“जहे नसीब मनोरमा जी।" मदारी खुश होकर बोला और उसने वार्निग के बावजूद एक बार फिर डमरू बजाया “आपने कबूल तो किया। कैसे मालूम हुआ यह आपको? टीवी पर देखा या बीबीसी पर सुना?”
“म..मैं...।” वह तनिक व्यग्र हुई थी “उस वक्त खुद वहां मौजूद थी।"
“क...कहां मौजूद थीं आप उस वक्त ? जहां श्री-श्री का देहावसान हुआ था?"
“हां। मैं....मैं उस वक्त वहां यमुना के पुल पर मौजूद थी, ज....जहां जानकी लाल की बीएमडब्ल्यू का एक्सीडेंट हुआ था।"
“अरे क्या कह रही हैं?" मदारी गहन अविश्वास से बोला। नैना के उस कबूलनामे पर उसे जोर का झटका लगा था “अ...आप उस वक्त वहां मौजूद थीं?"
“यही तो बताया है मैंने?”
"मगर आप वहां क्या कर रही थीं?"
“वहीं, जो वहां पर मौजूद हर कोई कर रहा था जानकी लाल भी?”
“अर्थात्...”
“कोर्ट जा रही थी।"
“कौन से कोर्ट जा रही थीं? उधर एक से ज्यादा कोर्ट पड़ते हैं।”
“हाई कोर्ट। वहां मेरी तारीख थी।"
"क्यों? क्या किया था आपने?"
“वह कारोबारी मामला था, जो कि कारोबार में चलता ही रहता है। रास्ते में ही यमुना का पुल पड़ता है जहां कि अचानक ही उस बीएमडब्ल्यू का एक्सीडेंट हो गया।"
“वह एक्सीडेंट नहीं कत्ल है मनोरमा जी। श्री-श्री की कार को जान बूझकर ठोका गया है। और एक नहीं दो-दो कारों ने उसे ठोककर नीचे यमुना में ढकेला है। उसे ठोकने वाली पहली कार एक काली स्कार्पियो थी, जिसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं हो सका, जबकि दूसरी कार...।” वह एक क्षण के लिए ठिठका, उसने एक अर्थपूर्ण निगाह नैना पर डाली फिर बोला “सफेद क्रूज थी, जिसके बारे में सबकुछ मालूम हो गया है। वह निस्संदेह आपकी कार थी, और सूत्र चीख-चीखकर बता रहे हैं कि घटना के वक्त उस कार को आप खुद चला रहीं थीं।"
"ह...हां।” नैना के चेहरे पर व्याकुलता के भाव आ गए थे। वह पहलू बदलकर बोली “मैं कबूल करती हूं कि उस वक्त कार को मैं ही चला रही थी। लेकिन जानकी लाल के एक्सीडेंट में मेरा कोई हाथ नहीं है इंस्पेक्टर।"
“कैसे हाथ नहीं है। आपकी क्रूज ने उसे टक्कर नहीं मारी थी क्या?”
“बीएमडब्ल्यू को स्कार्पियो ने टक्कर मारी थी और वह असंतुलित हो गई थी। यह केवल इत्तेफाक है इंस्पेक्टर कि मैं भी वहां से गुजर रही थी और उस वक्त मेरी कार जानकी लाल की बीएमडब्ल्यू के ठीक पीछे थी।"
+
“ओहो। तो आप फरमा रही हैं कि...यह केवल इत्तेफाक है?"
“ह..हां। यह इत्तेफाक के अलावा और कुछ नहीं है। मैंने भी अपनी कार को इमरजेंसी ब्रेक लगाए थे लेकिन स्कार्पियो से टक्कर के बाद जानकी लाल की बीएमडब्ल्यू पूरी तरह से अपना संतुलन खो बैठी थी और ब्रेकों पर घिसटती हुई, बुरी तरह लहराकर उसने अपनी लेन छोड़ दी थी, केवल इतना ही नहीं वह मेरी लेन के सामने आ गई थी। मैंने उसको बचाने की पूरी-पूरी कोशिश की थी, लेकिन मैं उसे रोक नहीं सकी और मेरी क्रूज ने उसे कट मार दिया था। अगर उस वक्त मेरी जगह तम होते इंस्पेक्टर तो तम भी उसे रोक नहीं पाते। मगर यह सच है कि मैंने जानबूझकर कुछ भी नहीं किया। सब कुछ अपने आप ही हो गया था।"
"हूं।" मदारी ने गहरी सांस ली, फिर कुछ क्षण सोचने के बाद बोला “बहरहाल चाहे जैसे भी हुआ, लेकिन आपके ही कर कमलों से हुआ। स्कार्पियो से टकराने के बाद श्री-श्री के ड्राइवर ने कार को संभाल लिया था और नीचे ढलान पर 'बेलन' बनने से बचा लिया था। लेकिन उसके तुरंत बाद आपकी क्रूज ने जो उम्दा शॉट लगाया, उसने बीएमडब्ल्यू को सड़क से नीचे उतरने पर मजबूर कर दिया, जहां कि आगे गहरी ढलान थी और जो आखिरकार इतने बड़े हादसे का सबब बना।"
"मैं फिर कह रही हूं इंस्पेक्टर कि ...वह सब मैंने जानबूझकर नहीं किया।” वह पुरजोर स्वर में बोली “सब कुछ इतना अप्रत्याशित था कि पल भर के लिए मैं खुद हक्की-बक्की रह गई थी, फिर मुझे खुद नहीं पता कि कब वह सब हो गया। वह तो ढलान पर गिरती बीएमडब्ल्यू को देखकर मुझे होश आया था।"
“और फिर होश आते ही..." मदारी के स्वर में गहरा व्यंग उभरा “आप वहां से गधे की सींग बन गईं?"
“और मैं क्या करती, कोई जानबूझकर अपनी गरदन फंदे में तो नहीं फंसाता है।"
“क्या फायदा हुआ? गरदन बच तो न पाई?"
"मैं खुद इस बात पर हैरान हूं। मैंने तो सोचा था कि मेरी कार को किसी ने नहीं पहचाना था। उसके नम्बर की तरफ किसी की तवज्जो नहीं गई थी। म...मैंने कितना गलत सोचा था?"
“लिहाजा आप बेकसूर हैं? सारा कसूर बीएमडब्ल्यू का ही है मरहूम श्री-श्री का ही है।"
“नहीं। उनका कसूर कैसे हो सकता है। उन्होंने कोई जानबूझकर तो कार को सड़क से नीचे थोड़े ही न उतारा होगा।"
"तो फिर?"
“वह काली स्कार्पियो। उसने जान बूझकर जानकी लाल की कार को टक्कर मारी थी?"
“यह आप कैसे कह सकती है कि काली स्कार्पियो ने जान बूझकर श्री-श्री की कार को टक्कर मारी थी।"
"क्योंकि मैं उस वक्त दोनों कारों के एकदम पीछे ही थी। वह तेज रफ्तार काली स्कार्पियो मेरी क्रूज को ओवरटेक करके आगे निकली थी। उस वक्त उसकी रफ्तार बेहद तूफानी थी। उसका ड्राइवर जैसे खुदकुशी पर आमादा मालूम होता था। उसने मेरी आंख के सामने बीएमडब्ल्यू ठोकी थी।"
“क्या आप दावे के साथ कह सकती हैं कि स्कार्पियो ने जानबूझकर बीएमडब्ल्यू को ठोका था?"
“और क्या? नहीं तो क्या ऐसे भीड़ भरे ट्रैफिक में कोई इस खतरनाक ढंग से ड्राइविंग करता है क्या?"
“यानि कि आप उस वाक्ये की चश्मदीद गवाह हैं। आपने सब कुछ अपनी आंखों से होता देखा है?"
“अ..और क्या?" उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया। “बीएम डब्ल्यू के पीछे अकेले आप ही तो नहीं होंगी, आपके आस-पास और भी बहुत सारी दूसरी कारें होंगी। फिर तो वह सब भी उस वाकये के चश्मदीद गवाह होंगे। उन लोगों ने भी वह सब अपनी आंखों से होता देखा होगा मनोरमा जी, जो कि आपने देखा है?"
Thriller कांटा
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Re: Thriller कांटा
“बिल्कुल देखा होगा।” नैना निःसंकोच बोली।
“मगर मुझे तो एक भी भद्रपुरुष ऐसा नहीं मिला, जिसने वह सब देखा होने का इतना मजबूत दावा किया हो? मजबूत क्या, दावा ही किया हो।"
"इसमें मैं क्या कर सकती हूं। यह तो आपका नकारापन है।"
“जहेनसीब! काफी क्रांतिकारी ख्यालात हैं, पुलिस के बारे में आम आदमी के। खैर.. अब एक बात और बताइए?"
"जरूर।"
“आप सारा इल्जाम काली स्कार्पियो पर थोपना चाहती हैं?"
“चाहती क्या हूं, सारा इल्जाम ही उस पर आना चाहिए।"
“क्या आपने स्कार्पियो का नम्बर नोट किया था?"
“उसमें जब कोई नम्बर ही नहीं था फिर नोट कहां से करती।”
“आपका मतलब है कि स्कार्पियो में कोई नम्बर प्लेट नहीं थी?"
"और क्या? वह एकदम नई थी, जैसे कि सीधी शोरूम से निकल कर आई हो।”
“इसीलिए उसमें नम्बर प्लेट नहीं लगी थी?"
“जी हां। उसकी नम्बर प्लेट वाली जगह पर एक कागज चिपका था। जिस पर कोई नम्बर लिखा था, जो कि मुझे याद नहीं।"
“क्यों याद नहीं?"
"क्योंकि वह नम्बर बहुत छोटे अंकों में लिखा था, जहां पर मेरी केवल एक नजर ही पड़ी थी। जब तक उस पर संदेह जाता, वह तूफान की तरह वहां से जा चुकी थी और दिखाई देना बंद हो गई थी।"
“वह टेम्परेरली रजिस्ट्रेशन नम्बर होता है, जो शोरूम से निकली नई कारों को दिया जाता है। शायद किसी की उस पर तवज्जो गई हो और उसने उस नम्बर को नोट कर लिया हो?"
"ऑफकोर्स। तुम्हें उस आदमी को खोजना चाहिए उसका पता लगाना चाहिए।"
“अगर ऐसा कोई भद्रपुरुष होगा तो खातिरजमा रखिए मनोरमा जी, वह मुझसे छुपा नहीं रह पाएगा। लेकिन आप शायद यह भूल रही हैं कि अगर गुनाहगार स्कार्पियो वाला नहीं है, तो क्या आपको यह बताने की जरूरत है कि फिर गुनाहगार कौन होगा?"
“नहीं।" वह दो टूक बोली “तब तो निश्चित रूप से गुनाहगार केवल मैं ही साबित होने वाली हूं।"
“बजा फरमाया, मनोरमा जी। वैसे देखा जाए तो कितनी अजीब बात है! इस मामले में आपके साथ इत्तेफाक का कितना बड़ा दखल है।”
“क्या मतलब है तुम्हारा इंस्पेक्टर?"
“अपने सबसे करीबी दुश्मन के घातक एक्सीडेंट के वक्त आप उसकी कार के ठीक पीछे मौजूद थीं। यह भी कुछ कम इत्तेफाक नहीं है कि यदि आपकी कार ने ऐसे नाजुक लम्हें में जरा धैर्य से काम लिया होता और अपना वह उम्दा शाट न दिखाया होता तो निश्चित रूप से श्री-श्री की मौत की घड़ी टल जाती। स्कार्पियो वाले भद्रमानव की इतनी खतरनाक ज्यादती के बावजूद श्री-श्री की मौत टल जाती। आपको नहीं लगता?"
“शायद तुम ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर।” नैना ने बड़ी शराफत से स्वीकार किया।
मदारी ने हैरानी से उसे देखा।
"ऐसे मुझे क्या देख रहे हो इंस्पेक्टर।” उसे इस तरह अपनी ओर देखता पाकर नैना ने कहा “यही सच है। बहरहाल, भले ही जानकी लाल से कट्टर प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन जी चाहे तो यकीन कर लो, हम केवल आपस में कम्पटीटर ही थे। अपनी इस सोच को बदलो कि हम एक-दूसरे के दुश्मन थे। उसकी मौत का मुझे सख्त अफसोस है?"
"मुझे भी सख्त अफसोस है।”
नैना के चेहरे पर उलझन के भाव आए। उसने अपलक मदारी को देखा।
"बात को समझिए मन को हरने वाली अर्थात् मनोहरा जी।" उसने स्पष्ट किया “मेरा मतलब केवल इतना ही है कि श्री-श्री की मौत पर अफसोस करने वाले कम जश्न मनाने वाले ज्यादा हैं।”
“म..मैं कुछ समझी नहीं।”
“समझ जाएंगी, बस आगे का खेल जरा समझकर खेलिएगा। क्योंकि इस खेल में अब दिल्ली पुलिस के इस मनहूस इंस्पेक्टर का दखल हो गया है, जो सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने में यकीन रखता है।” वह ठिठका, फिर नैना को देखकर एकाएक उसने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये थे और जबरदस्ती दांत निकालता हुआ बोला “बुरा मत मानिएगा मनोरमा जी, अब मैं इजाजत चाहता वह एकाएक खामोश हो गया।
अचानक ही उसका मोबाइल बजने लगा था।
“मगर मुझे तो एक भी भद्रपुरुष ऐसा नहीं मिला, जिसने वह सब देखा होने का इतना मजबूत दावा किया हो? मजबूत क्या, दावा ही किया हो।"
"इसमें मैं क्या कर सकती हूं। यह तो आपका नकारापन है।"
“जहेनसीब! काफी क्रांतिकारी ख्यालात हैं, पुलिस के बारे में आम आदमी के। खैर.. अब एक बात और बताइए?"
"जरूर।"
“आप सारा इल्जाम काली स्कार्पियो पर थोपना चाहती हैं?"
“चाहती क्या हूं, सारा इल्जाम ही उस पर आना चाहिए।"
“क्या आपने स्कार्पियो का नम्बर नोट किया था?"
“उसमें जब कोई नम्बर ही नहीं था फिर नोट कहां से करती।”
“आपका मतलब है कि स्कार्पियो में कोई नम्बर प्लेट नहीं थी?"
"और क्या? वह एकदम नई थी, जैसे कि सीधी शोरूम से निकल कर आई हो।”
“इसीलिए उसमें नम्बर प्लेट नहीं लगी थी?"
“जी हां। उसकी नम्बर प्लेट वाली जगह पर एक कागज चिपका था। जिस पर कोई नम्बर लिखा था, जो कि मुझे याद नहीं।"
“क्यों याद नहीं?"
"क्योंकि वह नम्बर बहुत छोटे अंकों में लिखा था, जहां पर मेरी केवल एक नजर ही पड़ी थी। जब तक उस पर संदेह जाता, वह तूफान की तरह वहां से जा चुकी थी और दिखाई देना बंद हो गई थी।"
“वह टेम्परेरली रजिस्ट्रेशन नम्बर होता है, जो शोरूम से निकली नई कारों को दिया जाता है। शायद किसी की उस पर तवज्जो गई हो और उसने उस नम्बर को नोट कर लिया हो?"
"ऑफकोर्स। तुम्हें उस आदमी को खोजना चाहिए उसका पता लगाना चाहिए।"
“अगर ऐसा कोई भद्रपुरुष होगा तो खातिरजमा रखिए मनोरमा जी, वह मुझसे छुपा नहीं रह पाएगा। लेकिन आप शायद यह भूल रही हैं कि अगर गुनाहगार स्कार्पियो वाला नहीं है, तो क्या आपको यह बताने की जरूरत है कि फिर गुनाहगार कौन होगा?"
“नहीं।" वह दो टूक बोली “तब तो निश्चित रूप से गुनाहगार केवल मैं ही साबित होने वाली हूं।"
“बजा फरमाया, मनोरमा जी। वैसे देखा जाए तो कितनी अजीब बात है! इस मामले में आपके साथ इत्तेफाक का कितना बड़ा दखल है।”
“क्या मतलब है तुम्हारा इंस्पेक्टर?"
“अपने सबसे करीबी दुश्मन के घातक एक्सीडेंट के वक्त आप उसकी कार के ठीक पीछे मौजूद थीं। यह भी कुछ कम इत्तेफाक नहीं है कि यदि आपकी कार ने ऐसे नाजुक लम्हें में जरा धैर्य से काम लिया होता और अपना वह उम्दा शाट न दिखाया होता तो निश्चित रूप से श्री-श्री की मौत की घड़ी टल जाती। स्कार्पियो वाले भद्रमानव की इतनी खतरनाक ज्यादती के बावजूद श्री-श्री की मौत टल जाती। आपको नहीं लगता?"
“शायद तुम ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर।” नैना ने बड़ी शराफत से स्वीकार किया।
मदारी ने हैरानी से उसे देखा।
"ऐसे मुझे क्या देख रहे हो इंस्पेक्टर।” उसे इस तरह अपनी ओर देखता पाकर नैना ने कहा “यही सच है। बहरहाल, भले ही जानकी लाल से कट्टर प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन जी चाहे तो यकीन कर लो, हम केवल आपस में कम्पटीटर ही थे। अपनी इस सोच को बदलो कि हम एक-दूसरे के दुश्मन थे। उसकी मौत का मुझे सख्त अफसोस है?"
"मुझे भी सख्त अफसोस है।”
नैना के चेहरे पर उलझन के भाव आए। उसने अपलक मदारी को देखा।
"बात को समझिए मन को हरने वाली अर्थात् मनोहरा जी।" उसने स्पष्ट किया “मेरा मतलब केवल इतना ही है कि श्री-श्री की मौत पर अफसोस करने वाले कम जश्न मनाने वाले ज्यादा हैं।”
“म..मैं कुछ समझी नहीं।”
“समझ जाएंगी, बस आगे का खेल जरा समझकर खेलिएगा। क्योंकि इस खेल में अब दिल्ली पुलिस के इस मनहूस इंस्पेक्टर का दखल हो गया है, जो सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने में यकीन रखता है।” वह ठिठका, फिर नैना को देखकर एकाएक उसने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये थे और जबरदस्ती दांत निकालता हुआ बोला “बुरा मत मानिएगा मनोरमा जी, अब मैं इजाजत चाहता वह एकाएक खामोश हो गया।
अचानक ही उसका मोबाइल बजने लगा था।
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Re: Thriller कांटा
“ऊंह।” उसने बुरा सा मुंह बनाया। वह नैना से मानो क्षमा याचना सी करता हुआ बोला। उसने नैना को रिएक्ट करने का मौका फिर भी नहीं दिया था “य...यह कमबख्त पुलिसवालों का मोबाइल भी बड़ा कमबख्त होता है मनोरमा जी। हमेशा गलत वक्त पर बजता है, और जब बजता है तो उठाना ही पड़ता है जैसे कि मैं अभी उठाने वाला हूं।"
नैना कुछ न बोली। वह खामोशी से बस मदारी को घूरती रही। मदारी ने फोन रिसीव किया और मोबाइल कान से लगाकर सहज भाव से बोला “जय भोलेनाथ की।” फिर दूसरी तरफ से जो कुछ बताया गया, उसे सुनकर वह यूं उछला जैसे कि उसे बिच्छू ने डंक चुभो दिया हो।
चेहरे पर कई रंग आए और चले गए।
नैना ध्यानपूर्वक उसके चेहरे को देख रही थी।
“क..क्या हुआ इंस्पेक्टर?" मदारी ने फिर जैसे ही मोबाइल कान से हटाया वह पूछे बिना न रह सकी थी। उसके चेहरे पर स्वाभाविक कौतूहल उभर आया था।
"वही मनोरमा जी, जो नहीं होना चाहिए था।" मदारी बेहद आंदोलित भाव से बोला।
“क...क्या? क्या नहीं होना चाहिए था?"
"कल्ल ।"
“व..व्हाट?" नैना चौंक पड़ी थी “कल? अब किसका कत्ल हो गया?"
“बताने का वक्त नहीं है। फिलहाल मुझे जाना होगा। जय भोलेनाथ की।"
मदारी फिर एक पल के लिए भी वहां नहीं रुका था।
वह पलटकर तेजी से बाहर निकल गया। चैम्बर के ठीक बाहर नैना की सेक्रेटरी का काउंटर था, जहां प्राची पूरी मुस्तैदी से मौजूद थी।
उसने मदारी को तेजी से बाहर जाते देखा था और उसके असामान्य हाव-भावों को भी महसूस कर लिया था। उससे पहले जितनी देर मदारी अंदर नैना के केबिन में रहा था, प्राची बेहद बेचैन रही थी और अंदर क्या चल रहा था, भांपने का प्रयास करती रही थी। लेकिन नैना का चैम्बर साउंडप्रूफ था इसलिए वह अपने उस कुप्रयास में कामयाब नहीं हो सकी थी।
फिर जैसे ही मदारी बाहर निकला, वह चौकन्नी हो गई थी। कुछ क्षणों तक वह बड़े धैर्य से इंतजार करती रही थी। फिर जैसे ही मदारी आंखों से ओझल हुआ, उसने फौरन अपना मोबाइल निकाल लिया, फिर फुर्ती से एक सावधान निगाह अपनी बॉस के बंद केबिन पर डाली और मैसेज पंच करने लगी।
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नैना कुछ न बोली। वह खामोशी से बस मदारी को घूरती रही। मदारी ने फोन रिसीव किया और मोबाइल कान से लगाकर सहज भाव से बोला “जय भोलेनाथ की।” फिर दूसरी तरफ से जो कुछ बताया गया, उसे सुनकर वह यूं उछला जैसे कि उसे बिच्छू ने डंक चुभो दिया हो।
चेहरे पर कई रंग आए और चले गए।
नैना ध्यानपूर्वक उसके चेहरे को देख रही थी।
“क..क्या हुआ इंस्पेक्टर?" मदारी ने फिर जैसे ही मोबाइल कान से हटाया वह पूछे बिना न रह सकी थी। उसके चेहरे पर स्वाभाविक कौतूहल उभर आया था।
"वही मनोरमा जी, जो नहीं होना चाहिए था।" मदारी बेहद आंदोलित भाव से बोला।
“क...क्या? क्या नहीं होना चाहिए था?"
"कल्ल ।"
“व..व्हाट?" नैना चौंक पड़ी थी “कल? अब किसका कत्ल हो गया?"
“बताने का वक्त नहीं है। फिलहाल मुझे जाना होगा। जय भोलेनाथ की।"
मदारी फिर एक पल के लिए भी वहां नहीं रुका था।
वह पलटकर तेजी से बाहर निकल गया। चैम्बर के ठीक बाहर नैना की सेक्रेटरी का काउंटर था, जहां प्राची पूरी मुस्तैदी से मौजूद थी।
उसने मदारी को तेजी से बाहर जाते देखा था और उसके असामान्य हाव-भावों को भी महसूस कर लिया था। उससे पहले जितनी देर मदारी अंदर नैना के केबिन में रहा था, प्राची बेहद बेचैन रही थी और अंदर क्या चल रहा था, भांपने का प्रयास करती रही थी। लेकिन नैना का चैम्बर साउंडप्रूफ था इसलिए वह अपने उस कुप्रयास में कामयाब नहीं हो सकी थी।
फिर जैसे ही मदारी बाहर निकला, वह चौकन्नी हो गई थी। कुछ क्षणों तक वह बड़े धैर्य से इंतजार करती रही थी। फिर जैसे ही मदारी आंखों से ओझल हुआ, उसने फौरन अपना मोबाइल निकाल लिया, फिर फुर्ती से एक सावधान निगाह अपनी बॉस के बंद केबिन पर डाली और मैसेज पंच करने लगी।
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Re: Thriller कांटा
संजना को देखते ही सहगल अपने ऊपर से नियंत्रण खो बैठा। उसने इस तरह झपट्टा मारकर उसे अपनी बांहों से दबोचा कि क्या बाज अपने शिकार को दबोचता होगा। उसकी इस प्रत्याशित हरकत पर संजना बुरी तरह बौखला गई और उसके हलक से घुटी-घुटी सी चीख निकल गई। मगर उसकी परवाह किए बिना सहगल ने संजना के गुदाज बदन को अपनी बांहों में उठा लिया और उसे ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया।
"ऊई मां।" संजना के होठों से फिर चीख निकल गई “क्या करते हो?"
“अभी कहां कुछ किया है मेरी जान।” सहगल लिबास के ऊपर से उसके बदन पर हाथ फिराता शरारत से बोला “ वह तो आगे करूंगा।"
"छ...छोड़ो मुझे।" संजना तड़पकर बोली “पहले मेरी बात सुनो।”
“अभी सुनने का वक्त नहीं आया है। थोड़ी देर के बाद सुनूंगा।”
“इ...इतना बेसब्र क्यों हो रहे हो बॉस। मैं क्या कहीं भागी जा रही हूं।” संजना प्रतिरोध भरे स्वर में बोली। “भागोगी तो तब जबकि मैं तुम्हें भागने दूंगा।"
"अरे कम से कम वह तो जान लो कि जिस काम के लिए मैं गई थी, उसका क्या हुआ?"
“उसमें भला क्या पूछना?" सहगल तनिक ठिठक गया था और संजना के गदराये जिस्म के हर उभार तथा हर कटाव को वह भूखी तथा ललचाई नजरों से टटोलने लगा था “तुमने पहले भी कभी मुझे निराश किया है जो आज करोगी। मुझे सौ फीसदी यकीन है मेरा काम एकदम चौकस हुआ होगा।"
“यह तो है। म...मैं बकाया रकम उसे खुद अपने हाथों से देकर आई हूं।”
"देखा।” वह विजेता के से अंदाज से बोला “मैंने कहा था न कि काम एकदम चौकस हुआ होगा। कुछ कह तो नहीं रहा
था वह बदबख्त?"
“वही तो मैं तुम्हें बताना चाहती थी।"
"क...क्या?"
"मैंने रुपयों का सूटकेस देकर तुम्हारी तरफ से उसे शुक्रिया भी बोला था।"
“शु...शुक्रिया?"
“हां। आखिर उसने तुम्हारा काम इतना चौकस जो किया है तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन जानकी लाल को पलक झपकते ठिकाने लगा दिया और तुम्हारा बदला पूरा हो गया।"
“हां।” उसे जैसे याद आया था। उसने स्वीकार किया “यह तो है। शुक्रिया बोलने लायक काम तो उसने सचमुच किया है। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। मुझे पूरा यकीन था कि वह मुझे जरा भी निराश नहीं करेगा।"
“यह यकीन तुम्हें आखिर क्यों था। क्या तुम पहले भी उससे कोई काम करवा चुके हो? मेरा मतलब किसी की सुपारी लगवा चुके हो?"
“वह पन्द्रह साल से जेल में था और जेल से वह भला किसकी सुपारी लगा सकता था मेरी बन्नो।"
"तो फिर?"
“विश्वास हासिल करने के और भी बहुत से तरीके हो सकते हैं। तुम नहीं समझोगी गुले गुलजार।"
“जरूरत भी क्या है मुझे समझने की।" संजना ने मुंह बिसूरा “वैसे तुम खुद उसके पास क्यों नहीं गए? पहले एडवांस तुमने मेरे ही हाथों उसे पहुंचाया भी था।"
“जो बॉस होता है, वह केवल हुक्म देता है, खुद कुछ नहीं करता।" "क्या कहने? मैं बेईमान हो जाती और सारा पैसा लेकर भाग जाती तो?"
“कौन क्या कर सकता है और क्या नहीं, इसका मुझे बहुत पुराना तजुर्बा है।"
"फिर भी...?”
“जाने दो न हनी। तुम्हें उसके पास भेजने की एक और भी वजह थी।"
"क..क्या ?"
"मैं चाहता था कि वह तुम पर लटू हो जाए।"
"म..मुझ पर लटू हो जाए।" वह तनिक चौंकी थी और उलझकर बोली “मगर तुम उसे मुझ पर लटू कराना क्यों चाहते हो?"
“ताकि तुम उसे शीशे में उतार सको।”
“उ...उस किलर को उस हत्यारे को?"
"क्यों भई! वह हत्यारा भी तो आखिरकार एक मर्द है, जिन्हें साबुत हज्म कर जाने का तुम्हें अच्छा तर्जुबा है।"
"लेकिन तुम यह सब क्यों चाहते हो?"
"है कोई वजह?"
“मुझे वह वजह नहीं बताओगे?"
“नहीं! क्योंकि अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है।"
"म...मतलब?"
|
“जानकी लाल सेठ का कत्ल तो केवल आरंभ है। अभी मेरे खून की प्यास बुझी नहीं है। अभी और लाशें गिरने वाली हैं।"
"व्हाट?" वह चिहुंककर उसे देखने लगी थी “अब और किसकी लाश गिरने वाली है?"
“इतनी जल्दी भी क्या है। मालूम हो जाएगा।"
"लेकिन..."
“घबराओ मत जाने तमन्ना। जहन्नुम रसीद होने वालों की उस लिस्ट में तुम्हारा नाम शामिल नहीं है। तुम तो पूरे सौ साल जीने वाली हो।"
“म...मगर जानकी लाल के बाद अब और कौन है जो तुम्हारा दुश्मन है?"
"मैंने कहा न मालूम हो जाएगा।"
“बॉस!” संजना ने अपलक उसे देखा। उसकी आंखों में संदेह के कीड़े गिजबिजाने लगे थे “तुम आखिर खेल क्या खेल रहे हो?"
"बहुत ही दिलचस्प खेल है जाने तमन्ना, तुम जरा भी बोर नहीं होगी?"
"बात अगर केवल कत्ल की है तो वह तुम सुपारी देकर उस किलर से करा सकते हो उसके लिए उसे शीशे में उतारने की भला क्या जरूरत है मुझे मोहरा बनाने की क्या जरूरत है?"
"ताकि वह किलर मेरा खेल समझने न पाए।"
“अगर वह समझ गया तो क्या होगा?"
"अनर्थ हो जाएगा।"
“ओह। लगता है सुपारी देकर सीधे रास्ते से कत्ल करवाने से वह समझ जाएगा कि तुम क्या खेल खेल रहे हो?"
"यकीनन!”
“जबकि अगर मैंने उसे शीशे में उतारकर अपनी जुल्फों में उलझाकर यह काम कराया तो वह नहीं समझ पाएगा?"
"हरगिज भी नहीं।"
"इतना यकीन है तुम्हें।”
“ऑफकोर्स स्वीटी।"
“लगता है उसे काफी करीब से जानते हो?"
"बहुत ज्यादा।"
"इतना ज्यादा तो कोई किसी को तभी जान सकता है जबकि उससे कोई पुराना नाता हो?"
“ ऐसा ही समझ लो?"
“यानी कि मुझे उसके सामने भी कपड़े उतारने होंगे अपने आशिकों की लिस्ट में एक नाम का इजाफा और करना होगा?"
"ऊई मां।" संजना के होठों से फिर चीख निकल गई “क्या करते हो?"
“अभी कहां कुछ किया है मेरी जान।” सहगल लिबास के ऊपर से उसके बदन पर हाथ फिराता शरारत से बोला “ वह तो आगे करूंगा।"
"छ...छोड़ो मुझे।" संजना तड़पकर बोली “पहले मेरी बात सुनो।”
“अभी सुनने का वक्त नहीं आया है। थोड़ी देर के बाद सुनूंगा।”
“इ...इतना बेसब्र क्यों हो रहे हो बॉस। मैं क्या कहीं भागी जा रही हूं।” संजना प्रतिरोध भरे स्वर में बोली। “भागोगी तो तब जबकि मैं तुम्हें भागने दूंगा।"
"अरे कम से कम वह तो जान लो कि जिस काम के लिए मैं गई थी, उसका क्या हुआ?"
“उसमें भला क्या पूछना?" सहगल तनिक ठिठक गया था और संजना के गदराये जिस्म के हर उभार तथा हर कटाव को वह भूखी तथा ललचाई नजरों से टटोलने लगा था “तुमने पहले भी कभी मुझे निराश किया है जो आज करोगी। मुझे सौ फीसदी यकीन है मेरा काम एकदम चौकस हुआ होगा।"
“यह तो है। म...मैं बकाया रकम उसे खुद अपने हाथों से देकर आई हूं।”
"देखा।” वह विजेता के से अंदाज से बोला “मैंने कहा था न कि काम एकदम चौकस हुआ होगा। कुछ कह तो नहीं रहा
था वह बदबख्त?"
“वही तो मैं तुम्हें बताना चाहती थी।"
"क...क्या?"
"मैंने रुपयों का सूटकेस देकर तुम्हारी तरफ से उसे शुक्रिया भी बोला था।"
“शु...शुक्रिया?"
“हां। आखिर उसने तुम्हारा काम इतना चौकस जो किया है तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन जानकी लाल को पलक झपकते ठिकाने लगा दिया और तुम्हारा बदला पूरा हो गया।"
“हां।” उसे जैसे याद आया था। उसने स्वीकार किया “यह तो है। शुक्रिया बोलने लायक काम तो उसने सचमुच किया है। लेकिन यह कोई नई बात नहीं है। मुझे पूरा यकीन था कि वह मुझे जरा भी निराश नहीं करेगा।"
“यह यकीन तुम्हें आखिर क्यों था। क्या तुम पहले भी उससे कोई काम करवा चुके हो? मेरा मतलब किसी की सुपारी लगवा चुके हो?"
“वह पन्द्रह साल से जेल में था और जेल से वह भला किसकी सुपारी लगा सकता था मेरी बन्नो।"
"तो फिर?"
“विश्वास हासिल करने के और भी बहुत से तरीके हो सकते हैं। तुम नहीं समझोगी गुले गुलजार।"
“जरूरत भी क्या है मुझे समझने की।" संजना ने मुंह बिसूरा “वैसे तुम खुद उसके पास क्यों नहीं गए? पहले एडवांस तुमने मेरे ही हाथों उसे पहुंचाया भी था।"
“जो बॉस होता है, वह केवल हुक्म देता है, खुद कुछ नहीं करता।" "क्या कहने? मैं बेईमान हो जाती और सारा पैसा लेकर भाग जाती तो?"
“कौन क्या कर सकता है और क्या नहीं, इसका मुझे बहुत पुराना तजुर्बा है।"
"फिर भी...?”
“जाने दो न हनी। तुम्हें उसके पास भेजने की एक और भी वजह थी।"
"क..क्या ?"
"मैं चाहता था कि वह तुम पर लटू हो जाए।"
"म..मुझ पर लटू हो जाए।" वह तनिक चौंकी थी और उलझकर बोली “मगर तुम उसे मुझ पर लटू कराना क्यों चाहते हो?"
“ताकि तुम उसे शीशे में उतार सको।”
“उ...उस किलर को उस हत्यारे को?"
"क्यों भई! वह हत्यारा भी तो आखिरकार एक मर्द है, जिन्हें साबुत हज्म कर जाने का तुम्हें अच्छा तर्जुबा है।"
"लेकिन तुम यह सब क्यों चाहते हो?"
"है कोई वजह?"
“मुझे वह वजह नहीं बताओगे?"
“नहीं! क्योंकि अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ है।"
"म...मतलब?"
|
“जानकी लाल सेठ का कत्ल तो केवल आरंभ है। अभी मेरे खून की प्यास बुझी नहीं है। अभी और लाशें गिरने वाली हैं।"
"व्हाट?" वह चिहुंककर उसे देखने लगी थी “अब और किसकी लाश गिरने वाली है?"
“इतनी जल्दी भी क्या है। मालूम हो जाएगा।"
"लेकिन..."
“घबराओ मत जाने तमन्ना। जहन्नुम रसीद होने वालों की उस लिस्ट में तुम्हारा नाम शामिल नहीं है। तुम तो पूरे सौ साल जीने वाली हो।"
“म...मगर जानकी लाल के बाद अब और कौन है जो तुम्हारा दुश्मन है?"
"मैंने कहा न मालूम हो जाएगा।"
“बॉस!” संजना ने अपलक उसे देखा। उसकी आंखों में संदेह के कीड़े गिजबिजाने लगे थे “तुम आखिर खेल क्या खेल रहे हो?"
"बहुत ही दिलचस्प खेल है जाने तमन्ना, तुम जरा भी बोर नहीं होगी?"
"बात अगर केवल कत्ल की है तो वह तुम सुपारी देकर उस किलर से करा सकते हो उसके लिए उसे शीशे में उतारने की भला क्या जरूरत है मुझे मोहरा बनाने की क्या जरूरत है?"
"ताकि वह किलर मेरा खेल समझने न पाए।"
“अगर वह समझ गया तो क्या होगा?"
"अनर्थ हो जाएगा।"
“ओह। लगता है सुपारी देकर सीधे रास्ते से कत्ल करवाने से वह समझ जाएगा कि तुम क्या खेल खेल रहे हो?"
"यकीनन!”
“जबकि अगर मैंने उसे शीशे में उतारकर अपनी जुल्फों में उलझाकर यह काम कराया तो वह नहीं समझ पाएगा?"
"हरगिज भी नहीं।"
"इतना यकीन है तुम्हें।”
“ऑफकोर्स स्वीटी।"
“लगता है उसे काफी करीब से जानते हो?"
"बहुत ज्यादा।"
"इतना ज्यादा तो कोई किसी को तभी जान सकता है जबकि उससे कोई पुराना नाता हो?"
“ ऐसा ही समझ लो?"
“यानी कि मुझे उसके सामने भी कपड़े उतारने होंगे अपने आशिकों की लिस्ट में एक नाम का इजाफा और करना होगा?"
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Re: Thriller कांटा
“क्या फर्क पड़ता है! वह बहुत शानदार आदमी है। तुम्हें मायूस नहीं करेगा।"
"बड़े दावे से कह रहे हो।"
“आजमाकर देख लेना।"
“उसमें तो बस जरा सी ही कसर रह गई थी।"
“आजमाकर देखने में?"
"ह..हां।"
"मैं कुछ समझा नहीं?"
“वहीं तो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी। लेकिन तुम समझने के मूड में ही कहां थे?"
“
अब हूं। फौरन समझा डालो।"
“मेरे हाथ से रुपयों वाला सूटकेस लेकर उसने दूसरे हाथ से मुझे वापस कर दिया था।"
"क्यों भला?”
"मर मिटा था मुझ पर फिदा हो गया था। एक बार तो मैं डर ही गयी थी कि कहीं मुझे दबोचकर नीचे न गिरा दे, जैसे इस वक्त तुमने गिरा रखा है।"
“नामुमकिन"
"क्या ?"
“वह औरत से जबरदस्ती करने में विश्वास नहीं रखता। वह औरत को राजी करके ही उसके साथ हमबिस्तर होता है। जहां तक मुमकिन होता है वह बलात्कार से बचता है।"
"बहुत खूब। कितना ज्यादा जानते हो तुम उसके बारे में, लेकिन जितना भी जानते हो, सही जानते हो। उसने सचमुच मेरे साथ जबरदस्ती की कोशिश नहीं की थी, जबकि वहां इसका मौका था। अगर वह चाहता तो मेरे साथ सरासर जबरदस्ती कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसने केवल मुझे प्रपोज किया मुझे राजी करने का प्रयास किया।"
“तुम्हें वह रुपयों से भरा सूटकेस वापस लौटाकर?”
“हां।” कहने लगा “उसकी तरफ से मेरा यह एक छोटा सा तोहफा था, जो कि अगर मैं कबूल कर लेती तो उसे बहुत खुशी होती।"
“तुमने वह तोहफा कबूल नहीं किया?"
“नहीं। मेरे तो कुछ समझ में नहीं आया था। वह मेरे लिए एकदम अप्रत्याशित था। उस सूटकेस में दस लाख रुपये थे।"
"तब तो तुमने अपना बहुत बड़ा नुकसान किया?"
“यह तो है।"
“अब तो तुम्हें उसका अफसोस हो रहा होगा? आखिर दस लाख कोई मामूली रकम नहीं होती। और बदले में बदले में उसे ऐसा क्या चाहिए था जो तुम पहले ही जी भरके नहीं लुटा चुकी। नो?”
“तुम मेरी इंसल्ट कर रहे हो बॉस।" “फौरन जाकर उसका तोहफा कबूल करो।" “मैं कर लूंगी। उसने मुझे वक्त दे रखा है, मगर...।"
“मगर क्या?"
“वह बहुत खतरनाक आदमी है। उम्र कैद की सजा काटकर अभी बाहर आया है और आते ही फिर एक कत्ल कर चुका है। उससे और कत्ल कराने का इरादा बनाए बैठे हो। म...मैं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं?"
“पहली बात तो यह डार्लिंग कि गुनाहगार तुम नहीं, वह है। दूसरी बात, फिर मैं कब काम आऊंगा।"
“ओहो।"
“अब तुम चुप करो और मुझे जश्न मनाने दो।"
"ज...जश्न?"
“मेरा मतलब, मुझे मेरी कामयाबी का जश्न मनाने दो।" उसका संजना पर थोड़ी देर के लिए शिकंजा फिर से कस गया, जो कि थोड़ी देर के लिए ढीला हो गया था।
इस बार शिकंजा ऐसा कसा कि संजना को अपनी हड्डियां चटकती महसूस हुईं।
उसके हलक से फिर घुटी-घुटी सी चीख निकल गई। उसने सहगल का प्रतिरोध करने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब न हो सकी।
"बड़े दावे से कह रहे हो।"
“आजमाकर देख लेना।"
“उसमें तो बस जरा सी ही कसर रह गई थी।"
“आजमाकर देखने में?"
"ह..हां।"
"मैं कुछ समझा नहीं?"
“वहीं तो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी। लेकिन तुम समझने के मूड में ही कहां थे?"
“
अब हूं। फौरन समझा डालो।"
“मेरे हाथ से रुपयों वाला सूटकेस लेकर उसने दूसरे हाथ से मुझे वापस कर दिया था।"
"क्यों भला?”
"मर मिटा था मुझ पर फिदा हो गया था। एक बार तो मैं डर ही गयी थी कि कहीं मुझे दबोचकर नीचे न गिरा दे, जैसे इस वक्त तुमने गिरा रखा है।"
“नामुमकिन"
"क्या ?"
“वह औरत से जबरदस्ती करने में विश्वास नहीं रखता। वह औरत को राजी करके ही उसके साथ हमबिस्तर होता है। जहां तक मुमकिन होता है वह बलात्कार से बचता है।"
"बहुत खूब। कितना ज्यादा जानते हो तुम उसके बारे में, लेकिन जितना भी जानते हो, सही जानते हो। उसने सचमुच मेरे साथ जबरदस्ती की कोशिश नहीं की थी, जबकि वहां इसका मौका था। अगर वह चाहता तो मेरे साथ सरासर जबरदस्ती कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसने केवल मुझे प्रपोज किया मुझे राजी करने का प्रयास किया।"
“तुम्हें वह रुपयों से भरा सूटकेस वापस लौटाकर?”
“हां।” कहने लगा “उसकी तरफ से मेरा यह एक छोटा सा तोहफा था, जो कि अगर मैं कबूल कर लेती तो उसे बहुत खुशी होती।"
“तुमने वह तोहफा कबूल नहीं किया?"
“नहीं। मेरे तो कुछ समझ में नहीं आया था। वह मेरे लिए एकदम अप्रत्याशित था। उस सूटकेस में दस लाख रुपये थे।"
"तब तो तुमने अपना बहुत बड़ा नुकसान किया?"
“यह तो है।"
“अब तो तुम्हें उसका अफसोस हो रहा होगा? आखिर दस लाख कोई मामूली रकम नहीं होती। और बदले में बदले में उसे ऐसा क्या चाहिए था जो तुम पहले ही जी भरके नहीं लुटा चुकी। नो?”
“तुम मेरी इंसल्ट कर रहे हो बॉस।" “फौरन जाकर उसका तोहफा कबूल करो।" “मैं कर लूंगी। उसने मुझे वक्त दे रखा है, मगर...।"
“मगर क्या?"
“वह बहुत खतरनाक आदमी है। उम्र कैद की सजा काटकर अभी बाहर आया है और आते ही फिर एक कत्ल कर चुका है। उससे और कत्ल कराने का इरादा बनाए बैठे हो। म...मैं किसी मुसीबत में न फंस जाऊं?"
“पहली बात तो यह डार्लिंग कि गुनाहगार तुम नहीं, वह है। दूसरी बात, फिर मैं कब काम आऊंगा।"
“ओहो।"
“अब तुम चुप करो और मुझे जश्न मनाने दो।"
"ज...जश्न?"
“मेरा मतलब, मुझे मेरी कामयाबी का जश्न मनाने दो।" उसका संजना पर थोड़ी देर के लिए शिकंजा फिर से कस गया, जो कि थोड़ी देर के लिए ढीला हो गया था।
इस बार शिकंजा ऐसा कसा कि संजना को अपनी हड्डियां चटकती महसूस हुईं।
उसके हलक से फिर घुटी-घुटी सी चीख निकल गई। उसने सहगल का प्रतिरोध करने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब न हो सकी।