Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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शीतल फिर से किचन में चली गई और अपनी चाय भी लेकर गम में ही आ गई। शीतल जब गम में आई तो वसीम की नजर शीतल की नाइटी के ऊपर उसकी गोल-गोल हिलती हुई चूचियों में पड़ गई। बो गौर से देखने लगा और समझ गया की शीतल अभी बिना ब्रा के हैं। उसने याद किया की शीतल तो ब्रा पेंटी पहनी थी लेकिन अभी नहीं पहनी हुई है। इसका मतलब वो मेरे पास आने से पहले उतारी है। उसे खुशी है की शीतल अभी भी प्यासी है। वो तो इर रहा था की जिस तरह उसने बेरहमी से तीन बार उसे चादा था, अब शीतल उसके पास भी नहीं आएगी। जिस तरह उसने शीतल को गालियां दी हैं की अभी जागते ही शीतल उसे धक्के मारकर बाहर निकाल देगी। लेकिन जिस तरह से उसे गई मानिंग किस और चाप मिली है इसका मतलब शीतल को अभी और चुदवाना है।

वसीम चुपचाप सिर झुकाए चाय पी रहा था और शीतल भी उसके सामने खड़ी मुश्कुराती हुई चाय पी रही थी। शीतल वसीम से बात शुरू करना चाह रही थी, उसके मर्दानगी की तारीफ करना चाह रही थी। जो सुख वसीम ने रात में शीतल का दिया था, उसका एहसास शेयर करना चाहती थी। लेकिन वसीम चुपचाप सिर झुकाए चाय पीता रहा। वसीम ने एक तकिया खींचा और अपनी जांघों के बीच में रख लिया। शीतल खिलखिला कर हँस पड़ी। बासीम ने सिर को और झुका लिया।

शीतल जोर-जोर से हंसने लगी।

वसीम ने धीरे से पूछा- "क्या हुआ। हँस क्यों रही हो?"
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शीतल बोली- "कुछ नहीं.." फिर और जोर से हँसने लगी और बोली "आपको तकिया रखते देखी तो हंसी आ गई। अभी शर्मा रहे हैं और छुपा रहे हैं, रात में जो हालत किए मेरी वो मैं ही जान रही हैं. और फिर से खिलखिला पड़ी।

वसीम कुछ नहीं बोला और शीतल चाय का कप लेकर अपनी चूचियों को हिलाते हुए किचन में चली गईं।

चाय पीने के बाद वसीम उठा, लूँगी पहन लिया और फिर नहाने चला गया। शीतल तब तक किचेन में नाश्ता बना रही थी। वो रात के लम्हों को याद करती हुई म कराती जा रही थी। अभी वसीम बाथरूम में था।

शीतल ने विकास को काल लगाई- "हेलो, गुड मानिंग.."

विकास अभी तक नींद में ही था। वहीं उसे जगाने के लिए शीतल नहीं थी। शीतल यहाँ वसीम को गुड मानिंग किस देकर जगा रही थी। विकास में नींद में ही कहा- "गुड मानिंग..."

शीतल- "अभी तक साए ही हो, जागे नहीं क्या?"

विकास- "नहीं, बस जाग हो गया है। कैसी हो तुम?"

शीतल- "अच्छी हूँ, तुम कब तक आओगे?"

विकास- "आ जाऊँगा दोपहर तक। कैसी रही सुहागरात वसीम चाचा के साथ?"

शीतल- "अच्छी रही। तुम्हारा खाना बना दूंगी ना?"

विकास- "हाँ, बना देना। मज़ा आया ना वसीम चाचा का?"

शीतल. "आना तो चाहिए। आपा ही होगा.."

विकास- "क्यों, तुम्हें नहीं पता। तुम्हें मज़ा आया की नहीं?"

शीतल- "मैं उनसे पूछी तो नहीं। अभी बाथरूम गये हैं.."

विकास- "हम्म्म... तुम्हें मजा आया की नहीं?"

शीतल- "ऐसे क्यों पूछ रहे हो? यहाँ आओ फिर बताऊँगी ना सब कुछ..."

विकास- "ओके... एंजाय। आता हूँ दोपहर तक..."

वसीम बाथरूम से आया और अपने कपड़े पहनकर सोफा पे बैठ गया।

शीतल के पास अब दोपहर तक का वक्त था। विकास की बातों से उसे लग गया था की वो थोड़ा नाराज, परेशान और उदास है। होगा भी क्यों नहीं? मैं यहाँ किसी और के साथ सहागरात मना रही हैं तो प तो में क्या करु? उसी ने कहा था ना की चुदवा ला। उसी ने कहा था ना की अच्छे से करना, मेमारबल बनाना वसीम चाचा के लिए। उससे पूछूकर ही ला सुहागरात मनाई। अब मेरी क्या गलती की वसीम में मुझे तीन बार चोद दिया। मैं उन्हें मना तो नहीं करती ना, और जब चुदवा रही हैं तो मजे से ही चुदवाऊँगी ना। उसी ने तो कहा था की वसीम चाचा का लगना नहीं चाहिए की में उनकी नहीं किसी और की है, तो मैं वही कर रही हैं।

अब इसमें अगर वो गुस्सा करेगा तो मैं क्या करूँ? मैं अब वसीम चाचा से चुदबाऊँगी तो चुदवाऊँगी। जब उनका मन होगा तब चुदवाऊँगी। चाहे कुछ भी हो जाए।

शीतल बैंसें सोची थी की ब्रा पहन लें लेकिन अब तो विकास दोपहर तक नहीं आने वाला था। तो फिर वा क्यों पहनना? बो देखी की वसीम सोफा में बैठे हए हैं तो वो बोली- "नाश्ता ला रही हैं." और वो नाश्ता निकालने लगी।
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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शीतल जब नाश्ता ले जाने लगी तो वो सोची की पैटी भी पहनें रहकर क्या कर लेना है। वो पैटी भी उतार दी और उसे किचन के फर्श पे ही छोड़ दी और सिर्फ नाइटी में नाश्ता लेकर वसीम के पास आ गईं। पायला और चूड़ियों की आवाज सुनकर वसीम में सामने देखा तो उसे लगा की काई रामन देवी सामने आ रही है।

गंजी कपड़ा वाले नाइटी में शीतल के जिएम के कटाव साफ-साफ झलक रहे थे। नाइटी सामने से डीप-कट तो थी हो लेकिन अभी बा नहीं होने की वजह से सिर्फ क्लीवेज की लाइन दिख रही थी। चूचियां अपनी पूरी गोलाई में अलग-अलग दिख रही थी और निपाल के दाने बाहर झाँक रहे थे। नाइटी फिर पेट में सट गई थी और चूत तक जिस्म से सटा हुआ था। कमर और दोनों जांचं चलने पर जिश्म को सेक्सी आकर दे रही थीं। और इन सबके ऊपर उसका मैकप- बिंदी, काजल, लिपस्टिक और सिंदूर। हर कदम के साथ चड़ी और पायल छन-छन खन-खन करते हुए अपना काम कर रहे थे तो चूचियां खुशी में झूम रही थीं।

वसीम शीतल को देखता ही रह गया। सोचने लगा- "इस रडी को तो जितनी बार देखता हैं उतनी बार नई लगती है। हर बार लगता है की इसे बाहों में भर लें और चोदने लगें। क्या जिश्म है साली का... होगा भी क्यों नहीं, अभी 23 साल की तो है ही। तभी तो इतनी गर्मी है चूत में की रात में तीन बार चुदवाने के बाद भी अभी इसकी चूत फड़फड़ा रही है। कोई बात नहीं रंडी, अभी तो एक ही रात बीती है और अभी तो सिर्फ तीन बार चुदी हो। बस एक बार विकास को लाइन पे ले आऊँ किसी तरह, फिर तो बस मेरे लण्ड की ही सवारी करती रहोगी."

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शीतल जाते की प्लेट का डाइनिंग टेबल पे रख दी और वसीम को टेबल पे आने बाली, और खद किचन में जाने लगी। वसीम पीछे से शीतल के हश्न का दीदार करने लगा। पतली कमर के बाद चौड़ी गाण्ड और उससे चिपक कर नीचे गिरती हुई नाइटी। हर कदम के साथ उसके कूल्हे मटक रहे थे। वसीम को दिख गया की अभी पेंटी भी जिस्म पे नहीं है। वो अपने लण्ड को अइजस्ट करता हुआ डाइनिंग टेबल में जा बैठा, जहाँ कल रात वो नंगा बैठा था।

शीतल अपनी चूचियां उछलते हर किचन से पानी लेकर आई और टेबल पे रख दी। शीतल का मन था की बो अभी भी वसीम की गोद में बैठे, पैटी इसीलिए उतारकर आई थी वो। लेकिन वसीम ने कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया और चुपचाप सिर झुकाए नाश्ता करने लगा। शीतल थोड़ी देर वहीं खड़ी रही। अभी भी वो इतनी बोल्ड और इतनी बेशर्म नहीं बनी थी की खुलकर बातें कर पाए या पहल कर पाए। फिर वो किचेन में चली गई और वसीम के लिए गरमा गरम कचौड़ियां लाने लगी। एक-दो कचौरी और लेने के बाद उसने मना कर दिया। उसका नाश्ता खतम हो गया तो वो हाथ धोने उठा।

वाशबेसिन किचेन के दरवाजे के पास ही था। हाथ धोते वसीम की नजर शीतल की पैंटी में पड़ी। शीतल नाश्ता की थाली उठा रही थी, वो वसीम को पैटी की तरफ देखती देखी तो शर्मा गई। ऐसें नंगी होकर चुदवाना अलग बात है, और इस तरह काई पैटी देखें और उसकी हालत का अंदाजा लगाए में अलग बात है। शीतल थाली लेकर किचेन में आ गई और अपनी पैंटी को पैरों से साइड करके छुपाने की कोशिश करने लगी।

वसीम को हँसी आ गई।

शीतल और ज्यादा शर्मा गई, बोली- "क्या हुआ हँस क्यों रहे हैं?"

वसीम- "कुछ नहीं.." बोला और वो मुश्कुराता हुआ वापस सोफे पे आकर बैठ गया।

शीतल अपनी पैंटी को हाथ में उठा ली और वसीम के पास आकर इठलाते हुए बोली- "मुझे लगा की फिर आप कुछ करेंगे इसलिए उत्तार दी थी। इसमें हँसने वाली कौन सी बात थी?"
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वसीम कुछ नहीं बोला लेकिन मुश्कुराता रहा।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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शीतल फिर बोली- "मुझे पता है आप क्यों हँस रहे हैं? सुबह आपको टोलिया से खुद को छुपाते देखकर मैं हँसी थी तो अभी हसकर आप उसी का बदला ले रहे हैं..."

वसीम बोला- "पेंटी उतार दी थी इसमें कोई बात नहीं थी। मेरे देखने पे उसे छिपाने क्यों लगी थी पैरों से?"


शीतल वसीम के बगल में जाकर बैठ गई और उसकी बाहों में जाकर चिपक गई। फिर बोली- "आप देख ही ऐसे रहे थे की मैं शर्मा गई थी..."

शीतल वसीम की तरफ घूमकर उससे चिपक कर बैठी हुई थी। शीतल का पूरा जिस्म वसीम के जिस्म से सट रहा था। उसकी चूचियां वसीम के जिस्म में दब रही थी। वसीम की मुस्कराहट रूक गई थी।

शीतल अपना चेहरा ऊपर की और वसीम के चेहरा को अपने हाथों से अपनी तरफ घुमाते हुए उसकी आँखों में देखती हुई बोली- "आप खुश हैं ना वसीम?"

वसीम ने अपनी नजरें नीची कर ली।

शीतल अपने जिश्म को थोड़ा ऊपर उठाई और अपनी चूचियों को वसीम के बदन से रगड़ती हुई उसके नीचे के होठों को चूमने लगी। सिर्फ नाइटी शीतल के बदन को टक रही थी, लेकिन वसीम पूरी तरह से शीतल के जिस्म को महसूस कर पा रहा था। शीतल होठ चूमती रही लेकिन वसीम ने साथ नहीं दिया। शीतल को लगा की कुछ गड़बड़ है। वो उठकर वसीम की जांघों पे बैठ गई और फिर से वसीम से चिपक गई। वो फिर से वसीम के होठों को चूमी और फिर हँसती हुई शरारत भरे अंदाज ने बोली- "क्या हुआ डार्लिंग?"

वसीम कुछ नहीं बोला। शीतल उसके सीने से लग गई और इमोशनल अंदाज में बोली- "क्या हुआ वसीम, मुझसे कोई गलती हुई क्या?"

वसीम ने शीतल की पीठ पे हाथ रखा और सहलाता हुआ बोला "गलती तुमसे नहीं मुझसे हई है। मैं बहशी बन गया था रात में..."

शीतल वसीम के जिश्म को सहलाते हुए बोली- "तो क्या हुआ? इस टाइम में तो कुछ भी हो जाता है। और फिर आप तो बहुत दिन से खुद को दबाए बैठे हैं."

वसीम- "नहीं शीतल, में जानवर बन गया था कल। तुमने मुझपे भरोसा करके, मेरा दर्द समझ कर अपना जिस्म मुझे सौंपा और मैं जानवरों की तरह रात भर तुम्हारे जिश्म को राउंडता रहा। मैं अपने होश खो बैठा था। मुझे माफ कर दो शीतल.."

शीतल- "मैं तो आपको बोली ही हैं की जैसे मन करें वैसे करिए। रोकिए मत खुद को। अपने अंदर के दर्द को बह जाने दीजिए। आपके अंदर का गुबार निकलने दीजिए बाहर.

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वसीम. "शीतल, तुम लोग तो फरिश्ता हो। लेकिन मैं इस लायक नहीं की तुम लोगों की मदद ले पाऊँ। मैं एक पागल जानवर हूँ और मुझं गोली मार देना चाहिए इस समाज को."

शीतल- "ये कैसी बातें कर रहे हैं आप वसीम? सेक्स करते वक़्त ता काई भी वहशी बन जाता है। विकास भी पागलों की तरह करने लगता है जो हमेशा करता है। और आप तो वर्षों के बाद सेक्स किए हैं। अगर कोई आदमी बहुत बात में भूखा हो और उसके सामने लजीज पकवान थाली में सजाकर पेश किया जाए तो वो क्या करेंगा, बोलिए?" शीतल थोड़ा गुस्से में बोली।

वसीम कुछ नहीं बोला। वो गहरी सोच शर्म पछतावे के अंदाज में साफे पे फैलकर बैठा हुआ था।

शीतल फिर से उसके सीने से लगती हई बोली- "प्लीज वसीम, आप इतना मत सोचिए। खुद को बाँधकर मत रखिए अब। जो होता है होने दीजिए। जब मन करें मुझे पाइए। अगर अब भी आप सोचते रहेंगे और दर्द में ही रहेंगे तो फिर हम लोगों के इतना करने का क्या फायदा?"

वसीम ने एक लंबी सांस लिया और बोला- "नहीं शीतल, तुम लोगों ने तो बहुत कुछ किया है मेरे लिए। लेकिन मैं कितना बेंगरत इंसान हैं की तुम्हें गालियां दी। इतनी गंदी-गंदी गालियां की मैं तो शर्म से डूबा जा रहा हूँ मुझे माफ कर दो शीतल। प्लीज मुझे माफ कर दो.."

शीतल उसके दर्द से भरे चेहरे को अपने हाथों में ले ली और उसके गालों को सहलाते हए बोली- "प्लीज... वसीम ऐसा मत कहिए। मैं आपको कुछ बाली क्या? आप जैसे चाहें करिए मैं बोली हैं ना। आपको और गाली देनी हो दीजिए, आपको मारना हो तो मारिए। आपने कोई गलती नहीं की है जिसकी माफी मांग रहे हैं आप। मैं आपकी मंडी हैं, आपकी पालतू कुतिया आह्ह... वसीम प्लीज... इस तरह मत करिए..."

वसीम एक गहरी सांस लेता हुआ खड़ा हो गया। उसने शीतल को अपनी गोद से अलग कर दिया- "नहीं शीतल। मैंने फैसला किया है की मैं अब यहाँ से कहीं दर चला जाऊंगा। हमेशा-हमेशा के लिए.."

शीतल को गुस्सा आ गया, तो बोली "जब दूर ही जाना था तो मेरे पास क्यों आए? क्यों मेरे साथ सुहागरात मनाए? क्यों मेरे साथ शादी किए? मेरा जिस्म तो बेकार हो गया ना आपको देना। क्यों ऐसा किए मेरे साथ?"

वसीम थोड़ा सा आगे बढ़ा और शीतल को अपनी बाहों में भरने लगा। शीतल पीछे हटने लगी। लेकिन वसीम ने उसे अपनी बाहों में भर ही लिया। शीतल वसीम के सीने पे झड़-मूठ के मक्के बरसाने लगी।

वसीम बोला- "प्लीज शीतल... मुझे गलत मत समझो। लेकिन अगर मैं यहाँ रहा तो हालात उसी तरह रहेंगे। समझो मेरी बात को.....

शीतल वसीम के सीने से लग गई थी, कहा- "मुझे कुछ नहीं समझना। और खबरदार जो अब आपने कुछ साचा तो। अब आपको दर्द सहने की कोई जरूरत नहीं है। आपने मुझे अपनी बीवी बनाया है तो मेरा हक है आपकी हर परेशानी दूर करना। अब अगर आपने ऐसी बात की तो मैं गुस्सा जो जाऊँगी.."
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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Superbb story
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