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Erotica नज़मा का कामुक सफर

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Masoom
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Erotica नज़मा का कामुक सफर

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नज़मा का कामुक सफर

नज़मा एक 20 साल की चेन्नई में रहने वाली लड़की है | उसकी लम्बाई 5'6 " सुंदर गोरी त्वचा और दुबली पतली दिखाई देती है, कुछ-२ आलिआ भट्ट की तरह | उसके बोबे ना ज्यादा बड़े ना ज़्यादा छोटे, 34B साइज के हैं। उसकी गांड बहुत की गोल मटोल और शानदार है। देखने में एक दम माल लगती है | स्वभाव से बहुत ही शर्मीली और मासूम है। वह अपने परिवार के साथ रहती है। उसके परिवार में उसको छोड़ कर, उसके पापा, माँ और भाई है |

उसके पापा, शहजाद, एक निजी फर्म में एक अकाउंट मैनेजर हैं ।

उसकी माँ, परवीन, कपड़ों और मेकअप के सामन की शॉप चलाती हैं | उसकी माँ अपने व्यस्त जीवन शैली की कारन बहुत ही फिट है | बोबों और गांड को छोड़ के उसकी माँ का बदन भी पतला है | उसके बोबों का साइज 36C है और गांड बहुत ही बड़ी और जानमारु है | उसकी माँ इस उम्र में भी इतनी सेक्सी और फिट है की वो नज़मा की माँ की तुलना में नाज़मा की बहन ज़्यादा दिखती है ।

नज़मा का भाई, इरफ़ान, 18 साल का है और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है | क्योंकि भाई-बहन एक ही उम्र के हैं इसलिए दोनों मैं झगड़ा भी बहुत होता है और प्यार भी बहुत है | दोनों की एक दूसरे को परेशान करने की तरकीबें बनाते रहते हैं ।

नाज़मा का परिवार एक रूढ़िवादी परिवार है | वह जब भी बाहर जाती है बुर्का पहनती है । इसलिए घरवालों और रिश्तेदारों को छोड़ कर बहुत कम लोग ही उसे पहचानते हैं | नज़मा एक बहुत ही शर्मीली, मासूम और शरीफ लड़की है लेकिन उसका एक और छुपा हुआ व्यक्तित्व भी है | उससे लोगों को नंगे देखना या सेक्स करते हुए देखना बहुत पसंद है | वो ये भी चाहती है की कोई उसके बदन को देखे, नंगा देखे लेकिन अचानक से | जैसे की गलती से देख लिया हो, वो नहीं चाहती थी लेकिन परिस्थिति ऐसी बन जाये | ऐसा सोच कर ही वो बुरी तरह से उत्तेजित हो जाती | इनकी सब कल्पनाओं के बारे में सोचकर वो ना जाने कब से ऊँगली करती थी और अपनी गर्मी निकलती थी ।

नज़मा को नहीं पता था की वास्तविक रूप में सेक्स कैसा होता है, उसकी फीलिंग क्या होती है | उसकी सील अभी तक नहीं टूटी थी | सील क्या उसने अपनी ज़िन्दगी में अभी तक किसी के साथ सेक्स के बारे में बात तक नहीं की थी |

धीरे-२ रोज़ कल्पना करते हुए मुठ मारने से वो उकता गयी थी | वो असल में कुछ करना चाहती थी लेकिन उसे अपनी कल्पनों को, अपने सपनो को साकार करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था | अब वो अपनी एक-दो फैंटसी को वास्तविकता में लाने का प्रयत्न करना चाहती थी | अब उससे लगने लगा था की एक बेजोड़ प्लान बनाया जाये और हिम्मत करके कुछ असल ज़िन्दगी में कोशिश की जाये, नहीं तो वो अपनी कल्पनों के भंवर में पागल हो जाएगी |

उसकी एक बहुत पुरानी फैंटसी थी, बुर्का के नीचे बिलकुल नंगे ही बाज़ार जाना | ऐसा सोचते ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे | बुर्का ज्यादातर चूड़ीदार, सलवार-कमीज, साडी या फिर कभी-२ नाइटी के ऊपर भी पहना जाता है, और उसके नीचे अंडरवियर तो होते ही हैं | बुर्का ज्यादातर पतले कपडे का बना होता है, इसलिए उसमें से निप्पल की शेप दिखने का भी खतरा हो सकता है | इसलिए नज़मा ने काले रंग के बुर्के को चुना | वो बहुत डर रही थी लेकिन अब उसने ठान ली थी की ये फैंटसी तो पूरी करनी ही है | उसने पूरी योजना बना ली थी | वो नहीं चाहती थी की घर के किसी भी व्यक्ति को इसके बारे में भनक भी लगे, नहीं तो उसकी फैंटसी तो क्या पूरी होती, उसकी ज़िन्दगी ही नरक बन जाती | उसने अपने प्लान के लिए शनिवार का दिन चुना । उसके पापा शनिवार को भी ऑफिस जाते थे, माँ की दुकान पर शनिवार को थोड़ा ज़्यादा भीड़ रहती थी और भाई अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने सुबह ही निकल जाता था।

शनिवार को सब लोगों के जाने के बाद वो अपने कमरे में जाके सारे कपडे उतार के पूरी नंगी शीशे के सामने खड़ी हो गयी | उससे साफ़-सफाई बहुत पसंद थी | उसकी मुनिया बिलकुल सफाचट थी | वो आईने में अपने नग्न शरीर को निहारने लगी । जब भी वह कपड़े बदलती तो शीशे में अपने बदन को ज़रूर निहारती थी | उसने सोचा कि अगर वह इस तरह पूरी नंगी ही बाहर जाती है तो कैसा होगा । जैसे ही ये विचार उसके दिमाग में आया, उसकी मुनिया ने पानी बरसाना शुरू कर दिया | वो फिर से अपनी सपनो की दुनिया में पहुँच गयी |

लेकिन अब ये सपने देखने का समय नहीं था, अब तो सच में कुछ करना था | सपने देखना और सच करना दोनो अलग-अलग बातें है | उसके पेट में गुड़गुड़ होने लगी | एक बार तो सोचा की रहने दे लेकिन कभी तो करना है की | इसलिए उसने अपने प्लान पे आगे बढ़ने का फैसला किया |

उसने अपने मादरजात नंगे शरीर पर बुर्का पहना | ऐसे करने से ही वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गयी | उसके उभरे हुए निप्पल बुर्के के ऊपर से बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे लेकिन उसने अपने मन को समझाया की कोई इतनी पास से और इतने ध्यान से थोड़ा ना देखेगा | उसने दुपट्टे से अपना सिर ढक लिया और थोड़ा सा बोबों को छुपाने के असफल प्रयास भी किया ।

उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और बाहर निकल गई ताकि कहीं उसके बुज़दिल विचार उससे कमज़ोर ना कर दें | जाने से पहले उसकी माँ ने उसे बाज़ार से कुछ सामान लाने के लिया कहा था | उसे पास की मंडी से सब्जी खरीदनी थी | इस मंडी में बहुत भीड़ रहती थी | वो गंदे गरीब लोग, एक-२ रुपए पे मोलभाव, गन्दगी, पसीने की बदबू, ये मंडी भी हमारे देश की बाकि सब्ज़ी मंडियों की तरह ही है |

नज़मा शर्मीली ज़रूर है लेकिन उसकी माँ ने उसे मोलभाव करना अच्छे से सिखाया है । हमारे देश में औरतें इस काम में बहुत कुशल होती हैं | वह तेज़-२ क़दमों से बाजार जाने लगी । उसके बोबे बहुत बड़े नहीं थे और बिलकुल सख्त भी थे इसलिए बिना ब्रा के भी बहुत ज़्यादा फुदकते हुए नहीं दिखाई दे रहे थे ।


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नज़मा अपनी पोशाक को लेकर बहुत टेंशन में थी | बाज़ार में बहुत भीड़ थी | जब भी कोई उसकी तरफ देखता है तो वह एकदम से सजग हो जाती थी | कहीं से कुछ दिख तो नहीं रहा, क्या इसे पता तो नहीं चल गया की मैं बुर्के के नीचे पूरी नंगी हूँ | बुर्के के नीचे से अगर थोड़ा सा पैर भी नंगा दिखाई दे जाता तो किसी को भी शक हो सकता था, क्योंकि बुर्के के नीचे ज्यादातर ऐसे कपडे पहने जाते हैं जो की टखने तक आते हैं |

वह बाजार पहुंची | सब्ज़ियां खरीदने से पहले उसने एक लम्बी सांस ली और अपने आप को रिलैक्स करने की कोशिश करने लगी |

उसने सोचा: अगर वो दुकानदार के सामने जाएगी तो दुकानदार को एक जवान लड़की ही तो दिखाई देगी | दुकानदार को थोड़ा ना पता होगा की वो लड़की बुर्के के नीचे नंगी है |

उसने अपने सीने से दुपट्टा हटा दिया | उसके निप्पल भी अब उतने नहीं दिखाई दे रहे थे | उसका मन अब पहले से अपेक्षा शांत हो चूका था | उसके बोबे उतने फुदकते हुए भी नहीं दिखाई दे रहे थे | अगर वो तेज़ चलती या फिर सब्ज़ी खरीदते हुए ज़्यादा हिलती तो थोड़ा बहुत मह्सूस होता की उसने ब्रा नहीं पहनी है लेकिन वो भी बहुत ध्यान से देखने वाले को |

पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद वो एक दुकान पर रुक गयी | दुकानदार का नाम असलम था | वो तकरीबन 60 साल की उम्र का बूढ़ा सा आदमी था | उसका मुंह पान से भरा हुआ था | उसने धोती और ऊपर सिर्फ एक फटी पुरानी बनियान पहनी हुई थी |

नज़मा पहले से कहीं ज़्यादा कण्ट्रोल में थी लेकिन फिर भी वो पूरी तरह से रिलैक्स नहीं थी | उसने जल्दी-२ सब्ज़ी लेनी शुरू की | वो कोई उतना मोलभाव भी नहीं कर रही थी | शातिर दुकानदार की नज़र से ये बात चुप नहीं पायी | असलम समझ गया की कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है | अब क्या गड़बड़ है, ये असलम को अभी तक पता नहीं चला था |

"क्या हुआ बेटी? सब ठीक तो है, थोड़ा घबराई सी लग रही हो | कोई तुम्हे तंग तो नहीं कर रहा ना?" असलम ने टेढ़ी मुस्कान के साथ पुछा |

नज़मा: नहीं, कुछ नहीं | सब ठीक है |

नज़मा को लगा की शायद दुकानदार को उसकी हालत के बारे में पता चल गया है | वो वहां से भाग जाना चाहती थी | लेकिन अगर ऐसे अचानक से चली जाती तो दुकानदार का शक यकीन में बदल जाता | यही सोच कर वो चुपचाप सब्ज़ी खरीदने में ध्यान लगाने लगी |

असलम: और बेटी, अब्बा कैसे हैं तुम्हारे? शहज़ाद मियां दिखाई ही नहीं देते आजकल?

नज़मा की गांड ही फट गयी | ये मादरचोद तो जानकार निकला | अब्बा को भी जानता है | अब क्या होगा ?

नज़मा (घबराते हुए): जी ... जी ... अब्बा बहुत अच्छे हैं .... वो गर्मी से बड़ी बेचैनी हो रही है ... इसलिए थोड़ा जल्दी में हूँ ... आप प्लीज जल्दी से सब्ज़ी दे दें ....

असलम (गन्दी सी हंसी के साथ): हाँ, हाँ | क्यों नहीं | हमारा तो काम ही है, आपको देना .... ये लम्बे बैगन ले जाइये ... बहुत शानदार लगेंगे आपको

नज़मा उस दुकानदार की दोअर्थी बातें समझ रही थी लेकिन उसने दुकानदार से उलझना अच्छा नहीं समझा | वो बस उसकी दुकान से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहती थी | नज़मा ने चुपचाप सब्ज़ी ली और फटाक से निकल ली |

असलम जाती हुई नज़मा की गांड को बड़े गौर से घूरता है और बगल में पीक की पिचकारी मारता है |

असलम (मन में): क्या गांड है बहन की लोड़ी की | खूब जवानी चढ़ गयी है | कुछ तो चक्कर है साली का | अगली बार देखता हूँ कुतिया को

नज़मा थोड़ा आगे निकल कर चैन की सांस लेती है |

नज़मा (मन में): कमीना, पहचान गया था मुझे | अच्छा हुआ मुझे ही पहचाना, मेरे कारनामो को नहीं ...

खरीदारी पूरी करने के बाद नज़मा पैदल ही घर की तरफ चल दी | घर जाने से पहले उसे कुछ सब्जियाँ अपने पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग अंकल-आंटी को देनी थी | उनके पडोसी बहुत समय से वहां रह रहे थे | वो बहुत बूढ़े थे और उनके घर नज़मा के परिवार का काफी आना जाना था | वो लोग इस बुढ़ापे में ज़्यादा बाहर नहीं निकल पाते थे इसलिए नज़मा का परिवार उनकी दैनिक चीज़ों में मदद कर देता था | नज़मा ने उनके घर पहुँच कर डोर बेल बजाई। आंटी ने दरवाज़ा खोला |

नज़मा: हेलो आंटी ... मैं आपके लिए सब्ज़ियां ले आयी

आंटी: अरे नज़मा बेटी, आओ, आओ ... हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे | तुम ये सब्ज़ियां फ्रिज में रख दो | फिर आराम से बातें करते हैं ...

नज़मा ने सब्ज़ियां फ्रीज में रख दी और ड्राइंग रूम में अंकल-आंटी के सामने रखे सोफे पे बैठ गयी |

आंटी: थैंक्स बेटा | तू कितना ख्याल रखती है हम दोनों बूढ़ा-बूढी का |

नज़मा: अरे थैंक्स की क्या बात है आंटी | वो तो मुझे वैसे भी घर ले लिए सब्ज़ी लानी ही थी तो आपके लिए भी ले आयी |

आंटी: कितनी गर्मी है | देख तो कितना पसीना आ रहा है तुझे बेटा | ये मुआ बुरका क्यों पहन रखा है ? कम से कम घर में तो निकाल दे इससे |

एक पल को तो नज़मा को लगा की बात बिलकुल ठीक है, बुरका निकाल देती हूँ | फिर उससे याद आया की आंटी-अंकल से बातों में वो भूल ही गयी की वो तो बुर्के के अंदर नंगी है | अब बुरका उतार के अंकल को हार्ट अटैक थोड़ा ना देना था |

नज़मा: नहीं आंटी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ | अच्छा मैं चलती हूँ, घर पे भी काम है |

आंटी: अरे रुक तो, मैं तेरे लिए कुछ ठंडा पीने के लिए लेके आती हूँ |

नज़मा: नहीं आंटी, आप क्यों तकलीफ कर रहे हैं | ठंडा फिर कभी, अभी तो मैं चलती हूँ |

आंटी नज़मा के साथ कुछ टाइम और पास करना चाहती थी | आंटी ने उससे रोको भी लेकिन फिर भी नज़मा वहां से निकल आयी |

वह अपने घर पहुँच गयी गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । जैसा कि वो बाहर से आने के बाद हर बार करती है, वैसे ही उसने घर पहुँचते ही अपना बुर्का उतर कर दरवाजे के पास बने स्टैंड पे लटका दिया । फिर उसने एक लम्बी रिलैक्स मूड में सांस ली |

फिर से अपनी मुट्ठी को हवा में लहराया और ख़ुशी से चीख पड़ी: "यस, यस, ... I have done it .... कर लिया मैंने .... कर ली अपनी एक फैंटसी पूरी .... शाबास नज़मा" | ये कहते हुए उसने अपनी खुद ही पीठ थपथपाई | वो पूरी नंगी ही लिविंग रूम में कूद रही थी | अच्छा है की जाने से पहले वो सारी खिड़कियाँ बंद करके गयी थी |
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Re: नज़मा का कामुक सफर

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उसे नंगे रहने में बहुत मज़ा आ रहा था | पूरे दिन ढकी रहने वाली नज़मा, ऐसी नज़मा जिस के बदन के ना जाने कितने अंगों ने कब से रौशनी नहीं देखी होगी, वो नज़मा दिन-दिहाड़े पूरी मादरजात नंगी ड्राइंग रूम में बेधड़क घूम रही थी | उसे ऐसा करते हुए कोई देख नहीं रहा था लेकिन उसे बहुत अच्छा लग रहा था | दोपहर के खाने से पहले कोई नहीं आने वाला था | उसके पास अभी बहुत टाइम था, मस्ती करने के लिए, नंगे रहने के लिए |

उसे बर्तन धोने थे | उसने सोचा क्यों ना ये काम भी नंगे ही किया जाये | उसने नंगे ही सारे बर्तन धोये और सेल्फ में सजा दिए | बर्तन धोते-२ वो पूरी तरह से गीली हो गयी थी | उसने एक तौलिया लिया और ड्राइंग रूम में लगे सोफे पे बैठ कर खुद को सुखाने लगी ।

उसके दिमाग में सुबह से हुई सारी घटनाएं दौड़ने लगी | सब याद करते-२ उसके बदन में सिहरन दौड़ने लगी | बदन से छूता हुआ तौलिया भी उसे रोमांचित कर रहा था | उसने अपनी चूत को छू के देखा तो पता लगा की उसकी चूत का तो झरना बना हुआ है | अब उससे और रुका नहीं गया | उसने अपनी दो उँगलियाँ चूत में घुसाड़ दी और वहीँ सोफे पे मुठ मारना शुरू कर दिया | आज ये पहली बार था जब वो इतने खुले में मुठ मार रही थी | आज से पहले उसने केवल अपने कमरे मैं, लॉक करके, बिना आवाज़ के, लाइट बंद करके ही अपनी मुनिया को हाथ लगाया था |

वो इतनी ज़्यादा उत्तेजित थी की ऊँगली करने के 10 सेकण्ड्स में ही उसने झड़ना शुरू कर दिया | शायद ये उसकी ज़िन्दगी की सबसे शानदार मुठ थी | वो इतनी तेज़ और इतनी ज्यादा झड़ी की वो वहीँ सोफे पे निढाल हो के लेट गयी |

कुछ समय बाद जब उसने आँखें खोली तो उसे गलानि ने आ घेरा | वो सोचने लगी "मेरे माँ बाप मुझे कितना शरीफ समझते हैं | कितनी इज्जत है उनकी समाज में | अगर उन्हें पता चल गया की उनकी बेटी ये सब कारनामे करती है तो क्या बीतेगी उनपे | नहीं, मैं आज के बाद ऐसा कुछ नहीं करुँगी |"

ये सोच के वो तुरंत नहाने चली गयी | नहा के उसने कपड़े पहन लिए | उसके भाई के आने का टाइम भी हो चला था | अपने मूड को फ्रेश करने के लिए वो टीवी देखने लगी |

जब उसके माँ और भाई लौटे तो नज़मा उनसे आँखें मिलाने में झिझक रही थी| लेकिन उसके भाई और माँ का बर्ताव बिलकुल नार्मल था| ये देख के नज़मा भी धीरे-२ रिलैक्स होने लगी और उसका कॉन्फिडेंस भी वापिस आने लगा| कुछ समय के बाद वो सामान्य होने लगी| सभी ने साथ में दोपहर का खाना खाया और फिर सभी अपनी-२ सामान्य दिनचर्या में लग गए|

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दो दिन तक तो सब नार्मल रूटीन रहा लेकिन तीसरी रात को नज़मा जब सोने के लिए अपने बिस्तर पे लेटी तो उसके कामुक विचारों ने उसे फिर से उसे घेर लिया| उसे अब फिर से कोई रोमांच चाहिए था| उसने सोने के बहुत कोशिश की लेकिन वो बिल्कुल भी नहीं सो पा रही थी| उसे कुछ करना था, आज भी करना था, कल भी करना था, रोज़ करना था| कितना मज़ा आया था उस दिन सब्ज़ी लेने में| पहली बार उसे बर्तन धोना उसे अच्छा लगा था| नंगे होके घूमना, कुछ भी करना, कितना मज़ा आता है|

उसने अपने कपडे उतार दिए और नंगी हो गयी| नंगे होके अपने बिस्तर पर लेटने में उसे एक अलग सी मस्ती की लहर महसूस हो रही थी| आमतौर पर सुबह उसकी माँ उसे चद्दर खिंच कर जगाती थी इसलिए रात को नंगे सो जाना भी मुंकिन नहीं था| इसलिए नज़मा अभी सोना नहीं चाहती थी| उसे नंगे रहना बहुत अच्छा लग रहा था| वो बिस्तर से उठी और अपने कमरे में इधर-उधर नंगे ही घूमने लगी। उसने अपने कमरे में इधर-उधर कुछ-२ नार्मल काम करने शुरू कर दिए लेकिन ये सब नंगे करने में अलग ही आनंद मिल रहा था| अब उसने मन बना लिया की जब भी संभव हुआ वो नंगी ही रहा करेगी और नंगी ही सब काम करेगी|

कुछ देर में नज़मा थोड़ा बोर होने लगी| उसने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला और बाहर झाँका। बाहर अंधेरा और सन्नाटा फैला हुआ था| उसका बाहर जाने का मन किया| वो घर में नंगे घूमना चाहती थी, वो भी तब जब सब लोग घर में ही हों| लेकिन अगर कोई जाग गया तो क्या होगा। क्या होगा अगर उससे शोर हो गया या कोई अनजाने में आवाज़ हो गयी कोई अपने रूम से चेक करने के लिए आ गया| वो क्या जवाब देगी? ऐसे नंगे घर में घूमने का क्या बहाना बनाएगी? वो मन में कुछ देर बहस करती रही और आखिर में दिमाग पे चुत की जीत हुई| उसने रिस्क उठा के बाहर जाने का फैसला किया|

नज़मा बहुत ही सावधानी से बाहर आई। उसने चुपचाप धीरे-२, बिना शोर किये, अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया| वो नहीं चाहती थी की कोई अगर अपने रूम से बाहर आये तो उसे नज़मा के रूम का दरवाज़ा खुला देख के कोई शक हो| लेकिन दरवाज़ा बंद करने का ये भी मतलब था की अब वो किसी खतरे के समय पर तुरंत अपने कमरे में नहीं जा सकती थी। उसका कमरा सीधे लिविंग रूम में खुलता है। वह धीरे-२ बिना आवाज़ लिए बिल्ली की तरह चल रही थी| उसे विश्वास नहीं हो रहा था की वो नंगी अपने घर के लिविंग रूम में पहुँच गयी है जबकि उसके मम्मी, पापा और भाई अपने बेडरूम में सो रहे हैं। उसे उत्तेजना और बेचैनी के मारे अपनी चुत में गीलापन महसूस होने लगा|

बाहर अँधेरा घना नहीं था | सड़क से खिड़कियों के रस्ते आती रोशनी ने लिविंग रूम में पर्यापत उजाला कर रखा था| उसके घर के सभी बैडरूम के दरवाज़े लिविंग रूम में ही खुलते थे| इसलिए, अगर कोई उठ के बाहर आता तो उसे जन्मजात नंगी घूमती हुई, घर की इज्जत, शरीफ और लाड़ली बेटी दिख जाती|

वो कुछ देर तक घर में इधर-उधर टहलती रही| उसे घूमते हुए 15 मिनट से ज़्यादा हो गया थे| लेकिन अभी तक उसका मन नहीं भरा था| उसने प्लान किया की वो एक घंटे तक ऐसे ही नंगी घर में घूमेगी और उसके बाद अपने कमरे में जाएगी| उत्तेजना से उसका गला सूख गया था और उसे बहुत तेज प्यास लगी थी।

वह रसोई में गई और फ्रिज खोला| लेकिन ये क्या, जैसे ही उसने फ्रीज खोला उसका नंगा बदन फ्रीज की रौशनी में नहा गया| ऐसा लग रहा था जैसे वो नंगी स्पॉटलाइट में खड़ी हो| उसने घबरा के तुरंत फ्रीज बंद कर दिया| वो घबरा गयी थी| उसने एक लम्बी सांस लेके अपने आप को शांत किया और मन-२ अल्लाह को याद करते हुए फिर से फ्रीज को खोल लिया|

फ्रीज में एक ही पानी की बोतल भरी रखी थी| उसने बोतल से कुछ पानी पिया और कुछ पानी अपने ऊपर गिरा लिया| गर्मी बहुत हो रही थी| फ्रिज से आती ठंडी हवा उसे बहुत अच्छी लग रही थी| नज़मा वहीं ठण्ड का आनंद लेती हुई कुछ देर खड़ी रही| ठंड के कारण उसके निप्पल अब थोड़े-२ खड़े होने लगे थे| जो पानी उसने अपने शरीर पे डाला था वो पानी धीरे-धीरे रास्ता बनाते हुए उसकी चूत तक पहुँच गया और उसके नीचे वाले होंठों को और ज़्यादा गिला करने लगा|

कुछ देर बाद उसने फ्रिज बंद कर दिया और तफरी करते हुए आखिर में सोफे पर बैठ गई। उसका मन वहां मुठ मारने का हो रहा था| लेकिन उसे पता था की वो आज मुठ मारते हुए बिलकुल चुप नहीं रह पायेगी| कुछ न कुछ आवाज़ें तो उससे होंगी ही| इसलिए उसने मुठ मारने का प्लान अभी के लिए टाल दिया|

अचानक उसे दरवाजे के खुलने की आवाज आई। वो एक दम से अलर्ट हो गयी| नज़मा अभी अपने बेडरूम में नहीं जा सकती थी या कहा जाये तो वो इस समय पर नहीं जा सकती थी। उसने आव देखा न ताव और बस सोफे के पीछे कूद के वहां छिप गई। उसका भाई कमरे से बाहर आया था| उसके भाई ने लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी। हर जगह उजाला फ़ैल गया| उसका नंगा बदन रौशनी में नहा गया| अगर उसका भाई इस तरफ आ जाता तो उसके पास छिपने की कोई जगह नहीं थी|

"क्या घटिया प्लान था? माँ चुद गयी सारे प्लान की| आगे से बहुत ध्यान देके प्लान बनाना होगा|" नज़मा ने अपने मन में सोचा|

उसका भाई पानी पीने के लिए रसोई में गया। उसे पता था की उसके भाई को अच्छा-खासा टाइम लगने वाला है| फ्रीज में एक ही बोतल थी जो की नज़मा ने पूरी खाली कर दी थी| पहले तो नज़मा ने मज़े-२ में सारा पानी पी लिया था अब उसका पेशाब का तेज प्रेशर बन रहा था|

उनका घर काफी पुराने तरीके से बना हुआ था| घर में कोई अटैच्ड बाथरूम नहीं था क्योंकि उस ज़माने में इसे बहुत ही गन्दा और अस्वच्छ माना जाता था। उनके घर के पीछे एक खुला पिछवाड़ा था,बहुत बड़ा भी नहीं लेकिन छोटा भी नहीं| उसके दाहिने कोने पे एक शौचालय बना हुआ था| घर के पिछवाड़े को ऊंची दीवारों से हर तरफ से ढक दिया था ताकि कोई देख या कूद न सके।

पिछवाड़े के बिलकुल दूसरे छोर पर रसोई बनी हुई थी| यदि नज़मा की तरह उसके भाई को भी पेशाब करना होता तो उसे पूरा लिविंग रूम पार करके जाना पड़ता| अगर ऐसा होता तो पक्के से नज़मा नंगी पकड़ी जाती| नज़मा प्रार्थना करने लगी की उसका भाई सीधे अपने कमरे में वापिस चला जाये।

उसके भाई ने पानी पिया और लाइट बंद करके सीधे अपने कमरे में चला गया|

नज़मा मन ही मन में: शुक्र है अल्लाह का| जान बची तो लाखों पाए ......

इतनी देर से वो अपने पंजों पे ही बैठी हुई थी| अब रिलैक्स होते हुए वो सोफे से अपनी पीठ टिकाते हुए नंगी ही ही फर्श पर बैठ गयी|

जैसे ही ठन्डे-२ फर्श को उसकी गांड ने छुआ, उसके पेशाब का प्रेशर फिर से जोर मारने लगा| लेकिन वो अभी कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, वो चाहती थी के मैदान पूरा साफ़ हो जाये| उसने थोड़ी देर और इंतजार किया।
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Re: नज़मा का कामुक सफर

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जब उसे यकीन गया कि अब उसका भाई वापस नहीं आएगा। वह उठकर पिछवाड़े के दरवाजे की ओर भागी। लेकिन पिछवाड़े के दरवाज़े पे पहुँच कर उसकी गांड फट गयी| उसने सोचा की अब और चांस लेना ठीक नहीं है, उसे अपने कमरे में जाके कपडे पहन लेने चाहिए और फिर ही पेशाब करने जाना चाहिए| नज़मा अपने कमरे की तरह जाने लगी| इससे पहले कि वो अपने कमरे का दरवाजा खोल पाती, उसके दिमाग का शैतान उस पर फिर से हावी होने लगा|

उसने सोचा: इस समय उसे पिछवाड़े में देखने वाला कोई नहीं होगा। चांद की मुलायम रोशनी के नीचे उसका नंगा बदन| अये-हाय मज़ा ही आ जायेगा|

उस विचार से उसके बदन में एक कंपकंपी फ़ैल गयी| उसने ये चांस लेने का भी मन बना लिया|

नज़मा ने सोचा: करुँगी तो ज़रूर, लेकिन जल्दी-२| ज्यादा टाइम लगाना मतलब ज्यादा रिस्क ....

ये सोचते ही नज़मा तेज़ी से पीछे का दरवाजा खोल कर बाहर चली गई। उसने दरवाज़ा बाहर से बंद किया और शौचालय की ओर भागी| उसने पेशाब किया लेकिन तुरंत घर में नहीं गयी| वो कुछ देर तक बाहर खड़ी, चाँद और तारों को देखती रही| आज उसके कारनामो का भी एक गवाह बन गया था, अब से आकाश के सभी सितारों को, चाँद को भी पता था, सब पता था, की कितनी छुपी रुस्तम है नज़मा, कितनी ठरकी है नज़मा|

वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी थी, उसे और इंतजार नहीं हुआ| उसकी टपकती चूत उसे पागल कर रही थी| वो भाग के अपने कमरे में चली गई। जाते ही उसने अपनी दो उँगलियाँ अपनी चूत में घुसा दी और कुछ ही सेकंड में बुरी तरह झड़ गयी| आज उसे बहुत मज़ा आया था, ये उसका उसकी फैंटसी की दुनिया का टॉप स्कोर था| वो बहुत खुश थी, उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था। अब वो रुकने वाली नहीं थी, अगली बार उसे अपने इस स्कोर को पछाड़ना था|

उसने अपने आप को साफ़ किया और गहरी नींद में सो गयी|


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अगले दिन, उसकी माँ ने उसे जगाया। उसकी माँ हमेशा सबसे पहले उठ कर तैयार होती थी| उसके बाद नज़मा को उठा के तैयार होने के लिए भेजती थी| नज़मा का कॉलेज घर से काफी दूर था इसलिए नज़मा को बाकि सब से पहले निकलना होता था| जब घर के मर्द लोग उठते थे तब तक नज़मा जाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी होती थी|

जैसे ही वो कॉलेज के लिए निकलने लगी उसने नोटिस किया की उसके मम्मी-पापा उसी के बारे में बात कर रहे थे| वो ये चर्चा कर रहे थे की पिछले कुछ दिनों से नज़मा बहुत खुश दिखाई पड रही है|

नज़मा मन में: हाँ यार, बात तो सही है ....

नज़मा ने इसपे ज़्यादा नहीं सोचा और कॉलेज के लिए निकल गई।

उस रात एक बार फिर से नज़मा ने वही सब किया| उतना की मज़ा आया, उतनी ही उत्तेजना हुई| बस फरक ये था की आज उसका भाई उसे परेशान करने बीच में नहीं आया|

अब उसने हर रात अपना जलवा जारी रखा। शनिवार और रविवार के दिन उसकी छुट्टी होती थी| उसने छुट्टियों के दिनों में अब दिन के समय में भी अपने रूम में नंगा रहना शुरू कर दिया| वो ये सब बहुत सावधानी से करती थी ताकि पकड़ी ना जाए।

एक रात नज़मा पिछवाड़े में नंगी घूम रही थी की उसे दरवाजा खुलने की आवाज़ आयी| एक पल के लिए तो उसे कुछ समझ नहीं आया फिर वो भाग के शौचालय में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया|

कुछ देर बाद किसी ने टॉयलेट का दरवाजा खटखटाया| बाहर उसके पापा था| शायद मूतने आये होंगे, अब क्या होगा?

पापा: कौन है?

नज़मा: मैं हूँ पापा|

पापा: अच्छा| मैं पानी पीने आया था, पीछे का दरवाज़ा खुला देख के चला आया| तुम ठीक हो ना बेटी?

नज़मा (मन में): ओह, ये गलती कैसे हो गयी बहनचोद| मैं कैसे दरवाज़ा खुला छोड़ आयी ....

नज़मा: हाँ पापा, बिलकुल ठीक हूँ| मुझे फारिक होने में अभी थोड़ा और वक़्त लगेगा|

फिर कोई जवाब नहीं आया| नज़मा ने कुछ समय के लिए इंतजार किया और फिर धीरे से दरवाज़े से सर बाहर निकाल के देखा| वहाँ कोई नहीं था। वो तुरंत लिविंग रूम की तरफ भाग ली|

बाहर उसके पापा तो कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे लेकिन लिविंग रूम की लाइट जली हुई थी| शायद से उसके पापा ने उसके लिए खुली रख छोड़ी होगी| लाइट का स्विच रसोई के पास लगा हुआ था, इसका मतलब की उसे स्विच बंद करने के लिए, उस रौशनी से भरे कमरे में से नंगे निकल के जाना पड़ेगा| रास्ते में उसके माता-पिता और भाई के कमरों के दरवाज़े भी पड़ते थे|

काम बहुत रिस्की था| लेकिन उसके शैतानी दिमाग को तो और रिस्क चाहिए था| नज़मा ने मन बनाया की वो स्विच तक चल के जाएगी| चाहे कोई आ भी जाये वो भागेगी नहीं| वो बिलकुल नार्मल तरीके से जाएगी और अपने नंगे शरीर को अपने हाथों से ढकने की कोशिश भी नहीं करेगी|

नज़मा धीरे-२ स्विच की तरफ बढ़ने लगी| हर बीतते पल के साथ उसकी चूत और गीली होती जा रही रही थी| बिना किसी अनहोनी के वो स्विच तक पहुँच गयी और लाइट बंद करके अपने कमरे में चली गई। उस रात उसने अपने पापा की मदद से एक नया टॉप स्कोर बनाया था।



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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: नज़मा का कामुक सफर

Post by Masoom »

कुछ रातों तक नज़मा के जलवे ऐसे ही चलते रहे| नज़मा की हिम्मत अब दिन बे दिन बढ़ती जा रही थी| अगले हफ्ते उसने फिर से अपना बुरका कांड करने का प्लान किया| अगले दिन नज़मा कॉलेज से छुट्टी मार के एक मॉल में सिर्फ बुरका पहन के पहुँच गयी| मॉल शहर से थोड़ा दूर था और अभी नया खुला था इसलिए किसी जानकार के मिलने के चान्सेस काफी कम थे|

नज़मा वहां एक कपड़े की दुकान में चली गई| वो कुछ ऐसा करना चाहती थी जिसके बारे में वो बहुत दिनों से प्लान कर रही थी| उसने एक ऐसा स्टोर चुना जहाँ ट्रायल रूम में दरवाजों के बजाय पर्दे थे| थोड़ी देर तक वो कपडे ढूंढती रही| उस स्टोर में ज़्यादातर कर्मचारियों लड़के ही थे|

तभी एक दुकान का लड़का नज़मा के पास आया और पुछा: "मैडम, क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ?"

नज़मा: नहीं, कुछ नहीं, मैं अपने लिए जीन्स और कुरता ढूंढ रही हूँ, कुछ मदद चाहियेगी तो आप को बता दूंगी|

लड़का: ओके मैडम|

ये कह के वो लड़का वहां से चला गया| कुछ देर में नज़मा ने भी एक कुरता और जीन्स चुन ली लेकिन थोड़े छोटे साइज में| वो ट्रायल रूम में चली गई। उसने पर्दा बंद कर दिया और अपना बुर्का उतार दिया। नज़मा अब एक स्टोर में पूरी नंगी थी, चाहे ट्रायल रूम में ही, लेकिन फिर भी ये उसे बहुत उत्तेजित करने वाला पल था| हालाँकि उसे पता था की जीन्स छोटे साइज ही है फिर भी उसने जीन्स को पहनने की कोशिश की| जैसा की पता ही था जीन्स उसकी जाघों से ऊपर चढ़ी ही नहीं|

उसने जीन्स उतार दी और थोड़ा ज़ोर से पुकारा: "सुनिए, कोई है?"

बाहर से एक लड़का: "सुप्रभात मैडम, बताइये में आपकी कैसे सहायता कर सकता हूँ?"

नज़मा: मैंने गलती से ये छोटे साइज की जीन्स चुन ली, क्या आप मुझे एक बड़े साइज की जीन्स ला के दे सकते हैं|

लड़का: हाँ-२, क्यों नहीं मैडम| कोन से साइज की जीन्स लानी है?

नज़मा परदे के पीछे पूरी नंगी थी| नज़मा ने थोड़ा सा पर्दा से अपना हाथ बाहर निकला और बोली: भैया, ये जीन्स ले लीजिए और इसी डिज़ाइन में बड़ा साइज ला दीजिये|

नंगे होके किसी अनजान आदमी से बात करने का नज़मा का पहला मौका था| उसे अपने आज के कांड में बहुत मज़ा आ रहा था| जब वो लड़का जीन्स लेने चला गया तो नज़मा ने कुरता पहन लिया| कुरता नज़मा के बदन पे बहुत टाइट था, उसे बोबे तो कुरता फाड़ के बाहर आने के बेताब थे| उसके अंगूर जैसे निप्पल कुर्ते के ऊपर से बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे| कुरता उसके घुटनो के थोड़ा सा ऊपर तक था, साइडों से कुर्ते का कटाव कमर तक था| उसकी चिकनी गोरी-२ झांघें ऊपर तक दिखाई दे रही थी|

सब प्लान के मुताबिक चल रहा था| बस कुरता ज़रुरत से ज़्यादा टाइट हो गया था| अब प्लान के हिसाब से उसे इसी ड्रेस में उस लड़के से जीन्स लेनी थी| लेकिन नज़मा का डर था की कहीं ये कुरता फट ही ना जाए| लेकिन उसने अपने मन को पक्का किया और उस लड़के का इंतज़ार करने लगी|

लड़का कुछ देर में वापिस आया और उसने नज़मा को आवाज़ लगायी| नज़मा चाहती तो सिर्फ हाथ बाहर निकाल के जीन्स ले सकती थी लेकिन उसने परदे को थोड़ा सा खोल दिया| उसके सामने एक प्यारा-सा तकरीबन 18-19 साल का लड़का जीन्स लिए खड़ा था| लड़के का मुंह खुला हुआ था और वो नज़मा को सर से पाँव तक निहार रहा था। नज़मा ने उससे जीन्स लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया लेकिन वो लड़का तो जैसे बुत्त ही बन गया था| नज़मा थोड़ा और झुकी और जीन्स पकड़ ली| अब उसका क्लीवेज और ज्यादा दिखाई देने लगा|

नज़मा: जीन्स दो ना भैया, क्या कर रहे हो?

लड़का (होश में आते हुए): हाँ ... हाँ ... मैडम ...

नज़मा ने जीन्स उस लड़के के हाथ से ले ली और थोड़ा मायूसी दिखाती बोली: क्या भैया, देखो ना ये कुर्ती भी छोटी साइज की आ गयी है| क्या आप मेरे लिए प्लीज बड़े साइज कुर्ती भी ला देंगे?

लड़का अब तक होश संभाल चूका था| लड़के ने बातचीत को बढ़ाने के लिए बोला: क्या बात करती हैं मैडम? ये कुर्ती तो आप पे बहुत जंच रही है|

नज़मा: अरे भैया आप भी, देखो ना कितनी टाइट है हर तरफ से| ऐसा लगता ही किसी ने मुझे इस कुर्ती में ठूंस दिया हो|

लड़का (जाँघों को घूरते हुए): कुछ भी कहो मैडम, लेकिन अच्छी तो बहुत लग रही है

नज़मा (इशारा करते हुए): ये देखो, मेरे पिछवाड़े पे कितनी टाइट है| और देखो, और देखो, छाती पे भी कितनी कस गयी है| ज्यादा हिली तो कहीं फट ही ना जाये|

लड़का (मन में): तो हिल न मेरी छमकछल्लो

नज़मा: आप रुको एक मिनट|

ये कहते हुए उसने पर्दा बंद कर लिया और कुर्ती उतार दी| नज़मा ने बाहर हाथ निकल के कुर्ती दी और बोली: "भैया, इसी डिज़ाइन की लाना प्लीज"

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लड़के के जाने के बाद नज़मा ने जीन्स पहन ली और हाथ में बुरका ले लिया| अब नज़मा ने अपने प्लान को अगले स्तर पे लेके जाने का सोचा|

थोड़ी देर में लड़के ने वापिस आ के नज़मा को आवाज़ दी| इस बार नज़मा ने सिर्फ जीन्स डाली हुई थी और ऊपर से अपने आप बुर्के से ढक लिया था| नज़मा ने पर्दा आधे से ज़्यादा खोल दिया| लड़के की आँखें फटी की फटी रह गयी| ऐसा लग रहा जैसे अभी उसकी आँखें बाहर निकल के गिर जाएँगी| लड़के को नज़मा की गोरी चिकनी पीठ पीछे लगे शीशे में बिना ब्रा की पट्टी के बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही थी|

ऐसा नहीं था की नज़मा उस लड़के के सामने टॉपलेस थी लेकिन ये कुछ कम भी नहीं था| नज़मा ने दोनों हाथ से बुर्के को अपने बदन से कस कर पकड़ा हुआ था| उसका एक हाथ बोबों के थोड़ा ऊपर था और दूसरा हाथ पेट के पास था| अब नज़मा को उस लड़के से कुर्ती लेने के लिए एक हाथ को बुर्के से हटाना था|

अगर वो अपना नीचे वाला हाथ हटाती तो उसके बोबे नीचे से दिखाई दे जाते और उसकी नाभि तो पूरी दिखाई दे जाती| अगर वो अपना ऊपर का हाथ हटाती तो उसके बोबे बिलकुल की नंगे हो जाने थे| कुछ सेकंड सोचने के बाद नज़मा ने अपना ऊपर वाला हाथ खिसका के बिलकुल अपने बोबों पे रख लिया और दूसरा हाथ हटा के कुर्ती लेने के लिए आगे बढ़ा दिया| उसके ऐसा करने के उसके बोबे थोड़ा दब गए और ऊपर से आधे से ज़्यादा दिखाई देने लगे| बस निप्पल ही दिखाई देने की कसर बची थी| नीचे से उसका नंगा सपाट पेट देख के लड़के की हालत ख़राब होने लगी|

लड़के ने ना चाहते हुए नज़मा को कुर्ती पकड़ा दी और पुछा: मैडम, कोई और सहायता?

नज़मा: अभी के लिए थैंक्स भैया|

नज़मा को इस सब में बहुत मज़ा आया| मस्ती से उसकी आँखें लाल हो गयी थी| उसकी चुत बुरी तरफ बहने लगी थी| नज़मा की हालत बहुत ख़राब हो गयी और सहना मुश्किल हो गया| नज़मा ने फटाक से पर्दा बंद किया| उसने कुर्ती पहन के भी नहीं देखि| उसने जीन्स उतारी और वापिस से अपना बुरका पहन लिया|

नज़मा जल्दबाज़ी में बाहर जाने लगी|

पीछे से लड़के ने आवाज़ दी: क्या हुआ मैडम?

नज़मा: नहीं भैया, पसंद नहीं आया कुछ, कपडा भी अच्छा नहीं है और आपके रेट भी बहुत ज़्यादा हैं|

लड़का: मैं कुछ और कम रेट के कपडे दिखा देता हूँ, बिलकुल नए फैशन है मैडम|

लड़का किसी भी कीमत पे नज़मा के साथ कुछ और देर बिताना चाहता था|

नज़मा: नहीं भैया, अभी देर भी बहुत हो गयी, फिर कभी आउंगी|

लड़का: आपकी ही दुकान है मैडम, जब चाहे आइये| अभी तो थोड़ा रुकिए ना, आपके लिए स्पेशल डिस्कोउंट भी हो जायेगा, आप कुछ और कपडे try करके तो देखिये|

नज़मा (मन में): ये चूतिया तो चिपक ही गया|

नज़मा: नहीं भैया, फिर कभी|

उसके बाद नज़मा उस लड़के को अनसुना करके तेजी से दूकान से निकल ली|


नज़मा बार-२ पीछे मुड़ के देख रही थी| उस डर था की कहीं वो दुकानवाला लड़का उसके पीछे ना आ जाये| पीछे देखने की वजह से नज़मा को सामने से आता हुआ एक लड़का दिखाई नहीं दिया और वो उससे टकरा गयी| शायद लड़के का ध्यान भी कहीं और था, लड़के ने भी नज़मा को नहीं देखा| नज़मा टकरा के नीचे गिरने लगी तभी लड़के ने उस थाम लिया|

बहुत सव्भाविक है की जब हम किसी से टकराते हैं तो हमारे हाथ बीचे में आ जाते हैं| तो इस नज़मा की मज़ेदार टक्कर में हुआ यूं की लड़के का एक हाथ तो नज़मा के बोबे पे आ गया और दूसरे हाथ से उसने नज़मा की बड़ी गांड को पकड़ लिया| हाथ लगते ही लड़के को पता चल गया की लड़की ने बुर्के के नीचे कुछ नहीं पहना| बुर्के का कपडा बहुत ही महीन और मुलायम था|

नज़मा (सँभलते हुए): जी माफ़ कीजियेगा, मेरा घ्यान कहीं और था|

लड़का (मुस्कुराते हुए): अरे कैसी बात करती हैं, ये तो खुदा की रेहमत है की की आपसे टक्कर हो गयी ...

लड़के के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था की उसे महसूस हो चूका है की नज़मा बुर्के के नीचे पूरी नंगी है| उसके हाथ भी ऐसी जगह पहुंचे थे की उसे अब ब्रा और कच्छी के ना होने का पता होगा|

नज़मा: जी क्या?

लड़का: जी वो गलती मेरी भी है, मेरा घ्यान भी कहीं और था|

नज़मा इस अचानक से हुए हादसे से घबरा गयी थी| उसने ये प्लान नहीं किया था| नज़मा तेजी से वहां से निकलने लगी|

लड़का: अरे सुनिए तो, शायद मैंने आपको कहीं देखा है?

नज़मा(मन में): चूतिये, क्या घिसा-पिटा बहाना? कुछ तो नया बोलता बात आगे बढ़ाने के लिए|

नज़मा: जी .. हो सकता है|

ये कह कर नज़मा तेजी से वहां से निकल ली और लड़का खड़ा-२ मुस्कुराते हुए नज़मा को जाते हुए देखता रहा|

लड़का(मन में): हो ना हो, देखा तो ज़रूर है इस लड़की को| साली बुर्के के नीचे पूरी नंगी वो भी भरेपुरे मॉल में| बड़ी मादरचोद आइटम है छिनाल कहीं की|

नज़मा तेज़ क़दमों से मॉल से बाहर निकल आयी| अब तो वो काफी संयत हो चुकी थी|

मन ही मन नज़मा मॉल में हुई सारी घटनाओ के बारे में सोचने लगी| कितना मज़ा आया था ट्रायल रूम में, उस दुकानवाले लड़के की हालत तो देखने वाली थी| और उसके बाद वो टक्कर, कितनी जल्दी हुआ था सब, उस लड़के ने तो मेरे बोबे और गांड को ही दबा दिया था| दबाएगा कैसे नहीं, हूँ भी तो मैं इतनी सेक्सी| ये टक्कर वाला प्लान भी सही है, ज़्यादा टाइम भी नहीं लगता, बोबे और गांड दबवाने का मज़ा भी मिल जाता है| क्यों न फिर से एक टक्कर की जाये? लेकिन किसी भीड़-भाड़ वाली जगह ही ठीक रहेगा| कोई ज़्यादा फायदा भी नहीं उठा पायेगा और लगेगा भी बिलकुल स्वाभाविक| इस प्लान के साथ नज़मा फिर से उसी मॉल में दाखिल हो गयी|

उसने चारों तरफ अपनी नज़रें दौड़ाई और एक लंबे, हैंडसम लड़के को चुन लिया| वो लड़का भीड़ से भरे इस मॉल में अकेला खड़ा था। नज़मा तेजी से उस लड़के की तरफ चलने लगी, नज़मा ने जानकार के अपनी गर्दन दूसरी तरफ की हुई थी, लेकिन उसकी तिरछी नज़रें थी अपने शिकार पर ही| कुछ सेकण्ड्स में नज़मा जानबुज कर उस लड़के से टकरा गयी| वो लड़का भी बिलकुल रिलैक्स मूड में खड़ा हुआ था, इसलिए लड़के का बैलेंस बिगड़ गया और दोनों एक साथ फर्श पर गिर गए|

इस बार यहाँ मामला हाथ से निकल रहा था। गिरने से नज़मा का बुरका उसकी जांघों तक उठ गया था| उसकी गोरी-२ जांघें दुनिया के सामने नंगी हो गयी थी| नज़मा ने तेजी से उठने की कोशिश की लेकिन ये मामला तो बाद से बदतर होता जा रहा था| नज़मा के बुर्के का हुक उस लड़के, रघु की शर्ट में फंस गया था| अगर नज़मा ज़ोर लगा के उठने की कोशिश करती तो उसका बुरका फट भी सकता था| या अल्लाह ... कहाँ फंसा दिया बेचारी नज़मा को?

नज़मा ने सबसे पहले अपने बुर्के को थोड़ा नीचे खींच कर अपनी जाँघों को ढका| कम से दुनिया को तो ना पता चले की वो बुर्के के नीचे नंगी है| फिर उसने अपने हाथ साइड में रख कर अपना वज़न रघु पे से हटाया और थोड़ा ऊपर हुई| इससे उसके बुर्के में और उसके बदन में थोड़ा गैप आ गया| उसका बुरका तो रघु की शर्ट से चिपका हुआ था और वो तकरीबन ३-४ इंच ऊपर उठ गयी थी|

रघु ने नीचे देखा तो उसके होश उड़ गए| उसे नज़मा के बोबे, पेट, चुत पे उगी छोटी-२ झांटें, उसकी गोरी-२ जांघें सब दिखाई दे रहा था| ऐसे लग रहा था मानो कोई लड़की बिलकुल नंगी होके उसके ऊपर पुशउप, दंड मार रही हो|

इतने में कहीं से रघु के दोस्त आ गए|

दोस्त: अबे ये क्या कर रहा है रघु?

रघु: दिखता नहीं है हरामखोरो, गिर गया हूँ?

दोस्त: हाँ दिख तो रहा है, कितना गिरा हुआ है तू, एक बेचारी लड़की को गिरा दिया| अब उठेगा भी|

रघु: हाँ-२ उठ रहा हूँ|

एक तो जवान लड़की के नंगे बदन का मस्त नज़ारा, दोस्तों का प्रेशर, रघु बहुत नेर्वस हो रहा था| उसके हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे| रघु कांपते हाथों से हुक को अपनी शर्ट के बटन से निकालने का प्रयास करने लगा| अब नज़मा को भी समझ आ गया था की क्या देख के रघु की हालत इतनी पतली हो गयी है| नज़मा को अपनी इस हालत पे बहुत शर्म आ रही थी| लेकिन अब शर्माने से ये हालत तो ठीक होने वाले थे नहीं, इसलिए नज़मा ने हिम्मत कर के धीरे से कहा: भैया, डरो मत, आराम से हुक निकालो| ये नज़ारा सिर्फ आपको ही दिखाई दे रहा है, आपके दोस्तों को नहीं|

रघु: जी ..... जी

कुछ देर की जदोजहद के बाद आखिरकार रघु ने हुक निकाल ही दिया| नज़मा तुरंत खड़ी हुई और बाहर की तरफ भाग ली| नज़मा का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था| उसे पीछे से रघु के दोस्तों की चिल्लाने की और सीटियां मारने की आवाज़ें आ रही थी| लेकिन नज़मा रुकी नहीं, वो अब जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहती थी|

जैसे ही वह अपने घर में दाखिल हुई, वह सोफे पर गिर गयी और मुठ मारने लगी| वो कुछ सेकण्ड्स में ही झड़ गयी| जब एक बार से संतुष्टि नहीं मिली तो उसने दुबारा ऊँगली करना शुरू कर दिया|

उसका मज़ा, उसकी फैंटसीज, उसका रोमांच दिन बे दिन पहले से कहीं अधिक बेहतर होता जा रहा था| आज थोड़ा रिस्की हो गया था, वो तो रघु एक शरीफ लड़का था, इसलिए बच गयी नहीं तो कोई उसका फायदा उठाने का प्रयास भी कर सकता था| अब आगे उसे कुछ और नया करना था, कुछ और बेहतर करना था| लेकिन बहुत सोच के| वो आज की तरह किसी ऐसी स्थिति में नहीं आना चाहती थी जहाँ कण्ट्रोल उसके पास ना हो| उसे एक आईडिया आया| नज़मा की बहुत दिनों से साड़ी के लिए कह रही थी| कुछ सोच के नज़मा की आंखें चमकने लगी, एक नॉटी आईडिया आईडिया फिर से रेडी .......


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Re: नज़मा का कामुक सफर

Post by Masoom »

नज़मा की माँ पिछले कुछ समय से उसे साड़ी पहनने के लिए उकसा रही थी। उसकी माँ चाहती थी की नज़मा को शादी से पहले कम से कम साड़ी पहनने का तरीका पता हो और थोड़ा बहुत आदत भी हो ताकि उस शादी के बाद साड़ी पहनने में परेशानी नहीं आये|

अगली सुबह नज़मा ने अपनी मां को बताया की वो साड़ी पहनना चाहती है| उसकी माँ बहुत खुश हो गयी| उसकी माँ उसी दिन नज़मा को अपनी दुकान पर ले आयी और एक अच्छी सी साड़ी सेलेक्ट करवा दी| उसकी माँ परवीन ने कहा की नज़मा अब ब्लाउज सिलवा ले ताकि सप्ताह के आखिर तक उसकी साड़ी तैयार हो जाये|

नज़मा दो-तीन दिन के बाद एक दर्जी के पास गई। उसने अपना बुर्का, उसके अंदर नाइटी और सबसे नीचे अंडरवियर डाले हुए थे| दर्जी की दुकान में सिर्फ दो लोग थे। चमन नाम का एक बूढ़ा आदमी था जो की इस दुकान का मालिक था| चमन बहुत समय से ये दुकान चला रहा था| यहाँ तक की उसने परवीन की शादी का जोड़ा भी तैयार किया था| कुछ समय पहले से चमन ने रामु को अपना सहायक रख लिया था| रामु ने अभी-२ स्कूल छोड़ा था और अब चमन के साथ दर्ज़ी का काम सीख रहा था| रामु की उम्र तकरीबन नज़मा जितनी ही होगी| नज़मा को सिर्फ चमन के ही मिलने की उम्मीद थी| उसे नहीं पता था की चमन चाचा ने अब एक लड़का भी रख लिया है| लेकिन ये तो अच्छा हो था, बल्कि उसके प्लान के लिए और ज़्यादा अच्छा था| रामु देखने में बहुत शर्मीला और शांत था।

पहले तो चमन ने नज़मा से पढ़ाई और तमाम दूसरी चीज़ों के बारे में पुछा, फिर कहा: बोलो, क्या काम है बेटी?

नज़मा: चाचा, एक ब्लाउज सिलवाना था|

चमन: सही है, तुम्हारे पास कोई पुराना ब्लाउज है?

नज़मा: नहीं चाचा, मैं पहली बार ब्लाउज सिलवा रही हूँ?

चमन: फिर तो नाप लेना पड़ेगा बेटी|

नज़मा: ठीक है चाचा, आप ले लीजिये नाप|

चमन: बेटी तुम ये अपना बुरका उतार दो| दरअसल इसके साथ नाप ठीक से आएगा नहीं| कहीं उच-नीच हो गयी तो हम तुम्हारी माँ को क्या शकल दिखाएंगे|

नज़मा: जी, जैसा आप कहें चाचा|

यही उम्मीद थी नज़मा को| अगले कदम की तैयारी नज़मा पिछले हफ्ते से कर रही थी| उसने अगले कदम को परफेक्ट करने के लिए कम से कम अपने कमरे में इसका सैंकड़ों बार अभ्यास किया था| उसने अपनी आँखें बंद की और मन ही मन अल्लाह को याद किया| वो झुकी और नीचे से उतारने के लिए बुरका पकड़ा, साथ-२ उसने चुपचाप अपनी नाइटी को भी पकड़ लिया था| एक झटके में उसने बुरका अपने सर के ऊपर से उतार दिया| हाय दईया, ये क्या हो गया? बुर्के के साथ नाइटी भी उतर गयी|

नज़मा ने मैचिंग गुलाबी रंग की ब्रा-पैंटी डाली हुई थी| ब्रा से उसकी गहरी क्लीवेज दिखाई दे रही थी| उसने पहले से अपनी पैंटी के एक किनारे को अपनी चुत की दरार के अंदर धकेल रखा था, "गलती से"। पीछे से भी नज़मा ने पैंटी को अपने चूतड़ की दरार में घुसा रखा था, उसका एक चूतड़ बिलकुल नंगा था, "गलती से"| दोनों मर्दों के आँखें नज़मा के बदन से चिपक गयी थी| दुकान में चारों तरफ़ शीशे लगे हुए थे, हर तरफ अर्धनंगी नज़मा हर कोने से नज़र आ रही थी|

कुछ सेकण्ड्स में नज़मा ने आँखें खोली और ऐसे नाटक किया जैसे उसे पता ही नहीं चला और उसकी नाइटी उतर गयी|

नज़मा(चीखते हुए): हाय अल्लाह, ये क्या गज़ब हो गया? मैंने गलती से बुर्के के साथ नाइटी भी निकाल दी| मुझे माफ़ करें चाचा|

नज़मा तेजी से घूम गयी और अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया| देखने वाले को ऐसा लगेगा जैसे नज़मा ने ये शर्म के मारे में किया हो, लेकिन असल में नज़मा अब उन्हें अपनी गोल मटोल गांड के दर्शन भी करवाना चाहती थी|वो तेजी से बुर्के में से अपनी नाइटी निकालने लगी| वो ये काम दिखाने के लिए तो जल्दबाजी में कर रही थी लेकिन उसे हर पल का बेहद आनंद मिल रहा था| नज़मा ने अपनी एक और फैंटसी पूरी कर ली थी| अब वो जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाहती थी|

नज़मा कांपते हाथों से नाइटीको बुर्के में से निकालने का प्रयास कर रही थी| चमन चाचा भी कम नहीं था| उसने भी बहुत दुनिया देखी थी| वो नज़मा की कारिस्तानी को भांप गया| उसने भी सोचा की क्यों न खेल आगे बढ़ाया जाये|

चमन: रुको मेरी चाँद सी बेटी| अभी कपड़े पहनने की जहमत मत उठाओ। पहले नाप ले लेते हैं|

नज़मा: तो क्या मैं आप लोगों के सामने ऐसे आधी नंगी खड़े होके नाप दूँ?

चमन: तुम चिंता क्यों कर रही हो डार्लिंग बेटा जी, वो देखना था वो तो हमने देख ही लिया है| अब छुपाने का क्या फायदा| तुम अगर ऐसे नंगी ...... मेरा मतलब है ब्रा चड्डी में नाप दोगी तो नाप एक दम सटीक लिया जायेगा| इतना बढ़िया ब्लाउज सिलेगा की, सालों साल याद रखोगी अपने चमन चाचा को|

नज़मा अब कशमकश में फंस गयी थी| ये उसके प्लान का हिस्सा नहीं था| वो सोच में पड़ गयी|

चमन: अरे घबराती क्यों हो बेटी, ये पेशा है हमारा, रोज़ यही करते हैं सुबह-शाम| ना जाने कितनी मोहतरमाओं का नाप लेते हैं .... नंगी करके

नज़मा की चूत उत्तेजना के मारे गीली हो चुकी थी| उसे उस बुड्ढे के साड़ी द्विअर्थी बातें समझ आ रही थी| उसे भी बहुत मज़ा आ रहा था खेल में| वो भी आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन थोड़ा डर रही थी| फिर उसने सोचा की देखा जायेगा जो होगा| ज़्यादा से ज़्यादा ये बूढ़ा कर भी क्या लेगा| हद से ज़्यादा आगे बढ़ने की कोशिश करेगा तो थप्पड़ खायेगा और फिर माँ का भी तो डर होगा इसे|

नज़मा को कुछ ना बोलता देख, चमन ने आगे बढ़ के नज़मा का हाथ पकड़ लिया और बोला: आओ ना बेटी, थोड़ा बीच में आ जाओ, नाप ले लें आपका| अरे रामु तू जाके दरवाज़ा बंद कर दे|

नज़मा: दरवाज़ा ... दरवाज़ा क्यों बंद कर रहे हैं?

चमन: अरे डार्लिंग, अभी तो हमने ही देखा है नज़ारा, क्या पूरी दुनिया को दीदार करवाना है?

फिर नज़मा कुछ नहीं बोली| रामु भी दरवाज़ा बंद करके वापिस आ गया था| चमन नाप लेने के लिए आगे बढ़ा और उसने अपने दोनों हाथ नज़मा के कन्धों पर रख दिए और कन्धों पे हाथ फिराने लगे|

नज़मा: चाचा, क्या हाथ से ही नाप लोगे? फित्ता कहाँ है आपका?

चमन: बेटी, 30 साल हो गए मुझे, लोगों के कपडे सिलते हुए| कभी टेप इस्तेमाल नहीं किया| टेप से ज़्यादा भरोसा मुझे अपने हाथों पर है| आज तक एक भी ग्राहक से कोई शिकायत नहीं आयी है| अरे मेरी डार्लिंग बड़े-२ घरों के लिए कपडे सिले हैं मैंने, पूछना कभी अपनी माँ से|

नज़मा: फिर भी चाचा जी, ये थोड़ा अजीब है| और अगर आप टेप इस्तेमाल नहीं करते तो टांग क्यों रखी है गले में?

चमन: हा .. हा .. ये तो, बस ऐसे ही| दर्ज़ी भी तो लगना है ना| और रही बात औरतों के नाप लेने की, चू .... अनाड़ी लेते हैं टेप से नाप| अब तुम ही बताओ कोई बोबे के शेप टेप से कैसे नाप सकता है? टेप से लम्बाई तो नापी जा सकती है, लेकिन बोबे के गोलाइ कैसे नापेगा कोई? गोलाई का तो हाथ से ही सही पता चलता है|

नज़मा (मन में): बात तो सही कर रहा है बुड्ढा| कितना ठरकी है, कैसे साफ़-२ बोल रहा है ... बोबा| ब्रेअस्ट्स नहीं बोल सकता था कमीना| हिम्मत देखो हरामखोर की, बेटी से कब डार्लिंग पे आ गया, पता ही नहीं चला|

नज़मा: ना तो कभी ऐसा सुना है और ना ही कहीं ऐसा देखा है|

चमन: अरे इतना क्यों घबरा रही हो, केवल 5 मिनट की ही तो बात है|

नज़मा (मन में): हाँ बूढ़े, तेरे लिए तो 5 मिनट भी बहुत ज़्यादा ही हैं| इतने में तो तू 5 बार झाड़ लेगा मेरे सामने|

अभी तक नज़मा उन दोनों मर्दों के सामने ब्रा-पैंटी में ही खड़ी थी| धीरे-२ अब नज़मा काफी रिलैक्स महसूस करने लगी थी| अब उसे आधी नंगी खड़े होने में ज़्यादा झिझक भी नहीं हो रही थी, उल्टा अब उसे इन सब में खूब मज़ा आ रहा था| इतने में किसी ने दरवाज़ा खटखटाया| नज़मा अचानक से चौंक गयी|

चमन: अरे डरती क्यों हो डार्लिंग| अरे रामु देख तो कोन बुड़बक आ गया, लस्सी में लंड घोलने ... बाहर से ही रफा-दफा कर देना मादरचोद को|

चमन का मुहावरा सुन के नज़मा मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी|

चमन: तुम चिंता मत करो डार्लिंग, रामु देख लेगा, जो भी होगा| आज आराम से लेंगे .... नाप तुम्हारा|

रामु (अंदर आते हुए): चाय देके गया है लड़का|

चमन: ये हुई ना बात, चलो पहले चाय पी जाये|

नज़मा: चाय बाद में पीजिएगा| अभी पहले मुझे फारिक कर दीजिये| मैं क्या यहाँ नंगी खड़ी रहूंगी?

चमन (धीरे से): नंगी कहाँ हुई हो अभी तुम जानेमन|

चमन: डार्लिंग इतनी जल्दी मत करो, सकून से बैठो| बस 2 मिनट तो लगेंगे चाय पीने में| रामु, मादरचोद, तू खड़ा-२ क्या देख रहा है, मैडम को बैठने के लिए वो स्टूल दे|

रामु ने स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया लेकिन स्टूल को उसने पकड़े रखा| अब अगर नज़मा स्टूल पे बैठती तो रामु की उँगलियाँ नज़मा के चूतड़ों के नीचे दब जाती|

नज़मा ने कुछ पल तो रामु के हटने का इंतज़ार किया लेकिन जब रामु ने स्टूल को पकडे रखा तो वो बोली: अगर तुम ऐसे पकड़े रखोगे तो मैं बैठूँगी कैसे?

रामु: वो क्या है ना मैडम जी, ये स्टूल कमज़ोर सा है| कहीं आपके बैठने से गिर न जाये, इसलिए मैंने पकड़ रखा है|

स्टूल की हालत देखकर नज़मा को हँसी आ गयी| वो बोली: हाँ इसकी सेहत भी चमन चाचा जैसी ही है, मरियल सी|

नज़मा की बात सुन के रामु ज़ोर-२ से हसने लगा|

चमन (मन में): वाह क्या बात है, लड़की को भी मज़ा आ रहा है पूरा खेल में|

चमन: अरे डार्लिंग अभी देखि कहाँ है तुमने हमारी सेहत| जहाँ-२ ज़रुरत हैं, वहां-२ से बहुत सख्त हैं हम| और तू क्या दांत फाड़ रहा है मादरचोद?

नज़मा (मन में): हरामखोर, लंड की बात कर रहा है| कहीं मैं गलती तो नहीं कर रही, इस बूढ़े की हिम्मत तो बढ़ती ही जा रही है|

फिर नज़मा सोचते-२ स्टूल पर बैठ गयी| रामु ने अपना हाथ नहीं हटाया और नज़मा के चूतड़ों के नीचे रामु की उँगलियाँ दब गयी| रामु को तो पता नहीं चड्डी के ऊपर से गोल मटोल चूतड़ों को छूने में कितना मज़ा आया लेकिन उसकी ठंडी-२ उँगलियों के स्पर्श से नज़मा की चुत में सुरसुरी दौड़ गयी|

कुछ देर में चमन ने चाय ख़तम कर ली और खड़े होते हुए बोला: चलो, अब नाप लिया जाये आपका|

ऐसा कहकर चमन नज़मा के पास पहुँच गया| चमन की लंबाई नज़मा से थोड़ी ज़्यादा थी| इसलिए ब्रा में कैद बोबे चमन को ऊपर से साफ़ दिखाई दे रहे थे| सबसे पहले चमन ने नज़मा बाँहें पकड़ी और अपने हाथ उसकी काखों तक ले गया| चमन धीरे-२ अपनी अंगुली से नज़मा की काखों को सहला रहा था और कभी-२ रगड़ भी रहा था| नज़मा को गुदगुदी हो रही थी और साथ में उसे उतेज़ना भी हो रही थी| इतने में चमन ने कुछ बड़बड़ाया जो रामु ने रजिस्टर में नोट कर लिया|

चमन: अब तुम डार्लिंग घूम जाओ, मैं तुम्हारी पीठ का नाप ले लूँ|

नज़मा थोड़ा हिचकिचाते हुए पीछे को मुड़ी और अब उसका मुँह रामु की तरफ हो गया| रामु बिना पलकें झपकाए नज़मा के बोबों को घूर रहा था| चमन अब नज़मा की पीठ पर अपने हाथ फिराने लगा| धीरे-२ उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते जा रहे थे|

नज़मा: कहाँ का नाप ले रहे हैं चाचा| ब्लाउज इतना नीचे तक थोड़ा ना आएगा|

चमन (थोड़ा कठोर आवाज़ में): अब हमें मत समझाओ हमारा काम| इतना नीचे नहीं आएगा तो क्या? ब्लाउज पहनोगी तो इसी शरीर पे ना| हर तरफ से फिटिंग देखनी पड़ती है, समझी? तुम आराम से नाप दो|

चमन की बात सुन के नज़मा चुप हो गयी| चमन के हाथ धीरे-२ और नीचे बढ़ते जा रहे थे| कुछ ही समय में चमन के हाथ नज़मा के चूतड़ों पर पहुँच गए| अब चमन ने अपनी पूरी एक हथेली नज़मा के चूतड़ों पे जमा दी थी और उन्हें हल्का-२ सहला रहा था| चमन का दूसरा हाथ नज़मा के कंधे पर था| जब नज़मा की तरफ से कोई विरोध नहीं देखा तो चमन की हिम्मत और बढ़ गयी| थोड़ी देर एक हाथ से सहलाने के बाद चमन ने अपने दोनों हाथ नज़मा के चूतड़ों पे रख दिए और जोर-२ दबाने लगा| अब चमन के हाथ नज़मा की पैंटी में घुसने लगे थे| चमन ने खींच कर नज़मा की पैंटी एक साइड में कर दी और अपनी खुरदरी उँगलियों से नज़मा की गांड के छेद को सहलाने लगा|

नज़मा का हाल बुरा हो गया था| उसकी चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी| आगे से उसकी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी| उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पे उसके कामरस के धब्बे साफ़ दिखाई दे रहे थे| दूसरी तरफ रामु भी अपनी आँखों के सामने चलते इस वासना के खेल को देख के बोरा गया था| रामु को पता ही नहीं चला की कब उसके हाथ उसके लंड को मसलने लगे थे| रामु अब बिना किसी शर्म के पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को पकड़ के मुठिया रहा था|

ना जाने कब चमन सीधा खड़ा गया और पीछे से नज़मा के साथ चिपक गया| चमन ने अपने दोनों हाथ नज़मा के हाथों के साइडों से निकाल कर उसके बोबों पे पहुंचा दिए थे| चमन अब खुलेआम नज़मा के बोबे दबा रहा था| अब तो कोई नाप लेने का बहाना भी नहीं कर रहा था| सब काम खुले में हो रहा था| नज़मा के मुंह से सिसकारियां छूटती जा रही थी| नज़मा ने अपने होंठों को दाँतों तले दबा लिया और अधखुली आँखों से रामु को मुठ मारते हुए देखने लगी|

चमन के हाथ अब नज़मा की ब्रा में पहुँच गए थे| चमन नज़मा के निप्पल अपनी ऊँगली और अँगूठे के बीच दबा के मरोड़ने लगा| चमन ने अपनी बड़ी सी खुरदरी हथेली से नज़मा के बोबे को पूरा ढक रखा था और आटे की तरह उन्हें गूंथ रहा था| चमन अपना मुंह नज़मा के कान के बिलकुल पास ले आया और नज़मा के कान की लौ को अपने होंठो के बीच लेके हल्का-२ चबाने लगा| नज़मा का बदन मस्ती के कांपने लगा| चमन की गरम-२ साँसे नज़मा को अपनी गर्दन पे महसूस हो रही थी| चमन धीरे से नज़मा के कान में फुसफुसाया: क्यों आ रहा है ना मज़ा हाथ से नाप देने में जानेमन?

नज़मा: हुंह ...... जल्दी ले लो नाप, घर भी जाना है|

चमन: इतनी भी क्या जल्दी मेरी जान, अभी तो .....

अचानक नज़मा को अपनी गांड के सुराख पे कुछ गीला-२ सा महसूस हुआ| उसने एक दम से घबराते हुए अपना हाथ पीछे किया| या अल्लाह ये क्या? उसके हाथ में चमन का आठ इंच का मोटा ताज़ा घनघोर काला लंड आ गया| उसकी रूह कांप उठी| इस हरामखोर ने कब अपना लंड पैंट से बाहर निकला| ये मादरचोद तो मुझे चोदने का प्लान कर रहा है| नहीं ... नहीं ... ये सब नहीं, नज़मा को तो बस थोड़ा बहुत एडवेंचर करना था, एक छोटी से फैंटसी पूरी करनी थी| वो अपना यौवन, अपना कामोर्य अपने पति के लिए बचा के रखेगी| ऐसे कैसे कोई गन्दी नाली का कीड़ा उसकी सील को तोड़ सकता है|

नज़मा एक दम से चिल्लाई: क्या कर रहे हो चाचा?

चमन नज़मा को ग़ुस्से में देख थोड़ा घबरा गया| फिर अपने आप को सँभालते हुए बोला: नाप ले रहे हैं जानेमन, क्या हुआ?

नज़मा की ऑंखें गुस्से से लाल हो गयी थी| उसका पूरा शरीर थर-२ कांप रहा था| नज़मा ज़ोर से चिलायी: ये नाप ले रहे हो? ये तरीका है नाप लेना का तुम्हारा?

चमन की गांड फट गयी| उसे समझ नहीं आया की ये अचानक से हुआ क्या? चमन गिड़गिड़ाते हुए बोला: बेटी, थोड़ा आराम से बोलो, दुनिया इकट्ठी हो जाएगी| मेरी दुकानदारी बंद हो जाएगी|

नज़मा (दांत भींचते हुए): लंड काट के नाली में बहा दूंगी| चूतिया समझा है क्या? कुछ तो शर्म कर बूढ़े, तेरी बेटी से छोटी उम्र होगी मेरी ....

फिर ना जाने क्या-२ बड़बड़ाते हुए नज़मा ने फटाफट अपने कपडे पहने और चमन को गरियाते हुए तेज़ क़दमों से दुकान से निकल गयी|
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