‘‘तो फिर मामला साफ़ है।’’ सिन्हा ने हाथ मलते हुए कहा। ‘‘शहनाज़ ने बहुत अच्छा प्लान बनाया। एक तरफ़ उसने आप लोगों से अपनी सफ़ाई दिलवायी और दूसरी तरफ़ अपनी बेगुनाही का और ज़्यादा यक़ीन दिलाने के लिए इस तरह ग़ायब हो गयी। भई, बला की चालाक औरत निकली।’’
‘‘तो इस तरह फिर यह भी कहा जा सकता है कि मैं और फ़रीदी साहब भी इस क़त्ल में शामिल हैं, क्योंकि वह आख़िर तक हमारे साथ रही थी।’’ हमीद ने ग़ुस्सा से कहा।
‘‘मैं यह नहीं कहता कि आपकी गवाही ग़लत है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसने आप लोगों को भी धोखा दिया हो।’’ सिन्हा ने कहा।
‘‘यह बिलकुल नामुमकिन है।’’
‘‘हो सकता है।’’ सिन्हा ने धीरे से कहा और अपनी मेज़ पर रखे हुए कागज़़ात उलटने-पलटने लगा। हमीद ग़ुस्से में अपने होंट चबा रहा था। वह थोड़ी देर तक यूँ ही बैठा रहा फिर ख़ामोशी से उठ कर बाहर निकल आया।
शाम हो रही थी, बाज़ार में काफ़ी भीड़ हो गयी थी। हमीद बुरी तरह उखड़ा हुआ था। सिन्हा से बातचीत करने के बाद से उसका मूड बहुत ज़्यादा ख़राब हो गया था। दिल बहलाने के लिए वह एक रेस्टोरेण्ट में चला गया। थोड़ी देर तक बैठा चाय पीता रहा, लेकिन वहाँ भी दिल न लगा। रेस्टोरेण्ट से निकल कर वह फ़ुटपाथ पर खड़ा हो गया उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, अचानक उसने एक टैक्सी रुकवायी और उस पर बैठ कर सर सीताराम की कोठी की तरफ़ रवाना हो गया। कोठी से एक फर्लांग दूर ही उसने टैक्सी छोड़ दी और वहाँ से पैदल चलता हुआ किताबों की एक दुकान पर आया। यहाँ उसके और कोठी के बीच में सिर्फ़ सड़क थी, देखने में वह काउण्टर पर लगी हुई किताबें उलट-पलट रहा था, लेकिन उसकी निगाहें कोठी के बाग़ के फाटक की तरफ़ लगी हुई थीं। थोड़ी देर के बाद सर सीताराम एक कत्थई रंग के स्पैनियल कुत्ते की ज़ंजीर थामे कोठी में दिखे। यह उनकी सैर का वक़्त था। उनकी आदत थी कि वे रोज़ाना शाम को अपने किसी चहेते कुत्ते को ले कर घूमने के लिए पैदल लॉरेंस गार्डन तक जाया करते थे। हमीद उन्हें जाता हुआ देखता रहा। उसने जल्दी से एक किताब ख़रीदी और सर सीताराम के पीछे चल पड़ा। सर सीताराम बुढ़ापे में ज़रूर क़दम रख चुके थे, लेकिन वे अभी तक काफ़ी मज़बूत मालूम होते थे। चेहरे पर से दाढ़ी-मूँछें साफ़ थीं। भरे हुए चेहरे पर पतले-पतले होंट कुछ अजीब-से मालूम होते थे। कनपटी और आँखों के बीच बहुत सारी लकीरें थीं। नीचे का जबड़ा चेहरे के ऊपरी हिस्से की तुलना में ज़्यादा भारी था। उनकी चाल में एक अजीब क़िस्म की शान पायी जाती थी, जिसमें ग़ुरूर झलकता था या फिर हो सकता था कि उनमें यह अन्दाज़ पचीस साल तक फ़ौजी ज़िन्दगी गुज़ारने की वजह से पैदा हो गया था, वैसे वे काफ़ी मिलनसार मशहूर थे।
हमीद उन्हें कई बार देख चुका था। वह उन्हें ख़तरनाक आदमी समझने लगा था। उसके हिसाब से भारी जबड़ों के लोग ज़ालिम होते हैं, न जाने क्यों उसका दिल बार-बार कह उठता था कि राम सिंह वाले मामले में इन हज़रत का हाथ है और शहनाज़ को ग़ायब करा देने के ज़िम्मेदार भी यही हैं।
हमीद बराबर सर सीताराम का पीछा किये जा रहा था। थोड़ी देर के बाद वे लॉरेंस गार्डन पहूँच गये। कुछ पल टहलते रहने के बाद वे एक बेंच पर बैठ कर सुस्ताने लगे। हमीद भी कुछ दूर हट कर एक बेंच पर बैठ कर नयी ख़रीदी हुई किताब के पन्ने उलटने लगा। वह सोच रहा था कि किस तरह सर सीताराम से जान-पहचान पैदा करे। अचानक ग़ुर्राहट की आवाज़ सुनाई दी और एक पीले रंग का ख़ौफ़नाक कुत्ता मेंहदी की बाड़ फलाँगता हुआ सर सीताराम के कुत्ते पर झपट पड़ा। उसने उनके कुत्ते को दो-तीन पटख़नियाँ दीं और उसकी गर्दन दबा कर बैठ गया। सर सीताराम के कुत्ते ने सहम कर आवाज़ भी निकालनी छोड़ दी थी। सर सीताराम बेंच पर खड़े हो कर चीख़ रहे थे।
औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi
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Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi
‘‘ऐ हटो... हटो... डिंगू के बच्चे।’’ एक आदमी गार्डन की बाड़ की दूसरी तरफ़ से कहता हुआ कूदा। उसने झपट कर पीले कुत्ते के पट्टे पर हाथ डाल दिया। उसकी पकड़ से आज़ाद होते ही सर सीताराम का कुत्ता भाग कर बेंच के नीचे दुबक गया। आने वाला एक बहादुर आदमी मालूम होता था। उसके लाल गोरे चेहरे पर गहरे काले रंग की फ़्रेंच कट दाढ़ी बड़ी अजीब लग रही थी, लेकिन उसमें बेढंगापन नहीं था। आँखों पर बग़ैर फ़्रेम का छोटा-सा चश्मा था। मूँछें बारीक़ और नुकीली थीं। जिस्म की बनावट बता रही थी कि वह कड़ी मेहनत का आदी है। उसने काले रंग का सूट पहन रखा था। दिखने में वह किसी ऊँची सोसाइटी का मेम्बर मालूम होता था।
‘‘जनाब, मुझे शर्मिन्दगी है।’’ उसने बिफरे हुए पीले कुत्ते को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।
‘‘मगर... मगर... इतना ख़ौफनाक कुत्ता...आप उसे इस तरह आज़ाद क्यों छोड़ देते हैं।’’ सर सीताराम ने बुरा-सा मुँह बना कर कहा। ‘‘आप भारी जुर्म कर रहे हैं।’’
‘‘जुर्म,’’ अजनबी ने चौंक कर कहा। ‘‘भला इसमें जुर्म की क्या बात है?’’
‘‘ऐसे ख़तरनाक कुत्ते को आज़ाद छोड़ देना जुर्म नहीं तो और क्या है!’’ सर सीताराम ऊँची आवाज़ में बोले। ‘‘या फिर शायद आप इसकी नस्ल से वाक़िफ़ नहीं हैं। यह अफ़्रीकी नस्ल का येलो डिंगू है, कभी-कभी यह शेर और चीते से भी टक्कर ले लेता है, यह आपको कहाँ से मिल गया और यहाँ की आबोहवा में अब तक कैसे ज़िन्दा है।’’
अजनबी सर सीताराम को हैरत से देख रहा था। अचानक उसका चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा।
‘‘वाह रे मेरी क़िस्मत...’’ वह चीख़ कर बोला। ‘‘सारे मुल्क में आप ही मुझे कुत्तों के मामले में इतने तजरुबेकार नज़र आये हैं, मुझे आपसे मिल कर बेहद ख़ुशी हुई है और मुझे ख़ुद हैरत है कि यह कुत्ता यहाँ किसके पास था और यहाँ की आबोहवा में ज़िन्दा कैसे रहा।’’
‘‘क्या मतलब...?’’ सर सीताराम ने चौंक कर कहा। ‘‘तो क्या यह कुत्ता आपका नहीं है?’’
‘‘जी नहीं! यह बहुत ही अजीबो-ग़रीब तरीक़े से मुझ तक पहूँचा है।’’ अजनबी ने अपने पाइप में तम्बाकू भरते हुए कहा।
सर सीताराम दिलचस्पी के साथ अजनबी को देख रहे थे। हमीद का दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था, क्योंकि वह उस कुत्ते को पहचानता था।
‘‘तीन-चार दिन की बात है।’’ अजनबी कहने लगा। ‘‘मैं शिकार खेल कर वापस आ रहा था मैंने एक चलती हुई ट्रेन के जानवरों के डिब्बे से इस कुत्ते को कूद कर बाहर आते देखा। ट्रेन गुज़र गयी और यह भागता हुआ मेरी तरफ़ आ रहा था। मैंने कार रोक दी और उतर कर इसे पकड़ लिया। तब से यह मेरे पास है।’’
‘‘लेकिन यह इतनी जल्दी आपके क़ाबू में कैसे आ गया?’’ सर सीताराम पलकें झपकाते हुए बोले।
‘‘ओह, मेरे लिए यह कौन-सी बड़ी बात है।’’ अजनबी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘मैंने अपनी ज़िन्दगी का बहुत सारा हिस्सा अफ़्रीका के जंगलों में गुज़ारा है।’’
‘‘मैं इस ज़ात के कुत्तों की नस-नस से वाक़िफ़ हूँ।’’ सर सीताराम जल्दी से बोले।
अजनबी ने अपने कुत्ते के गले में ज़ंजीर डाल कर उसे एक बेंच के पाये से बाँध दिया और सर सीताराम के कुत्ते को गोद में उठा कर उसके सर पर हाथ फेरने लगा।
‘‘मुझे छोटी ज़ात के स्पैनियल बहुत पसन्द हैं।’’ अजनबी बोला। ‘‘आप बहुत शा़ैकीन आदमी मालूम होते हैं। क्या आपके पास और कुत्ते भी हैं।’’
‘‘जी हाँ...’’ सर सीताराम मुस्कुरा कर बोले। ‘‘तक़रीबन पाँच या छै दर्जन।’’
‘‘पाँच-छै दर्जन,’’ अजनबी चौंक कर बोला। ‘‘तब तो आप वाक़ई बिलकुल मेरी तरह हैं।’’
‘‘तो क्या आप भी।’’ सर सीताराम ने कहा।
‘‘जी हाँ...’’ अजनबी ने जवाब दिया।
‘‘आपकी तारीफ़...’’ सर सीताराम ने कहा।
अजनबी ने अपना कार्ड जेब से निकाल कर सर सीताराम के हाथ में दे दिया। ‘‘कर्नल जी. प्रकाश, सी.बी.ई.।’’ सर सीताराम ने बुलन्द आवाज़ से कार्ड पढ़ा।
‘‘और आप...’’ अजनबी ने कहा।
‘‘लोग मुझे सर सीताराम के नाम से पुकारते हैं।’’
‘‘सर सीताराम...’’ अजनबी ने ख़ुशी के लहजे में चीख़ कर उनसे हाथ मिलाते हुए कहा। ‘‘बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिल कर... भला क्यों न हो... आपसे ज़्यादा कुत्तों के बारे में कौन जान सकता है। यही तो मैं कहूँ... मैंने आपकी तारीफ़ एक अंग्रेज़ दोस्त से अफ़्रीका में सुनी थी। इस अचानक मुलाक़ात से मुझे कितनी ख़ुशी हुई है, यह मैं बयान नहीं कर सकता।’’
‘‘आप मुझे शर्मिन्दा कर रहे हैं। अरे, आप भला किससे कम हैं।’’ सर सीताराम ने कहा। ‘‘क्या इस वक़्त मैं अफ़्रीका के मशहूर करोड़पति से बातचीत नहीं कर रहा हूँ।’’
‘‘जनाब, मुझे शर्मिन्दगी है।’’ उसने बिफरे हुए पीले कुत्ते को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।
‘‘मगर... मगर... इतना ख़ौफनाक कुत्ता...आप उसे इस तरह आज़ाद क्यों छोड़ देते हैं।’’ सर सीताराम ने बुरा-सा मुँह बना कर कहा। ‘‘आप भारी जुर्म कर रहे हैं।’’
‘‘जुर्म,’’ अजनबी ने चौंक कर कहा। ‘‘भला इसमें जुर्म की क्या बात है?’’
‘‘ऐसे ख़तरनाक कुत्ते को आज़ाद छोड़ देना जुर्म नहीं तो और क्या है!’’ सर सीताराम ऊँची आवाज़ में बोले। ‘‘या फिर शायद आप इसकी नस्ल से वाक़िफ़ नहीं हैं। यह अफ़्रीकी नस्ल का येलो डिंगू है, कभी-कभी यह शेर और चीते से भी टक्कर ले लेता है, यह आपको कहाँ से मिल गया और यहाँ की आबोहवा में अब तक कैसे ज़िन्दा है।’’
अजनबी सर सीताराम को हैरत से देख रहा था। अचानक उसका चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा।
‘‘वाह रे मेरी क़िस्मत...’’ वह चीख़ कर बोला। ‘‘सारे मुल्क में आप ही मुझे कुत्तों के मामले में इतने तजरुबेकार नज़र आये हैं, मुझे आपसे मिल कर बेहद ख़ुशी हुई है और मुझे ख़ुद हैरत है कि यह कुत्ता यहाँ किसके पास था और यहाँ की आबोहवा में ज़िन्दा कैसे रहा।’’
‘‘क्या मतलब...?’’ सर सीताराम ने चौंक कर कहा। ‘‘तो क्या यह कुत्ता आपका नहीं है?’’
‘‘जी नहीं! यह बहुत ही अजीबो-ग़रीब तरीक़े से मुझ तक पहूँचा है।’’ अजनबी ने अपने पाइप में तम्बाकू भरते हुए कहा।
सर सीताराम दिलचस्पी के साथ अजनबी को देख रहे थे। हमीद का दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था, क्योंकि वह उस कुत्ते को पहचानता था।
‘‘तीन-चार दिन की बात है।’’ अजनबी कहने लगा। ‘‘मैं शिकार खेल कर वापस आ रहा था मैंने एक चलती हुई ट्रेन के जानवरों के डिब्बे से इस कुत्ते को कूद कर बाहर आते देखा। ट्रेन गुज़र गयी और यह भागता हुआ मेरी तरफ़ आ रहा था। मैंने कार रोक दी और उतर कर इसे पकड़ लिया। तब से यह मेरे पास है।’’
‘‘लेकिन यह इतनी जल्दी आपके क़ाबू में कैसे आ गया?’’ सर सीताराम पलकें झपकाते हुए बोले।
‘‘ओह, मेरे लिए यह कौन-सी बड़ी बात है।’’ अजनबी मुस्कुरा कर बोला। ‘‘मैंने अपनी ज़िन्दगी का बहुत सारा हिस्सा अफ़्रीका के जंगलों में गुज़ारा है।’’
‘‘मैं इस ज़ात के कुत्तों की नस-नस से वाक़िफ़ हूँ।’’ सर सीताराम जल्दी से बोले।
अजनबी ने अपने कुत्ते के गले में ज़ंजीर डाल कर उसे एक बेंच के पाये से बाँध दिया और सर सीताराम के कुत्ते को गोद में उठा कर उसके सर पर हाथ फेरने लगा।
‘‘मुझे छोटी ज़ात के स्पैनियल बहुत पसन्द हैं।’’ अजनबी बोला। ‘‘आप बहुत शा़ैकीन आदमी मालूम होते हैं। क्या आपके पास और कुत्ते भी हैं।’’
‘‘जी हाँ...’’ सर सीताराम मुस्कुरा कर बोले। ‘‘तक़रीबन पाँच या छै दर्जन।’’
‘‘पाँच-छै दर्जन,’’ अजनबी चौंक कर बोला। ‘‘तब तो आप वाक़ई बिलकुल मेरी तरह हैं।’’
‘‘तो क्या आप भी।’’ सर सीताराम ने कहा।
‘‘जी हाँ...’’ अजनबी ने जवाब दिया।
‘‘आपकी तारीफ़...’’ सर सीताराम ने कहा।
अजनबी ने अपना कार्ड जेब से निकाल कर सर सीताराम के हाथ में दे दिया। ‘‘कर्नल जी. प्रकाश, सी.बी.ई.।’’ सर सीताराम ने बुलन्द आवाज़ से कार्ड पढ़ा।
‘‘और आप...’’ अजनबी ने कहा।
‘‘लोग मुझे सर सीताराम के नाम से पुकारते हैं।’’
‘‘सर सीताराम...’’ अजनबी ने ख़ुशी के लहजे में चीख़ कर उनसे हाथ मिलाते हुए कहा। ‘‘बड़ी ख़ुशी हुई आपसे मिल कर... भला क्यों न हो... आपसे ज़्यादा कुत्तों के बारे में कौन जान सकता है। यही तो मैं कहूँ... मैंने आपकी तारीफ़ एक अंग्रेज़ दोस्त से अफ़्रीका में सुनी थी। इस अचानक मुलाक़ात से मुझे कितनी ख़ुशी हुई है, यह मैं बयान नहीं कर सकता।’’
‘‘आप मुझे शर्मिन्दा कर रहे हैं। अरे, आप भला किससे कम हैं।’’ सर सीताराम ने कहा। ‘‘क्या इस वक़्त मैं अफ़्रीका के मशहूर करोड़पति से बातचीत नहीं कर रहा हूँ।’’
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi
‘‘यह मेरी ख़ुशनसीबी है कि यहाँ भी लोग मुझे जानते हैं।’’ अजनबी ने मुस्कुरा कर कहा।
‘‘एक बार मेरा इरादा हुआ था कि अफ़्रीका की एक हीरे की खान का हिस्सेदार हो जाऊँ, उसी दौरान मुझे आपका नाम मालूम हुआ था, वाक़ई मैं बहुत ख़ुशक़िस्मत हूँ कि आज आपसे इस तरह मुलाक़ात हो गयी।’’
अब दोनों बातचीत करते हुए बेंच पर बैठ गये थे। हमीद की नज़रें कुत्ते पर जमी थीं। उसने इन दोनों की बातचीत साफ़ सुनी थी। यूँ तो वह किताब पढ़ रहा था, लेकिन कनखियों से बार-बार उनकी तरफ़ देखता जा रहा था। अचानक एक खय़ाल उसके दिल में पैदा हुआ। उसे आज ही ख़बर मिली थी कि मृतक राम सिंह के कुछ साथी उसके क़ातिल की तलाश में लगे हैं। तो क्या यह अजनबी उन्हीं में से कोई एक है? लेकिन यह उसे कैसे मिल गया, कहीं उसकी आँखें उसे धोखा तो नहीं दे रही हैं। मगर नहीं, वह उसे हज़ार में पहचान सकता है।
हमीद इधर इन गुत्थियों में उलझ रहा था और वे दोनों बातचीत में मशग़ूल थे, लेकिन उनकी आवाज़ अब ज़्यादा साफ़ नहीं सुनाई दे रही थी। हमीद फिर उलझन में पड़ गया, उन दोनों में अभी-अभी मुलाक़ात हुई थी और इतनी जल्दी यह राज़दारी कैसी...ऐसा मालूम हो रहा था जैसे दोनों बरसों से एक-दूसरे को जानते हों।
थोड़ी देर तक दोनों धीरे-धीरे बातें करते रहे, फिर उठ खड़े हुए।
‘‘अच्छा कर्नल साहब, अब चलना चाहिए। वाक़ई आपसे मिल कर बड़ी ख़ुशी हुई।’’ सर सीताराम ने कर्नल प्रकाश से हाथ मिलाते हुए कहा। ‘‘तो फिर कल आप आ रहे हैं न...’’
‘ज़रूर, ज़रूर, मेरे लिए यह ख़ुशी की बात है कि अच्छा साथी मिल गया।’’ कर्नल प्रकाश ने हँसते हुए कहा।
दोनों उठ कर बाग़ के बाहर आये।
हमीद अब सीताराम के बजाय कर्नल प्रकाश का पीछा कर रहा था।
उसे यह देख कर बड़ी हैरत हुई कि कर्नल प्रकाश ‘गुलिस्ताँ होटल’ के उन्हीं कमरों में ठहरा हुआ है जिनमें मक़तूल राम सिंह ठहरा हुआ था। उसका शक यक़ीन में बदलने लगा। ज़रूर यह शख़्स राम सिंह ही के गिरोह से ताल्लुक़ रखता है। उसे रह-रह कर फ़रीदी पर ग़ुस्सा आ रहा था कि ऐसे वक़्त में उसे अकेला छोड़ कर ख़ुद सैर-सपाटे करता फिर रहा है। शहनाज़ की गुमशुदगी का खय़ाल उसे बुरी तरह बेचैन किये हुए था। यह तो वह किसी तरह सोच ही नहीं सकता था कि राम सिंह के क़त्ल की साजिश में वह भी शरीक रही है, उसे पूरापूरा यक़ीन था कि वह महज़ इसीलिए ग़ायब की गयी है कि पुलिस उसी को मुजरिम समझ कर क़ातिल की तलाश छोड़ दे।
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‘‘एक बार मेरा इरादा हुआ था कि अफ़्रीका की एक हीरे की खान का हिस्सेदार हो जाऊँ, उसी दौरान मुझे आपका नाम मालूम हुआ था, वाक़ई मैं बहुत ख़ुशक़िस्मत हूँ कि आज आपसे इस तरह मुलाक़ात हो गयी।’’
अब दोनों बातचीत करते हुए बेंच पर बैठ गये थे। हमीद की नज़रें कुत्ते पर जमी थीं। उसने इन दोनों की बातचीत साफ़ सुनी थी। यूँ तो वह किताब पढ़ रहा था, लेकिन कनखियों से बार-बार उनकी तरफ़ देखता जा रहा था। अचानक एक खय़ाल उसके दिल में पैदा हुआ। उसे आज ही ख़बर मिली थी कि मृतक राम सिंह के कुछ साथी उसके क़ातिल की तलाश में लगे हैं। तो क्या यह अजनबी उन्हीं में से कोई एक है? लेकिन यह उसे कैसे मिल गया, कहीं उसकी आँखें उसे धोखा तो नहीं दे रही हैं। मगर नहीं, वह उसे हज़ार में पहचान सकता है।
हमीद इधर इन गुत्थियों में उलझ रहा था और वे दोनों बातचीत में मशग़ूल थे, लेकिन उनकी आवाज़ अब ज़्यादा साफ़ नहीं सुनाई दे रही थी। हमीद फिर उलझन में पड़ गया, उन दोनों में अभी-अभी मुलाक़ात हुई थी और इतनी जल्दी यह राज़दारी कैसी...ऐसा मालूम हो रहा था जैसे दोनों बरसों से एक-दूसरे को जानते हों।
थोड़ी देर तक दोनों धीरे-धीरे बातें करते रहे, फिर उठ खड़े हुए।
‘‘अच्छा कर्नल साहब, अब चलना चाहिए। वाक़ई आपसे मिल कर बड़ी ख़ुशी हुई।’’ सर सीताराम ने कर्नल प्रकाश से हाथ मिलाते हुए कहा। ‘‘तो फिर कल आप आ रहे हैं न...’’
‘ज़रूर, ज़रूर, मेरे लिए यह ख़ुशी की बात है कि अच्छा साथी मिल गया।’’ कर्नल प्रकाश ने हँसते हुए कहा।
दोनों उठ कर बाग़ के बाहर आये।
हमीद अब सीताराम के बजाय कर्नल प्रकाश का पीछा कर रहा था।
उसे यह देख कर बड़ी हैरत हुई कि कर्नल प्रकाश ‘गुलिस्ताँ होटल’ के उन्हीं कमरों में ठहरा हुआ है जिनमें मक़तूल राम सिंह ठहरा हुआ था। उसका शक यक़ीन में बदलने लगा। ज़रूर यह शख़्स राम सिंह ही के गिरोह से ताल्लुक़ रखता है। उसे रह-रह कर फ़रीदी पर ग़ुस्सा आ रहा था कि ऐसे वक़्त में उसे अकेला छोड़ कर ख़ुद सैर-सपाटे करता फिर रहा है। शहनाज़ की गुमशुदगी का खय़ाल उसे बुरी तरह बेचैन किये हुए था। यह तो वह किसी तरह सोच ही नहीं सकता था कि राम सिंह के क़त्ल की साजिश में वह भी शरीक रही है, उसे पूरापूरा यक़ीन था कि वह महज़ इसीलिए ग़ायब की गयी है कि पुलिस उसी को मुजरिम समझ कर क़ातिल की तलाश छोड़ दे।
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Re: औरत फ़रोश का हत्यारा ibne safi
Nice update ... Keep it up dear. Waiting for the next update bro...
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(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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