Incest Kaamdev ki Leela

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Masoom
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Re: Incest Kaamdev ki Leela

Post by Masoom »

Very Nice, Fantastic, Awesome, Mind blowing update ....................
Keep it up bro ...............
Waiting for next update ................
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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rangila
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Re: Incest Kaamdev ki Leela

Post by rangila »

बहुत ही उम्दा. बहुत ही उत्तेजना से भरपूर कहानी है... शानदार लेखन है (^@@^-1rs((7) (^@@^-1rs((7) (^@@^-1rs((7) (^@@^-1rs((7)
Ankur2018
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Re: Incest Kaamdev ki Leela

Post by Ankur2018 »

शाम को आशा बेसब्री से बरामदे में ही यहां से वहा और वहा से यहां घूमने लगी। कुछ तो शायद कमी मेहसूस हो रही थी उसे। ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था के महेश के होते हुए भी आज वोह सम्पूर्ण औरत होने का एहसास नहीं कर रही थी। रेलिंग को कस के जकड़ती हुई वोह उपर आसमां की और गौर से देखने लगी। वोह खो ही चुकी थी के अचानक, एक हाथ उसके हाथ पर थम जाता है। एक घबराहट की सिसकी देती हूं, जब आशा पीछे मुड़ी, तो एक मुस्कुराहट लिए राहुल खड़ा हुए था वहा। मा बेटे के नज़रे मिल गई और आशा बेचैन होके, बस उसे ही देखती गई "क्या चाहिए बेटा?" बड़ी मुश्किल से अब वोह राहुल से नज़रे मिला पा रही थी।

राहुल ने अपने हाथ को और जमा दी मा के हाथ पर "यहां अकेली क्या कर रही हो मा?" एक तेज़ लहर उमंग की गुज़र गई आशा की बदन पे, जब राहुल ने वहीं के वही खड़े, अपने मा का हाथ थाम लिया। बेचारी आशा नज़रे मिलाए तो भी कैसे मिलाए! अपने सास और रमोला की मुंह से जो जो बाते वोह सुन चुकी थी, उसे यह समझ नहीं आ रही थी के कैसे सामना करे अपने बेटे का। बार बार उसकी हाथ रेलिंग को जकड़ रही थीं, और साथ साथ राहुल के हाथ भी अपनी गिरफ्त बड़ा चुका था।

एक लहर खामोशी दौड़ गई इस लम्हे में और समय मानो बही के वहीं रुक गया। "मा! तुम क्या,.... क्या तुम सब जान चूक....."। "इस विषय मै कोई बाते नहीं होगी! चला जा यहां से" आशा के गले में क्रोध थी, लेकिन एक कम्पन भी साथ साथ समाई हुई थी, बेटे के मौजूदगी से उसे कुछ कुछ तो हो ही रही थीं। "में जाने के लिए नहीं आया हूं! मुझे जवाब चाहिए!" राहुल अटल था अपने इरादों में, और वहीं के वहीं जमा रहा। फिर आशा की मुंह से कुछ ऐसे शब्द निकल आए, जिसे सुनके राहुल भी हैरान रह गया।

एक बड़ी अजीब सी अदा के साथ, आशा मुंह को दूसरे दिशा पे फेरती हुई बोलीं "मुझे मालूम नहीं थी, के तुझे औरतों में ही इतनी खास दिलचस्पी है, वैसे भी तुझे कमी किस बात की? जो तू मेरे पास आया है!"। राहुल भी मन ही मन खुश हुआ के आखिर मा भी उसके पास आही रही थी, लेकिन साथ साथ उसे यह भी मालूम था के जल्दबाजी किसी भी काम में ठीक नहीं! अगर अपने मा को उसे अपने बाहों में समेट ना ही है, तो वोह उसकी रजामंदी लेके ही होगा। खैर, अब राहुल अपने होंठ को आशा के कान तक लाता है "तो मा! क्या तुम्हे इस बात से जलन होने लगी??" ना जाने क्यों, राहुल को यह मौका दिखा, एक हल्की सी चुम्मी उसकी कंधो को देने की, और तो और उसने दे भी दिया।

कंधे में बेटे के होंठ का स्पर्श से आशा सिहर गई और रेलिंग को इस बार और कस के जकड़ ली "मुझे क्यों जलन होने लगी भला?? तू जा यहां से! बहुत शैतान होगया है तू!" आशा की बुनियाद अब कमजोर हो रही थी, पैरो तले जमीन अब धीरे धीरे पिघलने लगीं। राहुल और पीछे पीछे सन गया अपने मा से, कुछ इस कदर के उसका सोया हुए लिंग अब उत्तेजित होकर सीधे सामने के सुडौल गांड़ पर दस्तक देने लगा था और आशा वोह मेहसूस भी करने लगी थी। राहुल के बदमाशी को अब वोह और बढ़ावा दे या फिर उसे कामुकता की चिन्न माने! यह उसे समझ में नहीं आ रही थी।

लेकिन राहुल ठहरा आशिक़ मिज़ाज! वोह क्यों रुकता भला, वोह अब धीरे धीरे मा के कंधो को बड़ी अदा के साथ चूमता गया और साथ साथ आशा भी सिसकियों पे सिसकियां देने लगी अब, लेकिन धीमे स्वर में। लेकिन, राहुल ने यह भांप लिया था। शाम का समय था और बरामदे में से आसमान नीले रेंग में खुद को समेट चुका था। आशा गौर से आसमां की और देखने लगी, और राहुल उसके कंधो को प्यार से यहां वहा चूमता गया। बड़ी अदा के साथ अब राहुल अपने हाथ उसकी सुडौल उभरे हुए पेट तक ले आया और प्यार से सहलाने लगा। नरम मास पे बेटे के हाथ लगते ही एक खुमारी सी छा गई आशा में।

पेट को सहलाते हुए, राहुल अपने होंठ को फिर एक बार आशा की कान तक लाता है "वैसे मा! तुम उन सब औरतों से एकदम मस्त दिखती हों!, सच में!" यह शब्द मीठे मीठे शहद की तरह उसकी कान में घुलने लगी और वैसे वैसे आशा सिसक उठी एकदम से। एक तेज़ लहर दौड़ रही थी उसकी जिस्म के अंदर ही अंदर, बार बार दिमाग कह रही थी के अब बेटे के हाथ को रोका जाए, लेकिन दिल के भीतर से वोह यह सब का आनंद ले रही थी। हैरांजनाक उसकी मन के भीतर से यही आवाज़ आ रही थी के "ओह! और दबा इस पेट को! ज़ाहिर करदे अपना प्यार मुजपे!"।

अपने विचारों से वोह खुद बहुत शरमा गई, और सोचने लगी के क्यों ना बस इस हल्के हलके मसाज का आनंद लिया जाए। राहुल भी अपने मा का रजामंदी समझ चुका था और पेट को सहलाना बरकरार रखा। इस दौरान आशा और उसके बीच कुछ वार्तलाब भी चालू हो गया, कुछ बाते भी साफ होती गई!

आशा : तू सच में कब इतना बड़ा हो गया, पता भी नहीं चली!

राहुल : (सहलाते हुए) तुम नहीं देख पाई मा! लेकिन दादी और चाची ने देख ली मा!

आशा (धर्कन तेज़ होती हुई) : तू बहुत शैतान हो गया है!

राहुल : इतना ही नहीं मा! बल्कि......

आशा : बल्कि क्या????

राहुल : (पूरी हिम्मत जुटा के) रिमी, रेवती और नमिता दीदी भी इस में शामिल है!

इतना सुनना था कि आशा की आंखे बड़ी हो गई और उसकी मोटी मोटी स्तन और गति से उपर नीचे होने लगी। हा यह सच थीं के उसने अपने बेटियों में कुछ ताज़गी और निखरता देखी थी, लेकिन अब इसमें भी राहुल को शामिल होते देख, वोह बहुत हैरान थी, पर गुस्से भी हैरानी की बात यह थी, के इन सब सोच से उसकी खुद की योनि में अब गीलापन छाने लगी।

राहुल ने यह सब बता के, अपना हाथ का जकड़ पेट पर थोड़ा ढीला कर लेता है, और धीमे सवर में "मा, कहीं तुम नाराज़ तो......"। लेकिन आशा खुद एक मदहोशी के आलम में गुम थी! बार बार सोचने लगी के "मै कौन हूं पाप या पूर्ण का विचार करने! में तो खुद तेरे दादाजी के साथ भोग कर चुकी हूं, एक रखेल की तरह! अब अगर तू ने यह सब कर ही लिया! तो कौन सी अघटन हो गई!" एक तेज़ सास लेती हुई, वोह मन ही मन बोल परी।

फिर कुछ पल के बाद, आशा पीछे मुड़ी अपनी बेटे की और, फिर एक मीठी सवर में बोल परी "सहलाते जा! अच्छा सहलाता है तू!" एक नटखट अंदाज़ थी चेहरे पर, जिसे देख राहुल भांप लेता है के अब पत्थर पिघलने की फिराक में थी। बड़े अदा के साथ वोह पेट को सहलाता गया और इस बार बिना झिझक के, अपने होंठ को आशा से मिला देता है। कहीं दूर एक तेज़ लहर सुनाई दी समुंदर मे, जैसे ही इन दोनों के होंठ मिले!

राहुल अपने मा के मीठे मीठे रस को चखता गया और जवाब में आशा भी बेटे का पूरा साथ दे रही थी। मा बेटा ऐसे मिले, जैसे बरसो से बिछरी हुई प्रेमी थे मानो। चूमने के साथ साथ अब राहुल का हाथ उसके पीठ पर चलता गया और एक हाथ अब पेट, तो दूसरा पीठ की और। लम्हा वहीं रुक गया और यह दोनों चूमते गए एक दूसरे को।

कुछ पल के बाद, लाली के चिपकने के साथ साथ जब होंठ अलग हुए, तो आशा और राहुल फिर एक बार आंख से आंख मिलाए और प्यार से एक दूसरे को देखने लगे। नज़रे चार हो ही चुके थे के अचानक आशा की फोन बज उठी और दोनों का तांद्र टूट सी जाति है।
Ankur2018
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Re: Incest Kaamdev ki Leela

Post by Ankur2018 »

आशा बरामदे के उस पार चली जाती है अपनी कॉल लिए हुए। फोन महेश का था, जो काफी खुश लग रहा था।

महेश : डार्लिग! आज में बहुत खुश हूं!

आशा : (बेटे से नज़रे फिराकर) जी, बताइए! ऐसी क्या बात हुई, के आप ने मुझे कॉल किए! (महेश बहुत कम चीज़े अपने पत्नी के साथ शेयर करता था)

महेश : अरे, तुम्हे नहीं बताऊंगा! तो फिर किसे! एक गोआ कि पार्टी है, जिसने मेरा प्रोजेक्ट अप्रूव किया है! और मज़े की बात यह है, के इस खुशी में गोआ हम घूम भी लेंगे! और कुछ काम बाम भी हो जाएगा!

महेश के मुंह से आज बहुत दिन बाद कुछ ताजी खुश खबरी मिली थी आशा को। अपने पति के लिए वोह काफी खुश होने लगी। बात गोआ की नहीं थी! लेकिन एक नए वातावरण का अनुभव करने के लिए आशा खुद बहुत उतावला थी। इससे पहले वोह कुछ बोल पति, महेश अपने धुन में लगा हुआ था! "ओके डार्लिग! रखता हूं! और हां! सामन वामान तैर कर लेना! और बच्चो को भी बता देना! बाई!"
फोन कट हो जाता है और आशा के चेहरे पर एक असीम मुस्कुराहट देखकर राहुल उसकी और आने लगा।

राहुल : क्या बात है मा? पापा थे क्या?

आशा : हा! तेरे पापा थे, (कुछ रुककर) एक खुश खबरी है! उनके प्रोजेक्ट के सिलसिले में, वोह गोआ जा रहे हैं! (राहुल मा को लेकर अकेला होने के लिए खुश हो ही रहा था के) लेकिन.... हम सब भी जा रहे है!

राहुल : (कुछ सोच के) ओह! ....... फिर भी काफी बड़िया न्यूज है मा! इस बहाने गोआ भी हम सब घूम आयेंगे!

आशा : हा! क्यों नहीं, वैसे नमिता तो जा नहीं पाएगी! उसकी एमबीबीएस का परीक्षा भी इसी महीने है! लेकिन हा! यह खबर रिमी और रेवती को ज़रूर दे देना!

राहुल : (नमिता के ना होने के दुख से ज़्यादा, रिमी और रेवती की बारे में सोचकर) बिल्कुल! मा, बिल्कुल!

..........

गोआ जाने की खबर सबसे पहले तीन बहनों को पता चलती है और एक नमिता को छोड़कर, सब खुश थे!

रिमी : वाओ!!!! कूल! बड़ा मज़ा आयेगा!

रेवती : (रिमी की खुशी से उछलने को करन, इसकी हिलती हुई आमो को देखकर) क्यों! नंगी घूमने का इरादा है क्या बीच पर??

रिमी : ओह फ*** ऑफ! कुछ भी मत बोल!! तू भी तो उछलने के लिए बेताब हो रही है!

राहुल : तुम दोनों बस भी करों! प्यार तो में तुम दोनों से बराबर करूंगा! फिक्र मत करो!

इतना कहना होता है के, दोनों रेवती और रिमी, एक एक बाजू में आजाते है और बारी बारी राहुल को चूमने लगते है। राहुल भी वही के वही दोनों के सुडौल गांड़ पर एक एक पंजा लगाए, उन्हें प्यार से चूमने लगे और दो दो जोड़े प्यासे होंठ पाकर तो राहुल जन्नत पहुंच गया मानो! प्यार से होंठ के लाली को चूसते चूसते, राहुल उन दोनों के गांड़ को सहलाता गया, के तभी नमिता उन तीनों को देखकर एक खांसी की नाटक करने लगी "अःह्हम! तुम तीनों को बहुत प्राइवेसी की जरूरत है, मेरे हिसाब से!"।

चूमने का सिलसिला तोड़ के, राहुल और वोह दोनों नमिता की और देखने लगे और एक साथ बोल परे "सोरी! नो वन कैन इट जस्ट वन!"

नमिता खुद भी बही के बही अपने भाई के आगोश में शामिल होना चाहती थी, लेकिन इस समय उसे अपने एग्जाम्स में भी ध्यान देनी थी। उसका उत्रा हुआ चेहरा देखकर, राहुल उसके पास जाने लगा और एक कस के झप्पी देने लगा, झप्पी से मुक्त होकर, एक हल्की सी चुम्बन अपने दीदी के होंठ पर बरसाकर, वोह उसकी आंखो में आंखे मिलने लगा "दीदी! तुम अगर आती, तो बहुत खुशी होती मुझे! आखिर वासना के पहले पहले कदम में तुमने मेरा साथ दी थी!"। नमिता अपने भाई के क्यूट बरताव पर हस देती है और उसके सर पर एक थपकी मारने लगी "पागल कहीं का! में हमेशा तेरे साथ हूं! तू जा और जाके एन्जॉय करना! और हा! मा का खास दौर से खयाल रखना" इस कथन के अंत में नमिता उसे आंख मार देती है, जिससे राहुल उसका इशारा समझ जाता है, और धीमे से बोलता है "यू नॉटी गर्ल!"

.....


राहुल अब खुशी खुशी कमरे से बाहर निकलकर सीधा अपने चाची से मिलने गया और गौर से देखा के बरामदे में पौधों को पानी डाल रही थी रमोला, और झुकी होने के करन, उसकी भारी सुडौल गांड़ बहुत उभर के आ रही थी सारी में। बिना किसी झिझक के राहुल उसकी पीठ से चिपक जाता है और रमोला समझ जाती है के भवरा आ ही गया!। लेकिन इस बार भवरे के कांटे के गांड़ के फंखो के बीच हल्ला मचा रहा था, जिससे रमोला अब सिसकने लगीं। अब वोह पुधो को छोड़कर, सीधा होके, खुद राहुल के हाथो को पकड़कर अपने पेट पे रख देती है, जिससे वोह भी अब अपने चाची के पीठ से और ज़्यादा चिपक जाता है।

राहुल एक कस के चुम्बन उसकी पीठ पर थाम देता है और कान में फुसफुसाने लगा "गोआ की वादियों में तो आपको जी भरके चोदूंगा चाची!" और होंठ से कान को चूमने लगा। एक तो हसीन वातावरण और उपर से राहुल के पीठ से चिपकने से रमोला कामुक हो उठी, इतना के, हाथ से पानी का पोट भी गीर जाती है। कुछ देर तक राहुल गाल से लेकर गले तक चूमता गया और तभी रमोला उससे आज़ाद होक, उसके और मूड गई "सपने कुछ कम देखा कर!"

राहुल इस बात से एकदम हक्का बक्का रह गया "भला ऐसा क्यों कह रही हो चाची?"। रमोला अपनी गांड़ का दबाव उसके लिंग पर डालके, प्यार से अपनी चेहरे को उसके तरफ फिरा दी "मेरे प्यारे बालम! मै और तुम्हारे चाचा तो चले मेरे मायके की वहा! कुछ दिनों के लिए, तब तक मेरी याद में तुम तड़पते रहो!"। राहुल भी और चिपक गाय अपने चाची से "लेकिन मयिका क्यों चाची, अचानक?"। रमोला अब उसके हाथ पर हाथ रखे, पेट को सहलाने लगी "अरे बाबा! मेरी ननद की बेटी की शादी है! अब इससे ज़्यादा मत पूछ! वैसे रेवती तो जा रही है तुम लोगो के साथ!"।

अब मन ही मन राहुल इस बात का तसल्ली करने लगा, लेकिन चाची को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था, वोह अपने होंठ जोड़ देता है रमोला से, और कुछ पल तक रमोला भी साथ देती है, लेकिन फिर अलग हो जाती है "अब कुछ दिन तक, अपना मा का खयाल रख लेना!", आंख मारके, वोह वापस पौधों को पानी देने लगीं। चाची का इशारा राहुल समझ चुका था, वोह अपने कमरे की और दौड़ परा, ट्रिप की तयारी करने।

कमरे में पहुंचकर, वोह अलमीरा की और हाथ बढ़ाने ही वाला था, के उसके मन में अनेक खयाल आया, सब के सब उसके मा से जुड़े थे, समान पेक करते करते, वोह इस बात से काफी खुश था, के अब तो पूरा परिवार भी इस मिलन के लिए रजामंदी दे रहे थे।

वहा, महेश घर लौट चुका था, और अपने पत्नी से उस प्रोजेक्ट के सिलसिले में बात करने लगा, सामान पैक करते करते, लेकिन आशा की मन ही कहीं और थी। उस रात सोते सोते, आशा को बस गोआ के हसीन वादियों के सपने उसे आने लगी।
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