/** * Note: This file may contain artifacts of previous malicious infection. * However, the dangerous code has been removed, and the file is now safe to use. */

Thriller कत्ल की पहेली

Post Reply
Masoom
Pro Member
Posts: 3101
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Thriller कत्ल की पहेली

Post by Masoom »

कत्ल की पहेली

Chapter 1
बोरीबन्दर के इलाके में वो एक बार था जो कि सेलर्स क्लब के नाम से जाना जाता था । उस जगह का बम्बई के वैसे हाई क्लास ठिकानों से कोई मुकाबला नहीं था लेकिन हाई क्लास ठिकानों जैसा तमाम रख-रखाव - जैसे बैंड की धुन पर अभिसार के गीत गाने वाली हसीना पॉप सिंगर, चायनीज, कन्टीन्टल, मुगलई खाना - अलबत्ता वहां बराबर था । जगह बन्दरगाह से करीब थी इसलिये रात को वो खचाखच भरी पायी जाती थी ।

उस घड़ी रात के बारह बजे थे जब कि क्लब के धुएं से भरे हाल में बैंड बज रहा था, बैंड की धुन पर वहां की पॉप सिंगर डॉली टर्नर भीड़ और कदरन शोर-शराबे से बेखबर मशीनी अंदाज में अपना अभिसार का गीत गा रही थी - गा क्या रही थी गाने की औपचारिकता निभा रही थी, गाने के बदले में क्लब के मालिक से मिलने वाली फीस को जस्टीफाई कर रही थी - और मालिक अमर बैंड स्टैण्ड के करीब एक खम्बे के सहारे खड़ा बड़े ही अप्रसन्न भाव से उसे देख रहा था ।

नहीं चलेगा । - वो मन-ही-मन भुनभुना रहा था - कैसे चलेगा ! साली उल्लू बनाना मांगती है । मैं नहीं बनने वाला । कैसे बनेगा ! नहीं बनेगा ।

डॉली एक खूबसूरत, नौवजान लड़की थी लेकिन मौजूदा माहौल में ऐसा नहीं लगता था कि उसे अपनी खूबसूरती, अपनी नौजवानी, या खुद अपने आप में कोई रुचि थी ।

बैंड स्टैण्ड के करीब की एक टेबल पर चार व्यक्ति बैठे थे जिनमें से एक एकाएक मुंह बिगाड़कर बोला - “साली फटे बांस की तरह गा रही है ।”

“बाडी हाईक्लास है ।” - दूसरा अपलक डॉली को देखता हुआ लिप्सापूर्ण स्वर में बोला - “नई ‘एस्टीम’ की माफिक । चमचम । चमचम ।”

“सुर नहीं पकड़ रही ।”

“बनी बढिया हुई है ।” - तीसरा बोला ।

“गला ठीक नहीं है ।”

“क्या वान्दा है !” - दूसरा फिर बोला - “बाकी सब कुछ तो ऐन फिट है । फिनिश, बम्फर, हैंडलाइट्स...”

“टुन्न है ।”

“इसीलिये” - चौथा बोला - “हिल बढिया रही है ।”

“लेकिन गाना...”

“सोले टपोरी ।” - दूसरा झल्लाकर बोला - “गाना सुनना है तो जा के रेडियो सुन, टेप बजा, तवा चला । इधर काहे को आया ?”

“मैं बोला इसका दिल नहीं है गाने में ।”

“गाने में नहीं है न ! लेकिन जिस कन्टेनर में है, उसे देखा ! उसकी बगल वाले को भी देखा ! दोनों को देख । क्या साला, मर्सिडीज की हैडलाइट्स का माफिक...”

तभी बैंड बजना बंद हो गया और डॉली खामोश हो गयी । कुछ लोगों ने बेमन से तालियां बजायीं जिन के जवाब में डॉली ने उस से ज्यादा बेमन से तनिक झुककर अभिवादन किया और फिर स्टेज पर से उतरकर लम्बे डग भरती हुई हाल की एक पूरी दीवार के साथ बने बार की ओर बढी ।

अमर खम्बे का सहारा छोड़कर आगे बढा । डॉली करीब पहुंची तो उसने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।


केवल एक क्षण को डॉली की निगाह अपने एम्पलायर से मिली, न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर उपेक्षा के भाव आये और फिर वो बदस्तूर अपनी मंजिल की ओर बढती चली गयी ।

पहले से अप्रसन्न अमर और भड़क उठा । वो कुछ क्षण ठिठका खड़ा रहा और फिर बड़े निर्णायक भाव से डॉली के पीछे बार की ओर बढा ।

“कमल ! माई लव !” - डॉली बार पर पहुंचकर बारमैन से सम्बोधित हुई - “गिव मी ए लार्ज वन ।”

“यस, बेबी ।” - बारमैन उत्साहपूर्ण स्वर में बोला, फिर उसे डॉली के पीछे अमर दिखाई दिया तो उसका लहजा जैसे जादू के जोर से बदला - “यस, मैडम । राइट अवे, मैडम ।”

बारमैन ने उसके सामने विस्की का गिलास रखा और सोडा डाला । फिर उसने सशंक बढकर डॉली के पहुंचा और बोला - “ये ड्रिंक मेरी तरफ से है । कमल ! क्या !”

“यस, बॉस ।” - कमल बोला - “ऑन दि हाउस ।”

“मैडम से फेयरवैल ड्रिंक का पैसा नहीं लेने का है ।”
Masoom
Pro Member
Posts: 3101
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller कत्ल की पहेली

Post by Masoom »

डॉली का गिलास के साथ होंठों की ओर बढता हाथ ठिठका, उसने सशंक भाव से अमर की ओर देखा ।

“क्या बोला ?” - वो बोली ।

“अभी कुछ नहीं बोला । अभी बोलता है ।” - वो कमल की तरफ घूमा - “कमल !”

“यस, बॉस !”

“गल्ले में से दो हजार रुपये निकाल ।”

बारमैन ने गल्ले में से पांच-पांच सौ के चार नोट निकाले और अमर के इशारे पर उन्हें डॉली के सामने एक ऐश-ट्रे के नीचे रख दिया ।

“अब बोलता है ।” - अमर बोला - “अभी वीक का दूसरा दिन है । फुल वीक का पैसा तेरे सामने है । अब मैं तेरे को फेयरवैल बोलता है ।”

“अमर, तू मेरे को, अपनी डॉली को, इधर से नक्की होना मांगता है ?”

“हमेशा के लिये । मैं इधर बेवड़ा पॉप सिंगर नहीं मांगता । इधर तेरा काम गाना है, ग्राहकों का काम पीना है । मैं तेरे को अपना काम छोड़कर ग्राहकों का काम करना नहीं मांगता । इसलिये फेयरवैल । गुडबाई । अलविदा । दस्वीदानिया ।”

“ऐसा ?”

“हां, ऐसा ।”

“ठीक है ।” - डॉली ने एक ही सांस में अपना गिलास खाली किया - “अपुन भी इधर गाना नहीं मांगता । अपुन भी इधर तेरे फटीचर क्लब में अपना गोल्डन वायस खराब करना नहीं मांगता ।”

“फिर क्या वान्दा है ! फिर तो तू भी अलविदा बोल ।”

“बोला ।” - उसके अपना खाली गिलास कमल की तरफ सरकाया जिसमें झिझकते हुए कमल ने फिर जाम तैयार कर दिया - “और अपुन तेरा फ्री ड्रिंक नहीं मांगता । कमल !” - उसने ऐश-ट्रे समेत दो हजार के नोट कमल की तरफ सरका दिये - “ये ड्रिंक्स का पैसा है । बाकी का रोकड़ा मैं तेरे को टिप दिया । मैं । डॉली टर्नर । क्या !”

बारमैन ने उलझनपूर्ण भाव से पहले डॉली को और फिर अपने बॉस की तरफ देखा ।

“मेरे को क्या देखता है ?” - अमर भुनभुनाया - “इसका रोकड़ा है । चाहे गटर में डाले, चाहे तेरे को टिप दे ।”

“यस ।” - डॉली दूसरा जाम भी खाली करने के उपक्रम में बोली - “अपुन का रोकड़ा है । अपुन कमाया । अपुन साला इधर अक्खी रात गला फाड़-फाड़कर कमाया । अपुन इसे गटर में डाले, चाहे टिप दे । अपुन कमल को टिप दिया । कमल !”

“यस, मैडम ।”

“अपुन क्या किया ?”

“मेरे को टिप दिया ।”

“तो फिर रोकड़ा इधर क्या करता है ?”

“पण, मैडम...”

“ज्यास्ती बात नहीं मांगता । अपुन इधर कभी तेरे को टिप नहीं दिया । आज देता है । आज पहली और आखिरी बार इधर अपुन तेरे को टिप देता है । और तेरे को गुडबाई बोलता है । तेरे को कमल, तेरे बॉस को नहीं । क्या !”

कमल ने सहमति में सिर हिलाया लेकिन नोटे की तरफ हाथ न बढाया ।

“कमल ?” - डॉली भर्राये कण्ठ से बोली - “तू अपुन का दिल रखना नहीं मांगता ?”

कमल ने हौले से ट्रे के नीचे से नोट खींच लिये ।

“दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय ।” - डॉली हर्षित स्वर में बोली ।

“डॉली” - अमर ने हौले से उसके कन्धे पर रखा और कदरन जज्बाती लहजे से बोला - “तू सुधर क्यों नहीं जाती ?”

डॉली ने तत्काल उत्तर न दिया । उसने गिलास से विस्की का एक घूंट भरा और धीरे से बोली - “अब उम्र है मेरी सुधरने की !”

“क्या हुआ है तेरी उम्र को ? बड़ी हद बत्तीस होगी ।”

“उनत्तीस । ट्वन्टी नाइन ।”

“तो फिर ?”

“तो फिर ?” - डॉली ने दोहराया - “तो फिर ये ।”

उसने एक सांस में अपना विस्की का गिलास खाली कर दिया ।

अमर ने असहाय भाव से गरदन हिलायी और फिर बदले स्वर में बोला - “लॉकर की चाबी पीछे छोड़ के जाना ।”

वो बिना डॉली पर दोबारा निगाह डाले लम्बे डग भरता वहां से रूख्सत हो गया ।

डॉली भी वहां से हटी और पिछवाड़े में उस गलियारे में पहुंची जहां क्लब के वर्करों के लिये लॉकरों की कतार थी । उसने चाबी लगाकर अपना लॉकर खोला और फिर वहीं अपना सलमे सितारों वाला झिलमिल करता स्किन फिट काला गाउन उतारकर उसकी जगह एक जीन और स्कीवी पहनी । लॉकर का सारा सामान एक बैग में भरकर उसने बैग सम्भाला और पिछवाड़े के रास्ते से ही क्लब की इमारत से बाहर निकल गयी । इमारत के पहलू की एक संकरी गली के रास्ते इमारत का घेरा काटकर वो सामने मुख्य सड़क पर पहुंची ।
Masoom
Pro Member
Posts: 3101
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller कत्ल की पहेली

Post by Masoom »

रोशनियों से झिलमिलाती उस सड़क पर आधी रात को भी चहल-पहल की उसके लिये क्या अहमियत थी ! वो तो भीड़ में भी तनहा थी ।

बैग झुलाती वो फुटपाथ पर आगे बढी ।

“डॉली !”

वो ठिठकी, उसने घूमकर पीछे देखा ।

बारमैन, कमल उसकी तरफ लपका चला आ रहा था ।

डॉली असमंजसपूर्ण भाव से उसे देखती रही ।

कमल उसके करीब आकर ठिठका ।

“क्या बात है ?” - डॉली बोली ।

“मैं सोचा था” - कमल तनिक हांफता हुआ बोला - “कि तू बार पर से होकर जायेगी । मैं तेरे वास्ते ड्रिंक तैयार करके रखा । वन फार दि रोड । लास्ट वन फार दि रोड ।”

“ओह ! हाऊ स्वीट ! बट नैवर माइन्ड । आई हैड ऐनफ । रादर मोर दैन ऐनफ । जरूरत से ज्यादा । तभी तो नौकरी गयी ।”

“अब तू क्या करेगी ?”

“पता नहीं ।”

“कहां जायेगी ?”

उसे उस टेलीग्राम की याद आयी जो उसे शाम को मिली थी और जिसे वो पता नहीं कहां रख के भूल गयी थी । ‘माई डियर डार्लिंग डॉली’ से शुरु होकर जो ‘ओशंस एण्ड ओशंस ऑफ लव फ्रॉम युअर बुलबुल’ पर जाकर खत्म हुई थी ।

“गोवा ।” - वो बोली ।

“कब ?” - कमल बोला ।

“फौरन ।”

“वहां क्या है ? कोई नयी नौकरी ?”

“नहीं ।”

“तो ?”

“पुरानी यादों के खंडहर । खलक खुदा का । हुक्म बादशाह का ।”

“बादशाह !”

“और मैं रिआया । चन्द दिन की मौजमस्ती, चन्द दिन की रंगरेलियां । फिर वही अन्धेरे बन्द कमरे, तनहा सड़कें, बेसुरे गाने, हारी-थकी गाने वाली और फेयरवैल ड्रिंक ।”

“तेरी बातें मेरी समझ से बाहर हैं । पण मैं गॉड आलमाइटी से तेरे लिये दुआ करेगा । मैं इस सन्डे को चर्च में तेरे वास्ते कैंडल जलायेगा । आई विश यू आल दि बैस्ट इन युअर कमिंग लाइफ । आई विश यु ए हैप्पी जर्नी, डॉली ।”

“ओह, थैंक्यू । थैंक्यू सो मच, कमल । मुझे खुशी हुई ये जानकर कि मेरे लिये विश करने वाला कोई तो है इस दुनिया में । थैंक्यू, कमल । एण्ड गॉड ब्लैस यू ।”

“और ये ।”

कमल ने उसकी तरफ एक बन्द लिफाफा बढाया ।

“ये क्या है ?” - डॉली सशंक भाव से बोली ।

“कुछ नहीं । गुड बाई, डॉली । एण्ड गुड लक ।”

वो घूमा और लम्बे डग भरता हुआ वापिस क्लब की ओर बढ गया ।

डॉली तब तक उसे अपलक देखती रही जब तक कि वो क्लब में दाखिल होकर उसकी निगाहों से ओझल न हो गया । फिर उसने हाथ में थमे लिफाफे को खोला और उसके भीतर झांका ।

लिलाफे में पांच-पांच सौ के चार नोट थे ।

आंसुओं की दो मोटी-मोटी बूंदें टप से लिफाफे पर टपकीं ।
Masoom
Pro Member
Posts: 3101
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller कत्ल की पहेली

Post by Masoom »

कनाट प्लेस की एक बहुखंडीय इमारत की दूसरी मंजिल पर वो अत्याधुनिक, वातानुकूलित ऑफिस था जो कि कौशल निगम का लक्ष्य था । हमेशा की तरह वो ऑफिस के शीशे के प्रवेशद्वार पर ठिठका जिस पर सुनहरे अक्षरों में अंकित था -
एशियन एयरवेज
ट्रैवल एजेन्ट्स एण्ड टूर ऑपरेटर्स
एन्टर

वो ऑफिस ज्योति निगम को मिल्कियत था जिसका कि वो लाडला पति था ।

एक कामयाब, कामकाजी महिला का निकम्मा, नाकारा पति ।

ज्योति उसका वहां आना पसन्द नहीं करती थी लेकिन आज उसके पास उस टेलीग्राम की सूरत में बड़ी ठोस वजह थी जो कि निजामुद्दीन में स्थित उनके फ्लैट पर उस रोज ज्योति की गैरहाजिरी में पहुंची थी ।

वो ऑफिस में दाखिल हुआ । रिसैप्शनिस्ट को नजरअन्दाज करता हुआ वो ऑफिस के उस भाग में पहुंचा जहां एशियन एयरवेज की मैनेजिंग डायरेक्टर ज्योति निगम का निजी कक्ष था ।

“मैडम बिजी हैं ।” - ज्योति की प्राइवेट सैक्रेट्री उसे देखते ही सकपकायी-सी बोली ।

“हमेशा ही होती हैं ।” - कौशल बोला और रिसैप्शनिस्ट के मुंह खोल पाने से पहले वो दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हो गया जिस पर कि उसकी बीवी के नाम के पीतल के अक्षरों वाली नेम प्लेट लगी हुई थी ।

ज्योति फोन पर किसी से बात करने में व्यस्त थी ।

कौशल उसकी कुर्सी के पीछे पहुंचा और बड़े दुलार से उसके भूरे रेशमी बालों में उंगलियां फिराने लगा । ज्योति ने अपने खाली हाथ से उसके हाथ परे झटके और अपनी विशाल टेबल के आगे लगी विजिटर्स चेयर्स की तरफ इशारा किया । कौशल ने लापरवाही से कन्धे झटकाये और बेवजह मुस्कराता हुआ परे हटकर एक कुर्सी पर ढेर हो गया । टेलीग्राम जेब से निकालकर उसने हाथ में ले ली । फिर वो अपलक अपनी खूबसूरत बीवी का मुआयना करने लगा जो कि उसी की उम्र की, लगभग तीस साल की, साढे पांच फुट से निकलते कद की, छरहरे बदन वाली गोरी-चिट्टी युवती थी । उसके चेहरे पर एक स्वाभाविक रोब था जो - सिवाय कौशल के - हर किसी पर अपना असर छोड़ता था ।

खुद कौशल भी कम आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी नहीं था । फैशन माडल्स जैसी उसकी चाल थी और फिल्म स्टार्स जैसा वो खूबसूरत था लेकिन अपनी पोशाक के मामले में वो आदतन लापरवाह रहता था । उस घड़ी भी वो एक घिसी हुई जीन और गोल गले की काली टी-शर्ट के साथ उससे ज्यादा घिसी हुई बिना बांहों की जैकेट पहने था ।

ज्योति ने रिसीवर फोन पर रखा और उसकी तरफ आकर्षिक होती हुई अप्रसन्न भाव से बोली - “यहां क्यों चले आये ? मैंने कितनी बार बोला है कि...”

“जरूरी था, हनी ।” - कौशल मीठे स्वर में बोला ।

“जरूरी था तो हुलिया तो सुधार के आना था । ढंग के कपड़े तो पहनकर आना था ।”

“टाइम कहां था ! ये अर्जेंट टेलीग्राम थी तुम्हारे नाम । मिलते ही दौड़ा चला आया मैं यहां ।”

“टेलीग्राम !”

“अर्जेंट । हेयर ।”

ज्योति ने उसके हाथ से टेलीग्राम का लिफाफा ले लिया जो कि खुला हुआ था । उसने घूरकर अपने पति को देखा ।

“मैंने नहीं खोला ।” - कौशल जल्दी से बोला - “पहले से ही खुला था । ऐसे ही आया था ।” - उसने अपने गले की घण्टी को छुआ - “आई स्व‍ियर ।”

ज्योति को उसकी बात पर रत्ती-भर भी विश्वास न आया लेकिन उसने उस बात को आगे न बढाया । उसने लिफाफे में से टेलीग्राम का फार्म निकाला और सबसे पहले उस पर से भेजने वाले का नाम पढा । तत्काल उसके चेहरे पर बड़ी मधुर मुस्कराहट आयी । फिर उसने जल्दी-जल्दी टेलीग्राम की वो इबारत पढी जिसे कि वो सालों से पढती आ रही थी । केवल आखिरी फिकरा उस बार तनिक जुदा था जिसमें लिखा था: ‘आगमन की पूर्वसूचना देना ताकि मैं पायर से तुम्हें पिक करने के लिये गाड़ी भिजवा सकूं । विद माउन्टेंस आफ लव, यूअर्स बुलबुल’ ।
Masoom
Pro Member
Posts: 3101
Joined: 01 Apr 2017 17:18

Re: Thriller कत्ल की पहेली

Post by Masoom »

“फिदा है तुम पर ।” - कौशल धीरे-से बोला ।

“कौन ?” - ज्योति टेलीग्राम पर से सिर उठाती हुई बोली ।

“बुलबुल ।”

“यानी कि टेलीग्राम पढ चुके हो ?”

“खुली थी इसलिये गुस्ताखी हुई ।”

“जब पढ ही ली थी तो यहां दौड़े चले आने की क्या जरूरत थी ? फोन पर मुझे भी पढकर सुना देते ।”

“फोन खराब था ।”

“अच्छा ।”

“यू नो दीज महानगर निगम टेलीफोन्स । अपने आप बिगड़ जाते हैं, अपने आप चले पड़ते हैं ।”

“आटोमैटिक जो ठहरे ।” - ज्योति व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।

“वही तो ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “इस आदमी का तो जुनून बन गया है पार्टियां देना ।”

“हां । लेकिन उसकी ये गोवा की पार्टी कम और पुनर्मिलन समारोह ज्यादा होता है ।”

“हर साल । सालाना प्रोग्राम । जिसमें कि तुम हमेशा शामिल होती तो ।”

“अब तक तो ऐसा ही था लेकिन अपनी मौजूदा मसरूफियात में लगता नहीं कि इस बार मैं गोवा जाने के लिये वक्त निकाल पाऊंगी ।”

“क्यों नहीं निकाल पाओगी ? जरूर निकाल पाओगी । निकालना ही पड़ेगा । हर वक्त काम काम काम काम भी ठीक नहीं होता । वो ‘आल वर्क एण्ड नो प्ले’ वाली मसल सुनी है न तुमने ?”

“हां ।” - वो अनमने स्वर में बोली ।

“तुम्हें जरूर आना चाहिये । इसी बहाने चन्द रोज की तफरीह हो जायेगी और... पुनर्मिलन भी हो जायेगा ।”

“किस से ?”

“मेहमानों से । मेजबान से ।”
“विकी, तुम भूल रहे हो कि बुलबुल सतीश छप्पन साल का है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड । वो छप्पन का हो या छब्बीस का, यू मस्ट गो ।”
“मेरी तफरीह में तुम्हारी कुछ खास ही दिलचस्पी लग रही है ।”
“खास कोई बात नहीं ।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझे तफरीह के लिए भेजकर तुम पीछे खुद तफरीह करने के इरादे रखते होवो ।”
“कैसी तफरीह ?”
“वैसी तफरीह जिसके लिये मुझे यकीन है तुम कम-से-कम कोई छप्पन साल की औरत नहीं चुनोगे ।”
“ओह नो । नैवर ।”
“ऐसा कोई इरादा हो तो एक वार्निंग याद रखना । मैं बड़ी हद सोमवार तक वापिस आ जाऊंगी ।”
“जब मर्जी आना । मैं खुद ही तुम्हारी गैर-हाजिरी में यहां नहीं होऊंगा ।” - वो एक क्षण ठिठका और बोला - “कर्टसी माई लविंग वाइफ ।”
“क्या मतलब ? कहीं तुम्हें भी तो कहीं किसी बुलबुल का बुलावा नहीं है ?”
“नो सच थिंग । वो क्या है कि अख्तर ने आज आगरे से फोन किया था ।”
“किस बाबत ?”
Post Reply

Return to “Hindi ( हिन्दी )”