मोमो जिन्न ने उन सब पर निगाह मारी। चेहरे पर सोचें दौड़ रही थीं।
एकाएक ही मोमो जिन्न सतर्क हआ। उसने गर्दन जरा-सी टेडी करके आंखें बंद कर ली और हौले-हौले सिर हिलाने लगा । जैसे किसी की बात बहुत ध्यान से सुन रहा हो।
ये सब एक मिनट रहा फिर वो सामान्य हो गया। उसी पल सामने से आता बूंदी दिखाई दिया।
उसे देखते ही मोमो जिन्न के चेहरे पर अकड़ के भाव आ गए। कमर पर हाथ बांधकर वो दूसरी तरफ देखने लगा।
वहां पहुंचकर बूंदी ने हर तरफ नजर मारी। चेहरे पर गम्भीरता थी।
मोमो जिन्न ने उसकी तरफ पीठ कर रखी थी। बूंदी मोमो जिन्न से बोला।
“तुम मुझसे नाराज क्यों हो?" मोमो जिन्न पलटा। बूंदी को घूरा। बूंदी मुस्कराया।
"बोलो। तुम मुझसे नाराज क्यों हो?"
“महाकाली ने मेरे मालिक को कैद कर रखा है। तुम महाकाली के सेवक हो।"
“वो ही तो मैं कहना चाहता हूं कि हम सेवक हैं। मालिक की वजह से हम क्यों आपस में दुश्मनी करें।"
“तुम मुझे अच्छे नहीं लगते।"
“मैंने तो तुम्हारा कोई बुरा नहीं किया।" बूंदी बोला।
“अगर तुम मुझसे दोस्ती करना चाहते हो तो मुझे जथूरा तक ले चलो।" मोमो जिन्न बोला।
“महाकाली की आज्ञा के बिना मैं ये काम नहीं कर सकता।"
"फिर मुझसे बात मत करो।” मोमो जिन्न बोला।
“मैं तुम्हें जथूरा तक पहुंचा भी दूं तो तुम उसे आजाद नहीं करा सकते। वो तिलिस्मी कैद है। देवा-मिन्नो के नाम का तिलिस्म बंधा है। वो दोनों ही जथूरा तक, तिलिस्म तोड़कर पहुंच सकते हैं। इस काम में तुम्हारा कोई फायदा नहीं।"
“तुम मुझे जथूरा तक पहुंचा दो। बाकी देखना मेरा काम है।"
“ये मैं नहीं कर सकता।”
"तो फिर मुझसे बात मत करो।"
तभी नानिया के होंठों से कराह निकली। उसे होश आने लगा था।
अगले दस मिनटों में सबको होश आ गया।
"ये तो कोई किला लगता है सोहनलाल।” नानिया कह उठी।
"किला ही है।" मोमो जिन्न बोला—“ये महाकाली का किला है।"
"तुम्हें कैसे पता?”
“कुछ देर पहले मुझे जथूरा के सेवकों ने ये बात बताई थी कि ये महाकाली का किला है।"
"ये तो खंडहर किला है।" लक्ष्मण दास ने कहा।
"लगता है महाकाली यहां नहीं रहती।” जगमोहन ने कहा।
सोहनलाल ने बूंदी को देखकर पूछा।
"ये महाकाली का किला है?"
"हां"
“महाकाली कहां है?"
"मैं नहीं जानता।"
"तुम्हें महाकाली से आदेश कैसे मिलते हैं?"
“महाकाली की परछाई आकर आदेश देती है।"
"हमें यहां क्यों लाए हो?"
“ताकि जथूरा तक पहुंच सको या कभी भी न पहुंच सको।” बूंदी ने कहा।
“इससे हमें कोई भी जवाब ठीक से नहीं मिलने वाला।” सपन चड्ढा ने कहा।
"लेकिन अब करें क्या?"
तभी मोमो जिन्न ने गर्दन टेड़ी कर ली। आंखें बंद हो गईं। वो कुछ सुनते हुए सिर हिलाने लगा।
"इसका टेलीफोन फिर बजने लगा।” लक्ष्मण दास ने कहा।
"जिस दिन इससे पीछा छूटेगा, मंदिर में प्रसाद चढ़ाने जाऊंगा।" सपन चड्ढा ने तीखे स्वर में कहा। __ “मेरी तरफ से भी चढ़ा देना। एडवांस में चढ़ा देते हैं।"
तभी मोमो जिन्न सीधा होते हुए कह उठा।
“जथूरा के सेवकों ने अभी-अभी मुझे बताया है कि जथूरा इसी किले में कैद है।"
"क्या?" सब चौंक पड़े।
“इसी किले में?" मोमो जिन्न ने सहमति में सिर हिलाया।
“जथूरा के सेवकों को ये बात कैसे पता चली?" सोहनलाल ने पूछा।
' “जैसे पहले ही बताया था कि जथूरा के ग्रहों को प्रोग्राम करके सैटलाइट से जोड़ रखा है। सैटलाइट जथूरा को ढूंढ़ने का काम भी कर रहा था परंतु पहले जथूरा के बारे में कोई खबर नहीं मिल रही थी। अब हम लोग यहां पहुंचे हैं तो सैटलाइट सिग्नल भेजने लगा कि जिस किले में हम हैं, जथूरा भी इसी किले में कैद है। तो ये बात मुझे बता दी गई।"
- "फिर तो हमने मैदान मार लिया।" जगमोहन मुस्कराकर कह उठा।
महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
"अभी जथूरा को ढूंढ़ना बाकी है।” नानिया बोली।
"ये सब आसान नहीं है।" मोमो जिन्न ने कहा।
“अब क्या समस्या है। अब तो...।" ।
“जथुरा को महाकाली ने तिलिस्म के ताले में कैद कर रखा है।" मोमो जिन्न ने गम्भीर स्वर में कहा— “जब तब देवा-मिन्नो तिलिस्म के उस ताले को नहीं खोलेंगे, तब तक जथूरा की आजादी सम्भव नहीं।" __
“हम नहीं खोल सकते तिलिस्मी ताले को?” सोहनलाल ने पूछा।
“नहीं वो चाबी वाला ताला नहीं है।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा। ___
"देवराज चौहान और मोना चौधरी कैसे खोलेंगे, तिलिस्मी ताले को?” सोहनलाल ने पूछा।
“उनके छूने भर से रास्ता खुल जाएगा। क्योंकि उनके ग्रहों पर तिलिस्म बांधा गया है।"
“अब क्या पता देवा-मिन्नो कहां पर हैं?" नानिया कह उठी। जगमोहन ने बूंदी को देखा।
“तुम्हें तो पता होगा कि देवराज चौहान और मोना चौधरी कहां
“या तो वो जिंदा हैं या मर गए।” बूंदी ने मुस्कराकर कहा।
"इससे बात करने का कोई फायदा नहीं।” जगमोहन ने मुंह बिगाड़ा।
"हम पता तो लगा लें कि जथूरा कहां पर कैद है।” नानिया बोली।
“हां, हम कम-से-कम ये तो कर ही सकते हैं।” सोहनलाल ने कहा। सब उठकर मिट्टी-धूल वाले कपड़े झाड़ने लगे। जगमोहन ने बूंदी से कहा।
“हमें पता तो चल ही गया है कि जथूरा यहीं कैद है। हम उसे ढूंढ़ ही लेंगे। बेहतर होगा कि तुम ही बता दो। हमें भटकना नहीं पड़ेगा।" ___
“भटकने से फायदा भी हो सकता है। नुकसान भी हो सकता है।" बूंदी ने कहा।
"फायदा हो सकता है?"
"हां"
"किस बात का?"
"भटकोगे तो पता चल जाएगा। फायदे के साथ नुकसान को मत भूलो। मैंने दो बातें कहीं हैं।"
* “छोड़ो इसे। हम खुद ही जथूरा को ढूंढ लेंगे।” नानिया ने तीखे स्वर में कहा।
"ये सब आसान नहीं है।" मोमो जिन्न ने कहा।
“अब क्या समस्या है। अब तो...।" ।
“जथुरा को महाकाली ने तिलिस्म के ताले में कैद कर रखा है।" मोमो जिन्न ने गम्भीर स्वर में कहा— “जब तब देवा-मिन्नो तिलिस्म के उस ताले को नहीं खोलेंगे, तब तक जथूरा की आजादी सम्भव नहीं।" __
“हम नहीं खोल सकते तिलिस्मी ताले को?” सोहनलाल ने पूछा।
“नहीं वो चाबी वाला ताला नहीं है।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा। ___
"देवराज चौहान और मोना चौधरी कैसे खोलेंगे, तिलिस्मी ताले को?” सोहनलाल ने पूछा।
“उनके छूने भर से रास्ता खुल जाएगा। क्योंकि उनके ग्रहों पर तिलिस्म बांधा गया है।"
“अब क्या पता देवा-मिन्नो कहां पर हैं?" नानिया कह उठी। जगमोहन ने बूंदी को देखा।
“तुम्हें तो पता होगा कि देवराज चौहान और मोना चौधरी कहां
“या तो वो जिंदा हैं या मर गए।” बूंदी ने मुस्कराकर कहा।
"इससे बात करने का कोई फायदा नहीं।” जगमोहन ने मुंह बिगाड़ा।
"हम पता तो लगा लें कि जथूरा कहां पर कैद है।” नानिया बोली।
“हां, हम कम-से-कम ये तो कर ही सकते हैं।” सोहनलाल ने कहा। सब उठकर मिट्टी-धूल वाले कपड़े झाड़ने लगे। जगमोहन ने बूंदी से कहा।
“हमें पता तो चल ही गया है कि जथूरा यहीं कैद है। हम उसे ढूंढ़ ही लेंगे। बेहतर होगा कि तुम ही बता दो। हमें भटकना नहीं पड़ेगा।" ___
“भटकने से फायदा भी हो सकता है। नुकसान भी हो सकता है।" बूंदी ने कहा।
"फायदा हो सकता है?"
"हां"
"किस बात का?"
"भटकोगे तो पता चल जाएगा। फायदे के साथ नुकसान को मत भूलो। मैंने दो बातें कहीं हैं।"
* “छोड़ो इसे। हम खुद ही जथूरा को ढूंढ लेंगे।” नानिया ने तीखे स्वर में कहा।
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
सोहनलाल ने मोमो जिन्न से कहा।
-
“तुम नहीं बता सकते कि इस महल में जथूरा कहां है?"
"मुझे ज्ञान होता तो मैं बता चुका होता।" मोमो जिन्न ने कहा। नजरें बूंदी पर गईं। उससे कहा-“तुम बता दो।”
“नहीं बता सकता। मुझे इसके लिए हुक्म नहीं है।" बूंदी ने कहा।
मोमो जिन्न ने कठोर निगाहों से बंदी को देखा। बूंदी मुस्करा पड़ा। फिर वे सब महल के भीतर की तरफ चल पड़े।
हर तरफ सुनसानी थी। "कभी ये महल कितना सुंदर रहा होगा।” नानिया कह उठी।
“अब भी बहुत बेहतर है।" जगमोहन बोला—“साफ-सफाई की जरूरत है।
धूल-भरी राहदारी में आगे बढ़ते जा रहे थे। उनके कदमों की आवाजें गूंज रही थीं। सामने ही सूखे पेड़ पर झूला लटका रखा था। परंतु झूलने वाला कोई नहीं था। जगह-जगह स्त्री-पुरुषों के बुत नजर आ रहे थे। कोई बुत तो राहदारी में खड़ा था। उन्हें इस तरह मौजूद बुतों का मतलब समझ नहीं आया।
वो किले के भीतर जा पहुंचे थे। धूल-मिट्टी, जालों का ही साम्राज्य था हर तरफ। “सपन।”
“बोल लक्ष्मण।"
“इस किले की साफ-सफाई हो जाए तो ये कितना बढ़िया दिखेगा।"
“यहां की जमीन का भाव क्या होगा?"
"क्यों?"
"मैं किले की कीमत लगाने की सोच रहा हं।"
“ये दुनिया भी बुरी नहीं। यहां रहा जा सकता है। बूंदी से पूर्वी किले की कीमत।”
"अकेले में पूछना। लेकिन वो तो दो-दो कीमतें बताएगा।"
“लालच दे देंगे कि सौदा करा दे, उसे पांच परसेंट दे देंगे। फिर तो सीधे ढंग से बात करेगा ही।"
"ये तूने ठीक कही।” राहदारी के अंतिम छोर पर बने, वे एक हॉल में पहुंचे। बैठक जैसा कमरा था ये।
ऊंची छत। लटकता फानूस । एक तरफ लम्बी-सी मूर्ति खड़ी थी, जिस पर धूल पड़ी थी। बैठने के लिए लकड़ियों की कुर्सियां। कुर्सियों पर गद्दे रखे थे। फर्श पर कालीन था। दीवारों पर छूल से अटी पेंटिंग्स थीं। देखने भर से ही इस बात का एहसास हो रहा था कि साफ-सफाई होने पर ये शानदार दिखेगा। हवा का झोंका भीतर तक आ जाता तो छत पर लटकते जाले सांप की तरह बल खाते दिखाई देते।
“यहां धूल न होती तो आराम करने का मजा आता।” नानिया कह उठी—“सोहनलाल।"
"हां।” "तेरा घर भी ऐसा है?"
“नहीं। वो तो बहुत छोटा है।"
"कोई बात नहीं। मैं छोटे घर में रह लूंगी।"
"अभी घर मत बसाओ। यहां पर जथूरा को ढूंढ़ो। किले में जाने कितने कमरे होंगे। तहखाने होंगे।” जगमोहन बोला— “हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। वक्त भी बहुत लगेगा।"
“जथूरा की कोई तस्वीर होगी?" लक्ष्मण दास बोला।
"तस्वीर?"
"वो मिल गया तो उसे पहचानेंगे कैसे?"
“कोई जिंदा इंसान यहां पर मिल जाए तो उसे पकड़ लेना।"
"ठीक है, हमें क्या?” सपन चड्ढा लक्ष्मण के कान में बोला— "हमने कौन-सा जथूरा को ढूंढने में सिर खपाना है।" ।
तभी मोमो जिन्न की गर्दन टेड़ी हो गई। आंखें बंद हो गईं। वो सुनने लगा कुछ।
"आ गया टेलीफोन।" फिर मोमो जिन्न सीधा हुआ और बोला।
“जथूरा के सेवकों ने कहा है कि ये जगह अच्छी तरह साफ करो। हर चीज चमका दो।"
"क्यों?
“इससे हमारे बैठने की जगह भी बन जाएगी और आने वाले वक्त में सफाई हमारे काम आएगी।” मोमो जिन्न ने कहा।
"क्या काम?"
“मैं नहीं जानता। जो मुझे कहा गया। वो मैंने कह दिया।"
“सफाई करना जरूरी है?"
“जरूरी है, तभी तो आदेश मिला है।"
“कर देते हैं सफाई।" नानिया कह उठी—“सोहनलाल तुम भी मेरे साथ सफाई में लग जाना।
“तुम जो कहोगी, मैं वो ही करूंगा।"
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
"ये नौबत आ गई लक्ष्मण कि अब झाडू सफाई करनी पड़ रही है।" सपन चड्ढा बोला। __
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“तुम नहीं बता सकते कि इस महल में जथूरा कहां है?"
"मुझे ज्ञान होता तो मैं बता चुका होता।" मोमो जिन्न ने कहा। नजरें बूंदी पर गईं। उससे कहा-“तुम बता दो।”
“नहीं बता सकता। मुझे इसके लिए हुक्म नहीं है।" बूंदी ने कहा।
मोमो जिन्न ने कठोर निगाहों से बंदी को देखा। बूंदी मुस्करा पड़ा। फिर वे सब महल के भीतर की तरफ चल पड़े।
हर तरफ सुनसानी थी। "कभी ये महल कितना सुंदर रहा होगा।” नानिया कह उठी।
“अब भी बहुत बेहतर है।" जगमोहन बोला—“साफ-सफाई की जरूरत है।
धूल-भरी राहदारी में आगे बढ़ते जा रहे थे। उनके कदमों की आवाजें गूंज रही थीं। सामने ही सूखे पेड़ पर झूला लटका रखा था। परंतु झूलने वाला कोई नहीं था। जगह-जगह स्त्री-पुरुषों के बुत नजर आ रहे थे। कोई बुत तो राहदारी में खड़ा था। उन्हें इस तरह मौजूद बुतों का मतलब समझ नहीं आया।
वो किले के भीतर जा पहुंचे थे। धूल-मिट्टी, जालों का ही साम्राज्य था हर तरफ। “सपन।”
“बोल लक्ष्मण।"
“इस किले की साफ-सफाई हो जाए तो ये कितना बढ़िया दिखेगा।"
“यहां की जमीन का भाव क्या होगा?"
"क्यों?"
"मैं किले की कीमत लगाने की सोच रहा हं।"
“ये दुनिया भी बुरी नहीं। यहां रहा जा सकता है। बूंदी से पूर्वी किले की कीमत।”
"अकेले में पूछना। लेकिन वो तो दो-दो कीमतें बताएगा।"
“लालच दे देंगे कि सौदा करा दे, उसे पांच परसेंट दे देंगे। फिर तो सीधे ढंग से बात करेगा ही।"
"ये तूने ठीक कही।” राहदारी के अंतिम छोर पर बने, वे एक हॉल में पहुंचे। बैठक जैसा कमरा था ये।
ऊंची छत। लटकता फानूस । एक तरफ लम्बी-सी मूर्ति खड़ी थी, जिस पर धूल पड़ी थी। बैठने के लिए लकड़ियों की कुर्सियां। कुर्सियों पर गद्दे रखे थे। फर्श पर कालीन था। दीवारों पर छूल से अटी पेंटिंग्स थीं। देखने भर से ही इस बात का एहसास हो रहा था कि साफ-सफाई होने पर ये शानदार दिखेगा। हवा का झोंका भीतर तक आ जाता तो छत पर लटकते जाले सांप की तरह बल खाते दिखाई देते।
“यहां धूल न होती तो आराम करने का मजा आता।” नानिया कह उठी—“सोहनलाल।"
"हां।” "तेरा घर भी ऐसा है?"
“नहीं। वो तो बहुत छोटा है।"
"कोई बात नहीं। मैं छोटे घर में रह लूंगी।"
"अभी घर मत बसाओ। यहां पर जथूरा को ढूंढ़ो। किले में जाने कितने कमरे होंगे। तहखाने होंगे।” जगमोहन बोला— “हमें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। वक्त भी बहुत लगेगा।"
“जथूरा की कोई तस्वीर होगी?" लक्ष्मण दास बोला।
"तस्वीर?"
"वो मिल गया तो उसे पहचानेंगे कैसे?"
“कोई जिंदा इंसान यहां पर मिल जाए तो उसे पकड़ लेना।"
"ठीक है, हमें क्या?” सपन चड्ढा लक्ष्मण के कान में बोला— "हमने कौन-सा जथूरा को ढूंढने में सिर खपाना है।" ।
तभी मोमो जिन्न की गर्दन टेड़ी हो गई। आंखें बंद हो गईं। वो सुनने लगा कुछ।
"आ गया टेलीफोन।" फिर मोमो जिन्न सीधा हुआ और बोला।
“जथूरा के सेवकों ने कहा है कि ये जगह अच्छी तरह साफ करो। हर चीज चमका दो।"
"क्यों?
“इससे हमारे बैठने की जगह भी बन जाएगी और आने वाले वक्त में सफाई हमारे काम आएगी।” मोमो जिन्न ने कहा।
"क्या काम?"
“मैं नहीं जानता। जो मुझे कहा गया। वो मैंने कह दिया।"
“सफाई करना जरूरी है?"
“जरूरी है, तभी तो आदेश मिला है।"
“कर देते हैं सफाई।" नानिया कह उठी—“सोहनलाल तुम भी मेरे साथ सफाई में लग जाना।
“तुम जो कहोगी, मैं वो ही करूंगा।"
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
"ये नौबत आ गई लक्ष्मण कि अब झाडू सफाई करनी पड़ रही है।" सपन चड्ढा बोला। __
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“मोमो जिन्न की वजह से हमारा ये हाल हो रहा है। हम क्या सफाई करने वाले हैं जो... ।”
"मौका मिला तो मोमो जिन्न को नहीं छोड़ेंगे। पीठ की तरफ से छुरा मार देंगे।"
“वो कमीना हमारे पास ही आ रहा है।”
तब तक मोमो जिन्न पास आकर बोला। . “सैंसर लगे होने की वजह से मैं तुम दोनों की बातें सुन रहा
"तो हम कौन-सा छिपकर बातें कर रहे हैं, क्यों सपन।"
"हां-हां, हमें पता है कि तुमने हमारे कानों में कहीं सैंसर लगा रखे हैं।" सपन चड्ढा ने कहा। ____
“तुम दोनों को मेरा कोई डर नहीं?" मोमो जिन्न कठोर स्वर में बोला।
"नहीं।"
"मैं तुम दोनों को अभी नंगा करके... ।”
“सपन थोड़ा तो हमें डरना चाहिए। लक्ष्मण दास जल्दी-से कह उठा।
“हां, थोड़ा तो हम डरते ही हैं।" सपन चड्ढा ने सिर हिलाया। मोमो जिन्न ने दोनों को सख्त नजरों से घूरा।
"मेरी पीठ में छरा मारोगे?"
"वो तो हम मजाक कर रहे थे।” लक्ष्मण दास ने दांत दिखाए।
"चलो सफाई करो।”
"हां-हां, वो ही तो हम करने जा रहे थे।” ।
उसके बाद वे सब उस हॉलनुमा कमरे को साफ करने पर लग गए।
मेहनत वाला और लम्बा काम था।
बूंदी एक तरफ शांत और गम्भीर मुद्रा में खड़ा था। जगमोहन बूंदी से कह उठा।
"इस तरह खड़े तुम किसका अफसोस मना रहे हो?"
“अपने भाई बांदा के बारे में सोच रहा हूं कि कब उससे मिलूंगा।" बूंदी ने लम्बी सांस लेकर कहा।
“इससे बात करके वक्त बर्बाद मत करो।" मोमो जिन्न ने कहा।
“तुम सफाई नहीं कर रहे।” सपन चड्ढा मोमो जिन्न से कह उठा। ___
“मैं सफाई करूंगा। कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती। मैं जिन्न हूं। सफाई जैसा काम करके जिन्नों की जात की बेइज्जती कराऊंगा
क्या?"
"तुम लोग गंदगी में ही बैठे रहते हो क्या?"
“खबरदार जो फालतू बात की। जिन्नों को सफाई की जरूरत नहीं पड़ती।"
"तुम नहाते नहीं हो क्या?" ___
“जिन्न सिर्फ तब नहाते हैं जब वे बोतल में आराम करने जाते हैं या फिर बोतल से बाहर निकलते वक्त नहाते हैं। इंसानों की तरह हम रोज-रोज नहाकर वक्त बर्बाद नहीं करते। हमें बहुत काम करने होते हैं।"
"सुना लक्ष्मण।"
"सब सुन रहा हूं। तू चुपचाप काम पे लग जा। नहीं तो ये हमें फिर नंगा करने की धमकी देने लगेगा।"
बांकेलाल राठौर ने खुद को नीचे गिरता महसूस किया। हर पल उसे लग रहा था कि अब जमीन से टकराया तो अब टकराया।
लेकिन नीचे गिरते समय अचानक ही उसकी सांसों से कोई तेज खुशबू टकराई, उसके बाद उसके होश गुम होते चले गए। उसके बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता न चल पाया।
फिर उसे होश आया तो उसने खुद को बहती नदी में पाया। पानी के संग आगे को लुढ़कता जा रहा था।
'ये का मुसीबतों में फंसो गयो।' मुंह पानी से निकालकर वो बड़बड़ा उठा।
तभी उसने किनारे पर देवराज चौहान को खड़े पाया। “देवराज चौहानो। म्हारे को बचायो। यो पाणी बोत तेजी दौड़ो हो।"
तब तक देवराज चौहान हाथ आगे बढ़ा चुका था।
बांकेलाल ने अपना हाथ आगे किया, जिसे कि देवराज चौहान ने थामा और बांके को बाहर खींच लिया। ___
“अंम बच गयो।” नदी से बाहर आते ही वो कह उठा—“क्या सबो बचो गयो?"
“हां।” देवराज चौहान मुस्कराया।
“थारे को वो दुल्हनो पसंदो न करो हो।"
"वो धोखा था।” देवराज चौहान ने कहा।
"ईब तो यो बातो म्हारे को भी पतो हौवे।” बांकेलाल राठौर ने अफसोस-भरे स्वर में कहा तभी उसकी निगाह अन्यों पर पड़ी, जो कि कुछ दूर खड़े थे। परंतु सब ही भीगे हुए थे— “म्हारी किस्मतो दगो दे जायो।"
“क्यों?"
"म्हारो ब्याह हो जाणो था, पर यो बांदा और उसो का बाप प्रणाम सिंह बोत हरामी हौवो।"
“मैंने बताया कि वो सब धोखा... "
“पतो हौवे । थारे संग वां पे का हौवे हो?"
“जो तुम्हारे साथ हुआ, वो ही मेरे साथ हुआ।"
"म्हारे संग तो बोत बुरो मजाक हौवो हो। किस्मतो ही फूट गयो हो। ईब अंम किधरो हौवे?"
“पता नहीं। हम सब भी अभी यहां पहुंचे हैं।”
"तन्ने म्हारे को बचा लयो। नेई तो नदी के संगो, जाणो किधरो खिसक जायो अंम।"
देवराज चौहान और बांके अन्यों के पास जा पहुंचे।
"कैसा होईला बाप?” रुस्तम राव मुस्कराकर बोला।
“पूछ मत छोरे। घणों बुरा हो गयो म्हारे संग।"
"ब्याह नेई होईला?"
“नेई म्हारे को वो आसमानी कपड़ों वाली पसंदो हौवे।” बांके ने गहरी सांस ली।
“दुल्हन देखी बाप?" ___
“साड़ी में तो हरामो प्रणाम सिंह बैठो हो। म्हारे को नीचे फेंक दयो। मन्ने तो सोचो कि ब्याह हो ही गयो। पर वो हरामो तो दामोदों की खातिरो खूब पटक-पटक के करो हो।”
"मौका मिला तो मोमो जिन्न को नहीं छोड़ेंगे। पीठ की तरफ से छुरा मार देंगे।"
“वो कमीना हमारे पास ही आ रहा है।”
तब तक मोमो जिन्न पास आकर बोला। . “सैंसर लगे होने की वजह से मैं तुम दोनों की बातें सुन रहा
"तो हम कौन-सा छिपकर बातें कर रहे हैं, क्यों सपन।"
"हां-हां, हमें पता है कि तुमने हमारे कानों में कहीं सैंसर लगा रखे हैं।" सपन चड्ढा ने कहा। ____
“तुम दोनों को मेरा कोई डर नहीं?" मोमो जिन्न कठोर स्वर में बोला।
"नहीं।"
"मैं तुम दोनों को अभी नंगा करके... ।”
“सपन थोड़ा तो हमें डरना चाहिए। लक्ष्मण दास जल्दी-से कह उठा।
“हां, थोड़ा तो हम डरते ही हैं।" सपन चड्ढा ने सिर हिलाया। मोमो जिन्न ने दोनों को सख्त नजरों से घूरा।
"मेरी पीठ में छरा मारोगे?"
"वो तो हम मजाक कर रहे थे।” लक्ष्मण दास ने दांत दिखाए।
"चलो सफाई करो।”
"हां-हां, वो ही तो हम करने जा रहे थे।” ।
उसके बाद वे सब उस हॉलनुमा कमरे को साफ करने पर लग गए।
मेहनत वाला और लम्बा काम था।
बूंदी एक तरफ शांत और गम्भीर मुद्रा में खड़ा था। जगमोहन बूंदी से कह उठा।
"इस तरह खड़े तुम किसका अफसोस मना रहे हो?"
“अपने भाई बांदा के बारे में सोच रहा हूं कि कब उससे मिलूंगा।" बूंदी ने लम्बी सांस लेकर कहा।
“इससे बात करके वक्त बर्बाद मत करो।" मोमो जिन्न ने कहा।
“तुम सफाई नहीं कर रहे।” सपन चड्ढा मोमो जिन्न से कह उठा। ___
“मैं सफाई करूंगा। कहते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती। मैं जिन्न हूं। सफाई जैसा काम करके जिन्नों की जात की बेइज्जती कराऊंगा
क्या?"
"तुम लोग गंदगी में ही बैठे रहते हो क्या?"
“खबरदार जो फालतू बात की। जिन्नों को सफाई की जरूरत नहीं पड़ती।"
"तुम नहाते नहीं हो क्या?" ___
“जिन्न सिर्फ तब नहाते हैं जब वे बोतल में आराम करने जाते हैं या फिर बोतल से बाहर निकलते वक्त नहाते हैं। इंसानों की तरह हम रोज-रोज नहाकर वक्त बर्बाद नहीं करते। हमें बहुत काम करने होते हैं।"
"सुना लक्ष्मण।"
"सब सुन रहा हूं। तू चुपचाप काम पे लग जा। नहीं तो ये हमें फिर नंगा करने की धमकी देने लगेगा।"
बांकेलाल राठौर ने खुद को नीचे गिरता महसूस किया। हर पल उसे लग रहा था कि अब जमीन से टकराया तो अब टकराया।
लेकिन नीचे गिरते समय अचानक ही उसकी सांसों से कोई तेज खुशबू टकराई, उसके बाद उसके होश गुम होते चले गए। उसके बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता न चल पाया।
फिर उसे होश आया तो उसने खुद को बहती नदी में पाया। पानी के संग आगे को लुढ़कता जा रहा था।
'ये का मुसीबतों में फंसो गयो।' मुंह पानी से निकालकर वो बड़बड़ा उठा।
तभी उसने किनारे पर देवराज चौहान को खड़े पाया। “देवराज चौहानो। म्हारे को बचायो। यो पाणी बोत तेजी दौड़ो हो।"
तब तक देवराज चौहान हाथ आगे बढ़ा चुका था।
बांकेलाल ने अपना हाथ आगे किया, जिसे कि देवराज चौहान ने थामा और बांके को बाहर खींच लिया। ___
“अंम बच गयो।” नदी से बाहर आते ही वो कह उठा—“क्या सबो बचो गयो?"
“हां।” देवराज चौहान मुस्कराया।
“थारे को वो दुल्हनो पसंदो न करो हो।"
"वो धोखा था।” देवराज चौहान ने कहा।
"ईब तो यो बातो म्हारे को भी पतो हौवे।” बांकेलाल राठौर ने अफसोस-भरे स्वर में कहा तभी उसकी निगाह अन्यों पर पड़ी, जो कि कुछ दूर खड़े थे। परंतु सब ही भीगे हुए थे— “म्हारी किस्मतो दगो दे जायो।"
“क्यों?"
"म्हारो ब्याह हो जाणो था, पर यो बांदा और उसो का बाप प्रणाम सिंह बोत हरामी हौवो।"
“मैंने बताया कि वो सब धोखा... "
“पतो हौवे । थारे संग वां पे का हौवे हो?"
“जो तुम्हारे साथ हुआ, वो ही मेरे साथ हुआ।"
"म्हारे संग तो बोत बुरो मजाक हौवो हो। किस्मतो ही फूट गयो हो। ईब अंम किधरो हौवे?"
“पता नहीं। हम सब भी अभी यहां पहुंचे हैं।”
"तन्ने म्हारे को बचा लयो। नेई तो नदी के संगो, जाणो किधरो खिसक जायो अंम।"
देवराज चौहान और बांके अन्यों के पास जा पहुंचे।
"कैसा होईला बाप?” रुस्तम राव मुस्कराकर बोला।
“पूछ मत छोरे। घणों बुरा हो गयो म्हारे संग।"
"ब्याह नेई होईला?"
“नेई म्हारे को वो आसमानी कपड़ों वाली पसंदो हौवे।” बांके ने गहरी सांस ली।
“दुल्हन देखी बाप?" ___
“साड़ी में तो हरामो प्रणाम सिंह बैठो हो। म्हारे को नीचे फेंक दयो। मन्ने तो सोचो कि ब्याह हो ही गयो। पर वो हरामो तो दामोदों की खातिरो खूब पटक-पटक के करो हो।”
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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