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Adultery ओह माय फ़किंग गॉड

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rajsharma
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ओह माय फ़किंग गॉड




हेल्लो, सब मुझे बिन्नी नाम से पुकारते है. पूरा नाम यहाँ बताने की जरूरत नहीं है. मैंने काफ़ी सारी कहानिया पढ़ी है. अब मुझे लगता है कि मेरी कहानी भी बतानी चाहिए. ज्यादा वक्त नहीं लेते हुए मैं अपने बारे में बताता हूँ. मै 28 साल का नौजवान हूँ. मैं 5"10' लंबा और एक अच्छे चेहरे वाला लड़का हूँ. फिलहाल मैं सॉफ्टवेयर डेवलपर के तौर पर पिछले 3 साल से काम कर रहा हूँ. आपको पता चल गया होगा की मेरी जॉब कितनी बोरिंग होगी. सच में मैं काफी बोर हो गया था. तो बाकया इस गर्मी की है.

होली के बाद में घर आया था. मेरे घर में ऊपर मंजिल का काम चल रहा था. इसलिए में ऑफिस से छुट्टी लेकर कुछ दिनों के लिए घर पर ही रुक गया. काम काफी हद तक हो चूका था. कुछ छुट-पुट काम बचा हुआ था जो धीरे-धीरे चल रहा था. मेरे घर पर रुकने से मेरे परिवार को फुर्सत मिला और सब मिल कर रिश्तेदारों के पास घुमने चले गए. मैं घर में अकेला काफी बोर हो रहा था. बस टीवी और इन्टरनेट से दिन काट रहा था. मकान का काम भी चल रहा था.

हमारे यहाँ सुबह 9 बजे मिस्त्री-मजदूर आ जाते है. दोपहर को 1 बजे खाना खाने चले जाते है. घन्टे भर के आराम के बाद दुबारा काम पे लगते है और शाम को 5 बजे छुट्टी होती है. यहाँ औरतें भी काम करती है. मैं अनमने ढंग से कभी मिस्त्री का काम देखता तो कभी टीवी. इस तरह से दिन कट रहा था. गर्मी की वजह से बाहर भी नहीं जाता था. एक दिन काम कम होने की वजह से सिर्फ एक मिस्त्री, दो मर्द मजदूर और एक औरत मजदूर आये थे. जब मजदूरिन काम कर रही थी, तो उसकी साड़ी का आँचल थोड़ा गिर गया था और ब्लाउज दिख रहा था, जो की हाथ उठाने के समय ऊपर उठ जा रहा था. उस समय उसकी चुचिओं का निचला हिस्सा बाहर आ रहा था. मैं चोर नजरों से यह देख रहा था. एक दो बार देखने के बाद मजदूरिन से मेरी नजर मिल गयी. उसे मेरी चोरी का पता चल गया. उसने साड़ी ठीक की और बिना मेरी तरफ देखे काम करने लगी. मैं घर के अन्दर चला गया.

दोपहर को सब खाना खाने पास के चौक पे चले गए. सिर्फ मजदूरिन नहीं गयी. वह अपना खाना घर से लाती थी और यहीं खाती थी. वोह बाहर बरामदे में खाना खा रही थी और मैं अन्दर टीवी देख रहा था. अचानक वो अन्दर आई और बोली – “बाबु, पीने का पानी मिलेगा?”

मै किचन से पानी का जग ले उसे दिए. वो खड़े होकर जग से पानी पीने लगी. पानी पीते वक्त काफी पानी उसके छाती में गिर गया. पानी पिने के बाद उसने जग मुझे लौटाया और साड़ी व ब्लाउज में गिरा पानी पोंछने लगी. पानी से उसका ब्लाउज चुचियों से चिपक गया था, जिससे उसके खड़े निप्पल दिख रहे थे. यह देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया था. गर्मी में घर में ज्यादातर बनियान और बॉक्सर ही पहनता था. मेरा लंड बॉक्सर में तम्बू बना रहा था और वो इसे देख रही थी. मैं शर्म से बॉक्सर को ठीक करने लगा.

उसने बड़े आराम से पूछा – “बाबु, तुम्हारी शादी हो गयी है?”

मैं कहा – “नहीं”.

तो उसने कहा – “तो इसको कैसे शांत करते हो? हाथ से हिलाते हो?” मैं तो सन्न रह गया. जवाब देते नहीं बन रहा था.

फिर उसने मेरे बॉक्सर पर हाथ फेरते हुए कहा – “चलो, आज मैं हिला देती हूँ.” फिर उसने मुझे धक्के देकर कुर्सी पे बैठा दिया और मेरा बॉक्सर उतरने लगी. निचे मैंने कुछ नहीं पहना था. मेरा लंड उछल कर बाहर आ गया. उसने दोनों हथेलियों पे ढेर सारा थूक लिया और लंड पे मलने लगी. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह सपना है या हकीकत? मैं आंख बंद कर सिसकारी ले रहा था. मजदूरिन ने दोनों हाथे से मेरे लंड को धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगी. कभी वो मेरे सुपारा को दबाती, तो कभी मेरे गोलियों को. मैं तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था. अचानक उसने अपनी गति बढ़ा दी. मै आँख खोल कर देखा. वो मुझे देखकर मुस्कुरा दी.

10 मिनट के बाद मेरा पूरा शरीर जकड गया. मेरी धड़कन बढ़ गयी और एक तेज झटके के साथ मेरा बांध छुट गया. मेरा सारा का सारा वीर्य उसकी छाती और फ़र्श में जा गिरा. वो अब भी मेरी लिंग हो हिलाए जा रही थी. मेरे लंड से सारा रस निचोड़ने के बाद उसने अपनी साडी ठीक की और बाहर चली गयी. जाते वक्त मुस्कुराते हुए बोली – “बाबु, साफ़ कर लो.”

कुछ देर बाद सारे लोग आ गए. वह भी काम में लग गयी. वह वैसे वर्ताव कर रही थी जैसे कुछ हुआ ही नहीं. शाम को मैंने सारे लोगो का मेहताना दिया. पैसे लेते वक्त वह बोली – “बाबु, मालकिन नहीं है?”

मैंने कहा – “नहीं, माँ रिश्तेदारों के यहाँ गयी है. 2-3 दिनों में आ जाएगी.”

उसने बिल्कुल साधारण भाव से कहा – “ठीक है.” उस रात को मै सो नहीं पाया. हमेशा उसकी चुचिओं का ख्याल आ रहा था और मेरा लंड खड़ा हो रहा था. रात को मैंने बिस्तर पर ही हस्त-मैथुन किया और सो गया.

सुबह बाहर के दरवाजे की घन्टी की आवाज से मेरी नींद खुली. मुझे देर से उठने की आदत है. मैं झुंझला गया की इतनी सुबह कौन परेशान करने आ गया. घड़ी देखा, साढ़े सात बज रहे थे. मैंने दरवाजा खोला. देखा वह मजदूरिन खड़ी है बाहर. मैं तो हैरान हो गया की इतनी जल्दी कैसे आ गयी. सारे मिस्त्री-मजदूर 9 बजे के बाद ही आते है. मेरे दरवाजा खोलते ही वह अन्दर आ गयी. मैंने उसे गौर से देखा. वह आज बिल्कुल साफ़-सुथरी होकर आई थी. साफ़ कपड़े भी पहने थे. थोड़ा श्रृंगार भी की थी. मैंने अंदाजे से उसकी उम्र लगभग 28-30 होगी. छोटा कद, गदराई बदन, सांवला चेहरा, बड़ी आँखे, बड़े लेकिन सुडौल स्तन, सपाट पेट और औसत गांड. कुल मिलाकर औरत के हिसाब से ख़राब नहीं थी.

अन्दर आते वह देखकर मुस्कुराई, मेरे लंड पर हल्की थपकी देके पूछा – “रात को नींद कैसी रही?”

मैंने साधारण ढंग से कहा – “ठीक था.” मैंने पूछा – “इतनी जल्दी काम पे आ गयी? अभी तो कोई भी नहीं आता है.”

उसने एक सेक्सी मुस्कान देते हुए कहा – “बाबु, आप बड़े भोले हो. कुछ काम सबके सामने नहीं किये जाते है.”

जवाब में मैं भी मुस्कुराया.
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(उलझन मोहब्बत की ) ......(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

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मुझे अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था. आखिर मेरी बोरिंग जिंदगी में पहली बार कुछ दिलचस्प हो रहा था.

मैंने पूछा – “तुम्हारा नाम क्या है?”

उसने मुस्कुराते हुए कहा – “सोमलता”.

“अच्छा नाम है”, मैंने भी मुस्कुराते हुए जबाब दिया. वोह अन्दर आई और एक कुर्सी पर बैठ गयी. मैंने अभी तक ब्रश भी नहीं किया था. मैं कहा – “सुनो सोमलता, तुम बैठो. मैं जल्दी से ब्रश कर आता हूँ.”

वह मेरी और देखी, मुस्कुराई और बोली – “अरे बाबु, बाद में नहा ही लेना. अभी हमारे पास ज्यादा समय नहीं है.” और हल्की सी आँख भी मारी.

मैं जोर से हंसा. “एक कप चाय हो सकती है?” मैंने हँसते हुए पूछा.

“हाँ, क्यों नहीं”, उसने भी हँसते हुए कहा और मेरे साथ रसोई में आ गयी.

मै गैस ओवन चालू कर चाय बनाने लगा. वह मेरे पीछे खड़ी थी. उसने कहा – “बाबु तुम तो बाहर बड़े शहर में रहते हो. अच्छी नौकरी भी करते हो. जरूर तुम्हारी कोई लड़की दोस्त होगी. वोह क्या कहते है अंग्रेजी में? हाँ, गर्लफ्रेंड”.

मुझे हंसी आई. मैंने कहा – “हाँ थी. अब नहीं है.”

उसने बड़ी मासूमियत से पूछा – “क्यों?”

मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या जबाब दूँ. मैं आखिर में कहा – “यार, हमारे बीच कुछ सही से जम नहीं रहा था इसलिए अलग हो गया”

उसने एक गहरी साँस लेकर कहा – “चलो अच्छा हुआ बाबु. जब नहीं जमे तो अलग होना ही अच्छा होता है.” फिर उसने चुहलबाजी से पूछा – “तो कब से यह तुम्हारा लंड चूत के लिए तरस रहा है?” और मेरे लंड को बॉक्सर के ऊपर से एक थपकी दी.

मै चाय कप में उड़ेलते हुए कहा – “लगभग 8 महीने हो गए”.

“ओ, बेचारा. कब से तरस रहा है”, यह कह उसने मेरे लंड को कपड़े के ऊपर से मसल दिया.

“अआह्ह”, मेरे मुंह से एक मीठी सिसकारी निकली. “मेरी छोडो. तुम अपने बारे में बताओ. तुमने मुझे कैसे अपने जाल में फंसा लिया?”, मैंने चाय का कप आगे बढ़ाते हुए पूछा और आँख मारी. हम सोफे पे बैठ गए अपने-अपने चाय के कप के साथ.

उसने चाय की एक चुस्की ली और सोफे पर पीठ गड़ाते हुए आराम से बैठ गयी. बैठने के दौरान उसकी साड़ी का पल्लू थोड़ा निचे खिसक गया. उसने गहरे बैंगनी रंग की ब्लाउज पहनी थी. निचे का सफ़ेद ब्रा का पता ब्लाउज के ऊपर से चल रहा था. उसकी चुचियाँ ब्रा पहनने की वजह से कसी हुई लग रही थी. उसने गहरे गले में कोई आदिवासी टैटू बनाया था, जो आदिवासी औरतो में आम बात है.

वह मेरी आँखों में देखी और बताना शुरू किया – “बाबु, 5 साल पहले मेरी शादी हुई. मेरा मरद दिल्ली में काम करता था. मै भी कुछ महीने वहां रही उसके साथ, शादी के बाद. फिर वोह मुझे अपने गाँव छोड़ गया. एक साल हो गए, न कभी घर आया न ही कोई खबर किया. सब कहते है कि उसने वहां शादी-बच्चे कर लिया है. मेरे सास-ससुर भी मर गए. मैं अकेली रहती हूँ और पेट पलने के लिए मजदूरी करती हूँ. गाँव के मर्दों से बहुत डर लगता है बाबु. सब अकेली औरत समझकर हमेशा पीछे लगे रहते है. दो दिन पहले जब मैं काम कर रही थी. मैं सामान लाने घर के पिछवाड़े में गयी. तुम तब पुराने बाथरूम में नहाने गए थे. मैंने जब टूटे दरवाजे से देखी तो तुम अपने लंड से खेल रहे थे. मैं समझ गयी की तुम्हारा भी मेरा जैसा ही हाल है. तुमसे चुदवाने से मुझे कोई डर भी नहीं है. और तुम तो अच्छे आदमी हो बाबु.” उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ मुस्कुरा दी.

मुझे न जाने क्यों उसपे बड़ा प्यार आ रहा था. इसमें हवस जैसी कोई बात नहीं थी. यह तो दिल की बात थी. मैं अपने आप पर ही हंस दिया.

सोमलता ने उत्सुकता से पूछा – “क्या हुआ बाबु?”

मैंने कहा – “कुछ नहीं.”

वह थोड़ा उदास हो कहा – “जानती हूँ. तुम सोच रहे होगे कि मुझ जैसी 35 साल की गंवार औरत के साथ क्या कर रहा हूँ. यही ना?”

मैं चाय का कप मेज पर रखा और उसके और नजदीक जाकर उसके दोनों कंधे पर हाथ रखकर कहा – “नहीं रे. मुझे अपने किस्मत पर भरोसा नहीं हो रहा है. इसलिए हंस रहा था. सबकुछ इतना अचानक हो रहा है ना.”

उसने अपना चेहरा मेरे सामने की और मेरी आँखों में गहराई से देखकर कहा – “मजाक मत करो बाबु. मैं कुछ पाने के लिए यह नहीं कर रही हूँ. तुम सच में मुझको अच्छे लगते हो.”

मैं दोनों हथेलियों से उसके नरम गालो को प्यार से दबाया और उसके होंठो को बिल्कुल अपने होंठो के पास लाते हुए कहा – “मुझे पता है रे.”

वह थोड़ा शरमाते हुए मुस्कुरा दी. हमारे होंठ इतने पास-पास थे की हमें एक-दुसरे के गर्म सांसो का अनुभव हो रहा था. अब मैंने अपने होंठो को उसके होंठो पर रख दिया. सोमलता की लम्बाई मुझसे लगभग एक फीट कम थी. मुझे झुकना पड़ा उसके होंठो को ठीक से पाने के लिए. उसके दोनों बांहों से मेरी कमर को कास कर पकड़ लिया. मेरी दोनों हथेलियाँ अभी भी उसकी गालो को थामे हुए थी.

सोमलता अपने आँखों और होठों को बंद किये हुए थी. मैं उसकी बाहरी होंठों को जोर-जोर से चूस रहा था. थोड़ी देर में उसने अपने होंठो को अलग किया और उसके उसके मुँह से अजीब सी तेज महक आई. शायद यह कच्चे प्याज की महक थी. मै अपने मुँह को परे हटा दिया. वह आँख खोलकर नजर मिलकर बोली – “क्या हुआ बाबु? अच्छा नहीं लगा?”

मै बस मुस्कुराकर रह गया. शायद उसको असली बात का पता चल गया. वह थोड़ा उदास हो गयी. मैंने उसको बाँहों के कसकर भर लिया और बड़े प्यार से कहा – “सोमलता रानी, कोई बात नहीं. मुझे तुम्हारी महक अच्छी लगी. बस आदत नहीं है ना” यह कहकर मैंने उसकी गांड को कसकर दबाया.

वह थोड़ा शरमाकर बोली – “बाबु तुम बड़े बदमाश हो” और मै जोर से हंस दिया. मैंने अपने होंठो को उसके होंठो से मिलाया और अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दिया.

सोमलता मेरे जीभ को धीरे-धीरे चूस रही थी. मैं तो जैसे सातवे आसमान में था. मै अपने हाथो को उसकी पीठ पर ले गया. उसकी पीठ नरम नहीं थी. थोड़ा सख्त था, क्योंकि वह मजदूरिन थी. लेकिन उसकी त्वचा काफी चिकनी थी. मैं उसकी पीठ को सहला रहा था और बीच-बीच में ब्लाउज के अन्दर ऊँगली डालकर उसकी ब्रा की फीते को खींचता भी था. वह तो जैसे पुरी तरह से मुझ में खो गयी थी. हम लगभग 15 मिनट से चुम्मा-चाटी कर रहे थे. अचानक वह रुक गयी और दोनों हाथों से मेरी छाती पर हल्का सा धक्का देकर अलग हो गयी.

मैंने हैरानी से पूछा – “क्या हुआ रानी?”

वह मेरी बॉक्सर की बॉर्डर को खींच कर बोली – “बाबु, ज्यादा समय नहीं. सारे काम करने वाले आ जायेंगे. हमे जल्दी काम निपटाना होगा. चलो तुम्हारे कमरे में चलते है.” वह बॉक्सर के साथ मुझे खीचने लगी.

मैं बोला – “मेरे कमरे में नहीं. वह कमरा रस्ते के सामने है. बाहर आवाज जाएगी. हम अंदर के कमरे में जायेंगे.” मैंने बाहरी गेट को अन्दर से बंद किया और सोमलता को कमर से पकड़कर अन्दर कमरे में ले गया.

अन्दर का कमरा कभी इस्तेमाल नहीं होता था. एक तो काफी अँधेरा था और सामानों से ठुंसा पड़ा था. कोई खाट भी नहीं था. मै एक गद्दा लाया और फर्श पर बिछाया. मैंने शरारत भरी नज़रो से सोमलता की और देखा. वह भी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी. मैंने उसकी हाथ को खींचकर अपने करीब लाया. उसकी सांसे तेज चल रही थी. मैं काफी जोर से सोमलता को बाँहों में जकड़ा हुआ था. मेरा लंड लोहे जैसा सख्त हो गया था जो उसकी पेट से चिपका हुआ था. अब मैं उसकी चिकनी बदन का दर्शन करना चाहता था. मैं उसकी साड़ी के पल्लू को हटा ही रहा था कि उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक दिया.

“क्या हुआ रानी?” मैंने पूछा.

वह इठलाते हुए बोली – “बाबु, आप आराम से बैठो. आज सब कुछ मैं करुँगी.”

मैं उसकी बायीं गाल पर एक चुम्मा जड़ते हुए ख़ुशी से कहा – “जैसे तुम्हारी इच्छा रानी” और मैं गद्दे पर गिर गया. दीवार से पीठ टिकाकर मैं ललचाई नजरों से सामने खड़ी सोमलता को देख रहा था. वह मेरी आँखों में देखकर धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थी.

वह धीरे से अपना पल्लू हटायी और साड़ी को समेटते हुए अपने कमर से खोलने लगी. पुरी साड़ी को खोलकर बगल पड़ी कुर्सी में रक्ख दी. अब मेरी रानी ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी. गहरे बैंगनी रंग के ब्लाउज और अंदर से झांकता हुआ सफ़ेद ब्रा, कमाल लग रही थी. निचे सफ़ेद पेटीकोट पहने हुई थी. उसका पेट सपाट था लेकिन नाभि गहरी थी. स्तनों का आकर लगभग 36 होगा जो उसकी ब्लाउज में कैद थी. अब उसने अपनी ब्लाउज के हुक खोलना शुरू किया. मेरा लंड तो बॉक्सर फाड़ने को बेताब था. मैं बॉक्सर के ऊपर से उसको सहला रहा था. धीरे-धीरे सारे हुक खोलने के बाद उसने ब्लाउज को कंधे से सरकाना शुरू किया और मेरी धड़कन बढ़ने लगी. मुझे खुद अपनी धड़कन की आवाज सुनाई दे रही थी. लंड का तो हाल ना पूछो, ऐसा लगता था की शरीर का सारा खून लंड की नसों में आ गया है. अब सोमलता ने पूरा ब्लाउज उतार दिया. मेरे मुँह से निकला – “ओह माय फ़किंग गॉड !”
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अन्दर सफ़ेद ब्रा भले ही पुराना ढंग का हो लेकिन उसकी चूचियां कमाल की थी. ब्रा चुचियों के हिसाब से छोटी थी या फिर चुदास ने चुचियों को ज्यादा बड़ा बना दिया था. पुराना डिजाईन होने के कारण ब्रा चुचियों को पुरी तरह से ढके हुए था. लेकिन दो पहाड़ो के बीच की गहरी घाटी किसी भी लंड को पानी पानी कर सकता था. अब बारी पेटीकोट की थी. उसने एक झटके में नाडा खिंच दिए और पेटीकोट उसके पैरों में गिर गया. पेटीकोट को पैरो से उठाया और कुर्सी में रख दी. नीचे एक चड्डी पहनी थी जो कुछ कुछ मेरे बॉक्सर जैसा लग रहा था. वह चड्डी कम और मर्दों का फुल अंडरवियर ज्यादा लग रहा था जो ढीला-ढाला था. चड्डी से उसकी चूत की हालत का पता नहीं चल रहा था जो मेरी बेकरारी को और बढ़ा रही थी.

उसने अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और मुझे देखते हुए बोली – “कैसा है बाबु?”

मैंने गद्दे से उछलते हुए कहा – “मस्त है रानी. अब आजा अपने राजा के पास.”

वह थोड़ा हंसी और बोली – “बाबु, अभी इन कपड़ो को तो उतारने दो.” और अपने दोनों हथेलियों से बड़े बड़े दूध की टंकियो को मसलने लगी.

अब मेरा लंड मुझे तकलीफ दे रहा था. लंड का सुपारा लाल हो गया था और अपने साइज़ से 1 इंच ज्यादा बड़ा हो गया था. मैं अपनी ज़िन्दगी में कभी इतना ज्यादा उत्तेजित नहीं हुआ. लंड को अब ज्यादा देर बॉक्सर में रखना मुश्किल लग रहा था. मैंने गांड को ऊपर उठाते हुए बॉक्सर को घुटनों में लाया और लंड को बांये हाथ से सहलाने लगा.

यह देखकर सोमलता दौड़ कर मेरे पास आई और बगल में बैठ कर मासूमियत से कहा – “क्या कर रहे हो बाबु? मेरे होते हुए तुम खुद हाथ से हिला रहे हो.”

मैंने उसके गाल पे एक चुम्मी लेकर कहा – “डार्लिंग रानी, यह अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है.” यह कह कर मैंने उसको अपने और खीचा और ब्रा का हूंक खोलने लगा. हुक खुल नहीं रही थी और मैं ज्यादा जोर लगा रहा था.

उसने मुझे हल्का धक्का देकर अलग किया और बोली – “छोड़ो बाबु, तुम तो इसको तोड़ ही डालोगे. मैं खुद ही खोलूंगी.”

मैंने फिर उसे अपनी और खींचते हुए कहा – “क्यों चिंता करती हो रानी, नया लाकर दूंगा. वो भी नया डिजाईन का.”

फिर अलग होते हुए वह बोली – “नहीं बाबु, मैं कहा था ना, मैं कुछ पाने के लिए नहीं कर रही हूँ.” उसने अपनी पीठ मेरी तरफ़ घुमाकर ब्रा का हुक खोली और चड्डी उतारने लगी.

मेरे लंड में तो जैसे आग लग गयी. मैं उसको नंगी देखने के लिए उतावला हो रहा था. अब सोमलता मेरी और घूमी लेकिन उसकी चूचियां दाहिने हाथ से और चूत बांये हाथ से ढके थे. वह काफी धीरे धीरे बढ़ते हुए मेरे पास आई और बगल में बैठ गयी. भले यह औरत गंवार हो लेकिन अपने सेक्स पार्टनर को कैसा छेड़ा जाता है यह अच्छी तरह से जानती थी. वह मेरे सामने चिपककर बैठ गयी लेकिन हाथ अब भी उसकी इज्जत को ढके थे.

मेरी रानी ने अपने रसीले होंठो को मेरे होंठो के ऊपर रखा और मुझे अपनी बांहों के घेरे में कसकर पकड़ लिया. मेरा भी हाथ उसकी नंगी पीठ को सहला रही थी. वह इतनी जोर से मुझे चूम रही थी कि मुझे साँस लेना भी मुश्किल लग रहा था. हम दोनों एक दुसरे के नंगी पीठ को नापने में लगे थे. अब मेरी उँगलियाँ उसकी गांड के दरारों में जा पहुंची. उसकी कमर के नीचे और गांड के दरार में हल्का बाल था. मैं उस दरार को जोर-जोर से रगड़ने लगा. इस रगड़ ने उसको गरम कर दिया. वह बार-बार सिसिकारी मारती और मुझे जोर से कस लेती.

हम 10 मिनट से लगातार होंठो को चुसे जा रहे थे. कभी वह मेरी जीभ को चूसती तो कभी मैं. दोनों के लार मिल कर एक नया स्वाद पैदा कर रहे थे मुँह में. अब सोमलता मेरे होंठो को छोड़ कर मेरी गर्दन को चूमने लगी. चुमते चुमते अब वह मेरी छाती पर आ गयी. मेरी छाती पर बाल है. वह मेरे छाती के निप्पल को चूसती और हाथ से बदन के बाल भी खींचती. जब-जब वह मेरा बाल को खींचती, मुझे मीठा सा दर्द होता. यह मेरी ज़िन्दगी का सबसे अच्छा सेक्स अनुभव था. अब तो वह मुझे उकसाने के लिए मेरे निप्पल को दांत से काटने भी लगी थी. काटने पर मैं “आह” करता और वह मेरे बाल को खींचती. मैं फिर दर्द से “आह” करता. अब मेरा सब्र का बांध टूटने लगा. मैं उसकी चुचियों और चूत का दर्शन करना चाहता था और उसे मसलना चाहता था.


मैं सोमलता को कमर के नीचे से पकड़ा और अपने नीचे लाना चाहा. उसने मुझे रोका और धीरे से कान में बोली – “बाबु, आज तुम मुझे भोगो लेकिन मेरी तरह से. तुम आराम से लेटो, मैं तुम्हे मजा दूंगी. इसके बाद तुम जैसे चाहे वैसे मुझे भोगना. ठीक है.”

“ठीक है मेरी रानी!!!” – मैंने एक और दमदार चुम्मा उसके गाल पर जड़ दिया. अब मैं सीधे होकर गद्दे पर लेट गया और सोमलता के मज़े के लिए तैयार हो गया. अब मेरी रानी सोमलता ने अपने दोनों टांगों को चीरते हुए मेरे कमर पर बैठ गई. उसकी छाती बिल्कुल मेरे मुँह के सामने थी. मैं पहली बार उसकी नंगी रसदार चुचियों को देख रहा था. 36 डी साइज़ की चूचियां थोड़ी-सी लटकी थी, निप्पल का घेरा बड़ा और गहरे स्लेटी रंग का था. सेक्स की चुदास में निप्पल कड़े हो गए थे. मेरी हालत उस प्यासे जैसी हो गयी थी जिसके आँख के सामने ठंडी बियर की बोतलें रखी है लेकिन वो खुद पी नहीं सकता.

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सोमलता मेरी बेकरारी समझ के और नखरे कर रही थी. शरारत भरी नजरो से देखते हुए अपने दोनों हाथों से दूध के डब्बों को मसल रही थी. फिर अपने चुचियों को मेरी आँखों के सामने लाकर बोली – “बाबु, मेरी छातियों में बहुत दर्द है. थोड़ा दबा दो ना.” और मेरा दाहिना हाथ अपनी बायीं मम्मे पर रख दी.

मैं पुरी ताकत से उसको दबाने लगा. उसकी चूचियां जरा-भी नरम नहीं थे. सख्त मम्मे को दबाने में ज्यादा ताकत लगाना पड़ रहा था और मेरी ताकत उसकी मुँह से जोर की सिसकारी निकाल रही थी. मैंने उसके कान ने कहा – “रानी गला सुख रहा है. थोड़ा दूध पिलायोगी?”

वह मेरी कान खींचते हुए बोली – “मालकिन को बताऊ की तुम दूसरी औरतों से दूध मागते हो?”

मैंने हँसते हुए कहा – “बाद में बोलना. अभी मेरो प्यास मत बड़ा. जल्दी कर.”

उस ने उंगलियों से दायें मम्मे को दबाकर निप्पल आगे करते हुए मेरे मुँह में मम्मे घुंसा दी जैसे कोई माँ अपनी बच्चे को दूध पिला रही हो. मैं जोर जोर से निप्पल चूसने लगा और दांत से मम्मे को काटने भी लगा. दूसरा हाथ दूसरी मम्मे को ऐसे दबाये जा रहा था जैसे कोई पके आम से रस निकल रहा हो. मेरी इस चूची-क्रिया ने सोमलता को पुरी तरह से उत्तेजित कर दिया. वह आंखे बंद कर “उम्म्म्म, अआह्ह, माई री, उन्ह्ह्हह” कर रही थी. मैं लगभग 5 मिनट तक मम्मे बदल-बदल कर उसको मज़े देता और मज़े लेता रहा. वह मेरी गर्दन जोर से पकडे रही और बीच-बीच में मुझे झंकझोर भी देती.


अब मैं असली मज़े के लिए तैयार था. मेरा 8 महीने का उपवास टूटने वाला था. मैंने मम्मों को छोड़कर उसकी होंठो पर एक ज़ोरदार चुम्मा डालकर बोला – “अब असली खेल शुरू करे रानी?”

उसने सिर्फ हाँ में सर हिलाया और मुझे भी एक रसदार चुम्मा वापस किया. अब वह मेरी कमर से सरककर मेरे घुटनों पर आ गयी. मेरे लिंग को दोनों हथेलियों में लिया और प्यार से सहलाने लगी. मुँह से ढेर सारा थूक हथेली में लेकर लंड को गीला करने लगी. थोड़ा सा थूक अपनी चूत पर भी मलने लगी. उसकी चूत पर झांटो का जंगल था. मुझे चूत की दीवारों, भगनासा, छेद किसी भी चीज का पता नहीं चल रहा था. मैंने उसकी चूत में ऊँगली फिराई. उसकी चूत गीली हो चुकी थी और चिपचिपा रस निकल रहा था. मैं अपनी उँगलियों को सुंघा और मुँह में डालकर उसका स्वाद लिया. मदहोश करने वाली महक थी.

सोमलता ने मेरे माथे पे हलके से मरते हुए डांटा – “छि बाबु, यह भी कोई चाटने वाली चीज है. कितना गन्दा है.”

मैंने दुबारा ऊँगली मुँह में लिया और फिर से उसकी चूत टटोलने लगा. मैं जंगल में गड्ढा खोंज नहीं पा रहा था.

उसने मेरे हाथ को हटाया और कहा – “हटो! तुम तो छेद खोजने में ही दिन निकाल दोगे.” और मेरे लिंग को पकड़ कर चूत पे टिका दी. फिर झांटों को हटाकर लिंग के सुपारे को चूत का दरवाजा दिखा दिया.

मेरा सुपारा फूलकर लाल आलू जैसा हो गया था. उसने मेरे कंधे को पकड़कर एक धक्का दी और फक्क की आवाज का साथ लंड का आधा हिस्सा अन्दर चला गया. “आअह्ह्ह्ह” मैंने आँख बंद कर सिसकारी मारी. उसकी चूत की गर्मी मेरे लंड को पिघला रही थी. थोड़ी देर रूककर फिर से उसने धक्का दिया और इसबार पूरा ला पूरा लंड उसकी बुर में समचुका था.

वह “माई री” की चीख़ के साथ मेरे छाती पर लेट गयी.

मैंने उसकी चेहरे को उठाकर पूछा – “सब ठीक है रानी? तुम कहो तो मैं ऊपर आ जाऊ?”

उसमे मेरे गाल पर एक हल्का चुम्मा देकर कहा – “नहीं बाबु” और फिर से मेरे छाती पर दोनों हाथ टीकाकार धीरे-धीरे ऊपर निचे करने लगी. मेरा लंड जैसे किसी भट्टी में पेल रहा था. मेरे पेट में अजीब-सी हलचल शुरू हो गयी थी और आँख बंद होगयी थी. पूरा कमरा हमारी सिसकारी और चुदाई की आवाज से भर गया था. उसकी आपनी रफ़्तार बढ़ा ली. उसकी आँखें बंद थी, उछालने के साथ-साथ उसकी मम्मे भी उछल रहे थे जो मेरे लंड को और सख्त बना रहे थे. कुछ देर बाद वह जोर से सिसकारी मारी और निढाल होकर मेरी छाती पर गिर गयी. उसका चेहरा पसीने से भींगा और साँस तेज चल रही थी. कुछ देर बाद उसकी चूत में सिकुडन हुई और रस की धारा छुट गई. एक मिनट के बाद दुबारा वह अपनी गांड उछलने लगी और तेज रफ़्तार से.

अब मेरी बारी थी. मेरा लंड फूलने लगा. मैं सोमलता को बताया – “रानी, मैं भी आने वाला हूँ.”
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(उलझन मोहब्बत की ) ......(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

Post by rajsharma »



वह फ़ौरन मेरे ऊपर से हट गयो और मेरे लंड को दोनों हथेलियों में लेकर मेरी मुठ मरने लगी. 7-8 झटको के बाद मेरा लंड तेज तेज पिचकारी मरने लगा. मेरा बिर्य उछल कर उसके सिने और मेरे पेट पर आ गिरा. वह तबतक मेरे लंड को हिलाए जा रही थी जबतक की वह सिकुड़ नहीं गया.

इसके बाद उसने मेरे होंठो का रस चूसा और उठकर खड़ी हुई और धीरे-से पूछा – “बाबु, नहाने का कमरा किधर है?”

मैंने हलके से आँख खोलकर अपनी दायें और इशारा किया. मैं इस पल को महसूस कर रहा था आँख बंद कर. बाथरूम से नल की आवाज आ रही थी. थोड़ी देर में वह वापस आई तोलिये से अपने बदल को पोंछते हुए. मैं लेते हुए उसकी नंगी बदन को देख रहा था. वह अपने कपड़े पहनने लगी. मेरी और देखकर मुस्कुरा रही थी. उसकी नंगी बदन को देखकर मेरा लंड फिर से जागने लगा. वह सारे कपड़े पहन कर तोलिया रखने बाथरूम से गयी तो मैं भी पीछे से गया और उसको पीछे से पकड़ के उसकी मम्मो को दबाने लगा.

वह मेरी और पलटकर बोली – “बाबु, अभी और नहीं. सबके आने का वक़्त हो गया है” फिर मेरे लंड को देखी, मेरा लंड लगभग खड़ा हो चूका था. वह बोली – “इसको मैं ठीक करती हूँ”. बाथरूम में तेल की शीशी लेकर थोड़ा तेल हथेलियों में लगाकर मेरे लंड को मसलने लगी. मेरे लंड की पानी निकाल कर तोलिये से पोंछते हुए बोली – “बाबु, मालकिन कब आएगी?”

“परसों” मैंने कहा. “ठीक है मैं कल फिर आउंगी.”

सोमलता कमरे से बाहर चली गई. मैं बहुत खुश था क्योंकि यह मेरी जिंदगी की सबसे बढ़िया सेक्स था. मैं हमेशा से ही एक अच्छा बेटा, अच्छा छात्र, अच्छा कर्मचारी बनने में ही अपनी आधी जिंदगी गुजारी थी. मेरी पिछली प्रेमिका से मेरा नाता टूटने का कारण थी यही था. खैर पिछली जिंदगी तो बीत गयी, अब वक़्त मुझे इतना अच्छा मौका दे रही है मुझे इसका इस्तेमाल करना चाहिए. मैं नंगा ही कमरे से बाहर गया. वह बाहर बरामदे में बैठकर बाकी काम करने वाले का इंतज़ार कर रही थी. मैं मेन गेट बंद कर बाथरूम में गया, ब्रश किया, नहाया खासकर मेरे लिंग को अच्छे तरह से धोया. मैंने पाया की मेरे लंड के आस-पास झांट काफी बढ़ गए है. मैं अगले आधे घन्टे उसको कैंची से काटने में बिताये फिर अच्छे तरह से नहाये. नहाते नहाते फिर सोमलता की बदन, उसकी चूचियां, उसकी मस्ती मेरे दिमाग में घुम रही थी जो मेरे लंड को फुल-साइज़ में लाने लगी. मुझसे रहा नहीं गया और शावर में ही मुठ मरने लगा. मैं कल सुबह तक का इंतज़ार नहीं कर सकता था उसकी चूत पाने के लिए. मेरे पास आज और कल का समय था फिर मेरे परिवार के आने के बाद मुझे छुपकर मुठ मारकर की काम निकलना पड़ेगा.

मैं बाथरूम से बाहर निकला और सोमलता को फिर से बिस्तर में लाने का तरीका सोचने लगा. 9 बज गए थे. बाकी के काम करनेवाले आ गए थे, सोमलता बिल्कुल साधारण भाव से काम कर रही थी और मुझसे तो बिल्कुल साधारण थी. न ज्यादा चिपक रही थी ना ही ज्यादा भाग रही थी. एक औरत जो मेरे साथ सोई, मुझे जिंदगी का सबसे अच्छा सेक्स अनुभव दी, वह मेरे सामने मजदूरी कर रही है यह देखकर मुझे दुःख हो रहा था लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था.

जैसे-तैसे दोपहर हुआ. बाकी सबके जाने के बाद वह खाना खाकर पानी पीने अन्दर आई. मैंने उसको लपक लिया और एक चुम्मा जड़ दिया होंठो पर.

वह मुझे धक्का देकर अलग हो गयी और बनावटी गुस्से से बोली – “तुम मर्दों को और कुछ नहीं सूझता क्या? हमेशा चूत और चूची में ही घुंसे रहते हो. अभी नहीं हो सकता. मुझे पानी पिलाओ.”

मैं शरारत से अपनी बॉक्सर नीचे करते हुए लंड हिलाकर बोला – “इसका पानी तो तुम खुद निकल कर पी सकती हो”

वह दौड़ कर मेरा बॉक्सर ऊपर कर धीरे से चिल्लाई – “क्या करते हो बाबु? थोड़ा ख्याल रखो, इस भरी दोपहर में ऐसा मत करो. जाओ पीने का पानी लाकर दो.”

मैं किचेन से पानी लाया और देते हुए बोला – “रानी, हमारे पास सिर्फ दो दिन है और मैं कल सुबह का इंतज़ार नहीं कर सकता. आज रात भर तुम यहाँ नहीं आ सकती?”

वह पानी पीकर जग मुझे देकर बोली – “मुझे घर जाना पड़ेगा और कल काम पर आना भी पड़ेगा”

मैंने बोला – “अरे उसकी चिंता मर करो. मैं देर रात को तुम्हे तुम्हरे गाँव से लेकर आऊंगा और कल की छुट्टी ले लो. बोलो की तबियत ख़राब है, काम पे नहीं आ सकती.”

वह जाते हुए बोली – “ठीक है. सोच के देखूंगी.”

मैं घुटनों पर बैठकर उसकी दोनों हाथो को पकड़कर विनती की – “प्लीज रानी”

वह हँसते हुए बोली – “ठीक है” और अपनी कमर कुछ ज्यादा ही लचकते हुए चली गयी.
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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