Erotica मुझे लगी लगन लंड की

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica मुझे लगी लगन लंड की

Post by kunal »

दीपाली ने मेरी तरफ देखा और फिर बुरा सा मुंह बनाते हुए बोली- बस इसके साथ यहीं तक का साथ होता है, खुद जल्दी झड़ जाता है और फिर मेरी चूत में आग लगी रहती है।

मैंने दीपाली को इशारे से चुप कराया और अश्वनी और टोनी जो एक दूसरे के लंड को मसल रहे थे हम दोनों जाकर सीधा उन दोनों की गोद में बैठ गई, मैं टोनी की गोद में थी और दीपाली अश्वनी की गोद में बैठ गई, दोनों के हाथ सीधे हमारी चूचियों को मसलने लगे।

अचानक मेरी नजर घड़ी पर पड़ी तो छः बजने वाले थे। कल ही शाम की गाड़ी से मुझे ऑफिस के काम से अपने ससुर के साथ कोलाकाता जाना था। खैर मैं अभी मजे लेने के विचार में थी, मैं टोनी की गोद से उतरी और उसके लंड को चूसना शुरू कर दिया। दीपाली ने भी वही किया, वो भी अश्वनी के लंड को अपने मुंह में लिये हुई थी। मैं टोनी को इस अन्तिम चुदाई के खेल का मजा देना चाहती थी। मेरे कहने पर टोनी सोफे से थोड़ा बाहर आया और अपने दोनों पैरों को सोफे पर रख लिया। अब मेरे लिये उसके गांड का छेद, गोले और लंड तीनों के साथ खेलना आसान हो गया। जब मेरा एक हाथ उसके लंड को सहला रहे होते तो मैं उसके लंड को चूसती और दूसरे हाथ की उंगली उसके छेद को सुरसुराहट दे रही होती।

टोनी के मुंह से- उम्म्ह... अहह... हय... याह... बस ऐसे ही करो बड़ा मजा आ रहा है,

ऐसे शब्द सुनकर मेरे भी हौंसले और बढ़ रहे थे, कभी मैं उसकी गांड को अपनी जीभ का मजा देती तो कभी अपनी उंगली का मजा देती। इसी तरह कभी उसका लंड मेरे मुंह में होता तो कभी मेरा अंगूठा उसके सुपारेसे खेल रहा होता। फिर मेरी जीभ टोनी के पूरे जिस्म में अपना खेल दिखाने लगी, उसके लंड और जांघ को चाटते हुए मेरी जीभ उसकी नाभि में हलचल पैदा करने लगी। जैसे जैसे मैं उसके जिस्म को अपने जिस्म से रगड़ते हुए ऊपर उसकी छाती की तरफ बढ़ रही थी, वैसे वैसे ही टोनी का जिस्म सोफे से नीचे की तरफ आ रहा था। अब मेरी जीभ उसके निप्पल को मजा दे रही थी और,

टोनी की आवाज- आह-आह ओह-ओह मिसरी की तरह मेरे कान में घुल रही थी।

मेरी जीभ तो टोनी के निप्पल के ऊपर तो चल ही रही थी, पर मेरी चूत में उठ रही खुजली को शांत भी करना जरूरी था तो मेरी एक हथेली मेरी चूत की सेवा करने में लगी हुई थी। शायद यह बात टोनी को समझ में आ गई, उसने मुझे सोफे पर पटक दिया और मेरे चूत पर अपने मुंह को लगा दिया। मेरी हथेली जो चूत पर थी, उसको हटा कर फांकों को फैलाते हुए अपनी जीभ को अन्दर पेल दिया और अन्दर ही अपनी जीभ को घुमाने लगा, जहां तक उसकी जीभ अन्दर जा सकती थी उसने अन्दर डाल दी, फिर मेरी क्लिट को अपने दांतों के बीच लेकर उसे चबाने लगा और चूसने लगा। कुछ देर ऐसा करने के बाद वो हाफ पोजिशन में खड़ा होकर मेरी चूत में अपने लंड को डाल कर सीधा खड़ा हो गया। इससे मेरे कमर का हिस्सा हवा में झूल रहा था और बाकी सोफे से टिक गया था। टोनी मुझे बड़ी ताकत से चोद रहा था। टोनी लगातार ताकत के साथ मेरी चूत चोदे जा रहा था और उसके लंड का अहसास मुझे अन्दर तक हो रहा था। थोड़ी देर तक चूत चोदने के बाद टोनी ने मुझे उल्टा किया और मेरी गांड में अपनी जीभ चलाने लगा और अंगूठे से छेद के ऊपर रगड़ रहा था। फिर उसके बाद एक ही झटके से मेरी गांड में अपना लंड पेल दिया। मुझे वो बहुत ही स्पीड से चोद रहा था, कभी मेरी गांड की चुदाई करता और कभी चूत के अन्दर लंड डाल कर मेरी चूत का भोसड़ा बनाने में लगा था। खैर जितनी स्पीड से चोद रहा था, उतनी ही तेज वो चिल्ला रहा था। साथ में मेरी चूत का भोसड़ा बनाने की बात कहे जा रहा था, मेरे दोनों छेद की चुदाई अच्छे से कर रहा था। मैं एक बार और झड़ गई थी।

इधर दिपाली की भी हालत खराब थी, क्योंकि अश्वनी भी दीपाली की चूत और गांड का बाजा बजा रहा था। फिर टोनी ने लंड को मेरे मुंह में पेल दिया और धक्के लगाने लगा। उसके हर धक्के के साथ उसका माल मेरे गले के नीचे उतर रहा था। मेरा दम घुट रहा था पर टोनी जब तक पूरा मेरे मुंह में झड़ नहीं गया तब तक उसने अपने लंड को मेरे मुंह से बाहर नहीं निकाला। अश्वनी ने दो चार बूंद दीपाली के मुंह के अन्दर गिराई और बाकी उसके चेहरे पर और फिर अपने हाथ से ही अपने माल को दीपाली के चेहरे पर मलने लगा, ऐसा लग रहा था कि वो दीपाली के चेहरे को क्रीम लगा रहा था। जो लोग निपटते जा रहे थे वे हमारे पास आकर हमारी चुदाई देख रहे थे। जब हम चारों भी निपट गये तो हम सभी एक दूसरे के गले मिलने लगे। फिर सभी एक दूसरे को इस प्रोग्राम के लिये थैंक्स बोलने लगे।

रितेश ने पूछने पर सभी ने इस एक्सपीरिएन्स को बहुत ही अच्छा बताया और फिर मौका पड़ने पर मिलने का वादा किया।अमित और रितेश ने टोनी और मीना को स्टेशन छोड़ा, जबकि बॉस और दीपाली ने अश्वनी और सुहाना को स्टेशन छोड़ दिया।

अन्त में मैं, रितेश, नमिता और अमित भी बॉस से विदा होकर चलने लगे तो बॉस ने एक बार मुझे गले लगाया और मेरे गाल को चूमते हुए मुझे थैक्स कहा और कल शाम कलकत्ता जाने की बाद भी याद दिलाई। हम लोग घर पहुंचे, सास के हाथ का बना बढ़िया बढ़िया खाना खाया और थके होने के कारण जल्दी से सो गये।

सुबह उठ कर सब काम निपटाने के बाद मैं ऑफिस के लिये निकलने वाली ही थी कि डोर बेल बजी। दरवाजे खोलने पर सामने अभय सर खड़े थे, अन्दर बुलाकर उनका सबसे इन्ट्रोड्क्शन कराया। फिर अभय सर ने मुझे दो पैकेट दिया और सबसे दुआ सलाम करने के बाद यह कहते हुए चले गये कि शाम के जाने की तैयारी करो। आज ऑफिस से छुट्टी है।

मैं उनके जाते ही जैसे पैकेट खोलने वाली थी कि मोबाईल की रिंग बजी। अभय सर की कॉल ही थी, जैसे ही मैंने कॉल पिक की, अभय सर बोले एक पैकेट में 25000/- रू॰ और टिकट था, 25000/- रू॰ वो थे जो कलकत्ते में होने वाले खर्चे के लिये थे और दूसरा पैकेट तुम्हारा पर्सनल है, सबके सामने मत खोल देना। इतना कहकर उन्होंने फोन काट दिया। मैंने पैसे वाला पैकेट ससुर जी को पूरी बात बता कर पकड़ा दिया और दूसरा पैकेट लेकर अपने कमरे में आ गई। चूंकि पैकिंग हो चुकी थी, मैं अब इत्मीनान से थी कि मुझे कोई एक्सट्रा काम नहीं करना है।

रितेश अभी भी ऑफिस जाने के लिये तैयार हो रहा था, पैकेट देखकर पूछने लगा, मैंने उसे पूरी बात बताई, वो भी मेरे बगल में बैठ गया। हम दोनों ने उस पैकेट को खोला, पैकेट में पैन्टी और ब्रा के अलावा कुछ नहीं था, 5 सेट पैन्टी और ब्रा के थे और पांचों डिजाईनर थे। एक नेट की था, एक ट्रांसपेरेन्ट थी, एक तो केवल दो पत्तों से मिला कर बनाई गई थी और उसको इलास्टिक से जोड़ दिया गया था, वो केवल चूत को ढक सकती थी और पीछे वाली पत्ती तो मेरे गांड के छेद में छुप गई थी, रितेश के कहने पर मैं उसको पहन-पहन कर दिखा रही थी। जब सभी पैन्टी और ब्रा की ट्रॉयल हो गया तो,
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica मुझे लगी लगन लंड की

Post by kunal »

रितेश बोला- यार, अगर मैं तुम्हारे साथ जा रहा होता तो इस पैन्टी का कुछ यूज भी होता। पापा साथ जा रहे हैं तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाता।

मैंने उसकी नाक को कस कर पकड़ा और बोली- तुम जाते तो इसको पहनने का बिल्कुल भी मौका नहीं मिलता। पापा के साथ जाने से कम से कम में इसको पहन सकती हूँ।

मेरी इच्छा थी कि रितेश आज ऑफिस से छुट्टी ले ले और मेरे साथ रहे क्योंकि मेरा जिस्म बहुत दर्द कर रहा था, मैं चाहती थी कि रितेश मेरी मालिश भी कर दे।

पर रितेश बोला- यार, तुम्हारा बॉस तुम्हें चूत के बदले छुट्टी दे सकता है, पर मेरा बॉस भी मर्द है और मेरे पास लंड ही है। इसलिये मुझे छुट्टी नहीं मिल सकती।

कहकर वो अपने ऑफिस को चल दिया।

अब मैं लेटी-लेटी करवट बदलने लगी कि तभी सूरज आ गया। मैं लेटी हुई थी,

मेरा देवर मेरे बगल में बैठते हुए बोला- क्या हुआ भाभी, लेटी हुई क्यों हो?

मैं- 'कुछ नहीं, थोड़ी थकान जग रही है।'

वह बोला- भाभी, कहो तो तुम्हारे बदन की मसाज कर दूँ?

मैं- 'यार, मैं चाहती भी यही थी।'

मेरा इतना कहना ही था,

सूरज बोला- भाभी, तुम कपड़े उतार कर नंगी हो जाओ, मैं तेल लेकर आता हूँ!

कहकर वो ड्रेसिंग टेबिल से तेल की शीशी निकाल लाया, मैं भी जब तक कपड़े उतार कर नंगी होकर पेट के बल लेट गई। सूरज मेरी नंगी पीठ पर तेल की एक एक बूंद धीरे-धीरे से टपकाने लगा, फिर उसने अपने हाथ का कमाल मेरी पीठ पर दिखाने लगा, पीठ की मालिश करते हुए वो फिर मेरे चूतड़ों और जांघों की मालिश करने लगा, बीच-बीच में मेरे चूतड़ को चूची समझ कर बहुत तेज भींच देता था और चूतड़ों के बीच छेद में तेल की दो बूंद टपकाने के बाद अपनी एक उंगली उसके अंदर डाल कर मालिश करता। मेरे जिस्म को थोड़ा आराम मिल रहा था और सूरज जिस तरह से मेरी मालिश कर रहा था, वो भी आनन्द दे रहा था। जब सूरज ने मेरे जिस्म के पीछे की हिस्से की मालिश कर ली तो उसके कहने पर पलट गई।

एक बार फिर बड़ी मस्ती के साथ सूरज मेरी मालिश कर रहा था, वो मेरे चूची को अच्छे से दबाता, चूत और उसके आस पास की जगह भी वो बहुत ही बढ़िया मालिश कर रहा था। जब उसने अच्छे से मेरी मालिश कर दी तो,

सूरज बोला- भाभी, तुम्हारी झांटें बड़ी हो गई हैं, झांट तो बना लेती!

मैंने अलसाते हुए सूरज को बताया कि आज शाम को उसके पापा यानि मेरे ससुर के साथ कोलकाता जा रही हूँ और थोड़ा झूठ बोलते हुए कहा कि काम के वजह से झांट बनाने का मौका नहीं मिला।

सूरज मेरी बात को सुनने के बाद बोला- कोई बात नहीं भाभी, तुम नहा कर आ जाओ, मैं तुम्हारी चूत को अच्छे से चिकनी कर दूंगा।

सूरज के कहने पर मैं नहा ली और जब वापस कमरे में पहुंची तो सूरज वीट की क्रीम, कुछ कॉटन, एक मग में पानी और तौलिया लेकर मेरा इंतजार कर रहा था। सबसे मजे की बात तो यह थी कि सूरज ने जमीन पर एक चादर भी बिछा रखी थी, ताकि मैं आराम से लेट सकूं। मैं सीधी लेट गई, सूरज ने तुरन्त ही मेरी चूत पर और उसके आस पास जहां भी उसकी नजर में बाल के हल्के फुल्के रोंयें थे, वहां उसने क्रीम लगा दी और फिर मेरे पास आकर मेरे निप्पल से खेलने लगा। मैं आँखें बन्द करके उसकी हरकतों का मजा ले रही थी। सूरज कभी मेरे निप्पल को दबाता तो कभी चूचियों को मसलता। उसके ऐसा करते रहने के कारण मेरी बीच बीच में हल्की सी सीत्कार सी भी निकल जाती। करीब दस मिनट बीतने के बाद सूरज ने कॉटन लिया और मेरी चूत पर लगे क्रीम को साफ करने लगा। फिर थोड़ा और कॉटन को गीला करके और अच्छे से मेरी चूत साफ कर दी, आखिर में उसने तौलिये से मेरी चूत साफ की और,

फिर बोला- लो भाभी, तुम्हारी चूत फिर पहले जैसी चिकनी हो गई है।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica मुझे लगी लगन लंड की

Post by kunal »

मैंने हाथ लगा कर देखा तो वास्तव में चूत काफी चिकनी हो चुकी थी। मैंने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सूरज को अपना ईनाम लेने का ऑफर किया। पहले तो उसने मना किया, फिर बोला- आप आज ट्रेवल करोगी, इसलिये आज जाने दो। जब वापस आओगी तो अच्छे से लूंगा।

लेकिन मैं उसकी बात काटते हुए बोली- देखो, तुमने अभी मेरे साथ बहुत मेहनत की है और तुम अब अपनी मेहनत का फल ले लो।

मेरे बहुत कहने पर सूरज ने पलंग से दो तकिये उठाए और मेरी कमर के नीचे लगा दिया। हालांकि मेरी भी बहुत ज्यादा इच्छा नहीं थी और चाहती थी कि जिस पोजिशन में मैं लेटी हूँ, उसी पोजिशन में सूरज मुझे चोदे और सूरज ने मेरी कमर के नीचे दो तकिया लगा कर मेरे मन की बात कर दी थी। उसके बाद उसने अपने लंड को मेरी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा, थोड़ी देर तक वो मुझे उसी तरह चोदता रहा, उसके बाद वो मेरे ऊपर लेट गया, मेरे निप्पल को अपने मुंह में लेकर बारी बारी से चूसने लगा। वो इसी तरह कुछ देर तो चूत को चोदता और फिर थोड़ा रूककर मेरे निप्पल को चूसता। करीब पंद्रह-बीस मिनट तक तो इसी तरह से चोदता रहा, मैं झड़ चुकी थी, मेरे झड़ने के एक मिनट बाद ही सूरज भी झड़ गया और मेरे ऊपर निढाल होकर लेट गया। थोड़ी देर तक वो उसी तरह मेरे ऊपर लेटा रहा, फिर मेरे से अलग हुआ,

तो मैं उससे बोली- मैं तो सोच रही थी कि तुम अपनी मलाई मुझे चटाओगे लेकिन तुम तो मेरे अन्दर ही झड़ गये?

वो पास पड़े तौलिये को उठाकर मेरी चूत को साफ करते हुए बोला- आज मेरा मन अन्दर ही झड़ने का हो रहा था, इसलिये मैं तुम्हारे अन्दर झड़ गया।

मेरी चूत को तौलिये से साफ करने के बाद अपने लंड को भी साफ किया और फिर मेरे माथे को चूम कर चला गया। मैंने भी दरवाजे को बन्द किया और नंगी ही सो गई। मुझे हल्की सी हरारत लग रही थी, सोचा थोड़ी देर में दवा ले लूंगी, तभी रितेश भी ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी ले कर आगया।

लेकिन रितेश के आने के बाद और फिर ट्रेवल की तैयारी करने में पता ही नहीं चला कि मैंने दवा खाई नहीं है और स्टेशन चलने का वक्त भी आ गया था। इसी आपाथापी में हरारत का अहसास ही नहीं हुआ। मैं तैयार होकर नीचे आई तो देखा कि पापाजी जींस और सफेद टी-शर्ट पहने हुए थे और क्या डेशिंग लग रहे थे, क्लीन शेव्ड, छोटे-छोटे बाल, काला चश्मा लगा कर वो तो अपने तीनों लड़कों से यंग लग रहे थे। आज से पहले मैंने कभी पापाजी को इतने ध्यान से नहीं देखा था लेकिन आज देखने पर लग रहा था कि छः फ़ीट लम्बे मेरे ससुर जी तो जींस और सफेट टी-शर्ट में तो कयामत लग रहे थे।

खैर मुझे क्या! लेकिन दोस्तो, ऐसी कहानी मैं कभी नहीं चाहती थी जो मेरे साथ होने वाली थी और वो सिर्फ मेरी लापरवाही का नतीजा ही था जिससे इस कहानी का जन्म हुआ। हम लोग स्टेशन पहुंचे, थोड़ी देर में ही गाड़ी भी आ गई और मेरे बॉस अभय सर ने जिस बोगी में रिजर्वेशन कराया था, वो केबिन थी। उस केबिन में मुझे और मेरे ससुर को ही सफर करना था।

केबिन देखकर रितेश मुझसे बोला- मैं चूक गया, काश इस केबिन में पापा न होते, मैं होता तो कोलकाता तक का सफर बड़े मजे से कटता।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2708
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: Erotica मुझे लगी लगन लंड की

Post by kunal »

ट्रेन चलने तक मेरे और रितेश के बीच बातचीत होती रही लेकिन जब ट्रेन चली तो मैं सोचने लगी कि जब बॉस को मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जायेंगे तो फिर उन्होंने केबिन वाले कोच का रिजर्वेशन क्यों कराया। मैं इसी सोच विचार में थी और गाड़ी अपनी स्पीड पकड़ चुकी थी। ससुर जी ने शायद दो तीन बार आवाज दी होगी, लेकिन मैं सोच में डूबी हुई थी कि उनकी आवाज सुन ना सकी तो उन्होंने मुझे झकझोरते हुए पूछा कि मैं क्या सोच रही हूँ।

मैं बोली- कुछ नहीं।

फिर ससुर जी बोले- आकांक्षा, मैं बाहर जा रहा हूँ, तुम चाहो तो चेंज कर लो और फ्री हो जाओ।

मैं- 'कोई बात नहीं पापा जी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। हाँ मैं बाहर जाती हूँ, अगर आप चेंज करना चाहो तो कर लो।'

कहकर मैंने अपना मोबाईल उठाया और केबिन के बाहर आकर मैंने बॉस को कॉल मिलाई और,

मैंने उनसे पूछा- जब आपको मालूम था कि मेरे साथ मेरे ससुर जी भी जा रहे हैं तो आपने केबिन क्यों बुक कराया?

बॉस ने बताया कि मैंने राकेश को ऑप्शन दिया था कि जिसमें सीट खाली मिले, उसे बुक करा ले और उसने केबिन का रिजर्वेशन करा दिया।

मैं- 'राकेश॰॰॰ हम्म... अच्छा

और होटल के बारे में पूछने पर बताया कि लिफाफे में ही होटल का ऐड्रेस है, यह एक महीने पहले से ही बुक है। सुईट रूम है। इसलिये इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था।

इतना सुनना था कि मेरे मुंह से निकला- लौड़े के... जब होटल में सुईट रूम एक महीने पहले से बुक कराया था तो मुझे क्यों नहीं बताया?

बॉस को खरी-खोटी सुनाकर मैं केबिन में आ गई।

पापा जी कैपरी और वेस्ट में थे, मेरी कानी नजर उन पर पड़ी, क्या शरीर था उनका... किसी पहलवान से कम नहीं थे, क्या बड़े-बड़े बल्ले थे, चौड़ा सीना और सीने में घने-घने बाल! वो सामने वाली सीट पर लेटे हुए थे, मैं भी अपने को समेटते हुए लेट गई और बॉस ने जिस बन्दे (राकेश),का नाम लिया उसके बारे में सोचने लगी।

बड़ा ही हरामखोर था, साले का वजन भी 40 किलो से ज्यादा न था लेकिन हरामीपन में वो सभी को मात करता था। एक दिन उस हरामी ने मुझे अभय सर के साथ देख लिया, बस मेरे पीछे ही पड़ गया। जहां कभी भी मौका देखता, मेरे पिछवाड़े आकर अपना हाथ सेक लेता। हालांकि वो मेरा कुछ कर नहीं सकता था, लेकिन मैं उसे एवाईड कर देती थी। राकेश मेरे पिछवाड़े हाथ लगाने के अलावा कभी आगे नहीं बढ़ा। और ऑफ़िस में चूत चुदवाई की घटना याद आ गई, चूंकि वो हमारे ऑफिस का कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर देखता था और अकसर उससे काम पड़ जाता था। इसी में एक दिन उसे मौका लग गया।

हुआ यूं कि मुझे अपने हेड ऑफिस एक रिपोर्ट मेल करनी थी, रिपोर्ट मैं तैयार कर चुकी थी और बस मेल करने जा ही रही थी कि सिस्टम अपने आप ही ऑफ हो गया।
Post Reply