Romance काला इश्क़

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josef
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Romance काला इश्क़

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काला इश्क़

writter-Rockstar_Rocky

कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में जहाँ एक खेती बाड़ी करने वाला जमींदार परिवार रहता है| बड़े भाई सुमेश जमीन की खरीद फरोख करते हैं और उनके छोटे भाई राजेश इन जमीनों पर खेती बाड़ी का काम देखते हैं| बड़े भाई सुमेश का एक लड़का है जिसका नाम चन्दर है और उसकी शादी हो चुकी है| हाल ही में चन्दर के यहाँ बेटी पैदा हुई है परन्तु उसके पैदा होने से घर में कुछ ख़ास ख़ुशी का माहौल नहीं है| बेटी का नाम रितिका रखा गया है, नाम के अनुसार उसके गुण भी हैं, सूंदर और प्यारी सी मुस्कान लिए नन्ही सी परी| छोटे भाई राजेश का भी एक लड़का है जिसका नाम मानू है, और ये कहानी मानु की ही है!


(बाकी कहानी में जैसे जैसे पात्र आते जायेंगे आपको उनका नाम पता चल जायेगा|)


रितिका कुछ महीनों की होगी की कुछ ऐसा भयानक हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता| रितिका की माँ और चन्दर में जरा भी नहीं बनती थी, चन्दर हर छोटी छोटी बात पर रितिका की माँ पर हाथ छोड़ दिया करता था| रितिका के जन्म के बाद तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई, चन्दर भैया उससे ढंग से बोलते-बतियाते भी नहीं थे| इसका कारन ये था की उन्हें लड़के की चाहत थी ना की लड़की की| रितिका को उन्होंने कभी अपनी गोद में भी नहीं उठाया था प्यार करना तो दूर की बात थी| मेरी (मानू) उम्र उस समय X साल की थी और तभी एक अनहोनी घटी! भाभी को हमारे खेतों में काम करने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया| और प्रेम इस कदर परवान चढ़ गया की एक दिन वो लड़का भाभी को भगा के ले गया| जब ये बात सुबह सबको पता चली तो तुरंत सरपंचों को बुलाया गया और सरपँच ने गाँव के लठैतों को बुलावा भेजा| "बाहू" उन लठैतों का सरगना था और जब उसे सारी बात बताई गई तो उसने १ हफ्ते का समय माँगा और अपने सारे लड़के चारों दिशाओं में दौड़ा दिए| किसी को उस लड़के के घर भेजा जो भाभी को भगा के ले गया था तो किसी को भाभी के मायके| सारे रिश्तेदारों से उसने सवाल-जवाब शुरू कर दिए ताकि उसे किसी तरह का सुराग मिले| इधर रितिका को इस बात का पता भी नहीं था की उसकी अपनी माँ उसे छोड़ के भाग गई है और वो बेचारी अकेली रो रही थी| वो तो मेरी माँ थी जिन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसका ख़याल रखा|


छः दिन गुजरे थे की बाहू भाभी और उनके प्रेमी उस लड़के को उठा के सरपंचों के सामने उपस्थित हो गया| बाहु अपनी गरजती आवाज में बोला; "मुखिया जी दोनों को लखनऊ से दबोच के ला रहा हूँ| ये दोनों दिल्ली भागने वाले थे! पर ट्रैन में चढ़ने से पहले ही दबोच लिया हमने|" भाभी को देख के चन्दर का गुस्सा फुट पड़ा और उसने एक जोरदार तमाचा भाभी के गाल पर दे मारा| पंचों ने चन्दर को इशारे से शाँत रहने को कहा| मुखिया जी उठे और उन्होंने जो गालियाँ देनी शुरू की और उस लड़के के खींच-खींच के तमाचे मारे की उस लड़के की हालत ख़राब हो गई| भाभी हाथ जोड़ के मिन्नतें करने लगी की उसे छोड़ दो पर अगले ही पल मुखिया का तमाचा भाभी को भी पड़ा| "तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गाँव के नाम पर थूकने की? घर से बहार तूने पैर निकाला तो निकाला कैसे?” ये देख के सभी सर झुका के खड़े हो गए! मुखिया ने बाहु की तरफ देखा और जोर से चिल्ला कर बोले; "बाहु ले जाओ दोनों को और उस पेड़ से बाँध कर जिन्दा जला दो!" ये सुन के सभी मुखिया को हैरानी से देखने लगे पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| बाहु ने दोनों के जोरदार तमाचा मारा और भाभी और वो लड़का जमीन पर जा गिरे| फिर वो दोनों को जमीन पर घसींट के खेत के बीचों-बीच लगे पेड़ की और चल दिया| दोनों ने बड़ी मिन्नतें की पर बाहु पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ा| उसके बलिष्ठ हाथों की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई और उसने दोनों को अलग अलग पेड़ों से बाँध दिया| फिर अपने चमचों को इशारे से लकड़ियाँ लाने को कहा| चमचों ने सारी लकड़ियाँ भाभी और उस लड़के के इर्द-गिर्द लगा दी और पीछे हट गए| बाहु ने मुड़ के मुखिया के तरफ देखा तो मुखिया ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और फिर बाहु ने अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाली और एक तिल्ली जला के लड़के की ओर फेंकी| कुछ दो मिनट लगे होंगे लकड़ियों को आग पकड़ने में और इधर भाभी और वो लड़का दोनों छटपटाने लगे| फिर उसने भाभी की तरफ देखा और एक और तिल्ली माचिस से जला कर उनकी और फेंक दी| भाभी और वो लड़का धधकती हुई आग में चीखते रहे ... चिलाते रहे.... रोते रहे ... पर किसी ने उनकी नहीं सुनी| सब हाथ बाँधे ये काण्ड देख रहे थे| ये फैसला देख और सुन के सभी की रूह काँप चुकी थी और अब किसी भी व्यक्ति के मन में किसी दूसरे के लिए प्यार नहीं बचा था| जब आग शांत हुई तो दोनों प्रेमियों की राख को इकठ्ठा किया गया और उसे एक सूखे पेड़ की डाल पर बांध दिया गया| ये सभी के लिए चेतावनी थी की अगर इस गाँव में किसी ने किसी से प्यार किया तो उसकी यही हालत होगी| मैं चूँकि उस समय बहुत छोटा था तो मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं थी और रितिका तो थी ही इतनी छोटी की उसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला था| इस वाक्य के बाद सभी के मन में मुखिया के प्रति एक भयानक खौफ जगह ले चूका था| कोई भी अब मुखिया से आँखें मिला के बात नहीं करता था और सभी का सर उनके सामने हमेशा झुका ही रहता था| पूरे गाँव में उनका दबदबा बना हुआ था जिसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया| आने वाले कुछ सालों में वो चुनाव के लिए खड़े हुए और भारी बहुमत से जीत हासिल की और सभी को अपने जूते तले दबाते हुए क्षेत्र के विधायक बने| बाहु लठैत उनका दाहिना हाथ था और जब भी किसी ने उनसे टकराने की कोशिश की तो उसने उस शक़्स का नामो-निशाँ मिटा दिया|

josef
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Re: काला इश्क़

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update 1

इस दर्दनाक अंत के बाद घरवालों ने चन्दर भैया की शादी दुबारा करा दी और जो नई दुल्हन आई वो बहुत ही काइयाँ निकली! रितिका उसे एक आँख नहीं भाति थी और हमेशा उसे डाँटती रहती| बस कहने को वो उसकी माँ थी पर उसका ख्याल जरा भी नहीं रखती थी| मैं अब बड़ा होने लगा था और रितिका के साथ हो रहे अन्याय को देख मुझे उस पर तरस आने लगता| मैं भरसक कोशिश करता की उसका मन बस मेरे साथ ही लगा रहे तो कभी मैं उसके साथ खेलता, कभी उसे टॉफी खिलाता और अपनी तरफ से जितना हो सके उसे खुश रखता| जब वो स्कूल जाने लायक हुई तो उसकी रूचि किताबों में बढ़ने लगी| जब भी मैं पढ़ रहा होता तो वो मेरे पास चुप चाप बैठ जाती और मेरी किताबों के पन्ने पलट के उनमें बने चित्र देख कर खुश हो जाया करती| मैंने उसका हाथ पकड़ के उसे उसका नाम लिखना सिखाया तो उन अक्षरों को देख के उसे यकीन ही नहीं हुआ की उसने अभी अपना नाम लिखा है| अब चूँकि घर वालों को उसकी जरा भी चिंता नहीं थी तो उन्होंने उसे स्कूल में दाखिल नहीं कराया पर वो रोज सुबह जल्दी उठ के बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा करती| मैंने घर पर ही उसे A B C D पढ़ना शुरू किया और वो ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ने भी लगी| एक दिन पिताजी ने मुझे उसे पढ़ाते हुए देख लिया परन्तु कुछ कहा नहीं, रात में भी जब हम खाना खाने बैठे तो उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की| मुझे लगा शायद पिताजी को मेरा रितिका को पढ़ाना अच्छा नहीं लगा| अगली सुबह में स्कूल में था तभी मुझे पिताजी और रितिका स्कूल में घुसते हुए दिखाई दिए| मैं उस समय अपनी क्लास से निकल के पानी पीने जा रहा था और पिताजी को देख मैं उनकी तरफ दौड़ा| पिताजी ने मुझसे हेडमास्टर साहब का कमरा पूछा और जब मैंने उन्हें बताया तो बिना कुछ बोले वहाँ चले गए| पिताजी को स्कूल में देख के डर लग रहा था| ऐसा लग रहा था जैसे वो यहाँ मेरी कोई शिकायत ले के आये हैं और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने पिछले कुछ दिनों में कोई गलती तो नहीं की? मैं इसी उधेड़-बुन में था की पिताजी मुझे हेडमास्टर साहब के कमरे से निकलते हुए नज़र आये और बिना कुछ बोले रितिका को लेके घर की तरफ चले गए| जब मैं दोपहर को घर पहुँचा तो रितिका बहुत खुश लग रही थी और भागती हुई मेरे पास आई और बोली; "चाचू... दादा जी ने मेरा स्कूल में दाखिला करा दिया!" ये सुनके मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर इसी तरह हम साथ-साथ स्कूल जाने लगे| रितिका पढ़ाई में मुझसे भी दो कदम आगे थी, मैंने जो झंडे स्कूल में गाड़े थे वो उनके भी आगे निकल के अपने नाम के झंडे गाड़ रही थी| स्कूल में अगर किन्हीं दो लोगों की सबसे ज्यादा तारीफ होती तो वो थे मैं और रितिका| जब में दसवीं में आया तब रितिका पाँचवीं में थी और इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा थी| मैं मन लगाके पढ़ाई किया करता और इस दौरान हमारा साथ खेलना-कूदना अब लगभग बंद ही हो गया था| पर रितिका ने कभी इसकी शिकायत नहीं की बल्कि वो मेरे पास बैठ के चुप-चाप अपनी किताब से पढ़ा करती| जब मैं पढ़ाई से थक जाता तो वो मेरे से अपनी किताब के प्रश्न पूछती जिससे मेरे भी मन थोड़ा हल्का हो जाता| दसवीं की बोर्ड की परीक्षा अच्छी गई और अब मुझे उसके परिणाम की चिंता होने लगी| पर जब भी रितिका मुझे गुम-सुम देखती वो दौड़ के मेरे पास आती और मुझे दिलासा देने के लिए कहती; "चाचू क्यों चिंता करते हो? आप के नंबर हमेशा की तरह अच्छे आएंगे| आप स्कूल में टॉप करोगे!" ये सुन के मुझे थोड़ी हँसी आ जाती और फिर हम दोनों क्रिकेट खेलने लगते| आखिरकार परिणाम का दिन आ गया और मैं स्कूल में प्रथम आया| परिणाम से घर वाले सभी खुश थे और आज घर पर दवात दी गई| रितिका मेरे पास आई और बोली; "देखा चाचू बोला था ना आप टॉप करोगे!" मैंने हाँ में सर हिलाया और उसके माथे को चुम लिया| फिर मैंने अपनी जेब से चॉकलेट निकाली और उसे दे दी| चॉकलेट देख के वो बहुत खुश हुई और उछलती-कूदती हुई चली गई|ग्यारहवीं में मेरे मन साइंस लेने का था परन्तु जानता था की घर वाले आगे और पढ़ने में खर्चा नहीं करेंगे और ना ही मुझे कोटा जाने देंगे| इसलिए मैंने मन मार के कॉमर्स ले ली और फिर पढ़ाई में मन लगा लिया| स्कूल में मेरे दोस्त ज्यादा नहीं थे और जो थे वो सब के सब मेरी तरह किताबी कीड़े! इसलिए सेक्स आदि के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं मिला और जो थोड़ा बहुत दसवीं की बायोलॉजी की किताब से मिला भी उसमें भी जान सुखी रहती की कौन जा के लड़की से बात करे? और कहीं उसने थप्पड़ मार दिया तो सारी इज्जत का भाजी-पाला हो जायेगा| इसी तरह दिन गुज़रने लगे और मैं बारहवीं में आया और फिर से बोर्ड की परीक्षा सामने थी| खेर इस बार भी मैंने स्कूल में टॉप किया और इस बार तो पिताजी ने शानदार जलसा किया जिसे देख घर के सभी लोग बहुत खुश थे| जलसा ख़तम हुआ तो अगले दिन से ही मैंने कॉलेज देखने शुरू कर दिए| कॉलेज घर से करीब ४ घंटे दूर था तो आखिर ये तय हुआ की मैं हॉस्टल में रहूँगा पर हर शुक्रवार घर आऊँगा और संडे वापस हॉस्टल जाना होगा| जब ये बात रितिका को पता चली तो वो बेचारी बहुत उदास हो गई|

मैं: क्या हुआ ऋतू? (मैं रितिका को प्यार से ऋतू बुलाया करता था|)

रितिका: आप जा रहे हो? मुझे अकेला छोड़ के?
मैं: पागल... मैं बस कॉलेज जा रहा हूँ ... तुझसे दूर थोड़े ही जाऊँगा? और फिर मैं हर फ्राइडे आऊँगा ना|
रितिका: आपके बिना मेरे साथ कौन बात करेगा? कौन मेरे साथ खेलेगा? मैं तो अकेली रह जाऊँगी?
मैं: ऐसा नहीं है ऋतू! सिर्फ चार दिन ही तो मैं बहार रहूँगा ... बाद में फिर घर आ जाऊँगा|
रितिका: पक्का?
मैं: हाँ पक्का ... प्रॉमिस करता हूँ|

रितिका को किया ये ऐसा वादा था जिसे मैंने कॉलेज के तीन साल तक नहीं तोडा| मैं हर फ्राइडे घर आ जाया करता और संडे दोपहर हॉस्टल वापस निकल जाता| जब मैं घर आता तो रितिका खुश हो जाया करती और संडे दोपहर को जाने के समय फिर दुखी हो जाय करती थी|

josef
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Re: काला इश्क़

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update 2

इधर कॉलेज के पहले ही साल मेरे कुछ 'काँड़ी' दोस्त बन गए जिनकी वजह से मुझे गांजा मिल गया और उस गांजे ने मेरी जिंदगी ही बदल दी| रोज रात को पढ़ाई के बाद में गांजा सिग्रेटे में भर के फूँकता और फ़ूँकते-फ़ूँकते ही सो जाया करता| सारे दिन की टेंशन लुप्त हो जाती और नींद बड़ी जबरदस्त आती| पर अब दिक्कत ये थी की गांजा फूँकने के लिए पैसे की जर्रूरत थी और वो मैं लाता कहाँ से? घर से तो गिनती के पैसे मिलते थे, तभी एक दोस्त ने मुझे कहा की तू कोई पार्ट टाइम काम कर ले! आईडिया बहुत अच्छा था पर करूँ क्या? तभी याद ख्याल आया की मेरी एकाउंट्स बहुत अच्छी थी, सोचा क्यों न किसी को टूशन दूँ? पर इतनी आसानी से छडे लौंडे को कोई काम कहाँ देता है? एक दिन मैं दोस्तों के साथ बैठ चाय पी रहा था की मैंने अखबार में एक इश्तिहार पढ़ा: 'जर्रूरत है एक टीचर की' ये पढ़ते ही मैं तुरंत उस जगह पहुँच गया और वहाँ मेरा बाकायदा इंटरव्यू लिया गया की मैं कहाँ से हूँ और क्या करता हूँ? जब मैंने उन्हें अपने बारे में विस्तार से बताया और अपनी बारहवीं की मार्कशीट दिखाई तो साहब बड़े खुश हुए| फिर उन्होंने अपनी बेटी, जिसके लिए वो इश्तिहार दिया गया था उससे मिलवाया| एक दम सुशील लड़की थी और कोई देख के कह नहीं सकता की उसका बाप इतने पैसे वाला है| उसका नाम शालिनी था, उसने आके मुझे नमस्ते कहा और सर झुकाये सिकुड़ के सामने सोफे पर बैठ गई| उसके पिताजी ने उससे से मेरा तार्रुफ़ करवाया और फिर उसे अंदर से किताबें लाने को कहा| जैसे ही वो अंदर गई उसके पिताजी ने मेरे सामने एक शर्त साफ़ रख दी की मुझे उनकी बेटी को उनके सामने बैठ के ही पढ़ाना होगा| मैंने तुरंत उनकी बात मान ली और उसके बाद उन्होंने मुझे सीधे ही फीस के लिए पूछा! अब मैं क्या बोलूं क्या नहीं ये नहीं जानता था| वो मेरी इस दुविधा को समझ गए और बोले; १००/- प्रति घंटा| ये सुन के मेरे कान खड़े हो गए और मैंने तुरंत हाँ भर दी| इधर उनकी बेटी किताब ले के आई और मेरे सामने रख दी| ये किताब एकाउंट्स की थी जो मेरे लिए बहुत आसान था| उस दिन के बाद से मैं उसे रोज पाँच बजे पढ़ाने पहुँच जाता और एक घंटा या कभी कभी डेढ़-घंटा पढ़ा दिया करता| वो पढ़ने में इतनी अच्छी थी की कभी-कभी तो मैं उसे डेढ़-घंटा पढ़ा के भी एक ही घंटा लिख दिया करता था| शालिनी के पहले क्लास टेस्ट में उसके सबसे अच्छे नंबर आये और ये देख उसके पिताजी भी बहुत खुश हुए और उसी दिन उन्होंने मुझे मेरी कमाई की पहली तनख्वा दी, पूरे ३०००/- रुपये! मेरी तनख्वा मेरे हाथों में देख मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन चूँकि शुक्रवार था तो मैंने सबसे पहले कॉलेज से बंक मारा और रितिका के लिए नए कपडे खरीदे और उसके बाद एक चॉकलेट का बॉक्स लेके मैं बस में चढ़ गया| चार घंटे बाद में घर पहुँचा तो चुपचाप अपना बैग कमरे में रख दिया ताकि कोई उसे खोल के ना देखे| इधर दबे पाँव में रितिका के कमरे में पहुँचा और उसे चौंकाने के लिए जोर से चिल्लाया; "सरप्राइज"!!! ये सुनते ही वो बुरी तरह डर गई और मुझे देखते ही वो बहुत खुश हुई| जैसे ही वो मेरी तरफ आई मैंने उसे कस के गले लगा लिया और बोला; "HAPPY BIRTHDATY ऋतू"!!! ये सुनके तो वो और भी चौंक गई और उसने आज कई सालों बाद मेरे गाल पर चुम लिया और "THANK YOU" कहा| मैंने उसे अपने कमरे में भेज दिया और मेरा बैग ले आने को कहा| जब तक वो मेरा बैग लाइ मैं उसके कमरे में बैठा उसकी किताबें देख रहा था| उसने बैग ला के मेरे हाथ में दिया और मैंने उसमें से उसका तोहफा निकाल के उसे दिया| तोहफा देख के वो फूली न सामै और मुझे जोर से फिर गले लगा लिया और मेरे दोनों गालों पर बेतहाशा चूमने लगी| उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई! घर में कोई नहीं था जो उसका जन्मदिन मनाता हो, मुझे याद है जब से मुझे होश आया था मैं ही उसके जन्मदिन पर कभी चॉकलेट तो कभी चिप्स लाया करता और उसे बधाई देते हुए ये दिया करता था और वो इस ही बहुत खुश हो जाया करती थी| जब की मेरे जन्मदिन वाले दिन घर में सभी मुझे बधाई देते और फिर मंदिर जाया करते थे| मुझे ये भेद-भाव कतई पसंद ना था परन्तु कुछ कह भी नहीं सकता था|

खेर अपना तौफा पा कर वो बहुत खुश हुई और मुझसे पूछने लगी;

रितिका: चाचू मैं इसे अभी पहन लूँ?

मैं: और नहीं तो क्या? इसे देखने की लिए थोड़ी ही दिया है तुझे?!

वो ये सुन के तुरंत नीचे भागी और बाथरूम में पहन के बहार आके मुझे दिखाने लगी| नारंगी रंग की A - Line की जैकेट के साथ एक फ्रॉक थी और उसमें रितिका बहुत ही प्यारी लग रही थी| उसने फिर से मेरे गले लग के मुझे धन्यवाद दिया, परन्तु उसकी इस ख़ुशी किसी को एक आँख नहीं भाई| अचानक ही रितिका की माँ वहाँ आई और नए कपड़ों में देखते ही गरजती हुई बोली; "कहाँ से लाई ये कपडे?" जब वो कमरे में दाखिल हुई और मुझे उसके पलंग पर बैठा देखा तो उसकी नजरें झुक गई| "मैंने दिए हैं! आपको कोई समस्या है कपड़ों से?" ये सुन के वो कुछ नहीं बोली और चली गई| इधर रितिका की नजरें झुक गईं और वो रउवाँसी हो गई| “ऋतू .... इधर आ|” ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उसे गले लगने का निमंत्रण दिया| ऋतू मेरे गले लग गई और रोने लगी| "चाचू कोई मुझसे प्यार नहीं करता" उसने रोते हुए कहा|

"मैं हूँ ना! मैं तुझसे प्यार नहीं करता तो तेरे लिए Birthday Present क्यों लाता? चल अब रोना बंद कर और चल मेरे साथ, आज हम बाजार घूम के आते हैं|" ये सुन के उसने तुरंत रोना बंद किया और नीचे जा के अपना मुंह धोया और तुरंत तैयार हो के आ गई| मैं भी नीचे दरवाजे पर उसी का इंतजार कर रहा था| तभी मुझे वहाँ माँ और पिताजी दिखाई दिए| मैंने उनका आशीर्वाद लिया और उन्हें बता के मैं और रितिका बाजार निकल पड़े| बाजार घर से करीब घंटा भर दूर था और जाने के लिए सड़क से जीप करनी होती थी| जब हम बाजार आये तो मैंने उससे पूछना शुरू किया की उसे क्या खाना है और क्या खरीदना है? पर वो कहने में थोड़ा झिझक रही थी| जब से मैं बाजार अकेले जाने लायक हुआ था तब से मैं रितिका को उसके हर जन्मदिन पर बाजार ले जाया करता था| मेरे अलावा घर में कोई भी उसे अपने साथ बाजार नहीं ले जाता था और बाजार जाके मैंने कभी भी अपने मन की नहीं की, हमेशा उसी से पूछा करता था और वो जो भी कहती उसे खिलाया-पिलाया करता था| पर आज उसकी झिझक मेरे पल्ले नहीं पड़ी इसलिए मैंने उस खुद पूछ लिया; "ऋतू? तू चुप क्यों है? बोलना क्या-क्या करना है आज? चल उस झूले पर चलें?" मैंने उसे थोड़ा सा लालच दिया| पर वो कुछ पूछने से झिझक रही थी;

मैं: ऋतू... (मैं उसे लेके सड़क के इक किनारे बनी टूटी हुई बेंच पर बैठ गया|)
रितिका: चाचू .... (पर वो बोलने से अभी भी झिझक रही थी|)
मैं: क्या हुआ ये तो बता? अभी तो तू खुश थी और अभी एक दम गम-सुम?
रितिका: चाचू... आपने मुझे इतना अच्छा ड्रेस ला के दिया..... इसमें तो बहुत पैसे लगे होंगे ना? और अभी आप मुझे बाजार ले आये ...और.... पैसे....
मैं: ऋतू तूने कब से पैसों के बारे में सोचना शुरू कर दिया? बोल?
रितिका: वो... घर पर सब मुझे बोलेंगे...
मैं: कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा! ये मेरे पैसे हैं, मेरी कमाई के पैसे|

ये सुनते ही रितिका आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी|

रितिका: आप नौकरी करते हैं? आप तो कॉलेज में पढ़ रहे थे ना? आपने पढ़ाई छोड़ दी?
मैं: नहीं पगली! मैं बस एक जगह पार्ट टाइम में पढ़ाता हूँ|
रितिका: पर क्यों? आपको तो पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए? दादाजी तो हर महीने पैसे भेजते हैं आपको! कहीं आपने मेरे जन्मदिन पर खर्चा करने के लिए तो नहीं नौकरी की?
मैं: नहीं .... बस कुछ ... खर्चे पूरे करने होते हैं|
रितिका: कौन से खर्चे?
मैं: अरे मेरी माँ तुझे वो सब जानने की जर्रूरत नहीं है| तू अभी छोटी है....जब बड़ी होगी तब बताऊँगा| अब ये बता की क्या खायेगी?(मैंने हँसते हुए बात टाल दी|)
रितिका ने फिर दिल खोल के सब बताया की उसे पिक्चर देखनी है| मैं उसे ले के थिएटर की ओर चल दिया और दो टिकट लेके हम पिक्चर देखने लगे और फिर कुछ खा-पी के शाम सात बजे घर पहुँचे|
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(^^^-1$i7) 😱 😔 बहुत शानदार शुरुवात है जोसेफ़ भाई नयी कहानी शुरू करने के लिये आपका बहुत धन्यवाद 😋
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