Thriller कांटा

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Thriller कांटा

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कांटा

ब्लू लाइन कंस्ट्रक्शन का शानदार आफिस नेहरू प्लेस जैसे हाई प्रोफाईल कामर्शियल इलाके में एक इमारत की एक तीसरी मंजिल पर स्थित था।

ब्लू लाइन इंस्ट्रक्शन रियल एस्टेट से जुड़ी राजधानी दिल्ली की एक जानी-मानी कम्पनी थी, जिसका मालिक जानकी लाल था।

जानकी लाल उस वक्त अपने आलीशान केबिन में मौजूद था। वहां वह एकदम अकेला था, और एक ऐसे टेंडर की फाइल को स्टडी कर रहा था जो आने वाले कल में खुलने वाला था। एक सौ अस्सी करोड़ रुपये का वह टेंडर मौजूदा हालात में उसके लिए बेहद अहमियत रखता था और जिसका उसकी कम्पनी को हासिल होना बेहद जरूरी था. वरना जिस बरे वक्त से उसकी कंपनी उस वक्त गुजर रही थी, उस टेंडर के न मिलने की सूरत में उसकी रही-सही साख भी खत्म हो जाने वाली थी। हाईवे के रोड कंस्ट्रक्शन से जुड़ा एक टेंडर आज भी खुलने वाला था जो कि महज सत्तर करोड़ का था, जो उसने पिछले माह डाल रखा था और जिसे अपने हक में पाने के लिए उसने कारपोरेट बिजनेस से जुड़े सारे कानूनी और गैर-कानूनी हथकंडे भी अपनाए थे और उसे यह आश्वासन भी था कि वह टेंडर उसी की कम्पनी के हक में पास होने वाला था, फिर भी वह आश्वस्त नहीं हो सका था क्योंकि रियल ऐस्टेट के क्षेत्र से जुड़ी उसकी एक करीबी कट्टर प्रतिद्वंद्वी कम्पनी इस मामले में उसे कड़ी टक्कर दे रही थी।

ड्रीम ड्रेगन नाम की वह कंस्ट्रक्शन कम्पनी उसके सारे टेंडर हथियाने में कामयाब होती आ रही थी। बीते दस महीने में ड्रीम ड्रेगन ने उसके हाथ एक भी टेंडर नहीं लगने दिया था।

अपने चीफ एकाउंटेंट अजय से उसने बोल रखा था कि टेंडर के खुलने की खबर जैसे ही पास ऑन हो, उसे फौरन उसके नतीजे की खबर की जाए। उस वक्त वह क्योंकि व्यस्त था और किसी गहरी सोच के हवाले था इसलिए उसने अपना । मोबाइल ऑफ कर रखा था और रिसेप्शन पर ताकीद कर दी थी कि अगले एक घंटे तक उसे कोई भी फोन कॉल ट्रांसफर न की जाए। तभी उसके केबिन के दरवाजे पर दस्तक हुई। जरूर उसका एकाउंटेंट अजय आया था।
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उसने फाइल से अपना चेहरा उठाया और अपने नजर के चश्मे को दुरुस्त करता हुआ सहज-स्वाभाविक भाव से बोला "कम इन।"

केबिन का दरवाजा फौरन खुला और फिर कोई अंदर दाखिल हुआ। लेकिन जानकी लाल को उसका चेहरा नजर न आया। वह तो उस बड़े से गुलदस्ते के पीछे छिपा हुआ था जो कि उसने अपने हाथ में उठा रखा था।

जानकी लाल के माथे पर बल पड़ते चले गए थे। वह शख्स उसका चीफ एकाउंटेंट अजय तो हरगिज भी नहीं हो सकता था। वह तो कोई उसे सरप्राइज देने का इरादा रखने वाला शख्स ही मालूम पड़ता था, जो कि अजय नहीं था। वह उससे इतना बेतकल्लुफ नहीं था।
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Re: कांटा

Post by 007 »

“क...कौन हो तुम?” जानकी लाल ने असमंजस भरे स्वर में रहस्यमय आगंतुक से पूछा। वह अपलक सामने मेज के पार खड़े उस शख्स को देखने लगा था। लेकिन उसका चेहरा देखने में वह अभी तक भी कामयाब नहीं हो सका था।
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“जन्मदिन मुबारक हो।” तभी गुलदस्ते के पीछे से स्वर उभरा।

जानकी लाल के होठों से निःश्वास निकल गई। उसे याद आया आज सका जन्मदिन था और उससे पहले भी उसे उसके कुछ करीबी लोग विश कर चुके थे। उसे लगभग इसी तरह उन लोगों ने गुलदस्ते भेंट किये थे।

“शुक्रिया।” उसके माथे पर पड़े बल गायब हो गए थे लेकिन असमंजस तब भी नहीं गया था। उसने कहा “अब जरा अपनी सूरत भी दिखा दो भाई।"

“मौत का कोई चेहरा नहीं होता स्साले मोटे भैंसे।” सहसा आगंतुक का कर्कश स्वर उसके कानों में पड़ा।

जानकी लाल बुरी तरह चौंका। उसके जेहन में एकाएक कुछ जोर से चीखा था। उसका हाथ अनायास ही मेज पर लगे पुश बटन पर गया। इसी के साथ ही वह झटके से उछलकर खड़ा हो गया।

ठीक उसी पल गुलदस्ते को पकड़े हाथों में जैसे जादू के जोर से रिवॉल्वर प्रकट हुआ। फिर इसके पहले कि जानकी लाल को कुछ करने का मौका मिल पाता।
धांय...धांय...धांय...ऽऽऽ.....!
रिवॉल्वर ने शोले उगलना शुरू कर दिया। तीनों शोले जानकी लाल के जिस्म में धंस गए। उसके हलक से दर्दनाक चीख उभरी। उसका जिस्म लहराकर पीछे अपनी कुर्सी से टकराया, फिर वह एक झटका सा खाकर ही ढेर हो गया। आगंतुक ने गुलदस्ता एक ओर उछाल दिया।

वह एक उल्टे तवे जैसी रंगत वाला शख्स था, जिसकी उम्र पैंतीस साल से ज्यादा नहीं थी। उसका चेहरा चेचक के गहरे दागों से भरा था और बाएं गाल पर कटे का निशान मौजूद था। उसने एक आखिरी निगाह जानकी लाल पर डाली जो कि बेहरकत हो चुका था और अपने ही खून में नहाया हुआ कुर्सी पर बेहरकत पड़ा था।

फिर वह फुर्ती से पलटा और रिवॉल्वर संभाले हुए तेजी से दरवाजे की ओर लपका। वह दरवाजे के करीब पहुंचा और दरवाजा खोलने के लिए उसने उसका हैंडल अभी पकड़ा ही था कि एकाएक भड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा अपने आप खुल गया और कमांडो जैसी चुस्ती-फुर्ती वाला एक आदमी नजर आया। उसके हाथ में भी रिवॉल्वर था, जो उसने बेहद चौकन्ने भाव से सामने आगंतुक की ओर तान रखा था।

उसके पीछे उसके जैसे ही दो अन्य शख्स मौजूद थे। वह भी हथियारबंद और पूरी तरह से चौकन्ने थे। उनके हाथ में मौजूद रिवॉल्वरों के रुख भी आंगतुक की ओर थे।

वह लोग जानकी लाल के प्राइवेट सिक्योरिटी दस्ते के जवान थे, जिसका नेतृत्व आगे मौजूद आदमी कर रहा था। उस आदमी का नाम अनीस था और वह उस अलार्म के जवाब में अपने दोनों जोड़ीदारों के साथ भागता हुआ पहुंचा था, जो कि जानकी लाल द्वारा वहां एक क्षण पहले मेज पर लगा पुश बटन दबाये जाने की सूरत में बाहर बजने लगा था।

अनीस की आदतन चौकन्नी निगाहें हमलावर तथा उसके पीछे मौजूद केबिन में तेजी से पैनी हुईं। अंदर मौजूद जानकी लाल का कुर्सी पर पड़ा खून से लथपथ जिस्म देखकर वह पलभर के लिए सन्न रह गया। दूसरे ही पल उसकी आंखों में खून उतर आया।
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Re: कांटा

Post by 007 »

हमलावर को समझने में पलभर भी न लगा था कि खेल बिगड़ चुका था। उसका शिकार ढेर होते-होते भी अपना काम कर गया था और उसके वह अंगरक्षक बजने वाले अलार्म के जवाब में ही निश्चित रूप से वहां आए थे। अब बचने का केवल एक ही तरीका था।
धांय...!
उसने बिना एक भी पल गंवाये अनीस की ओर फायर झोंक दिया। प्रतिद्वंद्वी की तरफ से उस हमले के लिए अनीस पूरी तरह तैयार था। वह फुर्ती से एक ओर को झुक गया।

लेकिन फासला बेहद कम होने की वजह से वह मात खा गया। परिणामस्वरूप गोली उसके बाएं कंधे में धंस गई। उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई। लेकिन दूसरे ही पल उसने भी गोली चला दी।

धांय ...! खुद जख्मी होने के बावजूद उसका निशाना चूका नहीं था। उसकी चलाई गोली हमलावर के पेट को फाड़ती चली गई।

धांयऽ...धायऽऽ...!
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मौके की नजाकत देखकर पीछे मौजूद उसके दोनों जोड़ीदारों के भी रिवॉल्वर गर्ज उठे।
गोलियों से छलनी हमलावर केबिन के खुले दरवाजे पर ही ढेर हो गया।

अनीस के हाथ से उसका रिवॉल्वर छूट गया। उसने अपने कंधे के जख्म को कसकर दबा लिया। उसका चेहरा पीड़ा से विकृत हो गया था। बायां हिस्सा खून से तरबतर हो गया था।
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Re: कांटा

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“आ...आप ठीक तो हैं न सर?” हकबकाये से एक जोड़ीदार ने उससे पूछा और तेजी से उसकी ओर लपका।

“म...मैं ठीक हूं बेवकूफ।” अनीस अपनी पीड़ा को पीता हुआ झुंझलाया सा बोला “लाल साहब को देखो।"

“ओह।” उसके जेहन को तब जैसे एकाएक झटका सा लगा। फिर वह दोनों जानकी लाल की ओर लपके जो अपनी कुर्सी पर निश्चेष्ट सा पड़ा था। दोनों उस पर झुक गए। एक ने उसकी कलाई थामकर नब्ज चेक की।

“न....नब्ज चल रही है।” फिर वह मिश्रित उत्तेजना से बोला “फ...फौरन एम्बुलेंस को फोन करो। लाल साहब को फौरन अस्पताल पहुंचाना होगा। हरी अप।”
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दूसरे ने फौरन अपना मोबाइल निकाला और उस पर एम्बुलेंस का नंबर पंच करने लगा। तब तक आफिस का बाकी स्टॉफ भी वहां जमा हो चुका था। उस अप्रत्याशित वाक्ये पर सारे स्टॉफ में हड़कंप मच गया था जबरदस्त हड़कम्प!
………………………………………
बात ही कुछ ऐसी थी।
राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित बिल्डर जानकी लाल पर एक बार फिर जानलेवा हमला हुआ था। गुजरे एक बरस में उसकी जान लेने की वह तीसरी कोशिश की गई थी।

मगर यह पहला मौका था जबकि हमलावर मौके पर ही ढेर हो गया था।

यह अलग बात थी कि उस तीसरी कोशिश का क्या नतीजा निकलने वाला था। जानकी लाल की नब्ज भले ही चल रही थी लेकिन उसे एक-दो नहीं, पूरी तीन गोलियां लगी थीं। इसके बावजूद अगर वह इस बार भी बच जाता तो वह किसी करिश्मे से कम नहीं था।

तिहाड़ जेल के विशाल फाटक के मध्य स्थित वह खिड़कीनुमा दरवाजा खुला, जिससे कि एक बार में केवल एक ही आदमी बाहर निकल सकता था। फिर उस दरवाजे से जो इकलौता आदमी बाहर निकला, वह सुमेश सहगल था। सुमेश सहगल पैंतालीस साल की उम्र का भारी कद-काठी वाला शख्स था। जिसके खिचड़ी बाल और खिचड़ी दाढ़ी उस वक्त काफी बढ़े हुए थे। गहरी आंखों में एक शून्य और सन्नाटा तैर रहा था। वह पिछले सात सालों से उस जेल में कैद था और आज अपनी सजा पूरी करके बाहर निकला था।

अदालत ने उसे जो सात साल की सजा सुनाई थी, उसमें अभी कुछ महीने बाकी थे। लेकिन एक तो वह कोई आदी मुजरिम नहीं था, वह उसका पहला जुर्म था, दूसरे, जेल में उसके अच्छे चाल-चलन के कारण उसे उसकी सुनाई गई सजा के निर्धारित वक्त से कुछ महीने पहले ही छोड़ दिया गया था। मगर उस बात की खबर सुमेश सहगल ने अपने घर वालों को नहीं होने दी थी, इसीलिए उसके घरवालों में से कोई भी उस वक्त उसे पिकअप करने नहीं आया था।

वह खबर उसने केवल एक ही शख्सियत को दी थी, जिसके बारे में उसे पूरा यकीन था कि वह वहां जरूर आने वाली थी।
वह शख्सियत संजना थी। जो कि ड्रीम ड्रैगन की मुलाजमत में काम करती थी।

सहगल ने अपनी बढ़ी हुई खिचड़ी दाढ़ी पर हाथ फिराया और फिर आजाद हवा में सिर उठाकर एक भरपूर सांस ली। फिर उसने सामने दूर तक खोजपूर्ण निगाहें दौड़ाईं। आगे थोड़ा फासले पर एक सड़क गुजरती थी, जिस पर वाहन आ-जा रहे थे। वहां कहीं भी उसे संजना नजर न आई। लेकिन उसके चेहरे पर रत्ती भर निराशा के भाव न आए।
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Re: कांटा

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“आएगी।" वह बड़े आत्मविश्वास के साथ होठों ही होठों में बुदबुदाया जैसे कि उसने खुद को यकीन दिलाया था “वह जरूर आएगी। सहगल जिसको बुलाए, वह न आए, ऐसा कभी नहीं हो सकता।"

जेल की खुली खिड़की बंद हो चुकी थी। सहगल मजबूत कदमों से आगे बढ़ा। उसके कदमों में हल्की सी लड़खड़ाहट साफ झलक रही थी, जो कमजोरी की वजह से भी हो सकती थी। वह आगे मुख्य सड़क पर पहुंचा।

तभी एक काली वैगन आर उसके एकदम कदमों के पास पहुंचकर रुकी। सहगल ठिठककर खड़ा हो गया।

वैगन आर का उसकी ओर मौजूद पैसेंजर डोर का ग्लास नीचे सरक गया।

सहगल ने झुककर वैगन आर में अंदर झांका।

ड्राइविंग सीट पर स्टेयरिंग के पीछे एक युवती मौजूद थी। उस युवती की उम्र पच्चीस-छब्बीस साल के लगभग थी। वह निहायत ही हसीन तथा दिलफरेब हुस्न की मलिका थी। उसके नाक-नक्श बेहद तीखे थे। दूध जैसा गोरा रंग, उभरा वक्ष स्थल, भरा-भरा सा जिस्म । उसने नीली डेनिम जींस और बिना बांहों वाला स्लीवलैस टॉप पहन रखा था, जिसमें उसका गोरा बदन धवल चांदनी की तरह चमक रहा था। वह गजब की हसीन और सैक्सी लग रही थी। सहगल को उसे पहचानने में पलभर भी न लगा और उसे पहचानते ही उसके होठों से निःश्वास निकल गई। होठों पर स्वतः ही एक खास किस्म की मुस्कान उभर आई।
अर्थपूर्ण मुस्कान !
वह हसीना कोई और नहीं बल्कि संजना थी।

"हल्लो बॉस ।” वह इठलाकर अदा से बोली “आजादी मुबारक।”

“शुक्रिया।” सहगल पूर्वतः मुस्कराता हुआ बोला।


"कम ऑन।” संजना ने कहा।

सहगल ने तत्क्षण सहमति में सिर हिलाया और कार का दरवाजा खोलकर वह संजना की बगल में पैसेंजर सीट पर बैठ गया, फिर उसने भड़ाक से दरवाजा बंद कर दिया।

संजना ने फौरन कार आगे बढ़ा दी।

“काफी स्मार्ट लग रहे हो बॉस ।” संजना उस पर नजर डालती हुई शरारत से बोली।

“वह तो खैर मैं हूं।” सहगल अपनी हथेली की पीठ बढ़ी हुई दाढ़ी पर फिराकर खिसियाए भाव से हंसा और खिड़की से बाहर देखने लगा।

“सात साल..." संजना विंडस्क्रीन पर नजरें गड़ाये हुए गियर बदलकर बोली “पूरे सात साल हो गए। बहुत लम्बा वक्फा होता है यह। कैसे कटे होंगे यह दिन और...?" वह एक क्षण ठिठकी और सहगल पर एक अर्थपूर्ण निगाह डालने के बाद फिर उसने अपना वाक्य पूरा किया “यह काली रातें?"


“आज बैलेंस बराबर हो जाएगा।” सहगल ने गरदन मोड़कर उसे देखा। उसके देखने का अंदाज ऐसा था जैसे कि कोई भूखा बिल्ला सामने रखे मलाई से भरे कटोरे को देखता है।

"वह कैसे?" संजना ने उलझकर पूछा। शायद उसने उलझने का अभिनय किया था।
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