Adultery शीतल का समर्पण

Post Reply
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

शीतल- "आअहह... वसीम चाँदिए। फाड़ डालिए मेरी चूत को। अहह ... खा जाइए मझे, नोच लीजिए मेरी चूचियाँ को वसीम्मह आह्ह ... आह्ह... चोदिए वसीम आहह... जैसे मन करें बैंसे चोदिए आह्ह.. में रोगी नहीं आपको। ये जिश्म आपका है, सारे गुबार को निकल लीजिए आह्ह... फाड़ डालिए मेरी चूत को आहह.. वसीम..."

वसीम और जोर-जोर से धक्कर लगाने लगा- "हाँ... मैगी रंडी, फाड़ डालूँगा तेरी चूत को, बहुत गर्मी है तेरी चूत में, आज पता चलेगा की चुदाई क्या होती है? चोद चोद कर फाड़ डालूँगा तेरी चूत को मेरी रांड़..."

शीतल की चूत पानी छोड़ दी थी और वो दोनों हाथ फैलाकर जिस्म को दीला छोड़ दी थी। उसकी चूत छिलने लगी थी। वो चाह रही थी की वसीम अब उतार जाए उसके ऊपर से, लेकिन अभी वो रुकने वाला नहीं था। बमीम उसी तरह धक्का लगाता हुआ चोदता जा रहा था और होठ, गाल, गर्दन, कंधे, चूचियों को निपल पे दाँत लगाता हुआ काटता जा रहा था।

वसीम- "क्या हुआ रंडी, निकल गई गर्मी, उतर गया चुदाई का भूत, बुझ गई चूत की आग? हाहाहा... मैंने कहा

था ना की आज पता चलेगा की चुदाई क्या होती है?

शीतल फिर से गरमा गई थी- “आहह... हाँ मेरे राजा, मेरी चूत की गर्मी निकल गई, लेकिन आप और चोदिए अपनी मंडी को, जितना मन करे उतना चादिए, आपकी रंडी आपको कभी रोकेगी नहीं। मेरी चूत का रास्ता खुला है आपके लिए और चोदिए वसीम आहह... और चोदिए."

वसीम भी फुल स्पीड में चोदता रहा और फिर शीतल के ऊपर पूरी तरह से लेटकर लण्ड को पूरा अंदर डाल दिया
और शीतल को कस के अपनी बाहों में कसता चला गया। वसीम के होंठों में शीतल के होंठ को जकड़ लिया और चूत को अपने वीर्य से भरने लगा। शीतल भी वीर्य की गर्मी पाकर दबारा झड़ गई। दोनों पशीने से लथपथ थे
और हाँफ रहे थे। बीर्य की आखिरी बंद एक बार फिर से शीतल की चूत में गिराकर वसीम बगल में लटक गया और निढाल होकर सो गया।

शीतल की चूत छिल गई थी। उसका रोम-राम दर्द में डूब गया था। लेकिन वो संतुष्ट थी। पहली इसलिए की वो वसीम का साथ दे पाई और दूसरी इसलिए की इस चुदाई ने उसकी प्यास मिटा दी थी। वो उठकर बाथरूम चली गई। पेशाब करते हुए फिर से उसकी चूत में जलन हुई गाढ़ा सफेद लिक्विड उसकी चूत से बहनें लगा। वो अपनी चूत को ठंडे पानी से धोने लगी, लेकिन उसका दर्द कम नहीं हुआ। वो किचन में आकर फ्रज से बर्फ निकाली और चूत पे रगड़ने लगी। वो आईने में अपने जिश्म को, उसपर लगे निशान को देखने लगी। अब उसे अपने जिश्म पे जलन महसूस हो रही थी। चूचियों पे दो जगह, गर्दन में एक जगह, और होंठ से तो थोड़ा सा और जोर लगाने में जैसे खून ही निकल जाता। वो इन जगहों पे भी बर्फ लगाने लगी।

शीतल- ओह्ह... वसीम, क्या मस्त चुदाई करते हैं आप, 50-55 साल की उम्र में ये हालत है, काश की मैं आपसे आपकी जवानी में मिली होती और उस वक्त आपसे चुदवाई होती। उफफ्फ...जान निकल दी आपने। आज तक में एक रात में दो बार नहीं चुदी थी। मेरी चूत छिल गई है, 6 बार पानी गिरा चुकी हैं, फिर भी मैं आपसे अभी दो बार और चुदवाना चाहती हैं। आहह... वसीम, मैं चाहती हूँ की मेरी चूत में आपका लण्ड हमेशा घुसा रहे और आप मुझे चोदते ही रहे। मैं आपसे जिंदगी भर चुदवाना चाहती हूँ राज। मेरी चूत को और काई शांत नहीं कर सकता अब। आपने मुझे अपना दीवाना बना लिया है। मैं खुशकिस्मत है की आप मुझे मिले। मुझे तो पता हो नहीं था की सेक्स इतना मजेदार होता है। आप नहीं मिलतं तो मैं तो इस एहसास को समझ ही नहीं पाती, महसूस ही नहीं कर पाती। मुझे अब आपसे हो चुदवाना है वसीम। मेरी चूत को अब आपका ही लण्ड चाहिए। मुझे अब जो भी करना पड़े इसके लिए..."

शीतल सोफा में बैठ गई थी, बर्फ को अपनी चूत के अंदर डाल ली थी। अब उसे थाहा ठीक लग रहा था। वो गम में आई तो क्सीम को नंगा सोते देखी। वो गौर से वसीम को सोते देखी, तो उसे हँसी भी आ गई। काला, मोटा, पेट निकला हुआ और जांघों के बीच झलता हुआ काला नाग। उसे वसीम पे प्यार उम्रड़ आया। वो आकर वसीम के पैरों में पैर रखकर, अपनी चूचियों को वसीम के जिस्म में दबाते हए उससे चिपक कर सो गई। वो सोचने लगी की कितना मजा आए की अभी वसीम फिर से जागकर उसे तीसरी बार भी चोद ही दें। मैं तो मर ही जाऊँगी। भले नेरी जान निकल जाए लेकिन मैं उन्हें रागी नहीं। शीतल वसीम की बाहों में सुख की नींद सो गई।

शीतल के सोते वक़्त लगभग 1:30 बज रहा था। दिन भर की भाग-दौड़ और वसीम के घोड़े जैसे लण्ड से दो बार पलंगतोड़ चुदाई के कारण शीतल बेसुध होकर सो रही थी। लभाग 3:30 बजे वो फिर से अपने जिस्म पे हाथ घूमता हुआ महसूस की। वसीम शीतल के जिश्म पे चिपका जा रहा था और उसे अपने बाहों में भरता जा रहा था। वसीम का हाथ शीतल की चूचियों पर आया और पूरी ताकत से मसल दिया।

शीतल- “आहह... माँ..' बोलती हुई शीतल की नींद खुल गई।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

वसीम शीतल के आधे जिश्म में आ चुका था। उसने शीतल के एक चूची को मुँह में ले लिया और दूसरी को मसलने लगा। शीतल के जिस्म में करेंट दौड़ गया और उसकी चूत गीली हो गई।

शीतल- "आह्ह ... उउम्म्म्म... वमीम आह्ह.." करती हुई शीतल वसीम का सिर अपनी चूचियों पे दबाने लगी और उसकी पीठ सहलाने लगी।

वसीम एक चूची को दोनों हाथों से पकड़कर ऊपर उठाने लगा और मुँह में भरकर जोर-जोर से चूसने लगा। फिर उसका एक हाथ चूत में आया। शीतल तुरंत अपनें दोनों पैर फैला दी और वसीम की उंगलियों के लिए रास्ता बना दी। वसीम शीतल के दोनों पैरों के बीच में आ गया और उसकी फैली हुई चूत को चूमने लगा। फिर उसने चूत के दाने को मुँह में लेकर चूसना स्टार्ट किया और फिर उसे भी दाँतों से काटने लगा।

शीतल दर्द सहती हुई "अहह... आहह..." करती हुई कमर ऊपर उठाने लगी ताकी कम खिंचाव हो और दर्द कम हो। वसीम ने उसके दोनों पैरों को और फैला दिया और फिर चूत को पूरी तरह मुँह में भरकर चूसने लगा। उसके दोनों हाथ ऊपर चूचियों पे आ गये और वो दोनों निपल को दो उंगलियों में लेकर बेरहमी से मसलने लगा।

शीतल दर्द और मजे से भरती जा रही थी। एक तो उसका मन पूरी तरह से चुदवाने का था और दूसरे की वो अपने वसीम को अपने जिस्म का इस्तेमाल करने से मना नहीं करना चाहती थी।

वसीम फिर से शीतल के ऊपर आ गया और अपने लण्ड को चूत में सटा दिया। शीतल तैयार थी। वो अपने पैर
को फैला दी और दर्द सहने के लिए तैयार हो गई।

वसीम- "रंडी, मादरचोद, कुतिया, हरामजादी आज पता चला की चुदाई क्या होती है? एक रात के लिए तू मेरी है ना, एक ही रात में तेरी चूत का वा हाल काँगा की लगेगा जिंदगी भर चुदवाती ही रही है सिर्फ.." और वसीम ने बेरहमी से लण्ड को अंदर चूत में घुसेड़ दिया।

शीतल- "आह्ह... मौं.." बोलती हुई दर्द से भर उठी।

वसीम- "और चिल्ला मादरचोद छिनाल, और जोर से चिल्ला, सबको पता चलना चाहिए की तू वसीम से चुद रही है..." वसीम जोर-जोर से धक्का लगते हुए शीतल के कोमल जिश्म को नोचने खसोटने लगा था।

शीतल भी जोर-जोर से आइह उजनह करने लगी- "आहह... हाँन्न वसीम फाड़ दीजिए मेरी चूत को, जी भरकर चोदिए मुझे.. आह्ह... आज ही तो जानी हूँ की चुदाई क्या होती है। आज ही तो पता चला है की चूत कैसे फटती है? चोधिए वसीम, फाड़ डालिए अपनी शीतल की चूत को अहह."

वसीम ने लण्ड बाहर निकाल लिया। वो कैमरे के पास गया और उसे ओन करके शीतल के सामने आ गया "चस मादर चोद, साफ कर अपने चूत के रस को। पूरा मुँह में भरकर चूसेंगी छिनाल, नहीं तो आज ती माँ चुद जाएगी..."

शीतल तुरंत मुँह खोलकर लण्ड चूसने लगी। अपनी ही चूत का रस चूसती जा रही थी शीतल। वसीम सीधा लेंट गया और शीतल वसीम के पैरों के बीच में आकर लण्ड चूसने लगी। अपने हिसाब से वो पूरी तरह लण्ड को अंदर ले रही थी।

वसीम में शीतल के सिर को पकड़ा और लण्ड में दबा दिया। लण्ड पूरा अंदर तो घुस गया लेकिन शीतल का दम घटने लगा। वसीम ने हाथ हटा लिया और शीतल मैंह ऊपर कर जोर-जोर से सांस लेने लगी। उसकी आँखें लाल हो गई थी।

वसीम- "बस हो गया, यही है तेरी औकात?"

शीतल अपनी साँसों को नियंत्रित की और फिर से लण्ड को मुँह में भरने लगी। दो-तीन कोशिशों के बाद फाइनली परा लण्ड शीतल के मह में था।

वसीम खुश हो गया- "चल आ जा, बैठ जा ऊपर..." शीतल ऊपर आई और वसीम के पैर के दोनों तरफ पैर करके लण्ड को अपनी चूत के ऊपर रखकर अंदर लेने की कोशिश करने लगी। उससे हो नहीं पा रहा था। वो फिर से लण्ड को सामने से पकड़कर अपनी चूत में सटाई और नीचे दबाने लगी।

शीतल- "आअह माँ..." करती हई शीतल लण्ड पे बैठती गई और लण्ड चूत में घुसता गया। शीतल दर्द से भर उठी। थोड़ा रिलैक्स होने के बाद बो अपने हाथों को वसीम की छाती में रखी और अपने जिस्म का भार हाथों में देते हए लण्ड को चूत में अइजस्ट करने लगी। अब उसे ठीक लग रहा था। शीतल लण्ड पे उठक-बैठक लगाने लगी।

वसीम- "आह्ह... रंडी बहुत खूब उछल लण्ड पे आह्ह.."

शीतल जोर-जोर से उछलने लगी थी अब। वसीम शीतल की कमर को पकड़कर उसे ऊपर-नीचे करवाने लगा और फिर शीतल की चूचियों को पकड़ता हुआ मसलने लगा। शीतल पूरी तरह गरमा गई थी और उसकी चूत ने सातवीं बार पानी छोड़ दिया। शीतल थक गई थी और वसीम पे कोई असर नहीं पड़ रहा था। वो वसीम के ऊपर लेट गई।

वसीम ने शीतल को अपने जिश्म से उतार दिया और उसके पीछे आकर उसकी कमर को पकड़कर उठाया। शीतल के जिस्म में जान नहीं बची थी। वसीम ने ताकत लगाकर शीतल की कमर को ऊपर किया और उसके पैर को फैलाकर उसकी जांघों के बीच में बैठ गया। लण्ड सही निशाने में नहीं लग रहा था। उसने शीतल के बालों को पकड़कर खींचा और कमर उठता हुआ बोला- "मादरचोद रडी, कुतिया बनजे बोल रहा हूँ तुझे, समझ में नहीं आ रहा क्या?"

शीतल मजकर होकर अपनी कमर ऊपर कर दी और गाण्ड को बाहर निकाल ली।

वसीम ने लण्ड को चूत में सटाया और कमर पकड़ता हुआ अंदर पेल दिया। शीतल फिर से दर्द से भर उठी। वो आगे होने की कोशिश की, लेकिन वसीम जोर से उसकी कमर को पकड़े हए था। लण्ड अंदर घुस गया और वसीम अपनी कुतिया को चोदने लगा। शीतल की चूत की तो चटनी बन गई थी आज। शीतल को लग रहा था की अब वसीम बस करेगा, लेकिन आज वसीम रूकने वाला नहीं था। उसने लण्ड निकाल लिया और फिर में शीतल को सीधा लिटाकर उसके ऊपर चढ़ गया और फिर से चोदने लगा।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

शीतल अब जोर-जोर से आहह... उहह... करने लगी थी- “आहह... वसीम ओहह... नहीं अब नहीं आहह... प्लीज... छोड़ दीजिए आह मौं प्लीज.. आह मर जाऊँगी अब आह्ह... मेरी चूत फट गई है अह्ह... पूरा छिल गया है अंदर आहह..."

वसीम रहम करने के लिए नहीं बना था। वो चोदता रहा और बदन में दौत के निशान बनाता रहा। शीतल ने एक-दो बार वसीम की छाती में हाथ रखकर उसे रोकने की भी कोशिश की लेकिन भला वसीम कहाँ रुकता।

शीतल फिर से गरमा गई थी- "चोद लीजिए, और चोदिए, फाड़ ही दौजिए पूरी तरह से चूत को आहह.." और शीतल फिर से झड़ गई।

वसीम ने अपना लण्ड निकाला और शीतल के सामने कर दिया। शीतल उसे हाथ में लेकर सहलाने लगी और चूसने लगी। थोड़ी ही देर में वसीम के लण्ड में हर सारा वीर्य शीतल के चहरा पे गिरा दिया। कुछ शीतल चूस गई। बाकी वो अपने चेहरा पे गिरने दी। अभी उसकें जिस्म में जान नहीं थी इसलिए उसे वीर्य पीने में मजा नहीं आया।

वसीम बगल में निटाल होकर सो गया। शीतल ऐसे ही लेटी रही। 5:00 बज चुके थे। अब वो क्या सोती? लेकिन उठने की हिम्मत नहीं थी उसमें।

शीतल इसी तरह चहरे को वसीम के वीर्य से भरे थाड़ी देर लेटी रही। अब उसे नींद भी नहीं आनी थी और उठने की हिम्मत भी नहीं थी। थोड़ी देर वो इसी तरह लेटी रही फिर उठी। सबसे पहले वो कैमरा बंद की और फिर बाहर आकर साफ पे बैठ गई। सोफे पर वो पूरी तरह से निढाल होकर बैठी हुई थी। उसके चेहरे से वीर्य बहता हुए उसके जिष्म पे आने लगा था। पूरा जिश्म दर्द कर रहा था। एक दर्द तो चुदाई के झटकों के कारण हो रहा था, तो दूसरा दर्द वो था जो वसीम ने काटकर नोंचकर दिया था। वो अपनी दोनों टांगों को फैलाकर सोफे पे फैलकर बैठी हुई थी। उसकी आँखें बंद थी।

शीतल सोच रही थी- "ये आदमी है की कोई भूत प्रेत है। ऐसे भी कोई चुदाई करता है क्या? एक ही रात में तीन बार। मेरी तो जान निकाल दी। कितने अरमानों में सजी थी की सुहागरात मनाऊँगी। मुझे लगा था की सुहागरात को महसूस करेंगे वसीम। दुल्हन के कपड़े उतारेंगे और फिर चोदकर साथ में सो जाएंगे। लेकिन इन्होंने तो हद ही कर दी। इनकी भी क्या गलती है भला, जिसे कोई औरत एक रात के लिये मिलेंगी तो क्या करेंगा? वसीम को लगा है की मैं बस आज की रात के लिए ही उनकी थी, तो रात भर में ही पूरी तरह मुझे पा लेना चाहते थें।

और इसी चक्कर में मेरी चूत के चीथड़े उड़ा दिए। लेकिन क्या मस्त लण्ड है, मजा आ गया। भले चूत छिल गई, जिश्म दर्द कर रहा है, लेकिन चुदवाने में मजा आ गया। आहह.... कितना अंदर तक जाता है लण्ड... जब वो धक्का लगा रहे थे तो मेरे तो पेट में चुभ रहा था। और जब वीर्य गिरायं चूत में ता लगा की एकदम आग भर दिए हों अंदर गहराई में। तभी तो एक बार चुदवाने के बाद मैं दूसरी बार के लिए भी तैयार थी और दूसरी बार के बाद और दो बार के लिए। एक और बार चुदवा ही लें क्या? छिल जाएगी चूत तो छिल जाएगी, लेकिन मजा आ जाएगा। नहीं नहीं, अब अगर उन्होंने मुझे चोदा तो मैं मर ही जाऊँगी। और कौन सा वो भागे जा रहे हैं। उन्हें भी यहीं रहना है और मुझे भी। लेकिन विकास... विकास क्या करेंगा? देखा नहीं कितने प्यासे हैं वसीम। तभी तो रात में पागलों की तरह कर रहे थे। अब चाहे जो भी हो मुझे उनसे चुदवाते रहना है। तभी उन्हें भी सुकून मिलेगा और मुझे भी। मेरी चूत को अब वही लण्ड चाहिए। उन्हें बोल तो दी ही है की जब मन को आकर चोद लीजिएगा अपनी रंडी को। कितना मजा आ रहा था मुझे जब वो मुझे गाली दे रहे थे। बहुत गुबार जमा है

आपके अंदर वसीम । सब निकाल लीजिए मेरे पे। जितना चोदना चाहें चोदिए। एक रात में तीन तो क्या 30 भी आप चोदिएगा तो मैं आपको मना नहीं करूँगी । जैसे नोचना हो नोच लीजिए, खा जाइए मुझे, मैं आपका साथ दूँगी। हर दर्द महंगी मैं वसीम। आपको जो गाली देनी हो दीजिए, मैं सब सुनँगी। आपने मुझे बड़ी कहा तो क्या हुआ, मैं तो कब से आपकी रंडी बनी हुई हैं। हौं, मैं आपकी बडी हैं, आपकी कुतिया है। आप जो बनाएंगे जो कहेंगे सब ह आपके लिए."
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

शीतल उठी और फिर बाथरूम गई। उसकी चाल बदल गई थी। चूत छिल जाने की वजह से उसे पैर फैला-फैला कर चलना पड़ रहा था। शीतल बाथरूम से आई तो देखी की क्सीम भी निढाल होकर पड़े हए हैं। वसीम का लण्ड पूरी तरह तो नहीं लेकिन टाइट था। शीतल को हँसी आ गई की तीन बार चोदने के बाद भी लण्ड तैयार है। वो अपने मोबाइल में वसीम की 8-10 पिक्स ले ली। शीतल का जी चाहा की वसीम के लण्ड को हाथ लगाए लेकिन उसे पता था की हाथ लगातें ही साँप फन फैला देगा और फिर जहर उगले बिना नहीं मानेगा। शीतल दर से ही अच्छे से पिक ले ली। वसीम साए हुए हैं और फूा घर बिखरा पड़ा है। मुहागरात के लिए सजी हुई सेज अस्त व्यस्त हो चुकी थी। हर फूल मसला हुआ था।

शीतल और वसीम के कपड़े इधर-उधर गिरे हुए थे। अभी तो घर साफ हो नहीं पाएगा। नहा ही लेती हैं पहले आज, घर बाद में साफ करगी। नहाने और चाय पीने से शरीर को भी थोड़ा रिलैक्स लगेगा। एक तो तीन बार पानी छोड़ चुकी हैं चूत से, और उसपे से रात भर साई नहीं हैं। नहा ही लेती हैं पहले।

शीतल नंगी ही बाथरूम चली गई नहाने के लिए। ठंडा पानी पड़ते ही उसके जिश्म को राहत मिली। वो अपने जिस्म को रगड़-रगड़ कर साफ कर रही थी और आईने में अपने जिस्म पे आए लव बाइट्स को देख रही थी। वो अपने कपड़े तो लाई नहीं थी, तो वो नंगी ही गीला बदन लिए बाथरूम से बाहर आ गई।

पता नहीं कैसे वसीम की नींद खुल गई थी। नंगी शीतल के गीले जिश्म को देखकर उसका लण्ड फिर उफान मारने लगा लेकिन इस वक्त वो अपनी इच्छाओं को दबाते हए सोने की आक्टिंग करनें लगा लेकिन उसकी नजर शीतल के जिस्म में ही थी।

शीतल अपने गीले बदन को पोंछी और फिर बाडी लोशन लगाकर चेहरे में क्रीम पाउडर, बिंदी, काजल लगाने लगी। शीतल अब तक नंगी ही थी और जिश्म फ्रेश होकर चमक रहा था।

वसीम उसकी नंगी पीठ, पतली कमर, कमर के बाद उसकी उभरी हई गाण्ड को देखकर निहार रहा था। रात में तीन बार चोदने के बाद भी उसकी प्यास बुझी नहीं थी और अभी उसका जी चाह रहा था की शीतल को पकड़ ले और उसके चिकने ठंडे जिश्म को बाहों में भरकर चमने लगे। लेकिन उसने खुद को रोका। उसका इरादा शीतल को प्यासी रखने का था और इसलिए वो उसे दुबारा चोदना नहीं चाहता था। लेकिन नींद में उसके जिशम ने उसके साथ धोखा किया था और जज्बात में बहकर बा दूसरी बार तो क्या तीसरी बार भी शीतल के जिश्म का चोद चुका था।

शीतल पलटकर वसीम को देखी तो उसे सोते हो पाई। उसे लगा की अभी जाग गये तो एक बार और चोद देंगे, और मेरी चूत तो इनके लण्ड के लिए हमेशा तैयार है। शीतल एक पेंटी ब्रा हाथ में ली लेकिन फिर उसे लगा की अगर फिर से इनका चोदने का मन किया तो? पहले वो सोची की नहीं पहनती हैं, लेकिन फिर लगा की पहन ही लेती हैं। अगर उन्हें चोदना होगा तो उतारने में देर ही कितनी लगती हैं। वो अच्छी वाली डिजाइनर पैंटी ब्रा पहनी। ये भी ट्रांसपेरेंट ही थी। फिर वो एक गंजी कपड़ा बाला नाइटी पहन ली। नाइटी उसके जिश्म से सट रही थी और उसे हसीन बना रही थी। फिर वो एक दुपट्टा सिर पे रखी और सिंदूर लगाने लगी।

शीतल एक बार सोची की- "ये किसके नाम का सिंदूर अपने माँग में भर रही हैं। फिर उसके अंतर्मन ने जवाब दिया. दोनों के नाम का। जब विकास सामने रहें तो विकास का, जब वसीम सामने रहे तो वसीम का और जब दोनों सामने रहे तो दोनों का.." सोचती हई शीतल अपनें मौंग में सिंदूर लगा ली और पूजा रूम की तरफ चल पड़ी।

वसीम शीतल की हरकत को देख रहा था और बहुत मुश्किल से उसने खुद पे काबू पाया था। शीतल के रूम से बाहर निकलते ही वसीम सीधा हुआ और अपने लण्ड को सहलाने लगा। चार-पाँच बार तेज-तेज हाथ चलाने के बाद उसे ठीक लगा और फिर करवट बदलकर वो सोने लगा। उसके प्लान के मुताबिक उसे रात में शीतल को सिर्फ एक बार चोदना था। लेकिन अब तो वो उसे तीन बार बेरहमी से चोद चुका था। अब उसे अपने प्लान में थोड़ा बदलाव लाना था। वसीम भी थका हुआ और रात भर का जगा हुआ था। वो सोचता हुआ सो गया।

शीतल पजा करके आई और किचेन में चाप बनाने लगी। एक बार वो साची की वसीम को सोने देती हैं अभी। लेकिन फिर उसे लगा की जागी तो मैं भी रात भर है और जब मैं जाग गई है तो इन्हें भी जगा देती हैं। वो चाय लेकर रूम में आई तो वसीम सीधा लेटा हुआ था और उसका लण्ड टाइट जैसा ही था। शीतल के मन में शरारत करने का विचार आया। वो चाय को टेबल पे रख दी और वसीम के पास जाने लगी। फिर उसे लगा की ऐसें मजा नहीं आएगा। वो बाहर आ गई और अपनी नाइटी उतारकर अपनी ब्रा उतार दी और फिर नाइटी पहनकर रूम में आ गई।

शीतल वसीम के ऊपर आकर अपने दोनों हाथों को वसीम के अगल बगल में रखी और उसपे अपने जिश्म का भार देते हए वसीम के ऊपर झकने लगी। वा अपनी लटकती चूचियों को वसीम के सीने पै सटा दी और रगड़तें हए थोड़ा ऊपर हो गई। अब वो वसीम के ठीक ऊपर थी और सिर्फ उसकी चूचियों का भार वसीम के सीने में पड़ रहा था। शीतल अपने जिस्म का सारा भार अपने हाथों पे रखी थी।

शीतल वसीम के ऊपर झुक गई और उसके होंठ पे अपने होंठ रखकर चूमकर कहा- "गुड मानिंग..." और शीतल के जिस्म में करेंट दौड़ गया।

वसीम नींद में था। अपने होठों पे शीतल के मुलायम होठों का स्पर्श पाकर उसके भी जिस्म में करेंट दौड़ गया। उसका रोम-रोम सिहर उठा और लण्ड एक झटके में सलामी देने के लिए उठकर खड़ा हो गया। अब वसीम शीतल को पकड़कर उसे अपनी बाहों में भरकर चूम सकता था, और चोद भी सकता था। शीतल इसके लिए तैयार थी और वसीम जो भी करता शीतल उसका साथ देती, और वो शीतल के लिए बोनस ही होता।

वसीम की आँखें खुली तो उसकी नजरों के सामने कुछ ही इंच की दूरी पे शीतल का मुश्कुराता चेहरा था।

शीतल फिर से गुड मार्जिंग की और बोली- "उठिए, चाय तैयार है."

शीतल इस उम्मीद में उठने लगी की वसीम उसे उठने नहीं देगा और अपनी बाहों में भरकर उसके होठों को चूमने चूसने लगेगा और उसके जिस्म पे छा जाएगा। इसीलिए तो वो बा उतारकर आई थी ताकी वसीम उसकी नर्म चूचियों को महसूस कर पाए और बा की बजह से उसे कोई रुकावट ना लगे।

लेकिन क्सीम में ऐसा कुछ नहीं किया और शीतल को उठकर अलग हो जाने दिया। वो भी गुड मार्निंग बोलता हुआ उठ बैठा और तब तक मायूस शीतल उस चाय का कप पकड़ा दी।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
User avatar
007
Platinum Member
Posts: 5355
Joined: 14 Oct 2014 17:28

Re: Adultery शीतल का समर्पण

Post by 007 »

(^%$^-1rs((7)
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

(¨`·.·´¨) Always

`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &

(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !

`·.¸.·´
-- 007

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
Post Reply