की रीत को पहले से ही पता थी।

रीत भी नाटक करते हुए बोलती है- “ये अच्छा नहीं किया ज्योति ने तेरे साथ.."

हरी रीत की बात से सहमत होता है।

रीत हरी का मूड ठीक करते हुए बोली- “हरी फिर उस प्रोग्राम का क्या होगा जो हमने बनाया है?"

हरी रीत के सेक्सी जिश्म को नीचे से ऊपर तक देखकर, रीत को कसकर अपनी बाहों में भरकर बोला- “प्रोग्राम
तो वो ही रहगा मेरी जान...”

रीत नीचे से अपने हाथ में हरी का लण्ड पकड़कर बोली- “कहीं ज्योति के चक्कर में मूड तो खराब तो नहीं?”

हरी रीत के होंठों में होंठ डालता है और उसके चूतरों को हाथ में मसलते हुए बोला- “उस साली गश्ती के लिए मैं अपना मूड खराब क्यों करूँ?"

रीत- हाए चल फिर चलते हैं, मूवी देखने के लिए।

हरी- मेरा दिल तो तेरी फिल्म देखने का कर रहा है।

रीत हरी का लण्ड पकड़कर मसल देती है और फिर उससे अलग होकर बोली- "मेरी फिल्म भी अंदर ही देख लियो मूवी हाल में..”

हरी ये सुनकर खुश हो जाता है, और फिर वो दोनों मूवी देखने चले जाते हैं। माल में हरी रीत को काफी अच्छे
से मसलता है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

दूसरी तरफ, सुखजीत ने आज रंधावा को मिलना होता है। सुखजीत को पता था, की वो सुंदर पुंजबान औरतों का शौकीन होता है। सुखजीत आज आरेंज कलर का टाइट सूट डाल लेती है। पीछे बालों की पोनी कर लेती है। पोनी के साथ पीछे निकली बड़ी सी गाण्ड ने उसकी कमीज का पल्ला उठाया हआ था। और
था। और साइड में उसके मोटे-मोटे चूतड़ सलवार फाड़कर बाहर आ रहे थे। ऊपर उसके टाइट सूट में फँसी हुई चूचियां पूरी बाहर निकल रही थीं। सूट के गले में से उसकी दोनों चूचियों के बीच की लाइन दिख रही थी। सुखजीत अपने गालों पर हल्की सी लाली लगाकर कार में बैठकर रंधावा के पास जाने के लिए निकल जाती है।

सुखजीत रंधावा के आफिस में जाती है। रंधावा आफिस में रखे सोफे पर बैठा होता है। उसके सामने भी एक सोफा रखा हुआ था। रंधावा बैठा कुछ लिख रहा था। जैसे ही उसकी नजर आती सुखजीत पर पड़ती है। तो वो सुखजीत को देखता ही रह जाता है।

सुखजीत रंधावा को देखकर स्माइल करते हुए बोली- “सत श्री अकाल जी..”

रंधावा- सत श्री अकाल जी आप खड़े क्यों हो, प्लीज़्ज़... बैठिए ना।

सुखजीत आकर सामने वाले सोफे पर एक टांग दूसरी टांग के ऊपर रखकर बैठ जाती है। इससे सुखजीत के बड़े बड़े मोटे चूतड़ साफ-साफ दिखने लगते हैं।

रंधावा सुखजीत की चूचियों के बीच की लाइन और सुखजीत के मोटे चूतड़ों को देखकर बोला- “क्या हाल है बहनजी? बोलों क्या सेवा कर सकती है हम आपकी?

सुखजीत भी पूरी चालू थी, उसको पता था की रंधावा क्या चीज है? और उसे ये भी पता था की रंधावा की नजर कहां है? और अब सीधी उंगली से घी नहीं निकालने वाला। इसलिए स्माइल करते हुए बोली- “वो भाईजी मैंने आपको फोन पर बताया था, की मेरे पति के साथ धोखा हो गया है...”

रंधावा डबल मीनिंग में बोला- “कोई बात नहीं जी, जब आप जैसी संदर खूबसूरत पंजाबी मुतियार किसी के पास किसी काम से आए, तो भला वो बंदा आपका काम ना करे ये तो कभी हो ही नहीं सकता..."

सुखजीत समझ जाती है की और शर्माकर नजरें नीचे कर लेती है।

रंधावा फोन निकालकर एक फोन मिलाता है और किसी से बात करता है। बात करते हुए उसकी नजरें सुखजीत
की बड़ी-बड़ी चूचियों पर थी। फिर रंधावा फोन कट करके बोला- "बहनजी आपका काम हो जाएगा...”

सुखजीत खुश होकर बोली- “बहुत-बहुत धनवाद भाईजी आपका...”

रंधावा मूछों को ताव देते हुए बोला- “बहनजी, अब कुछ मिलेगा इस दास को?"

सुखजीत समझ जाती है, पर अब उसके पास कोई और चारा भी नहीं था। उसने अपने पति की नौकरी भी बचानी थी। सुखजीत ने कहा- “बोलो क्या चाहिये भाईजी?"

रंधावा- बहनजी हम तो समाज सेवक है, हमको सिर्फ सेवा का मोका चाहिये बस।

सुखजीत- मैं कुछ समझ नहीं भाईजी।

इतने में रंधावा सुखजीत को खींचकर अपनी गोद में बिठा लेता है, और वो सुखजीत के चूतड़ों को मसलते हुए बोला- “सारा कुछ समझा दूंगा मैं बहनजी...”

सुखजीत रंधावा की गोद में मचलते हुए बोली- “आहह... भाईजी आप ये क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे प्लीज़्ज़... कोई भी आ सकता है...”

रंधावा- “कोई नहीं आता बहनजी, मैं तो आपकी सेवा उसी दिन कर देता। जिस दिन आपने मुझे उदघाटन में बुलाया था...”

सुखजीत को अपने चूतरों पर रंधावा का खड़ा लण्ड महसूस होता है और फिर सुखजीत बोलती है- “आहह.. भाईजी मुझे भी उसी टाइम पता चल गया था, की आप जरूर कुछ करने की फिरत में हो मेरे साथ..."

रंधावा सुखजीत की मोटी-मोटी चूचियों को कमीज के ऊपर से ही मसलते हुए बोला- “करने को तो मैं बहुत कुछ
सोच रहा था..."

सुखजीत पहले अपना काम करवाना चाहती है, और बाद में सबका काम करवाने वाली बंदी थी। इसलिए वो रंधावा की बात पर जोर डालती हुई बोली- "भाईजी, आप पहले मेरा काम करो बाद ये सब करना..."

रंधावा सुखजीत के होंठों पर किस करके बोला- “काम तो हो गया समझा बस तू तैयार रहना बहनजी। तेरी सेवा
तो मैं पूरे जोश से करूँगा..”

सुखजीत अपने चूतर हिलाकर रंधावा के लण्ड को मसलकर उसके छाती से अपनी चूचियां लगाकर बोली- आहह.. आss हाए भाईजी, अगर आप उनकी प्रमोशन करा दो, तो ये जट्टी पूरी एक रात के लिए आपकी सेवा लेने को तैयार है..."

ये सुनकर रंधावा की आँखें चमक जाती हैं, और फिर रंधावा सुखजीत के जिश्म पर हाथ फेरते हुए एक किस करके बोला- “अगर एक पूरी रात की बात है तो कल ही हो जाएगा प्रमोशन भी.”

सुखजीत ये सुनकर खुश हो जाती है और एक किस रंधावा को करके बोली- “ठीक है भाईजी, फिर मुझे इंतेजार रहेगा उनकी प्रमोशन का..” कहकर सुखजीत उठकर जाने लगती है।

तभी रंधावा जाते-जाते सुखजीत के चूतरों पर थप्पड़ मारता है।

सुखजीत नखरे से उसे देखती है और कहती है- “आहह... आss भाईजी आप भी ना बस..” ये सुनकर रंधावा अपनी मूछों को ताव देकर मुश्कुराने लगता है, और सुखजीत वहां से अपने घर चली जाती है।

* * * * * * * * * *
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

कड़ी_66

सुखजीत घर चली जाती है, रीत भी अब तक घर आ चुकी थी। आज दोनों माँ बेटी का दिन बहुत ही गरमी से भरा हुआ गया था। रीत को मूवी में हरी ने बहुत रगड़ा था, और सुखजीत को एम.एल.ए. ने बहुत रगड़ा था।
सुखजीत अपने रूम में जाती है, जहाँ हरपाल पूरी टेन्शन में लंबा लेटा हुआ था। सुखजीत हरपाल को एक झूठी कहानी बताती है, की वो एक क्लब की औरत की सिफारिश से इस मामले को ठीक करवा रही है। पर असल में सुखजीत अपनी जवानी का सौदा रंधावा के साथ करके ये सब ठीक कर रही थी।
हरपाल ये सुनकर थोड़ा शांत हो जाता है।
रंधावा की चूसा चुसाई के बाद सुखजीत आग से भरी हुई थी। अब उसे लण्ड की प्यास सबसे ज्यादा लग रही
थी, इसलिए सुखजीत हरपाल को थोड़ा शांत देखकर, उससे अपनी जवानी आग बुझाने की सोचती है। सुखजीत हरपाल के चूतड़ों पर अपने चूतड़ रखकर बैठ जाती है, और हरपाल के गले में अपनी बाहें डालकर वो अपने होंठ उसके होंठ से जोड़ दी और उसके होंठों को चूसने लगी।
हरपाल टेन्शन में होता है, इसलिए वो एक बार तो कोई जवाब नहीं देता। पर जब वो सुखजीत की गर्मी देखता है, तो अगले ही पल उसका हाथ सुखजीत की कमर पर चला जाता है, और अपना दूसरा हाथ सुखजीत के चूतड़ों पर फेरते हुए वो सुखजीत के होंठों को चूसने लगता है।
सुखजीत को पता चल गया, की अब उसका सरदार एकदम तैयार हो गया है। इसलिए सुखजीत अपनी कमीज उतार देती है, और वो अपनी सलवार का नाड़ा खींचकर सलवार को भी उतार देती है। अब सुखजीत बेड पर लंबी लेट जाती है, सुखजीत को इस हालत में देखकर हरपाल भी अपने कपड़े उतार देता है, सुखजीत के ऊपर चढ़ जाता है, और सुखजीत को चूमने लगता है।
सुखजीत बेगाने हाथों में इतनी ज्यादा चल चुकी थी की अब उसे अपने पति के नीचे लेटकर जरा सा भी मजा नहीं आ रहा था। पर इस टाइम उसकी मजबूरी थी, क्योंकी इस टाइम वो बहुत ज्यादा गरम हो चुकी थी। और लगी हुई आग बुझाने के लिए पानी की एक बूंद की बहुत ज्यादा जरूरत होती है।
हरपाल सुखजीत को पूरा अच्छे से किस करता है, और सुखजीत हरपाल को अपनी बाहों और टांगों से उससे एकदम लिपट जाती है। सुखजीत हरपाल के खड़े लण्ड के ऊपर अपनी चूत रखकर उसे दबा देती है।
हरपाल अपनी वाइफ की इतनी ज्यादा गरमी जो बस से बाहर हो रही थी, देखकर बोला- "हाए भागवान कमरे का दरवाजा तो बंद कर ले...”
सुखजीत मदहोशी में बोली- “कोई नहीं आता, आप तो काम करो। रीत अपने रूम में है, और सोनू बाहर है..."
हरपाल ये सुनकर अपना लण्ड पाजामे से बाहर निकलता है, और सुखजीत अपनी पैंट और ब्रा उतारकर साइड में फेंक देती है। फिर वो आपनी टाँगें खोल देती है। हरपाल उसकी दोनों टांगों के बीच में आ जाता है।

सुखजीत की चूत में से पानी निकल रहा था। हरपाल अपना लण्ड उसकी चूत पर लगता है, और एक धक्का मारता है। सुखजीत की चूत पहले से ही पानी से भीगी होती है, इसलिए उसका लण्ड एकदम फिसलता हुआ अंदर उतर जाता है।
सुखजीत को अब लंबे-लंबे लण्ड की आदत पड़ चुकी थी, जो सीधा उसकी बच्चेदानी तक जाकर लगते थे| पर हरपाल का वहां तक कभी नहीं जाता था। पर इस टाइम लण्ड की प्यासी सुखजीत इस छोटे लण्ड से भी काम चलाने को तैयार थी। वो अपने पति हरपाल को अपनी बाहों में भरकर नीचे से अपनी गाण्ड उठाकर जोर-जोर से लण्ड अपनी चूत में अंदर-बाहर करवा रही थी।
सुखजीत अपना एक हाथ अपनी चूत पर ले गई और अपने दाने को अपनी उंगलियों से मसलने लगी। क्योंकी सुखजीत को पता था, की हरपाल बहुत जल्दी ही फ्री हो जाएगा। इसलिए ऐसा करने से सुखजीत का पानी निकल गया, और 10 मिनट बाद हरपाल के लण्ड ने अपना सारा पानी सुखजीत की चूत में निकाल दिया। हरपाल जोर-जोर से सांसें लेता हुआ, बेड पर लेट गया। सुखजीत पहले से ही अपना काम कर चुकी थी, इसलिए
अब उसकी गरमी काफी २
दूसरी तरफ सोनू रिंकू के साथ कालेज गया था। आज बहुत दिनों बाद कालेज में उन्हें दीप नजर आता है।
सोनू- "और भाई दीप कहाँ रहता है आजकल? यार ना तू कालेज में आता है, और ना ही हमारा फोन पिक करता है?"
दीप- “ओहह... यार अगले हफ्ते मेरी बहन की शादी है। बस उसकी ही तैयारी में लगे हुए हैं सब..."
रिंकू- “अच्छा तो हमें बताया तक नहीं कुछ भी। हम क्या खराब लगते है तेरे साथ तैयारी करवाते हुए?”
दीप- “हाहाहाहा... ओहह... नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है। अच्छा चलो अब घर चलते हैं, पेग शेग लगाते हैं..."
रिंकू और सोनू दोनों दीप के साथ उसके घर की ओर निकल जाते हैं। दीप के घर उसके मम्मी डैडी और उसका एक बड़ा भाई और भाभी और एक बहन होती हैं। जिसकी शादी अगले हफ्ते होने वाली है। सोन और रिंकू दोनों दीप के घर जाते हैं, घर में सारे शादी के तैयारियों में लगे हुए थे। और वो दोनों दीप के मम्मी डैडी को मिलते हैं, और बहन की शादी की बधाईयां देते हैं।
दीप पीछे से बोला- "रुको यार, अभी पेग शेग लगाते हैं ऊपर छत पर बैठकर..." फिर वो दोनों बाहर आँगन में बैठ जाते हैं।
इतने में दीप की मम्मी ऊँची आवाज में बोली- “आई कंवल्ल..."
एक दबी हुई आवाज ऊपर वाले रूम से आती है- “आई मम्मीजी.."
rajan
Expert Member
Posts: 3286
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

तभी सोनू की नजर एक शोणी सुंदर मुतियार पर पड़ती है, जो बिना चुन्नी के सीढ़ियां उतर रही होती है। जिससे उसकी मोटी-मोटी चूचियां ऊपर-नीचे बहुत ही मस्त तरीके से हिल रही थीं, और उसके दोनों चूतर आपस में टकरा रहे थे।
वो सुंदर मुतियार और कोई नहीं दीप की भाभी होती है। जिसका नाम कंवल होता है। दीप का भाई देल्ही में जाब करता है। और वो एक हफ्ते में एक बार ही घर आता है। वैसे कंवल बहुत ही चालू औरत होती है। उसके मोहाले में उसकी पूरी चर्चा होती है। पर अभी तक वो अपने पति के सिवा और किसी के नीचे नहीं लेटी थी। कंवल सीढ़ियों से नीचे आती है, और अपनी तिरछी नजरों से सोनू को अपनी तरफ देखते हुए देखती है और वो आगे निकल जाती है। सोनू भी उसको जाते हुए उसके चूतरों को देखकर मस्त हो रहा था।
इतने में रिंकू बोलता है- “हाई ओई रब्बा... इतना खतरनाक माल दीप के घर हो सकता है, ऐसा तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था..."
सोनू ये सुनते ही अपनी एक टांग दूसरी टांग पर रख लेता है, क्योंकी उसका लण्ड अब खड़ा हो चुका था। सोनू ने कहा- “सही कहा भाई, पर ये माल है कौन?"
रिंकू- दीप की भाभी है ये, इस साली की चारों तरफ बहुत चर्चा है.."
सोनू- “चर्चा तो होनी ही है, भाई चीज भी देख ना कितनी मस्त है। साली की चूचियां देखी तूने कैसे जोर-जोर से उछाल-उछालकर चलती है..."
इतने में दीप आ जाता है, और फिर वो तीनों छत पर जाकर शराब पीने लगते हैं। ऊपर छत पर एक तार बँधी होती है, जिस पर कपड़े सूखे हुए होते हैं। उन कपड़ों में 3-4 पैंटी टंगी होती है। जिसमें से दो बहुत सेक्सी होती हैं, और एक बहुत पुरानी होती है। सोनू देखते ही पहचान जाता है, की दोनों सेक्सी वाली पैंटी दीप की बहन और भाभी की हैं, और पुरानी वाली पैंटी उसकी माँ की होगी।
इतने में दीप बोला- “ओये कहां खो गया?"
सोनू को होश आता है, और वो अपना मुँह दूसरी तरफ कर लेता है। फिर तीनों दारू पीने लगते हैं, एक बोतल खतम हो जाती है, और वो तीनों सेट हो जाते हैं।
रिंकू को दारू पीकर रीत की याद आ जाती है, और वो फोन निकालकर उसको व्हाटसप करता है। रीत का रिप्लाइ आ जाता है, और फिर वो दोनों चाटिंग करने लगते हैं।
दीप रिंकू को चैटिंग करते हुए देखता है तो बोलता है- “भाई किससे साथ लगा हुआ है, जो आज फोन में घुसा हुआ है तू...”
सोनू ये सुनकर बोला- “हाँ भाई एक तितली फँसाई हुई है मैंने..."
अब रिंकू क्या बोले, जिस तितली की वो बात कर रहा है। वो और कोई नहीं सोनू की बहन है।

इतने में नीचे से कंवल की आवाज आती है- “ओये दीप ऊपर पड़े कपड़े सूख गये होंगे जरा नीचे पकड़ा मुझे..."
दीप- “ओ भाभी मुझे नहीं पता तू आकर अपने आप ले जा.."
कंवल नखरे के साथ बोली- “कोई काम करके राजी नहीं है ये लड़का...” कहकर कंवल ऊपर आ जाती है।
एक बार फिर से कंवल की मस्त चूचियों और बाहर निकले चूतर सोन की आँखों के आगे आ जाते हैं। कंवल फिर से तिरछी नजरों से सोन को देखती है। पर सोन तो पहले से ही दीप और रिंकू से आँखें बचाकर वो उसको
घूर होता है। कंवल तार से एक-एक कपड़ा उतार रही होती है। फिर जैसे ही वो अपनी पैंटी उतारने लगती है, तभी एकदम से सोनू बोला।
सोनू- “हाए यार सामान बहुत टाइट हो गया है..”
ये सुनकर एक बार कंवल उसकी तरफ देखती है और अगले ही पल मुँह दूसरी तरफ करके हँसने लगती है। सोनू को भी पता चल जाता है की उसकी बात अब बन सकती है।
दीप दारू से पूरा टुन्न हुआ पूछता है- “ओये तू क्या बोले जा रहा है?"
सोनू बात को बदलते हुए बोला- “ओह... यार दारू का नशा अब चढ़ रहा है."
ये सुनकर तीनों हँसने लगते है, और कंवल भी जाते हुए एक बार हँसकर सोनू को देखती है। और अपने चूतर मटकाती हुई नीचे चली जाती है।
दिन निकल जाता है, और अगली सुबह हो जाती है। रीत के +2 के पेपर अब शुरू हो जाते हैं। और अब वो घर
बैठकर तैयारी करने लगती है। अब उसको भी होश आता है, की वो बदला लेने के चक्कर में अपनी स्टडी को पीछे छोड़ चुकी थी। इसलिए अब तैयारियों में जुट जाती है।
सुखजीत भी आज घर ही होती है, दोपहर का टाइम होता है।
हरपाल घर आता है, और आते ही खुशी से सुखजीत को अपनी बाहों में भर लेता है और बोला- "भागवान, मुझे फिर से जाब भी मिल गई, और तो और मेरी प्रमोशन भी हो गई है.."
सुखजीत ये सुनकर खुश हो जाती है, और सोचती है की उसकी मेहनत रंग ले आई है, बोली- “चलो जी ये बहुत अच्छा हुआ, ऊपर वाले ने मेहर करी..” पर ये मेहर रब्ब ने नहीं सुखजीत की जवानी ने करी थी।
रोटी खाने के बाद हरपाल फिर से आफिस चला जाता है।
फिर सुखजीत के फोन पर रंधावा का फोन आता है।

सुखजीत- हेलो।
रंधावा- क्या हाल है सोहनियो?
सुखजीत- हाल तो बहुत खुशहाल है भाईजी।
रंधावा- खुशहाल तो होना ही है, तेरे पति की प्रमोशन जो करवा दी है।
सुखजीत- हाँ जी भाईजी, बहुत-बहुत धनवाद आपका जी।
रंधावा- तेरा धन्यवाद फोन पर नहीं लेना मैंने।
सुखजीत ठरकी आवाज में बोली- “अच्छा तो और कैसे लेना है भाईजी?"
रंधावा- तेरी रात अपने नाम करके लेना है। रात 9:00 बजे तेरे घर के बाहर मेरा ड्राइवर कार लेकर खड़ा होगा। उसके साथ आ जइओ।
सुखजीत- अगर मैं नहीं आई फिर?
रंधावा- अगर नहीं आई तो जैसे प्रमोशन हुआ है। वैसे ही डिमोशन भी हो जाएगा।
सुखजीत- “ओहो मैं तो मजाक कर रही थी। जट्टी ने जुबान दी थी, भाईजी मैं जरूर आऊँगी आज रात को.."
रंधावा- "ठीक है फिर गश्ती सी बनकर आईओ.."
सुखजीत- ठीक है भाईजी।
फिर सुखजीत फोन कट कर देती है। अब बस सुखजीत ये सोचती है, की अब वो घर पर ऐसा क्या कहे की जिससे वो पूरी रात के लिए घर से बाहर रह सके, या वो बिना किसी को बताए चोरी से घर से बाहर निकल
जाए।
*****
*****
* * * * * * * * * *
Post Reply