Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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इंस्पेक्टर उसके साथ पुलिस स्टेशन नहीं आया था। वह रास्ते में ही था जबकि उसके मोबाइल पर एक फोन आया था। उसके बाद मदारी फौरन पुलिस कार से उतर गया था और फिर वह दोबारा अजय को नजर नहीं आया था।

उसकी पुलिस टीम ही उसे पुलिस स्टेशन लेकर पहुंची थी और उसे लॉकअप में बंद कर दिया गया था।
..
उस गिरफ्तारी का अजय ने भरपूर विरोध किया था और मदारी से चीख-चीखकर गिरफ्तारी की वजह पूछी थी। उसे किस आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा था, जानना चाहा था, लेकिन उस अफलातूनी इंस्पेक्टर ने एक लफ्ज भी नहीं बताया था।

और फिर लॉकअप में पहुंचते ही अजय चौंक पड़ा। उसकी वजह लॉकअप में पहले से मौजूद लोग थे। वह एक नहीं, दो-दो लोग थे, जिन्हें अजय बखूबी पहचानता था। वह दोनों लोग जतिन और कोमल थे। पहला मेल, दूसरा फीमेल, जिन्हें कि नियमानुसार एक ही लॉकअप में बंद नहीं किया जा सकता था। लेकिन वह दोनों एक ही लॉकअप में मौजूद थे।

और अब तीसरा मुल्जिम अजय भी वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था। उसे वहां पहुंचा देखकर जतिन और कोमल भी चौंके थे तथा आश्चर्य से उसे देखने लगे थे। लेकिन फिर लगभग फौरन ही उन लोगों ने अपने आश्चर्य पर काबू पा लिया।

“बहुत खूब।” जतिन अजय को देखकर बोला “तो तुम भी यहां तशरीफ ले आए।"

“अब तो बस एक ही आदमी की कमी रह गई है।” कोमल एक विद्रूपपूर्ण हंसी हंसकर बोली “अपने बॉस सहगल साहब।"

“वह भी बस आता ही होगा।” जतिन बोला।
+
"म...मगर यह सब आखिर क्या हो रहा है?" अजय उन दोनों को देखता हुआ व्यग्र भाव से बोला “उस इंस्पेक्टर ने तुम दोनों को आखिर क्यों गिरफ्तार किया है?"

“क्या पता क्यों गिरफ्तार किया है।” कोमल मुंह बिगाड़ती हुई बोली "कमबख्त ने इस बारे में एक लफ्ज भी नहीं बताया। तुम अपनी सुनाओ। तुम्हें क्यों गिरफ्तार किया गया है?"

“मैंने भी उससे चीख-चीखकर पूछा, मगर उसने एक शब्द भी नहीं बताया।”

"अजीब बात है।” जतिन बड़बड़ाया “उसने हममें से किसी को भी हमारी गिरफ्तारी की वजह नहीं बताई।"

"अ...और सारे नियम-कानून को ताक पर रखकर उसने लेडीज और जेंट्स को एक ही लॉकअप में बंद किया है। यह तो सरासर धांधली है गैर कानूनी है। इसके लिए उस इंस्पेक्टर के खिलाफ केस करूंगी।"

“जरूर करना।” अजय ने कहा “वैसे वह इंस्पेक्टर भी इस बात को जानता होगा।"

“इसके बावजूद उसने ऐसा किया?"

“हां। वह वीआरएस लेने वाला है। शायद इसीलिए उसे अपनी नौकरी की परवाह नहीं है।" जतिन ने कहा।

"लेकिन वह गया कहां है?” वह सवाल कोमल ने पूछा था।

“शायद अपने बॉस सहगल को लाने गया है।” अजय ने संभावना जताई “अगर ऐसा है तो बहुत जल्द हम चारों यहां अपनी आखिरी मीटिंग कर रहे होंगे। उसके बाद हमारा अगला मुकाम या तो जेल होगी या फिर फांसी।"

“फ....फांसी।" जतिन सकपकाया “फांसी किसलिए?"
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Re: Thriller कांटा

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"भूल गए, हम सब जानकी लाल के कत्ल की साजिश में शामिल थे।”

“शी..ऽ।” जतिन ने अपने मुंह पर अंगुली रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया और दबे स्वर में बोला “धीरे बोलो। यह पुलिस स्टेशन है।

” “उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।” अजय मुंह बनाता हुआ बोला था “मुझे पूरा यकीन है कि हमारी पोल खुल चुकी है और हमारे खिलाफ उस इंस्पेक्टर के हाथ पुख्ता सबूत लग चुके हैं।"

“वह कैसे?" कोमल के साथ ही जतिन के चेहरे पर भी सवाल उभरा।

"मत भूलो कि संदीप ने अपनी मौत से पहले हम चारों से फोन पर बातें की थीं। उसका मोबाइल भी उसकी लाश के करीब ही पड़ा मिला है। सहगल का भांडा तो पहले ही फूट चुका है, संदीप के मोबाइल ने हमारा भी फोड़ दिया होगा।"

“म..मदारी ने तुम्हें यह बताया था?"

“नहीं। उसने केवल संदीप के कत्ल की घटना का जिक्र किया था। उसके बाद समझने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। और अब वह अजीबोगरीब इंस्पेक्टर शायद सहगल को गिरफ्तार करने ही गया है।"

"लेकिन सहगल तो अंडरग्राउंड है।"

“सुना है कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं।"

“लिहाजा...।” जतिन फिक्रमंद भाव से बोला “हम सबका खेल खत्म।"

"ऐसा ही लगता है।” अजय ने बड़ी कठिनता से सहमति में सिर हिलाया। फिर सहसा उसकी निगाह कोमल पर फोकस हुई “तुम्हें बहुत ज्यादा अफसोस होगा।"

"गिरफ्तार होने का?" कोमल बोली।

“और संदीप की मौत का भी।" कोमल के चेहरे के भाव तत्काल चेंज हुए।
-
"ऑय एम सॉरी।” अजय ने कहा “लेकिन आखिर यह सब क्या हो रहा है? जानकी लाल हम सबका दुश्मन था। उसकी मौत के साथ ही सारा किस्सा खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन किस्सा तो अब लगता है कि शुरू हुआ है।"

"तुम आखिर कहना क्या चाहते हो अजय?" जतिन ने असमंजस भरे भाव से पूछा।

“पहले संजना, फिर संदीप। यह कत्ल आखिर कौन कर रहा है
और उससे भी अहम सवाल यह कि क्यों कर रहा है?"

“उससे ज्यादा अहम सवाल यह है कि अगर उसने ऐसा नहीं किया होता तो क्या होता।” जतिन हल्के आवेश से बोला

"इस बात को मेरे से ज्यादा बेहतर दूसरा कोई भी नहीं समझ सकता कि अगर उसने ऐसा न किया होता तो मैं आज जिंदा नहीं होता। वह कमीनी संजना मेरी जान ले चुकी होती। अलबत्ता संदीप का मुझे कुछ खास नहीं पता।"

"मगर मुझे पता है।” अजय ने कहा “अगर ऐन वक्त पर कातिल ने संदीप को भी शूट न किया होता तो संदीप ने भी रीनी को खत्म कर दिया होता।"

"तब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं है। कातिल जो भी है कम से कम हमारा दुश्मन नहीं है।” जतिन सोचपूर्ण भाव से बोला “खास तौर पर मेरा और रीनी का।"

"तुमने ठीक कहा जतिन।” अजय उसकी ओर देखता हुआ बोला “मेरा भी यही ख्याल है कि ऐसे में तो तुम्हें अंदाजा होना चाहिए कि कातिल आखिर कौन हो सकता है?"

“म...मैंने कोशिश तो बहुत की लेकिन मुझे कोई ऐसा शख्स याद नहीं आ रहा।"

“फिर कोशिश करो। वह शख्स रीनी का भी शुभचिंतक है।" “यही तो पेचीदगी है। रीनी जानकी लाल की बेटी है और जानकी लाल मेरा दुश्मन था। फिर उसकी बेटी के किसी शुभचिंतक ने आखिर मेरी मदद क्यों की? उसे तो उल्टा मेरा दुश्मन होना चाहिए।"
.
“मैं भी जानकी लाल की बेटी हूं।” कोमल बीच में बोली "लेकिन मैं तुम लोगों की दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त हूं। दुश्मन तो मैं भी जानकी लाल की थी। इसीलिए...।" उसने जानबूझकर आगे का वाक्य अधूरा छोड़ दिया था।

“मैंने हर तरह से सोचा लेकिन मैं फिर कह रहा हूं। मुझे ऐसा कोई शख्स याद नहीं।"

“अपने अतीत पर एक नजर डालो। हो सकता है तुम्हारे अतीत से उसका ताल्लुक हो। बहरहाल यह बहुत जरूरी है।"
"क...क्या जरूरी है?"

“हम इस वक्त मुसीबत में हैं। हमें जरूर पुलिस ने जानकी लाल के कत्ल की साजिश में गिरफ्तार किया है। और केवल वही शख्स है जो इस वक्त हमारी मदद कर सकता है।"

“ओह।"

"और मुझे तो अभी तक यह भी नहीं पता नहीं कि तुम दोनों आखिर कौन हो? तुम्हारी जानकी लाल से क्या दुश्मनी थी? इसके बावजूद तुम दोनों उसके मुलाजिम क्यों थे?"
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Re: Thriller कांटा

Post by 007 »

अजय और जतिन की निगाहें आपस में मिलीं। कोमल का वह सवाल उन दोनों के लिए अप्रत्याशित था। जिसके लिए ये तैयार नहीं थे।

“वैसे मुलाजमत की बात तो कुछ-कुछ समझ में आती है।" कोमल बारी-बारी से दोनों को देखती हुई बोली “जानकी लाल की जिंदगी में उनकी मौत से पहले उन पर एक दो नहीं पूरे तीन बार जानलेवा हमला हुआ था, जिसमें वह बस किस्मत से ही बचा था। पहली बार उसकी कार के ब्रेक फेल कर दिए गए थे। दूसरी बार उसके कोल्ड ड्रिंक में जहर मिलाकर उसे मारने की कोशिश की गई थी और तीसरी बार...।"

दोनों ने अपलक कोमल को देखा।
+
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.
“तीसरी बार तो तुम्हें मालूम है कि...।" कोमल उनकी निगाहों का मतलब समझती हुई बोली “वह मैं ही थी जिसने उसकी सुपारी लगाई थी, लेकिन मेरी बदकिस्मती कि वह कमीना फिर भी जिंदा बच गया। लेकिन...।” उसकी निगाहें फिर अजय व जतिन पर स्थिर हो गईं “उससे पहले उस पर वह दोनों जानलेवा हमले किसने कराये थे, यह आज भी एक रहस्य है।
और अगर मैं गलत नहीं तो यह कारनामा जरूर तुम दोनों का है। बोलो मैंने ठीक कहा न?"

“अ...अब इस सवाल के कोई मायने नहीं रह जाते कोमल ।" अजय जल्दी से बोला “वह किस्सा खत्म हो चुका है। जानकी लाल अपने अंजाम को पहुंच चुका है।"

“मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल गया है।” कोमल संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाती हुई बोली “और अब मैं यह भी समझ गई कि तुम लोगों ने महज एक मकसद के लिए जानकी लाल सेठ की मुलाजमत कबूल किया था। उसके करीब रहकर ही उस पर वार करने का मौका हासिल किया जा सकता था। लेकिन तुम लोगों को लेकर मेरा सवाल अभी सवाल ही बना हुआ है तुम लोगों की आखिर मेरे मरहूम बाप से क्या अदावत थी?"

“क..क्या अभी इस सवाल का जवाब देना जरूरी है कोमल?" जतिन पहलू बदलता हुआ बोला।

“बहुत जरूरी है। और घबराओ मत, मैं तसल्ली कर चुकी हूं। यहां आस-पास हमारी बातें सुनने वाला कोई नहीं है। इस लॉकअप के अंदर कोई स्पाई कैमरा या रिकार्डर भी नहीं लगा है। पहले...।" वह अजय की ओर घूमी "तुम बताओ।"

“सॉरी कोमल ।” अजय ने खेद जताया “मुझे अब यह बताने मैं कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसके लिए यह मुनासिब मौका है।"

“मेरे ख्याल से तो यही सबसे मुनासिब मौका है। वैसे पता नहीं क्यों मुझे अंदेशा हो रहा है हम अजनबी होकर भी अजनबी नहीं हैं। हमारे बीच कुछ ऐसा है जो हमें किसी रिश्ते में बांधे हुए है।"

“म...मुझे ऐसा नहीं लगता।”

"लेकिन मेरे अंदेशे भी गलत नहीं होते। क्या तुम मुझे अपने पिता का नाम बताने की जहमत फरमाओगे।" ।

“म...मेरे पिता का नाम?” अजय व्याकुल हो उठा था।

“बात तुम्हारी ही हो रही है। और देखो, झूठ बोलने की कोशिश मत करना, मुझे झूठ पकड़ना आता है। अब बोलो भी, तुम खामोश क्यों हो?”
अजय सोच में नजर आने लगा था।

“नि...निमेष।” फिर वह धीरे से बोला “मेरे पिता का नाम निमेष था।"

“ओह।" कोमल सोच में नजर आने लगी थी, जबकि जतिन हौले से चौंक पड़ा था। लेकिन उसने अपना चौंकना अजय पर उजागर नहीं होने दिया था। कोमल बोली “यह नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है। यह निमेष कहीं प्रबीरदास के बेटे का नाम
तो नहीं है।"

“त...तुम प्रबीरदास को जानती हो?” अजय चौंककर कोमल को देखने लगा था।

“हां। मैंने यह दोनों नाम रीनी के मुंह से सुने थे। वह शायद रीनी की मां के पिता और रीनी के नाना थे। और निमेष, निमेष उन्हीं प्रबीरदास का गोद लिया बेटा था। मगर रीनी कहती थी कि प्रबीरदास उसे अपने सगे बेटे से ज्यादा चाहते
थे।"

“हां...हां।” तब अजय के सब्र का बांध टूट गया। वह किसी हद तक उत्तेजित होकर बोला “मैं उन्हीं निमेष का बेटा हूं। यह अलग बात है कि उन्होंने भी मुझे गोद लिया हुआ था। और रीनी की मां सरला उन्हीं प्रबीरदास की इकलौती बेटी थी, जिसे जानकी लाल ने अपने प्यार के जाल में फंसाकर उनसे शादी की थी और फिर वह शैतान प्रबीरदास की करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक बन गया था।"

अजय के उस रहस्योद्घाटन ने अकेले कोमल को ही नहीं जतिन को बुरी तरह से चौंकाया था।

“उस कंगले जानकी लाल ने महज दौलत की खातिर यह सब किया था।” अजय उत्तेजना के हवाले हुआ कहता गया “वह
यह भी जानता था कि वक्ती तौर पर भले ही प्रबीरदास अपनी बेटी सरला की जिद के आगे झुक गया हो और उसने जानकी लाल को अपना दामाद कबूल कर लिया हो लेकिन बहुत जल्द वह जानकी लाल की असलियत सामने ले आने वाला था
और उसका सरला से तलाक करा देने वाला था। और प्रबीरदास यकीनन यह करके रहता, मगर शातिर जानकी लाल उसके इरादों को पहले ही भांप गया था। फिर इससे पहले कि प्रबीरदास कामयाब होता, उसने उसे खत्म कर दिया था उसका नामोनिशान मिटा दिया था।"

जतिन और कोमल हक्के-बक्के अजय को देख रहे थे।
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Re: Thriller कांटा

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“बहुत चालाकी से उसने यह सब किया था।” अजय आगे बोला “कुछ इस तरह कि वह कत्ल नहीं एक हादसा लगता। बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन प्रबीरदास का खानदानी कारोबार था। उन दिनों उनकी कम्पनी आईटीओ के करीब एक सौ फुट से ज्यादा ऊंची इमारत बना रही थी, जिसका काम अपने आखिरी चरण में था और उसी समय प्रबीरदास उसके मुआयने के लिए वहां पहुंचे थे। मेरे पापा निमेष वहां पहले से मौजूद थे। फिर अचानक वहां एक भीषण हादसा पेश आया था और कंस्ट्रक्शन में लगी उस क्रेन मशीन की लिफ्ट अचानक टूट गई थी, जो भारी मेटीरियल और लोगों को सौ फुट ऊपर पहुंचाती थी। उस हादसे में अकेले प्रबीरदास ही नहीं, मेरे पापा की भी मौत हो गई थी और कोई यह तक साबित नहीं कर सका था कि वह कोई हादसा नहीं बल्कि कत्ल था कत्ल का सोचा समझा षड्यंत्र था।"

अजय खामोश हो गया और गहरी-गहरी सांसें भरने लगा था। कोमल और जतिन अपलक उसे ही देख रहे थे।

"ओह । तो यह बात है।" सहसा कोमल बोली। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए थे “तो तुम निमेष के बेटे और प्रबीरदास के नाती हो। रीनी के ममेरे भाई हो अ...और मेरे भी। देखा, मेरा अंदाजा कितना सही निकला।”

अजय के लिए कोमल की नजर अब पूरी तरह बदल गई थी। लेकिन अजय के जख्म ताजा हो गए थे।

“वह बुलंद इमारत आज भी जानकी लाल के गुनाह की निशानी के तौर पर महफूज है।" अजय ने आगे कहा “और उसे मैं हर रोज अपने फ्लैट की टैरेस पर बैठकर निहारता आया हूं। गुजरने वाले वक्त के साथ जानकी लाल बहुत ताकतवर हो । गया। मैं अकेला चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था लेकिन मैं उसे छोड़ भी नहीं सकता था। इसीलिए मैं उसके और करीब आ गया। वह मुझे हरगिज भी नहीं पहचान सकता था, इसीलिए मैंने उसकी कम्पनी में नौकरी कर ली। तुमने बिल्कुल ठीक कहा था कोमल, मैंने केवल उस शैतान से नजदीकी बढ़ाने के लिए ही उसकी नौकरी की थी, महज पैसों के लिए नहीं। पैसा तो मेरे पास निमेष मेरे लिए बहुत छोड़कर गए थे, जिस पर जानकी लाल काबिज नहीं हो सका था और मेरे बालिग होते ही वह सारा रुपया मुझे हासिल हो गया था।

आज भले ही जानकी लाल दुनिया में नहीं है, लेकिन यह अफसोस मुझे हमेशा सालता रहेगा कि वह मेरे अपने हाथों कुत्ते की मौत नहीं मरा।”

अजय खामोश हो गया और फिर गहरी-गहरी सांसे भरने लगा। कितनी ही देर तक फिजां में पैना सन्नाटा छाया रहा, फिर उस सन्नाटे को कोमल ने ही तोड़ा।

“खैर...।” वह जतिन की ओर मुखातिब होकर बोली “और तुम्हारा क्या किस्सा है जतिन?"

“म..मेरा किस्सा वहां से शुरू होता है जहां से अजय का किस्सा खत्म होता है।” जतिन अजय पर एक सरसरी निगाह डालता हुआ बोला।
“म...मैं कुछ समझी नहीं। साफ-साफ कहो जतिन?”

“जानकी लाल ने अपने अतीत का कोई भी गुनाह अकेले नहीं किया था।” जतिन कुछ पलों की खामोशी के बाद बोला था “कोई था जिसने कदम-कदम पर जानकी लाल का साथ दिया था। जिसने कंधों से कंधा मिलाकर उसके हर गुनाह में बराबरी की शिरकत की थी और उसके लिए अपनी जान की परवाह नहीं की थी।"

“ए...ऐसा आदमी तो...।” अजय चिंहुककर जतिन को देखता हुआ बोला “सौगत था जानकी लाल का लंगोटिया यार।"

"तुमने ठीक कहा दोस्त ।” जतिन ने सहमति में सिर हिलाया “उसका नाम सचमुच सौगत ही था। लेकिन क्या तुम्हें पता है कि फिर सौगत का क्या अंजाम हुआ था? जानकी लाल तो जिंदा था, मगर वह अपने हसीन लम्हों को देखने के लिए जिंदा क्यों नहीं बचा था?"

"न...नहीं।” अजय के चेहरे पर उत्सुकता के भाव आ गए थे "फिर सौगत के साथ क्या हुआ था?"

“सौगत मर गया था। उसकी कार का अचानक एक्सीडेंट हो गया था। एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी थी।"

“आई सी।"

"लेकिन वह रोड एक्सीडेंट का स्वाभाविक मामला नहीं था। क्योंकि जिस ट्रक ने उसे ठोका था, वह कोई बाहरी ट्रक नहीं बल्कि प्रबीरदास की कंस्ट्रक्शन कम्पनी का एक वोल्वो ट्रक था। और उसे कंपनी का कोई ड्राइवर नहीं बल्कि एक कुख्यात हिस्ट्रीशीटर चला रहा था। जिसका अपना एक गैंग था और जिसका काम भाड़े पर कत्ल करना और अपहरण करके फिरौती वसूल करना था। उस गैंग के सरगना का नाम गोपाल था।"

“स...समझ गई।” कोमल के मुंह से अनायास ही निकल गया "तो उस कुख्यात किलर से जानकी लाल सेठ की वाकफियत का यह राज है। उसने बरसों पहले उसके गैंग की मदद से सौगत का कत्ल करवाया था। मगर...।"

सहसा कोमल के माथे पर बल पड़ गए। उसने जतिन ने पूछा “सौगत से तुम्हारा क्या रिश्ता था।"

“म...मैं उन्हीं सौगत का बेटा हूं।” जतिन ने बता दिया “और मेरे पिता के बदले की आग मेरे सीने में धधक रही थी। और मेरे पिता की आत्मा जैसे मुझे धिक्कार रही थी कि उसका कातिल आज भी जिंदा घूम रहा है। लेकिन...।" वह एकाएक रुक गया, फिर कुछ रुककर बोला “अब सब ठीक है। और मुझे खुशी है कि आज मेरा इंतकाम पूरा हो गया। जिस मकसद को लेकर मैं जानकी लाल सेठ की कंपनी में आया था, वह पूरा हो गया। अब मुझे इस नौकरी की कोई जरूरत नहीं है। अगर आज मैं गिरफ्तार न हुआ होता तो मैं आज ही कंपनी से रिजाइन देकर यह शहर छोड देने वाला था। लेकिन...।" उसने आह भरी और अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया और पहलू बदलने लगा।

उसके चुप होते ही वातावरण में एक फिर खामोशी छा गई।
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