जहन्नुम की अप्सरा
फिर वही हुआ जिसका अन्दाज़ा इमरान पहले ही लगा चुका था....जैसे ही वह ‘भयानक आदमी’ वाला केस ख़त्म करके शादाब नगर से वापस आया, उसके बाप के दफ़्तर में उसकी पेशी हो गयी....
उसके बाप रहमान साहब इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल थे और होम सेक्रेटरी ने कई बार इमरान के कारनामों का ज़िक्र उनसे कर दिया था, वरना वे तो अब तक उसे निकम्मा और बेवक़ूफ़ समझते थे।
इमरान अपनी सभी बेवक़ूफ़ियों समेत उनके सामने पेश हुआ।
पहले वे उसे ख़ूँख़ार नजरों से घूरते रहे, फिर झल्लायी हुई आवाज़ में बोले, ‘‘बैठ जाओ।’’
उनकी मेज़ के सामने तीन ख़ाली कुर्सियाँ थीं। इमरान कुछ इस तरह बौखला कर इधर-उधर नाचने लगा जैसे उसकी समझ में ही न आ रहा हो कि उसे किस कुर्सी पर बैठना चाहिए।
‘‘बैठो!’’ रहमान साहब मेज़ पर घूँसा मार कर गरजे.... और इमरान एक कुर्सी में ढेर हो कर हाँफने लगा।
‘‘तुम बिलकुल गधे हो....!’
‘‘जी हाँ....!’’
‘‘शट अप!’’
इमरान ने बच्चे की तरह सिर झुका लिया।
‘‘तुमने शादाब नगर के स्मगलर को पकड़ने के लिए कौन-सा तरीक़ा अपनाया था?’’
‘‘वह....बात दरअसल यह है कि....मैंने एक जासूसी नॉवेल में पढ़ा था....।’’
‘‘जासूसी नॉवेल....?’’ रहमान साहब ग़ुर्राये।
‘‘जी हाँ....भला-सा नाम था....चेहरे की होरी....ओ लल लाहौल....हीरे की चोरी!’’
‘‘देखो! मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊँगा। तुम डिपार्टमेंट को बदनाम कर रहे हो। शादाब नगर वाले दफ़्तर से तुम्हारे लिए कोई अच्छी रिपोर्ट नहीं आयी। यह सरकारी डिपार्टमेंट है, कोई थियेटर कम्पनी नहीं, जिसमें जासूसी नॉवेल स्टेज किये जायें और वह औरत कौन है, जो तुम्हारे साथ आयी है?’’
‘‘वह....वह रूशी है!....जी हाँ....’’
‘‘उसे क्यों लाये हो?’’
‘‘वह मेरे सेक्शन के लिए एक टाइपिस्ट की ज़रूरत थी न।’’
‘‘टाइपिस्ट की ज़रूरत थी?’’ रहमान साहब ने दाँत पीस कर दोहराया।
‘‘जी हाँ....!’’
रहमान साहब ने एक सादा काग़ज़ उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लिखो।’’
इमरान लिखने लगा, ‘मेरे सेक्शन के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी....’
‘‘क्या लिख रहे हो?’’
इमरान ने जितना लिखा था, सुना दिया।
‘‘मैंने इस्तीफ़ा लिखने को कहा था?’’ रहमान साहब मेज़ पर घूँसा मार कर बोले।
इमरान ने दूसरा काग़ज़ उठाया और अपने चेहरे पर किसी किस्म के भाव ज़ाहिर किये बग़ैर इस्तीफा लिख दिया।
‘‘मुझे ख़ुद शर्म आती थी?’’ इमरान ने इस्तीफा रहमान साहब की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा। ‘‘इतने बड़े आदमी का लड़का और नौकरी करता फिरे, लाहौल विला क़ूवत....’’
‘हूँ....लेकिन अब तुम्हारे लिए कोठी में कोई जगह नहीं?’’ रहमान साहब ने जवाब दिया।
‘‘मैं गैराज में सो जाया करूँगा....आप उसकी फ़िक्र न करें।’’
‘‘नहीं! अब तुम फाटक में भी क़दम नहीं रखोगे?’’
‘‘फाटक!’’ इमरान कुछ सोचता हुआ बड़बड़ाने लगा। ‘‘चारदीवारी....तो काफ़ी ऊँची है।’’
वह ख़ामोश हो गया। फिर थोड़ी देर बाद बोला, ‘‘नहीं जनाब! फाटक में क़दम रखे बग़ैर तो कोठी में दाख़िल होना मुश्किल है।’’
‘‘गेट आउट....!’’
इमरान सिर झुकाये उठा और कमरे से निकल गया।
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