कत्ल की पहेली
Chapter 1
बोरीबन्दर के इलाके में वो एक बार था जो कि सेलर्स क्लब के नाम से जाना जाता था । उस जगह का बम्बई के वैसे हाई क्लास ठिकानों से कोई मुकाबला नहीं था लेकिन हाई क्लास ठिकानों जैसा तमाम रख-रखाव - जैसे बैंड की धुन पर अभिसार के गीत गाने वाली हसीना पॉप सिंगर, चायनीज, कन्टीन्टल, मुगलई खाना - अलबत्ता वहां बराबर था । जगह बन्दरगाह से करीब थी इसलिये रात को वो खचाखच भरी पायी जाती थी ।
उस घड़ी रात के बारह बजे थे जब कि क्लब के धुएं से भरे हाल में बैंड बज रहा था, बैंड की धुन पर वहां की पॉप सिंगर डॉली टर्नर भीड़ और कदरन शोर-शराबे से बेखबर मशीनी अंदाज में अपना अभिसार का गीत गा रही थी - गा क्या रही थी गाने की औपचारिकता निभा रही थी, गाने के बदले में क्लब के मालिक से मिलने वाली फीस को जस्टीफाई कर रही थी - और मालिक अमर बैंड स्टैण्ड के करीब एक खम्बे के सहारे खड़ा बड़े ही अप्रसन्न भाव से उसे देख रहा था ।
नहीं चलेगा । - वो मन-ही-मन भुनभुना रहा था - कैसे चलेगा ! साली उल्लू बनाना मांगती है । मैं नहीं बनने वाला । कैसे बनेगा ! नहीं बनेगा ।
डॉली एक खूबसूरत, नौवजान लड़की थी लेकिन मौजूदा माहौल में ऐसा नहीं लगता था कि उसे अपनी खूबसूरती, अपनी नौजवानी, या खुद अपने आप में कोई रुचि थी ।
बैंड स्टैण्ड के करीब की एक टेबल पर चार व्यक्ति बैठे थे जिनमें से एक एकाएक मुंह बिगाड़कर बोला - “साली फटे बांस की तरह गा रही है ।”
“बाडी हाईक्लास है ।” - दूसरा अपलक डॉली को देखता हुआ लिप्सापूर्ण स्वर में बोला - “नई ‘एस्टीम’ की माफिक । चमचम । चमचम ।”
“सुर नहीं पकड़ रही ।”
“बनी बढिया हुई है ।” - तीसरा बोला ।
“गला ठीक नहीं है ।”
“क्या वान्दा है !” - दूसरा फिर बोला - “बाकी सब कुछ तो ऐन फिट है । फिनिश, बम्फर, हैंडलाइट्स...”
“टुन्न है ।”
“इसीलिये” - चौथा बोला - “हिल बढिया रही है ।”
“लेकिन गाना...”
“सोले टपोरी ।” - दूसरा झल्लाकर बोला - “गाना सुनना है तो जा के रेडियो सुन, टेप बजा, तवा चला । इधर काहे को आया ?”
“मैं बोला इसका दिल नहीं है गाने में ।”
“गाने में नहीं है न ! लेकिन जिस कन्टेनर में है, उसे देखा ! उसकी बगल वाले को भी देखा ! दोनों को देख । क्या साला, मर्सिडीज की हैडलाइट्स का माफिक...”
तभी बैंड बजना बंद हो गया और डॉली खामोश हो गयी । कुछ लोगों ने बेमन से तालियां बजायीं जिन के जवाब में डॉली ने उस से ज्यादा बेमन से तनिक झुककर अभिवादन किया और फिर स्टेज पर से उतरकर लम्बे डग भरती हुई हाल की एक पूरी दीवार के साथ बने बार की ओर बढी ।
अमर खम्बे का सहारा छोड़कर आगे बढा । डॉली करीब पहुंची तो उसने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
केवल एक क्षण को डॉली की निगाह अपने एम्पलायर से मिली, न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर उपेक्षा के भाव आये और फिर वो बदस्तूर अपनी मंजिल की ओर बढती चली गयी ।
पहले से अप्रसन्न अमर और भड़क उठा । वो कुछ क्षण ठिठका खड़ा रहा और फिर बड़े निर्णायक भाव से डॉली के पीछे बार की ओर बढा ।
“कमल ! माई लव !” - डॉली बार पर पहुंचकर बारमैन से सम्बोधित हुई - “गिव मी ए लार्ज वन ।”
“यस, बेबी ।” - बारमैन उत्साहपूर्ण स्वर में बोला, फिर उसे डॉली के पीछे अमर दिखाई दिया तो उसका लहजा जैसे जादू के जोर से बदला - “यस, मैडम । राइट अवे, मैडम ।”
बारमैन ने उसके सामने विस्की का गिलास रखा और सोडा डाला । फिर उसने सशंक बढकर डॉली के पहुंचा और बोला - “ये ड्रिंक मेरी तरफ से है । कमल ! क्या !”
“यस, बॉस ।” - कमल बोला - “ऑन दि हाउस ।”
“मैडम से फेयरवैल ड्रिंक का पैसा नहीं लेने का है ।”