Adultery Chudasi (चुदासी )

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adeswal
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Re: Adultery Chudasi (चुदासी )

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मैंने पांडु के हाथ से उसका मोबाइल छीन लिया और उसके लगाए हुये फोन को सामने से कोई उठाए उसका इंतेजार करने लगी। दो बार रिंग खतम हो गई लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया, लेकिन तीसरी बार की कोशिश में फोन उठा लिया गया।

कृष्णा- “मैंने कहा ना मैं रात को तेरे घर आ जाऊँगी, अभी तुम मुझे परेशान मत करो...” मैं समझ गई वो कृष्णा ही है।

मैं- “रात को अब तुम्हें पांडु के पास जाने की कोई जरूरत नहीं है...” मैंने कहा।

कृष्णा- “आप, आप कौन?” उसने पूछा।

मैं- “मैं जो भी हैं लेकिन मेरी बात सुनो। अब तुम्हें अपनी मर्जी के बिना पांडु से मिलने की कोई जरूरत नहीं है, मैंने तेरी क्लिप डेलिट कर दी है...” मैंने कहा।

कृष्णा- “आप सच कह रही हैं दीदी? मैं आपको दीदी कह सकती हूँ ना?”

मैं- “हाँ... कह सकती हो और मैं तुमसे झूठ क्यों बोलँ?”

कृष्णा- “थॅंक्स दीदी, हम लोगों का बाथरूम कामन है, उसने उसमें छेद करके मेरी वीडियो बना ली और फिर दीदी सबको दिखाने की धमकी देकर उसने मेरा उपभोग किया...” कृष्णा बोलते हुये भावुक हो गई।

मैं- इसमें तुम्हारी भी गलती कम नहीं है कृष्णा...”

कृष्णा- “मेरी गलती?”


मैं- “हाँ... तुम्हारी। जब उसने तुम्हें पहली बार क्लिप दिखाकर ब्लैकमेल किया तब तुम पोलिस में रिपोर्ट कर देती तो तुम्हारी इज़्ज़त बच जाती...”

कृष्णा- “लेकिन दीदी, मैं डर गई थी."

मैं- “इसी डर के करण तो मर्द हमारा मनमानी उपयोग करते हैं, और हमें क्यों डरना चाहिए? डरना तो उसे चाहिए जिसने हमारी क्लिप बनाई है, उसने गैर कानूनी काम किया है, हमने नहीं...” मैंने कहा।

कृष्णा- “लेकिन दीदी हमें हमारी इज्ज़त का भी खयाल करना पड़ता है ना?”

मैं- “सही बात है तेरी। हमें अपनी इज्ज़त का खयाल जरूर करना चाहिए। लेकिन मेरे खयाल से हमें अपनी बाहरी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी अंदरूनी इज्ज़त को दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। अगर तुम उसी दिन पोलिस में रिपोर्ट कर देती तो आज तुम बेदाग होती...” मैंने कहा।

कृष्णा- “सही बात है, दीदी आपकी..”

मैं- “मर्द हमेशा औरतों की भावुकता और डर का ही गलत उपयोग करता है। कभी भी अपनी मर्जी के बिना किसी की भी गलत इच्छाओं के आधीन हमें नहीं होना चाहिए, ये मैं अपने खुद के अनुभव से कह रही हूँ..”
adeswal
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Re: Adultery Chudasi (चुदासी )

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कृष्णा- “थॅंक्स दीदी... आपने मुझे सही रास्ता दिखा दिया, लेकिन दीदी ये तो बताइए कि आपको मेरी क्लिप के बारे में पता कैसे चला?”

मैं- “मैं वोही हास्पिटल में हैं, जहां ये पांडु काम करता है। मैंने उसे कोने में खड़े होकर तेरी क्लिप देखते हुये पकड़ लिया। मैं फोन रख रही हूँ अभी, बाइ..” वो कोई और सवाल पूछे उसके पहले मैंने फोन काट दिया और पांडु को उसका मोबाइल देकर वहां से निकलने को कहा।
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तीन माह हो गये थे हम लोगों को अहमदाबाद आए। इन तीन माह में मैं और मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल । चुकी थी। आज भी मुझे वो दिन बार-बार याद आता है, जब हम राजकोट से निकलने वाले थे और मैंने नीरव के कपबोर्ड में कुछ कागज देखे, जिसने मेरी जिंदगी बदल डाली।

वो कागज मेरी रिपोर्ट के थे, जो पढ़कर मुझे मालूम पड़ा की मैं प्रेगनेंट नहीं हो सकती। मुझमें कुछ ऐसी प्राब्लम है जिसके करण मैं कभी भी माँ नहीं बन सकती। रिपोर्ट पढ़कर मुझ पर बिजली गिर पड़ी थी, मैं पहले तो । इसलिए रोने लगी की मैं अब कभी भी माँ नहीं बन पाऊँगी, और फिर नीरव का खयाल आते ही मेरा रोना बढ़ गया।

कितना प्यार करता है वो मुझे, मुझमें खामी थी लेकिन उसने मुझे कभी कहा नहीं और मैं हमेशा उसे तानेमारती रही, कितनी गिरी हुई हूँ मैं। मैं उसे धोखा देती रही और वो मुझसे इतना प्यार करता रहा। रात को नीरव आया, तब मैं उससे लिपटकर जोरों से रोने लगी।


नीरव ने मुझे बाहों में लेकर मेरे बालों को सहलाते हुये पूछा- “क्या हुवा निशु?”

मैं रोती रही, कोई जवाब दिए बगैर।

नीरव मेरी पीठ थपथपाते हुये बोला- “तेरे पापा की चिंता हो रही है, क्या तुझे?”

मैं उस भोले इंसान की बात सुनकर और जोरों से रोने लगी।

नीरव- “हम कल से अहमदाबाद सिफ्ट हो रहे हैं। फिर तो तुम हर रोज अपने मम्मी-पापा को मिल सकोगी और उन्हें कोई प्राब्लम ना हो तो वो लोग हमारे साथ भी रह सकते हैं। मेरे मम्मी-पापा का साथ तो मुझे नहीं मिला,
लेकिन तुम्हें तो तेरे मम्मी-पापा का साथ मिलेगा.”

कितना खयाल करता है वो मेरा, मैं यही सोचकर उससे लिपटकर और रोने लगी।

इन तीन महीनों में कई अच्छे दिन आए मेरी जिंदगी में, लेकिन इन सब में सबसे बेहतरीन दिन था जब रीता को होश आया। होश में आने को बाद वो बहुत जल्द ठीक होकर अपने घर भी वापस आ गई। मैं हफ्ते में एक बार उससे जरूर मिलने जाया करती थी, वहां अक्सर जावेद मिल जाता था।

नीरव ने भी उसका नया बिजनेस अच्छी तरह से सेट कर लिया था और उसने जीजू को साथ में ले लिया था। जिस वजह से जीजू के फाइनेंसियल प्राब्लम कम हो गये थे। नीरव ने मेरे मम्मी-पापा को हमारे साथ रहने को कह दिया था, लेकिन वो अभी तक आए नहीं थे।
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नीरव ने भी उसका नया बिजनेस अच्छी तरह से सेट कर लिया था और उसने जीजू को साथ में ले लिया था। जिस वजह से जीजू के फाइनेंसियल प्राब्लम कम हो गये थे। नीरव ने मेरे मम्मी-पापा को हमारे साथ रहने को कह दिया था, लेकिन वो अभी तक आए नहीं थे।

इन सबके बीच फिर से वही हुवा जो हर रोज होता है। उस दिन मम्मी-पापा ने हमें खाने पे बुलाया था तो मैं दोपहर से वहां चली गई। लेकिन मेरे पहुँचने के बाद मम्मी-पापा को चाचा के घर जाने को हुवा। मम्मी-पापा के
जाने के दो ही मिनट बाद घर की डोरबेल बजी तो मैंने दरवाजा खोला तो सामने अब्दुल को पाया।

मैं कुछ सोचूं या बोलूं उसके पहले अब्दुल ने अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया और मुझे बाहों में जकड़ लिया“अरे बुलबुल तू जब से अहमदाबाद में आ गई है, तब से तो मुझे मिलती ही नहीं...”

मैंने अब्दुल की बाहों में से अपने आपको मुक्त करके थोड़ा आगे जाकर कहा- “मुझे छोड़ो, मैं पानी लाती हूँ, तुम्हारे लिए...”

लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और उसकी तरफ खींचते हुये कहा- “प्यास तो लगी है, लेकिन उसके लिए पानी की नहीं तुम्हारी जरूरत है."

मैं- “प्लीज़... अब्दुल अभी नहीं...” मैंने अपना हाथ छुड़ाते हुये कहा। और कोई होता तो मैं उसे मार देती लेकिन अब्दुल ने कुछ ही दिनों पहले मेरी मदद जो की थी वो मैं कैसे भूल जाती।

अब्दुल- “अभी क्या प्राब्लम है?” अब्दुल ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरे बालों को सूंघते हुये मेरी गर्दन को चूमने लगा।

मैं- “मेरे मम्मी-पापा आ जाएंगे...” मैंने उसे पीछे धकेलने की नाकाम कोशिश करते हुये कहा।

अब्दुल हँसते हुये मेरी गर्दन को पागलों की तरह चूमने लगा- “तुम्हारे मम्मी-पापा मुझे नीचे मिले, बुलबुल... वो तो तीन घंटे बाद वापस आने वाले हैं...”
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उसकी हरकतों से मैं बहकने लगी थी, मेरा ईमान डोलने लगा था, नीरव के प्यार को मैं भूलने लगी थी, लेकिन फिर भी मैंने अपनी हार नहीं मानी- “प्लीज़... अब्दुल, अभी मेरी इच्छा नहीं है, छोड़ो मुझे...”

लेकिन अब्दुल मेरी बात सुनने के मूड में नहीं था, उसका लण्ड मेरी गाण्ड को छू रहा है, वो मुझे महसूस हो रहा था। उसने अपना हाथ मेरी सलवार में डाल दिया था और वो मेरी चूत को पैंटी के साथ सहलाने लगा था और मैं धीमी-धीमी आवाज में- “नहीं अब्दुल, नहीं अब्दुल...” बोले जा रही थी।

लेकिन अब मेरी ना-ना में कुछ हद तक हाँ-हाँ भी शामिल थी। लेकिन तभी मेरा मोबाइल बजा था और उसकी आवाज से डरकर अब्दुल ने मुझे छोड़ दिया था और मैंने आगे बढ़कर टेबल पर से मोबाइल उठाया, वो काल नीरव की थी।

नीरव ने पूछा- “कहां हो?”

मैं- “मैं यहां मम्मी के पास आई हूँ, कुछ काम था क्या?”

नीरव- “हाँ। लेकिन तुम घर पर होती तो हो सकता था, लेकिन कोई बात नहीं...”

मैं- “तो मैं घर आ जाती हूँ ना?”

नीरव- “नहीं, नहीं कोई बात नहीं चलेगा...” नीरव ने कहा।

मैं- “ठीक है...” मैंने कहा और नीरव ने फोन काट दिया लेकिन मैं बोलती रही। यही एक रास्ता था अब्दुल से पीछा छुड़ाने का- “ठीक है, तुम कहते हो तो मैं आ जाती हूँ, इतना जरूरी है तो आना ही पड़ेगा...”

और फिर मैंने अब्दुल की तरफ घूमकर कहा- “मुझे जाना पड़ेगा, नीरव मुझे घर बुला रहा है.”

अब्दुल- “ओके मेडम। पहले पातिदेव, फिर हम... कहें तो आपके घर छोड़ दें हम..” अब्दुल ने दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाते हुये कहा।

मैं- “नहीं, नहीं मैं चली जाऊँगी...” मैंने कहा।

उस दिन के बाद मैं हमेशा सोचती हूँ की मुझे अब उस रास्ते पे नहीं जाना हो तो ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा

और उसमें सबसे खास अब्दुल का खयाल रखना पड़ेगा।

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