Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

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josef
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

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दुलारी मुंह फाड़े उनका वहशिपन देख रही थी...पर किसी दासी की तरह से उनका कोई विरोध भी नहीं कर रही थी...दादाजी ने उसके कपडे तार-२ कर दिए...और अब दुलारी उनके सामने पूरी नंगी खड़ी थी...
मोटे-२ स्तन थे उसके...और काले रंग के मोटे-२ निप्पल ...जो तन कर जामुन की तरह से चमक रहे थे ..थोड़े लटक जरुर गए थे...पर इतने भी नहीं .. नीचे सपाट पेट था और उसके नीचे उनकी गाँव वाली चूत...जिसपर दुनिया भर के बाल थे...लगता था की दुलारी ने उन्हें बरसो से नहीं काटा... काटती भी किसके लिए, खैर..दादाजी ने दुलारी को ऊपर से नीचे तक देखा...पर दुलारी की नजरे तो दादाजी के लंड को देखकर हैरत से फटी जा रही थी...जो धोती में तम्बू बना कर खड़ा हुआ था...
दादाजी ने अपनी धोती और उसके बाद अपना कच्छा एक झटके में उतार फेंका...और उनके लंड को देखते ही दुलारी के मुंह से चीख ही निकल गयी...
दुलारी : "हाय दैय्या...ये क्या है...लाला..तुने तो अजगर पाला हुआ है अपनी टांगो के बीच..."
उसकी चूत शायद ये सोचकर की अब यही अजगर उसकी चूत में जाएगा...रसीले पानी से सराबोर होने लगी थी.उसकी नजरो में गुलाबीपन सा तैरने लगा था... वो दादाजी के लंड को बड़ी भूखी नजरो से देख रही थी...दादाजी ने अपने ऊपर के कपडे भी उतार दिए और उनके कसरती बदन को देखकर दुलारी के मुंह से एक सिसकारी सी निकल गयी...
दुलारी : "स्सस्सस्स....लाला...आज अपने "लंड के कारनामें" दिखा दे इस दुलारी को...आज रहम मत करना मेरी चूत पर...चल लाला...चोद मुझे...सालो हो गए, किसी का लंड लिए हुए..."
दादाजी ने फुफकारते हुए लंड के साथ दुलारी को उठाया और उसे चारपाई पर पटक दिया...दुलारी ने अपनी दोनों टाँगे पकड़ी और हवा में उठा दी.. बीच में उनकी झांटो से भरी हुई रसीली चूत थी...दादाजी ने उसपर अपने अजगर का मुंह लगाया और उसपर दबाव डालकर अन्दर करने लगे...
पर असली अजगर का काम दुलारी की चूत ने किया ..वो दादाजी के लंड को अपने अन्दर निगलने लगी...और दादाजी के लंड के हर हिस्से के अन्दर जाने से वो जोर से चीखे मारकर उनके लंड का अपनी चूत में शानदार स्वागत कर रही थी...
"आआअह्ह्ह लाला......कितना मोटा है तेरा लंड....अह्ह्हह्ह्ह्ह .....फाड़ डाली तुने तो दुलारी की चूत.....अह्ह्ह्ह.....और डाल.....रहम मत कर...अज्ज्ज मेरे ऊपर ...अह्ह्ह्हह्ह.....लाला....डाल दे अपना मोटा लंड मेरी चूत में अज्ज्ज.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह ..... लाला....हाँ....लाला...."
दादाजी तो अपने लंड की किसी हेमर मशीन की तरह उसकी चूत में ड्रिल करने में लगे हुए थे....और जल्दी ही उनकी ड्रिलिंग पूरी हुई...और उन्होंने दुलारी की चूत में एक बड़ा सा छेद कर दिया...
लंड के पुरे अन्दर तक जाने में लगभग 5 मिनट लगे थे...दुलारी की साँसे रुकी हुई थी...मुंह और टाँगे खुली हुई थी...दोनों हाथो से उन्होंने चारपाई को पकड़ा हुआ था...दादाजी कुछ देर तक रुके..और फिर धीरे-२ धक्के मारने लगे...
"अह्ह्ह्हह्ह लाला.......अह्ह्ह्हह्ह ......म्मम्मम्म.....मजा आ गया....लाला....कितना मोटा और लम्बा है तेरा लंड...अह्ह्ह्ह......अब ठीक है....तेज मार अब....चोद मुझे लाला.....जोर से चोद..."
फिर तो दादाजी ने चारपाई के पायों को भी बजवा दिया ...हर धक्के से चारपाई टूटने जैसी हालत में हो जाती थी... वो झुके और उन्होंने दुलारी के प्यारे और दुलारे मुम्मो को चूसा और लंड के धक्के मारकर उनकी चूत का बेंड बजाना शुरू रखा...
"अह्ह्हह्ह ऊओह्ह्ह .....म्मम्मम ...लाला......चोद.....और तेज....ये दुलारी आज से तेरी है....जब चाहे चोदना...मुझे.....रात भर...दिन भर....सुबह...दोपहर....रात....आः...पूरा दिन चोदना...." और दुलारी की प्यार भरी बाते सुनते हुए दादाजी के लंड ने कब रस छोड़ना शुरू कर दिया , शायद उन्हें भी पता नहीं चला.....
दुलारी को अपनी चूत में बाढ़ का एहसास हुआ...और उसकी चूत ने भी तीसरी बार अपना पानी छोड़कर अपने लालाजी का साथ दिया...
दादाजी ने अपना लंड बाहर निकाला...वो पूरा सफ़ेद रंग के पानी से नहाया हुआ था...जिसे दुलारी ने बड़े प्यार से अपने मुंह में भरा और चूसकर साफ़ कर दिया..
मैंने ऋतू को इशारा किया और हम दोनों अन्दर की तरफ चल दिए..
ऋतू भागती हुई मुझसे आगे चल रही थी, मानो उसे अन्दर जाने की मुझसे ज्यादा जल्दी हो...
उसने एक झटके से दरवाजा खोल दिया..और सामने नंगी लेटी हुई दुलारी हमें देखते ही डर गयी .और अपने कपडे ढ़ुढते हुए जो हाथ लगा उसे अपनी छाती के ऊपर डाल कर अपना नंगापन छुपा लिया.
दादाजी उसकी ये हालत देखकर हंसने लगे..उन्होंने अपने नंगे शरीर को छुपाने की कोई कोशिश नहीं की.
दुलारी : "ये...ये क्या लाला...ये अन्दर कैसे आ गए...हे भगवान्....अब क्या होगा..." वो अपना मुंह नीचे करके सुबकने सी लगी, उसे लगा की दादाजी से चुदाई करवाकर उसने अपनी इज्जत खो दी है हम बच्चो के सामने.
ऋतू को अब और सबर नहीं हो पा रहा था..उसने लॉन्ग स्किर्ट पहनी हुई थी..उसे नीचे से पकड़कर उसने ऊपर उठाया..और उतार दिया, नीचे उसने सिर्फ पेंटी पहनी हुई थी, ऊपर ब्रा नहीं थी..उसके सफ़ेद रंग और पिंक निप्पल वाले मुम्मे उछल कर सबके सामने आ गए...और वो उछल कर दादाजी के ऊपर चढ़ गयी.
दुलारी ने जब ये देखा तो फटी आँखों से कभी मुझे और कभी दादाजी के ऊपर चढी़ हुई ऋतू को देखती..दादाजी ने हाथ नीचे करके उसकी पेंटी को पकड़ा और उसे तार-२ करके फेंक दिया..नीचे से उसकी शराबी चूत दादाजी के हलब्बी लंड से कुश्ती लड़ने को तैयार थी.. मैं धीरे से दुलारी के पीछे गया अपनी पेंट उतारी और अंडरवीयर भी, और उसके दोनों तरफ पैर फेलाकर बैठ गया.
वो हैरानी से दादाजी और ऋतू का प्यार देखने में इतनी व्यस्त थी की उसे मेरे पीछे आने का एहसास ही नहीं हुआ. मैंने हाथ आगे करके उसके हाथों के ऊपर रख दिए, जिनसे वो अपनी लाज छुपा कर बैठी हुई थी. जैसे ही मैंने अपना हाथ लगाया, वो चोंक उठी .
दुलारी : "अरे लल्ला....ये क्या कर रहे हो....और ये क्या हो रहा है...ऋतू बिटिया और लालाजी...यानि उसके दादा...तुम्हारी बहन के साथ...मतलब..." वो हैरान परेशान सी बोलती जा रही थी.
मैंने दुलारी के हाथो के ऊपर अपने हाथ बड़े प्यार से रखे और कहा : "हाँ काकी...ये दोनों पहले भी ये सब कई बार कर चुके हैं...
josef
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Re: Incest लंड के कारनामे - फॅमिली सागा

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इन्फेक्ट हमारे घर में सभी एक दुसरे के साथ ये चुदाई वगेरह कर लेते हैं...इस बार दादाजी जब आये तो वो भी नहीं रह पाए ये सब देखकर... और इसका परिणाम तुम्हारे सामने है...तुम्हे भी चोद डाला दादाजी ने...मैंने और ऋतू ने सब देखा, वहां खिड़की से..बड़े मजे दिए दादाजी ने तुम्हे...है न...बोलो..."
दुलारी मेरी बात सुनकर शर्मा सी गयी...मेरा हाथ खिसककर उसके मोटे मुम्मो के ऊपर आ गया..
दुलारी : " तभी मैं कहूँ...लाला को हुआ क्या है...शहर में ऐसा क्या हो गया की उसने मुझ बुढ़िया को आते ही मसल डाला...ऐसा तो मैंने लाला को पिछले दस सालो में नहीं देखा.."
मैंने दुलारी के मुम्मे हलके-२ दबाने शुरू कर दिए.
मैं : "कोन कहता है काकी की तू बुड्डी हो गयी है...मैंने देखा था तुझे अभी...वहां से...बड़ा ही कसा हुआ बदन है तेरा...और खासकर तेरे ये दोनों...पंछी.." कहते हुए मैंने वो कपडा खींच दिया और दुलारी काकी के दोनों कबूतरों का गला दबा दिया.
दुलारी : "आयीस्स्स्सस्स्स्स....ये क्या करते हो लल्ला.....तुम्हे तो मैंने अपनी गोद में खिलाया है...."
मैं : "अब मेरी बारी है काकी.....तुम्हे अपनी गोद में खिलाने की..."
और ये कहते हुए मैंने दुलारी काकी को अपने हाथो में उठाया और उन्हें अपनी गोद में खींच लिया...वो कुछ समझ पाती इससे पहले ही उनकी भीगी हुई सी चूत मेरे लंड के ऊपर थी...
दादाजी के लंड ने मेरा काम आसान कर दिया था..चूत को चौडा़ करके..और मेरे लंड का सुपाड़ा सीधा उनकी चूत के ऊपर फिट बैठ गया.. दादाजी का लंड भी अपना बिल ढून्ढ चूका था..ऋतू ने दादाजी की छाती के ऊपर हाथ रखे और सी सी करते हुए उनके लंड की कुर्सी पर बैठ गयी और उनके नाग को अपनी चूत के बिल में जगह दे दी....
दुलारी ने ऋतू की सिसकारी सुनी तो उसकी तरफ देखा...तब तक मैंने भी उन्हें अपने लंड पर खींचा और अपने लंड़ को उसकी चूत की बोतल में उतारता चला गया..
"आआआआआह्ह्ह........स्स्स्सस्स्स्स.......दैय्य्या....रे.......बबुआ.......ई का.......किया तुने...... स्स्स्सस्स्स्स अह्ह्ह्हह्ह ...." दुलारी मेरे लंड को निगलती हुई बुदबुदा रही थी....
दादाजी ने आगे उठकर ऋतू के मुम्मे अपने मुंह में भरे और उन्हें किसी बच्चे की तरह चूसते हुए अपने लंड के धक्के उसकी चूत में लगाने लगे..
ऋतू दादाजी के सर के बाल पकड़कर उन्हें अपनी छाती से दबाकर चिल्लाती जा रही थी..." अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दादाजी....अह्ह्ह्ह....ऊऊऊओ .....म्मम्म...कितना अन्दर तक जाता है आपका....... जोर से करो न दादाजी........और जोर से...प्लीस.....आह्ह्ह्ह....ओह्ह्ह या.....ओ या........हाँ......ऐसे ही.....येस्स....येस्सस्सस्स... ..येस्स्सस्स्स्सस्स्स.... .अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ....म्मम्मम.... " और ऋतू की चूत में से गाड़ा शहद निकलकर दादाजी के लंड का अभिषेक करने लगा.
पर दादाजी तो आज वियाग्रा खाकर आये थे जैसे...दुलारी काकी की चूत का बेंड बजाने के बाद अब वो कमसिन सी ऋतू की चूत में लंड पेलकर उसे तडपा रहे थे...
ऋतू तो निढाल सी होकर उनके लंड पर कब से कुर्बान हो चुकी थी पर दादाजी के लंड से निकलने वाले धक्के उसकी चूत में एक नए ओर्गास्म का निर्माण कर रहे थे.. और जल्दी ही वो जैसे नींद से जागी और फिर से दादाजी के धक्को का मजा लेते हुए चिल्लाने लगी..
"दादाजी.....मार डाला आपने तो आज.....अह्ह्हह्ह.....ओह्ह्हह्ह माय गोड.... म्मम्मम........ अह्ह्हह्ह........ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ...." ऋतू की हालत पतली होती जा रही थी.

मेरा लंड भी इंच इंच करके दुलारी की चूत के अन्दर तक समां गया...थोडा रुकने के बाद मैंने आगे हाथ करके दुलारी के खरबूजे अपने हाथो में पकडे और उन्हें दबाने लगा.. दुलारी भी अपनी गांड को मेरे लंड के ऊपर घुमा घुमा कर मजे ले रही थी...उसने शायद कल्पना भी नहीं की थी की उसकी जिन्दगी में इतने सालो के बाद एक ही दिन में दो-दो लंड उसकी चूत की सेवा करेंगे... पर वो कहते है न की ऊपर वाले के घर में देर है अंधेर नहीं, और वो जब भी देता है छप्पर फाड़ कर देता है...आज वोही हाल दुलारी का भी था...
पहले तो दादाजी के देत्याकार लंड ने उनकी चूत की लंका में हलचल मचाई और अब मेरा लंड जाकर उसी लंका में आग लगाने का काम कर रहा था...
दुलारी : " हाय......भागवान .......अह्ह्ह्ह......मार्र्र्र.....गयी रे......क्या खाते हो तुम दादा-पोता....साले कितना अच्छा चोदते हो ....अहह.........रुक बबुआ....रुक....."
मैं रुका तो काकी ने मुझे पीछे हाथ करके जमीन पर लेटने को कहा...मैं लेट गया...काकी ने एक पैर मेरे पेट से घुमा कर अपना चेहरा मेरी तरफ किया...मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर पूरा घूम सा गया..उनकी सिसकारी सी निकल पड़ी....अपनी चूत में ऐसा घर्षण पाकर....फिर से वेसा ही सेंसेशन पाने के लिए वो फिर से मेरे पेरो की तरफ घूम गयी.....और फिर से उनके मुह से वही मादक सिसकारी निकल गयी..... लगता था की मेरा लंड पूरा जाकर उनके गर्भाशय से टकरा रहा था और घुमने की वजह से मेरा सुपाडा एक अलग ही एहसास दे रहा था उन्हें अन्दर ही अन्दर और साथ ही चूत की दीवारों पर भी लंड के घर्षण का अलग ही मजा मिल पा रहा था...और फिर से वही मजा लेने के लिए दुलारी फिर से मेरी तरफ घूम गयी..उन्हें इस तरह से लंड को अपनी चूत में घुमाने में मजा आ रहा था...
josef
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पर बार-२ घुमने में उन्हें काफी परेशानी हो रही थी..उन्होंने आस पास देखा और अपनी साडी उठा ली..मुझे कुछ समझ नहीं आया की वो करना क्या चाहती है.. उन्होंने साडी के एक छोर का गोला बनाया और ऊपर की तरफ घुमा कर फेंका...वो कमरे के के ऊपर की बीम के ऊपर से होता हुआ वापिस नीचे आ गया...
काकी ने पास पड़ा हुआ चार फूट का एक डंडा उठाया और साडी के दोनों सिरे एक -२ कोने पर बाँध दिए...और झुला सा बना दिया..जो उनके सर से लगभग दो फूट की ऊँचाई पर झूल रहा था..
मेरी समझ में अब भी कुछ नहीं आ रहा था की चुदाई के वक़्त काकी को ये झुला बनाने की क्या सूझी....पर उसके बाद जो दुलारी ने किया उसे देखकर मैं दंग रह गया.. उन्होंने डंडे को बीच से पकड़ा और फिर से उसी तरह से घूमना शुरू कर दिया..
मेरा लंड उनकी चूत के अन्दर ही था और वो मेरे ऊपर बैठ कर, ऊपर हाथ करके डंडा पकडे हुए, घुमती जा रही थी, वो जैसे-२ घुमती जाती, साडी छोटी होकर ऊपर की तरफ सिमटती जा रही थी...जिसकी वजह से उनकी चूत ऊपर की तरफ जाती हुई महसूस हो रही थी...
लगभग 6 -7 चक्कर लगाने के बाद उनकी चूत मेरे लंड से निकलने के कगार पर आ पहुंची...और ऊपर की तरफ साडी भी इकठ्ठा होकर एक तनाव सा बना रही थी...जिसे काकी ने अपने पेरों जमीन पर रखकर रोका हुआ था... और जब उन्होंने देखा की मेरा लंड उनकी चूत से निकलने ही वाला है तो उन्होंने अपने दोनों पैर उठा कर घुटने अपनी छाती से चिपका लिए...और साडी में बना हुआ घुमावदार तनाव उनके शरीर को किसी लट्टू की तरह घुमाता हुआ मेरे लंड के ऊपर तेजी से बिठाने लगा....
मेरी तो हालत ही खराब हो गयी...वो जिस तेजी से घूमकर वापिस मेरे लंड पर आ रही थी, मुझे लगा की मेरे लंड में कोई फ्रेक्चर न हो जाए... पर दुलारी की चूत के अन्दर इतना रस निकल रहा था जिसकी वजह से न तो उन्हें और ना ही मुझे कोई तकलीफ हुई...और वो घुमती हुई सी...चिल्लाती हुई सी... मेरे लंड पर वापिस धप्प से आकर बैठ गयी....
"अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ...ओह्ह्ह्हह्ह्हह्ह ......अ.......अ.....अ...आआअ.........आआ......म्मम्मम्मम......ह्ह्हह्ह्ह्ह ह्ह्ह ,......."
मैं दुलारी के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह सका...उसने अपनी चूत को ऊपर तक ले जाकर मेरे लंड पर छोड़ दिया और घुमती हुई सी, ड्रिल होती हुई मेरे लंड पर वापिस कब्ज़ा कर लिया था..
वो मेरे ऊपर पड़ी हुई हांफ रही थी...शायद वो झड चुकी थी...मेरे चेहरे पर उनके बाल फेले हुए थे...वो ऊपर उठी और मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराने लगी...
वो बिलकुल अपनी बेटी जैसी मुस्कुरा रही थी...मासूमियत से भरी थी उनकी मुस्कान...मैंने आगे बढ़ कर दुलारी के होंठ चूस लिए...बिलकुल ठन्डे थे वो होंठ...बर्फ जैसे ...पर बड़े ही मीठे थे वो...गाँव का मीठापन छुपा था उनमे... मैं तो उन्हें चूसता रहा और नीचे से धक्के मारता रहा...और जल्दी ही मेरे लंड का ज्वालामुखी दुलारी की चूत की पहाड़ियों के अन्दर फूट पड़ा...और हम दोनों एक दुसरे के मुंह को चूसते हुए..चाटते हुए...सिसकारी मारते हुए झड़ते हुऐ...चिपक कर एक दुसरे के ऊपर लेटे रहे.
दादाजी ने अब ऋतू को घोड़ी बना दिया था...और अपना लंड वापिस पीछे से लेजाकर उसकी चूत में डालने लगे...पर जब उन्होंने गोल सा...चमकता हुआ सा...सुनहरे रंग का गांड का छेद दिखाई दिया तो उनकी नीयत बदल गयी...और उन्होंने अपने हाथ में थूक लगाकर लंड के सुपाडे पर फिराई और उसे टिका दिया ऋतू की गांड के छेद पर...
ऋतू ने जब दादाजी को पार्टी बदलते देखा तो वो कुनमुनाने लगी...उसे गांड मरवाने में भी मजा आता था पर दादाजी के लंड से गांड मरवाना यानी अपनी ऐसी तैसी करवाना...पर वो कुछ कर नहीं सकती थी...
उसने अपनी चूत के ऊपर अपना पंजा रखा और उसे जोरो से घिसने लगी...पीछे से दादाजी ने अपना घोडा ऋतू की गांड के अस्तबल में डाल दिया.. गांड के अन्दर जाते ही दादू का घोडा हिनहिनाने लगा और ऋतू भी दादाजी के लंड को अन्दर डालकर मजे से अपनी गांड के धक्के पीछे की तरफ फेंकने लगी.
"अह्ह्हह्ह्ह्ह ओग्ग ओह्ह्हह्ह दादाजी......क्या कर दिया.......अह्ह्ह्हह्ह ...आपका लंड तो अभी भी .....मुझे पहली बार जितना दर्द देता है.....यहाँ.....अह्ह्हह्ह.......अह्ह्ह्ह ........."
दादाजी हँसते रहे और उसकी गांड मारते रहे....उसकी गांड के छेद का कसाव इतना तेज था उनके लंड के चारो तरफ की दादाजी जल्दी ही मैदान में धराशायी हो गए और उनके लंड ने अपना माल ऋतू की गांड के छेद में छोड़ दिया..
ऋतू की पीठ पर झुककर उन्होंने उसके दोनों मुम्मे पकड़ लिए और उन्हें दबाते हुए , उसके कंधे चुमते हुए...उसके साथ चिपटे रहे...
हम चारों ने एक दुसरे को देखा और मुस्कुरा दिए..
सच कहूँ यहाँ गाँव में आकर मुझे चुदाई करने में ज्यादा मजा आ रहा था..
इस तरह दुलारी और उसकी बेटी रूपा के साथ-2 ऋतु की चुदाई करते हुए गाँव में दादाजी और मैनें 10-12 दिन तक खुब मजे़ उठाये।
हमारी छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी तो मैंने और ऋतु ने दादाजी से विदा ली और शहर वापस लौट आये..
शहर आकर भी चूदाई का सिलसिला चलता रहा ..
अन्नू ,सोनी , ऋतु और मम्मी को मैं और पापा साथ साथ मिलकर चोदते रहे...
~समाप्त~
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