Incest माँ का आशिक

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josef
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Re: Incest माँ का आशिक

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शहनाज उपर छत से सब देख और सुन रही थी। जैसे ही रेशमा ने उसके बेटे का गाल चूमा था तो उसका मन किया था कि उसका मुंह तोड़ दे। कमीनी कहीं की मेरे बेटे पर डोरे डाल रही हैं, हद हो गई उसको अपने साथ शहर के जाने के लिए भी बोल रही है। मेरे बेटे को बिगाड़ ना दे ये कमीनी। मुझे ध्यान रखना होगा। ।

तभी बाहर से एक आदमी आया और शादाब को अपने साथ ले गया तो शहनाज़ ने राहत की सांस ली।खैर 12 बजे तक मेहमान अा चुके थे और पार्टी शुरू हो गई। सबने शादाब से मिलकर उसे दुआ दी और उससे अपना प्यार प्रकट किया।

रेशमा ने शादाब को एक बहुत ही अच्छी सोने की अंगूठी गिफ्ट में दी तो शादाब खुश हो गया। पार्टी में कुछ ऐसे परिवार भी आए जो शादाब के दादा को जानते थे जबकि शहनाज़ के बारे में उन्हें नहीं पता था कि ये शादाब की अम्मी हैं।

ऐसे ही परिवार से कुछ औरतें अाई तो जो शादाब को पागलों की तरह घुरे जा रही थी। शहनाज़ को बुरा लगा और उन्हें बोलने के लिए उनके पास जाने लगी की तभी उनकी आवाज उसके कानों में पड़ी।

एक औरत:" हाय देख ना क्या दूध सा गोरा चित्ता लड़का हैं, एक दम चॉकलेटी

दूसरी:" कमीनी चुप कर, मेरी तो जीभ में पानी अा रहा है उसके ये नाजुक होंठ देखकर, मन करता हैं कि अभी जाकर चूस लू!!

पहली औरत:" हाय तेरे बस जीभ में पानी अा रहा हैं, मैं तो नीचे से भ पूरी भीग चुकी हूं।पेंटी से रस बाहर टपक रहा है।

दूसरी:' क्या बात करती है तू, मेरी भी हालत खराब होने लगी है, उफ्फ देख ना कितनी चौड़ी छाती हैं, हाय मेरा तो जीभ से चाटने को मन कर रहा है।

इतना कहकर वो अपनी जीभ अपने होंठो पर शादाब की तरफ देखते हुए फिराने लगी।दोनो की हंसी छूट गई जबकि शहनाज़ का खून जल रहा था, लेकिन वो अपनी ही पार्टी में हल्ला नहीं करना चाहती थी।

पहली:" उसका तो सारा बदन ही गोरा हैं, लगता हैं इसका तो घोड़ा भी गोरा ही होगा।

दूसरी:" हान तू ठीक कहती हैं मैंने आज तक जितने भी लंड देखे सब काले ही थे, गोरे गोरे मर्दों के भी लंड काले होते है, शायद ये पहला होगा जिसका लंड गोरा होगा।

अपने बेटे के बारे में ऐसी बाते सुनकर शहनाज़ का दिल बैठने लगा और उसकी आंखो में आंसू छलक पड़े।

पहली:" हाय गोरा लंड चूसने में कितना मजा आता होगा, अब तक तो सिर्फ काले ही मिले हैं चूसने के लिए।

दूसरी:" चुप कर कमीनी, कोई सन लेगा तो क्या कहेगा। तेरी बात सुनकर तो मेरे मुंह में भी पानी अा गया।

शहनाज को आज पहली बार पता चला कि लंड चूसा भी जाता है, उसे सुनकर बड़ा बुरा लगा, लंड भी कोई चूसने की चीज होती हैं, कितनी जाहिल हैं है औरतें।

दूसरी:" सच यार, मर्द एकदम से काबू में रहते हैं लंड चूसने से, अगर एक बार इसका नंबर मिल जाए तो घोड़ी बन जाऊ इसके लिए और लंड चूस लू।

पहली:" हान तू ठीक कहती है एक बार मेरा पति दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया था क्योंकि मैं उसका लंड नहीं चूसती थी। लेकिन जबसे चूसना शुरू किया सब ठीक हैं, कुत्ते की तरह दम हिलाए मेरे आगे पीछे घूमता रहता हैं।
josef
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Re: Incest माँ का आशिक

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दूसरी:" हान सच कहा बहन तूने, किसी तरह से तू इस लड़के का नंबर निकाल, फिर तू बाकी सब मुझ पर छोड़ दें।

पहली:" ठीक हैं, मैं अपने बेटे की पढ़ाई के बहाने से बात करके इसके दादा से नंबर ले लूंगी।

शहनाज का दिल पूरी तरह से तड़प उठा। उसने फैसला किया कि वो अपने बेटे को इन सबसे बचा कर रखेगी। तभी उसके कानों में रेशमा की आवाज पड़ी जो तो वो उसकी तरफ जाने लगीं। शहनाज़ ने पूछा:

" हान बोलो क्या हुआ?

रेशमा:" खाना तो सबने खा लिया हैं और सब लोग एक दूसरे से मिल भी चुके हैं। मुझे लगता हैं कि पार्टी अब खतम कर देनी चाहिए।

शहनाज ने एक दम रेशमा की बात का समर्थन किया क्योंकि वो नहीं चाहती थी कि उसके बेटे को फिर से और किसी की नजर लग जाए। धीरे धीरे पार्टी खत्म हो गई और एक एक करके सभी मेहमान जाने लगे। ।


वो दोनो औरतें जो कि सगी देवरानी और जेठानी थी एक बहुत बड़े सरकारी अधिकारी के घर से अाई थी जो किसी मजबूरी के कारण नहीं अा पाया था। वो शादाब के दादा के पास अाई और एक बोली:"

" बाबा हमे भी अपने बेटे को डाक्टर बनाना हैं, अगर आप हमे शादाब का नंबर दे तो हम जरूरत पड़ने पर उससे बात कर लगी।

दादा:" हान हान बेटी क्यों नहीं, इंसान ही इंसान के काम आता हैं लो मैं दे देता हूं।

दादा जी ने उन्हें नंबर दे दिया तो वो दोनो खुशी से चहकती हुई चली गई। शहनाज़ ये सब देख रही थी और उसका मूड पूरी तरह से खराब हो गया था। खैर सभी मेहमान चले गए और घर में रुकी बाद शादाब की बुआ रेशमा। शहनाज का दिल कर रहा था कि ये कमीनी भी चली जाए लेकिन मेहमान के साथ जबरदस्ती करना ही अच्छी बात नहीं होती और रेशमा इस घर की बेटी हैं इसलिए वो चुप रहीं।


धीरे धीरे शाम का अंधेरा बढ़ने लगा और दादा दादी खाना खाकर लेट गए थे। रेशमा काफी दिनों के बाद घर अाई थी इसलिए अपनी सहेली चंपा से मिलने का सोचने लगी।

रेशमा:" भाभी अगर आप कहें तो मैं अपनी सहेली चंपा से मिलकर अा जाऊ ?

शहनाज खुश हो गई कि कुछ देर के लिए ही सही लेकिन मुसीबत दूर हो रही है।

शहनाज़:" आप चली जाओ, को बात नहीं आराम से मिलकर आना आप।

अब रेशमा ने अपना असली जाल फेंका और बोली:" वो भाभी अंधेरा होने लगा है बाहर, अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं शादाब को अपने साथ ले जाऊं?

शहनाज़ की झांटे सुलग उठी और मन किया कि इसे थप्पड़ मार दे लेकिन खुद को संभालते हुए बोली:"

"एक काम करना आप सुबह चली जाना, अभी अंधेरा भी बढ़ रहा है बाहर !!

रेशमा भी कुछ जरूरत से ज्यादा चालाक थी इसलिए बोली:".

" कल सुबह 6 बजे उसकी ट्रेन हैं इसलिए अभी जाऊंगी तो मिल जाएगी । भाभी प्लीज भेज दो ना आप इसे मेरे साथ।

शादाब:" अम्मी जब बुआ इतनी गुज़ारिश कर रही है तो भेज दो आप मुझे। मैं भी गांव देख आऊंगा।

शहनाज़ के पास अब कोई बहाना नहीं बचा था इसलिए दुखी मन के साथ उसे जाने की इजाज़त दे दी।

शहनाज़:" ठीक हैं लेकिन जल्दी वापिस लौट आना, कहूं मैं इंतजार करती रहूं।

रेशमा का चेहरा खिल उठा और इससे पहले कि वो बाहर की तरफ निकलते शादाब के चाची अा गई जो कि रेशमा को अपने घर ले जाने की जिद करने लगी।
रेशमा मना करती रही लेकिन उसकी एक नहीं चली तो वो बोली आखिरकार बोली:"..

" बेटा मैं थोड़ी देर बाद आती हूं जब तक तुम आराम करो, उसके बाद चलते हैं।
josef
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शहनाज ने ये सब सुनकर राहत की सांस ली और उपर की तरफ चल पड़ी। शादाब भी अपनी अम्मी के पीछे पीछे ही चल दिया।

सीढ़ियों पर चढ़ती शहनाज़ सोच रही थी कि उसे कुछ करना होगा ताकि इन चुड़ैल औरतो से अपने बेटे को बचा सके। वो अपने कमरे में पहुंच में पहुंच गई और अपने बेटे को आने को बोला तो शादाब उसके पीछे पीछे ही अंदर चला आया। शहनाज़ को समझ नहीं आ रहा था कि वो कहां से शुरू करे क्योंकि एक तो वो बहुत ज्यादा शर्मीली थी और उससे भी बड़ी मुश्किल ये थी वो अपने सगे बेटे से ये सब बाते कैसे करे। शादाब अपनी अम्मी के चेहरे पर परेशानी साफ़ देख रहा था इसलिए उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और बोला:" क्या हुआ अम्मी सब ठीक तो हैं, आप कुछ परेशान सी लग रही हो?

शहनाज़ अपने बेटे की बात सुनकर एक पल के लिए तो सकपका सी गई लेकिन फिर अपने आपको संभालते हुए कहा :" नहीं बेटा मैं तो बिल्कुल ठीक हूं। बस सोच रही थी आज तुझे सबने कुछ ना कुछ गिफ्ट दिया बस मैं ही कुछ नहीं दे पाई।

शादाब:" अरे अम्मी मा बेटे में कोई गिफ्ट नहीं होता, आप तो मेरी प्यारी अम्मी हैं, आपका प्यार ही तो मेरे लिए गिफ्ट हैं।

शहनाज़ उसकी तरफ देखते हुए:" वो बात तो ठीक हैं बेटा लेकिन फिर भी मुझे कोई तो गिफ्ट देना चाहिए अपने प्यारे बेटे को ताकि मुझे तसल्ली हो। लेकिन मैं तो बेटा घर से बाहर भी नहीं निकलती इसलिए कुछ ला भी नहीं पाई तेरे लिए!!

शादाब:" अम्मी आप परेशान ना हो, मुझे बस आपका प्यार चाहिए और कुछ नहीं।

शहनाज़ ने अपनी जेब के अंदर हाथ डालकर एक गुलाब का लाल सुर्ख फूल निकाल लिया तो शादाब की आंखे खुशी के साथ हैरानी से फैलती चली गई।

शहनाज़ थोड़ा सा आगे बढ़ी और अपने बेटे के ठीक सामने पहुंच गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह से कांप रहा था और चेहरा लाल हो गया था। उसने एक बार चेहरा उपर उठाया और अपने बेटे की आंखो में देखते हुए बोली:"

" बेटा अपनी अम्मी की तरफ से ये छोटा सा गिफ्ट कुबूल करो।

शादाब ने खुशी के साथ अपनी मा के हाथो से वो फूल ले लिया और उसकी आंखो में देखते हुए कहा:"

" अम्मी ये तो मेरे लिए आज का सबसे बड़ा गिफ्ट हैं, आप सच में बहुत अच्छी हो अम्मी।

शादाब ने खुश होकर अपनी अम्मी को गले लगा लिया और अपनी बांहे उसकी कमर पर लपेट दी। शहनाज़ ने भी अपने बेटे के मजबूत कंधे पर अपना सिर झुका दिया और उससे चिपक गई।

शहनाज:" बेटा ये फूल बड़े नाजुक होते हैं, बहुत प्यार से संभाल कर रखना इसे क्योंकि पहली बार मैंने किसी को गिफ्ट दिया हैं मेरे लाल।

शादाब:" अम्मी इस फूल से ज्यादा नाजुक तो मुझे आप लगती है, देखो अभी भी कैसे शर्मा रही हैं आप !!

अपने बेटे की बात सुनकर शहनाज़ सच में शर्म से लाल हो गई और उसकी आंखो में लाल डोरे तैरने लगे। उसने एक हाथ से अपने बेटे के हाथ को कस कर पकड़ लिया तो शादाब ने फूल को अपनी मा के चेहरे पर घुमाना शुरू कर दिया तो शहनाज़ को उसकी सांसे रुकती हुई सी महसूस होने लगी। उसके गालों को छूते नाजुक फूल की पंखुड़ियां जैसे ही उसके होंठो से टकराई तो शहनाज़ के मुंह से एक आह निकल पड़ी जिसे उसने बड़ी मुश्किल से दबाया। शादाब ने जैसे ही फूल को उसके होंठो पर उपर नीचे फिराया तो शहनाज़ के गाल एक दम गुलाबी होकर अपनी छटा बिखेरने लगे। उसकी आंखे बंद हो गई और उसने अपने बेटे को कस कर पकड़ लिया।शादाब ने फूल को अपनी जेब में रखते हुए अपनी मा को अपनी मजबूत बांहों में जोर से कस लिया। शहनाज़ का दिल किसी बुलेट ट्रेन की रफ्तार से धड़कने लगा और उसकी चूचियां उसके बेटे के सीने में अपना दबाव बनाने लगी। शादाब ने अपनी अम्मी का खुबसुरत चेहरा पकड़ कर उपर उठाया तो शहनाज़ की आंखे बंद हो गई। शादाब अपनी अम्मी के बालो में अपना हाथ फेरते हुए अपने चेहरे को उसके चेहरे के पास ले जाने लगा तो शहनाज़ किसी सूखे हुए वर्क्ष की तरफ कांपने लगी। उसके होंठ कांप रहे थे और पूरे जिस्म में एक अजीब सी मस्ती छाई हुई थी।




शादाब ने अपने चेहरे को थोड़ा सा और आगे की बढ़ाया तो उसकी गर्म गर्म सांसे अपनी मा के चेहरे पर पड़ने लगी जिससे शहनाज की हालत और खराब होने लगी। जैसे ही शादाब के होंठ अपनी मा शहनाज के होंठ के पास पहुंचे तो शहनाज़ ने अपने हाथो की पकड़ अपने बेटे पर बढ़ा दी तो शादाब के होंठ शहनाज़ के होंठो को हल्का सा छूते हुए उसके गालों पर जा लगे।



उफ्फ शहनाज़ तो इस अनोखे एहसास से पूरी तरह से मस्त हो गई उसके जिस्म ने उसका साथ छोड़ दिया तो उसने अपने आपको पूरी तरह से अपने बेटे की बांहों में ढीला छोड़ दिया। शादाब ने अपनी मा के एक कश्मीरी सेब की तरह लाल सुर्ख हो चुके गाल को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा। जैसे ही शादाब के होंठ शहनाज़ के होंठो को हल्का सा छूते हुए उसके गाल से टकराए तो शहनाज़ ने पूरी तरह से मस्ती में आकर अपनी पकड़ अपने बेटे पर और बढ़ा दी। शादाब कभी उसके गाल को होंठो से चूम रहा था तो कभी जीभ से हल्का हल्का सहला रहा था। शहनाज़ की हालत खराब होने लगी , उसकी आंखे इस अदभुत सुख के कारण पूरी तरह से अभी तक बंद पड़ी हुई थी और पूरा चेहरा लाल हो चुका था और उसके चेहरे पर फैले हुए उसके वाले बाल उसे और खूबसूरत बना रहे थे। उसका पूरा जिस्म किसी आग की भट्टी की तरह तप रहा था, उसकी चूत से रस टपकना शुरू हो गया था और पेंटी गीली हो रही थी। उसके मुंह से निकलती गर्म गर्म सांसे शादाब को पूरी तरह से मदहोश कर रही थी जिस कारण वो अपने एक हाथ से अब अपनी मा की कमर को हल्का हल्का सहला रहा था।शहनाज़ पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और उसकी चूत में आग लगी हुई थी इसलिए वो अपनी चूत को खुद ही अपने टांगो से हल्का हल्का मसल रही थी। शादाब ने जैसे ही उसके गाल पर हल्के से दांत गड़ाए तो शहनाज़ काम वासना से पागल होकर उससे पूरी ताकत से लिपट गई जिससे उसकी चूत शादाब के खड़े हुए लंड से कपड़ों के उपर से ही टकरा गई। अपने बेटे के लंड का अपनी चूत पर ये पहला एहसास उससे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसकी चूत ने अपना बांध तोड़ते हुए अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। शहनाज़ ने अपनी सब लाज शर्म छोड़कर अपनी चूत को पूरी ताकत से अपने बेटे के लंड पर दबा दिया और जोश में आकर अपने बेटे के चेहरे को थाम लिया और उसके गाल को जोर जोर से चूमने लगी।
josef
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तभी उसे उपर किसी के आने की आहट हुई तो दोनो की हालत खराब हो गई। शादाब के गाल पर उसकी लिपस्टिक से लाल लाल निशान पड़ गए थे इसलिए उसने जल्दबाजी में अपने बेटे का गाल जीभ निकाल कर चाट लिया और उसके गाल को साफ कर दिया। शादाब अपनी अम्मी के इस कामुक अवतार को देखकर हैरान हो गया। शहनाज़ की जीभ के इस मस्त एहसास से शादाब को बहुत सुखद अनुभव हुआ और उसके मुंह से एक मस्ती भरी आह निकल पड़ी। रेशमा वापिस आ गई थी शादाब को अपने साथ ले जाने के लिए ।

रेशमा:" भाभी कहां हो आप ?

शहनाज़:" अरे रेशमा मैं अपने ही कमरे में हूं, तुम अंदर ही आ जाओ!!

रेशमा अंदर घुस गई और बोली :"

" मैं आ गई हूं जल्दी से आप शादाब को मेरे साथ भेज दो ताकि मैं चंपा के घर से जल्दी ही वापस आ सकू।

शहनाज़:" जाओ बेटा अपनी बुआ के साथ, लेकिन ध्यान रखना कि जल्दी आ जाना।

शहनाज का दिल तो नहीं कर रहा था अपने बेटे को उसके साथ भेजने के लिए लेकिन अब कोई रास्ता नहीं बचा था। रेशमा शादाब को लेकर अपने साथ निकल गई तो शहनाज़ का दिल उदास हो गया और घर का बाकी काम देखने लगी।


शादाब कार निकालने लगा तो रेशमा बोली:"

" अरे बेटा बाइक से चलते हैं, अच्छा मौसम हैं, थोड़ी गांव की खुली हवा भी लग जाएगी।

शादाब ने रेशमा की बात मानते हुए बाइक निकाल ली। शादाब ने बाइक स्टार्ट करी और अपनी बुआ को बैठने का इशारा किया तो रेशमा ने ठीक शादाब के सामने आते हुए जान बूझकर
अपना दुपट्टा नीचे गिरा दिया जिससे उसकी गोरी चूचियों का उभार नजर आने लगा, शादाब की नजरे किसी चुंबक की तरह उसकी चूचियों पर चिपक गई। रेशमा मुस्कुराई और नीचे की तरफ अपना दुपट्टा उठाने के लिए झुकी तो उसकी चूचियां आधे से ज्यादा बाहर की तरफ छलक पड़ी, रेशमा ने तिरछी निगाहों से एक बार शादाब की तरफ देखा और फिर अपने हाथ से अपनी चूचियों को अंदर की तरफ ठूसने लगी और बोली:"

" हाय ये दुपट्टा भी बार बार गिर जाता हैं, कैसे संभालू इसको!!

शादाब इस नजारे को देखकर गरम हो गया और उसके लंड में तनाव आने लगा। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी नजरे रेशमा की चूचियों पर से हटाई और आगे की तरफ देखने लगा। रेशमा अब सीधी खड़ी हो गई थी और उसे शादाब की पेंट का उभार साफ़ नजर आ रहा था जिसे देखकर वो लंड की लंबाई का अंदाजा लगा रही थी और उसकी चूत से रस की कुछ बूंदे निकल गई।


रेशमा ने आगे कदम रखा और लड़खड़ाने का बहाना करते हुए शादाब के ठीक लंड के उपर हाथ रख कर उसे पकड़ लिया और उसकी लम्बाई मोटाई को अच्छे से महसूस करते हुए हल्का सा सहला दिया । रेशमा शादाब के पीछे बाइक पर उससे चिपक कर बैठ गई और अपनी चूचियों का दबाव उसकी कमर पर डाल रही थी जिससे शादाब को बहुत अच्छा लगा रहा था। जैसे ही बाइक को हलका सा झटका लगा तो रेशमा जान बूझकर उसके और करीब सिमट अाई। शादाब एक जवान लड़का था और उस दौर से गुजर रहा था जिसमें औरत के जिस्म और सेक्स के बारे में जानने की बड़ी इच्छा होती हैं। शादाब की तरफ से कोई भी विरोध ना पाकर वो अब अच्छे से अपनी चूची उसकी कमर पर रगड़ रही थी।

रेशमा:" शादाब बेटा तुम बहुत खूबसूरत और प्यारे हो, एकदम जवान हो गए हो तुम!!

शादाब कुछ नहीं बोला लेकिन मुस्कुरा उठा और रेशमा को उसके जिस्म के इशारों से सब कुछ समझ अा गया। रेशमा उससे थोड़ा खुलना चाहती थी ताकि आगे उसे पटाने में आसानी हो ।

रेशमा:"बेटा वहां शहर में तो तुम खूब मस्ती करते होंगे दोस्तो के साथ !?

शदाब:" हान बुआ, थोड़ा कम ही किया मैंने, बस पढ़ाई पर ध्यान ज्यादा दिया!!

रेशमा अब एक हाथ से उसके कंधे को हल्का सा सहलाते हुए बोली:" बेटा सुना है कि दिल्ली में तो लडको की दोस्त लड़कियां भी होती हैं !!

शादाब:" हान बुआ होती तो मैं, मैंने देखा मेरे कुछ भी लड़कियों के साथ घूमते थे ।

रेशमा को लगा कि लड़का लाइन पर अा रहा हैं और जल्दी ही उसका काम बन जाएगा। उसने हाथ को थोड़ा नीचे की तरफ लाते हुए उसकी चौड़ी छाती पर टिका दिया और बोली:"
" तेरी कोई दोस्त नहीं थी क्या शादाब वहां पर लड़की!?

शादाब को अपनी बुआ का हाथ अपनी छातियों पर अच्छा लगा और वो थोड़ा सा पीछे की तरफ हुआ जिससे उत्साहित होकर रेशमा ने अपने हाथ की पकड़ थोड़ा और बढ़ा दी!!

शादाब:" नहीं बुआ, मेरी कोई कोई लड़की दोस्त नहीं थी,

रेशमा ने अब उसकी शर्ट का एक उपर वाला बटन खोल दिया और हाथ को हल्का सा अंदर डालकर सहलाते हुए बोली:"

"जरूरी तूने ही किसी को लाइन नहीं दी होगी नहीं तो तेरे उपर तो लड़कियां अपनी जान भी लुटा देती बच्चे!!

इतना कहकर रेशमा के हाथ की उंगलियां उसकी छाती के बालों से खेलने लगी। शादाब पूरी तरह से मस्त हो गया क्योंकि पहली बार किसी औरत ने उसकी छाती को सहलाया था इसलिए उसके मुंह से एक मस्ती भरी आह निकल पड़ी। रेशमा समझ गई कि लड़का पट गया है और अब जल्दी ही उसे एक कुंवारे लड़के की सील तोडने का मौका मिलेगा। रेशमा ने अब शादाब पर भावनात्मक रूप से हमला किया और बोली:'

" शादाब तुझे पता है तेरे फूफा मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते, मुझे एक दोस्त की बड़ी कमी महसूस होती हैं, क्या तू मेरा दोस्त बन सकता है?

शादाब की सांसे तेज होने लगी और उसके मुंह से उत्तेजना के मारे कोई आवाज नहीं निकल रही थी, रेशमा ने अपनी उंगलियों में शादाब के एक निप्पल को भर लिया और हल्का सा दबाते हुए बोली:" बता ना बेटा अपनी बुआ का दोस्त बनेगा ना ?

शादाब अपने निप्पल पर हुए इस प्रहार से मस्ती से भर उठा और बोला:" हान बुआ बनूंगा मैं आपका दोस्त !!


तभी चंपा का घर अा गया और दोनो उसके घर के अंदर घुस गए। रेशमा को देखते ही चंपा खुशी के मारे उससे लिपट गई तो रेशमा ने भी अपनी बांहे में उसे कस लिया।
मेल मिलाप कर बाद चंपा ने दोनो को हल्का सा नाश्ता कराया क्योंकि खाना सभी खा चुके थे। चंपा ने शादाब की तरफ देखते हुए कहा:"

" रेशमा ये लड़का किसका हैं? तेरा बेटा तो इतना बड़ा नहीं होगा अभी !!

रेशमा:" अरे चंपा ये मेरे भाई का लड़का हैं, अभी सीपीएमटी पास किया हैं इसने।

चंपा;" ओह मतलब लड़का सुंदर होने के साथ साथ होशियार भी हैं। सच में ऐसे लडके आज कल कहां मिलते है!! बेटा आया करो कभी कभी ये भी तुम्हारा अपन ही घर हैं।

ये बोलकर चंपा की आंखो में एक चमक उभर आई थी जिसे रेशमा ने साफतौर पर नोटिस किया।
josef
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Re: Incest माँ का आशिक

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शादाब:" जी आंटी, कोशिश करूंगा मैं टाइम निकालकर आने की आपके यहां।

फिर काफी देर तक दोनो में बाते होती रही और फिर रेशमा बोली:"

" अच्छा चंपा मैं चलती हूं अपने घर, रात बहुत हो गई हैं, देख 10 बजने वाले हैं ।

चंपा उन्हें छोड़ने बाहर तक अाई और एक प्यार भरी स्माइल उसने शादाब को दी । उसके बाद शादाब ने बाइक स्टार्ट कर दी और रेशमा उसके पीछे चिपक कर बैठ गई। रास्ते भर रेशमा उस पर डोरे डालती रही और थोडी देर बाद वो अपने घर के सामने खड़े थे। शादाब ने बाहर ही बाइक लगा दी। सड़क पर हल्का अंधेरा था इसलिए किसी को कुछ भी साफ नजर नहीं आ सकता था जिसका फायदा उठाने की रेशमा ने सोची और उसने एक प्लान बनाया और शादाब को बोली:"

" मुझे रात को ठीक से दिखाई नहीं देता अंधेरा ज्यादा हो तो इसलिए मुझे अपने साथ ही अंदर ले चल।

रेशमा ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया जिसे शादाब ने पकड़ लिया और दोनो हल्के हल्के अंदर की तरफ चल पड़े।

दूसरी तरफ जब से शादाब गया था शहनाज बहुत परेशान थी क्योंकि वो रेशमा के बारे में जानती थी कि ये एक नंबर की चालू और अय्याश औरत हैं इसलिए उसका दिल बहुत घबरा रहा था। नींद उसकी आंखो से कोसो दूर थी और वो आराम से बिस्तर पर पड़ी हुई करवटें बदल रही थी। जैसे ही उसने बाइक की आवाज सुनी तो वो खड़ी हो गई और बाहर बालकनी में खड़ी हो गई जहां पूरी तरह से अंधेरा था इसलिए वो किसी को नजर नहीं अा रही थी।

रेशमा शादाब के हाथो में अपना हाथ फसाए इस बात से बेखबर घर के अंदर घुस गई। शादाब के दादा दादी गहरी नींद में जा चुके थे इसलिए उसे इनकी कोई चिंता नहीं थी, बस उसने एक बार उपर की तरफ देखा ताकि पूरी तरह से निश्चिंत हो सके। उसे रात के घोर अंधेरे में वहां खड़ी शहनाज नजर नहीं आई।

रेशमा ने जान बूझकर कदम आगे बढ़ाते हुए गिरने का बहाना किया तो शादाब ने उसका हाथ तो पकड़ ही रखा था इसलिए उसे पकड़ कर उपर की तरफ खींच लिया जिससे वो एकदम शादाब से सीने से जा लगी और पूरी तरह से उससे चिपक गई मानो गिरने से बचने के लिए ऐसा कर रही हो। शहनाज़ ये सब देख रही थी इसलिए उसकी आंखे हैरत से फैलती चली गई। रेशमा ने कसकर अपने दोनो हाथ शादाब की कमर पर बांध लिए और उसका मुंह थोड़ा नीचे करते हुए अपनी चुचियों के बीच में घुसा दिया और बोली:"

" ओह शादाब मैं तो डर गई थी,अच्छा किया तूने पकड़ लिया, देख मेरा दिल कितनी तेजी से धड़क रहा हैं!

इतना कहकर वो अपनी चूचियों को शादाब के मुंह पर रगड़ने लगीं तो शादाब ने भी जोश में आते हुए दोनो हाथो से उसके कंधो को थाम लिया। रेशमा पूरी तरह से शादाब को अपने कब्जे में कर लेना चाहती थी इसलिए अपनी अपनी टांगे उसकी टांगो से रगड़ते हुए बोली:"
" शादाब मेरी साथ चलेगा ना सुबह शहर, तेरे फूफा सुबह ऑफिस चले जाते हैं और सब बच्चे स्कूल, मेरा मन नहीं लगता अकेले बेटे!!

शहनाज़ की आंखे ये सब देख और सुनकर गुस्से से लाल होकर दहकने लगी, कमीनी उसके बेटे को बिगाड़ रही है, इसका कुछ करना पड़ेगा। ये सोचकर वो अंदर अपने कमरे में गई और गैलरी की लाइट जला दी तो डर के मारे रेशमा की हालत खराब हो गई और उससे एक झटके के साथ शादाब से अलग हो गई। डरते डरते वो ऊपर की तरफ चल पड़ीं तो उसने देखा कि शहनाज़ की आंखे पूरी तरह से नींद में लग रही थी और वो अपने कमरे से बाहर निकली!

रेशमा डरते हुए:" भाभी हम अा गए हैं, बस अभी आए हैं, आपकी तबियत ठीक हैं?

शहनाज़;" हान ठीक हूं, बस थोड़ा नींद में थी, बाथरूम लगा तो अब बस लाइट जलाकर बाथरूम जा रही हूं।

रेशमा ने ये सुनकर राहत की सांस ली, थोड़ी देर बाद शहनाज वापिस अा गई तो रेशमा बोली:

" भाभी मुझे अकेले सोने की आदत हैं इसलिए मैं सामने वाले कमरे में सो जाउंगी।

शहनाज जानती थी कि उसका कमरा का गेट अंदर की तरफ शादाब के रूम में खुलता हैं इसलिए ये कमीनी चाल चल रही है तो शहनाज़ बोली:"

" रेशमा मुझे रात को अकेले डर लगता हैं इसलिए आज तुम मेरे साथ ही सो जाओ, दोनो आराम से बात भी करेंगे, बहुत दिनों के बाद अाई हो तुम!!

रेशमा का मूड खराब हो गया लेकिन उसने सब्र किया क्योंकि एक ही रात की तो बात है, सुबह मैं शादाब को अपने साथ ले ही जाऊंगी।
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