माँ का आशिक
आज सुबह से शहनाज़ बहुत खुश थी क्योंकि इकलौता बेटा शादाब दस साल के बाद घर वापिस लौट रहा था। इन सालों के दौरान दोनो के बीच बहुत कम बात हुई क्योंकि बेटा हॉस्टल में रहता था।
दरअसल शहनाज़ के पति की मौत गांव में डॉक्टर ना होने की वजह से हो गई थी इसलिए वी बुरी तरह से टूट गई थी और उसने उसी दिन फैसला किया था कि वो अपने बेटे को हर हाल में एक डॉक्टर बनाएगी ताकि फिर गांव में किसी की मौत डॉक्टर ना होने की कमी के चलते ना हो सके। उसने अपने बेटे से कसम ली थी कि जब तक वो एमबीबीएस का एग्जाम पास नहीं करेगा वो उसकी शक्ल तक नहीं देखेगी।
कल ही सीपीएमटी का रिजल्ट आया था जिसमें उसके बेटे ने टॉप किया था और बस अब कुछ साल में अंदर ही उसका डाक्टर बन जाना तय था।
शाहनवाज जानती थी कि उसने अपने मासूम से बेटे पर बहुत ज़ुल्म किए हैं लेकिन वो गांव की भलाई के चलते मजबुर थी और ये उसके बाप की भी इच्छा थी कि उसका बेटा एक डॉक्टर बने। शाहनवाज की शादी रहमान से मात्रा 17 साल की उम्र में हो गई है और अगले ही साल उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया था। लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चल पाई और एक एक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो गई थी, गांव से शहर तक ले जाते उसने दम तोड़ दिया था। काश उस वक़्त गांव में अस्पताल होता तो आज उसका मियां जिस्म होता।
शहनाज़ के शौहर एक शाही राजघरानों से थे। राज पाट तो चले गए लेकिन उनकी शानो शौकत अभी तक जिंदा थी। घर में पीछे छुट गई थे उसके सास ससुर जी की अब पूरी तरह से कमजोर होकर बेड का सहारा ले चुके थे। बस उनकी सेवा में लगी रहती थी, घर वालो और रिश्तेदारों ने दूसरी शादी का बहुत दबाव दिया लेकिन उसने अपने बेटे के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया और शादी ना करने का फैसला किया था। बेचारी नाज बचपन से लेकर अब तक दुख ही झेलती अाई थी, छोटी सी उम्र में ही मा का इंतकाल हो गया था, बाप ने दूसरी शादी कर ली और सौतेली मा ने नाज को बहुत परेशान किया जिस कारण वो सिर्फ 12 तक ही पढ़ सकी थी।
एक दिन रहमान के बाप की नजर उस पर पड़ी तो उन्हें लगा कि उन्हें अपने बेटे के लिए जिस परी की तलाश थी वो उन्हें मिल गई हैं बस फिर उसकी शादी हो गई।
पूरे घर को सजाया गया था और एक बहुत ही बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था क्योंकि आज शादाब ने एमबीवीएस का एग्जाम पास कर लिया था इसलिए पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ गई थी।
शहनाज़ सुबह जल्दी उठी और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई। उसने अपना बुर्का बाहर ही उतार दिया था और अब सिर्फ सूट सलवार पहने हुए थी। शाहनवाज एक गोरे बदन की भरी हुई औरत थी, दूध में चुटकी भर सिंदूर मिला दो तो ऐसा गजब का रंग था, एक दम चांद सा खुबसुरत चेहरा, गहरे काले घने बाल मानो ऐसे लहराते थे कि सावन की घटाए भी पनाह मांगती थी।उसके भरे हुए सुंदर गाल मानो कोई खूबसूरत सेब, गालों की लाली देखते ही बनती थी, उसकी बड़ी बड़ी प्यारी खूबसूरत बोलती हुई आंखे, छोटी सी प्यारी सी नाक जो उसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी। उसके होंठ बिल्कुल शबनम की बूंद की तरह से नाजुक, हल्का सा लाल रंग लिए हुए मानो कुदरत ने खुद ही उसके होंठो को सजाकर भेजा हो,एक दम पतले पतले होंठ मानो किसी गुलाब की आपस में जुड़ी हुई लाल सुर्ख फूल की दो पंखुड़ियां।
बस उसका ये कातिल चेहरा ही आज तक सभी ने देखा था क्योंकि वो अपने आपको पुरी तरह से ढक कर रखती थी। वो एक मर्यादा में रहने वाली औरत थी और उसने अपनी मर्यादा को कभी लांघने की कोशिश नहीं करी थी क्योंकि उसके संस्कार हमेशा आड़े अा जाते थे। वो इतनी शर्मीली थी कि आज तक किसी के आगे पूरी तरह से नंगी नहीं हुई थी यहां तक की सुहागरात को भी उसने अपने पति को पूरे कपड़े निकालने से साफ इंकार कर दिया था क्योंकि उससे ये सब नहीं हो सकता था। नहाते हुए भी हमेशा अपनी आंखे बंद करके ही नहाती थी क्योंकि उसमे इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वो अपने आपको खुद ही नंगा देख सके। आंखो की हया और खुदा का डर उसके उपर हमेशा हावी रहा।
उसने अपने कपड़े धीरे से एक एक करके बंद आंखो के साथ निकाले और जल्दी ही नहा धोकर तैयार हो गई। ब्रा पेंटी पहन लेने के बाद उसने एक काले रंग का सूट सलवार पहना और फिर बुर्का पहनकर एयरपोर्ट जाने के लिए तैयार हो गई।
ड्राइवर ने गाड़ी निकाली और जल्दी ही वो एयरपोर्ट पर खड़ी हुई थी। वो बाहर निकलते लोगो पर नजर गड़ाए हुए थी उसकी बेचैनी इस कदर बढ़ गई थी कि उसे आने वाले हर लड़के में अपना बेटा नजर अा रहा था। अपने लख्ते जिगर को वो कैसे पहचानेगी ये सोच सोच कर वो परेशान थी। एयरपोर्ट पर जाने वाले एक मात्र रास्ते पर उसका ड्राइवर उसके बेटे के नाम की तख्ती लिए खड़ा हुआ था।