Thriller विक्षिप्त हत्यारा

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Masoom
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Thriller विक्षिप्त हत्यारा

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विक्षिप्त हत्यारा


Chapter 1
कॉल बैल की आवाज सुनकर सुनील ने फ्लैट का द्वार खोला ।
द्वार पर एक लगभग तीस साल की बेहद आकर्षक व्यक्तित्व वाली और सूरत से ही सम्पन्न दिखाई देने वाली महिला खड़ी थी ।
सुनील को देखकर वह मुस्कराई ।
“फरमाइये ।” - सुनील बोला ।
“मिस्टर सुनील ।” - महिला ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“मेरा ही नाम है ।” - सुनील बोला ।
“मैं आप ही से मिलने आई हूं, मिस्टर सुनील ।” - वह बोली ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया और फिर द्वार से एक ओर हटता हुआ बोला - “तशरीफ लाइये ।”
महिला भीतर प्रविष्ट हुई । सुनील के निर्देश पर वह एक सोफे पर बैठ गई ।
सुनील उसके सामने बैठ गया और बोला - “फरमाइये ।”
“मेरी नाम कावेरी है ।” - वह बोली ।
सुनील चुप रहा । वह उसके आगे बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“आप की सूरत से ऐसा नहीं मालूम होता जैसे आपने मुझे पहचाना हो ।”
“सूरत तो देखी हुई मालूम होती है” - सुनील खेदपूर्ण स्वर से बोला - “लेकिन याद नहीं आ रहा, मैंने आपको कहां देखा है ।”
“यूथ क्लब में ।” - कावेरी बोली - “जब तक मेरे पति जीवित थे, मैं यूथ क्लब में अक्सर आया करती थी ।”
“आपके पति...”
“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।” - कावेरी गर्वपूर्ण स्वर में बोली - “आपने उन का नाम तो सुना ही होगा ?”
“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल का नाम इस शहर में किसने नहीं सुना होगा !” - सुनील प्रभावित स्वर में बोला ।
रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल राजनगर के बहुत बड़े उद्योगपति थे और नगर के गिने-चुने धनाढ्य लोगों में से एक थे । सुनील उन्हें इसलिये जानता था, क्योंकि वे यूथ क्लब के फाउन्डर मेम्बर थे । यूथ क्लब की स्थापना में उनके सहयोग का बहुत बड़ा हाथ था । लगभग डेढ वर्ष पहले हृदय की गति रुक जाने की वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी । मृत्यु के समय उनकी आयु पचास साल से ऊपर थी ।
सुनील ने नये सिरे से अपने सामने बैठी महिला को सिर से पांव तक देखा और फिर सम्मानपूर्ण स्वर में बोला - “मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, मिसेज जायसवाल ?”
“मिस्टर सुनील” - कावेरी गम्भीर स्वर में बोली - “सेवा तो आप बहुत कर सकते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप वाकई मेरे लिये कुछ करेंगे ?”
“रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की पत्नी की कोई सेवा अगर मुझ से सम्भव होगी तो भला वह क्यों नहीं करूंगा मैं ?” - सुनील सहृदयतापूर्ण स्वर में बोला ।
“थैंक्यू, मिस्टर सुनील ।” - कावेरी बोली और चुप हो गई ।
सुनील उसके दुबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“शायद आपको मालूम होगा” - थोड़ी देर बाद कावेरी बोली - “कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की दूसरी पत्नी थी और उनकी मृत्यु से केवल तीन साल पहले मैंने उनसे विवाह किया था । अपनी पहली पत्नी से रायबहादुर साहब की एक बिन्दु नाम की लड़की थी जो इस समय लगभग सत्तरह साल की है और, मिस्टर सुनील, बिन्दु ने अर्थात मेरी सौतेली बेटी ने ही एक ऐसी समस्या पैदा कर दी है जिसकी वजह से मुझे आपके पास आना पड़ा है । आप ही मुझे एक ऐसे आदमी दिखाई दिये हैं जो एकाएक उत्पन्न हो गई समस्या में मेरी सहायता कर सकते हैं ।”
“समस्या क्या है ?”
“समस्या बताने से पहले मैं आपको थोड़ी-सी बैकग्राउन्ड बताना चाहती हूं ।” - कावेरी बोली - “मिस्टर सुनील, बिन्दु उन भारतीय लड़कियों में से है जो कुछ हमारे यहां की जलवायु की वजह से और कुछ हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण और किसी भी प्रकार के चिन्ता या परेशानी से मुक्त जीवन का अंग होने की वजह से आनन-फानन जवान हो जाती हैं । जब रायबहादुर साहब से मेरी शादी हुई थी उस समय बिन्दु एक छोटी-सी, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली बच्ची थी, फिर जवानी का ऐसा भारी हल्ला उस पर हुआ कि मेरे देखते-ही-देखते वह नन्ही, मासूम-सी, फ्रॉक पहनने वाली लड़की तो गायब हो गई और उसके स्थान पर मुझे एक जवानी के बोझ से लदी हुई बेहद उच्छृंखल, बेहद स्वछन्द, बेहद उन्मुक्त और बेहद सुन्दर युवती दिखाई देने लगी । सत्तरह साल की उम्र में ही वह तेईस-चौबीस की मालूम होती है । रायबहादुर के मरने से पहले तक वह बड़े अनुशासन में रहती थी क्योंकि रायबहादुर साहब के प्रभावशाली व्यक्तित्व की वजह से उसकी कोई गलत कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती थी लेकिन पिता की मृत्यु के फौरन बाद से ही वह शत-प्रतिशत स्वतन्त्र हो गई है और अब जो उसके जी में आता है, वह करती है ।”
“लेकिन आप... क्या आप उसे... आखिर आप भी तो उसकी मां हैं ?”
“जी हां । सौतेली मां । केवल दुनिया की निगाहों में । खुद उसने कभी मुझे इस रुतबे के काबिल नहीं समझा । जिस दिन मैंने रायबहादुर साहब की जिन्दगी में कदम रखा था, उसी दिन से बिन्दु को मुझ से इस हद तक तब अरुचि हो गई है कि उसने कभी मुझे अपनी मां के रूप में स्वीकार नहीं किया, कभी मुझे मां कहकर नहीं पुकारा ।”
“तो फिर वह क्या कहती है आपको ?”
“पहले तो वह सीधे मुझे नाम लेकर ही पुकारा करती थी लेकिन एक बार रायबहादुर साहब ने उसे मुझे नाम लेकर पुकारते सुन लिया तो उन्होंने उसे बहुत डांटा । उस दिन के बाद उसने मेरा नाम नहीं लिया लेकिन उसने मुझे मां कहकर भी नहीं पुकारा ।”
“तो फिर क्या कहकर पुकारती थी वह आपको ।”
“कुछ भी नहीं । वह मुझे से बात ही नहीं करती थी इसलिये मुझे कुछ कह कर पुकारने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी उसे । कभी मेरा जिक्र आ ही जाता था तो और लोगों की तरह वह भी मुझे मिसेज जायसवाल कह कर पुकारा करती थी । रायबहादुर साहब की मृत्यु के बाद से वह कभी-कभार घर पर आये अपने मित्रों के सामने मुझे ममी कह कर पुकारती है लेकिन इसमें उसका उद्देश्य अपने मित्रों के सामने मेरा मजाक उड़ाना ही होता है ।”
“लेकिन वह ऐसा करती क्यों है ?”
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Masoom
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“क्योंकि उसे मुझसे शुरू से घृणा है और इस घृणा की भावना की बुनियाद में मुख्य बात यही है कि वह एक करोड़पति की इकलौती बेटी है और मैं शादी से पहले एक पांच सौ रुपया महीना कमाने वाली डाक्टर थी । गलत किसम के लोगों ने उसके अपरिपक्व मस्तिष्क में यह बात ठोक-ठोक कर भर दी है कि मैंने रायबहादुर साहब को अपने रूप-जाल में फंसा कर उन्हें अपने साथ शादी करने के लिये मजबूर किया था । अर्थात मैंने उनकी दौलत की खातिर उनसे शादी की थी । रायबहादुर साहब दिल के मरीज थे और हर कोई जानता था कि वे किसी भी क्षण परलोक सिधार सकते थे । शादी के समय भी उनकी आयु लगभग पचास साल थी । पचास साल के दिल के मरीज रईस से जब कोई जवान लड़की शादी करेगी तो उसकी नीयत पर शक तो किया ही जायेगा, मिस्टर सुनील ।”
“जबकि वास्तव में ऐसी बात नहीं थी ?”
“कैसी बात ?”
“कि इस सिलसिले में आपकी नीयत खराब हो ! कि आपने रुपये की खातिर रायबहादुर साहब से विवाह किया हो !”
कावेरी ने कई क्षण उत्तर न दिया, फिर वह दृढ स्वर में बोली - “जी हां, इस विषय में मेरी नीयत खराब नहीं थी । मैंने दौलत की खातिर रायबहादुर साहब से विवाह नहीं किया था । मेरे हृदय में वाकई उनके लिये गहरे अनुराग की भावना पैदा हो गयी थी । एक बार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था तो वे इलाज के लिये उस नर्सिंग होम में भरती हुई थे जिससे मैं डाक्टर थी । बड़े डाक्टर ने उनकी देखभाल के लिये मुझे नियुक्त किया था । वे एक महीना अस्पताल में रहे थे और संयोगवश ही मेरी उनसे घनिष्टता हो गयी थी । एक महीने बाद वे नर्सिंग होम से विदा हो गये थे । उन्होंने मुझे बिन्दु के बारे में बताया था और यह भी बताया था कि इस संसार में उनका कोई दूर का रिश्तेदार भी नहीं था । अगर वे मर गये तो बिन्दु एकदम बेसहारा और अनाथ हो जायेगी । मिस्टर सुनील, दिलचस्प बात तो यह थी कि वे अपनी बेटी के भविष्य के प्रति बेहद चिंतित थे । उन्हें इस बात की भारी चिन्ता थी कि कहीं बिन्दु के जिम्मेदारी की उम्र में कदम रखने से पहले वे मर न जायें लेकिन अपने को जीवित रखने की दिशा में कोई प्रयास नहीं करते थे । हम डाक्टर एक दिल के मरीज से जिस प्रकार के संयम की अपेक्षा करते हैं, उसके वे कतई कायल नहीं थे । और नर्सिंग होम में वे अपनी मर्जी से तो आते ही थे । नर्सिंग होम तो उन्हें हमेशा एम्बूलैंस में डालकर लाया जाता था ।”
कावेरी एक क्षण रुकी और फिर बोली - “मिस्टर सुनील, वे आराम कतई नहीं करते थे । न अपने धन्धे में और न मनोरंजन में । जैसे दिन भर दफ्तर में कड़ी मेहनत करने के बाद वे शाम को क्लब में जाकर हर रोज शराब भी जरूर पीते थे और आधी रात तक ताश भी जरूर खेलते थे । खाना भी वे डटकर खाते थे । इस प्रकार की दिनचर्या वाले दिन के मरीज का अधिक दिनों तक जीवित रह पाना सम्भव नहीं होता । मुझे मालूम था कि वे बहुत जल्दी ही स्वर्ग सिधार जायेंगे ।”
“फिर भी आपने उनसे शादी की ?”
“जी हां ! क्योंकि वे मुझे बहुत मानते थे । मुझे विश्वास था कि अगर मुझे उनके जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेने का अवसर मिल जाये तो मैं उन्हें संयम का जीवन बिताने के लिये मजबूर कर दूंगी और फिर उन्हें जल्दी मरने नहीं दूंगी । रायबहादुर साहब से नर्सिंग होम के सम्पर्क के दौरान मेरे मन में यह भावना इतनी प्रबल हो उठी थी कि जब उन्होंने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो मैं इनकार न कर सकी । लेकिन मैंने उन पर यह शर्त जरूर ठोक दी थी कि अगर वे मुझसे शादी करेंगे तो उन्हें वैसे रहना होगा जैसे मैं उन्हें रखना चाहूंगी । उन्होंने मेरी शर्त झट स्वीकार कर ली । मिस्टर सुनील, एक भारी त्याग की भावना से ही मैंने उनसे विवाह किया था । उस वक्त यह तो मुझे सूझा ही नहीं था कि मेरे और उनके सम्बन्ध का गलत अर्थ भी लगाया जा सकता था । लोग मुझे गोल्डडिगर (Gold Digger) समझ सकते थे ।”
“आपकी देखभाल से रायबहादुर साहब के जीवन पर कुछ फर्क पड़ा ?”
“भारी । यह मेरा दुर्भाग्य था कि तीन साल बाद एकाएक उनके हृदय की गति रुक गई, वरना जिस हद तक संयम और सुधार मैं उनकी दिनचर्या में पैदा कर चुकी थी उससे ऐसा लगता नहीं था कि अब अगले कुछ वर्षों तक उन्हें कुछ ही पायेगा । उनके दिल की दशा बहुत सुधर गयी थी और सच पूछिये तो शादी के बाद के तीन साल भी वे इसीलिये जिये क्योंकि उन्हें संयम की जिन्दगी बिताने के लिये मजबूर किया गया था ।”
“समस्या क्या है ?” - सुनील वास्तविक विषय पर आने के उद्देश्य से बोला ।
“समस्या बिन्दु ही है ।”
“वह तो हुआ लेकिन, बिन्दु की वजह से ही सही, समस्या है क्या ?”
कावेरी कुछ क्षण तक यूं चुप रही जैसे समस्या बताने के लिये उ‍चत शब्द तलाश कर रही हो ।
सुनील धैर्यपूर्ण मुद्रा बनाये उनके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“रायबहादुर साहब की वसीयत के अनुसार” - अन्त में कावेरी बोली - “जब बिन्दु अट्ठारह साल की हो जायेगी तो ढेर सारी अचल सम्पत्ति के अतिरिक्त वह नकद पच्चीस लाख रुपये की स्वामिनी हो जायेगी और दुर्भाग्यवश यह बात राजनगर में हर किसी को मालूम है ।”
“दुर्भाग्यवश क्यों ?”
“क्योंकि बिन्दु एक साल में अट्ठारह साल की हो जायेगी और फिर वह स्वतन्त्र रूप से एक भारी सम्पत्ति की स्वामिनी होगी । उसको इस सम्पत्ति को किसी भी ढंग से बरबाद करने का पूरा अधिकार होगा । इसलिये बहुत-से गलत किस्म के लोग शहद पर मक्खियों की तरह उसके इर्द-गिर्द जमघट लगाये रहते हैं । बिन्दु इस बात से बड़ी प्रसन्न होती है कि वह इतने ढेर सारे लोगों के आकर्षण का केन्द्र है । वह खूबसूरत है, जवान है इसीलिये उसे अपनी जवानी और खूबसूरती की नुमायश करने का बहुत शौक हो गया है । उसमें अभी इतनी अक्ल तो है नहीं कि वह समझ सके कि लोग उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उसकी ओर आकर्षित नहीं होते बल्कि वे उसकी सम्पत्ति पर घात लगाये हुए हैं जिसकी कि वह एक साल बाद एकदम स्वतन्त्र स्वामिनी बनने वाली है । वह यह नहीं समझती कि राजनगर में वही एक अकेली खूबसूरत लड़की नहीं है । नगर में उससे भी अधिक खूबसूरत लड़कियां मौजूद हैं लेकिन उन लड़कियों के पीछे ज्यादा लोग ज्यादा देर तक इसीलिये नहीं पड़े रहते क्योंकि वे केवल सुन्दर ही हैं बिन्दु की तरह मूर्ख और भारी धन-सम्पत्ति की स्वामिनी बनने वाली नहीं हैं ।”
“इस विषय में आप ने बिन्दु को कभी समझाने की कोशिश नहीं की ?”
“एक बार की थी । उसने मुझे ऐसा जवाब दिया था कि इस विषय में दुबारा एक शब्द भी जुबान पर लाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई थी ।”
“क्या कहा था उसने ?”
“उसने कहा था कि क्योंकि मेरे अपने विचार बड़े नीच थे और क्योंकि खुद मैंने रायबहादुर साहब की दौलत हथियाने की खातिर उन्हें अने रूप-जाल में फांसा था इसलिये उस के सम्पर्क में आने वाला हर आदमी मुझे अपने जैसा ही नीच और दौलत का दीवाना मालूम होता था ।”
“ऐसी बातें वो साफ-साफ आपके सामने कह देती है ?”
“जी हां । नौकरों के सामने कह देती है । आखिर उसको मुझसे डरने की जरूरत क्या है ? जो दौलत उसे मिलने वाली है, उस पर तो मैं कोई बन्धन लगा नहीं सकती । मिस्टर सुनील, उसे तो मेरी सूरत देखना गंवारा नहीं है । मेरे साथ एक ही घर में मौजूद भी वह इसलिये है, क्योंकि रायबहादुर साहब वसीयत में यह शर्त लगा गये है कि ज‍ब तक बिन्दु का विवाह न हो जाये तब तक उसे मेरे साथ रहना पड़ेगा और अगर वह नहीं रहेगी तो उसे उनकी वसीयत में से एक धेला नहीं मिलेगा ।”
“आई सी !”
कावेरी चुप रही ।
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“और रायबहादुर साहब की वसीयत के अनुसार आपको क्या मिला है ?”
कावेरी कुछ क्षण हिचकिचाई और फिर बोली - “मेरे नाम भी रायबहादुर साहब अपनी ढेर सारी अचल सम्पत्त‍ि और लगभग पच्चीस लाख रुपया नकद छोड़ गये हैं ।”
“और बाकी सम्पत्ति ? रायबहादुर साहब के पास तो बहुत दौलत थी ।”
“बाकी सम्पत्ति का एक बहुत बड़ा भाग वे धर्मार्थ छोड़ गये हैं । और बाकी को उनके पुराने नौकरों में बांट दिया गया है ।”
“मेरे से आप किस सेवा की अपेक्षा कर रही हैं ?”
“वही बताने जा रही हूं ।” - कावेरी बोली - “मिस्टर सुनील, वैसे तो बिन्दु के पीछे हर वर्ग के और हर आयु के लोग घूमते हैं लेकिन पहले बिन्दु सब में समान रूप से दिलचस्पी लेती थी । अब एकाएक वह एक आदमी में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी है, इतनी ज्यादा कि उसने अपनी मित्रमंडली के अधिकतर सदस्यों को काटना आरम्भ कर दिया है ।”
“और वह आदमी कौन है ?”
“उसका नाम मुकुल है । मुकुल विदेशों में फैली हिप्पी कल्ट का शत-प्रतिशत भारतीय डुप्लीकेट है । हिप्पियों जैसा ही उसका पहनावा है, वैसे ही वह दाढी-मूंछ और बाल वगैरह रखता है, वैसे ही वह मैजेस्टिक सर्कल पर स्थ‍ित मैड हाउस नाम के एक रेस्टोरेन्ट में गिटार बजाता है और अंग्रेजी के गाने गाता है । मैड हाउस हिप्पियों का अड्डा है । नौजवान जोड़े आधी-आधी रात तक वहां नाचते-गाते रहते हैं ।”
“आप कभी वहां गई हैं ?”
“जी हां एक बार गई थी । मैं देखना चाहती थी कि जिस जगह की इतनी चर्चा होती होती थी और जहां से बिन्दु कभी रात के एक बजे से पहले लौटती नहीं थी, आखिर वह थी क्या बला ! मिस्टर सुनील, वह रेस्टोरेन्ट वाकई मैड हाउस है । ऐसी बेहूदा हरकतें होती है वहां, ऐसा गुल-गपाड़ा मचता है कि कोई नया आदमी तो वहां जाकर पागल हो जाये । कोई संभ्रांत व्यक्ति वहां जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता ।”
“आपने मुकुल को देखा ?”
“जी हां और इस बात की कल्पना मात्र से ही मेरा दिल दहल गया कि बिन्दु उस आदमी के बारे में इस हद तक गम्भीर थी कि उससे शादी करना चाहती थी ।”
“शादी !”
“जी हां । बिन्दु ने मुझे कुछ नहीं बताया है लेकिन मैंने और लोगों के मुंह से सुना है कि वह मुकुल नाम के उस देसी हिप्पी से शादी करना चाहती है । हे भगवान ! कैसा वीभत्स रूप था उसका ! पैंतीस साल से कम उसकी उम्र नहीं थी । उसने लम्बे-लम्बे बाल रखे हुए थे जो वह गरदन को झटका देता था तो उसके चेहरे पर आ गिरते थे । उसने गले में गिटार लटकाई हुई थी, वह गिटार बजा रहा था और गला फाड़-फाड़ कर भगवान जाने क्या गा रहा था ! मुझे तो उस आदमी से ऐसी अरुचि हुई कि मैं फौरन वहां से चली आई । अगले दिन मैंने बिन्दु से बात की ।”
“फिर ?”
“पहले तो वह इस विषय में कोई बात करने के लिये तैयार ही न हुई लेकिन जब मैंने उसे रायबहादुर साहब की इज्जत का वास्ता दिया तो वह बोली कि वह शीघ्र ही मुकुल से शादी करने वाली थी और उसके इस कृत्य से रायबहादुर साहब की इज्जत पर कोई आंच नहीं आने वाली थी । वह बोली कि मेरे जैसे लोगों को मुकुल इसलिये बुरा लगता था, क्योंकि हक आधुनिक सभ्यता से बहुत पिछड़े हुए लोग थे और आज की तेजरफ्तार जिन्दगी से कदम मिलाकर चल पाना हमारे बस की बात नहीं थी । मैंने खानदान की बात की तो उसने उसे एक पुराना, घिसा-पिटा और दकियानूसी विचार बताया । मैंने कहा कि मुकुल उससे उम्र में कम से कम पन्द्रह वर्ष बड़ा था तो वह‍ बोली कि रायबहादुर साहब भी तो मुझ से कम से कम बीस वर्ष बड़े थे फिर मैंने उन से शादी क्यों की ? मैंने कहा कि सम्भव था कि वह उस की दौलत हथियाने के लिये उससे शादी करना चाहता था । उत्तर में वह बड़े व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली कि मैं अपनी स्थिति भूले जा रही थी । मैंने भी तो रायबहादुर साहब की दौलत हथियाने के लिये ही शादी की थी । बोली, अव्वल तो ऐसी बात थी नहीं लेकिन अगर वास्तव में मुकुल ऐसा कर भी रहा था तो तकलीफ क्यों हो रही थी । मैंने पूछा कि वह मुकुल के बारे में क्या जानती थी तो वह बोली कि मुकुल के बारे में उसे कुछ जानने की जरूरत ही नहीं थी । कहने का मतलब यह है कि उस लड़की के पास हर बात का नपा-तुला जवाब मौजूद है । उस हिप्पी ने उस पर ऐसा जादू कर दिया है कि उसका कोइ उतार मुझे नहीं सूझ रहा है । उसका बिन्दु पर इतना अधिक प्रभाव है कि वह खुद भी अपने खूबसूरत शालीनतापूर्ण और कीमती परिधान उतार कर हिप्पियों जैसे बेहूदा और बेढंगे कपड़े पहनने लगी है ।”
कावेरी चुप हो गई ।
“मैडम” - सुनील धैर्यपूर्ण स्वर में बोला - “मैं दसवीं बार आप से यह सवाल पूछ रहा हूं कि मैं इस मामले में आपकी क्या सहायता कर सकता हूं ?”
“आप मुकुल के बारे में जानकारी हासिल करने में मेरी सहायता कर सकते हैं ।”
“क्या मतलब ?”
“देखिये, बिन्दु पर वह इस हद तक हावी हो चुका है कि उसके बारे में मैं बिन्दु की राय तो बदल नहीं सकती हूं लेकिन शायद मैं मुकुल को बिन्दु का पीछा छोड़ने के लिये मजबूर करने में सफल हो जाऊं ।”
“कैसे ?”
“मुकुल इस शहर का रहने वाला नहीं है । हाल ही में वह किसी अन्य शहर से राजनगर आया है ।”
“कहां से ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“फिर ?”
“उस आदमी की शक्ल-सूरत से मैं इतना तो अन्दाजा लगा ही सकती हूं कि वह किसी कुलीन परिवार का सदस्य नहीं है । मेरे दिमाग में एक आशंका पैदा हो रही है, या यह कह लीजिये कि एक आशा जाग रही है, कि शायद वह कोई जरायमपेशा आदमी हो । शायद वह किसी अन्य शहर में ऐसा कोई बखेड़ा कर बैठा हो कि उसे वहां से भागना पड़ा हो । शायद आज भी पुलिस को उस की तलाश हो । उसका हिप्पियों वाला पहरावा देखकर न जाने क्यों मुझे ऐस लगता है जैसे वह वास्तव में हिप्पी बनने का शौकीन नहीं बल्कि अपना रूप बदलने के लिये ऐसा स्वांग भर रहा है ।”
“आप का ऐसा सोचने का कोई आधार तो होगा ?”
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“आधार कोई विशेष नहीं है लेकिन मेरा दिल कहता है कि जो मैं सोच रही हूं वह सच हो सकता है । जिस घटना से मेरे मन में यह विचार पनपा था, वह मैं आप को सुनाती हूं ।”
“सुनाइये ।”
“एक बार बिन्दु मुकुल को कोठी पर अपने साथ लाई थी और मैंने छुप कर मुकुल को स्टडी करने का प्रयत्न किया था । उसके कुछ ऐसे ऐक्शन मैंने नोट किये थे जो मुझे हिप्पियों के स्वभाव से मेल खाते दिखाई नहीं दिये थे ।”
“जैसे ?”
“वह अपने हिप्पियों वाले बेढंगे परिधान में ही कोठी में आया था और नंगे पांव था । उसके पांव मिट्टी से अटे हुए थे । जब वह ड्राईंग रूम मे प्रविष्ट होने लगा था तो उसने पायदान पर अच्छी तरह रगड़कर अपने पांव साफ किये थे और फिर भीतर प्रविष्ट हुआ था । एक आदमी, जो अपनी फिजिकल अपीयरेंस, पहरावे इत्यादि के प्रति हिप्पियों जितना उदासीन हो, वह भला इस बात की परवाह क्यों करेगा कि उसके मिट्टी से सने पैरों से ड्राईंग रूम में बिछा कीमती कालीन खराब हो जायेगा । फिर मैंने उसे ड्राईंग रूम में अकेले बैठे देखा । वह ड्राईंग रूम में रखी हर चीज को बड़ी प्रशंसात्मक और लालसाभरी निगाहों से देख रहा था । फिर उसने खुद अपने आप पर दृष्टि डाली थी और अपनी बेढंगी उगी दाढी और लम्बे, रूखे बालों को यूं खुजलाया था जैसे उसे अपने आप से भारी विरक्ति हो रही हो । मिस्टर सुनील, उस समय मेरे मन में यह विचार घर कर गया था कि यह आदमी अपनी नेचर की वजह से हिप्पी नहीं था बल्कि किसी मजबूरी की वजह से उस रूप को मेकअप की तरह इस्तेमाल कर रहा था ।”
“शायद आपकी बात सच हो । मैं तो मनोविज्ञान को कोई विशेष समझता नहीं हूं ।”
“लेकिन मुझे दिन-ब-दिन विश्वास होता जा रहा है कि उस आदमी के बारे में जो मैंने सोचा है, वह सच है ।”
“खैर, अगर मान भी लिया जाये कि मुकुल कोई पुराना अपराधी है तो फिर आप क्या करेंगी ?”
“फिर तो काम बड़ा आसान हो जायेगा । फिर तो मैं उसे सीधे-सीधे धमका सकती हूं कि वह बिन्दु का पीछा छोड़ दे वरना मैं पुलिस को उसकी खबर कर दूंगी ।”
“आप उसे ब्लैकमेल करेंगी ?”
“क्या हर्ज है ? मिस्टर सुनील, मैं अपने मृत पति के प्रति यह अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझती हूं कि मैं बिन्दु को गुमराह होने से बचाऊं । बिन्दु ने मुझे कभी मां नहीं माना लेकिन मैंने उसे हमेशा अपनी बेटी माना है । बिन्दु जिस रास्ते पर जा रही है, उसकी ओर से मैं अपनी आंखें बन्द नहीं कर सकती । किसी-न-किसी प्रकार मैंने बिन्दु को बरबाद होने से बचाना ही है । इस सन्दर्भ में धमकी और ब्लैकमेल तो बड़े मामूली काम हैं ।”
“लेकिन अगर वह आप की धमकी में न आया और उसने बिन्दु से शादी कर ली और उसे लेकर भाग गया तो ?”
“बिन्दु अभी नाबालिग है । वह मेरी मर्जी के बिना उससे शादी नहीं कर सकती । अगर वह बिन्दु को लेकर भागा तो मैं एक नाबालिग लड़की को बरगलाने और उसका अगवा करने के अपराध में उसे गिरफ्तार करवा दूंगी । एक बार वह पुलिस के चक्कर में आ गया तो इस बात का मैं पूरा इन्तजाम करवा दूंगी कि वह उसी में फंसा रहे । मिस्टर सुनील, दोहराने की जरूरत नहीं कि मैं रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की विधवा हूं और इस नगर में रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल के प्रभाव से पुलिस भी बरी नहीं था । मेरी सहायता करना पुलिस अपने लिये सम्मान का विषय समझेगी और यह बात मैंने गर्वोक्ति के रूप में नहीं, केवल आप पर अपनी सामर्थ्य प्रकट करने के लिये कही है ।”
“अगर ऐसी बात है तो आप सीधे पुलिस से ही सहायता का अपील क्यों नहीं करती । पुलिस मुकुल के पिछले जीवन के बखिये ज्यादा अच्छी तरह उधेड़ सकती है ।”
“नहीं ।” - कावेरी नकारात्मक ढंग से सिर हिलाती हुई बोली - “उससे तो बहुत गड़बड़ हो जायेगी । अगर मैंने ऐसा किया और बिन्दु को इसकी खबर हो गई तो वह तूफान खड़ा कर देगी और फिर मेरे और उसके बीच में उत्पन्न हो चुकी घृणा की खाई और चौड़ी हो जायेगी । मैं मुकुल के बारे में एकदम गुप्त रूप से जानकारी हासिल करना चाहती हूं इसीलिये मैं आपके पास आई हूं । मिस्टर सुनील, यह बड़ा नाजुक मामला है । इसे बड़े नाजुक ढंग से हैण्डल करना बहुत जरूरी है ।”
“लेकिन अगर मुकुल आपके सन्देह के अनुसार जरायमपेशा आदमी न निकला तो ?”
“तो फिर मैं उसे रुपये से खरीदने की कोशिश करूंगी । बिन्दु की दौलत के लिये उसे इन्तजार करना पड़ेगा जबकि मैं उसे बिन्दु की दौलत के लिये उसे इन्तजार करना पड़ेगा जबकि मैं उसे बिन्दु का पीछा छोड़ने के लिये तत्काल एक मोटी रकम अदा कर सकती हूं ।”
“अगर आप उसे न खरीद पाईं तो ?”
“क्यों नहीं खरीद पाऊंगी ?”
“शायद वह इसलिये बिकने के लिये तैयार न हो क्योंकि शायद वह बिन्दु से सच्ची मुहब्बत करता हो !”
“फिर तो समस्या ही खत्म हो जायेगी । अगर ऐसा हुआ तो मैं खुद बड़ी खुशी से बिन्दु की शादी उससे कर दूंगी । फिर भला मुझे क्या एतराज होगा ! मिस्टर सुनील, आखिर मैं बिन्दु की दुश्मन तो नहीं । मैं तो केवल गलत किस्म के धनलोलुप व्यक्तियों से उसकी रक्षा करना चाहती हूं । मैं तो मुकुल के इसलिये खिलाफ हूं क्योंकि वह मुझे बिन्दु के प्रति कतई ईमानदार दिखाई नहीं देता । अगर मेरा ख्याल गलत है तो फिर मैं भला उनके रास्ते में रोड़े क्यों अटकाऊंगी ?”
“मैं आपकी बात समझ गया” - सुनील बोला - “मैं मुकुल के बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश करूंगा ।”
“शुरुआत कब से करेंगे आप ?” - कावेरी ने पूछा ।
“अभी से । इसी क्षण से ।” - सुनील घड़ी पर दृष्टिपात करता हुआ बोला । रात के आठ बजने को थे ।
“ओके दैन ।” - कावेरी उठती हुई बोली - “फिर मैं आपका वक्त बरबाद नहीं करूंगी ।”
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
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Masoom
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Re: विक्षिप्त हत्यारा

Post by Masoom »

कावेरी ने पर्स खोला और एक विजिटिंग कार्ड सुनील की ओर बढा दिया - “यह मेरा कार्ड है । इस पर मेरी कोठी का पता और टेलीफोन नम्बर लिखा है । इसे रख लो । काम आयेगा ।”
सुनील ने कार्ड लेकर जेब में रख लिया ।
“और यह भी रख लो ।”
सुनील ने देखा कावेरी उसकी ओर नोटों की एक मोटी गड्डी बढा रही थी ।
“इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, मिसेज जायसवाल ।” - सुनील मुस्करा कर बोला ।
“लेकिन...”
“वाकई इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, मिसेज जायसवाल । रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल के यूथ क्लब पर बहुत अहसान हैं । मुझे आप से किसी काम के बदले में धन स्वीकार करने में बहुत शर्म आयेगी, विशेष रूप से ऐसे काम के लिये जिस में कुछ खर्च होने वाला नहीं है ।”
कावेरी हिचकिचाई ।
“मैं आपसे गलत नहीं कह रहा हूं, मिसेज जायसवाल ।”
कावेरी ने नोट वापिस पर्स में रख लिये ।
“आल राइट ।” - वह बोली - “कोई जानकारी हासिल हो तो सूचित करना ।”
“जरूर करूंगा ।”
कावेरी मुस्काई और फिर लम्बे डग भरती हुई फ्लैट से बाहर निकल गई ।
***
सुनील ने अपनी मोटरसाइकल मैजेस्टिक सर्कल की पार्किंग में खड़ी की और फिर चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।
मैड हाउस नाम का रेस्टोरेन्ट एक बहुत लम्बी-चौड़ी पांच मंजिली इमारत की बेसमेंट में था । वह इमारत लिबर्टी बिल्डिंग के नाम से प्रसिद्ध थी । मैड हाउस के अतिरिक्त उसमें लिबर्टी नाम का एक सिनेमा था, एक बैंक था, कोलाबा नाम का एक और रेस्टोरेन्ट था, कुछ बड़े-बड़े दफ्तर थे, कुछ रिहायशी फ्लैट थे और सारी पांचवी मंजिल पर एक बहुत ऊंचे दर्जे की नाइट क्लब थी ।
सुनील मैड हाउस की ओर बढा ।
एकदम फुटपाथ पर ही मैड हाउस में प्रविष्ट होने का दरवाजा था । दरवाजे पर से ही बेसमेन्ट में ले जाने वाली घुमावदार सीढियां आरम्भ हो जाती थीं । दरवाजे की बगल की दीवार पर एक छोटा-सा नियोन-साइन चमक रहा था जिस पर लिखा था -
मैड हाउस डिस्कोथेक
MAD HOUSE DISCOTHEQUE
द्वार पर एक लोहे का जालीदार जंगला लगा हुआ था जिसके सामने एक वर्दीधारी गेटकीपर खड़ा था ।
विदेशी हिप्पियों का का एक जोड़ा एक-दूसरे की बगल में बांह डाले सुनील की बगल में से गुजर गया और लोहे का जंगला ठेलकर मैड हाउस की सीढियां उतर गया ।
सुनील उनके पीछे बढा ।
दरवाजे पर खड़े वर्दीधारी गेटकीपर ने हाथ बढाकर उसे रोक दिया ।
“सॉरी सर ।” -वह बोला ।
सुनील ने उसे घूरकर देखा और फिर बोला - “मतलब ?”
“पार्टनर के बिना अन्दर जाने की आज्ञा नहीं है ।”
“पार्टनर का क्या मतलब ?”
“कोई मेम साहब साथ लेकर आइये । आप अकेले अन्दर नहीं जा सकते । यह यहां का नियम है ।”
“लेकिन ऐसा कोई नियम बनाने का तुम्हें कोई हक नहीं है । यह एक रेस्टोरेन्ट है और इसमें हर कोई जा सकता है ।” - सुनील जोर से बोला ।
“सॉरी, मैं आपको नहीं जाने दे सकता । मैं केवल गेटकीपर हूं । मुझे आदेश है कि पीक-आवर्स में मैं अकेले आदमी की अन्दर न जाने दूं । अगर आपको कोई शिकायत है तो शिकायत मैनेजर से कीजिए ।”
“मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूं ।”
“मैनेजर थोड़ी देर बाद बाहर आयेगा । उससे बात कर लीजिएगा ।”
“मैं उससे अभी मिलना चाहता हूं ।”
“सॉरी । मैं गेट छोड़कर उसे अन्दर बुलाने नहीं जा सकता ।”
“तो मुझे अन्दर उसके पास जाने दो ।”
“सॉरी ।”
सुनील ने जबरदस्ती भीतर घुसने का प्रयत्न किया लेकिन गेटकीपर ने बड़ी सफाई से बिना किसी विशेष उपक्रम के उसे एक ओर धकेल दिया । वह बहुत शक्तिशाली था ।
उसी समय एक सिख युवक सीढियां चढकर ऊपर आया ।
“क्या बात ?” - उसने गेटकीपर से पूछा ।
“ये साहब जबरदस्ती भीतर घुसना चाहते हैं ।” - गेटकीपर बोला ।
“डोंट मेक ए सीन, मिस्टर ।” - सिख युवक बोला - “भीतर जगह नहीं है ।”
“और अगर मेरे साथ कोई लड़की होती तो भीतर जगह हो जाती ?”
“तब तुम्हारे लिये जगह बनाने की कोशिश की जाती ।”
“तुम मैनेजर हो ?”
“हां ।”
“तुम ऐसे किसी को भीतर जाने से नहीं रोक सकते ।”
“हां, शायद ।” - वह उदासीन स्वर में बोला ।
“मैं ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं । मैं तुम लोगों का पुलन्दा बान्ध दूंगा ।”
“क्या बान्ध दोगे ?”
“ऐसी तैसी कर दूंगा ।”
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