दरवाजा बंद करके वह अभी पलटी ही थी कि एकाएक फ्लैट की कॉलबेल बजी।
शायद जतिन आ पहुंचा था।
यह सोचकर वह सिहर गई कि अगर सहगल ने वहां से जाने में जरा सी भी देर कर दी होती तो आज निश्चित रूप से उसका भांडा फूट गया होता।
शुक्र था कि ऐसा नहीं हुआ था।
उसने निःश्वास छोड़ी और फिर वह पुनः फ्लैट के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गई।
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Thriller कांटा
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Re: Thriller कांटा
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: Thriller कांटा
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Re: Thriller कांटा
excellent update brother
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Re: Thriller कांटा
श्मशान घाट में धूं-धूंकर चिता जल रही थी। वह जानकी लाल की चिता थी।
उसकी लाश का पोस्टमार्टम कल दोपहर बाद हो गया था और शाम से पहले ही लाश उसकी बेटी रीनी और दामाद संदीप को सौंप दी गई थी।
उस वक्त सूर्यास्त नहीं हुआ था और अंतिम संस्कार किया जा सकता था। लेकिन महज अंतिम दर्शन के लिए आने वालों की वजह से अंतिम संस्कार को अगले रोज तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।
और कितनी मजे की बात थी शहर की इतनी बड़ी शख्सियत के अंतिम दर्शनों के लिए चुनिंदा लोगों को छोड़कर और कोई भी नहीं आया। उन चुनिंदा लोगों में भी ज्यादातर उसकी कम्पनी से जुड़े लोग थे उसके एम्प्लाई थे, जो उससे तनख्वाह पाते थे।
बाहर के लोगों में जो जिक्र के काबिल लोग थे, वह संदीप के मां-बाप थे, जो कि जानकी लाल के रिश्तेदार थे। यह अलग बात थी कि अपनी जिंदगी में जानकी लाल ने जिन्हें रत्ती भर भाव नहीं दिया था और कभी उन्हें अपना रिश्तेदार नहीं माना था, दूसरी जिक्र के काबिल जो शख्सियत वहां पहुंची थी, वह हैरानी की बात थी कि नैना चौधरी थी। तीसरी जानकी लाल की सौतेली बेटी कोमल थी। चौथा शख्स सुमेश सहगल था। अजय और जतिन भी वहां रात तक मौजूद रहे थे।
कितनी अजीब बात थी, जानकी लाल के अंतिम दर्शनों के लिए जितने भी लोग उमड़े थे, उनमें से ऐसा एक भी नहीं था, जिसे कि सही मायने में उसकी मौत का अफसोस होता। बल्कि ये वह लोग थे जिन्होंने उसकी मौत पर जश्न मनाया था और एकजुट होकर उसकी मौत का सामान किया था।
उसकी मौत का अगर सही मायने में किसी को अफसोस था तो वह रीनी थी जानकी लाल की अपनी बेटी रीनी। जिसका कि रो-रोकर बुरा हाल हो गया था और जो सारी रात रोती रही थी।
फिर उनमें से लगभग ज्यादातर लोग श्मशान घाट भी पहुंचे थे और उस वक्त भी धूं-धूकर जलती चिता के सामने मौजूद थे।
उसकी चिता को संदीप ने आग दी थी उस संदीप ने जिससे जानकी लाल बेपनाह नफरत करता था।
फिर चिता की लपटें ठंडी होने लगी थीं। और लोग अपने घरों को जाने लगे। सबसे अंत में वहां से जाने वाला शख्स अजय था।
वह अजय, जो कि जानकी लाल से नफरत करने वालों की लिस्ट में शामिल था, जो हर पल उसकी मौत की कामना करता आया था। और जिसने केवल एक मकसद के तहत उसकी कंपनी में नौकरी की थी। असल में तो उसे जानकी लाल की मौत पर खुश होना चाहिए था जश्न मनाना चाहिए था। लेकिन नामालूम क्यों वह तब खुश नहीं हो सका था। फिर भी आज वह अपने आपको काफी हल्का महसूस कर रहा था, जैसे कि बरसों से सीने पर रखा कोई भारी बोझ उतर गया हो, अंदर एक धधकता ज्वालामुखी शांत हो गया हो।
आखिरकार वह घूमा और अपने पीछे भड़कते शोलों को छोड़कर आगे बढ़ गया।
पार्किंग में उसकी कार मौजूद थी। वह अपनी कार के करीब पहुंचा तो वहां अपनी कार को उसने बिल्कुल अकेले मौजूद पाया। केवल वही एक इकलौती कार वहां खड़ी थी। यह तब साफ था उसके अलावा बाकी तमाम लोग वहां से जा चुके थे। मगर फिर भी उसकी कार वहां बिल्कुल ही अकेली नहीं थी।
कार के अंदर कोई मौजूद था। जिसे अजय ने फौरन पहचान लिया था और उसे पहचानते ही वह हौले से चौंक पड़ा था। वह सुगंधा थी।
सुगंधा।
जो उसी की राह देख रही थी।
अजय के होंठों से एक ठंडी सांस निकल गई।
वह ड्राइविंग डोर खोलकर सुगंधा की बगल में ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसने देखा सुगंधा ने उस वक्त दूधिया सफेद जींस और उसी रंग की टॉप पहन रखी थी। यहां तक कि उसने जो स्पोर्ट्स
शू पहन रखे थे, वह भी बेदाग सफेद थे। खुद उसकी रंगत भी तो बर्फ जैसी ही सफेद थी।
अजय ने आज पहली बार उसे नख से शिख तक सफेद परिधान में लिपटे देखा था। शायद वह मौके की नजाकत भांपकर ही वहां आई थी। मगर उस लिबास में भी वह बला की हसीन लग रही थी।
अजय के होंठों से बेसाख्ता आह निकल गई।
अगर सुगंधा ने सफेद जींस टॉप के बजाए सफेद सलवार सूट पहन रखा होता और सफेद दुपट्टा ओढ़ रखा होता तो शायद वह और भी ज्यादा हसीन लगती।
___ एकदम आलोका की तरह। नहीं। शायद उससे जरा सी कम।
"हल्लो अजय।” तभी सुगंधा बोली “ऑय एम सॉरी।"
“स...सॉरी किसलिए?” अजय ने गरदन घुमाकर उसे देखा।
“मुझे शायद यहां नहीं आना चाहिए था पर मैं खुद को रोक नहीं पाई।"
“हूं।” उसने तनिक संजीदगी से हुंकार भरी, फिर बोला “मेरे ख्याल से हमें यहां से चलना चाहिए।"
सुगंधा ने सहमति में सिर हिला दिया।
अजय ने स्टार्ट करके कार को बैक किया, फिर धीरे-धीरे चलाता हुआ सड़क पर ले आया।
“यहां तक कैसे आई?” कार जब सड़क पर पहुंच गई तो अजय ने गियर बदलते हुए सुंगधा से पूछा।
“अपनी स्कूटी से।”
“स्कूटी कहां है?"
“एक सहेली को साथ लाई थी, वह स्कूटी वापस ले गई।"
“तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था सुगंधा।"
"मुझे मालूम है। लेकिन कहा न, मैं खुद को रोक नहीं सकी। मुझे ल...लगा कि दुख की इस घड़ी में...।"
+
“दुख.... । दुख कहां है?" उसने झटके से चेहरा घुमाया। और एक हैरानी भरी निगाह सुगंधा पर डालकर पुनः सामने देखने लगा।
“अ...अजय।” सुगंधा असहाय भाव से गरदन हिलाती हुई बोली “माई लाइफ, माई लव, मौत चाहे अपने की हो या बेगाने की, वह हमेशा दुख का विषय होती है।"
“मुझे फिलास्फी नहीं चाहिए।” वह अपलक विंडस्क्रीन को देखता हुआ बोला।
उसकी लाश का पोस्टमार्टम कल दोपहर बाद हो गया था और शाम से पहले ही लाश उसकी बेटी रीनी और दामाद संदीप को सौंप दी गई थी।
उस वक्त सूर्यास्त नहीं हुआ था और अंतिम संस्कार किया जा सकता था। लेकिन महज अंतिम दर्शन के लिए आने वालों की वजह से अंतिम संस्कार को अगले रोज तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।
और कितनी मजे की बात थी शहर की इतनी बड़ी शख्सियत के अंतिम दर्शनों के लिए चुनिंदा लोगों को छोड़कर और कोई भी नहीं आया। उन चुनिंदा लोगों में भी ज्यादातर उसकी कम्पनी से जुड़े लोग थे उसके एम्प्लाई थे, जो उससे तनख्वाह पाते थे।
बाहर के लोगों में जो जिक्र के काबिल लोग थे, वह संदीप के मां-बाप थे, जो कि जानकी लाल के रिश्तेदार थे। यह अलग बात थी कि अपनी जिंदगी में जानकी लाल ने जिन्हें रत्ती भर भाव नहीं दिया था और कभी उन्हें अपना रिश्तेदार नहीं माना था, दूसरी जिक्र के काबिल जो शख्सियत वहां पहुंची थी, वह हैरानी की बात थी कि नैना चौधरी थी। तीसरी जानकी लाल की सौतेली बेटी कोमल थी। चौथा शख्स सुमेश सहगल था। अजय और जतिन भी वहां रात तक मौजूद रहे थे।
कितनी अजीब बात थी, जानकी लाल के अंतिम दर्शनों के लिए जितने भी लोग उमड़े थे, उनमें से ऐसा एक भी नहीं था, जिसे कि सही मायने में उसकी मौत का अफसोस होता। बल्कि ये वह लोग थे जिन्होंने उसकी मौत पर जश्न मनाया था और एकजुट होकर उसकी मौत का सामान किया था।
उसकी मौत का अगर सही मायने में किसी को अफसोस था तो वह रीनी थी जानकी लाल की अपनी बेटी रीनी। जिसका कि रो-रोकर बुरा हाल हो गया था और जो सारी रात रोती रही थी।
फिर उनमें से लगभग ज्यादातर लोग श्मशान घाट भी पहुंचे थे और उस वक्त भी धूं-धूकर जलती चिता के सामने मौजूद थे।
उसकी चिता को संदीप ने आग दी थी उस संदीप ने जिससे जानकी लाल बेपनाह नफरत करता था।
फिर चिता की लपटें ठंडी होने लगी थीं। और लोग अपने घरों को जाने लगे। सबसे अंत में वहां से जाने वाला शख्स अजय था।
वह अजय, जो कि जानकी लाल से नफरत करने वालों की लिस्ट में शामिल था, जो हर पल उसकी मौत की कामना करता आया था। और जिसने केवल एक मकसद के तहत उसकी कंपनी में नौकरी की थी। असल में तो उसे जानकी लाल की मौत पर खुश होना चाहिए था जश्न मनाना चाहिए था। लेकिन नामालूम क्यों वह तब खुश नहीं हो सका था। फिर भी आज वह अपने आपको काफी हल्का महसूस कर रहा था, जैसे कि बरसों से सीने पर रखा कोई भारी बोझ उतर गया हो, अंदर एक धधकता ज्वालामुखी शांत हो गया हो।
आखिरकार वह घूमा और अपने पीछे भड़कते शोलों को छोड़कर आगे बढ़ गया।
पार्किंग में उसकी कार मौजूद थी। वह अपनी कार के करीब पहुंचा तो वहां अपनी कार को उसने बिल्कुल अकेले मौजूद पाया। केवल वही एक इकलौती कार वहां खड़ी थी। यह तब साफ था उसके अलावा बाकी तमाम लोग वहां से जा चुके थे। मगर फिर भी उसकी कार वहां बिल्कुल ही अकेली नहीं थी।
कार के अंदर कोई मौजूद था। जिसे अजय ने फौरन पहचान लिया था और उसे पहचानते ही वह हौले से चौंक पड़ा था। वह सुगंधा थी।
सुगंधा।
जो उसी की राह देख रही थी।
अजय के होंठों से एक ठंडी सांस निकल गई।
वह ड्राइविंग डोर खोलकर सुगंधा की बगल में ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।
उसने देखा सुगंधा ने उस वक्त दूधिया सफेद जींस और उसी रंग की टॉप पहन रखी थी। यहां तक कि उसने जो स्पोर्ट्स
शू पहन रखे थे, वह भी बेदाग सफेद थे। खुद उसकी रंगत भी तो बर्फ जैसी ही सफेद थी।
अजय ने आज पहली बार उसे नख से शिख तक सफेद परिधान में लिपटे देखा था। शायद वह मौके की नजाकत भांपकर ही वहां आई थी। मगर उस लिबास में भी वह बला की हसीन लग रही थी।
अजय के होंठों से बेसाख्ता आह निकल गई।
अगर सुगंधा ने सफेद जींस टॉप के बजाए सफेद सलवार सूट पहन रखा होता और सफेद दुपट्टा ओढ़ रखा होता तो शायद वह और भी ज्यादा हसीन लगती।
___ एकदम आलोका की तरह। नहीं। शायद उससे जरा सी कम।
"हल्लो अजय।” तभी सुगंधा बोली “ऑय एम सॉरी।"
“स...सॉरी किसलिए?” अजय ने गरदन घुमाकर उसे देखा।
“मुझे शायद यहां नहीं आना चाहिए था पर मैं खुद को रोक नहीं पाई।"
“हूं।” उसने तनिक संजीदगी से हुंकार भरी, फिर बोला “मेरे ख्याल से हमें यहां से चलना चाहिए।"
सुगंधा ने सहमति में सिर हिला दिया।
अजय ने स्टार्ट करके कार को बैक किया, फिर धीरे-धीरे चलाता हुआ सड़क पर ले आया।
“यहां तक कैसे आई?” कार जब सड़क पर पहुंच गई तो अजय ने गियर बदलते हुए सुंगधा से पूछा।
“अपनी स्कूटी से।”
“स्कूटी कहां है?"
“एक सहेली को साथ लाई थी, वह स्कूटी वापस ले गई।"
“तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था सुगंधा।"
"मुझे मालूम है। लेकिन कहा न, मैं खुद को रोक नहीं सकी। मुझे ल...लगा कि दुख की इस घड़ी में...।"
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“दुख.... । दुख कहां है?" उसने झटके से चेहरा घुमाया। और एक हैरानी भरी निगाह सुगंधा पर डालकर पुनः सामने देखने लगा।
“अ...अजय।” सुगंधा असहाय भाव से गरदन हिलाती हुई बोली “माई लाइफ, माई लव, मौत चाहे अपने की हो या बेगाने की, वह हमेशा दुख का विषय होती है।"
“मुझे फिलास्फी नहीं चाहिए।” वह अपलक विंडस्क्रीन को देखता हुआ बोला।
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Re: Thriller कांटा
“मैं भी फिलास्फर नहीं हूं। दरअसल मेरा मतलब कुछ और ही है।”
“क्या क्या मतलब है तुम्हारा?"
“मैं तुम्हारे लिए बहुत फिक्रमंद हूं।" "क्यों फिक्रमंद हो तुम मेरे लिए?"
“क्योंकि तुम्हारी जिंदगी किसी रहस्य से कम नहीं है। बेइंतहा नफरत करते थे तुम अपने बॉस जानकी लाल से और शायद एक मकसद को लेकर ही तुम दिल्ली आए थे। और जो कि आज..."
वह एक क्षण को ठिठकी फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “पूरा हो गया। वह इंसान दुनिया से उठ गया, जिससे तुम बेइंतहा नफरत करते थे और शायद जिसकी तबाही का मकसद लेकर ही तुम यहां आए थे।"
"इसमें फिक्रमंद होने की क्या बात है?"
“क्योंकि वह इंसान अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरा।” सुगंधा ने बताया “उसे कत्ल किया गया, जिसकी सजा या तो फांसी होती है या फिर उम्रकैद।"
“और तुम्हारा ख्याल है कि यह सजा मुझे मिलने वाली है, क्योंकि जानकी लाल को मैंने मारा है उसका कत्ल मैंने किया
“अगर तुमने सचमुच कुछ नहीं किया है तो इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है। लेकिन अगर तुम गुनाहगार हो तो...।"
"त...तो क्या?"
“अभी वक्त है। तुम्हारी गलती को सुधारा जा सकता है इस बरबादी से बचा जा सकता है।"
"कैसे बचा सकता है?"
"हम अभी इसी वक्त यह शहर बल्कि यह देश ही छोड़ देंगे।"
“फिर कहां जाएंगे?"
“यूएसए।
“य..यूएसए ही क्यों? दुनिया में बहुत सारे मुल्क हैं।"
“लेकिन मुझे यूएस पसंद है। मैंने कई जगह अपना रिज्यूमे मेल कर रखा है। देर सवेर भले ही हो जाए, लेकिन वहां से कोई पॉजिटिव जवाब मुझे जरूर मिलेगा, जो कि मेरे हक में होगा। वैसे भी मेरी एक फॉस्ट फ्रैंड वहां शिफ्ट हो चुकी है, उससे भी मुझे मदद जरूर हासिल होगी। एक बार अगर हमने यह मुल्क छोड़ दिया तो फिर यहां का कानून हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हम पूरी तरह महफूज होंगे।”
“शुक्रिया।” अजय ने लापरवाही से कंधे उचकाये और शुष्क स्वर में बोला “मगर मुझे नहीं लगता कि मुल्क छोड़ने की नौबत आएगी। यूएसए तुम्हें ही मुबारक हो।”
.
.
“प...पार्टनर।” सुगंधा ने आहत होकर उसकी ओर देखा “ऐसे मेरा उपहास मत करों। वह केवल तुम हो जिसने मुझे इस मुल्क में रोक रखा है, वरना यूएसए मेरा बचपन का ख्वाब है और मैं कब की वहां शिफ्ट हो चुकी होती।"
"ऑय एम सॉरी! मेरा इरादा तुम्हारे जज्बातों को चोट पहुंचाना नहीं था सुगंधा।"
सुगंधा कुछ नहीं बोली। वह बस खामोशी से विंडस्क्रीन को देखती रही।
“मैंने अपने बॉस को नहीं मारा।” अजय ने बेचैन होकर पहलू बदला, फिर उसने सुगंधा को अपनी सफाई पेश की “और मुझे इसका ताजिंदगी अफसोस रहेगा। उस शैतान को मेरे हाथों से ही मरना चाहिए था। मगर यह नेक काम कोई और ही कर गया।"
“अपने जख्म मुझे नहीं बताओगे? क्या अदावत थी आखिर जानकी लाल से तुम्हारी?”
“जख्म कुरेदने से केवल दर्द ही मिलता है। वैसे भी यह किस्सा खत्म हो चुका है सुगंधा।”
“तब तो तुम्हारी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीं रह गया होगा।” “शायद तुम ठीक कह रही हो। म...मैं कल ही अपनी कम्पनी से रिजाइन कर रहा हूं।”
“उसके बाद क्या करोगे कहां जाओगे!"
"तुम्हारे साथ शादी करके यूएसए तो हरगिज भी नहीं जाऊंगा।”
“तो फिर?”
“यहीं अपने मुल्क में ही रहूंगा और जीने के लिए कोई मकसद ढूंढ ही लूंगा। बहरहाल मकसद न हो तो जिंदगी बहुत बेमानी हो जाती है।”
“क्या क्या मतलब है तुम्हारा?"
“मैं तुम्हारे लिए बहुत फिक्रमंद हूं।" "क्यों फिक्रमंद हो तुम मेरे लिए?"
“क्योंकि तुम्हारी जिंदगी किसी रहस्य से कम नहीं है। बेइंतहा नफरत करते थे तुम अपने बॉस जानकी लाल से और शायद एक मकसद को लेकर ही तुम दिल्ली आए थे। और जो कि आज..."
वह एक क्षण को ठिठकी फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “पूरा हो गया। वह इंसान दुनिया से उठ गया, जिससे तुम बेइंतहा नफरत करते थे और शायद जिसकी तबाही का मकसद लेकर ही तुम यहां आए थे।"
"इसमें फिक्रमंद होने की क्या बात है?"
“क्योंकि वह इंसान अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरा।” सुगंधा ने बताया “उसे कत्ल किया गया, जिसकी सजा या तो फांसी होती है या फिर उम्रकैद।"
“और तुम्हारा ख्याल है कि यह सजा मुझे मिलने वाली है, क्योंकि जानकी लाल को मैंने मारा है उसका कत्ल मैंने किया
“अगर तुमने सचमुच कुछ नहीं किया है तो इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है। लेकिन अगर तुम गुनाहगार हो तो...।"
"त...तो क्या?"
“अभी वक्त है। तुम्हारी गलती को सुधारा जा सकता है इस बरबादी से बचा जा सकता है।"
"कैसे बचा सकता है?"
"हम अभी इसी वक्त यह शहर बल्कि यह देश ही छोड़ देंगे।"
“फिर कहां जाएंगे?"
“यूएसए।
“य..यूएसए ही क्यों? दुनिया में बहुत सारे मुल्क हैं।"
“लेकिन मुझे यूएस पसंद है। मैंने कई जगह अपना रिज्यूमे मेल कर रखा है। देर सवेर भले ही हो जाए, लेकिन वहां से कोई पॉजिटिव जवाब मुझे जरूर मिलेगा, जो कि मेरे हक में होगा। वैसे भी मेरी एक फॉस्ट फ्रैंड वहां शिफ्ट हो चुकी है, उससे भी मुझे मदद जरूर हासिल होगी। एक बार अगर हमने यह मुल्क छोड़ दिया तो फिर यहां का कानून हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। हम पूरी तरह महफूज होंगे।”
“शुक्रिया।” अजय ने लापरवाही से कंधे उचकाये और शुष्क स्वर में बोला “मगर मुझे नहीं लगता कि मुल्क छोड़ने की नौबत आएगी। यूएसए तुम्हें ही मुबारक हो।”
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“प...पार्टनर।” सुगंधा ने आहत होकर उसकी ओर देखा “ऐसे मेरा उपहास मत करों। वह केवल तुम हो जिसने मुझे इस मुल्क में रोक रखा है, वरना यूएसए मेरा बचपन का ख्वाब है और मैं कब की वहां शिफ्ट हो चुकी होती।"
"ऑय एम सॉरी! मेरा इरादा तुम्हारे जज्बातों को चोट पहुंचाना नहीं था सुगंधा।"
सुगंधा कुछ नहीं बोली। वह बस खामोशी से विंडस्क्रीन को देखती रही।
“मैंने अपने बॉस को नहीं मारा।” अजय ने बेचैन होकर पहलू बदला, फिर उसने सुगंधा को अपनी सफाई पेश की “और मुझे इसका ताजिंदगी अफसोस रहेगा। उस शैतान को मेरे हाथों से ही मरना चाहिए था। मगर यह नेक काम कोई और ही कर गया।"
“अपने जख्म मुझे नहीं बताओगे? क्या अदावत थी आखिर जानकी लाल से तुम्हारी?”
“जख्म कुरेदने से केवल दर्द ही मिलता है। वैसे भी यह किस्सा खत्म हो चुका है सुगंधा।”
“तब तो तुम्हारी जिंदगी का अब कोई मकसद नहीं रह गया होगा।” “शायद तुम ठीक कह रही हो। म...मैं कल ही अपनी कम्पनी से रिजाइन कर रहा हूं।”
“उसके बाद क्या करोगे कहां जाओगे!"
"तुम्हारे साथ शादी करके यूएसए तो हरगिज भी नहीं जाऊंगा।”
“तो फिर?”
“यहीं अपने मुल्क में ही रहूंगा और जीने के लिए कोई मकसद ढूंढ ही लूंगा। बहरहाल मकसद न हो तो जिंदगी बहुत बेमानी हो जाती है।”
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