जहन्नुम की अप्सरा

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

जहन्नुम की अप्सरा

Post by Masoom »

जहन्नुम की अप्सरा

फिर वही हुआ जिसका अन्दाज़ा इमरान पहले ही लगा चुका था....जैसे ही वह ‘भयानक आदमी’ वाला केस ख़त्म करके शादाब नगर से वापस आया, उसके बाप के दफ़्तर में उसकी पेशी हो गयी....

उसके बाप रहमान साहब इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल थे और होम सेक्रेटरी ने कई बार इमरान के कारनामों का ज़िक्र उनसे कर दिया था, वरना वे तो अब तक उसे निकम्मा और बेवक़ूफ़ समझते थे।

इमरान अपनी सभी बेवक़ूफ़ियों समेत उनके सामने पेश हुआ।

पहले वे उसे ख़ूँख़ार नजरों से घूरते रहे, फिर झल्लायी हुई आवाज़ में बोले, ‘‘बैठ जाओ।’’

उनकी मेज़ के सामने तीन ख़ाली कुर्सियाँ थीं। इमरान कुछ इस तरह बौखला कर इधर-उधर नाचने लगा जैसे उसकी समझ में ही न आ रहा हो कि उसे किस कुर्सी पर बैठना चाहिए।

‘‘बैठो!’’ रहमान साहब मेज़ पर घूँसा मार कर गरजे.... और इमरान एक कुर्सी में ढेर हो कर हाँफने लगा।
‘‘तुम बिलकुल गधे हो....!’

‘‘जी हाँ....!’’

‘‘शट अप!’’

इमरान ने बच्चे की तरह सिर झुका लिया।

‘‘तुमने शादाब नगर के स्मगलर को पकड़ने के लिए कौन-सा तरीक़ा अपनाया था?’’

‘‘वह....बात दरअसल यह है कि....मैंने एक जासूसी नॉवेल में पढ़ा था....।’’

‘‘जासूसी नॉवेल....?’’ रहमान साहब ग़ुर्राये।

‘‘जी हाँ....भला-सा नाम था....चेहरे की होरी....ओ लल लाहौल....हीरे की चोरी!’’

‘‘देखो! मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊँगा। तुम डिपार्टमेंट को बदनाम कर रहे हो। शादाब नगर वाले दफ़्तर से तुम्हारे लिए कोई अच्छी रिपोर्ट नहीं आयी। यह सरकारी डिपार्टमेंट है, कोई थियेटर कम्पनी नहीं, जिसमें जासूसी नॉवेल स्टेज किये जायें और वह औरत कौन है, जो तुम्हारे साथ आयी है?’’

‘‘वह....वह रूशी है!....जी हाँ....’’

‘‘उसे क्यों लाये हो?’’

‘‘वह मेरे सेक्शन के लिए एक टाइपिस्ट की ज़रूरत थी न।’’

‘‘टाइपिस्ट की ज़रूरत थी?’’ रहमान साहब ने दाँत पीस कर दोहराया।

‘‘जी हाँ....!’’

रहमान साहब ने एक सादा काग़ज़ उसकी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लिखो।’’

इमरान लिखने लगा, ‘मेरे सेक्शन के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी....’

‘‘क्या लिख रहे हो?’’

इमरान ने जितना लिखा था, सुना दिया।

‘‘मैंने इस्तीफ़ा लिखने को कहा था?’’ रहमान साहब मेज़ पर घूँसा मार कर बोले।

इमरान ने दूसरा काग़ज़ उठाया और अपने चेहरे पर किसी किस्म के भाव ज़ाहिर किये बग़ैर इस्तीफा लिख दिया।

‘‘मुझे ख़ुद शर्म आती थी?’’ इमरान ने इस्तीफा रहमान साहब की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा। ‘‘इतने बड़े आदमी का लड़का और नौकरी करता फिरे, लाहौल विला क़ूवत....’’

‘हूँ....लेकिन अब तुम्हारे लिए कोठी में कोई जगह नहीं?’’ रहमान साहब ने जवाब दिया।

‘‘मैं गैराज में सो जाया करूँगा....आप उसकी फ़िक्र न करें।’’

‘‘नहीं! अब तुम फाटक में भी क़दम नहीं रखोगे?’’

‘‘फाटक!’’ इमरान कुछ सोचता हुआ बड़बड़ाने लगा। ‘‘चारदीवारी....तो काफ़ी ऊँची है।’’

वह ख़ामोश हो गया। फिर थोड़ी देर बाद बोला, ‘‘नहीं जनाब! फाटक में क़दम रखे बग़ैर तो कोठी में दाख़िल होना मुश्किल है।’’

‘‘गेट आउट....!’’

इमरान सिर झुकाये उठा और कमरे से निकल गया।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: जहन्नुम की अप्सरा

Post by Masoom »



तीन घण्टे के अन्दर-अन्दर पूरे डिपार्टमेंट को मालूम हो गया कि इमरान ने इस्तीफा दे दिया है....इस ख़बर पर सबसे ज़्यादा ख़ुशी कैप्टन फ़ैयाज़ को हुई....वह इमरान का दोस्त ज़रूर था, लेकिन उसी हद तक जहाँ ख़ुद उसके फ़ायदे को ठेस न लगती हो....इमरान के बाक़ायदा नौकरी में आ जाने के बाद से उसकी इज़्ज़त खतरे में पड़ गयी थी।

नौकरी में आ जाने से पहले इमरान ने कुछ केसों के सिलसिले में उसकी जो मदद की थी उसकी बिना पर उसकी साख बन गयी थी, लेकिन इमरान के नौकरी में आते ही अमली तौर पर फ़ैयाज़ की हैसियत ज़ीरो के बराबर भी नहीं रह गयी थी।

‘‘इमरान डियर!’’ फ़ैयाज़ उससे कह रहा था। ‘‘मुझे अफसोस है कि तुम्हारा साथ छूट रहा है।’’

‘‘किसी दुश्मन ने उड़ायी होगी!’’ इमरान ने लापरवाही से कहा....फिर फ़ैयाज़ का कन्धा थपकता हुआ बोला।

‘‘नहीं दोस्त! मैं क़ब्र में भी तुम्हारा साथ नहीं छो़ड़ूँगा! फ़िलहाल अपने बँगले के दो कमरे मेरे लिए ख़ाली करा दो।’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘वालिद साहब कहते हैं कि मैं अब उनकी कोठी में क़दम भी नहीं रख सकता, हालाँकि मुझे यक़ीन है कि मैं रख सकता हूँ।’’

‘‘ओह....अब मैं समझा....शायद इसकी वजह वह औरत है!’’ फ़ैयाज़ हँसने लगा।


‘‘हाँ, वह औरत!’’ इमरान आँखें फाड़ कर बोला। ‘‘तुम मेरे बाप को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो....शट अप यू फ़ूल!’’

‘‘मेरा मतलब यह था....!’’

‘‘नहीं! बिलकुल शट अप! ख़बरदार, होशियार....तुम मेरी बात का जवाब दो! कमरे ख़ाली कर रहे हो....या नहीं?’’

‘‘यार, बात दरअसल यह है कि मेरी बीवी....क्या वह औरत भी तुम्हारे साथ ही रहेगी।’’

‘‘उसका नाम रूशी है।’’

‘‘ख़ैर, कुछ हो! हाँ, तो मेरी बीवी कुछ और समझेगी।’’

‘‘क्या समझेगी।’’

‘‘यही कि वह तुम्हारी नौकरानी है।’’

‘‘लाहौल विला क़ूवत....मैं तुम्हारी बीवी की बहुत इज़्ज़त करता हूँ।’’

‘‘मैं उस औरत के बारे में कह रहा था।’’ फ़ैयाज़ झेंपा भी और झल्ला भी गया।

‘‘ओह तो ऐसे बोलो ना! अच्छा ख़ैर....अगर तुम बँगले में जगह नहीं देना चाहते तो वह फ़्लैट ही मुझे दे दो जिसे तुम पगड़ी पर उठाने वाले हो।’’

‘‘कैसा फ़्लैट?’’ फ़ैयाज़ चौंक कर उसे घूरने लगा।

‘‘छोड़ो यार! अब क्या मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि तुमने चार-पाँच फ़्लैटों पर नाजायज़ तौर पर क़ब्ज़ा कर रखा है!’’

‘‘ज़रा धीरे से बोलो! गधे कहीं के!’’ फ़ैयाज़ चारों तरफ़ देखता हुआ बोला।

‘‘फ़रमान बिल्डिंग वाले फ़्लैट की चाभी मेरे हवाले करो। समझे!’’

‘‘ख़ुदा तुम्हें ग़ारत करे!’’ फ़ैयाज़ उसे घूँसा दिखाता हुआ दाँत पीस कर बोला।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: जहन्नुम की अप्सरा

Post by Masoom »


तीन-चार दिन बाद शहर के एक अख़बार में एक अजीबो-गरीब इश्तहार छपा। जिसकी सु़र्खी थी, ‘तलाक़ हासिल करने के लिए हमसे मिलें।’

इश्तहार का मज़मून था :
‘‘अगर आप अपने शौहर से तंग आ गयी हैं, तो तलाक़ के अलावा और कोई चारा नहीं....लेकिन अदालत से तलाक़ हासिल करने के लिए शौहर के खिलाफ़ ठोस क़िस्म के सबूत पेश करने पड़ते हैं। हम कम मेहनताना ले कर आपके लिए ऐसे सबूत मुहैया कर सकते हैं जो तलाक़ के लिए काफ़ी हों, सिर्फ़ एक बार हमसे मिल कर हमेशा के लिए सच्ची ख़ुशी हासिल कीजिए। मिलने का पता : रूशी ऐण्ड को., फ़रमान बिल्डिंग, फ़्लैट नम्बर ४।’’

कैप्टन फ़ैयाज़ ने यह इश्तहार पढ़ा और उसका मुँह हैरत से खुल गया! फ़रमान बिल्डिंग का चौथा फ़्लैट वही था जिसकी चाभी इमरान उससे ले गया था.... रूशी ऐण्ड को.!

फ़ैयाज़ सोचने लगा! रूशी....यह उसी औरत का नाम है जिसे इमरान शादाब नगर से लाया है।


फ़ैयाज़ अपना सिर खुजाने लगा....यह बिलकुल नयी हरकत थी....इससे शहर में अफ़वाहों की लहर दौड़ सकती थी, लेकिन इसे ग़ैरक़ानूनी नहीं कहा जा सकता था....यक़ीनन रूशी ऐण्ड कम्पनी उसके डिपार्टमेंट के लिए एक सिर दर्द बनने वाली थी....

फ़ैयाज़ ने हाथ-पैर फैला कर लम्बी अँगड़ाई ली और सिगरेट सुलगा कर दोबारा इश्तहार पढ़ने लगा।

उसने रूशी के बारे में सिर्फ़ सुना था....उसे देखा नहीं था।

वह थोड़ी देर बैठा सिगरेट पीता रहा....फिर उठ कर दफ़्तर से बाहर आया, मोटर साइकिल सँभाली और फ़रमान बिल्डिंग की तरफ़ रवाना हो गया।

फ़रमान बिल्डिंग तीन मंज़िला इमारत थी और उसके फ़्लैटों में ज़्यादातर प्राइवेट कम्पनियों के दफ़्तर थे।

कैप्टन फ़ैयाज़ चौथे फ़्लैट के सामने रुक गया जिस पर ‘‘रूशी ऐण्ड को.’’ का बोर्ड लगा हुआ था....फ़ैयाज़ ने बोर्ड पर लिखी पूरी इबारत पढ़ी।

‘‘रूशी ऐण्ड को....फॉरवर्डिंग ऐण्ड क्लीयरिंग एजेंट्स।’’

फ़ैयाज़ ने बुरा-सा मुँह बना कर अपने कन्धों को उचकाया और चिक हटा कर अन्दर दाख़िल हुआ।

कमरे में रूशी और इमरान के अलावा और कोई नहीं था। फ़ैयाज़ को देख कर इमरान ने कुर्सी की तरफ़ इशारा किया वह रूशी को कुछ लिखवा रहा था....‘‘मैं डॉक्टर वॉटसन....’’ उसने डिक्टेशन जारी रखा और रूशी की पेन्सिल बड़ी तेज़ी से काग़ज़ पर चलती रही।

आदमी को ज़िन्दगी में कभी-कभी ऐसे हादसे भी पेश आते हैं जो ज़िन्दगी के आख़िरी पलों में भी ज़रूर याद आते हैं।

‘‘मैं डॉक्टर वॉटसन....मरते वक़्त....एक बार यह ज़रूर सोचूँगा....सोचूँ....सोचूँ....सोचूँ....!’’

इमरान ‘‘सोचूँ....सोचूँ’’ रटता हुआ कुछ सोचने लगा....रूशी की पेन्सिल रुक गयी....वह पेन्सिल रख कर फ़ैयाज़ की तरफ़ मुड़ी।

‘‘कहिए?’’ उसने फ़ैयाज़ से कहा।

‘‘कहेंगे!’’ इमरान ने सिर खुजाते हुए कहा। ‘‘ज़रा देखना रजिस्टर में हमारी किसी मुवक्किला का नाम मिसेज़ फ़ैयाज़ तो नहीं है।’’

‘‘मुवक्किला!’’ रूशी ने हैरत जाहिर की।

‘‘ओह....हाँ....अच्छा....डिक्टेशन,’’ इमरान ने फिर उसे लिखने का इशारा किया।
‘प्लीज़....’’ फ़ैयाज़ हाथ उठा कर बोला। ‘‘डिक्टेशन फिर होता रहेगा।’’

‘‘क्या बात है सुपर फ़ैयाज़!’’ इमरान ने हैरत से कहा। ‘‘क्या तुम अपनी बीवी को तलाक़ देना चाहते हो?’’

‘‘तुम्हारी फ़र्म के इश्तहार में मेरा डिपार्टमेंट काफ़ी दिलचस्पी ले रहा है।’’

‘‘वेरी गुड!’’ इमरान सिर हिला कर बोला। ‘‘तब तो मैं इसी साल इन्कम टैक्स अदा करने के क़ाबिल हो जाऊँगा।’’

‘‘बकवास मत करो।’’

‘‘सुपर फ़ैयाज़! तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँगा, अगर तुम अपने डिपार्टमेंट के शादीशुदा लागों की लिस्ट मुझे दे दो। मगर.... हिप....डैडी का नाम उसमें न होना चाहिए।’’

‘‘आख़िर इस हरकत का मतलब क्या है?’’

‘‘कैसी हरकत?’’

‘‘यही इश्तहार....!’’

‘‘इश्तहार....हाँ, इश्तहार क्या....?’’

‘‘यह क्या मामला है....और तुमने यहाँ फ़ॉरवर्डिंग और क्लीयरिंग का बोर्ड लगा रखा है?’’

‘‘यह शादी और तलाक़ का अंग्रेज़ी ट्रांसलेशन है।’’

‘‘लेकिन तुम यह गन्दा बिज़नेस नहीं कर सकते।’’

‘‘रूशी....तुम दूसरे कमरे में जाओ,’’ इमरान ने रूशी से कहा।

रूशी वहाँ से चली गयी।

‘‘औरत तो ज़ोरदार है!’’ फ़ैयाज़ अपनी एक आँख दबा कर बोला।

‘‘यही जुमला तुम्हारी बीवी तुम्हारे ख़िलाफ़ अदालत में सबूत के तौर पर पेश करके तलाक़ ले सकती है।’’

‘‘बकवास मत करो! तुम बड़ी मुसीबतों में फँस जाओगे।’’ फ़ैयाज़ ने कहा।

‘‘क्यों माई डियर! सुपर फ़ैयाज़ ?’’

‘‘बस यूँ ही!

‘‘हरकत ग़ैरक़ानूनी तो नहीं....!’’

‘‘ग़ैरक़ानूनी....’’ फ़ैयाज़ कुछ सोचने लगा फिर झल्ला कर बोला, ‘‘देखो इमरान, तुम डिपार्टमेंट के लिए सिर दर्द बनने वाले हो।’’

‘‘बस....इतनी-सी बात....!’’

इमरान कुछ और कहने वाला था कि एक अधेड़ उम्र की औरत कमरे में दाख़िल हुई। उसने दरवाज़े पर ही रुक कर कमरे का जायज़ा लिया....और फिर बिना किसी हिचकिचाहट के बोली। ‘‘मैं आपका इश्तहार देख कर आयी हूँ।’’

‘‘ओह....अच्छा....मिस रूशी अन्दर हैं।’’ इमरान ने खड़े हो कर दूसरे कमरे की तरफ़ इशारा किया।

औरत जल्दी से कमरे में चली गयी।

फ़ैयाज़, जो औरत को हैरत से देख रहा था, मेज़ पर कुहनियाँ टेक कर आगे झुकता हुआ धीरे से बोला। ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो इमरान?’’

‘‘बिज़नेस माई डियर....सुपर फ़ैयाज़!’’ इमरान ने लापरवाही से जवाब दिया।

‘‘इस औरत को पहचानते हो?’’ फ़ैयाज़ ने पूछा।

‘‘मैं शहर की सारी बूढ़ी औरतों को पहचानता हूँ।’’

‘‘कौन है?’’

‘‘एक बूढ़ी औरत।’’ इमरान ने जवाब दिया।

‘‘बको मत यह लेडी तनवीर है।’’

‘‘तो इससे क्या फ़र्क पड़ता है।’’

फ़ैयाज़ थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा फिर बोला। ‘‘आख़िर यहाँ क्यों आयी है?’’

‘‘नो सर!’’ इमरान सिर हिला कर बोला। ‘‘हरगिज़ नहीं फ़ैयाज़ साहब! आपको ऐसी बात सोचने का कोई हक़ नहीं....यह मेरा और मेरे मुवक्किलों का मामला है।’’
‘‘सर तनवीर की शख़्सियत से शायद तुम वाकिफ नहीं हो। अगर मुसीबत में फँसे तो रहमान साहब भी तुम्हें नहीं बचा सकेंगे।’’

‘‘मैं अपने दफ़्तर में सिर्फ़ बिज़नेस की बातें करता हूँ!’’ इमरान बुरा-सा मुँह बना कर बोला। ‘‘अगर तुम मेरे मुवक्किल बनना चाहते हो तो शौक़ से यहाँ बैठो, वरना....बाय! क्या समझे। अभी मैंने कोई चपरासी नहीं रखा है, इसलिए मुझे ख़ुद ही तकलीफ़ करनी पड़ेगी।’’

फ़ैयाज़ उसे ग़ुस्से-भरी जैसी आँखों से घूरने लगा! फिर थोड़ी देर बाद बोला।

‘‘सुनो! यह रहने वाला फ़्लैट है और रहने ही के लिए इसका अलॉटमेंट हुआ था। तुम इसमें किसी क़िस्म का दफ़्तर नहीं खोल सकते, समझे।’’
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: जहन्नुम की अप्सरा

Post by Masoom »

‘‘यार, क्यों बेकार में गरम होते हो। जब बीवी को तलाक़ देना हो तो सीधे यहीं चले आना तुमसे कोई फ़ीस नहीं ली जायेगी।’’

‘‘अच्छा, मैं तुम्हें देख लूँगा....याद रखो, अगर एक हफ़्ते के अन्दर-अन्दर तुमने यहाँ से दफ़्तर का बोर्ड न हटवाया तो ख़ुद भुगतोगे।’’

‘‘भुगत लूँगा! अब तुम जाओ....यह बिज़नेस का वक़्त है और मेरी पार्टनर तुमसे कभी बेतकल्ल़ुफ नहीं होगी। इसलिए रोज़ाना इधर के चक्कर काटने की बात, अगर डॉक्टर नुस्खें में न लिखे तो बेहतर है।’’

इमरान ने मेज़ पर रखी हुई घण्टी बजायी और फिर हड़बड़ा कर बोला। ‘‘लाहौल विला क़ूवत! चपरासी तो अभी रखा ही नहीं है। फिर मैं घण्टी क्यों बजा रहा हूँ! यार फ़ैयाज़,ज़रा लपक कर पाँच रुपए के भुने हुए चने तो लाना....लंच का वक़्त होने वाला है....और एक रुपये की हरी मिर्चें, पुदीना मुफ़्त मिल जायेगा। बस मेरा नाम ले लेना। मैं जाता तो एक टमाटर भी पार कर लाता....ख़ैर कोशिश करना....’’

‘‘तुम्हें पछताना पड़ेगा।’’

‘‘मैंने अभी शादी तो नहीं की।’’

‘‘अच्छा!’’ फ़ैयाज़ भन्ना कर खड़ा हो गया। कुछ पल इमरान को घूरता रहा फिर कमरे से बाहर निकल गया।
इमरान के होंटों पर शरारती मुस्कुराहट थी।

थोड़ी देर बाद रूशी और लेडी तनवीर बाहर आ गयीं।

रूशी उससे कह रही थी, ‘‘आप इत्मीनान रखिए। आपको पल-पल की ख़बर दी जाती रहेगी। और यहाँ सारी बातें राज़ में रहेंगी।’’

‘‘शुक्रिया!’’ लेडी तनवीर ने कहा और बाहर चली गयी।

रूशी कुछ पल खड़ी मुस्कुराती रही। फिर उसने पाँच-पाँच सौ के बीस नोट ब्लाउज़ के अन्दर से निकाल कर इमरान के आगे डाल दिये।

‘‘वाह....वाह....’’ इमरान ने उल्लुओं की तरह आँखें फाड़ दीं।

‘‘मैं हमेशा पक्का सौदा करती हूँ।’’ रूशी अकड़ कर बोली।

‘‘यानी....बैठो....बैठो....क्या पियोगी।’’

‘‘यह कौन था, जो अभी आया था....?’’ रूशी ने बैठते हुए पूछा।

‘‘फ़िक्र न करो। ऐसे दर्जनों आते-जाते रहेंगे....हाँ, वह क्या चाहती है।’’

‘‘तुम क्या समझते हो....क्या वह अपने शौहर से तलाक़ चाहती होगी....!’’

‘‘मैं तो यह भी समझ सकता हूँ कि....ख़ैर....तुम अपनी बात बताओ।’’

‘‘वह एक आदमी के बारे में पता करना चाहती है....दस हज़ार एडवांस दिये हैं और बाक़ी चालीस हज़ार पूरी जानकारी हासिल कर लेने के बाद!’’

‘‘आ हा....पचास हज़ार....रूशी! तुमने गलती की.... मुझसे सलाह लिये बग़ैर तुम्हें रुपये हरगिज़ नहीं लेने चाहिएँ थे....क्या तुमने उसे रसीद दी है।’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं! उसने रसीद माँगी ही नहीं।’’

‘‘मुझे पूरी बात बताओ, रूशी।

‘‘मेरा ख़याल है कि मामला बिलकुल सीधा-साधा है....’’ रूशी अक़्लमन्दी दिखाते हुए बोली। ‘‘वह इसी शहर के एक आदमी के बारे में मालूम करना चाहती है....और....वह इस जानकारी को तलाक़ के लिए इस्तेमाल नहीं करेगी।’’

‘‘वह आदमी कौन है....?’’

‘‘मैंने सब लिख लिया है!’’ उसने काग़ज़ का एक टुकड़ा इमरान की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा।

इमरान ने काग़ज़ ले कर उस पर नज़रें जमा दीं।

‘‘हूँ,’’ थोड़ी देर बाद उसने लम्बी अँगड़ाई ली....और आँखें बन्द करके इस तरह आगे की तरफ़ हाथ बढ़ाया जैसे फ़ोन का रिसीवर उठाने का इरादा हो। लेकिन फिर चौंक कर रूशी की तरफ़ देखने लगा।

‘‘फ़ोन तो लेना ही पड़ेगा। उसके बग़ैर काम नहीं चल सकता।’’

‘‘फ़ोन गया जहन्नुम में....मैं यहाँ अकेले सोती हूँ, मुझे डर लगता है तुम रात को कहाँ रहते हो? पहले इसका जवाब दो।’’

‘‘रूशी! यह मत पूछो....हम सिर्फ़ पार्टनर हैं। हाँ....’’ इमरान ने दस नोट अलग किये और उन्हें रूशी की तरफ़ खिसकाता हुआ बोला। ‘‘अपना हिस्सा रखो....! हो सकता है कि बाक़ी चालीस हज़ार मिलने की नौबत ही न आये!’’

‘‘क्यों....?’’

‘‘तुमने मुझसे मशविरा किये बग़ैर केस ले लिया। ख़ैर....अभी नयी हो! फिर देखेंगे।’’

‘‘क्यों केस में क्या ख़राबी है।’’

‘‘वह उसके बारे में जानकारी क्यों लेना चाहती है।’’

‘‘यह उसने नहीं बताया।’’

‘‘कच्चा काम है पार्टनर!’’ इमरान सिर हिला कर बोला। ‘‘ख़ैर, मैं देखूँगा।’’

‘‘क्या देखोगे?’’

‘‘यह एक....ख़ैर, हाँ देखो....यह औरत यहाँ की मशहूर शाख़्सियतो में से है....!’’

‘‘अच्छा!’’

‘‘हाँ, लेडी तनवीर....!’’

‘‘लेडी....!’’ रूशी ने हैरत से कहा।

‘‘हाँ लेडी! तुम्हें हैरत क्यों है?’’

‘‘उसने मुझे अपना नाम मिसेज़ रफ़अत बताया था।’’

‘‘यही मैं कह रहा था कि कुछ घपला ज़रूर है....ख़ैर....! वह अपनी असलियत भी छिपाना चाहती है और एक ऐसे आदमी के बारे में जानकारी हासिल करना चाहती है जो उसकी बिरादरी का नहीं हो सकता।’’
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
Pro Member
Posts: 3007
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: जहन्नुम की अप्सरा

Post by Masoom »

‘‘क्यों तुमने बिरादरी का अन्दाज़ा कैसे कर लिया?’’

‘‘उसका पता!’’ इमरान सिर हिला कर रह गया।

‘‘पूरी बात बताओ?’’ रूशी झुँझला गयी।

‘‘वह एक ऐसी बस्ती है, जहाँ आम तौर पर मज़दूर बसते हैं....और जो तुम यह नम्बर देख रही हो, यह किसी आलीशान इमारत का नम्बर नहीं है, बल्कि एक मामूली-सी कोठरी का नम्बर है जिसमें मुश्किल से एक बड़ा पलँग आ सकेगा।’’

‘‘ओह! तब तो....!’’

‘‘तुम मुझसे भी ज़्यादा बेवक़ूफ़ हो रूशी....मगर ख़ैर! परवाह न करो। तुम इस पेशे में बिलकुल नयी हो।’’

‘‘नहीं, इमरान डियर....अगर इसमें ख़तरा हो तो....हम उसके रूपये वापस कर दें।’’

‘‘घास खा गयी हो शायद! रुपये वापस करोगी। भूखी मरने का इरादा है क्या।’’

‘‘बैंक में मेरे पचास हज़ार रुपये हैं।’’ रूशी बोली।

‘‘उन्हें मेरे कफ़न-दफ़न के लिए पड़ा रहने दो।’’ इमरान ने ठण्डी साँस ली।

‘‘तुमने इस्तीफ़ा क्यों दिया, वाक़ई तुम उल्लू हो।’’

‘‘क्या तुम फिर अपनी पिछली ज़िन्दगी की तरफ़ लौट जाना चाहती हो।’’

‘‘हरगिज़ नहीं! यह ख़याल कैसे आया?’’ रूशी उसे घूरने लगी।

‘‘कुछ नहीं! अच्छा, मैं चला!’’ इमरान उठता हुआ बोला।

‘‘कहाँ चले?’’

‘‘उसके लिए जानकारी हासिल करूँगा, और हाँ अगर यहाँ कोई पुलिस वाला आ कर हमारी फ़र्म के बारे में पूछ-ताछ करे तो उसे मेरा कार्ड दे कर कहना कि फ़र्म का डायरेक्टर यही है। मुझे उम्मीद है कि वह चुपचाप वापस चला जायेगा।’’
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Post Reply