Thriller कांटा

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007
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Re: Thriller कांटा

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“आ...आगे क्या बोलू?"

"तेरा नाम तो काफी बढ़िया था, फिर बदल क्यों डाला। साबिर बाबा से सहगल बाबा क्यों बन गया?"

"वो मैं...मैं..."

“मिमिया मत साबिर बाबा। मिमियाने वाले लोग मेरे को पसंद नहीं। मिमियाये बिना बता।"

“वह दरअसल सब तुम्हारे गिरफ्तार होने की वजह से हुआ। तुम्हारे बाद हम सबको भी अपनी गिरफ्तारी का खौफ सताने लगा था, इसीलिए...।"

“इसीलिए तूने अपना नाम बदल दिया साबिर बाबा से सहगल बाबा बन गया। ठीक?”

“ह...हमें अपनी-अपनी राह तो लगना ही था। और फिर अकेले मैंने ही तो ऐसा नहीं किया था। गैंग के दूसरे तमाम आदमी भी गिरफ्तारी के खौफ से अंडरग्राउंड हो गए थे और अपनी पुरानी पहचान के साथ वे इस शहर में बने नहीं रह सकते थे। सबको अपनी पहचान बदलनी जरूरी थी।"

“इसी वास्ते तू अपनी पहचान बदलकर सहगल बाबा बन गया।” गोपाल खून के धूंट पीता हुआ बोला “मेरे दूसरे पंटरों ने भी ऐसा ही किया। बराबर?"

"ह...हां।” सहगल ने पहलू बदला।

“और फिर उसके बाद तू सीधा उस जानकी की कंपनी का एकाउंटेंट बन गया? नहीं?"

"नहीं।"

"क्या नहीं?"

"तुम्हारा गैंग छोड़ने के बाद कितने ही सालों तक मैं पुलिस के खौफ से अंडरग्राउंड बना रहा। उसके बाद....।"

“मगर तेरे को पुलिस का इतना खौफ क्यों था? मेरे बाकी के पंटर को पुलिस का खौफ क्यों था? गैंग का मुखिया तो मैं था
जो गिरफ्तार हुआ था। तुम लोग कहां गिरफ्तार हुए थे?"

“नहीं हुए थे। लेकिन सब कुछ तुम्हारी जुबान के ऊपर था। अगर पुलिस तुम्हारी जुबान खुलवाने में कामयाब हो जाती तो...।" उसने जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।"

"तो तुम सारे के सारे पंटर भी गिरफ्तार हो जाने वाले थे।" गोपाल ने उसका वाक्य पूरा किया “यह कहना चाहता है तू?"

"ह...हां।” उसने कठिनता से सहमति में सिर हिलाया।

"मैंने लिया तुम हरामखोरों में से किसी का नाम? पुलिस मेरी जुबान खुलवा पाई ?"

“न...नहीं। मगर..."

“खैर जाने दे।” वह पुनः बातों का छोर पकड़ता हुआ बोला “आगे बता। अंडरग्राउंड होने के बाद फिर तूने क्या किया?
जानकी लाल सेठ की नौकरी कर लिया?"

"नहीं। वह बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी थी, जहां इतनी जल्दी मुझे एकाउटेंट की नौकरी नहीं मिलने वाली थी।"

"क्यों नहीं मिलने वाली थी? तेरे पास एकाउंटेंट की डिग्री तो बराबर थी वह भी एक दम असली। चौबीस कैरेट सोने जैसी खरी।"

"ह...हां थी।” मगर उस कम्पनी के लिहाज से मैं प्रैशर था।

“कहां फ्रैशर था। मेरे साथ कितने साल तूने काम किया था?" "लेकिन... म..मैं वहां उसका हवाला नहीं दे सकता था। कहीं भी तुम्हारी नौकरी का जिक्र नहीं कर सकता था।"

“इसीलिए तूने दूसरी छोटी-मोटी कंपनियों में नौकरी करके पहले अनुभव बटोरा। ठीक?"

"ह..हां।"
“लेकिन साले, हरामी, हलकट, तुझे छोटी-मोटी नौकरी करने की जरूरत ही क्या थी? मेरा इतना सारा रोकड़ा था तो तेरे पास, जो तू हथियाकर भाग निकला था।"

“व...व..वो..."

“अरे भाई, मैं ठहरा स्साला हिस्ट्रीशीटर। रोकड़ा तो मैं खूब कमा सकता था लेकिन उसको कहीं इन्वेस्ट नहीं कर सकता था, जबकि तेरे साथ ऐसा नहीं था। तेरा तो कोई पुलिस रिकार्ड तक नहीं था, इसीलिए मैंने वह सारा पैसा तेरे नाम पर इन्वेस्ट किया था, और उस पर सरकार को बाकायदा टैक्स भी चुकाता था।" वह रुका, उसने फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से सहगल को देखा “मेरा सब मिलाकर टोटल कितना नावां बनता होगा? बीस करोड़ से कम तो क्या बनता होगा?"

सहगल जवाब देने के बजाय थूक निगलने लगा।

“वह सारा का सारा रोकड़ा तेरे ही हाथ में तो था वीर मेरे। मेरी सारी चल-अचल सम्पत्ति बेचकर तू उसे डकार गया था
और वह हर घड़ी तेरे पास था। इतने रोकड़े पर तो सारी जिंदगी ऐश किया जा सकता था, फिर भी तू पचास हजार की
एकाउंटेंट की नौकरी पर मरता रहा? क्यों बाबा?"

सहगल इस बार भी कोई जवाब न दे सका। वह व्यग्र भाव से पहलू बदलने लगा।

"अरे बोल बाबा। गूंगा हो गया क्या? और कुछ नहीं तो यही बोल दे कि जमा पूंजी में इजाफा न हो और केवल खर्च ही होता रहे तो एक दिन कुबेर का खजाना भी खाली हो जाता है. या फिर दसरी वजह भी बता दे कि दनिया को शक हो जाता। लाजिमी भी है, आदमी कुछ कमाए धमाए न, केवल दोनों हाथों से खर्च करे तो शक होना लाजिमी होता है। अरे बोल मेरे शेर, तू गूंगा क्यों हो गया?"
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Re: Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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“ग..गोपाल।” सहगल के होंठ हिले। वह सकुचाता हुआ बोला “मेरे से बहुत बड़ी गलती हुई है। मेरे को माफ कर दे।"

“अरे नहीं साबिर बाबा।" गोपाल जल्दी से बोला “तेरे से किधर गलती हुई। गलती तो मेरे से हुई है तेरे पर भरोसा करने की गलती। याद है न तुझे, अपनी एकाउंटेंट की डिग्री लिये बीस साल पहले तू सड़कों पर धक्के खाता घूम रहा था, मगर तुझे कोई दो हजार की नौकरी देने को भी राजी नहीं था। तब मैं ही तुझे मिला था। मैंने तुझे दस हजार की नौकरी दी थी, फिर तुझे अपना पार्टनर बना लिया था। लाखों-करोड़ों की प्रापर्टी तेरे नाम कर दी थी। कितनी बड़ी गलती की थी मैंने।"

सहगल का सिर झुकता चला गया।

“उस वक्त जबकि मैं गिरफ्तार हुआ था, मुझे मदद की बहुत सख्त जरूरत थी।" गोपाल ने कहा “उस पुलिसिये ने मेरा केस कमजोर करने के लिए मेरे से तीन करोड़ की रिश्वत मांगी थी, जो कि अगर उस वक्त मैं उसे दे देता तो वह मेरा केस बहुत कमजोर कर देता और मैं मुश्किल से साल भर की जेल काटकर वापस आ जाता। और मैं यह कर सकता था तीन करोड़ की उसकी मांग आराम से पूरी कर सकता था। इसीलिए मैंने तुझे बुलाया था। कितनी बार तुझे संदेशा भिजवाया था। लेकिन तू नहीं आया, गधे की सींग बन गया।"

“म...म...मेरे से भारी गलती हुई गोपाल।"

"जिसका खामियाजा मुझे पन्द्रह साल की जेल काटकर चुकाना पड़ा।" गोपाल ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं थी “अगर मैंने अपनी पैंतरेबाजी न दिखाई होती और अपने जानकी लाल सेठ को ब्लैकमेल न किया होता तो शर्तिया मेरे को फांसी की सजा मिलती। और इधर तू मेरी दौलत पर ऐश करता रहा। क्या सोचा था तूने, मेरे को कभी आजादी नहीं हासिल होने वाली थी म..मैं फांसी पर चढ़ा दिया जाने वाला था?"

“म...मैं अपनी गलती कबूल करता हूं गोपाल ।”

“अभी और सुन साबिर बाबा अभी और सुन। तेरे को मेरी पल-पल की खबर थी। तेरे को यह भी मालूम था कि मैं कब जेल से छूटकर बाहर आने वाला था। और तू यह भी जानता था कि उसके बाद मेरा निशाना तू होगा और मैं तेरे टुकड़े इस शहर में फैला देने वाला था। इसीलिए...।”

सहगल ने झटके से गरदन उठाई और सवालिया निगाहों से उसे देखने लगा।

“तूने मेरा माकूल इंतजाम सोच लिया था।” गोपाल ने अपनी बात पूरी की “तूने मुझे ठिकाने लगाने का तरीका भी सोच लिया था बहुत शानदार तरीका। मगर जिससे एक तीर से दो-दो शिकार होने वाले थे। याद आया कुछ तेरे को?”

“म..मैं..."

“तू जानता था कि जेल से बाहर आने के बाद मुझे रुपयों की जरूरत होगी ढेर सारे रुपयों की। और उसका मेरे पास एक ही हुनर है सुपारी। इसीलिए तूने मेरे पास जानकी की सुपारी भिजवाई उस जानकी की जो मेरा पुराना क्लाइंट था, मगर जो आज जानकी से जानकी लाल बन चुका था जानकी लाल सेठ बन चुका था उससे भी बड़ी बात, तेरा दुश्मन बन चुका था ऐसा जानी दुश्मन जिसने तेरे को सात साल के लिए अंदर भिजवाया था।"

सहगल इस बार विरोध करने का हौसला न जुटा सका।

"तू असल में पैदाइशी कमीना है साबिर बाबा।” गोपाल अपने होंठ भींचता हुआ बोला “जिस थाली में खाता है उसी में छेद करने की तेरी पुरानी आदत है, वरना कम से जानकी लाल सेठ तेरा दुश्मन नहीं बना होता।" वह एक पल के लिए ठिठका, फिर आगे बोला “बहरहाल, जानकी लाल सेठ का काम तमाम करने के लिए तूने उस पटाखा के जरिए मेरे को अप्रोच किया था।

क्या नाम था उस हसीन गुड़िया का?"
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सहगल ने जवाब देने का उपक्रम न किया।
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Re: Thriller कांटा

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“मैंने तेरे से कुछ पूछा है?" गोपाल का लहजा कठोर हुआ था। “स...संजना।” सहगल हड़बड़ाकर बोला।

“वही। वाकई गजब की हसीन थी साली। तू उसके जरिए मेरे को शीशे में उतारना चाहता था, ताकि तू मेरे को जानकी लाल सेठ के कत्ल के इल्जाम में दोबारा पंद्रह साल के लिए अंदर भिजवा पाता। और यूं एक तीर से तेरे दोनों शिकार तेरे रास्ते से हट जाते और तू फिर आइंदा पंद्रह साल तक बेखौफ जीता रह सकता था।"

“य..यह झूठ है।”

“ठहर जा हरामी।” गोपाल ने कहर भरे स्वर में पूछा “मैंने तेरे से कब पूछा कि यह सही है या नहीं है।"

सहगल ने अपने होंठ भींच लिए।

“तेरे को यह पूछना चाहिए था बाबा कि जब मेरे को सब कुछ मालूम था, फिर भी मैंने जानकी लाल सेठ का फातिहा क्यों पढ़ा? क्यों जानबूझकर दोबारा अपनी उम्रकैद का इंतजाम किया था। पूछ, जल्दी पूछ।”

सहगल मुंह बाए उसे देखता रह गया।

"चल, मैं तेरे पूछे बिना ही मैं तेरे को बताए देता हूं।” गोपाल उसकी पता नहीं कितनी पुश्तों पर अहसान करता हुआ बोला "तुझे यह जानकर जरूर गश आ जाएगा कि तू मुझे जानकी लाल सेठ के कत्ल की सुपारी देता या न देता, उसका तो मेरे हाथों मरना निश्चित था। जेल से बाहर आते ही सबसे पहला काम मेरा यही था कि मैं उसे कुत्ते की मौत मारने वाला था। उसकी जिंदगी तो केवल तभी तक सलामत थी जब तक कि मैं जेल से बाहर नहीं आया था। अब पूछ कि ऐसा क्यों? जानकी लाल सेठ ने मेरा क्या बिगाड़ा था, उल्टा उसने तो मेरे पर अहसान ही किया था। पूछ हरामी, जल्दी पूछ।

सहगल मुंह से कुछ न बोला। लेकिन उसके चेहरे के जर्रे-जर्रे पर वह सवाल उभर आया था।

"क्योंकि वह मेरी ब्लैकमेलिंग से तंग आ गया था।" गोपाल ने बताया “और आता भी क्यों नहीं, मैं जेल में रहकर भी पिछले पंद्रह साल से उसे बराबर ब्लैकमेल कर रहा था उसे नींबू की तरह निचोड़ रहा था, क्योंकि उसकी जान मेरी मुट्ठी में थी। अगर वह मेरा कहना नहीं मानता तो मैं उसे पलक झपकते तबाह कर सकता था जेल की हवा खिला सकता था। और मैं जब तक जिंदा था, उसके ऊपर खतरे की तलवार बनकर लटकता रहने वाला था। अब यह मत पूछने लग जाना कि ऐसा क्यों था। क्योंकि वह मैं तुझे हरगिज भी नहीं बताने वाला।"

"न...नहीं पूलूंगा।"

"शाबाश। आखिरकार जानकी लाल सेठ ने अपने ऊपर लटकती उस खतरे की तलवार को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया था।” गोपाल ने बताया, फिर उसके चेहरे पर सवालिया निशान उभरे "जानता है इसके लिए उसने क्या किया था?"

"क...क्या किया था?" सहगल ने उत्सुक भाव से पूछा।

“उसने जेल में ही मुझे खत्म करवाने का इंतजाम कर दिया था। उसने एक ऐसे कांट्रेक्ट किलर को मेरे कत्ल की सुपारी लगाई थी, जो जेल के अंदर घुसकर कत्ल करने की भी सलाहियत रखता था। और वह किलर सचमुच ऐसा कर सकता था। असल में तो वह इसी काम का स्पेशलिस्ट था। जानकी लाल सेठ ने इस बार बहुत ही सोच समझकर दांव लगाया था, जिसकी कामयाबी के पूरे चांस थे। मगर जानता है क्या हुआ था।"

सहगल के चेहरे पर सस्पेंस के भाव गहरा गए थे।

"वह कांट्रेक्ट किलर मेरा शागिर्द निकल आया। समझा कुछ, जिस किलर को जानकी लाल सेठ ने मेरे कत्ल की सुपारी दी थी, वह मेरा अपना शागिर्द निकल आया। वह अपने तरीके से जेल में मेरे पास पहुंचा तो जरूर, लेकिन मुझे कत्ल करने के लिए नहीं, बल्कि मुझे खबरदार करने के लिए कि मेरी सुपारी लगाई जा चुकी थी। वह तो शुक्र है कि वह मेरा शागिर्द निकल आया और उसने मुझे बता दिया, लेकिन अगर ऐसा न हुआ होता तो क्या होता।”

सहगल टकटकी लगाए गोपाल को ही देख रहा था।
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Re: Thriller कांटा

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“अपने मुरीद उस किलर को तो मैंने वहां से रुख्सत कर दिया।" गोपाल ने आगे कहा “लेकिन जो हुआ उसने मेरे खून को किस कदर उबाला होगा, तू समझ ही सकता है बाबा। जानकी लाल सेठ का इलाज सचमुच मेरे लिए जरूरी हो गया था। अपनी दौलत के दम पर वह मेरे खिलाफ कोई भी गुल खिला सकता था और उसका माकूल इलाज केवल उसकी मौत ही थी, जिसे कि देने की मैं कसम खाए बैठा था। अगर तूने थोड़ा सा धैर्य रखा होता तो तेरा वह काम मुफ्त में ही हो जाने वाला था, जिसके लिए तूने मेरे पर लाखों रुपये खर्च किये।” वह पलभर के लिए रुका, फिर उसने सहगल को देखा

“अभी कुछ समझा बाबा।"

"ह...हां।” सहगल फंसे कंठ से बोला।

“लेकिन पछताने का नहीं है। तब किस्मत तेरे पर मेहरबान थी, आज मेरे पर मेहरबान है। अभी एक नजीर मेरे पास और
सहगल के चेहरे पर फिर सवालिया निशान उभरे।

“वह नजीर तू है साबिर बाबा खुद तू।” गोपाल ने अपनी तर्जनी अंगुली खंजर की तरह उसकी तरफ तान दी।

“क...क्या मतलब।" सहगल हचकचाया।

“अभी देख, तेरे को कत्ल करने के वास्ते तो मैं तेरे को पाताल से भी ढूंढ निकालने वाला था। उसके लिए मेरे को यह इंतजार किधर था कि कोई इसके लिए मेरे को तेरे कत्ल की सुपारी पेश करे। मगर देख, मेरे पास तेरी सुपारी भी आ गई। अभी बोल, किस्मत मेरे पर मेहरबान है कि नहीं।"

“क्या?” उसके उस नए रहस्योद्घाटन पर सहगल बुरी तरह से चौंका था “म...मेरी सुपारी तुम्हें किसने दी?"

“क्या करेगा जानकर बाबा। अभी तू जिधर जाने वाला है उधर तेरे से इस बारे में कोई नहीं पूछेगा।"

"न...नहीं।"

“और अब तेरे को...।" उसकी निगाह सहगल की बगल में रखे सूटकेस पर पलभर के लिए ठिठकी, फिर वह बोला “यह शहर छोड़कर भी जाने की जरूरत नहीं हैं। मैं आ गया है न तेरे को सीधे इस दुनिया से ही रुख्सत करने के वास्ते।"

“न...नहीं।” सहगल सूखे पत्ते की तरह कांप गया था “मुझे मारकर तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला।”

“तेरे को न मारने से क्या हासिल हो जाएगा कुत्ते-कमीने?”

“म...मेरे पास बहुत दौलत है। वह सारी की सारी मैं तुम्हें दे दूंगा। इस सूटकेस में...।” उसने अपने सूटकेस को थपथपाया “पचास लाख का कैश है। इसे तुम चाहो तो अभी ले जा सकते हो।"

“ला।” गोपाल ने अपनी चौड़ी हथेली उसके सामने फैला दी। सहगल ने अपने पास रखा सूटकेस उठाकर फौरन उसे पकड़ा दिया।

“मगर यह सब तेरी दौलत कैसे हुई हरामी।” गोपाल सूटकेस एक तरफ रखने के बाद बोला "तेरी सारी दौलत तो वैसे ही मेरी है, जो पन्द्रह साल पहले तूने मेरे से हथिया ली थी। उसे तू अपनी कैसे कह सकता है?"

“उ...उसके लिए मैं तुमसे पहले ही माफी मांग चुका हूं।" सहगल घिघियाया “फिर से मांग रहा हूं, गोपाल। मेरे को माफ कर दे, प्लीज।"

"ऐसा?"

“ह..हां...हां।"

“तो फिर माफी की तरह मांग न। तू तो ऐसे मांग रहा है जैसे कि माफी नहीं, मेरे से हिस्सा मांग रहा हो। माफी तो हाथ जोड़कर, पांव पकड़कर मांगी जाती है।"

सहगल के अंदर उम्मीद रोशन हुई।

“मैं...मैं तुम्हारे पांव पकड़ने के लिए तैयार हूं।” वह जल्दी से बोला। “तो फिर जल्दी से पकड़। मेरे पांव इधर नीचे हैं।”

सहगल झट से उठा और अगली सीटों की पुश्त से होकर बेहद असुविधापूर्ण ढंग से आगे उसके पैरों की तरफ झुक गया।
गोपाल की आंखों में एकाएक शैतानी चमक कौंध गई।

उसने अपने सधे हाथों से चमचमाता सा खंजर निकाला और उसे इत्मिनान से सहगल की गरदन में उतार दिया।

अजय को ले जाकर पुलिस स्टेशन के लॉकअप में बंद कर दिया गया और लॉकअप के दरवाजे को बाहर से ताला
लगाकर सिपाही वहां से चला गया।
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