नज़मा का कामुक सफर
नज़मा एक 20 साल की चेन्नई में रहने वाली लड़की है | उसकी लम्बाई 5'6 " सुंदर गोरी त्वचा और दुबली पतली दिखाई देती है, कुछ-२ आलिआ भट्ट की तरह | उसके बोबे ना ज्यादा बड़े ना ज़्यादा छोटे, 34B साइज के हैं। उसकी गांड बहुत की गोल मटोल और शानदार है। देखने में एक दम माल लगती है | स्वभाव से बहुत ही शर्मीली और मासूम है। वह अपने परिवार के साथ रहती है। उसके परिवार में उसको छोड़ कर, उसके पापा, माँ और भाई है |
उसके पापा, शहजाद, एक निजी फर्म में एक अकाउंट मैनेजर हैं ।
उसकी माँ, परवीन, कपड़ों और मेकअप के सामन की शॉप चलाती हैं | उसकी माँ अपने व्यस्त जीवन शैली की कारन बहुत ही फिट है | बोबों और गांड को छोड़ के उसकी माँ का बदन भी पतला है | उसके बोबों का साइज 36C है और गांड बहुत ही बड़ी और जानमारु है | उसकी माँ इस उम्र में भी इतनी सेक्सी और फिट है की वो नज़मा की माँ की तुलना में नाज़मा की बहन ज़्यादा दिखती है ।
नज़मा का भाई, इरफ़ान, 18 साल का है और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है | क्योंकि भाई-बहन एक ही उम्र के हैं इसलिए दोनों मैं झगड़ा भी बहुत होता है और प्यार भी बहुत है | दोनों की एक दूसरे को परेशान करने की तरकीबें बनाते रहते हैं ।
नाज़मा का परिवार एक रूढ़िवादी परिवार है | वह जब भी बाहर जाती है बुर्का पहनती है । इसलिए घरवालों और रिश्तेदारों को छोड़ कर बहुत कम लोग ही उसे पहचानते हैं | नज़मा एक बहुत ही शर्मीली, मासूम और शरीफ लड़की है लेकिन उसका एक और छुपा हुआ व्यक्तित्व भी है | उससे लोगों को नंगे देखना या सेक्स करते हुए देखना बहुत पसंद है | वो ये भी चाहती है की कोई उसके बदन को देखे, नंगा देखे लेकिन अचानक से | जैसे की गलती से देख लिया हो, वो नहीं चाहती थी लेकिन परिस्थिति ऐसी बन जाये | ऐसा सोच कर ही वो बुरी तरह से उत्तेजित हो जाती | इनकी सब कल्पनाओं के बारे में सोचकर वो ना जाने कब से ऊँगली करती थी और अपनी गर्मी निकलती थी ।
नज़मा को नहीं पता था की वास्तविक रूप में सेक्स कैसा होता है, उसकी फीलिंग क्या होती है | उसकी सील अभी तक नहीं टूटी थी | सील क्या उसने अपनी ज़िन्दगी में अभी तक किसी के साथ सेक्स के बारे में बात तक नहीं की थी |
धीरे-२ रोज़ कल्पना करते हुए मुठ मारने से वो उकता गयी थी | वो असल में कुछ करना चाहती थी लेकिन उसे अपनी कल्पनों को, अपने सपनो को साकार करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था | अब वो अपनी एक-दो फैंटसी को वास्तविकता में लाने का प्रयत्न करना चाहती थी | अब उससे लगने लगा था की एक बेजोड़ प्लान बनाया जाये और हिम्मत करके कुछ असल ज़िन्दगी में कोशिश की जाये, नहीं तो वो अपनी कल्पनों के भंवर में पागल हो जाएगी |
उसकी एक बहुत पुरानी फैंटसी थी, बुर्का के नीचे बिलकुल नंगे ही बाज़ार जाना | ऐसा सोचते ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे | बुर्का ज्यादातर चूड़ीदार, सलवार-कमीज, साडी या फिर कभी-२ नाइटी के ऊपर भी पहना जाता है, और उसके नीचे अंडरवियर तो होते ही हैं | बुर्का ज्यादातर पतले कपडे का बना होता है, इसलिए उसमें से निप्पल की शेप दिखने का भी खतरा हो सकता है | इसलिए नज़मा ने काले रंग के बुर्के को चुना | वो बहुत डर रही थी लेकिन अब उसने ठान ली थी की ये फैंटसी तो पूरी करनी ही है | उसने पूरी योजना बना ली थी | वो नहीं चाहती थी की घर के किसी भी व्यक्ति को इसके बारे में भनक भी लगे, नहीं तो उसकी फैंटसी तो क्या पूरी होती, उसकी ज़िन्दगी ही नरक बन जाती | उसने अपने प्लान के लिए शनिवार का दिन चुना । उसके पापा शनिवार को भी ऑफिस जाते थे, माँ की दुकान पर शनिवार को थोड़ा ज़्यादा भीड़ रहती थी और भाई अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने सुबह ही निकल जाता था।
शनिवार को सब लोगों के जाने के बाद वो अपने कमरे में जाके सारे कपडे उतार के पूरी नंगी शीशे के सामने खड़ी हो गयी | उससे साफ़-सफाई बहुत पसंद थी | उसकी मुनिया बिलकुल सफाचट थी | वो आईने में अपने नग्न शरीर को निहारने लगी । जब भी वह कपड़े बदलती तो शीशे में अपने बदन को ज़रूर निहारती थी | उसने सोचा कि अगर वह इस तरह पूरी नंगी ही बाहर जाती है तो कैसा होगा । जैसे ही ये विचार उसके दिमाग में आया, उसकी मुनिया ने पानी बरसाना शुरू कर दिया | वो फिर से अपनी सपनो की दुनिया में पहुँच गयी |
लेकिन अब ये सपने देखने का समय नहीं था, अब तो सच में कुछ करना था | सपने देखना और सच करना दोनो अलग-अलग बातें है | उसके पेट में गुड़गुड़ होने लगी | एक बार तो सोचा की रहने दे लेकिन कभी तो करना है की | इसलिए उसने अपने प्लान पे आगे बढ़ने का फैसला किया |
उसने अपने मादरजात नंगे शरीर पर बुर्का पहना | ऐसे करने से ही वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गयी | उसके उभरे हुए निप्पल बुर्के के ऊपर से बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे लेकिन उसने अपने मन को समझाया की कोई इतनी पास से और इतने ध्यान से थोड़ा ना देखेगा | उसने दुपट्टे से अपना सिर ढक लिया और थोड़ा सा बोबों को छुपाने के असफल प्रयास भी किया ।
उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और बाहर निकल गई ताकि कहीं उसके बुज़दिल विचार उससे कमज़ोर ना कर दें | जाने से पहले उसकी माँ ने उसे बाज़ार से कुछ सामान लाने के लिया कहा था | उसे पास की मंडी से सब्जी खरीदनी थी | इस मंडी में बहुत भीड़ रहती थी | वो गंदे गरीब लोग, एक-२ रुपए पे मोलभाव, गन्दगी, पसीने की बदबू, ये मंडी भी हमारे देश की बाकि सब्ज़ी मंडियों की तरह ही है |
नज़मा शर्मीली ज़रूर है लेकिन उसकी माँ ने उसे मोलभाव करना अच्छे से सिखाया है । हमारे देश में औरतें इस काम में बहुत कुशल होती हैं | वह तेज़-२ क़दमों से बाजार जाने लगी । उसके बोबे बहुत बड़े नहीं थे और बिलकुल सख्त भी थे इसलिए बिना ब्रा के भी बहुत ज़्यादा फुदकते हुए नहीं दिखाई दे रहे थे ।
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नज़मा अपनी पोशाक को लेकर बहुत टेंशन में थी | बाज़ार में बहुत भीड़ थी | जब भी कोई उसकी तरफ देखता है तो वह एकदम से सजग हो जाती थी | कहीं से कुछ दिख तो नहीं रहा, क्या इसे पता तो नहीं चल गया की मैं बुर्के के नीचे पूरी नंगी हूँ | बुर्के के नीचे से अगर थोड़ा सा पैर भी नंगा दिखाई दे जाता तो किसी को भी शक हो सकता था, क्योंकि बुर्के के नीचे ज्यादातर ऐसे कपडे पहने जाते हैं जो की टखने तक आते हैं |
वह बाजार पहुंची | सब्ज़ियां खरीदने से पहले उसने एक लम्बी सांस ली और अपने आप को रिलैक्स करने की कोशिश करने लगी |
उसने सोचा: अगर वो दुकानदार के सामने जाएगी तो दुकानदार को एक जवान लड़की ही तो दिखाई देगी | दुकानदार को थोड़ा ना पता होगा की वो लड़की बुर्के के नीचे नंगी है |
उसने अपने सीने से दुपट्टा हटा दिया | उसके निप्पल भी अब उतने नहीं दिखाई दे रहे थे | उसका मन अब पहले से अपेक्षा शांत हो चूका था | उसके बोबे उतने फुदकते हुए भी नहीं दिखाई दे रहे थे | अगर वो तेज़ चलती या फिर सब्ज़ी खरीदते हुए ज़्यादा हिलती तो थोड़ा बहुत मह्सूस होता की उसने ब्रा नहीं पहनी है लेकिन वो भी बहुत ध्यान से देखने वाले को |
पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद वो एक दुकान पर रुक गयी | दुकानदार का नाम असलम था | वो तकरीबन 60 साल की उम्र का बूढ़ा सा आदमी था | उसका मुंह पान से भरा हुआ था | उसने धोती और ऊपर सिर्फ एक फटी पुरानी बनियान पहनी हुई थी |
नज़मा पहले से कहीं ज़्यादा कण्ट्रोल में थी लेकिन फिर भी वो पूरी तरह से रिलैक्स नहीं थी | उसने जल्दी-२ सब्ज़ी लेनी शुरू की | वो कोई उतना मोलभाव भी नहीं कर रही थी | शातिर दुकानदार की नज़र से ये बात चुप नहीं पायी | असलम समझ गया की कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है | अब क्या गड़बड़ है, ये असलम को अभी तक पता नहीं चला था |
"क्या हुआ बेटी? सब ठीक तो है, थोड़ा घबराई सी लग रही हो | कोई तुम्हे तंग तो नहीं कर रहा ना?" असलम ने टेढ़ी मुस्कान के साथ पुछा |
नज़मा: नहीं, कुछ नहीं | सब ठीक है |
नज़मा को लगा की शायद दुकानदार को उसकी हालत के बारे में पता चल गया है | वो वहां से भाग जाना चाहती थी | लेकिन अगर ऐसे अचानक से चली जाती तो दुकानदार का शक यकीन में बदल जाता | यही सोच कर वो चुपचाप सब्ज़ी खरीदने में ध्यान लगाने लगी |
असलम: और बेटी, अब्बा कैसे हैं तुम्हारे? शहज़ाद मियां दिखाई ही नहीं देते आजकल?
नज़मा की गांड ही फट गयी | ये मादरचोद तो जानकार निकला | अब्बा को भी जानता है | अब क्या होगा ?
नज़मा (घबराते हुए): जी ... जी ... अब्बा बहुत अच्छे हैं .... वो गर्मी से बड़ी बेचैनी हो रही है ... इसलिए थोड़ा जल्दी में हूँ ... आप प्लीज जल्दी से सब्ज़ी दे दें ....
असलम (गन्दी सी हंसी के साथ): हाँ, हाँ | क्यों नहीं | हमारा तो काम ही है, आपको देना .... ये लम्बे बैगन ले जाइये ... बहुत शानदार लगेंगे आपको
नज़मा उस दुकानदार की दोअर्थी बातें समझ रही थी लेकिन उसने दुकानदार से उलझना अच्छा नहीं समझा | वो बस उसकी दुकान से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहती थी | नज़मा ने चुपचाप सब्ज़ी ली और फटाक से निकल ली |
असलम जाती हुई नज़मा की गांड को बड़े गौर से घूरता है और बगल में पीक की पिचकारी मारता है |
असलम (मन में): क्या गांड है बहन की लोड़ी की | खूब जवानी चढ़ गयी है | कुछ तो चक्कर है साली का | अगली बार देखता हूँ कुतिया को
नज़मा थोड़ा आगे निकल कर चैन की सांस लेती है |
नज़मा (मन में): कमीना, पहचान गया था मुझे | अच्छा हुआ मुझे ही पहचाना, मेरे कारनामो को नहीं ...
खरीदारी पूरी करने के बाद नज़मा पैदल ही घर की तरफ चल दी | घर जाने से पहले उसे कुछ सब्जियाँ अपने पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग अंकल-आंटी को देनी थी | उनके पडोसी बहुत समय से वहां रह रहे थे | वो बहुत बूढ़े थे और उनके घर नज़मा के परिवार का काफी आना जाना था | वो लोग इस बुढ़ापे में ज़्यादा बाहर नहीं निकल पाते थे इसलिए नज़मा का परिवार उनकी दैनिक चीज़ों में मदद कर देता था | नज़मा ने उनके घर पहुँच कर डोर बेल बजाई। आंटी ने दरवाज़ा खोला |
नज़मा: हेलो आंटी ... मैं आपके लिए सब्ज़ियां ले आयी
आंटी: अरे नज़मा बेटी, आओ, आओ ... हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे | तुम ये सब्ज़ियां फ्रिज में रख दो | फिर आराम से बातें करते हैं ...
नज़मा ने सब्ज़ियां फ्रीज में रख दी और ड्राइंग रूम में अंकल-आंटी के सामने रखे सोफे पे बैठ गयी |
आंटी: थैंक्स बेटा | तू कितना ख्याल रखती है हम दोनों बूढ़ा-बूढी का |
नज़मा: अरे थैंक्स की क्या बात है आंटी | वो तो मुझे वैसे भी घर ले लिए सब्ज़ी लानी ही थी तो आपके लिए भी ले आयी |
आंटी: कितनी गर्मी है | देख तो कितना पसीना आ रहा है तुझे बेटा | ये मुआ बुरका क्यों पहन रखा है ? कम से कम घर में तो निकाल दे इससे |
एक पल को तो नज़मा को लगा की बात बिलकुल ठीक है, बुरका निकाल देती हूँ | फिर उससे याद आया की आंटी-अंकल से बातों में वो भूल ही गयी की वो तो बुर्के के अंदर नंगी है | अब बुरका उतार के अंकल को हार्ट अटैक थोड़ा ना देना था |
नज़मा: नहीं आंटी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ | अच्छा मैं चलती हूँ, घर पे भी काम है |
आंटी: अरे रुक तो, मैं तेरे लिए कुछ ठंडा पीने के लिए लेके आती हूँ |
नज़मा: नहीं आंटी, आप क्यों तकलीफ कर रहे हैं | ठंडा फिर कभी, अभी तो मैं चलती हूँ |
आंटी नज़मा के साथ कुछ टाइम और पास करना चाहती थी | आंटी ने उससे रोको भी लेकिन फिर भी नज़मा वहां से निकल आयी |
वह अपने घर पहुँच गयी गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । जैसा कि वो बाहर से आने के बाद हर बार करती है, वैसे ही उसने घर पहुँचते ही अपना बुर्का उतर कर दरवाजे के पास बने स्टैंड पे लटका दिया । फिर उसने एक लम्बी रिलैक्स मूड में सांस ली |
फिर से अपनी मुट्ठी को हवा में लहराया और ख़ुशी से चीख पड़ी: "यस, यस, ... I have done it .... कर लिया मैंने .... कर ली अपनी एक फैंटसी पूरी .... शाबास नज़मा" | ये कहते हुए उसने अपनी खुद ही पीठ थपथपाई | वो पूरी नंगी ही लिविंग रूम में कूद रही थी | अच्छा है की जाने से पहले वो सारी खिड़कियाँ बंद करके गयी थी |
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