महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
sahi............
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“जी हां। सांभरा को आप लोगों के आने की खबर थी। उसने पहले ही हमें खाना तैयार करने को कह दिया था। सांभरा को जो भी जानना होता है, अपनी ताकत के सहारे जान लेता है। उसकी नगरी में होने वाली हर बात की खबर उसे रहती है।" ___
"चलो उठो।" मोना चौधरी उठते हुए बोली— "हमें फौरन सांभरा के पास चलना चाहिए।"
.
.
उस व्यक्ति के साथ वे सब उस रोशनी के पास जा पहुंचे।
वहां पांच-छः व्यक्ति और भी दिखे, जो कि अपने कामों में व्यस्त थे। चार झोंपड़े वहां बने हुए थे, जिनमें रोशनियां हो रही थीं। प्रकाश फैलाने के लिए मशालें, पास के पेड़ों में फंसा रखी थीं।
सबने वहां की जगह का जायजा लिया। “सांभरा कहां है?" रातुला ने पूछा।
“वो अपने झोंपड़े में है। कुछ देर बाद वे खाने के लिए बाहर आएंगे, तब आप सबकी मुलाकात उनसे हो जाएगी। तब तक आप लोग तालाब पर चलकर नहा लीजिए। ठंडक मिलेगी नहाने से।”
"चलो।"
वो व्यक्ति कछ दूर एक छोटे-से तालाब पर पहुंचा।
चांद की रोशनी में पानी चांदी की तरह चमकता लग रहा था, खासतौर से तब जब चांद की परछाई तालाब से नजर आती। पहाड़ी पर इतने ऊपर तालाब पाकर सबकी सकून मिला।
"तंम इधरो आयो।" बांके ने उस व्यक्ति को बुलाया।
वो फौरन पास पहुंचकर बोला। “कहिए।"
"म्हारे को यो समझायो कि पहाड़ो पर तालाबो कैसो बन गयो?" बांके ने पूछा।
“सांभरा ने अपनी शक्तियों से ये तालाब बनाया है।"
"शक्तियों से?"
"हां। सांभरा ने वो विद्या ग्रहण कर रखी है, जिससे उसे शक्तियां हासिल हैं। महाकाली का आशीर्वाद भी है सांभरा पर। महाकाली ने भी कई शक्तियां सांभरा को वरदान के रूप में दी हैं।"
“मन्ने तो सनो हो कि जबो महाकालो ने जथरा को कैदो के लियो. सांभरो तभो से ही नाराज हो के पहाड़ो पे आ गयो।"
"आपने ठीक सुना है।"
“यो मामलो म्हारे को समझ में न आयो। तंम जरो खुलो के समझायो।”
"इस बारे में तो आप सांभरा से ही बात करें।"
"तंम न बतायो?"
"मुझे ज्यादा नहीं पता। वैसे भी मेरी जिम्मेवारी इस समय एक सेवक जैसी है।"
"चलो उठो।" मोना चौधरी उठते हुए बोली— "हमें फौरन सांभरा के पास चलना चाहिए।"
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उस व्यक्ति के साथ वे सब उस रोशनी के पास जा पहुंचे।
वहां पांच-छः व्यक्ति और भी दिखे, जो कि अपने कामों में व्यस्त थे। चार झोंपड़े वहां बने हुए थे, जिनमें रोशनियां हो रही थीं। प्रकाश फैलाने के लिए मशालें, पास के पेड़ों में फंसा रखी थीं।
सबने वहां की जगह का जायजा लिया। “सांभरा कहां है?" रातुला ने पूछा।
“वो अपने झोंपड़े में है। कुछ देर बाद वे खाने के लिए बाहर आएंगे, तब आप सबकी मुलाकात उनसे हो जाएगी। तब तक आप लोग तालाब पर चलकर नहा लीजिए। ठंडक मिलेगी नहाने से।”
"चलो।"
वो व्यक्ति कछ दूर एक छोटे-से तालाब पर पहुंचा।
चांद की रोशनी में पानी चांदी की तरह चमकता लग रहा था, खासतौर से तब जब चांद की परछाई तालाब से नजर आती। पहाड़ी पर इतने ऊपर तालाब पाकर सबकी सकून मिला।
"तंम इधरो आयो।" बांके ने उस व्यक्ति को बुलाया।
वो फौरन पास पहुंचकर बोला। “कहिए।"
"म्हारे को यो समझायो कि पहाड़ो पर तालाबो कैसो बन गयो?" बांके ने पूछा।
“सांभरा ने अपनी शक्तियों से ये तालाब बनाया है।"
"शक्तियों से?"
"हां। सांभरा ने वो विद्या ग्रहण कर रखी है, जिससे उसे शक्तियां हासिल हैं। महाकाली का आशीर्वाद भी है सांभरा पर। महाकाली ने भी कई शक्तियां सांभरा को वरदान के रूप में दी हैं।"
“मन्ने तो सनो हो कि जबो महाकालो ने जथरा को कैदो के लियो. सांभरो तभो से ही नाराज हो के पहाड़ो पे आ गयो।"
"आपने ठीक सुना है।"
“यो मामलो म्हारे को समझ में न आयो। तंम जरो खुलो के समझायो।”
"इस बारे में तो आप सांभरा से ही बात करें।"
"तंम न बतायो?"
"मुझे ज्यादा नहीं पता। वैसे भी मेरी जिम्मेवारी इस समय एक सेवक जैसी है।"
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
“ओ के। ओ के। तंम म्हारी सेवो करो। इत्तो ही बोत हौवे।" वो सबसे कह उठा।
"मेरे खयाल में पहले तालाब में औरतों को नहाने दिया जाए तो बेहतर होगा। आप सब मर्द पीठ मोड़कर इधर बैठ जाइए।"
"तंम का करो हो?"
“मैं भी पीठ मोड़कर आप सब के साथ ही बैलूंगा।"
“फिरो ठोको हौवे।"
नहाने के बाद सबने राहत महसूस की। थकान कुछ कम हुई।
वो व्यक्ति उन सबको वापस झोपड़ों के पास ले आया। एक जलती मशाल के नीचे पेड़ों के बड़े-बड़े पत्ते बिछाकर बैठने के लिए बिछौना बना रखा था। उस व्यक्ति ने सबको वहीं बैठने को कहा
और वहां मौजूद अन्यों को खाना परोसने को कहा।
"सांभरा कहां है?" मोना चौधरी ने कहा।
"उन्हें अभी आपके आने की खबर भिजवाता हूं।"
“अभी तक खबर भी नहीं दी उसे।” नगीना ने कहा।
“सांभरा का आदेश था कि जब नहाकर आप सब खाने के लिए बैठे तो उन्हें खबर दी जाए।"
वो व्यक्ति एक झोंपड़े की तरफ चला गया।
"कैसा अजीब है सांभरा। इतनी बड़ी नगरी का मालिक होते हुए इस तरह पहाड़ पर रह रहा है।" महाजन ने कहा। ___
“ऐसा करने की कोई खास वजह होगी।” पारसनाथ ने कहा।
"जो वजहो भी हौवे, म्हारे को तो पहाड़ पर गर्मा-गर्म खाणो मिल्लो हो।"
"भूख लगेला है बाप।" सबको ही भूख लग रही थी।
“वापसो परो भी म्हारे को गर्म-गर्म खाणों मिल्लो हो । वो बांबो म्हारे वास्ते उधरो हलवाई बैठायो हो।"
__ “तेरे को खाने का चस्का लगेला बाप।"
"भूखो बोत लगो हो म्हारे पेटो में।"
मखानी और कमला रानी पास-पास बैठे थे। या यूं कहें कि जब कमला रानी बैठी, तब मखानी तुरंत उसकी बगल में आ बैठा था कि कोई दूसरा वहां न बैठ जाए। मौका पाकर मखानी प्यार से बोला।
"कमला रानी।"
"मेरे खयाल में पहले तालाब में औरतों को नहाने दिया जाए तो बेहतर होगा। आप सब मर्द पीठ मोड़कर इधर बैठ जाइए।"
"तंम का करो हो?"
“मैं भी पीठ मोड़कर आप सब के साथ ही बैलूंगा।"
“फिरो ठोको हौवे।"
नहाने के बाद सबने राहत महसूस की। थकान कुछ कम हुई।
वो व्यक्ति उन सबको वापस झोपड़ों के पास ले आया। एक जलती मशाल के नीचे पेड़ों के बड़े-बड़े पत्ते बिछाकर बैठने के लिए बिछौना बना रखा था। उस व्यक्ति ने सबको वहीं बैठने को कहा
और वहां मौजूद अन्यों को खाना परोसने को कहा।
"सांभरा कहां है?" मोना चौधरी ने कहा।
"उन्हें अभी आपके आने की खबर भिजवाता हूं।"
“अभी तक खबर भी नहीं दी उसे।” नगीना ने कहा।
“सांभरा का आदेश था कि जब नहाकर आप सब खाने के लिए बैठे तो उन्हें खबर दी जाए।"
वो व्यक्ति एक झोंपड़े की तरफ चला गया।
"कैसा अजीब है सांभरा। इतनी बड़ी नगरी का मालिक होते हुए इस तरह पहाड़ पर रह रहा है।" महाजन ने कहा। ___
“ऐसा करने की कोई खास वजह होगी।” पारसनाथ ने कहा।
"जो वजहो भी हौवे, म्हारे को तो पहाड़ पर गर्मा-गर्म खाणो मिल्लो हो।"
"भूख लगेला है बाप।" सबको ही भूख लग रही थी।
“वापसो परो भी म्हारे को गर्म-गर्म खाणों मिल्लो हो । वो बांबो म्हारे वास्ते उधरो हलवाई बैठायो हो।"
__ “तेरे को खाने का चस्का लगेला बाप।"
"भूखो बोत लगो हो म्हारे पेटो में।"
मखानी और कमला रानी पास-पास बैठे थे। या यूं कहें कि जब कमला रानी बैठी, तब मखानी तुरंत उसकी बगल में आ बैठा था कि कोई दूसरा वहां न बैठ जाए। मौका पाकर मखानी प्यार से बोला।
"कमला रानी।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
"क्या है?"
“पहाड़ पर मौसम अच्छा है। ठंडी हवा चल रही है।” मखानी धीमे स्वर में कह उठा।
"तो?
"मेरा मतलब है कि मौसम भी है, अंधेरा भी है। खाना खा के अंधेरे में चलते हैं। प्यार करेंगे।" ।
कमला रानी मुस्कराकर मखानी को देखने लगी। मखानी उसकी मुस्कान पर जैसे नाच उठा। “गधा है तू।"
"क्या मतलब?"
"जब मौसम भी है, अंधेरा भी है, वक्त भी है तो कहने की क्या जरूरत है।"
"तो क्या करूं?"
“मेरी बांह पकड़कर, मुझे अंधेरे में खींच ले। ये भी तेरे को मैं ही बताऊंगी क्या।" __
_“आह । तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया कमला रानी।” मखानी का चेहरा खुशी से चमक रहा था।
"अंडा कहां है?"
“संभाल के रखा है, तेरी ही कमी है।"
"चिंता मत कर। अब अंडे का आमलेट बना दूंगी। पहले जरा खाना खा लूं।"
"तू कितनी अच्छी है कमला रानी।"
“चुप हो जा। कहीं बातों-बातों में ही तेरा अंडा फूट गया तो, तब आमलेट नहीं बनेगा।"
तभी वो व्यक्ति आता दिखा।
साथ में एक बूढ़ा व्यक्ति था जो कि पतला और लम्बा था। उसके सिर के बाल सफेद और दाड़ी के बाल भी सफेद ही थे। उसकी कमर बिल्कुल सीधी थी। वो बहुत फुर्तीला था।
वो पास पहुंचकर उनके साथ ही खाने की पंक्ति में बैठता कह उठा।
“मैं सांभरा आप सबका यहां स्वागत करता हूं। मुझे खुशी है कि देवा और मिन्नो यहां आ गए हैं।"
खाना उनके सामने लगना शुरू हो गया था।
“तुम हमें जानते हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“बहुत अच्छी तरह से।"
"तुम्हारी बात से तो ऐसा लगता है कि जैसे तुम हमारे आने का इंतजार कर रहे थे।"
“तुमने ठीक कहा देवा ।”
"ये सब क्या हो रहा है, हमें खुलासा करके बताओ। हम यहां जथूरा को कैद से आजाद कराने आए हैं।"
सांभरा खामोश रहा।
“सुना है कि महाकाली ने जब जथूरा को कैद किया तो तुम इस बात से नाराज होकर, नगरी छोड़कर पहाड़ी पर आ गए।"
"ऐसा कुछ नहीं है।" सांभरा ने कहा।
"तुम्हारा सेवक बांबा तो यही कहता है।"
"वो, वो ही बात करेगा, जो उसे मालूम होगी।"
“बांबा ने हमें धमकी देकर भेजा है कि तुम्हें वापस नगरी में लाएं, वरना वो हमारी जान ले लेगा। वो नगरी से भी हमें निकलने नहीं देगा। मजबूरी में उसकी बात मानकर आना पड़ा।”
“बांबा अच्छा सेवक है। वो चाहता है कि मैं वापस नगरी में आ जाऊं।"
"तो तुम जाते क्यों नहीं?"
“आज रात ही मैं अपनी नगरी के लिए रवाना हो जाऊंगा।" सांभरा ने शांत स्वर में कहा।
“आज रात?"
“आज रात ही क्यों?”
"देवा और मिन्नो के यहां आ जाने से मेरा काम समाप्त हो गया, मेरे कष्ट के दिन खत्म हो गए।"
"हम समझे नहीं।"
“तुम कहना क्या चाहते हो?"
"हमें खाना खाना चाहिए और समझदार लोग खाने के बीच बातें नहीं करते।"
“तुम हमें उलझा रहे हो।" सांभरा ने खाना खाना शुरू कर दिया। उसे खामोश पाकर बाकी सब भी खाना खाने लगे।
“पहाड़ पर मौसम अच्छा है। ठंडी हवा चल रही है।” मखानी धीमे स्वर में कह उठा।
"तो?
"मेरा मतलब है कि मौसम भी है, अंधेरा भी है। खाना खा के अंधेरे में चलते हैं। प्यार करेंगे।" ।
कमला रानी मुस्कराकर मखानी को देखने लगी। मखानी उसकी मुस्कान पर जैसे नाच उठा। “गधा है तू।"
"क्या मतलब?"
"जब मौसम भी है, अंधेरा भी है, वक्त भी है तो कहने की क्या जरूरत है।"
"तो क्या करूं?"
“मेरी बांह पकड़कर, मुझे अंधेरे में खींच ले। ये भी तेरे को मैं ही बताऊंगी क्या।" __
_“आह । तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया कमला रानी।” मखानी का चेहरा खुशी से चमक रहा था।
"अंडा कहां है?"
“संभाल के रखा है, तेरी ही कमी है।"
"चिंता मत कर। अब अंडे का आमलेट बना दूंगी। पहले जरा खाना खा लूं।"
"तू कितनी अच्छी है कमला रानी।"
“चुप हो जा। कहीं बातों-बातों में ही तेरा अंडा फूट गया तो, तब आमलेट नहीं बनेगा।"
तभी वो व्यक्ति आता दिखा।
साथ में एक बूढ़ा व्यक्ति था जो कि पतला और लम्बा था। उसके सिर के बाल सफेद और दाड़ी के बाल भी सफेद ही थे। उसकी कमर बिल्कुल सीधी थी। वो बहुत फुर्तीला था।
वो पास पहुंचकर उनके साथ ही खाने की पंक्ति में बैठता कह उठा।
“मैं सांभरा आप सबका यहां स्वागत करता हूं। मुझे खुशी है कि देवा और मिन्नो यहां आ गए हैं।"
खाना उनके सामने लगना शुरू हो गया था।
“तुम हमें जानते हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“बहुत अच्छी तरह से।"
"तुम्हारी बात से तो ऐसा लगता है कि जैसे तुम हमारे आने का इंतजार कर रहे थे।"
“तुमने ठीक कहा देवा ।”
"ये सब क्या हो रहा है, हमें खुलासा करके बताओ। हम यहां जथूरा को कैद से आजाद कराने आए हैं।"
सांभरा खामोश रहा।
“सुना है कि महाकाली ने जब जथूरा को कैद किया तो तुम इस बात से नाराज होकर, नगरी छोड़कर पहाड़ी पर आ गए।"
"ऐसा कुछ नहीं है।" सांभरा ने कहा।
"तुम्हारा सेवक बांबा तो यही कहता है।"
"वो, वो ही बात करेगा, जो उसे मालूम होगी।"
“बांबा ने हमें धमकी देकर भेजा है कि तुम्हें वापस नगरी में लाएं, वरना वो हमारी जान ले लेगा। वो नगरी से भी हमें निकलने नहीं देगा। मजबूरी में उसकी बात मानकर आना पड़ा।”
“बांबा अच्छा सेवक है। वो चाहता है कि मैं वापस नगरी में आ जाऊं।"
"तो तुम जाते क्यों नहीं?"
“आज रात ही मैं अपनी नगरी के लिए रवाना हो जाऊंगा।" सांभरा ने शांत स्वर में कहा।
“आज रात?"
“आज रात ही क्यों?”
"देवा और मिन्नो के यहां आ जाने से मेरा काम समाप्त हो गया, मेरे कष्ट के दिन खत्म हो गए।"
"हम समझे नहीं।"
“तुम कहना क्या चाहते हो?"
"हमें खाना खाना चाहिए और समझदार लोग खाने के बीच बातें नहीं करते।"
“तुम हमें उलझा रहे हो।" सांभरा ने खाना खाना शुरू कर दिया। उसे खामोश पाकर बाकी सब भी खाना खाने लगे।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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