Romance काला इश्क़

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josef
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Re: काला इश्क़

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update 48

रात के एक बजे थे और मुझे झपकी लगी थी की ऋतू मेरे कमरे में आई और और झुक कर मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने तुरंत आँख खोली और जब नजरें ऋतू पर पड़ीं तो मैं निश्चिंत हो गया और उसके होठों को चूसने लगा| दरअसल मैं दरवाजा बंद करना भूल गया था, इसलिए ऋतू चुप-चाप अंदर आ गई थी| इधर आग दोनों के जिस्म में भड़क चुकी थी पर कुछ भी करना खतरे से खाली नहीं था! मैंने ऋतू को रोका और उठ बैठा; "जान! मेरा भी बहुत मन है पर यहाँ घर पर कुछ भी करना ठीक नहीं है! कल कॉलेज की छुट्टी कर ले और फिर वो पूरा दिन हम दोनों एक साथ होंगे!" ये सुन कर ऋतू का मुंह फीका पड़ गया और वो मुड़ कर जाने लगी| अब मुझसे उसका ये उदास चेहरा देखा नहीं गया, मैं पलंग से उतरा और ऋतू का हाथ पकड़ कर खींच कर उसे छत पर ले गया| छत की पैरापेट वाल थोड़ी ऊँची थी, करीब 4 फुट की होगी, मैं वहाँ नीचे बैठ गया और ऋतू को भी अपने पास बिठा लिया| हम दोनों कुछ इस तरह बैठे थे की अगर कोई ऊपर चढ़ कर आता तो हमें साफ़ दिखाई दे जाता पर वो हमें नहीं देख पाता| उससे हमें इतना समय तो मिल जाता की हम एक दूसरे से अलग हो कर बैठ जाएँ| हाँ वो इंसान जब छत पर आ जाता तो ये सवाल जर्रूर आता की तुम दोनों छत पर अकेले क्या कर रहे हो? ये वो एक सवाल था जिसका हमारे पास कोई जवाब नहीं होता, पर जब प्यार किया है तो रिस्क तो लेना ही पड़ता है| सवाल के जवाब में झूठ बोलने के अलावा कोई और चारा नहीं था हमारे पास| खेर नीचे बैठा था और अपनी दोनों टांगें 'V' के अकार में खोल रखी थी| मैंने ऋतू को ठीक बीच में बैठने को कहा, ऋतू बैठ गई और अपना सर मेरे सीने से टिका दिया| हम दोनों ही आसमान में देख रहे थे| चांदनी रात में टीम-टिमाते तारे देखने का मजा ही कुछ और था, ऊपर से चारों तरफ सन्नाटा और हलकी-हलकी हवा ने समा बाँध रखा था|


ऋतू: जानू! आपको पता है आज क्या हुआ?

मैं: क्या हुआ? (मैंने ऋतू के गाल को चूमते हुए कहा)

ऋतू: ससस... मेरी सहेलियाँ कह रही थी की मैं मोटी हो गई हूँ? मेरी Ass, मेरी Breast और मेरे Lips मोटे हो गए हैं, और ये सब आपकी वजह से हुआ है?

मैं: शिकायत कर रही हो या कॉम्पलिमेंट दे रही हो?

ऋतू: कॉम्पलिमेंट

मैं: I feel you're ready to be a mother!

ऋतू: सच? तो कब बंद करूँ वो प्रेगनेंसी वाली गोली लेना? (उसने मजाक में कहा|)

मैं: पागल! (मैंने ऋतू के दूसरे को गाल को चूमते हुए कहा|)

ऋतू: ससस... सच्ची जानू! आपने मेरे बदन को तराशने में बड़ी मेहनत की है!

मैं: हम्म्म... (मैं ऋतू की जुल्फों की महक सूंघते हुए बोला|)

अब ऋतू ने अपने दाहिने हाथ को मेरी जाँघ पर रख उसे सहलाने लगी जिसका सीधा असर मेरे लंड महराज पर हुआ| उन्हें फूल कर खड़ा होने में सेकंड नहीं लगा और वो ऋतू की कमर पर अपनी दस्तक देने लगे| ऋतू मेरी तरफ घूमी और प्यासी नजरों से मुझे देखने लगी, पर वहाँ कुछ भी कर पाना बहुत बड़ा रिस्क था! पर प्यास तो लगी थी, और उसे बुझाना तो था ही! मैंने ऋतू को ऐसे ही बैठे रहने को कहा और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी पजामी के नाड़े को खोलना शुरू कर दिया| नाडा खोल कर मैंने अपना दाहिना हाथ अंदर डाला तो पाया की ऋतू ने पैंटी नहीं पहनी, मतलब वो पहले से ही तैयारी कर के बैठी थी! मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को ऋतू की बुर में सरकाया तो पाया की वो तो पहले से ही गीली है| "मेरी जान को प्यार चाहिए?" मैंने पुछा तो ऋतू ने सीसियाते हुए 'हाँ' कहा| मैंने अपनी ऊँगली से ऋतू की बुर की फांकों को सहलाना शुरू कर दिया और ऋतू ने अपने आप को मेरी छाती से दबाना शुरू कर दिया| मैंने अपनी तीनों उँगलियों से ऋतू की बुर की फाँकों को धीरे-धीरे मनसलना शरू कर दिया, और ऋतू का कसमसाना शुरू हो गया| मैंने अपनी दो उँगलियाँ उसके बुर में डाली और उन्हें ऋतू की बुर में गोल-गोल घुमाने लगा| अब ऋतू ने अपनी कमर को मेरे लंड पर और दबाना शुरू कर दिया| "जानू...ससस....!!!! आपको नहीं पता ये नौ दिन मैंने कैसे तड़प-तड़प के निकाले हैं!" मुझे ऋतू की प्यास का अंदाज हो चला था तो मैंने अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी बुर में तेजी से अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी| "उम्ममम ...ससस... और कितना ...स..ससस...तड़पाओगे?" ऋतू ने धीमी आवाज में सिसकते हुए कहा| "जान! प्लीज आज रात इसी से काम चला लो कल शहर पहुँच कर कपडे फाड़ के सेक्स करेंगे!" मैंने अब भी ऋतू की बुर में अपनी ऊँगली अंदर-बाहर किये जा रहा था, ऋतू की आँखें बंद हो चलीं थी और उसके दोनों हाथ मेरी जाँघ पर थे| "ससस...जानू!! ....ससस...पिछले कुछ दिनों से में डरी हुई थी...स्स्स्साहह... मुझे लगा ....मेरे जिस्म का जादू आप पर से उतर गया!" ऋतू के मुँह से अनायास शब्दों ने मेरा ध्यान खींचा, अब मुझे जानना था की ऋतू किस जादू की बात कर रही है इसलिए मैंने और तेजी से उसकी बुर की चुदाई अपनी उँगलियों से शुरू कर दी!| ऋतू इस आनंद से फिसल कर आगे की ओर जाने लगी तो मैंने अपने बाएँ हाथ को उसके पेट पर रखा और उसे आगे फिसलने नहीं दिया| "ममममममम.... उस सससस....हरामजादी .....ने मुझे एक बात सिखाई थी.... की अपने बंदे को अपने काबू में रखना है तो उसे अपनी चूत से बाँध कर रख! आअह..सससस...." अब मुझे सब कुछ समझ आने लगा था! ऋतू का अचानक से सेक्स में इतना 'निपुण' हो जाना सिर्फ उसकी insecurity को छुपाने के लिए एक पर्दा था| मैं उसे छोड़ कर किसी और के पास ना जाऊँ इसलिए ऋतू इस तरह मुझसे चिपकी रहती थी| मैंने उसे इतनी बार भरोसा दिलाया, कसमें खाईं पर उसे क्यों यक़ीन नहीं होता की मैं बस उसका हूँ| उसका ये possessive होना अब सारी हदें पार कर रहा है, अगर इसने अपनी जलन और insecurity के चलते किसी के सामने कुछ बक दिया तो? वो दिन हम दोनों का अंत होगा! पर आखिर कारन क्या है की ऋतू इस कदर insecure है? मैंने ऐसा क्या कर दिया की उसे ये insecurity होती है? Wait a minute ..... ये मुझसे प्यार भी करती है या फिर ये सिर्फ इसकी सेक्स की भूख है?!! मैं यही सब सोच रहा था और अपनी उँगलियों को ऋतू की बुर में तेजी से अंदर-बाहर किये जा रहा था| अब ऋतू छूटने वाली थी और उसने अपने नाखून मेरी जाँघ में गाड़ दिए थे जिससे मैं अपने ख्यालों से बाहर आया और अगले ही पल ऋतू झड़ गई और निढाल हो कर मेरी छाती पर सर रखे हुए लेटी रही|


ये तो साफ़ था की मैं चाहे कुछ भी कह लूँ या भले ही अपना दिल निकाल कर ऋतू के सामने रख दूँ ये मानने वाली नहीं है| अगर इससे प्यार न करता तो अब तक इसे छोड़ देता पर साला अब करूँ क्या ये नहीं पता! ऊपर से मैं भी चूतिया हो चला था जो ऋतू के चक्कर में एक से बढ़कर एक चूतियापे करने लगा था? क्या जर्रूरत थी तुझे बहनचोद यहाँ छत पर खुले में ये सब करने की? पर अगर ये ना करता तो मुझे ये सब कैसे पता चलता? तुझे जरा भी डर नहीं लगा की तू इस तरह ऋतू को अपने लंड से चिपटाये पड़ा है? भूल गया वो खेत के बीचों बीच पेड़ की डाल पर लटक रहे भाभी और उनके प्रेमी की अस्थियाँ? वहीँ जा कर मरना है तुझे? और ये क्या तूने ऋतू को अपने सर पर चढ़ा रखा है? बहनचोद उसकी हर एक ख्वाइश पागलों की तरह पूरी करता है और बदले में उसे ही तेरे ऊपर विश्वास नहीं! ये कैसा प्यार है?


ऋतू की सांसें दुरुस्त होने तक मेरा ही दिमाग मेरे दिल को गरिया रहा था| "जानू! क्या सोच रहे हो?" ऋतू ने मुझे झिंझोड़ा तो मैं अपने 'मन की अदालत' से बाहर आया| मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपनी टांगें मोड़ कर ऋतू के इर्द-गिर्द से हटाईं और उठ खड़ा हुआ| ऋतू फटाफट कड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो?" मैं अब भी कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथों की गिरफ्त से अपना हाथ छुड़ाया और आंगन में आ गया| ऋतू छत पर से नीचे झाँकने लगी और फिर उसे मैं बाथरूम में जाता हुआ नजर आया| ऋतू छत पर कड़ी नीचे देखती रही और इंतजार करने लगी की मैं बाथरूम से कब निकलूँगा| मैंने निकल कर ऊपर देखा तो वो अब भी वहीँ खड़ी थी और मेरे ऊपर आने का इंतजार कर रही थी| मैं अगर उस समय ऊपर जाता तो वो मुझसे पूछती की मेरे उखड़ जाने का कारन क्या है और तब मेरा कुछ भी कहना बवाल खड़ा कर देता, ऐसा बवाल जिसे सुन आज काण्ड होना तय था| इसलिए में आंगन में पड़ी चारपाई पर ही लेट गया पर ऋतू अपनी जगह से टस से मस ना हुई और टकटकी बांधे मुझे देखती रही| मैंने अपनी आँखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा, जो बात मेरे दिम्माग में चल रही थी वो ये थी की मुझे अपने दिल पर काबू रखना होगा वरना ऋतू मुझे कहीं फिर से अपनी जिस्म के जरिये पिघला ना ले| पिछले नौ दिनों से जो हम दोनों के बीच जिस्मानी दूरियाँ आई थी उससे कुछ तो काम आसान होगया था पर आज उस कर्म वाले काण्ड ने फिर से उस दबी हुई आग को हवा दे दी थी| शायद इस तरह उससे दूरियाँ बनाने से ऋतू को कुछ अक्ल आये, अब क्योंकि उसकी हर ख़ुशी पूरी करने के चक्कर में मैं अपनी और नहीं लगवाना चाहता था| शादी के बाद चाहे वो मुझसे जो करवा ले पर उससे पहले तो हम दोनों को maturity दिखानी होगी| पर दिमाग जानता था की कुछ होने वाला नहीं है...काण्ड तो होना ही है! इधर ऋतू की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो नीचे आ कर मुझसे पूछ सके की मैं क्यों उसके साथ ऐसा बर्ताव कर रहा हूँ? वो पैरापिट वाल पर अपनी कोहनियाँ टिकाये मुझे बस देखती रही! वो पूरी रात मैं बस करवटें बदलता रहा और बार-बार ऋतू को खुद को देखते हुए notice करता रहा| सुबह हुई तो ताई जी उठ के आंगन में आईं; "अरे मुन्ना? तू यहाँ क्या कर रहा है?" उन्होंने पुछा| उन्हें देखते ही ऋतू नीचे आ गई; "ताई जी..वो रात को पेट ख़राब हो गया था इसलिए मैं नीचे ही लेट गया|" मैंने झूठ बोला| ताई जी मेरे पास बैठ गईं और ऋतू बाथरूम में नहाने घुस गई और फ्रेश हो कर चाय बनाने लगी| मैं भी उठा और नहा धो के तैयार हो गया और अब तो घर वाले सब बरी-बारी नाहा के नाश्ते के लिए तैयार बैठे थे| "मानु, चन्दर तुम लोगों के साथ जायेगा|" ताऊ जी ने कहा और मैंने बस 'जी' कहा| पर ये सुनते ही ऋतू को बहुत गुस्सा आया, वो सोच रही थी की वो शहर जा कर मुझसे कल रात के उखड़ेपन का कारन पूछेगी पर चन्दर भैया के साथ जाने से उसके प्लान पर पानी फिर गया था| पर मुझे तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा था, नाश्ता कर के हम तीनों निकले और बस स्टैंड तक पैदल चल दिए| ऋतू पीछे थी और आगे-आगे मैं और चन्दर भैया थे| वो अपनी बातें किये जा रहे थे और मैं बस हाँ-हुनकुर ही कर रहा था| बस आई और हम तीनों चढ़ गए, ऋतू तो एक अम्मा के साथ बैठ गई| हम दोनों खड़े रहे और कुछ देर बाद हमें सीट मिल गई| मुझे नींद आ रही थी तो मैं खिड़की से सर लगा कर सो गया पर ऋतू के मन में उथल-पुथल मची थी| बस स्टैंड पहुँच कर चन्दर को तहसीलदार के जाना था और उसे वहाँ का कुछ पता नहीं था तो हमने एक ऑटो किया और उसमें बैठ गए| सबसे पहले ऋतू हुई, फिर मैं और आखरी में चन्दर घुसा| मैं ऋतू की तरफ ना देखकर सामने देख रहा था, अब ऋतू मुझसे बात करने को मृ जा रही थी पर अपने बाप के डर के मारे कुछ कह नहीं पा रही थी| ऋतू ने चुपके से मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया पर मैंने किसी तरह हाथ छुड़ा लिया और चन्दर से बात करने लगा| पहले ऋतू का कॉलेज आया और उसे वहाँ उतारने लगे तो लगा जैसे वो जाना ही ना चाहती हो! "जा ना?" मैंने कहा तो ऋतू सर झुकाये कॉलेज के गेट की तरफ चली गई और हमारा ऑटो तहसीलदार के ऑफिस की तरफ चल दिया| चन्दर भैया को वहाँ छोड़ कर मैं घर आ गया और मेल देखने लगा की शायद कोई जॉब ओपनिंग आई हो| एक मेल आई थी तो मैं वहाँ इंटरव्यू के लिए चल दिया| शाम को 4 बजे घर पहुँचा और आ कर ऐसे ही लेट गया| ठीक 5 बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मैंने जब दरवाजा खोला तो सामने ऋतू खड़ी थी|
josef
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Re: काला इश्क़

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update 49

ऋतू बिना कुछ कहे अंदर आई और दरवाजा उसने लात मार कर मेरी आँखों में देखते हुए बंद किया| फिर अगले ही पल उसकी आँखें छल-छला गईं और उसने मेरी कमीज का कालर पकड़ लिया और मुझे पीछे धकेलने लगी| "क्या कर दिया मैंने जो आप मुझसे इस तरह उखड़े हुए हो? कल रात से ना कुछ बोल रहे हो न कुछ बात कर रहे हो? ऐसा क्या कर दिया मैंने? कम से कम मुझे मेरा गुनाह तो बताओ? आपके अलावा मेरा है कौन और आप हो की मुझसे इस तरह पेश आ रहे हो?" ऋतू एक साँस में रोते-रोते बोल गई पर उसका मुझे पीछे धकेलना अब भी जारी था| मैंने पहले खुद को पीछे जाने से रोका और फिर झटके से उसके हाथों से अपना कालर छुड़ाया और बोला; "गलती पूछ रही है अपनी? तूने मुझे समझ क्या रखा है? तुझे क्या लगता है की तू मुझे अपने जिस्म की गर्मी से पिघला लेगी? तुझे इतना समझाया, इतनी कसमें खाईं की मैं तुझसे प्यार करता हूँ और सिर्फ तेरा हूँ पर तेरी ये fucking insecurity खत्म होने का नाम ही नहीं लेती? इसी लिए जयपुर से आने के बाद मुझसे इतना चिपक रही थी ना? मैं तो साला तेरे चक्कर में पागल हो गया था, तुझे गाँव छोड़ के उल्लू की तरह जागता रहता था| तेरे जिस्म ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, वो तो शुक्र है की मैंने व्रत रखे और खुद पर काबू पाया वरना मैं भी तेरी तरह हरकतें करता! क्या-क्या नहीं किया मैंने तेरे प्यार में और तुझे ये सब मज़ाक लग रहा है? तुझे मनाने के लिए क्या-क्या नहीं किया मैंने? इतना जोखिम उठा कर कल पहले तुझे खेतों में ले गया और फिर पहले तेरे कमरे में आना और वो रात को छत पर बैठना? पर तुझे तो बस अपने जिस्म की आग बुझानी है मुझसे! एक दिन अगर तुझे मैं ना छुओं तो तेरे बदन में आग लग जाती है! तुझे पता भी है की तू अपनी इस जलन के मारे कब क्या बोल देती है की तुझे खुद नहीं पता होता| क्या जर्रूरत थी तुझे आंटी जी से कहने की कि मेरी जॉब चली गई? अगर मैं बात नहीं पलटता तू तो वहाँ सब कुछ बक देती!


काम्य को तू जानती है ना, वो मुँहफ़ट है पर दिल की साफ़ है| वो जानबूझ कर मुझसे मज़ाक करती है और ये सुन कर तुझे किस बात का गुस्सा आता है? भाभी को भी तू अच्छे से जानती है ना? उसके मन में क्या-क्या है वो सब जानती है तू और तूने ही मुझे उनके बारे में आगाह किया था पर आज तक मैंने कभी उनकी तरफ आँख उठा के नहीं देखा| जब मैं बिमारी में गाँव गया था तो उसने क्या-क्या नहीं किया मुझे उकसाने के लिए| पर तेरे प्यार की वजह से मैं नहीं बहका, इससे ज्यादा तुझे और क्या चाहिए?


देख मैं तुझे आज एक बात आखरी बार बोल देता हूँ, आज के बाद अगर मुझे ये तेरी insecurity दिखाई दी तो this will be the end of our relationship!” मेरी बातें सुन ऋतू फफक के रोने लगी और अपने घुटनों के बल बैठ गई और हाथ जोड़ कर मिन्नत करते हुए बोली; "मुझे माफ़ कर दो! प्लीज ....मेरा आपके अलावा और कोई नहीं! ये सच है की मैं insecure हूँ आपको ले कर पर ये भी सच है की मैं आपसे सच्चा प्यार करती हूँ| मैंने आपसे प्यार सेक्स के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया क्योंकि इस दुनिया में सिर्फ एक आप हो जो मुझसे प्यार करते हो|"

"तो तुझे ये बात समझ में क्यों नहीं आती की मैं सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ? मैंने आज तक तेरे सामने कभी किसी से flirt नहीं किया तो ये काहे बात की insecurity है?! तुझे ऐसा क्यों लगता है की तुझ में कुछ कमी है? मैं तुझे छोड़ कर किसके पास जाऊँगा? बोल???"

"मुझे नहीं पता...बस डर लगता है की कोई आपको मुझसे छीन लेगा!" ऋतू ने अपने दोनों हाथों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया|

"कोई और नहीं....तू खुद ही मुझे अपने से दूर कर देगी|" मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से आजाद करते हुए कहा|

"नहीं ...प्लीज ऐसा मत कहिये!"

"तुझे पता है मैं कितनी परेशानियों से जूझ रहा हूँ? कितनी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर हैं? जॉब नहीं है, सेविंग्स नहीं हैं और दो साल बाद हमें भाग कर शादी करनी है! क्या-क्या मैनेज करूँ मैं? मैंने तुझसे आजतक कुछ माँगा है? नहीं ना? फिर? "

"एक लास्ट चांस दे दो! I promise ... अब ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! I promise ...!!!" ऋतू ने अपने आँसू पोछे और सुबकते हुए कहा| पर में जानता था की इसके मन की ये सोच कभी नहीं जा सकती| पर सिवाए कोशिश करने के मैं कुछ कर भी नहीं सकता था, प्यार जो करता था उस डफर से! मैं उसके सामन घुटनों पर बैठा और अपने बाएं हाथ से उसके बाल पकडे और उन्हें जोर से खींचा की ऋतू की गर्दन ऊपर को तन गई और उसकी नजरें ठीक मेरे चेहरे पर थीं;

"मैं बस तेरा हूँ...समझी?" ऋतू ने सुन कर हाँ में सर हिलाया पर मैं उससे 'हाँ' सुनने की उम्मीद कर रहा था, उसके कुछ न बोलने और सिर्फ सर हिलाने से मुझे गुस्सा आया और मैंने उसके बाएँ गाल पर एक चपत लगाईं और अपना सवाल दुबारा पुछा; "मैंने कुछ पुछा तुझसे? मैं सिर्फ तेरा हूँ.... बोल हाँ?" तब जा कर ऋतू के मुँह से हाँ निकला|

"तू सिर्फ मेरी है!" मैंने कहा|

"ह...हाँ!" ऋतू ने डर के मारे कहा|

"मैं किस्से प्यार करता हूँ?" मैंने ऋतू के गाल पर एक चपत लगाते हुए पुछा|

"म....मु...मुझसे!"

"तू किससे प्यार करती है?"

"आपसे!"

"और हम दोनों के बीच में कभी कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने ये सुन कर हाँ में गर्दन हिलाई पर मुझे ये जवाब नहीं सुनना था तो मैंने फिर से उसके गाल पर एक चपत लगाईं और तब जा कर ऋतू को समझ आया की मैं क्या सुनना चाहता हूँ|

"ह...हम दोनों के बीच...कोई नहीं आ सकता!" ऋतू ने घबराते हुए कहा|

ऋतू की आँखें रोने से लाल हो चुकी थीं और अब मुझे उस पर तरस आने लगा था, इसलिए मैंने उसके बाल छोड़ दिए और अपनी दोनों बाहें खोल दी| ऋतु घुटनों के बल ही मेरे सीने से लिपट गई और फिर से रोने लगी| मैंने ऋतू के बालों में हाथ फेरना शुरू किया ताकि उसका रोना काबू में आये; "बस ...बस... हो गया! और नहीं रोना!" ये सुन ऋतू ने धीरे-धीरे खुद पर काबू किया और रोना बंद किया| मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके आँसू पोछे फिर मैं खड़ा हुआ और उसे भी सहारा दे कर खड़ा किया| "जाके मुँह धो के आ फिर मैं तुझे हॉस्टल छोड़ देता हूँ|" ऋतू मुँह-धू कर आई और फिर से मेरे गले लग गई; "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" मैंने उसके जवाब में बस हाँ कहा और फिर उसे खुद से दूर किया और दरवाजा खोल कर बाहर उसके आने का इंतजार करने लगा| ऋतू बेमन से बाहर आई और शायद उसके मन में अब भी यही ख़याल चल रहा था की मैंने उसे माफ़ नहीं किया है| मैंने पहले उसे उसका फ़ोन वापस किया और फिर नीचे से ऑटो कर उसे हॉस्टल छोड़ा| घर पहुँचा ही था की मेरा फ़ोन बज उठा, ये किसी और का नहीं बल्कि ऋतू का ही था| उसने मोहिनी के फ़ोन से मुझे कॉल किया था, ये सोच कर की मैं शायद उसका कॉल न उठाऊँ| मैंने कॉल उठाया" जानू! आपकी एक मदद चाहिए!"

"हाँ बोल|" मैंने सोचा कहीं कोई गंभीर बात तो नहीं? पर अगर ऐसा कुछ होता तो वो उस वक़्त क्यों नहीं बोली जब वो यहाँ थी? "वो कॉलेज के असाइनमेंट्स में एक प्रोजेक्ट मिला था| बाकी साब तो हो गया बस एक वही प्रोजेक्ट बचा है|तो कल आप मेरा प्रोजेक्ट शुरू कर व दोगे?" मैं समझ गया की ये कॉल बस उसका ये चेक करना था की मैंने उसे माफ़ किया है या नहीं? "कल शाम 5 बजे मुझे राम होटल पर मिल|" अभी बात हो ही रही थी की मुझे पीछे से मोहिनी की आवाज आई; "रितिका तेरी बात हो जाए तो मुझे फ़ोन दियो|" ऋतू ने बड़े प्यार से कहा; "मेरी बात हो गई दीदी!" और उसने फ़ोन मोहिनी को दे दिया| "मानु जी! मैं तो आपको अपना दोस्त समझती थी और अपने ही मुझे पराया कर दिया?"

"अरे! मैंने क्या कर दिया?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"आप ने अपनी जॉब के बारे में क्यों नहीं बताया?" मोहिनी ने सवाल दागा|

"अरे...वो...याद नहीं रहा?" मैंने बहाना मारा|

"क्या याद नहीं रहा? वो तो माँ ने मुझे बताया तब जाके मुझे पता चला| मैं देखती हूँ कुछ अगर होता है तो आपको बताती हूँ|"

"थैंक यू" मैंने कहा| बस इसके बाद उसने मुझसे कहा की मैं उसे अपना रिज्यूमे भेज दूँ और वो एक बार अपनी कंपनी में बात कर लेगी| रात को बिना कुछ खाये-पीये ही लेट गया, आज जो मैं कहा और किया वो मुझे सही तो लग रहा था पर शायद मेरा ऋतू के साथ किया व्यवहार मुझे ठीक नहीं लग रहा था| मेरा उस पर गुस्सा निकालना ठीक नहीं था....शायद! खेर अगली सुबह उठा पर आज मुझे कहीं भी नहीं जाना था तो मैं घर के काम निपटाने लगा, झाड़ू-पोछा कर के घर बिलकुल चकाचक साफ़ किया फिर खाना खाया और फिर से सो गया| शाम को पाँच बजे मैं राम होटल पहुँचा तो देखा की ऋतू वहां पहले से ही खड़ी है| हम दोनों पहले की ही तरह मिले और फिर उसने मुझे प्रोजेक्ट के बारे में बताया और हम दोनों उसी में लग गए| घण्टे भर तक हम उसी पर डिसकस करते रहे और थोड़ा हंसी मजाक भी हुआ जैसे पहले होता था| आगे कुछ दिनों तक इसी तरह चलता रहा, हमारा प्यार भरा रिश्ता वापस से पटरी पर आ गया था पर ऋतू अब मुझे नार्मल लग रही थी, मतलब अब उसका वो possessiveness और insecure होना कम हो गया था| मुझे नहीं पता की सच में वो खुद को काबू कर रही थी या फिर नाटक, मैंने यही सोच कर संतोष कर लिया की कम से कम अब वो पहले की तरह तो behave नहीं कर रही|


करवाचौथ से दो दिन पहले की बात थी और ऋतू मुझे कुछ याद दिलाना चाहती थी, पर झिझक रही थी की कहीं मैं उस पर बरस न पडूँ| मैंने फ़ोन निकाला और घर फ़ोन किया; "नमस्ते पिताजी! एक बात पूछनी थी, दरअसल ऑफिस में काम थोड़ा ज्यादा है और बॉस ज्यादा छुट्टी नहीं देगा| तो अगर मैं करवाचौथ की बजाये दिवाली पर छुट्टी ले कर आ जाऊँ तो ठीक रहेगा?" मैंने जान बूझ कर बात बनाते हुए कहा, कारन साफ़ था की कहीं कोई यहाँ ऋतू को लेने ना टपक पड़े| "तूने वैसे भी करवाचौथ पर आ कर क्या करना था? शादी तो तूने की नहीं! पर दिवाली पर अगर यहाँ नहीं आया तो देख लिओ!" पिताजी ने मुझे सुनाते हुए कहा| "जी जर्रूर! दिवाली तो अपने परिवार के साथ ही मनाऊँगा!" बस इतना कह कर मैंने फ़ोन रखा| ऋतू जो ये बातें सुन रही थी सब समझ गई और उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगा उठा| "कल सुबह मैं लेने आऊँगा, तैयार रहना!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और ये सुनके ऋतू इतना चिहुँकि की मुझे गले लगना चाहा, पर फिर खुद ही रूक गई क्योंकि हम बाहर पार्क में बैठे थे| मैंने मन ही मन सोचा की शायद ऋतू को अक्ल आ गई है!


अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपनी बुलेट रानी की अच्छे से धुलाई की, आयल चेक किया और फिर नाहा-धो कर ऋतू को लेने चल दिया| ऋतू पहले से ही अपना बैग टाँगे गेट पर खड़ी थी| मेरी बाइक ठीक हॉस्टल के सामने रुकी और वो मुस्कुराती हुई आ कर पीछे बैठ गई| मैंने बाइक सीधा हाईवे की तरफ मोड़ दी और ऋतू हैरानी से देखने लगी; "हम घर नहीं जा रहे?" उसने पीछे बैठे हुए पुछा| तो मैंने ना में गर्दन हिलाई और इधर ऋतू का मुँह फीका पड़ गया, उसे लगा की हम गाँव जा रहे हैं| एक घंटे बाद मैंने हाईवे से गाडी स्टेट हाईवे 13 पर गाडी मोदी तो ऋतू फिर हैरान हो गई की हम जा कहाँ रहे हैं? आखिर आधे घंटे बाद जब बाइक रुकी तो हम एक शानदार साडी की दूकान के सामने खड़े थे| ऋतू बाइक से उत्तरी और सब समझ गई और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जानू! आप.... थैंक यू!" वो कुछ कहने वाली थी पर फिर रूक गई| मैंने बाइक पार्क की और हम दूकान में घुसे और वहाँ आज बहुत भीड़भाड़ थी| ये दूकान मेरे कॉलेज के दोस्त की थी और मैं यहाँ से कई बार ताई जी और माँ के लिए साडी ले गया था| मुझे देखते ही अंशुल (मेरा दोस्त) काउंटर छोड़ कर आया और हम दोनों गले मिले| "अरे भाभी जी! आइये-आइये!" उसने ऋतू से हँसते हुए कहा| "यार अभी शादी नहीं हुई है, होने वाली है!" मैंने कहा| "तभी मैं सोचूँ की तूने शादी कर ली और मुझे बुलाया भी नहीं!" ये सुन कर हम तीनों हँसने लगे, अंशुल ने अपने एक लड़के को आवाज दी: "भाई और भाभी को साड़ियाँ दिखा और रेट स्पेशल वाले लगाना|"

"यार एक हेल्प और कर दे, स्टिचिंग कल तक करवा दे यार जो एक्स्ट्रा लगेगा मैं दे दूँगा!" मैंने कहा और वो ये सुन कर मुस्कुरा दिया|

"हुस्ना भाभी के पास माप दिलवा दिओ और बोलिओ अंशुल भैया के भाई हैं|" मैंने उसे थैंक्स कहा, फिर वो वापस कॅश काउंटर पर बैठ गया और हम दोनों को वो लड़का साड़ियाँ दिखाने लगा| आज पहलीबार था की ऋतू अपने लिए साडी ले रही थी और बार-बार मुझसे पूछ रही थी की ये ठीक है? आखिर मैंने उसके लिए साडी पसंद की और फिर हम माप देने के लिए उस लड़के के साथ चल दिए| हुस्ना आपा बड़ी खुश मिज़ाज थीं और उन्होंने बड़ी बारीकी से माप लिया और ब्लाउज के कट के बारे में भी ऋतू को अच्छे से समझाया| जब मैंने पैसे पूछे तो उन्होंने 2,000/- बोले जिसे सुनते ही ऋतू मेरी तरफ देखने लगी| पैसे ज्यादा थे पर साडी भी तो कल मिल रही थी| मैंने जेब से पैसे निकाल के उन्हें दिए और कल 12 बजे का टाइम फिक्स हुआ! हम वापस दूकान आये और कॅश काउंटर पर अंशुल ने जबरदस्ती हमें बिठा लिया और चाय मँगा दी| मैंने जब उससे पैसे पूछे तो उसने 2,500/- कहा, जब की साडी पर 3,500/- लिखा था| वो हमेशा जी मुझे होलसेल रेट दिया करता था, पर ऋतू के लिए तो ये भी बहुत था वो फिर से मेरी तरफ देखने लगी| मैंने पेमेंट कर दी और हम बाहर आ गए; "जानू! आपने इतने पैसे क्यों खर्च किये?" ऋतू ने पुछा तो मैंने उसके दोनों गाल उमेठते हुए कहा; "क्योंकि ये मेरी जान का पहला करवाचौथ है! इसे स्पेशल तो होना ही है?" ऋतू की आँखें भर आईं थी, मैंने उसके आँसू पोछे और हम घर के लिए निकल पड़े| घर के पास ही बाजार था वहाँ मुझे मेहँदी लगाने वाली औरतें दिखीं तो मैंने ऋतू को मेहँदी लगवाने को कहा| मेहँदी लगवाने के नाम से ही वो खुश हो गई और फिर उसने अपने पसंद की मेहँदी लगवाई और मुझे दिखाने लगी| आखिर हम घर आ गए और अब भूख बड़ी जोर से लगी थी| इस सब में मैं कुछ खाने को लेना ही भूल गया, मैंने कहा की मैं खाना ले कर आता हूँ तो ऋतू मना करने लगी; "मेरा मन आज मैगी खाने का है|" ऋतू बोली और मैं समझ गया की वो क्यों मना कर रही है, मैं और पैसे खर्चा न करूँ इसलिए| मैंने मैगी बनाई और ऋतू को अपने हाथ से खिलाया क्योंकि उसके तो हाथों में मेहँदी लगी थी|

खाना खाने के बाद मैंने लैपटॉप पर एक पिक्चर लगा दी, ऋतू ने कहा की हम नीचे फर्श पर बैठें| मैं नीचे बैठा और अपनी दोनों टांगें V के अकार में खोलीं और ऋतू मुझसे सट कर बीच में बैठ गई| लैपटॉप सेंटर टेबल पर रखा था, ऋतू ने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया, अपने दोनों हाथ मेरी टांगों पर खोल कर रखे और सामने मुँह कर के पिक्चर देखने लगी| पिक्चर देखते-देखते ऋतू को नींद का झोंका आने लगा और उसकी गर्दन इधर-उधर गिरने लगी, मैंने अपने दोनों हाथों को ऋतू की गर्दन के इर्द-गिर्द से घुमाते हुए उसके होठों के सामने लॉक कर दिया| ऋतू ने मेरे हाथ को चूमा और फिर मेरी दाहिने बाजू का सहारा लेते हुए सो गई| शाम होने को आई थी और अब चाय बनाने का समय था, पर ऋतू नेबड़ी मासूमियत से अपने हाथ मुझे दिखाते हुए तुतला कर कहा: "जानू! मेरे हाथों में तो मेहँदी लगी है! आप ही बना दो ना!" उसके इस बचपने पर ही तो मैं फ़िदा था! मैंने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और अब बारी थी उसे चाय पिलाने की| हम दोनों फिर से वैसे ही बैठ गए और मैंने फूँक मार के उसे चाय पिलाई| सात बज गए पर ऋतू जानबूझ कर अब भी अपने हाथ नहीं धो रही थी, उसे मुझसे काम कराने में मजा आ रहा था| जब मैंने उससे पुछा की रात में क्या बनाऊँ तब वो हँसने लगी और बाथरूम में जा कर हाथ धोये और नहा कर आ गई| "आप हटिये, मैं बनाती हूँ!" पर मेरी नजरें उसके हाथों पर थीं जिन पर मेहँदी फ़ब रही थी| मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उन्हें चूम लिया| ऋतू शर्मा गई और फिर ऋतू ने भिंडी की सब्जी और उर्द दाल बनाई| खाना तैयार हुआ और हम दोनों बैठ गए खाने, पर इस बार खाना ऋतू ने मुझे खिलाया| पेट भर के खाना खाया और अब बारी थी सोने की पर ऋतू बस अपने मेहँदी वाले हाथ देखने में मग्न थी| "क्या देख रही है?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा| उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बिठा लिया, फिर अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द लपेट कर मेरे कंधे पर सर रखते हुए बोली; "आज मैं बहुत खुश हूँ! आपने बिना मेरे मांगे मेरी हर इच्छा पूरी कर दी! मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की मुझे आज का दिन देखना नसीब होगा! साडी खरीदना... मेहंदी लगवाना...ये सब मेरे लिए लिए एक सपने जैसा है| थैंक यू! Thank you for making this day so memorable!" मैंने ऋतू के सर को चूमा और हम दोनों लेट गए, पर आज कमरे का वातावरण बहुत शांत था| पहले ऋतू लेटते ही जैसे अपना आपा खो देती थी और मुझसे चिपक कर चूमना शुरू कर देती थी| पर आज वो बस मुझसे कस कर लिपटी रही और सो गई| मैं इस उम्मीद में की ऋतू कोई पहल करेगी कुछ देर जागता रहा पर जब मुझे लगा वो सो चुकी है तो मैं भी चैन से सो गया|


अगली सुबह ऋतू पहले ही जाग चुकी थी और बाथरूम में नहा रही थी| मैं उठा और खिड़की से पीठ टिका कर हाथ बंधे ऋतू के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा| 10 मिनट बाद ऋतू निकली, टॉवल अपने स्तनों के ऊपर लपेटे हुए और उसके गीले बाल जिन से अब भी पानी की बूँदें टपक रही थी| साबुन और शैम्पू की खुशबू पूरे कमरे में भर गई थी और मैं बस ऋतू को देखे जा रहा था| मुझे खुद को देखते हुए ऋतू थोड़ा शर्मा गई और शर्म से उसके गाल लाल हो गए| "क्या देख रहे हो आप?" उसने नजरें झुकाते हुए पुछा| "यार या तो शायद मैंने कभी गौर नहीं किया या फिर वाक़ई में आज तुम्हें पहली बार इस तरह देख रहा हूँ! मन कर रहा है की तुम्हें अपनी बाहों में कस लूँ और चूम लूँ!" मैंने कहा तो ऋतू हँसने लगी; "रात भर का सब्र कर लो, उसके बाद तो मैं आपकी ही हूँ!" "हाय! रात भर का सब्र कैसे होगा!" मैंने कहाँ और ऋतू की तरफ बढ़ने लगा, पर मैंने उसे छुआ नहीं बल्कि बाथरूम में घुस गया| ऋतू उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अपनी बाहों में भर लूँगा पर जब मैं उसकी बगल से गुजर गया तो वो थोड़ा हैरान हुई| जब मैं नहा कर निकला तो ऋतू अपने बाल सूखा रही थी, मैं बाहर आया और ऋतू से बोला; "जल्दी से तैयार हो जाओ!"

"क्यों? अब कहाँ जाना है?" ऋतू ने रुकते हुए पुछा|

"पार्लर" ये सुन के ऋतू आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!

"पर ...वहाँ...." आगे उसे समज ही नहीं आया की क्या बोलना है|

"अरे बाबा! आज के दिन औरतें पार्लर जाती हैं और पता नहीं क्या-क्या करवाती हैं, तो तुम्हें भी तो करवाना होगा न?!" ऋतू ने तो जैसे सोचा ही नहीं था की उसे ऐसा भी करना होगा|
"पर ...मुझे तो पता नहीं...वहाँ क्या..." ऋतू ने दरी हुई आवाज में कहा क्योंकि वो आजतक कभी पार्लर नहीं गई थी| हमारे गाँव में तो कोई पार्लर था नहीं जो उसे ये सब पता होता|

"जान! वहाँ कोई एक्सपेरिमेंट नहीं होता जो तू घबरा रही है! जो सजने का काम तू घर पर करती है वही वो लोग करेंगे|" अब पता तो मुझे भी ज्यादा नहीं था तो क्या कहता|

"तो मैं यहीं पर तैयार हो जाऊँगी, वहाँ जा कर पैसे फूँकने की क्या जर्रूरत है?"
मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा| "अच्छा? कहाँ है तेरे मेक-अप का सामान? ये एक नेल पोलिश....और ये एक फेसवाश....ओह वेट ये...ये फेस क्रीम...बस?! फाउंडेशन कहाँ है? और...वो क्या बोलते हैं उसे...मस्कारा कहाँ है?" ये एक दो नाम ऐसे थे जो मैंने कहीं सुने थे तो मैंने उन्हीं को दोहरा दिया| ये सुन कर तो ऋतू भी सोच में पड़ गई क्योंकि उसके पास कोई सामान था ही नहीं, वो मुझे सिंपल ही बहुत अच्छी लगती थी पर आज तो उसका पहला करवाचौथ था तो सजना-सवर्ना तो बनता था|

"पर वहाँ जा कर मैं बोलूं क्या? की मुझे क्या करवाना है? मुझे तो नाम तक नहीं पता की वो क्या-क्या करते हैं|" ऋतू ने पलंग पर बैठते हुए कहा|

'वहाँ जा कर पूछना की Pythagoras थ्योरम क्या होती है?" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा|

"वो तो मुझे आती है, a2 + b2 = c2“ ये कहते हुए ऋतू हँसने लगी|
"तू ऐसे नहीं मानेगी ना? रुक अभी बताता हूँ तुझे मैं|" इतना कह कर मैं ऋतू को पकड़ने को उसके पीछे भागा और हम दोनों पूरे घर में भागने लगे| मैं चाहता तो ऋतू को एक झटके में पकड़ सकता था पर उसके साथ ये खेल खलेने में मजा आ रहा था| वो कभी पलंग पर चढ़ जाती तो कभी दूसरे कोने में जा कर मुझे dodge करने की कोशिश करती| आखिर मैंने उस का हाथ पकड़ लिया और उसे बिस्तर पर बिठा दिया और उसके सामने मैं अपने घुटनों पर बैठ गया; "देख...पार्लर जा और वहाँ जा कर manicure, pedicure, bleaching, facial, threading वगैरह-वगेरा करवा| फिर भी कुछ समझ ना आये तो अपना दिमाग इस्तेमाल कर और जो भी तुझे वहाँ पर all - in one पैक मिले उसे करवा ले| वहाँ जो भी आंटी या दीदी होंगी उनसे पूछ लिओ और ये जो तेरे फ़ोन में गूगल बाबा हैं इनमें सर्च कर ले| अब मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ प्लीज चली जा!" मैंने ऋतू के आगे हाथ जोड़े और वो ये देख कर खिलखिलाकर हँस पड़ी| "ठीक है जी! पर पार्लर तक तो छोड़ दो, मुझे थोड़े पता है यहाँ पार्लर कहाँ है|" ऋतू ने हार मानते हुए कहा|

"इतने दिनों से या आती है तुझे ये नहीं पता की पार्लर कहाँ है?" मैंने ऋतू को प्यार से डाँटा|

"आपके लिए चाय बना देती हूँ फिर चलते हैं|" ऋतू ने कहा पर मेरा प्लान तो उसके साथ व्रत रखने का था|

"बिलकुल नहीं! मेरी बीवी भूखी-प्यासी बैठी है और मैं खाना खाऊँ?" मेरे मुँह से बीवी सुनते ही ऋतू का चेहरे ख़ुशी से दमकने लगा|

"आप प्लीज फास्टिंग मत करो! ये फ़ास्ट तो औरतें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए करती हैं, ना की आदमी!"

"यार ये क्या बात हुई? मैं इतनी लम्बी उम्र ले कर क्या करूँगा अगर तुम ही साथ न हुई तो? बैलेंस बना कर रखना चाहिए ना?" मेरे तर्क के आगे उसका तर्क बेकार साबित हुआ पर फिर भी ऋतू ने बड़ी कोशिश की पर मैं नहीं माना और मैं भी ये व्रत करने लगा| ऋतू को पार्लर छोड़ा और मैं उसकी साडी लेने चल दिया|


हुस्ना आपा का शुक्रिया किया की उन्होंने इतने कम समय में काम पूरा किया और फिर वापस निकल ही रहा था की अंशुल मिल गया| उससे कुछ बातें हुई और मुझे वापस आने में देर हो गई| दोपहर के 3 बजे थे और ऋतू का फ़ोन बज उठा| "जान! मैं बाहर ही खड़ा हूँ|" ये सुनकर ही ऋतू ने फ़ोन काट दिया और जब वो बाहर निकली तो मैं उसे बस देखता ही रह गया| उसके चेहरे की दमक 1000 गुना बढ़ गई थी, होठों पर गहरे लाल रंग की लिपस्टिक देख मन बावरा होने लगा था| आज पहलीबार उसने eyeliner लगाया था जिससे उसकी आँखें और भी कातिलाना हो गई थी| उसकी भवें चाक़ू की धार जैसी पतली थीं और मैं तो हाथ बाँधे बस उसे देखता रहा| ऋतू शर्म से लाल हो चुकी थी और ये लालिमा उसके चेहरे पर चार-चाँद लगा रही थी| "जल्दी से घर चलिए!" ऋतू ने नजरें झुकाये हुए ही कहा|

"ना ...पहले मुझे I love you कहो और एक kiss दो!" मैंने ऋतू के सामने शर्त रखी|

"प्लीज ...चलो न...घर जा कर सब कुछ कर लेना...पर अभी तो चलो! मुझे बहुत शर्म आ रही है!"

"ना...मेरी गाडी बिना I love you और 'Kissi' के स्टार्ट नहीं होगी|" माने अपनी बुलेट रानी पर हाथ रखते हुए कहा|

"सब हमें ही देख रहे हैं!" ऋतू ने खुसफुसाते हुए कहा|

"तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं है| Kissi चाहिए मुझे!" मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा| ऋतू जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया| "अच्छा बस! इतनी मेहनत लगी है इस चाँद से चेहरे को निखारने में, इसे खराब ना कर|" मैंने ऋतू को खुद से अलग किया| हम वापस बाइक से घर पहुँचे और बाइक से उतरते ही ऋतू भाग कर घर में घुस गई| मैं बस हँस के रह गया, बाइक खड़ी कर मैं ऊपर आया तो ऋतू शीशे में खुद को निहार रही थी उसे खुद यक़ीन नहीं हो रहा था की वो इतनी सुंदर है| "1,200/- लग गए! पर सच में जानू मैंने कभी सोचा नहीं था की मैं इतनी सूंदर हूँ!" ऋतू ने कहा| "अब तो मुझे insecurity होने लगी है!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर खिलखिलाकर हँसने लगी| मैंने ऋतू को उसकी साडी दी और तैयार होने को कहा क्योंकि हमें मंदिर जाना था जहाँ की कथा होनी थी| इधर मैं भी तैयार होने लगा, पर जब ऋतू पूरी तरह से तैयार हो कर आई तो मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी|

दो मिनट तक जब मैं कुछ नहीं बोला तो ऋतू ने ही मेरा ध्यान भंग किया; "जानू???" उसके बुलाते ही मेरे मुँह से ये शेर निकला;

"उस हसीन चेहरे की क्या बात है

हर दिल अज़ीज़, कुछ ऐसी उसमें बात है

है कुछ ऐसी कशिश उस चेहरे में

के एक झलक के लिए सारी दुनिया बर्बाद है|"


ये सुनते ही ऋतू को उसकी खूबसूरती का एहसास हुआ और शर्म से उसके गाल फिर लाल हो गए| पर आज मेरा मेरे ही दिल पर काबू नहीं था आज तो उसने बगावत कर दी थी;


"जब चलती है गुलशन में बहार आती है

बातों में जादू और मुस्कराहट बेमिसाल है

उसके अंग अंग की खुश्बू मेरे दिल को लुभाती है

यारो यही लड़की मेरे सपनो की रानी है|"


एक शेर तो जैसे आज उसके हुस्न के लिए काफी नहीं था|


"नज़र जब तुमसे मिलती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

बस इक धड़कन धड़कती है मैं खुद को भूल जाता हूँ

मगर जब भी मैं तुमसे मिलता हूँ मैं खुद को भूल जाता हूँ|"


आज तो वो शायर बाहर आ रहा था जो आशिक़ी की हर हद को फाँद सकता था|


"तेरे हुस्न का दीवाना तो हर कोई होगा लेकिन मेरे जैसी दीवानगी हर किसी में नहीं होगी।"

मेरी एक के बाद एक शायरी सुन ऋतू का शर्म के मारे बुरा हाल था, उसके गाल और कान पूरे लाल हो गए थे| वो बस नजरें झुकाये सब सुन रही थी और अपने आप को मेरी बाहों में बहक जाने से रोक रही थी| वो कुछ सोचती हुई मेरे नजदीक आई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "हमे कहाँ मालूम था की ख़ूबसूरती क्या होती है? आज आपने हमारी तारीफ कर हमें हसीन बना दिया|" उसके इस शेर पर मेरा मन किया की उसके हसीन लबों को चूम लूँ पर फिर खुद पर काबू पाया| "पहली बार के लिए शेर अच्छा था!" मैंने ऋतू के शेर की तारीफ करते हुए कहा| मैंने ऋतू का दाहिना हाथ पकड़ा और टेबल पर से चूड़ियाँ उठा कर उसे पहनाने लगा, साइज थोड़ा बड़ा था पर चूँकि imitation जेवेलरी थी तो वो फिर भी अच्छी लग रही थी| "ये तो मैं लेना भूल ही गई थी!" ऋतू ने कहा पर मैंने तो इस दिन की प्लानिंग पहले से ही कर रखी थी| बस एक चीज बची थी वो था सिन्दूर! मैंने आते समय वो भी ले लिया था, डिब्बी से एक चुटकी सिन्दूर निकाल के मैंने ऋतू की मांग में भरा तो ऋतू ने अपनी आँखें बंद कर लीन और आसूँ के एक बूँद निकल कर नीचे जा गिरी| "Hey??? क्या हुआ मेरी जान?" ऋतू ने खुद को रोने से रोका और फिर बोली; "आज से मैं आपकी permanent wife बन चुकी हूँ!" उसने थोड़ा माहौल हल्का करने के लिए कहा| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, उसका मतलब था की आज से हम दोनों का प्यार पुख्ता रूप ले चूका है और अब हम पति-पत्नी बन चुके हैं| "No...there's something missing!" मेरे मुँह से ये सुन ऋतू सोच में पड़ गई, पर जब मैंने जेब से उसके लिए लिया हुआ मंगलसूत्र निकाला तो वो सब समझ गई| "ये तो नया है! वो पुराना कहाँ गया?" ऋतू ने पुछा| "जान वो तो नकली था! ये असली वाला है|" ये सुन कर ऋतू चौंक गई और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोली; "ये सोने का है? पर पैसे?" मैं जवाब देने से पहले ही ऋतू के पीछे आया और उसे अपने हाथों से मंगलसूत्र पहनाते हुए कहा; "मेरी जान से तो महँगा नहीं हो सकता ना?" ऋतू ये सुन कर चुप हो गई और आगे कुछ नहीं बोली, वो जानती थी की आगे अगर कुछ बोली तो मैं नाराज हो जाऊँगा| वो फिर से मुस्कुराने लगी; "Technically now we're husband and wife!!!" ये सुन कर ऋतू बहुत-बहुत खुश हुई और हम दोनों का कतई मन नहीं था की ये समां कभी खत्म हो पर पूजा के लिए तो जाना ही था!


ख़ुशी-ख़ुशी ऋतू ने पूजा का सारा सामान एक बड़ी थाली में इकठ्ठा किया और हम घर से निकले| किसी संस्था ने एक मंदिर के बाहर बहुत बड़ा पंडाल लगाया था और वहीँ पर पूजा होनी थी| हम दोनों भी वहाँ पहुँच गए, वहीँ पर हमें रिंकी भाभी मिलीं जिससे ऋतू को एक कंपनी मिल गई| पूरे विधि-विधान से पूजा और कथा हुई और रात 8 बजे हम घर लौटे| अब एक दिक्कत थी, वो ये की चंद्र उदय होने के समय बिल्डिंग की सभी औरतें और आदमी वहाँ इकठ्ठा होने वाले थे और ऐसे में हम दोनों का वहाँ जाना शायद किसी न किसी को खलता| मैं अभी ये सोच ही रहा था की रिंकी भाभी ने दरवाजा खटखटाया; "अरे रितिका तू यहाँ क्या कर रही है, चल जल्दी से ऊपर|" अब ऋतू तो कब से ऊपर जाना चाहती थी पर मैंने ही उसे मना कर दिया था; "भाभी वो... अभी वहाँ सब होंगे तो.... हम दोनों को देख कर कहीं कुछ ऐसा वैसा बोल दिया तो मुझे गुस्सा आ जायेगा!" मैंने अपनी चिंता जताई|

"कोई कुछ नहीं कहेगा, मैं बोल दूँगी ये मेरी बहन है और तुम तो मेरे छोटे देवर जैसे हो| पापा भी ऊपर ही हैं कोई कुछ बोला तो जानते हो ना पापा कैसे बरस पड़ते हैं?" भाभी की बात सुन कर मन को चैन आया की सुभाष अंकल तो सब जानते ही हैं की हम दोनों की शादी होने वाली है| इसलिए हम तीनों ऊपर आ गए और यहाँ तो लोगों का ताँता लगा हुआ है| एक-एक कर सब हम दोनों से मिले, इधर ऋतू ने जा कर सुभाष अंकल जी के पेअर छुए और उनका आशीर्वाद लिया| काफी लोगों से तो मैं आज पहली बार मिल रहा था इसका कारन था की मेरे पास कभी किसी से घुलने-मिलने का समय ही नहीं होता था| ऋतू के कॉलेज से पहले भी मैं घर पर बहुत कम ही रहता था, अकेले रहने से तो बाहर घूमना अच्छा था इसलिए मैं अक्सर फ्री टाइम में खाने-पीने निकल जाता और रात को आ कर सो जाया करता था| आज जब सब से मिला तो सब यही कह रहे थे की एक ही बिल्डिंग में रह कर कभी मिले नहीं| इधर ऋतू भाभी के साथ बाकी सब से मिलने में व्यस्त थी, भाभी सब को यही कह रही थी की हम दोनों की शादी होने वाली है और ये ऋतू का पहला करवाचौथ है| सब हैरान थे की भला ये क्या बात हुई की शादी के पहले ही करवाचौथ तो भाभी ही बीच-बचाव करते हुए बोली; "जब दिल मिल गए हैं तो ये रस्में निभानी ही चाहिए|"


खेर आखिर कर चाँद निकल ही आया और सब आदमी अपनी-अपनी बीवियों के पास जा कर खड़े हो गए| आज पहलीबार था की हम दोनों यूँ सबके सामने प्रेमी नहीं बल्कि पति-पत्नी बन के विधि-विधान से पूजा कर रहे हैं| शर्म से ऋतू पूरी लाल हो चुकी थी और इधर थोड़ी-थोड़ी शर्म मुझे भी आने लगी थी| ऋतू ने जल रहे दीपक को छन्नी में रख के पहले चाँद को देखा और फिर मुझे देखने लगी| उस छन्नी से मुझे देखते ही उसकी आँखें बड़ी होगी ऐसा लगा जैसे वो मुझे अपनी ही आँखों में बसा लेना चाहती हो| उस एक पल के लिए हम दोनों बस एक दूसरे को देखे जा रहे थे, बाकी वहाँ कौन क्या कर रहा है उससे हमें कोई सरोकार नहीं था| आखिर भाभी ने हँसते हुए ही हम दोनों की तन्द्रा भंग की; "ओ मैडम! देखती रहोगी की आगे पूजा भी करोगी?" तब जा कर हम दोनों का ध्यान भंग हुआ, मैं तो मुस्कुरा रहा था और ऋतू शर्म से लाल हो गई! भाभी के बताये हुए तरीके से उसने पूजा की और अंत में मेरे पाँव छुए| अब ये पहली बार था की ऋतू मेरे पाँव छू रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं उसे क्या आशीर्वाद दूँ? मैंने बस अपना हाथ उसके सर पर रख दिया और दिल ही दिल में कामना करने लगा की मैं उसे एक अच्छा और सुखद जीवन दूँ| बाकी सब लोग अपनी पत्नियों को पानी पिला रहे थे तो मैंने भी पानी का गिलास उठा कर ऋतू को पानी पिलाया और उसके बाद उसने भी मुझे पानी पिलाया| अब ये देख कर भाभी फिर से दोनों की टांग खींचने आ गई; "अच्छा जी!!! मानु ने भी व्रत रखा था? वाह भाई वाह!" जिस किसी ने भी ये सुना वो हँसने लगा, सुभाष अंकल बोले; "बेटा यूँ ही हँसते-खेलते रहो और जल्दी से शादी कर लो|"

"बस अंकल जी 2 साल और फिर तो शादी ...!!!" मैंने भी हँसते हुए कहा| ऋतू का शर्माना जारी था.... सारे लोग एक-एक कर नीचे आ गए|
josef
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Re: काला इश्क़

Post by josef »

update 50

नीचे आ कर मैंने सबसे पहले ऋतू के लिए दूध बनाया, ये पहलीबार था की उसने ऐसा व्रत रखा हो और मुझ उसके स्वास्थ्य की बहुत चिंता थी| ऋतू ने बहुत मना किया की इसकी कोई जर्रूरत नहीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती दूध पिला दिया| "आप भी पियो न, व्रत तो आपने भी रखा था ना?" ऋतू ने कहा| "जान! मैं अभी अगर दूध पी लूँगा तो खाना नहीं खाऊँगा, इसलिए मेरी चिंता मत कर| अब ये बता की खाना क्या खाओगी?" मैंने खाना आर्डर करने के इरादे से कहा पर ऋतू एक दम से उठ कड़ी हुई; "कोई आर्डर-वॉर्डर करने की जर्रूरत नहीं है, मैं बनाऊँगी खाना!" ऋतू ने लाजवाब खाना बनाया और फिर हमेशा की तरह हमने एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाया| अब बारी थी सोने की और ऋतू को सुबह से देख कर ही मेरा मन मचल रहा था| कुछ यही हाल ऋतू का भी था जो कब से मेरी बाहों में सिमट जाना चाहती थी|

ऋतू अपनी साडी उतारने लगी, उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था पर मेरी आँखें तो उसके बदन से चिपकी हुई थीं| ऋतू ने साडी उतारी और उसे फोल्ड करने लगी, पेटीकोट और ब्लाउज में आज वो खर ढा रही थी| मुझसे रुका न गया तो मैं उठा और जा कर उसके पीछे उससे सट कर खड़ा हो गया| मेरे जिस्म का एहसास पाते ही ऋतू सिंहर गई और उसके हाथ साडी फोल्ड करते हुए रूक गए| मैंने अपन दोनों हाथों से ऋतू की कमर को थामा और उसकी गर्दन को चूमा और फिर जैसे मुझे कुछ याद आया और मैं ऋतू को छोड़ कर किचन में गया| इधर ऋतू हैरान-परेशान से खड़ी अपने सवालों का जवाब ढूँढने लगी, की आखिर क्यों मैं उसे ऐसे छोड़ कर किचन में चला गया| मैं जब किचन से लौटा तो मेरे हाथ में एक पानी का गिलास था और ऋतू की आँखों में सवाल| "आज दवाई नहीं ली ना?" मैंने ऋतू को उसकी प्रेगनेंसी वाली दवाई की याद दिलाई और उसने फटाफट अपने बैग से दवाई निकाली और पानी के साथ खा ली| अब और कोई भी काम नहीं बचा था, ऋतू ने साडी आधी ही फोल्ड की थी और जब वो उसे दुबारा फोल्ड करने को झुकी तो मैंने उसका हाथ पकड़ के झटके से अपनी तरफ खींचा| ऋतू सीधा मेरे सीने से आ लगी और अपन असर मेरे सीने में छुपा लिया| अब तो मेरे लिए सब्र कर पाना मुश्किल था, मैंने ऋतू को गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटा दिया| ऋतू ने भी फटाफट अपना ब्लाउज खोलना शुरू किया और इधर मैंने उसके पेटीकोट का नाडा खोल दिया| ब्लाउज ऋतू ने निकाला तो उसका पेटीकोट मैंने निकाल कर कुर्सी पर रख दिया| अब ऋतू सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी और मैं अभी भी पूरे कपड़ों में था, मैंने एक-एक कर सारे कपडे निकाल कर कुर्सी पर रखे| ऋतू उठ के बैठी और अपनी ब्रा का हुक खोल उसे निकाल दिया, अभी मैं ये कपडे कुर्सी पर रख ही रहा था की ऋतू ने मेरे कच्छे के ऊपर से मेरे लंड को चूम लिया और अपनी दोनों हाथों की उँगलियों को मेरे कच्छे की इलास्टिक में फँसा कर नीचे सरका दिया| आगे का काम मैंने खुद ही किया और कच्छा निकाल कर कुर्सी पर रख दिया|

"क्या बात है जानू! आज तो सारे कपडे आप कुर्सी पर रख रहे हो?"

"कल मेरी जान को उठा के ना रखने पड़े इसलिए कुर्सी पर रख रहा हूँ|" ये कहते हुए मैं ऋतू की बगल में लेट गया| ऋतू ने एकदम से मेरी तरफ करवट ली और मेरे होठों को Kiss करने लगी| "आज पार्लर के बाहर आप बहुत naughty हो गये थे?" ऋतू ने मेरे ऊपर वाले होंठ को चूमते हुए कहा| "पहले तुम naughty हो जाए करती थी अब मैं हो जाता हूँ!" मैंने जवाब दिया और ऋतू को अपनी बुर मेरे मुँह पर रख कर बैठने को कहा| ऋतू बैठी तो सही पर उसका मुँह मेरे लंड की तरफ था और इससे पहले की मैं उसकी बुर को अपनी जीभ से छु पाता वो आगे को झुक गई और तब मुझे एहसास हुआ की ऋतू ने अब भी पैंटी पहनी हुई थी| हम दोनों इतना बेसब्र हो गए थे की ऋतू की पैंटी उतारने के बारे में भूल गए थे| मेरा मन आज उसकी बुर का स्वाद चखने का था, ऐसा लग रहा था जैसे एक अरसा हुआ उसकी बुर का स्वाद चखे! मैंने ऋतू को सीधा बैठने को कहा, तो वो अपनी बुर मेरे मुँह पर टिका कर बैठ गई|

फिर मैंने उसे अपनी पैंटी को उसके बुर के छेद के ऊपर से हटाने को कहा ताकि मैं उसे अच्छे से चाट सकूँ| ऋतू ने अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी पैंटी को इस कदर साइड किया की मुझे ऋतू के बुर के द्वार साफ़ नजर आये| मैंने अपनी जीब निकाल कर ऋतू की बुर को चाटना शुरू किया, "ससससस...आह...सस्म्ममं मममम मममम" की आवाज मेरे कमरे में गूँजने लगी| मस्ती आकर ऋतू ने अपनी बुर को मेरे मुँह पर आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया| उसके ऐसा करने से मेरे होठों और उसकी बुर की पंखड़ियों में घर्षण पैदा होता और ऋतू सिस्याने लगती! अगले पांच मिनट तक ऋतू अपनी बुर को इसी तरह अपनी बुर को मेरे मुँह पर घिसती रही पर अब भी एक अड़चन थी|

ऋतू अब भी अपनी पैंटी पकड़ के बैठी थी जिससे उसे वो स्पीड हासिल नहीं हो रही थी जो वो चाहती थी, ऋतू उठी और गुस्से से अपनी पैंटी निकाल फेंकी और दुबारा मेरे मुँह पर बैठ गई| इस बार आसन दूसरा ग्रहण किया, इस बार वो मेरी तरफ मुँह कर के बैठी, उसका दायाँ हाथ मेरे मस्तक पर था और बाएं हाथ को उसने मेरे पेट पर रख कर सहारा लिया ताकि वो गिर ना जाए|

मैंने अपनी जीभ निकल के ऋतू की बुर के अंदर प्रवेश कराई की ऋतू की सिसकारी निकल पड़ी और उसने अपनी कमर को पहले की तरह आगे-पीछे चलाना शुरू कर दिया| ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जीभ मेरे लंड का काम कर रही है और ऋतू की बुर छोड़ रही है| ऋतू की नजर मेरे चेहरे पर टिकी थी और वो ये देख रही थी की मुझे इसमें कितना मज़ा आ रहा है| दस मिनट तक ऋतू बिना रुके लय बद्ध तरीके से अपनी कमर को मेरे होठों पर आगे-पीछे करती रही और मैं उसकी बुर को किसी आइस-क्रीम की तरह चाटता रहा| "ससाह...ममः...मममममम...अअअअअअअअ ...!!!" कर के ऋतू ने पानी छोड़ा जो बहता हुआ मेरे मुँह में भर गया|

ऋतू मेरे ऊपर से लुढ़क कर लेट गई, इधर मेरा लंड पूरी तैयारी में खड़ा था और इंतजार कर रहा था की उसका नंबर कब आएगा? ऋतू कुछ तक गई थी इसलिए वो अपनी साँसों को काबू कर रही थी पर उसकी नजर मेरे लंड पर थी| मैंने अपने लंड को पकड़ा और उसे हिला कर उसे उसके दर्द का एहसास दिलाया| थोड़ा प्यार तो उस बिचारे को भी चाहिए था.....

ऋतू को भी मेरे लंड पर तरस आ गया, या ये कहे की उसके मुँह में पानी आ गया| वो उठ के बैठी मेरे लंड को अपने मुट्ठी में पकड़ के उसका अच्छे से दीदार करने लगी| उसके हाथ लगते ही प्री-कम की एक बूँद लंड के छेद से बाहर आई, ऋतू ने लंड की चमड़ी पकड़ के उसे एक बार ऊपर-नीचे किया तो उस प्री-कम की बूँद ने पूरे लंड को गीला कर दिया|

ऋतू ने अपने गर्म-गर्म साँस का भभका मेरे लंड पर मारा तो उसमें खून का प्रवाह तेज हो गया| ऋतू ने आधा लंड अपने मुँह भरा और अपने मुँह को मेरे लंड पर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया| धीरे-धीरे ऋतू मेरे लंड को जितना हो सके उतना अपने मुँह में और अंदर लेती जा रही थी| फिर कुछ पलों के लिए ऋतू ने जोश में आ कर मेरा पूरा लंड अपने गले तक उतार लिया और कुछ सेकण्ड्स के लिए रूक गई| जब उसे लगा की उसकी सांस रूक रही है तो उसने पूरा लंड अपने मुँह से निकाला| मेरा पूरा लंड उसके थूक से सन गया था और चमकने लगा था| पर उसका मन अभी भरा नहीं था, ऋतू ने अपने हाथ से चमड़ी को आगे-पीछे किया और फिर अपनी जीभ से पूरे लंड को जड़ से ले कर छोर तक चाटने लगी| अगले पल उसने वो किया जिसकी उम्मीद मैंने कभी नहीं की थी, उसने झुक कर मेरे टट्टों (अंडकोष) को अपने मुँह में भर के चूसा! मैं आँखें फाड़े उसे देखने लगा और ऋतू बस मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा दी| ऋतू ने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में लिया और अपने मुँह को फिर से ऊपर-नीचे करते हुए लंड चूसने लगी| आज तो मुझे बहुत मजा आ रहा था और लग रहा था की मैं छूट जाऊँगा इसलिए मैंने ऋतू को रोका और लिटा दिया, उसकी टांगों को चौड़ा कर मैं बीच में आ गया| लंड को उसकी बुर पर सेट किया और एक झटका मार के अंदर ठेल दिया| चूँकि मेरा लंड पहले से ही ऋतू के थूक और लार से भीगा हुआ था इसलिए मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी| एक धक्का और आधे से ज्यादा लंड अंदर पहुँच गया!

ऋतू की बुर अंदर से बहुत गीली हो चुकी थी और वो मेरा पूरा लंड खाना चाहती थी| इसलिए अगले धक्के से पूरा लंड अंदर चला गया "आह! ममममम ममममममममम ...ससस..!!!" अंदर की गर्माहट पा कर लंड प्रफुल्लित हो उठा और मैंने अब अपने लंड को जड़ तक अंदर पेलना शुरू कर दिया| जब लंड अंदर पूरा पहुँचता तो ऋतू की बुर अंदर से टाइट हो जाती और लंड बाहर निकालते ही उसकी बुर अंदर से ढीली हो जाती| अगले पाँच मिनट तक मैं इसी तरह ऋतू की बुर चुदाई करता रहा| ऋतू की आँखों में मुझे कभी न खत्म होने वाली प्यास नजर आ रही थी इसलिए मैं उस पर झुका और उसके होठों को Kiss किया, मैंने वापस खड़ा होना चाहा पर ऋतू ने अपने अपनी एक बाँह को मेरे गले में डाल दिया और मुझे अपने ऊपर ही झुकाये रखा|

मैं उसके ऊपर झुके हुए ही अपनी कमर को चलाता रहा और ऋतू की बुर से पूछ-पूछ की आवाज आती रही| "स्सम्म्म हहहह ...मामामा..आह!" कहते हुए ऋतू उन्माद से भरने लगी! उसकी बुर में घर्षण बढ़ चूका था और वो किसी भी वक़्त छूट सकती थी पर मुझे अभी और समय चाहिए था, इतने दिनों से जो प्यासा था! मैं रूका और ऋतू को पलट के उसे घुटनों के बल आगे को झुका दिया| ऋतू के घुटने मुड़ के उसकी छाती से दबे हुए थे, मैंने पीछे से ऋतू के कूल्हों को पकड़ के उसके बुर के सुराख को उजागर किया और अपना लंड अंदर पेल दिया!

हमला इतना तीव्र था की ऋतू दर्द से तड़प उठी; "अअअअअअअहहहहहहहह !!!" चिल्लाते हुए उसने बिस्तर की चादर को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया| मेरा पूरा लंड ऋतू की बुर में उतर चूका था इसलिए मैंने बिना रुके धक्के मारने शुरू कर दिए| हर धक्के से ऋतू का जिस्म कांपने लगा था और आनंद और दर्द के मिले जुले एहसास ने उसे छूटने के कगार पर पहुँचा दिया| मैं भी स्खलित होने के बहुत नजदीक था इसलिए मेरे धक्कों की गति और बढ़ गई थी! अगले कुछ पलों में पहले मैं और फिर ऋतू एक साथ स्खलित हुए और एक दूसरे से अलग हो कर पस्त हो गए| सांसें दुरुस्त हुई तो मैंने ऋतू को देखा, उसके चेहरे पर संतुष्टि की ख़ुशी दिखी| "कभी-कभी जान निकाल देते हो आप!" ऋतू ने प्यार भरी शिक़ायत की तो जवाब मैंने अपने दोनों कान पकडे और उसे सॉरी कहा| "पर मज़ा भी तभी आता है!" ऋतू ने शर्माते हुए कहा| मैंने उठ के ऋतू को अपने ऊपर खींच लिया और उसके गालों को चूमा और हम दोनों ऐसे ही सो गए|
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SATISH
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Re: काला इश्क़

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(^^^-1$i7) 😘 😱 बहुत मस्त स्टोरी है भाई लाजवाब हॉट और सेक्सी मजा आया स्टोरी जारी रखीये और मजा बांटते रहीये 😋
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