काल – सर्प

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josef
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धाड़... धाड....

नवीन चाचा अपने सर से हॉस्पिटल कि बालकनी का ग्लास तोड़ने की कोशिश कर रहे थे.....उनके माथे से होकर खून अब जमीन पर गिरना शुरू हो चुका था....

में भाग कर उनके पास पहुंच पाता उस से पहले ही एक तेज़ आवाज़ के साथ हॉस्पिटल कि सातवीं मंजिल की बालकनी का वो ग्लास भर भराकर गिर पड़ा....

में जोर से चिल्लाया....

"" चाचा रुक जाइए.....नहीं....नहीं....ऐसा मत करिए....""

मेरी आवाज़ सुनकर उन्होंने पलट कर मुझे देखा और जोर से चिल्ला कर कहा.....

"" ये मेरे दिमाग को खाए जा रहा है काली....में इसको निकाल नहीं पा रहा हूं अपने दिमाग से.....प्रीति का ख्याल रखना काली....""

इतना कह कर हॉस्पिटल कि सातवीं मंजिल से चाचा नीचे कूद गए.....

मेरे पैर इस वक़्त इतने भारी लग रहे थे जैसे किसी ने जंजीरों से इन्हें जकड़ रखा हो....चाचा को बस छलांग लगाते हुए देख पाया मैं और लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ा....

सलोनी और आरोही तेज़ी भाग कर मेरे पास पहुंचे लेकिन ना जाने मेरी सारी ताकत कहां चली गई जो में खड़ा भी नहीं हो पा रहा था.....




आरोही मेरे पास रुकी जबकि सलोनी फुर्ती से बालकनी की तरफ भागी लेकिन अब काफी देर हो चुकी थी.....

बालकनी के पास सलोनी को बस सुबकते हुए ही देख पाया मैं और मेरी आंखो के सामने अंधेरा सा छाने लग गया....









"" नहीं....नहीं......नहीं चाचा आप ऐसा नहीं कर सकते.....कोई मेरे चाचा को बचाओ....मम्मी चाचा को बचाओ....""

अचानक में चीखते हुए बिस्तर से उठा....मैंने देखा मै इस वक़्त घर पर हूं और मम्मी और आरोही मेरे पास बेड पर ही बैठे है....मम्मी को देखते ही मैं बोल पड़ा....

"" मम्मी चाचा....????""

मेरा इतना कहना हुआ ही था कि बड़ी मुश्किल से बांध के बैठी मम्मी की आंखो का सेलाब फूट पड़ा.....

"" सब ख़तम हो गया मेरे बच्चे सब उजड़ गया....आज पांच दिन बाद तू होश में आया है सब कुछ लूट गया मेरे बच्चे....तेरे पापा तेरे चाचा अब इस दुनिया में नहीं रहे....""

मुझे अब कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था....मम्मी की ऐसी हालत देख एक बार फिर से मेरी आंखो के सामने अंधेरा छाने लगा.....और एक बार फिर से में बेहोशी के अंधेरों में चला गया....


तीन दिन बाद.....


"" काली उठ....मत सो इतना, अगर आज नहीं उठेगा तो अब बारी तेरी मां की होगी....उठ खड़ा हो... कर हिम्मत...""

मैंने पूरा जोर लगा कर अपनी आंखे खोली और और बैठ गया बिस्तर पर....लेकिन मेरे आस पास कोई भी नहीं था...हाथ में ड्रिप लगी हुई थी और इस वक़्त में एक सफेद कुर्ते पयजामे में था....इधर उधर देखने से पता चला कि ये मेरा ही रूम है यानी कि में घर पर ही था....

मैंने देर ना करते हुए ड्रिप को अपनी कलाई से अलग किया और लड़खड़ाते हुए कदमों से बाहर हॉल की तरफ बढ़ गया.....

हाल में इस वक़्त काफी लोग बैठे हुए थे....बीच में हवन कुंड जल रहा था और हवन कुंड के पास सफेद साड़ी में मम्मी और चाची बैठी हुई थी और उनके ठीक पीछे आरोही और सलोनी....

""मम्मी""

मैंने आवाज लगाई....लेकिन मम्मी या कोई भी वाहा से उठ कर मेरे पास आ पाता उस से पहले ही वहां पूजा कर रहे साधु बाबा ने सबको बैठे रहने का इशारा किया और मुझे आवाज लगाई.....

"" आओ काली....यहां मेरे पास आकर बैठो....""

ये आवाज बिल्कुल वैसी ही थी जैसी अभी कुछ देर पहले मैंने नींद में सुनी थी....मै यंत्रवत उनके पास जाकर बैठ गया और उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा....
"" विपत्ति अभी टली नहीं है बेटा.....लेकिन में जानता हूं तू अब तेरे परिवार पर कोई आंच नहीं आने देगा.....जैसा सोचा था वैसा ही करना.....ईश्वर तुझे राह दिखाएंगे...""

उसके बाद वो वहां सभी लोगों को संबोधित कर के कहते है.....
""सभी बंधुओ अब अपने अपने घर चले जाएं.....इस परिवार को अब आप लोग अकेला छोड़ दे क्योंकि अभी काफी कुछ बदलने वाला है इसलिए आप सब अब अपने अपने घर के लिए प्रस्थान करें""

साधु बाबा के कहते ही वहां आए सारे लोग एक एक कर के साधु बाबा का आशीर्वाद लेकर जाते चले गए....


सब के जाने के बाद साधु बाबा अपने झोले में से दो हांडिया निकालते है जो कि एक लाल रंग की थी और एक काली.....उसके बाद वह अपने झोले से कुछ पैकेट्स भी निकालते है जो कि हांडी के रंगानुसार ही थे...

कुछ देर तक हम सब ऐसे ही बैठे साधु बाबा को देखते रहे....हाल में इस वक़्त एक मात्र साधु बाबा ही वो व्यक्ति थे जो की हमारे परिवार का हिस्सा नहीं थे....अभी कुछ ही देर हुई थी कि साधु बाबा ने कुछ कहा.....

"" बुरी ताकत पूरी पूर्ण वेग के साथ अग्रसर है, अगर अभी भी कुछ नहीं किया तो फिर से एक बड़ी अनहोनी होने का अंदेशा है..""

अपनी बात कह कर उन्होंने अपने झोले मै से फिर कुछ निकालने के लिए हाथ डाला और मम्मी का नाम लेकर उन्हें अपने पास बुलाया.......

"" देवी ये धागा बड़ा पवित्र है......इसके होते हुए कोई भी प्रेत या किसी तरह का काला जादू तुझ पर या तुम्हारे परिवार पर असर नहीं करेगा....ये धागा अपने परिवार के लोगों के साथ साथ तुम्हे खुद भी ग्रहण करना होगा....""

मम्मी बाबा के के हाथो से वो धागा लेकर फिर से अपनी जगह आ कर बैठ गई....

उसके बाद बाबा ने प्रीति यानी चाची को अपने पास बुलाया और एक लाल रंग का पैकेट उनके हाथ मै देते हुए उनके कानो मै कुछ कहा जिसे सुन चाची कि आंखे आश्चर्य और दर्द से फैलने लगी.....वो चुप चाप वहां से उठ पुनः अपनी जगह पर जाकर बैठ गई....

उसके बाद बाबा ने आरोही और सलोनी को बुलाया और काले रंग का पैकेट दोनों को एक एक दे दिया.....वो दोनो पैकेट्स लेने के बाद काफी असमंजस में लग रही थी जैसे उन्हें समझ ही नहीं आया हो की बाबा ने उन्हें क्या कहा....

उसके बाद एक बार फिर से मम्मी को उन्होंने पुकारा और काले रंग का एक पैकेट उन्हें भी दे दिया और उनके कानों में भी कुछ कहा.....

में वहां पास मै ही बैठा था लेकिन उन सब लोगों के कान में बाबा ने क्या कहा ये मुझे बिल्कुल भी सुनाई नहीं दिया तभी बाबा मेरी तरफ घूम गए और मेरे हाथो में एक काला और एक लाल पैकेट देते हुए मेरे कानो में कुछ कहा.....



"" काली....काले पैकेट मै तुम्हारे पिता के जिस्म की भस्म है जबकि लाल पैकेट में तुम्हारे चाचा की भस्म है..... इन दोनों भस्मो में मैंने कुछ विशेष मिलाया है ताकि तुम सभी कुछ समय के लिए किसी भी मक्कड़ जाल से दूर रहो....काला वाला पैकेट की भस्म तुम्हे तुम्हारी मां के जिस्म पर लगानी है और लाल वाले पैकेट की भस्म तुम्हारी चाची के जिस्म पर....याद रहे बाहरी जिस्म का कोई भी भाग इस भस्म के स्पर्श से अछूता ना रहे....""

मेरे होश उड़ गए इतना सुनते ही....मैंने घबराते हुए बाबा से कहा ...

"" बाबा ऐसे कैसे हो सकता है....ये काम तो ये दोनों खुद भी कर सकती है....मुझे इन सब बातों मै मत घसीटो बाबा में आपके आगे हाथ जोड़ता हूं...""

बाबा ने मेरा कान पकड़ लिया और दूसरा हाथ मेरे सर पे रखते हुए बोलने लगे.....

"" दवाई तभी असर करती है जब परहेज की पालना की जाए.....ये भस्म खुद अपने हाथो से खुद के जिस्म पे नहीं लगा सकते....अगर ऐसा करने का प्रयास भी किया तो ये भस्म स्वयं विकराल विष का स्वरूप के लेगी....इसमें मिलाया गया पदार्थ साधारण नहीं है काली.... तेरी एक बहन तेरी दूसरी बहन के जिस्म पर ये भस्म लगाएगी....तेरी मां और तेरी चाची तेरे जिस्म पर....उसके बाद तू तेरी मां और तेरी चाची के जिस्म पर.....याद कर वो पल जब नवीन कूदने वाला था....तब क्या कहा था उसने तुझ से क्या मांगा था उसने....याद कर..""

मैंने तुरंत जवाब दिया....

"" प्रीति का ख्याल रखना ""

इतना कहते ही मुझे तेज़ झटका लगा.....मेरे दिमाग में इस दिन जो कुछ भी हुआ बड़ी तेज़ी से रिवाइंड होने लगा और आखिरकार मैंने बाबा से ये सवाल पूछ ही लिया.....

"" आपको कैसे पता चला कि नवीन चाचा ने उस वक़्त मुझ से क्या कहा था....आरोही और सलोनी दोनों मै से किसी ने आपको बताया होगा....""

इस बार बाबा ने मेरे कान मै कुछ कहने की बजाय सब के सामने कहा....

"" जिस वक़्त तेरे चाचा ने तुझ से ये शब्द कहे थे वो तो उस से पहले ही मर चुके थे.....लेकिन तेरे पुकारने पर उनकी आत्मा फिर से उस जिस्म मै अाई और अपनी अंतिम इच्छा तुझे बता कर छलांग लगा गए......

josef
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शाम के 6 बज चुके थे.....पूरे घर में जैसे मातम पसरा हुआ था , सभी लोग पूरी खामोशी से अपने अपने दर्द अपने सीने में दबाए बस उस घड़ी का इंतजार कर रहे थे कि कोई तो हमारा दर्द हम से बांट ले....

मम्मी और चाची एक साथ एक सोफे पर अपना सर पकड़े बैठी थी वहीं सलोनी मेरी बांहों में ना जाने कब सो गई....आरोही इस वक़्त घर की छत पर अपने अकेले पन से जूझ रही थी....

तभी घर की डोर बेल बजी जिसे सुन चाची दरवाजा खोलने के लिए गई....

"" आप लोग इस वक़्त ....?? ""
चाची ने आश्चर्य से दरवाजा खोलते ही ये शब्द कहे....

"" तुझे कब से फोन कर रहे थे लेकिन तू है कि फोन बंद करके बैठी है.....अब हमे अंदर भी आने देगी या बाहर से ही भगा देगी....""

आने वाले लोग चाची की मम्मी पापा और छोटी बहन थे....

अंदर आते ही सभी ने मम्मी के सामने हाथ जोड़ कर अपना दुख जाहिर किया और वह तीनो एक ही सोफे पर बैठ गए....

उन लोगो के बैठते ही मम्मी ने बोलना शुरू किया....

"" अच्छा हुआ जो आप लोग यहां आ गए.....हम सब पर तो जैसे दुखो का पहाड़ टूट पड़ा.....पहले ईश्वर ने मुझ से मेरे पति छीन लिए और अब प्रीति का सुहाग भी....में तो फिर भी मेरा दर्द मेरे बच्चो से बांट सकती हूं लेकिन प्रीति का सोच कर डर जाती हूं.....ना जाने अब इस मासूम बच्ची का क्या होगा....""

इतना कहते ही मम्मी फफक पड़ती है और चाची की मम्मी अपनी जगह से उठ कर उन्हें अपने गले से लगा दिलासा देने कि कोशिश करती है....

चाची के पिता अमित भंडारी भी एक बिज़नेस मेन थे....भंडारी क्लॉथिंग नाम से उनका अच्छा खासा काम था....उनकी पत्नी रजनी मम्मी कि तरह ही गृहिणी थी जबकि उनकी छोटी बेटी आराध्या अभी कॉलेज में अाई ही थी....

अमित - भाभी जी हमे माफ़ करना , अगर आप लोगो की अनुमति हो तो हम प्रीति को हमारे साथ ले जाना चाहते है.....कुछ दिन हमारे साथ रहेगी तो अपने दर्द से भी निकल पाएगी और फिर इसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देख कर शादी भी कर देंगे....

अमित जी की बात सुन कर मम्मी के साथ साथ हम सभी को झटका लगा....लेकिन वो कह भी सही रहे थे.....अगर चाची यहां रही तो क्या ज़िन्दगी रह जाएगी उनकी बस यही सोच कर मैंने अभी कुछ कहना ही चाहा था कि उस से पहले चाची बिफर पड़ी.....

"" मेरे नवीन को गए अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ और तुम सब लोग ये कैसी बाते कर रहे हो.....में कहीं नहीं जाऊंगी.....अब मेरी अर्थी ही इस घर से निकलेगी.....अगर तुम लोगो को यही बाते करनी है तो अभी के अभी यहां से निकल जाओ और दुबारा मुझे अपनी शक्ल भी मत दिखाना....शर्म आती है मुझे आप लोगो को अब अपना माता पिता कहने मैं....में कहीं नहीं जाऊंगी ये मेरा पहला और आखिरी फैसला है.....""

चाची अपनी बात कह कर वही फर्श पर ही बैठ गई और सुबकने लगी....

सलोनी भी इसी गहमा गहमी मै जाग चुकी थी और उसने उठ कर फर्श पर सुबकती प्रीति को वहां से उठाया और मेरे बगल मै लाकर बैठा दिया....
तभी मम्मी ने कुछ कहा....

""प्रीति सही तो कह रहे है तेरे पापा.....अब किसके सहारे अपनी बाकी की ज़िंदगी निकालेगी तू यहां....अभी उम्र ही क्या है तेरी जो तू अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगाने की बात कर रही है.....में या इस घर का कोई भी सदस्य नहीं चाहेगा कि तू यहां से जाए लेकिन अब तुझे नए रास्ते तलाशने ही होंगे....अगर आज काली के पापा भी यहां होते तो वह भी यही कहते....मत कर खराब अपनी ज़िंदगी जो तेरे पापा कह रहे है वहीं सही है...""

अपने आप को संभालते हुए चाची ने कहा....

"" में प्रेगनेंट हूं....अगर इसके बाद भी आपको लगता है कि मुझे इन लोगो के साथ जाना चाहिए तो नवीन मेरी जिम्मेदारी काली को देकर गए थे....काली को ही अब मुझे ये बताना पड़ेगा कि में यहां रुकू या यहां से हमेशा के लिए चली जाऊं.....मैंने हमेशा नवीन से बेपनाह मोहब्बत करी है....उसके अलावा मेरी ज़िन्दगी में कभी कोई ना कोई आया है और अब ना ही कभी कोई आएगा....""

""प्रीति का ख्याल रखना काली""

अचानक मेरे दिमाग में चाचा के वो आखिरी शब्द गूंजे....

"" ये बात सही है कि चाचा आपका ख्याल रखने की जिम्मेदारी मुझे देकर गए थे....और जैसा कि आपने बताया कि आप प्रेगनेंट है तो मुझ से ज्यादा आप ये बता सकती है कि इस घर को आपकी कितनी जरूरत है....एक नन्हा मेहमान इस घर की खोई हुए खुशियां फिर से ला सकता है....लेकिन इस घर की खुशी देखने के चक्कर में आप अपनी बची हुई ज़िन्दगी तबाह कर लोगी....इसलिए आपकी ज़िन्दगी का फैसला करने वाला में कुछ भी नहीं होता हूं.....नवीन चाचा मुझ से जाते वक़्त आपका ख्याल रखने का बोल कर गए और वो में मरते दम तक रखूंगा चाहे आप यहां रहे या अपने मम्मी पापा के साथ चली जाए.....फैसला आपको करना है में अपना फैसला आप पर जबरदस्ती नहीं थोप सकता कभी भी...""

मेरी बात सुनकर चाची ने मुझे गले से लगा लिया और रोते रोते कहने लगी.....

""मै कहीं नहीं जाना चाहती काली.....मुझे अब यही रहना है .....जितना हम हमारे अपार्टमेंट में नहीं रहे उस से कहीं ज्यादा इस घर में नवीन रहा है.....नवीन की यादें है इस घर में, वो यादें मै छोड़ के कहीं नहीं जाऊंगी.... प्लीज़ काली हेल्प मी....मुझे नहीं जाना कहीं भी....""

फैसला हो चुका था....

चाची का ये फैसला सुनते ही अमित जी अपनी जगह से उठ कर चाची को अपने सीने से लगा लेते है....और कहते है...

"" मुझे आज सच में खुद पर और तेरी मां पर नाज़ हो रहा है....हम भी नहीं चाहते थे कभी की तू शादी के बाद इस घर से निकले....लेकिन नवीन कि मौत ने हमे अंदर तक तोड़ कर रख दिया....बेटी की ज़िंदगी खराब ना हो बस इसी भुलावे में तुझ से इतनी बड़ी बात कह गए....लेकिन तूने दिखा दिया कि खानदानी होना क्या होता है.....तूने मेरे साथ साथ मेरे पुरखों का भी मान रख लिया मेरी बच्ची.....हमने तो तुझे दो साल पहले ही कन्या दान करके इस परिवार को दे दिया बस ना जाने कैसे बेटी के प्यार ने हम से क्या क्या कहलवा दिया....मुझे माफ़ कर देना मेरी बच्ची ""

इस वक्त चाची के माता पिता अपनी बेटी को गले से लगाए आंसू बहा रहे थे जबकि आराध्या वहीं सोफे पर गुम सुम अपनी नज़रें झुकाए बैठी थी..... उसे इस तरह से गुमसुम देख मम्मी ने कहा....

"" अमित जी अगर आप बुरा ना माने तो आराध्या कुछ दिन हमारे साथ रह सकती है क्या.... माना प्रीति का दुख इस वक़्त कोई नहीं बांट सकता लेकिन प्रीति और आराध्या दोनों बहने है कुछ दिन साथ रहेगी तो प्रीति का भी मन लग जाएगा....""

चाची के पिता इस बात का जवाब दे पाते उस से पहले ही चाची की मम्मी बोल पड़ी....

"" क्यों नहीं भाभी जी.....आराध्या भी आपकी ही बेटी सामान है.....जब तक आप चाहे आप इसे यहां रख सकते है....वैसे भी आराध्या का प्रीति से बेहद लगाव है इसलिए हमे कोई ऐतराज नहीं है आराध्या के यहां रहने से....""

चाची के साथ रुकने की खुशी आराध्या के चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी इस वक़्त....

आराध्या का सामान कल भिजवा देंगे कि बात कह कर चाची के माता पिता हमसे विदा लेकर चले गए.....

उन लोगो के जाते ही मम्मी ने आराध्या से कहा....

"" आराध्या आज तुम सलोनी के रूम मै सो जाना....आज प्रीति मेरे साथ रहेगी लेकिन कल से वो तुम्हारे साथ ही सोएगी...तुझे कोई परेशानी तो नहीं है ना बच्चा???""

जब से आराध्या यहां अाई थी मम्मी की बात सुनकर पहली बार उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोला...

"" नहीं नहीं आंटी....मुझे भला कैसी परेशानी....दीदी के साथ में कल सो जाऊंगी...""

आराध्या की बात सुन मम्मी ने उसे डपटते हुए कहा.....

"" दुबारा मुझे आंटी कहा तो तू कल भी तेरी दीदी के साथ नहीं से पाएगी....मुझे मेरे बच्चे मम्मी कह कर बुलाते है और तू भी वही बुलाना अब से....""

"" ठीक है आंटी.....ओह आईएम सॉरी....मम्मी ""

आराध्या के इतना कहते ही मम्मी के साथ साथ सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट आ गई थी.....इतने मै छत से आरोही भी नीचे आ चुकी थी और हम सब के चेहरों पर मुस्कान और वहां हॉल मै आराध्या को देख उसके चेहरे पर भी मासूम मुस्कान आ गई....


आराध्या को सलोनी अपने साथ अपने रूम मै लेकर चली गई जबकि आरोही से मम्मी कुछ बात कर रही थी किचन मैं.....


मै भी अब वहां से उठ कर अपने रूम की तरफ बढ़ गया और अंदर जाते ही सीधा बिस्तर पर पसर गया.....तभी मेरी नजर बाबा के दिए हुए काले और लाल पैकेट पर पड़ी.....और साथ में उस तस्वीर पर भी जो पापा की वसीयत के साथ उस लेटर वाले लिफाफे से निकली थी.....

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