Hindi novel विधवा का पति

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Hindi novel विधवा का पति

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विधवा का पति
उपन्यास : विधवा का पति
लेखक : वेद प्रकाश शर्मा

विधवा का पति
“आह.....आह......मैं कहां हूं......म......मैं कौन हूं ?” मेडिकल इंस्टीट्यूट के एक बेड पर पड़ा मरीज धीरे-धीरे कराह रहा था। तीन नर्सें और एक डॉक्टर उसे चकित भाव से देखने लगे।
जहां उनकी आंखों में उसे होश में आता देखकर चमक उभरी थी , वहीं हल्की-सी हैरत के भाव भी उभर आए। वे ध्यान से गोरे-चिट्टे गोल चेहरे और घुंघराले बालों वाले युवक को देखने लगे, जिसकी आयु तीस के आस-पास थी। वह हृष्ट -पुष्ट और करीब छ: फुट लम्बा था। उसके जिस्म पर हल्के नीले रंग का शानदार सूट था। सूट के नीचे सफेद शर्ट।
कराहते हुए उसने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं, कुछ देर तक चकित-सा अपने चारों तरफ का नजारा देखता रहा। चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कुछ समझ न पा रहा हो। कमरे के हर कोने में घूमकर आने के बाद उसकी नजर डॉक्टर पर स्थिर हो गई। एक झटके से उठ बैठा वह।
एक नर्स ने आगे बढ़कर जल्दी से उसे संभाला , बोली—“प...प्लीज , लेटे रहिए आपके सिर में बहुत गम्भीर चोट लगी है।"
"म...मगर कैसे … क्या हुआ था ?”
आगे बढ़ते हुए डॉक्टर ने कहा— “ आपका एक्सीडेण्ट हुआ था मिस्टर, क्या आपको याद नहीं ?"
"एक्सीडेण्ट , मगर किस चीज से ?"
"ट्रक से, आप कार चला रहे थे।"
"क...कार …मगर , क्या मेरे पास कार भी है ?"
"जी हां, वह कार शायद आप ही की होगी।" हल्की-सी मुस्कान के साथ डॉक्टर ने कहा—"क्योंकि कपड़ों से आप कम-से-कम किसी तरह से लोफर तो नहीं लगते हैं! ”
युवक ने चौंककर जल्दी से अपने कपड़ों की तरफ देखा। अपने ही कपड़ों को पहचान नहीं सका वह। फिर अपने हाथों को अजनबी-सी दृष्टि से देखने लगा। दाएं हाथ की तर्जनी में हीरे की एक कीमती अंगूठी थी। बाईं कलाई में विदेशी घड़ी। अजीब-सी दुविधा में पड़ गया वह। अचानक ही चेहरा उठाकर उसने सवाल किया—“मैं इस वक्त कहां हूं? और आप लोग कौन हैं ?"
"आप इस वक्त देहली के मेडिकल इंस्टीट्यूट में हैं, ये तीनों नर्सें हैं और मैं डाक्टर भारद्वाज , आपका इलाज कर रहा हूं।"
“म....मगर....क....म....मैं....कौन हूं ?"
"क्या मतलब ?" बुरी तरह चौंकते हुए डॉक्टर भारद्वाज ने अपने दोनों हाथ बेड के कोने पर रखे और उसकी तरफ झुकता हुआ बोला—“क्या आपको मालूम नहीं है कि आप कौन हैं ?"
"म...मैं …मैं...!"
असमंजस में फंसा युवक केवल मिमियाता ही रहा। ऐसा एक शब्द भी न कह सका , जिससे उसके परिचय का आभास होता। डॉक्टर ने नर्सों की तरफ देखा , वे पहले ही उसकी तरफ चकित भाव से देख रही थीं। एकाएक ही डॉक्टर ने अपनी आंखें युवक के चेहरे पर गड़ा दीं बोला—“याद कीजिए मिस्टर, आपको जरूर याद है कि आप कौन हैं, दिमाग पर जोर डालिए, प्लीज याद कीजिए मिस्टर कि अपनी कार को खुद ड्राइव करते हुए रोहतक रोड से होकर आप कहां जा रहे थे ?"
"रोहतक रोड ?"
“हां, इसी रोड पर एक ट्रक से आपका एक्सीडेण्ट हो गया था।”
युवक चेहरा उठाए सूनी-सूनी आंखों से डॉक्टर को देखता रहा....भावों से ही जाहिर था कि वह डॉक्टर के किसी वाक्य का अर्थ नहीं समझ सका है। अजीब-सी कशमकश और दुविधा में फंसा महसूस होता वह बोला—"म......मुझे कुछ भी याद नहीं है डॉक्टर, क्यों डॉक्टर, मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है ?"
डॉक्टर के केवल चेहरे पर ही नहीं , बल्कि सारे जिस्म पर पसीना छलछला आया था। हथेलियां तक गीली हो गईं उसकी। अभी वह कुछ बोल भी नहीं पाया था कि युवक ने चीखकर पूछा था—“प्लीज डॉक्टर , तुम्हीं बताओ कि मैं कौन हूं ?"
"जब आप ही अपने बारे में कुछ नहीं बता सकते तो भला हमें क्या मालूम कि आप कौन हैं ?"
"मुझे कौन लाया है यहां, उसे बुलाओ, वह शायद मुझे मेरा नाम बता सके!”
"आपको यहां पुलिस लाई है।"
“प......पुलिस ?”
"जी हां , दुर्घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठी हो गई थी। फिर उस भीड़ में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। ट्रक चालक भाग चुका था। आप बेहोश थे, जख्मी, इसीलिए पुलिस आपको यहां ले आई। इस कमरे के बाहर गैलरी में इस वक्त भी इंस्पेक्टर दीवान मौजूद हैं। वे शायद आपका बयान लेना चाहते हैं, और मेरे ख्याल से आपसे उनका सबसे पहला सवाल यही होगा कि आप कौन हैं।"
"म...मगर मुझे तो आपना नाम भी नहीं पता।" उसकी तरफ देखते हुए बौखलाए-से युवक ने कहा , जबकि डॉक्टर ने तीन में से एक नर्स को गुप्त संकेत कर दिया था। उस नर्स ने सिरिंज में एक इंजेक्शन भरा। डॉक्टर युवक को बातों में उलझाए हुए था , जबकि नर्स ने उसे इंजेक्शन लगा दिया।
कुछ देर बाद बार-बार यही पूछते हुए युवक बेहोश हो गया— "मैं कौन हूं......मैं कौन हूं.....मैँ कौन हूं ?"
¶¶
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हाथ में रूल लिए इंस्पेक्टर दीवान गैलरी में बेचैनी से टहल रहा था।
एक तरफ दो सिपाही सावधान की मुद्रा में खड़े थे।
कमरे का दरवाजा खुला और डॉक्टर भारद्वाज के बाहर निकलते ही उसकी तरफ दीवान झपट-सा पड़ा , बोला—"क्या रहा डॉक्टर ?"
"उसे होश तो आ गया था, लेकिन...। "
"लेकिन?"
“मैंने इंजेक्शन लगाकर पुन: बेहोश कर दिया है। ”
"म...मगर क्यों? क्या आपको मालूम नहीं था कि यहां मैं खड़ा हूं ? आपको सोचना चाहिए था डॉक्टर कि उसका बयान कितना जरूरी है।"
"मेरा ख्याल है कि वह अब आपके किसी काम का नहीं रहा है ?"
“क्यों?”
"वह शायद अपनी याददाश्त गंवा बैठा है , अपना नाम तक मालूम नहीं है उसे।"
"डॉक्टर?"
"अब आप खुद ही सोचिए कि एक्सीडेण्ट के बारे में वह आपको क्या बता सकता था? वह तो खुद पागलों की तरह बार-बार अपना नाम पूछ रहा था। दिमाग पर और ज्यादा जोर न पड़े, इसीलिए हमने उसे बेहोश कर दिया। दो-तीन घण्टे बाद यह पुन: होश में आ जाएगा और होश में आते ही शायद पुन: अपना नाम पूछेगा। उसकी बेहतरी के लिए उसके सवालों का जवाब देना जरूरी है मिस्टर दीवान , इसीलिए अच्छा तो यह होगा कि इस बीच आप उसके बारे में कुछ पता लगाएं।"
दीवान के चेहरे पर उलझन के अजीब-से भाव उभर आए। मोटी भवें सिकुड़-सी गईं , बोला— "कहीँ यह एक्टिंग तो नहीं कर रहा है डॉक्टर ?"
“क्या मतलब ?" भारद्वाज चौंक पड़ा।
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक्सीडेण्ट की वजह से वह घबरा गया हो, पुलिस के सवालों और मिलने वाली सजा से बचने के लिए...।"
"एक्टिंग सिर्फ चेतन अवस्था में ही की जा सकती है—अचेतन अवस्था में नहीं। और वह बेहोशी की अवस्था में भी यही बड़बड़ाए जा रहा था कि में कौन हूं, इस मामले में अगर आप अपने पुलिस वाले ढंग से न सोचें तो बेहतर होगा , क्योंकि वह सचमुच अपनी याददाश्त गंवा बैठा है। "
"हो सकता है! ” कहकर दीवान उनसे दूर हट गया , फिर वह गैलरी में चहलकदमी करता हुआ सोचने लगा कि इस युवक के बारे में कुछ पता लगाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। दाएं हाथ में दबे रूल का अंतिम सिरा वह बार-बार अपनी बाईं हथेली पर मारता जा रहा था। एकाएक ही वह गैलरी में दौड़ पड़ा—दौड़ता हुआ ऑफिस में पहुंचा।
फोन पर एक नम्बर रिंग किया।
जिस समय दूसरी तरफ बैल बज रही थी , उस समय दीवान ने अपनी जेब से पॉकेट डायरी निकाली और एक नम्बर को ढ़ूंढने लगा , जो उस गाड़ी का नम्बर था , जिसमें से बेहोश अवस्था में युवक उसे मिला था।
दूसरी तरफ से रिसीवर के उठते ही उसने कहा— "हेलो , मैं इंस्पेक्टर दीवान बोल रहा हूं—एक फियेट का नम्बर नोट कीजिए , आर oटी oओ o ऑफिस से जल्दी-से-जल्दी पता लगाकर मुझे बताइए कि यह गाड़ी किसकी है ?"
"नम्बर प्लीज।" दूसरी तरफ से कहा गया।
"डी oवाई o एक्स-तिरेपन-चव्वन।" नम्बर बताने के बाद दीवान ने कहा— “ मैं इस वक्त मेडिकल इंस्टीट्यूट में हूं, अत: यहीं फोन करके मुझे सूचित कर दें।" कहने के बाद उसने इंस्टीट्यूट का नम्बर भी लिखवा दिया।
रिसीवर रखकर वह तेजी के साथ ऑफिस से बाहर निकला और फिर दो मिनट बाद ही वह डॉक्टर भारद्वाज के कमरे में उनके सामने बैठा कह रहा था— “मैं एक नजर उसे देखना चाहता हूं डॉक्टर।”
"आपसे कहा तो था , उसे देखने से क्या मिलेगा ?"
"मैं उसकी तलाशी लेना चाहता हूं—ज्यादातर लोगों की जेब से उनका परिचय निकल आता है।"
"ओह , गुड!" डॉक्टर को दीवान की बात जंची। एक क्षण भी व्यर्थ किए बिना वे खड़े हो गए और फिर कदम-से-कदम मिलाते उसी कमरे में पहुंच गए—जहां युवक अभी तक बेहोश पड़ा था।
दीवान ने बहुत ध्यान से युवक को देखा।
फिर आगे बढ़कर उसने बेहोश पड़े युवक की जेबें टटोल डाली, मगर हाथ में केवल दो चीजें लगीं—उसका पर्स और सोने का बना एक नेकलेस।
इस नेकलेस में एक बड़ा-सा हीरा जड़ा था।
दीवान बहुत ध्यान से नेकलेस को देखता रहा , बोला—"इसके पास कार थी , जिस्म पर मौजूद कपड़े , घड़ी , अंगूठी और यह नेकलेस स्पष्ट करते हैं कि युवक काफी सम्पन्न है।”
"यह नेकलेस शायद इसने किसी युवती को उपहार स्वरूप देने के लिए खरीदा था, वह इसकी पत्नी भी हो सकती है और प्रेमिका भी। " थोड़ी-बहुत जासूसी झाड़ने की कोशिश डॉक्टर ने भी की।
“प्रेमिका होने के चांस ही ज्यादा हैं।"
“ऐसा क्यों ?"
"आजकल के युवक पत्नी को नहीं , प्रेमिका को उपहार देते हैं और पत्नी को देते भी हैं तो वह इतना महंगा नहीं होता।"
डॉक्टर भारद्वाज और कमरे में मौजूद नर्सें धीमे से मुस्कराकर रह गईं।
"यदि नेकलेस इसने आज ही खरीदा है तो इसकी रसीद भी होनी चाहिए!" कहने के साथ ही दीवान ने उसका पर्स खोला। पर्स की पारदर्शी जेब में मौजूद एक फोटो पर दीवान की नजर टिक गई—वह किसी युवती का फोटो था। युवती खूबसूरत थी।
दीवान ने फोटो बाहर निकालते हुए कहा—"ये लो डॉक्टर, उसका फोटो तो शायद मिल गया है , जिसके लिए इसने नेकलेस खरीदा होगा।"
कन्धे उचकाकर डॉक्टर ने भी फोटो को देखा। दीवान ने उलटकर फोटो की पीठ देखी , किन्तु हाथ निराशा ही लगी—शायद उसने यह उम्मीद की थी कि पीठ पर कुछ लिखा होगा , मगर ऐसा कुछ नहीं था।
दीवान उलट-पुलटकर बहुत देर तक फोटो को देखता रहा। जब वह उससे ज्यादा कोई अर्थ नहीं निकाल सका , जितना समझ चुका था तो शेष पर्स को टटोल डाला। बाइस हजार रुपए और कुछ खरीज के अलावा उसके हाथ कुछ नहीं लगा। नेकलेस से सम्बन्धित रसीद भी नहीं।
अंत में एक बार फिर युवती का फोटो उठाकर उसने ध्यान से देखा। अभी दीवान यह सोच ही रहा था कि इस फोटो के जरिए वह इस युवक के विषय में कुछ जान सकता है कि ऑफिस से आने वाली एक नर्स ने कहा—"ऑफिस में आपके लिए फोन है इंस्पेक्टर।"
सुनते ही दीवान रिवॉल्वर से निकली गोली की तरह कमरे से बाहर निकल गया।
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अपने कमरे में पहुंचकर डॉक्टर भारद्वाज ने उस युवक के केस के सम्बन्ध में ही अपने तीन सहयोगी डॉक्टरों से फोन पर बात की—बल्कि कहना चाहिए कि इस केस पर विचार-विमर्श करने के लिए उन्होंने इसी समय तीनों को अपने कमरे में आमंत्रित किया था। तीसरे डॉक्टर से सम्बन्ध विच्छेद करके उन्होंने रिसीवर अभी क्रेडिल पर रखा ही था कि धड़धड़ाता हुआ दीवान अन्दर दाखिल हुआ।
इस वक्त पहले की अपेक्षा वह कुछ ज्यादा बौखलाया हुआ था।
"क्या बात है इंस्पेक्टर, कुछ पता लगा ?"
"नहीं!" कहने के साथ ही दीवान 'धम्म ' से कुर्सी पर गिर गया। डॉक्टर भारद्वाज ने उसे ध्यान से देखा—सचमुच यह बुरी तरह बेचैन , उलझा हुआ और निरुत्साहित-सा नजर आ रहा था। उसे ऐसी अवस्था में देखकर भारद्वाज ने पूछा—"क्या बात है इंस्पेक्टर? फोन सुनने के लिए जाते वक्त तो तुम इतने थके हुए नहीं थे ?"
"एस oपी o साहब का फोन था। ”
"फिर ?"
"इस युवक की कार जिस ट्रक से भिड़ी थी , उस ट्रक के बारे में छानबीन करने पर पता लगा है कि वह ट्रक स्मगलर्स का है।"
"ओह!”
"सारा ट्रक स्मगलिंग के सामान से भरा पड़ा था और उस पर इस्तेमाल की गई नम्बर प्लेट भी जाली थी—इससे भी ज्यादा भयंकर बात यह पता लगी है कि इस युवक की कार से टकराने से पहले रोहतक में यह ट्रक एक बारह वर्षीय बच्चे को कुचल चुका था।"
"ओह , माई गॉड।"
“इस ट्रक पर लगी नम्बर प्लेट वाला नम्बर बताते हुए हरियाणा पुलिस ने वायरलेस पर सूचना दी है कि उस बारह वर्षीय खूबसूरत बच्चे की लाश अभी तक सड़क पर ही पड़ी है, वह ट्रक उसके सिर को पूरी तरह कुचलकर वहां से भागा था। ”
"कैसा जालिम ड्राइवर था वह?"
"क्या तुम समझ रहे हो डॉक्टर कि यह सब मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं ?"
“क्यों ?”
"ताकि तुम एहसास कर सको कि इस युवक की याददाश्त समाज , पुलिस और कानून के लिए कितनी जरूरी है—ट्रक में कागजात नहीं हैं , यानि पता नहीं लग सका कि वह किसका है, यदि उसके ड्राइवर का पता लग जाए तो निश्चित रूप से हम उसके मालिक तक पहुंच जाएंगे, और उस ड्राइवर को केवल एक ही शख्स पहचान सकता है, वह युवक।"
"तुम इतने विश्वासपूर्वक कैसे कह सकते हो ?"
"हमारे एस oपी o साहब की यही राय है, खुद मेरी भी और हमारी यह राय निराधार नहीं है। उसका आधार है, एक्सीडेण्ट की सिचुएशन, युवक की कार और ट्रक की भिड़न्त बिल्कुल आमने-सामने से हुई है। एक्सीडेण्ट होने से पहले इस युवक ने ट्रक ड्राइवर को बिल्कुल साफ देखा होगा या उसे पहचान सकता है। डॉक्टर, अगर तुम यह न कहो कि उसकी याददाश्त गुम हो गई है तो मैं स्मगलर्स से सम्बन्धित समझे जाने वाले सभी ड्राइवरों के फोटो युवक के सामने डाल दूंगा। ”
"म...मगर दिक्कत तो यह है इंस्पेक्टर कि युवक की याददाश्त वाकई गुम हो गई है, तुम ट्रक ड्राइवर की शक्ल की बात करते हो—एक्सीडेण्ट की बात करते हो। उसे तो यह भी याद नहीं है कि उसके पास कोई कार भी थी।"
"उसे ठीक करना होगा, उसकी याददाश्त वापस आने के लिए अपनी एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना होगा तुम्हें, यह बहुत जरूरी है। वह स्मगलर ही नहीं , एक ग्यारह वर्षीय मासूम बच्चे का हत्यारा भी है।"
"समझ रहा हूं इंस्पेक्टर। मैं तो खुद ही कोशिश कर रहा हूं। इसी केस पर विचार-विमर्श करने के लिए मैंने अपने तीन सहयोगी डॉक्टर्स को यहां बुलाया है, वे आते ही होंगे।”
कुछ कहने के लिए दीवान ने अभी मुंह खोला ही था कि एक नर्स ने आकर सूचना दी—“एक बार फिर आपका फोन है इंस्पेक्टर।”
बिना किसी प्रकार की औपचारिकता निभाए दीवान वहां से तीर की तरह निकल गया। दौड़कर उसने गैलरी पार की—ऑफिस में पहुंचा-क्रेडिल के पास ही रखे रिसीवर को उठाकर बोला— "इंस्पेक्टर दीवान हियर।"
"वांछित नम्बर की कार का पता लग गया है।"
दीवान ने धड़कते दिल से पूछा— “क्या है उसका नाम?"
"अमीचन्द जैन—यमुना पार , प्रीत विहार में रहते हैं।"
"ओह।"
"मगर प्रीत विहार पुलिस स्टेशन से पता लगा है कि आज सुबह ही मिस्टर अमीचन्द जैन ने अपनी गाड़ी चोरी हो जाने की रपट लिखवाई थी। ”
"क...क्या?” दीवान का दिमाग झन्नाकर रह गया।
“रपट के मुताबिक अमीचन्द ने रात ग्यारह बजे लायन्स क्लब की मीटिंग से लौटकर अपनी गाड़ी अच्छी-भली गैराज में खड़ी की थी , मगर सुबह जाने पर देखा कि गैराज का ताला टूटा पड़ा है और गाड़ी उसके अन्दर से गायब है।"
"यानि गाड़ी रात के ग्यारह के बाद किसी समय चुराई गई ?"
“जी हां।"
कहने के लिए दीवान को एकदम से कुछ नहीं सूझा। उसका दिल ढेर सारे सवाल करने के लिए मचल रहा था , मगर स्वयं ही समझ नहीं पा रहा था कि वह जानना क्या चाहता है। अत: कुछ देर तक लाइन पर खामोशी रही—फिर दीवान ने कहा— "तुम वायरलेस पर प्रीत विहार पुलिस स्टेशन को सूचना दे दो कि वे अमीचन्द से यह कहकर कि उसकी कार मिल गई है , उसे मेडिकल इंस्टीट्यूट भेज दें।"
“ओ oके o।" कहकर दूसरी तरफ से कनेक्शन ऑफ कर दिया गया। दीवान हाथ में रिसीवर लिए किसी मूर्ति के समान खड़ा था—किरर्रर...किर्रर्रर की अवाज उसके कान के पर्दे को झनझना रही थी। वहीं खड़ा वह सोच रहा था कि युवक के बारे में कुछ जानने का यह 'क्लू ' भी बिल्कुल फुसफुसा साबित हुआ है-कार चोरी की थी। क्या वह युवक चोर है ?
यह विचार उसके कण्ठ से नीचे नहीं उतर सका , क्योंकि आंखों के सामने शानदार सूट , हीरे की अंगूठी , विदेशी घड़ी , बाईस हजार रुपये और हीरा जड़ित वह सोने का नेकलेस नाच उठा।
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उस वक्त तक युवक बेहोश ही था , जब अमीचन्द जैन वहां पहुंच गया—हालांकि इंस्पेक्टर दीवान को ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी कि अमीचन्द जैन युवक के बारे में कुछ बता सकेगा। फिर भी एक नजर उसने अमीचन्द से युवक को देख लेने के लिए कहा।
वही हुआ जो दीवान पहले से जानता था।
यानि अमीचन्द ने कहा—“यह युवक मेरे लिए नितान्त अपरिचित है।"
डॉक्टर भारद्वाज के तीनों सहयोगी डॉक्टर आ चुके थे और अब वे चारों एक बन्द कमरे में उस केस के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर रहे थे। नर्स को निर्देश दे दिया गया था कि युवक के होश में आते ही उन्हें सूचना दे दी जाए।
उस वक्त करीब एक बजा था , जब नर्स ने उन्हें सूचना दी।
वे चारों ही उस कमरे में चले गए , जिसमें युवक था। गैलरी के बाहर बेचैन-सा टहलता हुआ दीवान उत्सुकतापूर्वक उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था। इस वक्त उसके दिमाग में भी केवल एक ही सवाल चकरा रहा था कि वह युवक कौन है ?
पता लगाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था उसे।
दरवाजा खुला , चारों डॉक्टर बाहर निकले और दीवान लपककर उनके समीप पहुंच गया। बोला— “क्या रहा डॉक्टर ?"
"उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा है।" डाक्टर भारद्वाज ने बताया।
"उसके ठीक होने के बारे में आपकी क्या राय है ?"
एक अन्य डॉक्टर ने कहा— "अगर ठीक होने से आपका तात्पर्य उसकी याददाश्त वापस आने से है तो हम यह कहेंगे कि उसमें चिकित्सा विज्ञान कुछ नहीं कर सकता।"
"क्या मतलब?" दीवान का चेहरा फक्क पड़ गया था।
अचानक ही डॉक्टर भारद्वाज ने पूछा— “क्या तुमने कभी कोई खराब घड़ी देखी है इंस्पेक्टर? खराब से तात्पर्य है ऐसी घड़ी देखी है , जो बन्द पड़ी हो अथवा कम या ज्यादा समय दे रही हो ?"
"य...ये घड़ी बीच में कहां से आ गई ?"
"इस वक्त उस युवक का मस्तिष्क नाजुक घड़ी के समान है। कमानी और घड़ी का संतुलन ही वे मुख्य चीजें हैं , जिनसे घड़ी सही समय देती है , अगर संतुलन ठीक नहीं है तो घड़ी धीमी चलेगी या तेज, जबकि इस युवक के दिमाग रूपी घड़ी की दोनों चीजें खराब हैं साधारण अव्यवस्था होने पर ये सारी चीजें ठीक काम करने लगेंगी, कई बार यह सम्भव होता है कि ऐसी घड़ी साधारण झटके से सही चलने लगती है , मगर ध्यान रहे—यदि झटका आवश्यकता से जरा भी तेज लग जाए तो परिणाम उल्टे और भयानक ही निकलते हैं। यह पागल हो सकता है , अत: उतना संतुलित झटका देना किसी डॉक्टर के वश में नहीं है—वह तो स्वयं ही होगा।"
"कब ?”
"जब प्रकृति चाहे। ऐसा एक क्षण में ही होगा , वह क्षण भविष्य की कितनी पर्तों के नीचे दबा है—या भला कोई डॉक्टर कैसे बता सकता है ?"
"म...मेरा मतलब यह झटका उसे किन अवस्थाओं में लगने की सम्भावना है ?"
“विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है , यदि अचानक ही उसके सामने कोई उसका बहुत ही प्रिय व्यक्ति आ जाए तो संभव है।"
इंस्पेक्टर दीवान की आंखों के सामने युवक के पर्स से निकला युवती का फोटो नाच उठा। कुछ देर तक जाने वह किन ख्यालों में गुम रहा—फिर बोला— “ क्या मैं उससे बात कर सकता हूं, डॉक्टर ?"
"प्रत्यक्ष में उसे बहुत ज्यादा चोट नहीं लगी है, बयान ले सकते हो , मगर हम एक बार फिर कहेंगे—प्लीज , उसकी याददाश्त के सम्बन्ध में अपने पुलिसिया ढंग से न सोचें, ऐसी कोई बात न करें , जिससे उसके मस्तिक को वह झटका लगे , जिससे वह पागल हो सकता है।"
"थैंक्यू डॉक्टर , मैं ध्यान रखूंगा।" कहकर इंस्पेक्टर दीवान फिरकनी की तरह एड़ी पर घूम गया और अगले ही पल आहिस्ता से दरवाजा खोलकर यह कमरे के अन्दर था।
युवक बेड पर रखे तकिए पर पीठ टिकाए अधलेटी-सी अवस्था में बैठा था। उसके समीप ही स्टूल पर एक नर्स बैठी थी , जो दीवान को देखते ही उठकर खड़ी हो गई। युवक उलझी हुई-सी नजरों से दीवान को देख रहा था।
"हैलो मिस्टर।” उसके पास पहुंचकर दीवान ने धीमे से कहा।
युवक कुछ नहीं बोला, ध्यान से दीवान को केवल देखता रहा।
दीवान स्टूल पर बैठता हुआ बोला—“क्या तुम बोल नहीं सकते ?"
"आप वही इंस्पेक्टर हैं न , जो मेरे बारे में पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं?”
"जी हां , मेरा नाम दीवान है।"
युवक ने उत्सुकतापूर्वक पूछा— “कुछ पता लगा ?"
"तुम्हें कैसे मालूम कि मैं...।"
"डॉक्टर ने बताया था , मैं बार-बार उससे पूछ रहा था , उसने कहा कि एक पुलिस इंस्पेक्टर मेरे बारे में पता लगाने के लिए इनवेस्टिगेशन कर रहा है।"
दीवान निश्चय नहीं कर पा रहा था कि युवक को वह कड़ी दृष्टि से घूरे अथवा सामान्य भाव से , कुछ देर तक शान्त रहने के बाद बोला—“देखो , यदि तुम होने वाले एक्सीडेण्ट, पुलिस की पूछताछ या मिलने वाली सजा से आतंकित हो तो मैं स्पष्ट किए देता हूँ कि उस एक्सीडेण्ट में तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। तुम अपनी साइड पर ड्राइविंग कर रहे थे , हवा से बातें करते उस ट्रक ने रांग साइड़ में आकर तुम्हारी कार में टक्कर मारी , अत: तुम्हारे लिए डरने जैसी कोई बात नहीं है।”
"मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि एक्सीडेण्ट हुआ था, मैं यहां हूं, सिर में चोट है, पिछली एक भी बात याद नहीं कर पा रहा हूं, डॉक्टर्स , नर्स और तुम भी कह रहे हो कि मेरा एक्सीडेण्ट हुआ था , इसीलिए मानना पड़ रहा है कि जरूर हुआ होगा।"
"क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं है? अपना नाम भी ?"
"मैं खुद परेशान हूं।"
"क्या तुम इन चीजों को पहचानते हो ?" सवाल करते हुए दीवान ने पर्स और नेकलेस निकालकर उसकी गोद में डाल दिए।
उन्हें देखने के बाद युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाई।
अब दीवान ने जेब से युवती का फोटो निकाला और उसे दिखाता हुआ बोला— “क्या तुम इस युवती को भी नहीं पहचानते ?”
कुछ देर तक युवक ध्यान से फोटो को देखता रहा। दीवान बहुत ही पैनी निगाहों से उसके चेहरे पर उत्पन्न होने वाले भावों को पढ़ रहा था, किन्तु कोई ऐसा भाव वह नहीं खोज सका , जो उसके लिए आशाजनक हो। युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाते हुए कहा— "कौन है ये ?”
"फिलहाल इसका नाम तो मैं भी नहीं जानता , मगर यह फोटो आपके पर्स से निकली है।"
"मेरे पर्स से?"
"जी हां। यह पर्स आप ही की जेब से निकला है और नेकलेस भी।"
युवक चकित भाव से इन तीनों चीजों को देखने लगा। आंखों में उलझन-सी थी, बोला—"अजीब बात है, इंस्पेक्टर ! मैं खुद ही से खो गया हूं।"
अचानक ही दीवान की आंखों में सख्त भाव उभर आए , चेहरा कठोर हो गया और वह युवक की आंखों में झांकता हुआ गुर्राया—"तुम्हारा यह नाटक डॉक्टर्स के सामने चल गया मिस्टर , पुलिस के सामने नहीं...।"
युवक ने चौंकते हुए पूछा—"क्या मतलब ?"
"तुमने अमीचन्द के गैराज से गाड़ी चुराई—रात के समय कोई संगीन अपराध किया और फिर सुबह दुर्भाग्य से एक्सीडेण्ट हो गया—तुम चोरी और रात में किए अपने किसी अपराध से बचने के लिए नाटक कर रहे हो।"
"म...मैँ समझ नहीं रहा हूं इंस्पेक्टर? कैसी चोरी? कैसा अपराध और यह अमीचन्द कौन है ?"
"वही , जिसकी तुमने गाड़ी चुराई थी।"
"अजीब बात कर रहे हैं आप!"
"जिस ट्रक से तुम्हारी टक्कर हुई थी , उसमें स्मगलिंग का सामान था, वह ट्रक ड्राइवर एक मासूम बच्चे का हत्यारा है—उसे केवल तुम्हीं ने देखा है मिस्टर , सिर्फ तुम ही उसे पहचान सकते हो, उस तक पहुंचने में यदि तुम मेरी मदद करो तो कार चुराने जैसे छोटे जुर्म से मैं तुम्हें बरी करा सकता हूं।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है , कैसा ट्रक? कैसा ड्राइवर?”
"उफ्फ।" झुंझलाकर दांत पीसते हुए दीवान ने मोटा रूल अपने बाएं हाथ पर जोर से मारा। यह झुंझलाहट उस पर इसीलिए हावी हुई थी , क्योंकि अब वह इस नतीजे पर पहुंच गया था कि युवक की याददाश्त वाकई गुम है।
¶¶
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Masoom
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Re: Hindi novel विधवा का पति

Post by Masoom »

रात के करीब दस का समय था।
हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। युवक अधलेटी अवस्था में ही बेड पर पड़ा था और उसके पांयते स्टूल पर बैठी नर्स कोई उपन्यास पढ़ने में व्यस्त थी।
युवक का दिमाग आज दिन भर की घटनाओं में भटक रहा था—ऐसा उसे कोई नहीं मिला था , जो यह बता सके कि वह कौन है ?
यह सोच-सोचकर वह पागल हुआ जा रहा था कि आखिर मैं हूं कौन ?
इसी सवाल की तलाश में भटकते हुए युवक की दृष्टि नर्स पर ठिठक गई—वह उपन्यास पढ़ने में तल्लीन थी, खूबसूरत थी। बेदाग सफेद लिबास में वो कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। युवक की नजर उसके जिस्म पर थिरकने लगी—दृष्टि वक्षस्थल पर स्थिर हो गई।
एकाएक ही जाने कहां से आकर युवक के दिमाग में यह विचार टकराया कि यदि इस नर्स के तन से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह कैसी लगेगी ?
एक नग्न युवती उसके सामने जा खड़ी हुई।
युवक रोमांचित-सा होने लगा।
उसके मन में उठ रहे भावों से बिल्कुल अनभिज्ञ नर्स उपन्यास में डूबी धीमे-धीमे मुस्करा रही थी—शायद वह उपन्यास के किसी कॉमेडी दृश्य पर थी—युवक ने जब उसके होंठों पर मुस्कान देखी तो जाने क्यों उसकी मुट्ठियां कस गईं।
दृष्टि उसके वक्षस्थल से हटकर ऊपर की तरफ चढ़ी।
गर्दन पर ठहर गई।
नर्स की गर्दन गोरी , लम्बी और पतली थी।
युवक के दिमाग में अचानक ही विचार उठा कि अगर मैं इस नर्स की गर्दन दबा दूं तो क्या होगा ?
‘यह मर जाएगी।’
‘पहले इसका चेहरा लाल-सुर्ख होगा , बन्धनों से निकलने के लिए छटपटाएगी—मगर मैं इसे छोडूंगा नहीं—इसके मुंह से 'गूं-गूं' की आवाज निकलने लगेगी—इसकी आंखें और जीभ बाहर निकल आएंगीं—कुतिया की तरह जीभ बाहर लटका देगी यह।’
‘तब , मैं इसकी गर्दन और जोर से दबा दूंगा।’
‘मुश्किल से दो ही मिनट में यह फर्श पर गिर पड़ेगी—इसकी जीभ उस वक्त भी मरी हुई कुतिया की तरह निकली हुई होगी, आंखें उबली पड़ी होंगी, चेहरा बिल्कुल निस्तेज होगा —सफेद कागज-सा—उस अवस्था में कितनी खूबसूरत लगेगी यह हां! इसे मार ही डालना चाहिए।’
युवक के दिमाग में रह-रहकर यही वाक्य टकराने लगा— 'इसे मार डालो—मरने के बाद फर्श पर पड़ी यह बहुत खूबसूरत लगेगी—इसकी गर्दन दबा दो। '
युवक की आंखों में बड़े ही हिंसक भाव उभर आए , चेहरा खून पीने के लिए तैयार किसी आदमखोर पशु के समान क्रूर और वीभत्स हो गया, आंखें सुर्ख हो उठीं। जाने क्या और कैसे अजीब-सा जुनून सवार हो गया था उस पर, उसका सारा जिस्म कांप रहा था। मुंह खून के प्यासे भेड़िए की तरह खुल गया, लार टपकने लगी—बेड पर बैठा वह धीरे-धीरे कांपने लगा—जिस्म में स्वयं ही अजीब-सा तनाव उत्पन्न होता
चला गया।
बहुत ही डरावना नजर आने लगा वह।
नर्स बिल्कुल बेखबर उपन्यास पढ़ रही थी।
धीरे-धीरे यह उठकर बैठ गया।
बेड के चरमराने से नर्स का ध्यान भंग हुआ।
उसने पलटकर युवक की तरफ देखा और उसे देखकर नर्स के कण्ठ से अनायास ही चीख निकल गई—उपन्यास फर्श पर गिर गया—चीखने के साथ ही वह कुछ इस तरह हड़बड़ाकर उठी थी कि स्टूल गिर पड़ा।
युवक के मुंह से पंक्चर हुए टायर की-सी आवाज निकली।
एक बार पुन: चीखकर आतंकित नर्स दरवाजे की तरफ दौड़ी , मगर अभी वह दरवाजे तक पहुंची भी नहीं थी कि युवक ने बेड ही से किसी बाज की तरह उस पर जम्प लगाई और नर्स को साथ लिए फर्श पर गिरा।
अब , नर्स फर्श पर पड़ी थी और युवक उसके ऊपर सवार उसका गला दबा रहा था—नर्स चीख रही थी—युवक के खुले हुए मुंह से लार नर्स के चेहरे पर गिर रही थी —बुरी तरह आतंकित नर्स छटपटा रही थी।
तभी गैलरी में भागते कदमों की आवाज गूंजी। दरवाजा 'भड़ाक '-से खुला।
हड़बड़ाए-से एक साथ कई नर्सें और डॉक्टर्स कमरे में दाखिल हो गए। कमरे का दृश्य देखते ही वे चौंक पड़े, और फिर इससे पहले कि युवक की गिरफ्त में फंसी नर्स की श्वांस-क्रिया रुके—उन्होंने युवक को पकड़कर अलग कर दिया।
उनके बन्धनों से मुक्त होने के लिए युवक बुरी तरह मचल रहा था और साथ ही हलक फाड़कर चीख रहा था— “ छोड़ो मुझे, मुझे छोड़ दो, मैँ इसे मार डालूंगा—मरी हुई यह बहुत खूबसूरत लगेगी—मुझे छोड़ दो।"
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