Adultery Chudasi (चुदासी )

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adeswal
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Re: Adultery Chudasi (चुदासी )

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रीता ने तुरंत 'हाँ' कह दी- “मैं तो कालेज में ही उससे प्यार करने लगी थी, पर वो तो तेरा दीवाना था इसलिए मैं कभी बोली नहीं...”

नीरव ने जावेद को मोबाइल करके बुलाया और हम उसे दूसरे कमरे में ले गये और वहां उसने नीरव ने रीता से शादी करने के बारे में कहा।

लेकिन जावेद ने 'ना' कहा।

तभी नीरव के मोबाइल पर काल आया, वो बात करने के लिए बाहर गया।

मैंने जावेद से पूछा- “तुम्हें रीता से शादी करने में क्या आपत्ति है?”

जावेद ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। तब मैंने अपना सवाल दोहराया- “तुम्हें रीता से शादी करने में क्या आपत्ति है जावेद?”

नीरव- “निशा इस वक़्त तुम्हारा पति यहां होता तो मैं ये बात नहीं कहता..." जावेद ने सोचने वाले अंदाज से कहा।

मैं- “क्या?”

नीरव- “कालेज के दिनों में मैं तुमसे प्यार का नाटक करते-करते सच्चा प्यार करने लगा था। फिर मैंने नगमा से शादी की लेकिन मैं कभी उसे प्यार नहीं दे पाया। वो खुदा को प्यारी हो गई। उसके बाद मुझे मेरी गलती का अहसास हुवा, यही रीता के साथ होगा...”

मैं- “लेकिन बाद में तो तुझे तुम्हारी गलती का अहसास हुवा था ना?”

नीरव- “लेकिन मैं उसे क्या दूंगा? प्यार मैंने तुमसे किया है, शादी नगमा से, रीता को मैं क्या हँगा?”

मैं- “इज़्ज़त दोगे तुम रीता को...” मैंने एक-एक शब्द को अलग-अलग करते हुये कहा- “रीता के साथ अब कौन शादी करेगा? और तुम्हें बीवी मिले या ना मिले तुम्हारे बच्चे को माँ जरूर मिल जाएगी रीता के रूप में..."

नीरव- “सारी निशा, मैं रीता से शादी नहीं करना चाहता...'

मैं- “तुम मानते हो ना की रीता के साथ जो हुवा वो तुम्हारी गलती की वजह से हुवा है, तो अपनी गलती सुधारने के लिए रीता से शादी कर लो.." मैं किसी भी तरह जावेद से अपनी बात मनवाना चाहती थी।

नीरव- “प्लीज़... निशा, अब मैं उस बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहता..." जावेद चिढ़ गया।

मैं- “मेरे प्यार की खातिर भी नहीं? तुम अगर मुझसे सच्चा प्यार करते हो तो रीता से शादी कर लो..” मैं भी चिढ़ गई और गुस्सा होकर रूम से निकल गई।

बाहर आकर देखा तो नीरव अभी भी मोबाइल पे बात कर रहा था। मैं उसके पास जाकर खड़ी हो गई।

कुछ देर बाद जावेद बाहर आया और मुझसे कहा- “मैं तैयार हूँ..”

मैं- “सारी... मैंने तुमसे जबरदस्ती की। अगर तुम्हारी मर्जी न हो तो तुम शादी मत करना, ऐसे काम जोरजबरदस्ती से नहीं होते...” मैंने उसका मन टटोलने के लिए कहा।

नीरव- “ऐसा नहीं है। मैंने सोचा तुम्हारी बात सही है, हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है." जावेद ने कहा।

फिर मैंने अंदर जाकर रीता और उसकी भाभी को बताया की जावेद मेरे जीजू बनने को तैयार है, और फिर हम सबने पूरा दिन साथ में बिताया, रात का खाना खाकर हम घर लौटे।
adeswal
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मैं- “सारी... मैंने तुमसे जबरदस्ती की। अगर तुम्हारी मर्जी न हो तो तुम शादी मत करना, ऐसे काम जोरजबरदस्ती से नहीं होते...” मैंने उसका मन टटोलने के लिए कहा।

नीरव- “ऐसा नहीं है। मैंने सोचा तुम्हारी बात सही है, हम दोनों को एक दूसरे की जरूरत है." जावेद ने कहा।

फिर मैंने अंदर जाकर रीता और उसकी भाभी को बताया की जावेद मेरे जीजू बनने को तैयार है, और फिर हम सबने पूरा दिन साथ में बिताया, रात का खाना खाकर हम घर लौटे।

दूसरे दिन सुबह मैंने नीरव से रिपोर्ट के बारे में पूछा तो उसने मुझे शाम को पाँच बजे आएगा ऐसा कहा। नीरव के आफिस जाने के बाद मैंने अपना कुछ जरूरी सामान एक बैग में भरा, मैंने सोच रखा था की मैं रिपोर्ट लेने चार बजे पहुँच जाऊँगी और मेरा एच.आई.वी. का रिपोर्ट पाजिटिव आएगा तो मैं नीरव को मालूम पड़े उसके पहले कहीं दूर चली जाऊँगी।

साढ़े तीन बज चुके थे, मैं रिपोर्ट लेने के लिए घर से निकल रही थी। मैंने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था, बाहर आकर मैंने आटो किया और परिमल लेबोरेटरी पहुँची। अंदर जाते हुये मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, । एसी चालू होने के बावजूद पशीना हो रहा था। मैंने रिसेप्शन काउंटर पर जाकर पर्ची दी, मेरी किश्मत अच्छी थी कि रिपोर्ट आ गई थी।

रिपोर्ट हाथ में लेते ही मेरा दिल और जोरों से धड़कने लगा। कंपकंपाते हाथों से मैंने रिपोर्ट निकाला की मालूम नहीं क्या होगा? कुछ ही पलों में मेरी जिंदगी का फैसला होने वाला था। लेकिन रिपोर्ट पढ़ते ही मेरा टेन्शन दूर हो गया। जिंदगी में नेगेटिव बातें भी अच्छी होती है वो मुझे रिपोर्ट पढ़कर मालूम पड़ा। हाँ मेरा एच.आई.वी. का रिपोर्ट नेगेटिव आया था। रिपोर्ट पढ़कर मेरे चेहरे पर खुशी छलक आई। मैंने मोबाइल निकालकर तुरंत नीरव को काल लगाया। वो भी रिपोर्ट के नेगेटिव आने की बात सुनकर खुश हो गया। मैंने उसे ना बोल दिया की अब यहां मत आना, और मैं अपने मम्मी-पापा के घर चली गई।

मैं अपने मम्मी-पापा से मिलने इसलिए गई थी की मैं चाहती थी कि वो अब हमारे साथ रहने आ जायें। कुछ देर उनके साथ बिताकर निकल रही थी तो पापा ने कहा की- “मैं तुम्हारे साथ आ जाता हूँ, मुझे तुम्हारे घर के पहले बैंक आता है, वहां जाना है...”


मैं और पापा लिफ्ट से नीचे उतरकर सड़क पर आए, तभी सामने से कार में अब्दुल आया, और पूछा- “कहां जाना है, शर्माजी?”

पापा- "मैं बैंक जा रहा हूँ और फिर निशा उसके घर."

अब्दुल- “बैठ जाइए, मैं उसी तरफ जा रहा हूँ...”

मैं- “नहीं, नहीं अब्दुल भाई हम चले जाएंगे, खामखा आपको तकलीफ देकर क्या फायदा?”

अब्दुल- “उसमें तकलीफ काहे की? ये तो मेरा फर्ज है और मैं उसी तरफ जा रहा हूँ...” अब्दुल ने आगे का दरवाजा खोलते हुये कहा।

मैं- “नहीं, नहीं हम आटो में चले जाएंगे.” मैंने कहा।

अब्दुल- “बिटिया आजकल तुम ज्यादा ही अपनी कीमत लगा रही है, हमें पराया बना दिया है तुमने...” अब्दुल ने मुँह फुलाकर कहा।

पापा- “बैठ जाओ निशा, इतना कह रहे हैं तो...” पापा ने पीछे का दरवाजा खोलकर अंदर बैठते हुये कहा।

मैं भी उनके साथ पिछली सीट में बैठने गई तो अब्दुल ने कहा- “बिटिया तुम आगे बैठ जाओ, नहीं तो सब हमें आपका मुजाहिब समझेंगे...”

उनकी बात सुनकर पापा हँसने लगे और मुझे आगे बैठने को कहा। मैं क्या करती, चुपचाप जाकर आगे की सीट में अब्दुल के पास बैठ गई। अब्दुल मेरे पापा से बात करने लगा लेकिन मैं चुपचाप खिड़की से बाहर का नजारा देखने लगी। पापा का बैंक आया तो उन्होंने अब्दुल को मुझे सही सलामत घर छोड़ने को कहकर उतर गये।
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मुझे बहुत बुरा लग रहा था इस तरह फिर से अब्दुल से एकांत में मिलने से, मुझे अब्दुल से ज्यादा अपने आप पर ही भरोसा नहीं था। मैं फिर से बहक जाऊँगी यही डर लग रहा था मुझे।।

मेरे पापा के उतरते ही अब्दुल ने मेरी जांघ पर उसका हाथ रख दिया और मैंने एक भी पल गवांए बिना उसका हाथ वहां से हटा दिया।

अब्दुल- “बहुत नखरे बढ़ गये हैं, तेरे. अब्दुल का चेहरा गुस्से से तिलमिला उठा था।

मैं- “प्लीज़... अब्दुल गाड़ी रोको, मैं यहां से आटो में चली जाऊँगी..”

अब्दुल- “मुझे प्यासा छोड़कर जाना है, तेरे को?”

मैं- “मैं वो सब अब नहीं करती, मुझे जाने दो...”

अब्दुल- “वोही पुरानी वाली होटेल ले लूं."

मैं- “मैंने कहा ना अब्दुल, पुरानी बात को भूल जाओ, वो मेरी गलती थी, मैं उसे दोहराना नहीं चाहती...”

अब्दुल- “दोहरा तो चुके हैं हम। तू प्यार से देती है तो ठीक है, नहीं तो?” अब्दुल अपने असली रंग में आ चुका था। उसने फिर से मेरी जांघ पर हाथ रख दिया था और अंगूठे को पीछे की तरफ खींचकर मेरी चूत से साड़ी के ऊपर से छेड़छाड़ करने लगा।

मैं- “मुझे जाने दो अब्दुल..” मैंने अपनी आँखें बंद करते हुये कहा।

जिसे देखकर अब्दुल ने उसका हाथ मेरे पेट पर रख दिया और उसे सहलाने लगा- “साली, तू हमेशा ना कहती है,
लेकिन तू जानती नहीं की तू कितनी गरम है, हाथ लगते ही पिघल जाती है...”

उसकी बात सुनकर मेरी आँखें भर आई की इंसान को उसका पास्ट कभी नहीं छोड़ता, हम जो गलती करते हैं, वो गलतियां हमें जिंदगी भर सताती रहती हैं।

अब्दुल पहले मेरे पेट को फिर साड़ी समेत मेरी चूत को सहलाने लगा। मैं आँखें बंद करके उसे अपनी मनमानी करने दे रही थी। वो समझ रहा था की मैं मजा ले रही हैं। लेकिन मैं उससे छुटकारा पाने की तरकीब सोच रही थी। नीरव को बुलाने को सोचा लेकिन अब्दुल से डर लगा की कहीं वो उसे अपना दुश्मन ना बना दे। समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूं? मेरा घर छोड़कर कार बहुत आगे हाइवे पर निकल चुकी थी, होटेल नजदीक ही था। एक ही रास्ता दिमाग में आ रहा था की कार किसी भी तरह यहां रोककर निकल जाऊँ।

मैं- “अया...” मैंने अपने मुँह से मादक सिसकारी निकाली।

जो सुनकर अब्दुल पागल हो गया- “आ गई ना लाइन पर...”

मैं- “हाँ अब्दुल, मुझसे अब रहा नहीं जा रहा, यहीं पर गाड़ी रोक दो...”

मेरी बात सुनकर अब्दुल ने कार रोक दी, सड़कें सुनसान थी और कार पर शीशे ब्लैक कलर के लगाए हुये थे, जिससे बाहर से अंदर का कुछ दिखाई देने वाला नहीं था

अब्दुल- “देख यहां मजा लेने के बाद होटेल तो जरूर जाएंगे...” अब्दुल ने मुझे बाहों में लेते हुये कहा।

मैंने भी उसे अपनी बाहों में ले लिया और पीछे की तरफ कोई ऐसी चीज ढूँढ़ने लगी जो मैं अब्दुल के सिर पर मारकर यहां से भाग सकें, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला।

अब्दुल- “सीट से नीचे आ जा, मेरा लण्ड बाहर है, चूस उसे...” अब्दुल ने मुझे उससे अलग करते हुये कहा।
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