विधवा का पति
उपन्यास : विधवा का पति
लेखक : वेद प्रकाश शर्मा
विधवा का पति
“आह.....आह......मैं कहां हूं......म......मैं कौन हूं ?” मेडिकल इंस्टीट्यूट के एक बेड पर पड़ा मरीज धीरे-धीरे कराह रहा था। तीन नर्सें और एक डॉक्टर उसे चकित भाव से देखने लगे।
जहां उनकी आंखों में उसे होश में आता देखकर चमक उभरी थी , वहीं हल्की-सी हैरत के भाव भी उभर आए। वे ध्यान से गोरे-चिट्टे गोल चेहरे और घुंघराले बालों वाले युवक को देखने लगे, जिसकी आयु तीस के आस-पास थी। वह हृष्ट -पुष्ट और करीब छ: फुट लम्बा था। उसके जिस्म पर हल्के नीले रंग का शानदार सूट था। सूट के नीचे सफेद शर्ट।
कराहते हुए उसने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं, कुछ देर तक चकित-सा अपने चारों तरफ का नजारा देखता रहा। चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कुछ समझ न पा रहा हो। कमरे के हर कोने में घूमकर आने के बाद उसकी नजर डॉक्टर पर स्थिर हो गई। एक झटके से उठ बैठा वह।
एक नर्स ने आगे बढ़कर जल्दी से उसे संभाला , बोली—“प...प्लीज , लेटे रहिए आपके सिर में बहुत गम्भीर चोट लगी है।"
"म...मगर कैसे … क्या हुआ था ?”
आगे बढ़ते हुए डॉक्टर ने कहा— “ आपका एक्सीडेण्ट हुआ था मिस्टर, क्या आपको याद नहीं ?"
"एक्सीडेण्ट , मगर किस चीज से ?"
"ट्रक से, आप कार चला रहे थे।"
"क...कार …मगर , क्या मेरे पास कार भी है ?"
"जी हां, वह कार शायद आप ही की होगी।" हल्की-सी मुस्कान के साथ डॉक्टर ने कहा—"क्योंकि कपड़ों से आप कम-से-कम किसी तरह से लोफर तो नहीं लगते हैं! ”
युवक ने चौंककर जल्दी से अपने कपड़ों की तरफ देखा। अपने ही कपड़ों को पहचान नहीं सका वह। फिर अपने हाथों को अजनबी-सी दृष्टि से देखने लगा। दाएं हाथ की तर्जनी में हीरे की एक कीमती अंगूठी थी। बाईं कलाई में विदेशी घड़ी। अजीब-सी दुविधा में पड़ गया वह। अचानक ही चेहरा उठाकर उसने सवाल किया—“मैं इस वक्त कहां हूं? और आप लोग कौन हैं ?"
"आप इस वक्त देहली के मेडिकल इंस्टीट्यूट में हैं, ये तीनों नर्सें हैं और मैं डाक्टर भारद्वाज , आपका इलाज कर रहा हूं।"
“म....मगर....क....म....मैं....कौन हूं ?"
"क्या मतलब ?" बुरी तरह चौंकते हुए डॉक्टर भारद्वाज ने अपने दोनों हाथ बेड के कोने पर रखे और उसकी तरफ झुकता हुआ बोला—“क्या आपको मालूम नहीं है कि आप कौन हैं ?"
"म...मैं …मैं...!"
असमंजस में फंसा युवक केवल मिमियाता ही रहा। ऐसा एक शब्द भी न कह सका , जिससे उसके परिचय का आभास होता। डॉक्टर ने नर्सों की तरफ देखा , वे पहले ही उसकी तरफ चकित भाव से देख रही थीं। एकाएक ही डॉक्टर ने अपनी आंखें युवक के चेहरे पर गड़ा दीं बोला—“याद कीजिए मिस्टर, आपको जरूर याद है कि आप कौन हैं, दिमाग पर जोर डालिए, प्लीज याद कीजिए मिस्टर कि अपनी कार को खुद ड्राइव करते हुए रोहतक रोड से होकर आप कहां जा रहे थे ?"
"रोहतक रोड ?"
“हां, इसी रोड पर एक ट्रक से आपका एक्सीडेण्ट हो गया था।”
युवक चेहरा उठाए सूनी-सूनी आंखों से डॉक्टर को देखता रहा....भावों से ही जाहिर था कि वह डॉक्टर के किसी वाक्य का अर्थ नहीं समझ सका है। अजीब-सी कशमकश और दुविधा में फंसा महसूस होता वह बोला—"म......मुझे कुछ भी याद नहीं है डॉक्टर, क्यों डॉक्टर, मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है ?"
डॉक्टर के केवल चेहरे पर ही नहीं , बल्कि सारे जिस्म पर पसीना छलछला आया था। हथेलियां तक गीली हो गईं उसकी। अभी वह कुछ बोल भी नहीं पाया था कि युवक ने चीखकर पूछा था—“प्लीज डॉक्टर , तुम्हीं बताओ कि मैं कौन हूं ?"
"जब आप ही अपने बारे में कुछ नहीं बता सकते तो भला हमें क्या मालूम कि आप कौन हैं ?"
"मुझे कौन लाया है यहां, उसे बुलाओ, वह शायद मुझे मेरा नाम बता सके!”
"आपको यहां पुलिस लाई है।"
“प......पुलिस ?”
"जी हां , दुर्घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठी हो गई थी। फिर उस भीड़ में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। ट्रक चालक भाग चुका था। आप बेहोश थे, जख्मी, इसीलिए पुलिस आपको यहां ले आई। इस कमरे के बाहर गैलरी में इस वक्त भी इंस्पेक्टर दीवान मौजूद हैं। वे शायद आपका बयान लेना चाहते हैं, और मेरे ख्याल से आपसे उनका सबसे पहला सवाल यही होगा कि आप कौन हैं।"
"म...मगर मुझे तो आपना नाम भी नहीं पता।" उसकी तरफ देखते हुए बौखलाए-से युवक ने कहा , जबकि डॉक्टर ने तीन में से एक नर्स को गुप्त संकेत कर दिया था। उस नर्स ने सिरिंज में एक इंजेक्शन भरा। डॉक्टर युवक को बातों में उलझाए हुए था , जबकि नर्स ने उसे इंजेक्शन लगा दिया।
कुछ देर बाद बार-बार यही पूछते हुए युवक बेहोश हो गया— "मैं कौन हूं......मैं कौन हूं.....मैँ कौन हूं ?"
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